ईश्वरीय आतिथ्य- 17

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ईश्वरीय आतिथ्य- 17

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने बंदगी को पैग़म्बरे इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता बताया है और यह वह विशेषता है जिसका उल्लेख पवित्र कुरआन ने भी किया है।

पैग़म्बरे इस्लाम इसी विशेषता के कारण बड़े दर्जे तक पहुंचे सके और वह अपने आंखों से आकाश में बहुत सी चीज़ों को देख सके।

रमज़ान का पवित्र महीना अपनी समस्त अच्छाइयों के साथ हमें सलाम करता है और हमारा आह्वान आध्यात्मिक परिपूर्णता प्राप्त करने के लिए करता है। तो हम सबका नैतिक दायित्व बनता है कि अच्छे से अच्छे तरीके से उसके आह्वान का जवाब दें और रोज़ा रखकर महान ईश्वर के समक्ष अपनी बंदगी का परिचय दें और महान ईश्वर हम सबको पवित्र बनाये।

पूरे इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा रमज़ान के पवित्र महीने में शबे मेराज की यात्रा है। यानी वह यात्रा जिसमें महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को आसमान की सैर कराई। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे इस्रा की पहली आयत में कहता है” पाक है वह ईश्वर जिसने एक रात को अपने बंदे को यानी पैग़म्बरे इस्लाम को मस्जिदे हराम से मस्जिद अक्सा की, जिसके इर्द- गिर्द हमने बरकत दी, सैर करायी ताकि अपनी कुछ निशानियों को दिखायें। बेशक ईश्वर सुनने और जानने वाला है।

पवित्र कुरआन के इस सूरे के आरंभ में ही दो शब्दों लैल और अस्रा का प्रयोग हुआ है जिससे ज्ञात होता है कि पैग़म्बरे इस्लाम की जो यात्रा हुई है वह रात में हुई है। इस प्रकार महान ईश्वर ने एक रात को पैग़म्बरे इस्लाम को मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा की यात्रा कराई और वहां से उन्हें आसमान पर ले गया।

इतिहास में है कि जिस रात को पैग़म्बरे इस्लाम की यह यात्रा होने वाली थी उस रात को हज़रत जिब्राईल बुराक नाम की सवारी लाए और पैग़म्बरे इस्लाम उस पर बैठकर बैतुल मुकद्दस की ओर गये। इतिहास में है कि पैग़म्बरे इस्लाम अपनी यात्रा के दौरान मस्जिदुल अक्सा जाने से पहले कई दूसरे स्थानों पर गये और वहां उन्होंने नमाज़ पढ़ी। जैसे मदीना और कूफा। उसके बाद मस्जिदुल अक्सा गये वहां उन्होंने महान पैग़म्बरों जैसे हज़रत इब्राहीम, हज़रत ईसा और हज़रत मूसा की आत्माओं की उपस्थिति में नमाज़ पढ़ाई और सबने पैग़म्बरे इस्लाम के पीछे नमाज़ पढ़ी। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम की आसमान की यात्रा आरंभ हुई। पैग़म्बरे इस्लाम ने एक के बाद एक सात आसमानों की यात्रा की और हर आसमान पर उन्होंने विचित्र चीज़ों को देखा। उस रात को पैग़म्बरे इस्लाम ने सृष्टि की विचित्र चीज़ों को देखने के अलावा ईश्वरीय दूतों से भी भेंट की। स्वर्ग और नरक को देखा। स्वर्ग में रहने वालों और उन्हें प्राप्त ईश्वरीय अनुकंपाओं को देखा। इसी प्रकार उन्होंने नरक और नरक वासियों की दुर्दशा को निकट से देखा। इस यात्रा में महान ईश्वर के विशेष फरिश्ते हज़रत जिब्राईल उनके साथ थे। हज़रत जिब्राईल पैग़म्बरे इस्लाम के साथ छवें आसमान तक साथ थे यहां तक कि सातवें आसमान पर जाने की बारी तो हज़रत जिब्राईल ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि इससे आगे मुझे जाने की अनुमति नहीं है और अगर एक इंच भी मैं आगे बढ़ा तो मेरे पंख जल जायेंगे।"

सातवें आसमान पर पैग़म्बरे इस्लाम ने सिद्रतुल मुन्तहा नाम का विशेष स्थान देखा। स्वर्ग भी वहीं है। पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद वहां पर महान ईश्वर के निकट पहुंचे। वहां पैग़म्बरे इस्लाम और महान ईश्वर के अलावा कोई और नहीं था। वहां महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम से बहुत महत्वपूर्ण सिफारिशें और बातें कीं जो हदीसे मेराज के नाम से प्रसिद्ध है। इस वार्ता के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ज़मीन पर लौट आये और सुबह सूरज निकलने से पहले मक्का में अपने घर में थे। 

जो चीज़ रवायतों से समझ में आती है वह यह है कि मेराज यानी आसमान की यात्रा दो बार से अधिक बार हुई है और उनमें से एक बार की यात्रा स्पष्ट और बहुत प्रसिद्ध है और कहा जाता है कि यह यात्रा रमज़ान महीने की 17 तारीख को हुई थी।

मेराज पैग़म्बरे इस्लाम की अद्वितीय विशेषता है। यह महत्वपूर्ण यात्रा शारीरिक और जागने की हालत में हुई थी। इस यात्रा में पैग़म्बरे इस्लाम जमीन और आसमान के बहुत से रहस्यों से अवगत हुए। यहां बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि क्यों पैग़म्बरे इस्लाम को इस यात्रा का सौभाग्य पाप्त हुआ? इसके जवाब में कहना चाहिये कि पैग़म्बरे इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता महान ईश्वर की बंदगी है और इस विशेषता का उल्लेख महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में भी किया है और पैग़म्बरे इस्लाम बंदगी के चरम शिखर पर थे जिसकी वजह से उन्हें यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

पवित्र कुरआन और हदीसों के आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम की मेराज की यात्रा निश्चित रूप से हुई है और पैग़म्बरे इस्लाम की यात्रा को स्वीकार करना धर्म की ज़रूरी चीज़ों को स्वीकार करने जैसा है और इस बात पर समस्त इस्लामी संप्रदाय एकमत हैं।

रवायतों, कुछ दुआओं और ज़ियारतनामों में भी इस बात की ओर संकेत किया गया है और कुछ रवायतों में इसके इंकार करने वालों को काफिर कहा गया है। मेराज वह महान स्थान व यात्रा है जिसका सौभाग्य पैग़म्बरे इस्लाम के अलावा किसी और को नहीं मिला है। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस यात्रा से वापस आने के बाद आसमान में जो कुछ देखा था उसे लोगों के लिए बयान किया ताकि इस भौतिक संसार में रहने वाले इंसान की सोच उपर उठ सके। मेराज नाम से जो हदीस प्रसिद्ध है उसमें आया है कि महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम के मध्य बहुत ही महत्वपूर्ण वार्ताएं हुई हैं जिनमें कुछ की ओर हम संकेत करते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम ने मेराज की रात महान ईश्वर से कहा हे ईश्वर! मेरा मार्गदर्शन कर कि किस कार्य से मैं तेरा सामिप्य प्राप्त कर सकता हूं? महान ईश्वर ने कहा अपनी रात को दिन और दिन को रात करार दो पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कैसे इस प्रकार करूं तो इसके जवाब में महान ईश्वर ने कहा अपने सोने को नमाज़ और भूख को अपना खाना बना लो” हे अहमद! मेरी इज़्ज़त की सौगन्ध जो बंदा मेरे लिए चार विशेषताओं की गैरेन्टी दे मैं भी उसे स्वर्ग में दाखिल करूंगा। अपनी ज़बान को लगाम लगा ले, बात न करे किन्तु यह कि बात उसके लिए लाभदायक हो/ अपने दिल को शैतानी उकसावे से सुरक्षित रखे/ हमेशा इस बात को सोचे कि मैं उससे अवगत हूं और उसके कार्यों को देख रहा हूं और भूख को पसंद करे।

उसके बाद महान ईश्वर ने कहा हे अहमद! काश कि जानते कि भूख, मौन और अकेले में रहने का क्या आनंद है? इस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा हे ईश्वर! भूखा रहने के क्या लाभ हैं? महान ईश्वर ने कहा तत्वदर्शिता, दिल की सुरक्षा, मेरा सामिप्य, हमेशा दुःखी, लोगों के मध्य कम खर्च करने वाला, सच व हक बोलना, जीवन के सुख या दुःख की उपेक्षा कर देना, हे अहमद! क्या जानते हो कि किस समय मेरा बंदा मुझसे निकट होता है?  पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया” नहीं मेरे पालनहार! इस पर महान ईश्वर ने फरमाया जब वह भूखा या सज्दे की हालत में हो।“

मेराज की हदीस के अनुसार महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम के मध्य जो वार्ता हुई उसके दृष्टिगत पहली चीज़ जो इंसान को उपासना की ओर ले जाती है और महान ईश्वर के सामिप्य का कारण बनती है वह रोज़ा और मौन है।

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” मौन तत्वदर्शिता का एक द्वार है, मौन प्रेम उत्पन्न करता है और मौन इंसान का मार्गदर्शन हर अच्छाई की ओर करता है।“

जब तब इंसान की ज़बान बेलगाम रहेगी वह अर्थहीन बातों को बोलने में भी संकोच से काम नहीं लेगा। महान ईश्वर की उपासना के मार्ग में नहीं आयेगा परिणाम स्वरूप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचेगा। जो इंसान मौन धारण रहने की आदत डाल ले वह झूठ, आरोप और दूसरों की बुराई जैसे बहुत से पापों से बच जायेगा। अलबत्ता हर मौन भलाई का कारण नहीं है बल्कि वह मौन इंसान को लाभ पहुंचा सकता है जो चिंतन- मनन के साथ हो।

हदीसों में भी मौन की बहुत प्रशंसा की गयी है। मौन रहने के फायदे में बस यही काफी है कि इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि हज़रत लुक़मान ने अपने बेटे से कहा हे बेटे अगर तू यह सोचता है बात चांदी है तो सच में मौन सोना है।

अतः हदीसे मेराज के अनुसार भूख और रोज़ा भी महान ईश्वर की बंदगी की भूमिका हैं। महान  हस्तियों ने भी कहा है कि आत्मा को पवित्र व स्वच्छ बनाने का एक रास्ता भूख है। संतुलित सीमा तक भूख इंसान के समक्ष चिंतन- मनन और बुद्धि का द्वार खोल देती है। पेट जब भर जाता है तो चिंतन -मनन व समझ का रास्ता भी बंद हो जाता है और अधिक खाने वाला इंसान कभी भी तेज़ बुद्धि वाला नहीं हो सकता और वह कभी भी ब्रह्मांड के नीहित रहस्यों को नहीं समझ सकता। पेट भरने से इंसान में इरादे की शक्ति कमज़ोर हो जाती है और खाने- पीने में संतुलन का ध्यान रखना इंसान के स्वास्थ्य, आयु के लंबा होने और दिल के प्रकाशमयी होने का कारण बनता है।

जब इंसान सीमा से अधिक खाता- पीता है तो आत्मा भी व्यस्त हो जाती है कि इंसान के शरीर के अतिरिक्त भोजन को पचाये और उसका शरीर भी अधिक पचाने में लग जाता है। परिणाम स्वरूप समय से पहले ही इंसान अंत के मुहाने पर पहुंच जाता है। प्रायः अधिक खाने खाने वाले व्यक्तियों की उम्र लंबी नहीं होती है। इसी तरह जो लोग अधिक खाते हैं उन्हें सुस्ती और नींद अधिक आती है। नैतिक सिफारिशों में आया है कि इंसान किसी भी चीज़ को इस तरह से नहीं भरता जिस तरह से पेट को भरता है।

रोज़ा, भूखा रहने का बेहतरीन अभ्यास है। रमज़ान महीने के 30 दिन के रोज़े इंसान के पाचन तंत्र को आराम की हालत में रखते हैं और दूसरे शब्दों में इंसान को कम खाने की आदत पड़ जाती है। रमज़ान के पवित्र महीने में इंसान में कम भोजन और स्वादिष्ट खाने की आदत कम हो जाती है। रोज़ा रखने वाले जिस इंसान को दिन भर खाने पीने की चिंता नहीं है वह महान ईश्वर की बंदगी की ओर कदम बढ़ाता है और भले व धार्मिक कार्यों को अंजाम देकर ईश्वरीय प्रकाश की दुनिया में कदम रखता है।

 

 

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