माहे रमज़ान के इक्कीसवें दिन की दुआ (21)

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माहे रमज़ान के इक्कीसवें दिन की दुआ (21)

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللَّـهُمَّ اجْعَلْ لي فيهِ اِلي مَرْضاتِكَ دَليلاً، وَلا تَجْعَلْ لِلشَّيْطانِ فيهِ عَلَيَّ سَبيلاً، وَاجْعَلِ الْجَنَّةَ لي مَنْزِلاً وَمَقيلاً، يا قاضِيَ حَوآئِـجِ الطّالِبينَ.

अल्लाह हुम्मज-अल ली फ़ीहि इला मरज़ातिका दलीला, व ला तज-अल लिश्शैतानि फ़ीहि अलैय सबीला, वज-अलिल जन्नता ली मनज़िलन व मक़ीला, या क़ाज़िय हवाएजित तालिबीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! इस महीने में मेरे लिए अपनी ख़ूशनूदी की तरफ़ राहनुमा निशान क़रार दे, और शैतान को मुझ पर (ग़लबा पाने) के लिए रास्ता न दे, और जन्नत को मेरी मंज़िल क़रार देना, ऐ तलबगारों की हाजतों को पूरा करने वाले.

 अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.

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