बंदगी की बहार- 5

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बंदगी की बहार- 5

रमज़ान के महीने ने अपनी अपार विभूतियों और असीम ईश्वरीय क्षमा व दया के साथ हमें अपना अतिथि बनाया है।

इस पवित्र महीने की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके परिजनों ने अनेक हदीसें बयान की हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपनी एक दुआ में रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों के बारे में कहते हैं। प्रभुवर! हमें इस महीने की विशेषताओं को समझने और इसका सत्कार करने का सामर्थ्य प्रदान कर।

रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों को समझने का अर्थ इस महीने की वास्तविकता को समझना है। जो भी इस महीने के गुणों को सही ढंग से समझ लेगा और इस महीने की महानता को पहचान जाएगा निश्चित रूप से वह अपना समय इसमें निष्ठापूर्ण ढंग से उपासना में व्यतीत करेगा। रमज़ान के महीने की एक विशेषता, इसका आध्यात्मिक स्थान और ईश्वर के निकट इसकी विशेष स्थिति है। अनन्य ईश्वर ने इस महीने को एक पवित्र, शीतल व उबलते हुए पानी के सोते की तरह रखा है ताकि उसके बंदे एक महीने के दौरान अपनी आत्मा को उसमें धोएं, अपने अस्तित्व से पापों को दूर करें और ईश्वरीय प्रकाश की ओर आगे बढ़ें। यह महीना, पवित्र होने और आध्यात्मिक छलांग लगाने का है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं कि अगर कोई बंदा रमज़ान के महीने के महत्व को समझ जाता तो यही कामना करता कि पूरा साल, ईश्वर के आतिथ्य का महीना रहे।

रमज़ान के पवित्र महीने की एक अन्य विशेषता इसमें क़ुरआने मजीद व अन्य बड़ी आसमानी किताबों का भेजा जाना है। क़ुरआने मजीद, तौरैत, इन्जील, ज़बूर और हज़रत इब्राहीम व हज़रत मूसा की किताबें इसी पवित्र महीने में भेजी गई हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं। पूरा क़ुरआन रमज़ान के महीने में शबे क़द्र में एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ अर्थात भेजा गया। फिर वह बीस साल में क्रमबद्ध ढंग से उन पर नाज़िल हुआ। हज़रत इब्राहीम की किताब, रमज़ान महीने की पहली रात में, तौरैत, रमज़ान के छठे दिन, इंजील, रमज़ान के तेरहवें दिन और ज़बूर रमज़ान की 18वीं तारीख़ को नाज़िल हुई है।

 रमज़ान महीने की विशेषताएं और उसके गुण असीम हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की हदीस है कि रमज़ान के महीने में की गईं भलाइयां स्वीकृत होती हैं और बुराइयां क्षमा की जाती हैं। जिसने रमज़ान के महीने में क़ुरआने मजीद की एक आयत की तिलावत की वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने अन्य महीनों में पूरे क़ुरआन की तिलावत की हो। रमज़ान का महीना, विभूति, दया, क्षमा, तौबा व ईश्वर की ओर लौटने का महीना है। अगर किसी को रमज़ान के महीने में क्षमा न किया गया तो फिर किस महीने में क्षमा किया जाएगा? ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह इस महीने में तुम्हारे रोज़ों को स्वीकार करे और इसे तुम्हारी आयु का अंतिम वर्ष क़रार न दे, तुम्हें उसके आज्ञापालन का सामर्थ्य प्रदान करे और उसकी अवज्ञा से तुम्हें दूर रखे कि निश्चित रूप से प्रार्थना के लिए ईश्वर से बेहतर कोई नहीं है।

रमज़ान महीने की एक अन्य अहम विशेषता यह है कि ईश्वर इस विभूतियों भरे महीने में, ईमान वालों पर शैतानों को वर्चस्व को रोक देता है और उन्हें बेड़ियों में जकड़ देता है। यही कारण है कि इस महीने में मनुष्य की आत्मा अधिक शांत रहती है और वह इस स्वर्णिम अवसर को अपनी आत्मा के प्रशिक्षण और अध्यात्म तक पहुंच के लिए प्रयोग कर सकता है। दयावान ईश्वर ने आत्मिक व आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक ईमान वालों की पहुंच के लिए रमज़ान के पवित्र महीने और रोज़ों में ख़ास विशेषताएं रखी हैं। उसने न खाने और न पीने जैसी सीमितताओं के मुक़ाबले में अपने बंदों के लिए अत्यंत मूल्यवान पारितोषिक दृष्टिगत रखे हैं जिन्हें बयान करना संभव नहीं है।

इस ईश्वरीय आतिथ्य में न केवल यह कि उपासनाओं का पूण्य कई गुना अधिक मिलता है बल्कि इस महीने में ईमान वालों का सोना और सांस लेना भी उपासना और ईश्वरीय गुणगान समझा जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का कथन है कि इस महीने में तुम्हारी सांसें ईश्वर का गुणगान और तुम्हारी नींद ईश्वर की उपासना है। ईश्वर की यह विशेष व बेजोड़ कृपादृष्टि साल के किसी भी अन्य महीने या दिन में दिखाई नहीं देती।

इस पवित्र महीने में रोज़ा रखने का बहुत अधिक पुण्य और विभूतियां हैं। रोज़ा रखने से मनुष्य की आत्मा कोमल होती है, उसका संकल्प मज़बूत होता है और उसकी आंतरिक इच्छाएं नियंत्रित होती हैं। अगर इंसान अपनी वासना और आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित कर ले और उनकी लगाम अपने हाथ में ले ले तो फिर वह आध्यात्मिक पहलू से अपना प्रशिक्षण कर सकता है और वांछित पवित्रता व परिपूर्णता तक पहुंच सकता है। अगर इंसान अपनी प्रगति की मार्ग की बाधाओं को एक एक करके हटाना और अपने आपको शारीरिक वासनाओं में व्यस्त नहीं रखना चाहता तो रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखना उसके लिए सबसे अच्छा अवसर है। क़ुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 183 में कहा गया हैः हे ईमान वालो! तुम पर रोज़े उसी तरह अनिवार्य किए गए जिस प्रकार तुमसे पहले वालों पर अनिवार्य किए गए थे कि शायद तुममें ईश्वर का भय पैदा हो जाए।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से रमज़ान के महीने में रोज़े की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहाः लोगों पर रोज़ा इस लिए अनिवार्य किया गया ताकि वे भूख और प्यास की पीड़ा और तकलीफ़ को समझ सकें और फिर प्रलय की भूख, प्यास और अभाव की पीड़ाओं को समझ सकें जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि तुम रोज़े में अपनी भूख और प्यास के माध्यम से प्रलय में अपनी भूख और प्यास को याद करो। यह याद मनुष्य को प्रलय के लिए तैयारी करने पर प्रेरित करती है और वह ईश्वर की प्रसन्नता के लिए अधिक कोशिश करता है। यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने रोज़ा रखने वालों को यह मूल्यवान शुभ सूचना दी है कि रमज़ान के पवित्र महीने का आरंभ, दया है, उसका मध्यम भाग, क्षमा है और उसका अंत नरक की आग से मुक्ति है।

रमज़ान का महीना बड़ी तेज़ी से गुज़रता है और हम उन राहगीरों की तरह हैं जिन्हें इस मार्ग पर बिना निश्चेतना के, सबसे अच्छे कर्मों और सबसे अच्छे व्यवहार के साथ आगे बढ़ना है। चूंकि इस्लाम में मनुष्य का सबसे बड़ा दायित्व आत्म निर्माण और अपने आपको बुराइयों से पवित्र करना है इस लिए रमज़ान का महीना, आत्म निर्माण, नैतिकता व मानवता तक पहुंचने का सबसे अच्छा अवसर है। आत्म निर्माण के लिए जिन बातों की सिफ़ारिश की गई है उनमें से एक अहम बात, अधिक बोलने से बचना है। मौन व कम बात करना ऐसा ख़ज़ाना है जो मनुष्य के मन में ईश्वर की पहचान के दरवाज़े खोल देता है। रमज़ान के महीने में, जो ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है, यह सिफ़ारिश और बढ़ जाती है कि कहीं रोज़ेदार व्यक्ति दूसरों की बुराई करने, उन पर आरोप लगाने और झूठ बोलने जैसे पापों में न ग्रस्त हो जाए।

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम एक गली से गुज़र रहे थे कि उन्होंने एक महिला की आवाज़ सुनी जो अपनी दासी को गालियां दे रही थी। महिला ने सुन्नती रोज़ा भी रखा हुआ था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने आदेश दिया कि कुछ भोजन लाया जाए। फिर आपने उस महिला से कहा कि इसे खा लो। उसने कहा कि हे ईश्वर के पैग़म्बर! मैं रोज़े से हूं। उन्होंने कहा कि तू किस प्रकार रोज़े से है कि अपनी दासी को गालियां दे रही है? इसके बाद आपने फ़रमाया कि रोज़ा केवल न खाना और न पीना नहीं है। इसके बाद आपने जो वाक्य कहा वह चिंतन का विषय है। उन्होंने कहाः रोज़ेदार कितने कम हैं और भूखे कितने ज़्यादा हैं।

धर्म व शिष्टाचार के नेताओं ने कम बात करने और मौन के बारे में बहुत सी सिफ़ारिशें की हैं। लुक़मान हकीम ने अपने बेटे से कहा हैः हे मेरे पुत्र! जब भी तुम यह सोचो कि बात करने का मूल्य चांदी है तो यह जान लो कि चुप रहने का मूल्य सोना है। कम बोलने और मौन के कुछ लाभ हैं जिन पर लोग कम ही ध्यान देते हैं और रमज़ान का महीना इस बात का अच्छा अवसर है कि हम उन पर विशेष ध्यान दें। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा है कि बुद्धि, ज्ञान व विनम्रता के चिन्हों में से एक मौन है।

निश्चित रूप से मौन, तत्वदर्शिता के दरवाज़ों में से एक है, मौन, प्रेम का कारण बनता है और हर अच्छे काम का मार्गदर्शक है। रोज़ेदार व्यक्ति, जिसकी आत्मा अधिक शांत होती है, कम बात करने और मौन का प्रयास कर सकता है और बात करने से पहले अधिक सोच-विचार कर सकता है। सोच-विचार एक बड़ी उपासना है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि एक घंटे सोच विचार करना, सत्तर साल की उपासना से बेहतर है। 

 

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