बंदगी की बहार – 10

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बंदगी की बहार – 10

आस्ट्रेलिया से संबंध रखने वाले अयूत बालदाचीनो कहते हैं कि मेरे लिए रमज़ान का महीना, बेहतरीन और आदर्श छुट्टी है, अल्लाह के साथ छुट्टियां बिताने का अवसर, यही वह महीना है जिसने यह अवसर प्रदान किया है ताकि हम दुनिया के झमेलों से मुक्ति पाएं और दिनों रात ईश्वर की उपासना में व्यस्त रहें।

रमज़ान का महीना, ईश्वर की इबादत और उससे दुआ करने का, पवित्र क़ुरआन पढ़ने का, दुआ करने का, इस महीने की बेहतरीन विभूतियों से लाभान्वित होने और ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का बेहतरीन समय है। पवित्र रमज़ान, सभी मुसलमानों के लिए, अध्यात्मिक व परिज्ञानी यादों से ओतप्रोत हैं कि यह महीना दूसरे महीनों से अलग है। वह मुसलमान जो मुस्लिम देशों में जीवन व्यतीत करते हैं, वह बचपने से ही रमज़ान के महीने से अवगत रहे हैं और जब वह वयस्क हो जाते हैं तो रोज़ा रखना शुरू कर देते हैं।

यहां पर बात उन लोगों की है जो नए मुसलमान हैं या जिन्होंने इस्लाम धर्म को जल्द ही स्वीकार किया है, विशेषकर वह लोग जो ग़ैर मुस्लिम समाज में जीवन व्यतीत करते हैं, उनका मामला किसी सीमा तक अलग है।  वह लोग बिना जाने पहचाने और अतीत के अनुभवों के बिना ही पहली बार रमज़ान के रोज़े रखते हैं। यही कारण है कि एक ओर वह इस बात से भी चिंतित रहते हैं कि कहीं रोज़ा ही न रख सकें और दूसरी ओर इस महीने की आध्यात्मिक व आत्मिक प्रफुल्लता, उन्हें अपनी की ओर आकर्षित करती हैं।

अमरीका की एक नव मुस्लिम महिला समान्था कैस्नीच कहती हैं कि पवित्र रमज़ान के आगमन को लेकर मैं बहुत उत्तेजित थी, मैंने इसके बारे में बहुत अध्ययन किया और अब मैं रोज़ा रखने में धैर्य नहीं रख सकती थी। वह कहती हैं कि वास्तव में मैं रमज़ान को ईश्वर से निकट होने का काल समझती हूं।

जर्मनी की एक मुस्लिम महिला ज़ैनब कारीन भी अपने पहले रमज़ान के अनुभवों को शेयर करते हुए कहती हैं कि जब रमज़ान का महीना आया तो मैंने रोज़ा रखकर पहला क़दम बढ़ाने का फ़ैसला किया। पहले मैं यह सोचती थी कि यह मेरे लिए कठिन होगा किन्तु मेरे अंदर एक अजीब प्रकार की शक्ति पैदा हो गयी थी और बिना किसी परेशानी के क्योंकि मैं एक नौकरीपेशा महिला थी, मैंने रोज़ा रख लिया, मैंने रोज़ के साथ ईश्वर की उपासना भी की और अब मुझे ईश्वर से निकटता का आभास हो रहा था, गर्मी के मौसम की भीषण गर्मी भी मुझे डिगा नहीं सकी।

समान्था और ज़ैनब जैसी अन्य नव मुस्लिम महिलाओं को भी अच्छी तरह पता है कि पवित्र रमज़ान का महीना, उपासना और ईश्वर से अधिक से अधिक निकटता प्राप्त करने का बेहतरीन अवसर है। आस्ट्रेलिया से संबंध रखने वाले अयूत बालदाचीनो कहते हैं कि मेरे लिए रमज़ान का महीना, बेहतरीन और आदर्श छुट्टी है, अल्लाह के साथ छुट्टियां बिताने का अवसर, यही वह महीना है जिसने यह अवसर प्रदान किया है कि हम दुनिया के झमेलों से मुक्ति पाएं और दिनों रात ईश्वर की उपासना में व्यस्त रहें। जब हम अपने व्यक्तिगत और भौतिक लक्ष्यों को छोड़ देते हैं और अपने जीवन के केन्द्र और उसके सही अर्थ की ओर पलट जाते हैं,तो वास्तव में हमें अपने जीवन में एक भॉडर्न व्यक्ति के रूप में एसे ही महीने की आवश्यकता होती है।

वह बहुत ही संवेदनशील और महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत करते हैं और यह है कि इंसान वर्तमान समय में जीवन के झमेलों और भौतिकवाद में डूब चुका है और उसे पहले से अधिक पवित्र रमज़ान के आध्यात्मिक और आत्मिक माहौल की आवश्यकता होती है। इस महीने से अधिक से अधिक लाभान्वित होने के लिए विशेष प्रकार की दुआओं और कार्यों का अहवान किया गया है, इन्हीं कर्मों में से एक रोज़ा रखना है। रोज़ा रखने के साथ साथ इस महीने में क़ुरआन पढ़ने, दुआ करने, नमाज़ पढ़ने पर भी बहुत अधिक बल दिया गया है और इन सबसे बंदा अपने पालनहार से निकट होता है और अध्यात्म की सीढ़ियां चढ़ता है।

अमरीका के एक नए मुसलमान आज़म नसीम जान्सन ने इस बात को अच्छी तरह समझ लिया है। वह कहते हैं कि पहले रमज़ान में हमारा काम निरंतर क़ुरआन पढ़ना और दुआएं करना था। मुझे यह भी पता नहीं कि मैं नमाज़ और दुआ सही भी पढ़ता हूं या नहीं। मेरे पास ऐसी किताब है जिसमें सारी दुआएं और रमज़ान के सारे कर्म लिखे हुए हैं, मैं उसी के आधार पर उसपर अमल करता हूं। आध्यात्मिक लेहाज़ से मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा है और मुझे नमाज़ और क़ुरआन पढ़ने में मज़ा आता है।          

नसीम के ही देश के एक अन्य साथी आइटन गाट्सचाक भी पवित्र क़ुरआन की तिलावत और नमाज़ को महत्व देते हैं। वह अपनी प्यास को ईश्वर की याद और पवित्र क़ुरआन की तिलावत से दूर करते हैं और कहते हैं कि जब मुझे प्यास लगती है, मेरे दिल में यह उत्सुकता पैदा होती है तो मैं क़ुरआने मजीद खोलता, या अधिकतर नमाज़ पढ़ता हूं, अपने समय को अल्लाह के हवाले कर देता हूं, मैं इस बात का आभास कर सकता हूं कि किसी प्रकार रमज़ान मनुष्य को ईश्वर से निकट करता है और उसके लक्ष्य को इस दुनिया में निर्धारित करना है।

यद्यपि रोज़ा, भूख और प्यास के साथ होता है, लेकिन यह सारी परेशानियां और कठिनाइयां अल्लाह के लिए है, इसका सहन करना सरल होगा, यहां तक कि मनुष्य की इच्छा शक्ति में वृद्धि होती है। क्रिस दाफ़ी कहते हैं कि मुझे रोज़ा रखकर शक्ति मिलती थी। आरंभ में यह सरल नहीं था किन्तु मैंने अपने शरीर को सेट कर लिया और उसके बाद ऊर्जा में वृद्धि का आभास करता था। रोज़ा इस चीज़ में सहायता प्रदान करता है कि जो भी आपके पास है उसी को दृष्टिगत रखें।

गाट्स्चाक भी जिनका काम बीमारों और अक्षम लोगों की देखभाल करना है, कहते हैं कि मैं बहुत ज़्यादा रोज़ा रखने का प्रयास करता हूं किन्तु वास्तव में बहुत कठिन हो जाता है। इसके बावजूद यह रमज़ान संयम का बहुत अधिक पाठ देता है।

कुछ ताज़ा मसुलमान लोग भी रोज़े के सामाजिक व राजनैतिक लाभ पर ध्यान देते हैं। इस बारे में ज़ैनब कारेन कहती हैं कि पवित्र रमज़ान के महीने में मुसलमानों के बीच ज़बरदस्त एकता और एकजुटता ने मुझे अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था और मुझ में भी यही एहसास पैदा हो गया था।

अमरीका की एक अन्य ताज़ा मुस्लिम महिला हलीमा ख़ान भी बदन से ज़हरीले पदोर्थों के कम होने और अमाशय को आराम देने जैसे रोज़े के चिकित्सकीय और शारीरिक लाभ की ओर संकेत करते हुए कहती हैं कि यदि आप यह आझास करें कि आप भूखे हैं तो इसका यह अर्थ है कि आप पूरी दुनिया में बहुत से भूखे रहने वालों के बारे में सोचा है।

इस पवित्र महीने में मुसलमान हकट्रठा हो कर इबादत करते नज़र आते हैं। इस महीने में मुसलमानों के बीच भाईचारे और अध्यात्म का बहुत अधिक चलन हो जाता है। उदाहरण स्वरूप रोम के ताज़ा मुसलमान पवित्र रमज़ान को एक दूसरे मुसलमानों के बीच संबंध के लिए बेहतरीन अवसर क़रार देते हैं।

 

रमज़ान के महीने में मुसलमान आपस में एक दूसरे को इफ़्तार की दावत देते हैं और अपने धार्मिक कार्यक्रम एक साथ आयोजित करते हैं। वह पवित्र रमज़ान के महीने में मुस्लिम समाज के भविष्य के बारे में वार्ता करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करते हैं और इस कार्यक्रम में अपने अपने दृष्टिकोण पेश करते हैं। ईश्वर का आभार व्यक्त करने की एक निशानी, लोगों के साथ भलाई करना और उनका आभार व्यक्त करना है। कभी कुछ लोग ईश्वर की अनुकंपाएं पहुंचने का माध्यम बनते हैं, यहां पर लोगों का आभार व्यक्त करना, एक प्रकार से ईश्वर का आभार व्यक्त करने जैसा हैं। ईश्वर का आभार व्यक्त करने की संस्कृति, महत्वपूर्ण इस्लामी शिष्टाचार का भाग है जिसमें ईश्वर की प्रसन्नता भी शामिल होती है।

चीन से संबंध रखने वाले नए मसुलमान हलीम अब्दुल्लाह कहते हैं कि मेरे परीवार के लोग मेरे इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बहुत विरोधी थे, उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया किन्तु मेरा इस्लामी परिवार मेरा भरपूर समर्थन करता था। उन्होंने नमाज़ सीखने, क़ुरआन की तिलावत सीखने और इस्लामी जीवन शैली सीखने में मेरी बहुत अधिक मदद की।

इस्लाम स्वीकार करने वाले बहुत से लोगों के साथ समस्या यह है कि इन लोगों के परिवारों ने इना बहुत अनादर किया क्योंकि उनके आसपास कोई मुस्लिम नहीं था इसीलिए वे अकेले थे और बहुत अधिक परेशान थे। चीन के एक अन्य नए मसुलमान ग्लादीस लीम येन येन की मां ने उनका और उनकी बहन का साथ दिया। वे उनके लिए खाने पकाती और उन्हें हर प्रकार की सुविधाएं देती हैं।

अलबत्ता कुछ मुसलमानों को मस्जिदों और इस्लामी सेन्टर में उपस्थित होने का अवसर नहीं मिल जाता। नूरुद्दीन लीम सियासिया के हालात ऐसे हैं किन्तु वे बताते हैं कि उन्होंने अपनी समस्या को इस प्रकार हल किया। मेडिकल छात्र के रूप में हमारे बिखरे हुए कार्यक्रम थे, यद्यपि मैं हमेशा मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ सकता था किन्तु मेरे दोस्त अच्छे थे और उनके साथ मैं हमेशा घर में नमाज़ पढ़ लेता था, रमज़ान के महीने में उपासन के लिए हम घर ही में कार्यक्रम आयोजित करते थे।

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