रमज़ान अरबी कैलेंडर के उस महीने का नाम हैं जिस महीने में पूरी दुनिया में मुसलमान, रोज़ा रखते हैं।
अर्थात सुबह से पहले एक निर्धारित समय से, शाम को सूरज डूबने के बाद एक निर्धारित समय तक खाने पीने से दूर रहना होता है। कुरआने मजीद में इस संदर्भ में कहा गया है कि रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन, सही मार्ग का चिन्ह और सत्य व असत्य के मध्य अंतर करने वाला है तो जो भी रमज़ान के महीने तक पहुंचे वह रोज़ा रखे और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो फिर वह कभी और रोज़े रखे, अल्लाह तुम्हारे लिए आराम चाहता है, तकलीफ नहीं चाहता, रमज़ान के महीने को रोज़ा रख कर पूरा करो और अल्लाह को इस लिए बड़ा समझो कि उस ने तुम्हारा मार्गदर्शन किया है और शायद इस प्रकार से तुम उसका शुक्र अदा कर सको। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने शाबान महीने के अंतिम दिनों में रमज़ान महीने के बारे में एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा कि हे लोगो! अपनी विभूतियों व , कृपा के साथ रमज़ान का महीना आ गया यह महीना ईश्वर के निकट सब से अच्छा महीना है।ऐसा महीना है, जिसमें तुम्हें ईश्वर का अतिथि बनाने के लिए आमंत्रित किया गया है और तुम्हें ईश्वरीय बंदों में गिना गया है। इस महीने में तुम्हरी सांसें, ईश्वर का नाम जपती हैं, तुम्हारी नींद इबादत होती है, तुम्हारे ज्ञान और दुआओं को स्वीकार किया जाता है। अपने पालनहार से चाहो कि वह तुम्हें रोज़ा रखने और क़ुरान की तिलावत का अवसर प्रदान करे। रमज़ान की भूख प्यास से प्रलय के दिन की भूख प्यास को याद करो और गरीबों तथा निर्धनों की मदद करो , बड़ों का सम्मान करो, छोटों पर दया करो, रिश्तेदारों से मेल जोल रखो, ज़बान पर क़ाबू रखो और जिन चीज़ों को देखने से ईश्वर ने रोका है उन्हें न देखो जिन बातों को सुनने से उसने रोका है उन्हें न सुनो, अनाथों के साथ स्नेह से पेश आओ, ईश्वर से अपने पापों की क्षमा मांगो और नमाज़ के समय दुआ के लिए हाथ उठाओ कि यह दुआ का सब से अच्छा समय है। जान लो कि ईश्वर ने अपने सम्मान की सौगंध खायी है कि नमाज़ पढ़ने वालों और सजदा करने वालों को अपने प्रकोप का पात्र न बनाए और उन्हें प्रलय के दिन, नर्क की आग से न डराए। ... हे लोगो! इस महीने में स्वर्ग के द्वार खोल दिये जाते हैं ईश्वर से दुआ करो कि वह तुम्हारे लिए बंद न हों और नर्क के दरवाज़े बंद कर दिये जाते हैं ईश्वर से दुआ करो कि वह तुम्हारे लिए खोले न जाएं। इस महीने में शैतानों को बंदी बना लिया जाता है तो अपने ईश्वर से दुआ करो कि उन्हें अब कभी तुम पर अपने प्रभाव डालने का अवसर न दिया जाए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि इस अवसर पर मैंने खड़े होकर उनसे पूछा कि हे पैगम्बरे इस्लाम! इस महीने में सब से अच्छा कर्म क्या है? तो उन्होंने फरमाया कि हे अबुलहसन! इस महीने में सब से अच्छा काम, उन चीज़ों से दूरी है जिन्हें अल्लाह ने हराम कहा है।
रमज़ान का महीना, हिजरी क़मरी कैलैंडर का नवां और सब से श्रेष्ठ महीना है। इस महीने में ईश्वरीय आथित्य की छाया में अल्लाह के सारे बंदे, उसकी नेमतों से लाभान्वित होते हैं रमज़ान का महीना, सुनहरे अवसरों का समय है। पैगम्बरे इस्लाम के शब्दों में इस महीने में मनुष्य के साधारण कर्मों का भी बहुत अच्छा फल मिलता है और ईश्वर छोटी सी उपासना के बदले में भी बड़ा इनाम देता है। थोड़े से प्रायश्चित से बड़े बड़े पाप माफ कर देता है और उपासना व दासता द्वारा कल्याण व परिपूर्णता तक पहुंचने के रास्ते आसान बना देता है । इस प्रकार से धार्मिक दृष्टि से इस महीने में जिस प्रकार का अवसर मनुष्य को मिलता है वैसा साल के अन्य किसी महीने में नहीं मिलता इसी लिए इन ईश्वरीय विभूतियों से भरपूर लाभ उठाने पर बल दिया गया है और यह भी निश्चित है कि यदि कोई सच्चे मन से इस महीने में रोज़ा रखे, उपासना करे और सही अर्थों में इस आथित्य से लाभ उठाए तो उसे एेसा आध्यात्मिक लाभ मिलेगा जिसकी उसने कल्पना भी न की होगी। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने रमज़ान के महीने को अपने बंदों के लिए मुक़ाबले का मैदान बनाया है जहां वे ईश्वर की दासता और उपसना में एक दूसरे को पीछे छोड़ने का प्रयास करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा है कि सही अर्थों में अभागा वह है जो रमज़ान का महीना गुज़ार दे और उसके पाप माफ न किये गये हों। इस प्रकार से हम देखते हैं कि रमज़ान, ईश्वर पर आस्था रखने वाले के लिए किस हद तक अहम है। ईश्वर ने इस महीने में लोगों को अपना मेहमान बनाया है और उन्हें अपने अतिथि गृह में जगह दी है इसी लिए बुद्धिजीवी कहते हैं कि इस ईश्वरीय अतिथि गृह में रहने के अपने नियम हैं जिन का पालन करके ही रोज़ा रखने वाला , आघ्यात्म की चोटी पर चढ़ सकता है। हमें इस महीने में पापों से बच कर ईश्वरीय आथित्य का सम्मान करना चाहिए और इस अवसर को ईश्वर से मन में डर पैदा करने का अवसर समझना चाहिए। ईश्वरीय भय या धर्म की भाषा में तक़वा, निश्चित रूप से धर्म में आस्था रखने वाले के लिए एक बहुत बड़ा चरण है कि जिस पर पहुंचने के बाद उपासना का वह आनंद मिलता है जिसकी कल्पना भी उसके बिना करना संभव नहीं होता। तक़वा अर्थात ईश्वर का भय , अर्थात हमेशा यह बात मन में रखना कि हमारे हर एक काम को एक एक गतिविधि को ई्श्वर देख रहा है। वह ऐसा शक्तिशाली है जो उसी क्षण जो चाहे कर सकता है। यदि सही अर्थों में मनुष्य इस पर विश्वास कर ले कि ईश्वर उसे हमेशा देखता है तो फिर निश्चित रूप से पाप और भ्रष्टाचार से कोसों दूर हो जाएगा, रमजा़न का एक लाभ यह भी है कि वह मनुष्य को मोह माया और सांसारिक झंझटों से छुटकारा दिलाता है और एक महीने के लिए उसे आत्मा के पोषण के आंनद से अवगत कराता है।
पैगम्बरे इस्लाम के कथनों के अनुसार, रमज़ान में ईश्वर की उपासना को चार हिस्सों में बांंटा जा सकता है, दुआ, क़ुरआने मजीद की तिलावत, अल्लाह की याद , और तौबा व मुस्तहब नमाज़ , वह उपासना है जिसका पुण्य, रमज़ान के महीने में कई गुना बढ़ जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों ने रमज़ान के लिए विशेष दुआएं बतायी हैं जिन्हें पढ़ने का आंनद ही अलग है। इन दुआओं में जहां ईश्वर से पापों की क्षमा मांगी गयी है वहीं, इन दुआओं को इस्लामी शिक्षाओं और दर्शन का भंडार भी कहा जाता है। पैगम्बरे इस्लाम के कथनों में है कि हर चीज़ की एक बहार होती है और कु़रान की बहार, रमज़ान का महीना है।
वास्तव में ईश्वर मनुष्य को किसी भी एेसे काम का आदेश नहीं देता जिसमें उसका हित न हो अर्थात ईश्वर के हर आदेश का उद्देश्य मनुष्य के हितों की रक्षा होता है। यदि ईश्वर लोगों को किसी काम से रोकता है तो इसका अर्थ यह है कि उस काम से मनुष्य को हानि होती है। इसी तथ्य के दृष्टिगत ईश्वर ने मनुष्य के लिए उन कामों को अनिवार्य किया है जिनकी सहायता से वह परिपूर्णता के चरण तक पहुंच सकता है और जिनके बिना परिपूर्णता के गतंव्य की ओर उसकी यात्रा अंसभव है। इस प्रकार के कामों को छोड़ने पर ईश्वर ने दंड की बात कही है। वास्तव में इस प्रकार से ईश्वर ने मनुष्य को एसे कामों को करने पर बाध्य किया है जिसका लाभ स्वंय मनुष्य को ही होने वाला है और उसे छोड़ने तथा शैतान के बहकावे में आने की दशा में हानि भी उसे ही होने वाली है। रोज़ा भी ईश्वर के इसी प्रकार के आदेशों में से एक है क्योंकि रोज़ा रखने का मनुष्य को आध्यात्मिक व शारीरिक व मानसिक हर प्रकार का लाभ पहुंचता है।
रमज़ान के महीने में मनुष्य अपना आध्यात्मिक , मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर करके, स्वंय को इस योग्य बनाता है कि वह ईश्वर से निकट हो सके। रमज़ान में एक विशेष दुआ में रोज़ा रखने वाला जब ईश्वर के सामने गिड़गिड़ा कर कहता है कि हे ईश्वर! मेरी मदद कर कि मैं संसारिक मोहमाया से मुक्त होकर तेरी तरफ आ जाऊं तो निश्चित रूप से इससे ईश्वर की दासता की वह चोटी नज़र आती है जिस पर पहुंचना हर मनुष्य के लिए बहुत कठिन काम है। इस प्रकार से दास, अपने पालनहार के सामने अपनी असमर्थता व अयोग्यता को स्वीकार करते हुए उससे मदद मांगता है और ईश्वर से निकट होने में अपनी रूचि भी दर्शाता है ताकि ईश्वर उसकी मदद करे और वह इस मायाजाल से निकल कर सुख के अस्ली रूप से परिचित हो सके।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने रोज़ेदार के मन में विश्वास उत्पन्न होने के सब से महत्वपूर्ण चिन्ह के रूप में ईश्वर से भय व मन व आत्मा में पवित्रता उत्पन्न होने के बारे में इस प्रकार से कहा हैः
दास उसी समय ईश्वर से भय रखने वाला होगा जब उस वस्तु को ईश्वर के मार्ग में त्याग दे जिसके लिए उसने अत्यधिक परिश्रम किया हो और जिसे बहुत परिश्रम से प्राप्त किया हो। ईश्वर से वास्तिविक रूप में भय रखने वाला वही है जो यदि किसी मामले में संदेह ग्रस्त होता है तो उसमें धर्म के पक्ष को प्राथमिकता देता है।