बंदगी की बहार- 26

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बंदगी की बहार- 26

रमज़ान के पवित्र महीने की सब से महत्वपूर्ण रातें, क़द्र की रातें कही जाती हैं।

इन रातों में कुरआने मजीद उतरा, इन रातों में फरिश्तें ज़मीन पर उतरते हैं और इन्सान की क़िस्मत लिखी जाती है। क़द्र की रातों की यह विशेषताएं इस बात का कारण बनती हैं कि धर्म में आस्था रखने वाले लोग, इन रातों को जाग कर उपासना करें, अपने पापों की क्षमा मांगे और ईश्वर का गुणगान करें ताकि इस प्रकार से इन अत्याधिक बरकत वाली रातों से लाभ उठा सकें।

 रमज़ान महीने के 26  दिन बीत जाने के बाद, इस महीने को विशेष बनाने वाली एक अन्य रात आती है। अर्थात 27 रमजान की रात। इस रात के बारे में बहुत सी  हदीसें हैं और इस रात के विशेष संस्कार बताए गये हैं। 27 रमजन की रात में भी क़द्र ही महत्वपूर्ण रातों की ही भांति विशेष प्रकार की उपासनाएं और दुआएं हैं। सुन्नी मुसलमानों की किताबों के अनुसार रमज़ान की 27 की रात, क़द्र की रात हो सकती है यही वजह है कि सुन्नी मुसलमान, इस रात विशेष प्रकार की उपासना करते हैं और पूरी रात जाग कर दुआएं करते हैं।

 क़ुरआने मजीद के सूरए क़द्र में, क़द्र की रात की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। इस मूल्यवान सूरे की पांच आयतें हैं जिनमें कहा गया है कि हमने क़ुरआन को क़द्र की रात में उतारा, और तुम्हें क्या पता कि क़द्र की रात क्या है? क़द्र की रात एक हज़ार महीने से बेहतर है। फरिश्ते और  रूह, उस रात में पालनहार की अनुमति से हर चीज़ को निश्चित करने के लिए उतरते हैं, यह वह रात है जो सुबह तक सुरक्षा व शांति से भरी है। प्रसिद्ध धर्मगुरु और दार्शनिक, अल्लामा तबातबाई क़द्र सूरे की व्याख्या करते हुए लिखते हैंः क़द्र की रात को इस लिए क़द्र की रात कहा जाता है क्योंकि सभी ईश्वर के बंदों का भाग्य, इसी रात निर्धारित किया  जाता है जिसका प्रमाण दुख़ान सूरे की वह आयत है जिसमें कहा गया है कि हमने इस स्पष्ट किताब को एक बरकत वाली रात में उतारा है, और हम हमेशा चेतावनी देने वाले रहे हैं, उस रात में कि जिस में सब कुछ ईश्वरीय निर्णय के अनुसार निर्धारित व व्यवस्थित होता है। वास्तव में क़द्र की रात इसी लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इस रात मनुष्य की अजीविका सहित उसका सब कुछ तय किया जाता है और इसी लिए इस रात के लिए विशेष उपासनाओं और दुआओं की सिफारिश की गयी है।

सवाल यह है कि यदि क़द्र की रात में ही साल भर की इन्सान की क़िस्मत लिख दी जाती है तो क्या फिर मनुष्य को अधिकार नहीं रहता ? क्या वह अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर सकता? इस प्रश्न के उत्तर में यह कहना चाहिए कि मनुष्य, अपनी बुद्धि की मदद और ईश्वरीय दूतों और ईश्वरीय किताबों के सहारे, सही मार्ग में क़दम आगे बढ़ा सकता है। मनुष्य अपनी बुद्धि और इच्छा की मदद से अपना रास्ता चुनता है। मनुष्य ही अपनी इच्छा से सही या गलत मार्ग चुनता है और इस तरह से वास्तव में वह अपने गंतव्य का भी निर्धारण कर लेता है।

अल्लामा तबातबाई क़द्र की रात इन्सान की क़िस्मत लिखे जाने की बात पर कहते हैं कि अगर यह कहा जाए कि क़द्र की रात इन्सान की क़िस्मत लिखी जाती है तो उससे मनुष्य के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और न इसका मनुष्य की इच्छा और अधिकार से विरोधाभास है क्योंकि ईश्वरीय फैसला, फरिश्तों द्वारा, लोगों की योग्यता और संभावना के अनुसार लिखा जाता है जिसमें उनकी पवित्रता और ईश्वरीय भय तथा नीयत की भी भूमिका होती है। अर्थात, ईश्वर हर एक के लिए वही लिखता है जिसका वह योग्य होता है या दूसरे शब्दों में ईश्वर हर मनुष्य का भाग्य उसकी उस योग्यता के अनुसार लिखता है जो उसने स्वंय अपने भीतर पैदा की है। यह चीज़ न केवल यह कि मनुष्य के भले बुरे मार्ग के चयन के अधिकार से विरोधाभास नहीं रखती बल्कि उस पर अधिक बल देती है।

 कहा जाता है कि क़द्र की रात, रमज़न के अंतिम दस दिनों में से किसी एक रात को हो सकती है किंतु अधिकांश लोगों का मानना है कि 23 वीं रात के कद्र की रात होने की अधिक संभावना है । वैसे 19 वीं और 21वीं रात को भी क़द्र की रात होने की संभावना है इस लिए इन तीनों रातों में विशेष प्रकार की उपासनाएं की जाती हैं। कद्र की रात को हज़ार महीनों से बेहतर इस लिए बताया गया है क्योंकि इस रात जो उपासना की जाती है उसका पुण्य हज़ार गुना अधिक होता है। इस रात की विशेषता को शिया और सुन्नी मुसलमानों की किताबों में विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा जैसा कि हमने बताया है कि इसी रात कुरआने मजीद उतरा है।

क़द्र की रात में जागा जाता है और लोग पूरी रात जाग कर ईश्वर की उपासना करते हैं। कुछ रवायत में 27 की रात के क़द्र की रात होने की बात कही गयी है इस लिए इस रात भी विशेष उपासनाएं की जाती हैं  दुनिया भर के मुसलमानों को "  क़द्र की रात " के महत्व  के बारे में पता है।  यह पवित्र रमज़ान  की विशेष रातें हैं  जिन्हें शबे क़द्र कहा जाता है इस रातों  ईश्वर की कृपा का चरम बिन्दु समझी जाती हैं। इन रातों में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष कृपा करता है । वास्तव में ईश्वर ने  क़द्र की रातों द्वारा  बंदों को यह अवसर दिया है कि वे अपने सद्कर्मों को परिपूर्ण करे। यह रातें 21 से 23 रमज़ान में से कोई एक है लेकिन दोनों ही रातों को पूरी रात जाए कर उपासना करने पर बल दिया गया है। किंतु सुन्नी मुसलमानों के अनुसार 27 रमज़ान की रात भी शबे क़द्र हो सकती है। यही वजह है कि शबे कद्र में उपासना के पुण्य के लिए मुसलमान, 21 , 23 और 27 रमज़ान की रातों को विशेष प्रकार से उपासना करते हैं।  इन रात की महानता का स्वंय ईश्वर ने क़द्र नामक सूरे में गुणगान करते हुए कहा है, "तुम क्या जानो शबे क़द्र क्या है।" इसके बाद ईश्वर ने इस रात को हज़ार महीनों से बेहतर बताया है और इस रात के शुरु होने से सुबह सवेरे तक की समयावधि को शांति व सुरक्षा  का समय कहा है।

 वरिष्ठ धर्मगुरु अल्लामा तबातबाई इस बारे में कहते हैं कि सुरक्षा व शांति का अर्थ यह है कि यह समय, विदित व छुपी हुई बलाओं से सुरक्षित है। इस आयत में कहा गया है कि यह समय ईश्वर की कृपा से विशेष है और उसकी कृपा का पात्र हर वह मनुष्य बनेगा जो उसकी ओर उन्मुख होगा। कुछ अन्य समीक्षकों का कहना है कि आयम में जो " सलाम " का शब्द प्रयोग किया गया है उसका यह अर्थ है कि क़द्र की रात में फरिश्ते जब भी उपासना में लीन किसी मनुष्य को पास से गुज़रते हैं तो उसे सलाम करते हैं । इसी  प्रकार कुछ हदीसों में बताया गया है कि इस रात शैतान को ज़जीरों में बांध दिया जाता है और इसी लिए इस रात को कुरआने मजीद में शांत व सुरक्षित रात कहा गया है। इस लिए कितना अच्छा होता है कि दास इस रात अपने ईश्वर से निकट होता है अपने दिल की बात उसे बताता है और उसके सामने गिड़गिड़ा कर दुआ मांगता है।

19-21  और 23 रमाज़ान की रातों की ही भांति 27 रमज़ान की रात के लिए भी विशेष प्रकार की उपासनाओं का उल्लेख है । 27 रमज़ान की विशेष दुआ में कहा गया है कि  हे ईश्वर! आजके दिन शबे क़द्र अर्थात महान रातों की अनुकंपाएं मुझे प्रदान कर, और मेरे लिए कठिन कामों को सरल बना दे और मेरी तौबा को स्वीकार कर ले, और मेरे पापों को झाड़ दे, हे अपने भले दासों के लिए कृपाशील ईश्वर! । प्रसिद्ध धर्मगुरु आयतुल्लाह मुजतहेदी तेहरानी इस दुआा के इस वाक्य " हे ईश्वर! आजके दिन शबे क़द्र अर्थात महान रातों की अनुकंपाएं मुझे प्रदान कर" का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि इस दुआ की वजह से बहुत से लोगों का यह मानना है कि कद्र की रात, 27 वीं रमज़ान की रात ही है।

27 वें रमज़ान की रात के विशेष संस्कारों और उपासना के अलावा एक विशेष नमाज़ है जिसका उल्लेख इमाम अली अलैहिस्सलाम ने किया है और उसकी सिफारिश की है। इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जो भी 27 वीं की रात को इस प्रकार से चार रकअत नमाज़ पढ़े कि सूरे हम्द और मुल्क को एक एक बार, और अगर सूरे तबारक याद न हो और उसे न पढ़ सके तो सूरे तौहीद को 25 बार पढ़े तो अल्लाह उसे और उसके माता पिता के पापों को माफ कर देता है।

इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम के बारे में बताया जाता है कि वे 27वीं रमज़ान की रात में सुबह तक यह दुआ पढ़ते थेः हे ईश्वर! मुझे, घमंड व धोखे के घर से दूरी और सदैव रहने वाले घर की ओर वापसी और मौत से पहले मौत की तैयारी का अवसर प्रदान कर। प्रोफेसर मेहदी तैयब, इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम की दुआ के इस भाग के बारे में जिसमें  उन्होंने मौत से पहले मौत की तैयारी की बात की है, कहते हैं कि मौत का अर्थ संसार से संबंध का अंत है, मौत का मतलब यह होता है कि इस दुनिया और इस मायाजाल से वह निकल जाता है। इस लिए इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम यह दुआ करते हैं कि इस संबंध के अंत से पहले ही उसके लिए तैयारी का अवसर प्रदान करे। इस तरह से ज्ञानी लोगों की मौत निर्धारित होती है  क्योंकि वह सदा उसका इंतेज़ार करते हैं और इस माया जाल में नहीं फंसते क्योंकि उन्हें मालूम है कि संसार का लुभावना रूप वास्तविक नहीं है बल्कि सब कुछ धोखा है इस लिए वह इस धोखेबाज़ प्रेमिका से दूर हो जाते हैं और मौत का इंतेज़ार करते हैं जो सदैव रहने वाले कल्याण का मार्ग है।

कार्यक्रम के अंत में हम भी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें भी इतना ज्ञान दे कि जिससे हम इस संसार की वास्तविकता को समझ सकें और उससे दूर होकर उस संसार के लिए तैयारी कर सकें जहां हमें हमेशा रहना है। क्योंकि यह संसार एक सराय है और हम यात्री हैं जो कुछ दिनों के लिए यहां रुक गए हैं । इस लिए इसे हमेशा का ठिकाना नहीं समझना चाहिए और उसके धोखे में नहीं आना चाहिए। रमज़ान के महीने में और रोज़े के दौरान मनुष्य यदि चिंतन करे तो इस प्रकार की बहुत सी वास्तविकताएं उसके सामने सरलता से उजागर हो जाती हैं।

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