बंदगी की बहार- 11

Rate this item
(0 votes)
बंदगी की बहार- 11

पवित्र रमज़ान, आत्मा को स्वच्छ करने का महीना है।

यह आत्मा के साफ़ सुथरा होने का महीना है।  रमज़ान का महीना, शैतानी बंधनों और जानवरों वाली इच्छाओं से भागने का महीना है।  इस महीने के दिन सबसे बेहतरीन दिन और इसकी रातें सबसे बेहतरीन रातें हैं।  इसमें सांस लेना पुण्य और सोना उपासना है। यह महीना कठिनाइयों और आसानियों का मिश्रण है।  रमज़ान का महीना, पवित्र क़ुरआन के उतरने का महीना है।  यह इस्लामी कैलेण्डर का सबसे विभूति भरा महीना है।

रमज़ान में स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं और नरक का दरवाज़ा बंद कर दिया जाता है। इस महीने में उपासना का पारितोषिक बहुत अधिक होता है विशेषकर शबेक़द्र में उपासना का पारितोषिक, हज़ार महीने की उपासना के पारितोषिक से भी बेहतर बताया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने रमज़ान की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहा है कि हे ईश्वर के बंदो! ईश्वर का महीना, विभूतियों, अनुकंपाओं और पापों की क्षमा के साथ तुम्हारी ओर आ रहा है। यह वह महीना है जो समस्त महीनों से अधिक मूल्यवान और महत्वपूर्ण है।

इसके दिन सबसे बेहतर दिन है और इसकी रातें सबसे बेहतर राते, इसकी घड़ियां सबसे बेहतरीन घड़ियां हैं।  इस महीने में सांस लेना पुण्य है जो ईश्वर की प्रार्थना करने के समान है। रमज़ान में तुम्हारी नींद भी इबादत है। इस महीने में जब भी तुम ईश्वर की ओर उन्मुख होगे और उससे प्रार्थना करोगे तो ईश्वर तुम्हारी प्रार्थना को अवश्य स्वीकार करेगा, अतः स्वच्छ तथा सच्चे मन से ईश्वर से कामना करो कि वह तुमको रोज़ा रखने तथा पवित्र कुरआन का पाठ करने का अवसर प्रदान करे।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि दुर्भाग्यशाली है वह व्यक्ति जो विभूतियों से भरे इस पवित्र महीने में ईश्वर की अनुकंपाओं और उसकी क्षमा से वंचित रह जाए।

जब रमज़ान का पवित्र महीना आता है तो मुसलमानों से रोज़ा रखने का आह्वान किया जाता है।  इस महीने में रोज़े रखना अनिवार्य है।  पूरी दुनिया के मुसलमान रमज़ान के महीने में सुबह की अज़ान से लेकर मग़रिब की अज़ान तक भूखा और प्यासा रहता है।  मुसलमान, रमज़ान के दौरान रोज़ा रखने के साथ ही ईश्वर की उपासना करते हैं।  वे अधिक से अधिक क़ुरआन की तिलावत करते हैं।  इसके अतिरिक्त वे ईश्वर से दुआ करके पापों का प्रायश्चित करते हैं।  इन कामों से मनुष्य की आत्मा को शांति मिलती है।  रोज़ा जहां पर मनुष्य की आत्मा की शुद्धि करता है वहीं पर उसको शारीरिक दृष्टि से लाभ पहुंचाता है।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि रोज़ा रखो ताकि स्वस्थ्य रहो।

आधुनिक युग में जैसे-जैसे नई-नई बीमारियां सामने आ रही हैं उसी हिसाब से लोगों का ध्यान, स्वास्थ्य की ओर अधिक जा रहा है।  आज लोग इस बात को समझ रहे हैं कि स्वस्थ्य रहने के लिए खान-पान की ओर ध्यान देना और व्यायाम करना आवश्यक है।  वर्तमान समय में फास्ट फूड, कोल्डड्रिंक, नाना प्रकार की चाकलेट्स, तले हुए व्यंजन और ऐसी ही चीज़ों से अपने स्वास्थ्य को ख़राब कर रहा है।  लोग इन चीज़ों से ऊबकर अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने लगे हैं।  क्या मनुष्य का शरीर केवल अच्छे खानों से ही स्वस्थ्य रहता है या उसे स्वस्थ्य रहने के लिए किसी अन्य चीज़ की आवश्यकता होता है।  डाक्टरों का कहना है कि मनुष्य का अमाश्य या मेदा, सदैव खाई हुई चीज़ों को पचाने में व्यस्त रहता है।  यदि उसे विश्राम का अवसर न मिले तो इसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

मनुष्य के शरीर के भीतर एक अंग मेदा होता है जिसका काम खाने को पचाना है।  अमाशय या मेदा, मनुष्य द्वारा ग्रहण किये गए भोजन को पचाता है।  हम जो कुछ खाते हैं वह आहार नली से होता हुआ अमाशय तक जाता है।  जैसाकि हम पहले बता चुके हैं कि अमाशय यदि लगातार काम करता रहे तो इससे स्वास्थ्य प्रभावित होता है किंतु यदि उसे कुछ आराम मिल जाए तो यह स्वयं मेदे के लिए और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है।  ग्यारह महीनों तक लगातार काम करने के बाद रमज़ान में रोज़ों के दौरान अमाशय को बहुत विश्राम मिल जाता है।  इस प्रकार मेदे के लिए विश्राम का अंतराल पूरे एक महीने रहता है।  इस स्थिति में अमाशय की कार्यक्षमता बढ़ जाती है।  अब यदि रमज़ान के दौरान खाने-पीने का एक निर्धारित कार्यक्रम बना लिया जाए तो उससे रोज़ा रखने वाले को अधिक शारीरिक लाभ मिल सकता है।  अमाशय या मेदे के महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि मेदा ही हर बीमारी की जड़ है और परहेज़ उसका उपचार है।

चिकित्सकों का कहना है कि खाने-पीने के लिए किसी निर्धारित कार्यक्रम का न होने और अधिक खाने-पीने से सत्तर से अधिक बीमारियां जन्म लेती हैं।  इन सभी बीमारियों का उपचार भूख और प्यास से किया जा सकता है।  भूखे और प्यासे रहने का सबसे अच्छा माध्यम रोज़ा है।  डाक्टर इस बात से सहमत हैं कि रोज़े से अतिरिक्त चर्बी घुल जाती है और मोटापा कम होता है।  रोज़े से आंतें दुरूस्त रहती हैं।  मेदा साफ और शुद्ध हो जाता है।  पेट के विषैले कीटाणु मर जाते हैं।  अपच या बदहज़मी की शिकायत ठीक हो जाती है।  रोज़े को बल्ड प्रेशर, जोड़ों के दर्द, हृदय रोग, स्मरण शक्ति में कमी और बहुत सी बीमारियां समाप्त हो सकती हैं तथा शरीर को स्फूर्ति मिलती है।  रोज़ा रखकर रोज़ेदार स्वयं को कई प्रकार की बीमारियों से सुरक्षित रख सकता है।

डाक्टर सैयद मुहम्मद मूसवी रोज़े के लाभ के बारे में कहते हैं कि एक महीने तक रोज़ा रखने से शरीर में मौजूद ज़हरीले कीटाणु मर जाते हैं।  वे कहते हैं कि रोज़े के कारण शरीर में मौजूद कफ़ या बलग़म समाप्त हो जाता है।  डाक्टर मूसवी का कहना है कि रोज़ा रखने से हर प्रकार के विषाक्त पदार्थ बदन से निकल जाते हैं।  उनका कहना है कि बहुत सी बीमारियों का स्रोत यही विषाक्त पदार्थ होते हैं और उनके निकलने से कई प्रकार की बीमारियों का ख़तरा कम हो जाता है।

जानकारों का कहना है कि खान पान में संतुलन के कारण लोगों में शक्ति बढ़ती है और साथ ही उपसना करने की क्षमता भी बढ़ती है। इसी प्रकार कम खाने पीने से आलस्य भी दूर होता है।  इसके विपरीत पेट भर खाने से जो बोझिलपन बढ़ता है उससे भूखा रहने से मुक्ति मिलती है किन्तु इन सब बातों से महत्वपूर्ण, विचारों का प्रशिक्षण तथा दिल की सफ़ाई है। पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से बयान किया गया है कि जो व्यक्ति अपने पेट को ख़ाली रखता है तो उसके विचार प्रशिक्षित होते हैं। जब मनुष्य के विचार सभी दिशा में प्रशिक्षित होते हैं तो उसका दिल साफ़ हो जाता है।  जब मनुष्य का दिल साफ़ हो जाता है तो ईश्वर से निकट होता जाता है।

जैसाकि हमने अबतक रोज़े के शारीरिक लाभों का उल्लेख किया उसके साथ ही इस बात का उल्लेख भी आवश्यक है कि रोज़ा रखते समय सहर खाने और इफ़्तार करने में आलस से काम नहीं लेना चाहिए।  रोज़ेदार को किसी भी स्थिति में सहर नहीं छोड़नी चाहिए।  सहर न करने से रोज़े पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ता किंतु इस काम को कोई सराहनीय काम नहीं बताया गया है।  रोज़ा रखने के लिए जहां सहरी न छोड़ने की बात कही गई है वहीं पर यह भी कहा गया है कि भूख और प्यास के कारण खाने-पीने में अधिकता नहीं करनी चाहिए।  यहां पर इस बिंदु की ओर संकेत करना आवश्यक है कि हालांकि रोज़े के बहुत से शारीरिक लाभ हैं किंतु कुछ बीमारियों में रोज़ा रखने से मना किया गया है।  कुछ गंभीर रोग एसे होते हैं जिनमें किसी भी स्थिति में रोज़ा रखने की मनादी है लेकिन जब भी यह बीमारी समाप्त हो जाए तो उसके बाद रोज़े रखे जा सकते हैं।

मनोचिकित्सकों का कहना है कि रोज़े का मनुष्य की आत्मा पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।  इन चिकित्सकों के अनुसार जब मनुष्य एक महीने तक लगातार रोज़े रखता है और तीस दिनों तक खाने-पीने से वंचित रहता है तो इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है।  उनका मानना है कि महीने भर की भूख और प्यास से रोज़ेदार को जो आत्मबल मिलता है वह उल्लेखनीय है।  इसी के साथ लोगों के बीच अपराध और पाप की भावना कम हो जाती है।  इस बात को एसे समझा जा सकता है कि बहुत से इस्लामी देशों में रमज़ान के दौरान अपराध की दर कम हो जाती है।  इस बात को कई मुस्लिम देशों में देखा जा सकता है। मिस्र, मलेशिया, ईरान, अल्जीरिया और एसे ही कुछ देशों की वार्षिक रिपोर्टों में बताया गया है कि रमज़ान के कारण अपराध की दर में बहुत कमी दर्ज की गई।

 

 

 

 

 

Read 100 times