रमज़ान का महीना जारी है और हम सब ईश्वर के अतिथि हैं।
रमज़ान जिस तरह से रोज़ा रखने वाले के मन और आत्मा को बदलता और स्वच्छ करता है उसी तरह से इस्लामी देशों के शहरों को भी अलग रंग में रंग देता है । दुआओं की आवाज़ें, इफ्तार की तैयारी , दावतें और शाम के वक्त बाज़ारों में खास तरह की चहल पहल , ऐसी चीज़े हैं जो रमज़ान के महीने में ज़्यादा स्पष्ट रूप से और अलग तरह से नज़र आती हैं। ईरान में भी अन्य इस्लामी देशों की भांति रमज़ान का विशेष रूप हर नगर में देखने को मिलता है लेकिन मशहद और कुम जैसे पवित्र नगरों में अंदाज़ , ज़रा अलग होता है और अलग होने के साथ ही इतना मनमोहक होता है कि हर आस्थावान का मन मोह लेता है।
रमज़ान का ईरानियों के मध्य एक विशेष महत्व है लेकिन पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का जहां रौज़ा स्थित है अर्थात मशहद नगर में , रमज़ान गुज़ारने की बात ही और है। ईश्वर को तो अपने दासों की मनोकामना को पूरा करने के लिए बहाना चाहिए इसी लिए उसने विभिन्न दिन, महीने और स्थल विशेष किये हैं और कहा है कि इन जगहों पर दुआ करो तो तुम्हारी दुआ जल्दी कुबूल होगी तो फिर मशहद का क्या कहना जहां पैगम्बरे इस्लाम के परिवार से संबंध रखने वाली एक महान हस्ती दफ़्न है।
रमज़ान के पवित्र महीने में मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े का माहौल अधिक आध्यात्मिक हो जाता है और हर तरफ लोग दुआ व प्रार्थना में व्यस्त नज़र आते हैं। श्रद्धालुओं की भारी भीड़, जगह जगह बैठ कर कुरआन व दुआ पढ़ते लोग, कुरआने मजीद की तिलावत की आवाज़, मन को विचित्र प्रकार की शांति प्रदान करती है। इस जगह पहुंच कर मनुष्य को, कुरआने मजीद और पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों के मध्य वास्तविक संबंध का पता चलता है और यहां पर लोगों को पैगम्बरे इसलाम की उस हदीस के अर्थ का पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा कि ऐ लोगो मैं तुम्हारे मध्य दो चीज़े छोड़ कर जा रहा हूँ एक अल्लाह की किताब दूसरे मेरे परिजन यह दोनों एक साथ मेरे पास हौज़े कौसर पर आएंगे अगर तुम इन दोनों को थामे रहे तो कभी भी भटक नही सकते।
मशहद में इमाम रज़ा के रौज़े से संबंधित ट्रस्ट, आस्तानाए कु़द्स रज़वी का दारुलक़ुरआन, रमज़ान के महीने में कुरआने मजीद से संबंधित विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करता है ताकि इस पवित्र स्थल पर ज़ियारत के लिए जाने वाले उनका लाभ उठा सकें। इन कार्यक्रमों में रौज़े के विभिन्न भागों में हर दिन कुरआने मजीद के दस पारों अर्थात खंडों की तिलावत होती है और महिलाओं और पुरुषों के लिए भी अलग अलग कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के रौज़े का वह भाग जिसे गौहरशाद प्रांगण कहा जाता है रमज़ान में विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बनता है क्योंकि पूरे रमज़ान के महीने में इस प्रांगण में कुरआने मजीद की तिलावत के कार्यक्रम में ईरान के विश्व विख्यात व प्रसिद्ध क़ारी भाग लेते हैं और कुरआने मजीद की तिलावत करते हैं। इन्हीं क़ारियों में से एक जवाद सुलैमानी हैं जिन्हें इस पवित्र स्थल में कुरआने मजीद की तिलावत का मौक़ा मिला है। वह इस बात का उल्लेख करते हुए कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में तिलावत करना उनके लिए बहुत गौरव की बात है कहते हैं कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं के सामने और इस पवित्र स्थल पर कुरआने मजीद की तिलावत मेरे लिए बहुत गर्व की बात है और मेरे ख्याल में कुरआने मजीद के संदर्भ में मेरी अब तक की सभी गतिविधियों में यह सब से बड़ा और गौरवशाली अवसर है। वह कहते हैं कि इस पवित्र महीने में मनुष्य का जीवन, कुरआने मजीद के साथ मिल जाता है और निश्चित रूप से इस महीने की एक विशेषता यह भी है कि मनुष्य कुरआने मजीद से बेहद निकट हो जाता है वैसे साल के अन्य महीनों में भी इन्सान को कुरआने मजीद की तिलावत करते रहना चाहिए ताकि इसके लाभ उसे मिलते रहें।
इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के रौज़े में तिलावत के इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले यदुल्लाह सुबहानी का संबंध ईरान के इस्फहान प्रान्त से है वह कहते हैं कि मैं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में दर्शन के लिए आया तो मैंने वहां तिलावत का कार्यक्रम देखा और जब मैं ने उस कार्यक्रम में भाग लिया तो मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे ईश्वरीय तेज मेरी आत्मा में उतर गया है। इस कार्यक्रम में तिलावत के साथ ही कुरआनी आयतों के अर्थों का भी वर्णन होता है जो बहुत लाभ दायक है।
मशहद नगर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के लिए जाने वालों को इफ्तार भी करायी जाती है और यह कार्यक्रम हर साल, रमज़ान के महीने में आयोजित होता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में हर साल आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में हर रोज़ 13 हज़ार लोगों को इफ़्तार दी जाती है और इफ्तार में बुलाने का यह तरीका है कि रोज़ै के सेवक मशहद में ज़ियारत के लिए जाने वालों को , होटलों बसों और अन्य स्थानों पर , इफ्तारी का कूपन बांटते हैं जिसे लेकर लोग , इफ्तार के कार्यक्रम में भाग लेते हैं । यह सम्पूर्ण इफ्तारी का कार्यक्रम होता है जबकि रौज़े में हर रोज़ एक लाख से अधिक रोज़ादारों को हल्की इफ्तारी बांटी जाती है। इस प्रकार से रमज़ान के एक महीने के भीतर लगभग तीस लाख लोगों को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में इफ्तार करायी जाती है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़ै की आध्यात्मिकता इस सीमा तक है कि बहुत से गैर मुस्लिम भी वहां ज़ियारत के लिए जाते और फिर इतना प्रभावित होते हैं कि धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बन जाते हैं। नव मुस्लिमों का एक गुट दक्षिणी कोरिया और अलजीरिया से ईरान आया था। उस गुट में शामिल दक्षिण कोरिया के एक युवा ने कहा कि मैं ईसाई था लेकिन मुझे संतुष्टि नहीं मिली इसी लिए मैं वह्हाबियों की एक मस्जिद में गया और इस्लाम स्वीकार कर लिया लेकिन वहाबियों के पास तर्क की कोई शक्ति नहीं है इसी लिए वह मुझे मेरे सवालों का सही जवाब नहीं दे पाए इस लिए मैंने विभिन्न इस्लामी मतों का अध्ययन किया और अंत में शिया मत के बारे में मुझे पता चला और मैं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में आकर शिया मुसलमान बन गया। मेरी नज़र में शिया मत सब से अधिक तार्किक मत है।
बेलारूस की भाषा विद , ओल्का ओन्सेतविच ने दो बार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े का दर्शन करने के बाद, इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। उन्होंने अपना नया नाम " हदीस" रखा। वह कहती हैंः मैंने अरबी सीखी और कु़रआन पढ़ा, मैंने इस्लाम धर्म को मित्रता और शांति का धर्म पाया और इसी लिए मैंने इस्लाम धर्म को स्वीकार किया। मैं बहुत खुश हूं कि ईश्वर में इस प्रकार से मुझ पर कृपा की विशेष कर इस लिए भी कि यह कृपा मुझ पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में हुई।
इस्लाम और सभी धर्मों में पवित्र स्थलों का महत्व इसी लिए होता है क्योंकि यह स्थल मनुष्य को अध्यात्मिकता से निकट और भौतिकता से दूर करते हैं इस लिए इन स्थानों पर जाकर मनुष्य को चितंन मनन का अवसर मिलता है। धर्म की दृष्टि में, मनुष्य को अपने सभी मामलों में, पहचान व जानकारी की आवश्यकता होती है क्योंकि जानकारी व सही विचारों के बिना मनुष्य महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकता। इस्लाम में, सही रूप से चिंतन करने का इतना अधिक महत्व है कि एक घंटा चिंतन करने को , ७० वर्ष की उपासना से अधिक श्रेष्ठ बताया गया है। क्योंकि सृष्टि के अचरजों में चितंन व विचार , मनुष्य के ह्रदय में तत्वदर्शिता व ज्ञान के सोते जारी कर देता है । पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैः
" चिंतन, तत्वदर्शिता के द्वार की कुंजी है।" और चिंतन मनन का समय पवित्र स्थलों में अधिक मिलता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े पर यदि कोई रमज़ान के महीने में जाए तो फिर उसका लाभ निश्चित रूप से अन्य दिनों की तुलना में बहुत अधिक है। ईश्वर हम सब को यह अवसर प्रदान करें।