वित्र रमज़ान को ख़त्म होने में कुछ दिन बचे हैं। इस महीने के दिन दूसरे महीनों के दिन से बहुत भिन्न हैं।
यूं तो रमज़ान के दिन विदित ख़ुशियों से दूर नज़र आते हैं लेकिन इस महीने में भीतरी ख़ुशी हासिल होती है। वास्तव में हम सभी ने ईश्वरीय उपासना का अद्वितीय अनुभव हासिल किया। सुबह जल्दी उठ कर प्रार्थना करना, पवित्र क़ुरआन की तिलावत, पापों का प्रायश्चित, सहरी का दस्तरख़ान इत्यादि, इन सब बातों से मिलने वाले आनंद को शब्दों में बयान करना कठिन है। वास्तव में रमज़ान के इन दिनों और रातों में रोज़ेदार ईश्वर का मेहमान होता और किसी जश्न में बुलाए गए मेहमान की तरह जश्न के मीठे क्षणों का आनंद लेता है। ईश्वर से आशा है कि बाक़ी बचे हुए दिनों में वह हम सब पर अपनी कृपा की वर्षा करेगा।
ख़ुशी यूं तो चेहरे पर मुस्कुराहट, गहमा गहमी व हुल्लड़ के रूप में प्रकट होती है लेकिन उसका स्रोत भीतरी होता है। मनोविज्ञान की नज़र में इंसान के व्यवहार व भावना के पीछे उसके विचार होते हैं। चूंकि धर्म की बुनियाद इंसान के भीतर को सुधारना है, इसलिए धर्म इंसान की उत्तेजनाओं व जोश को शोधित करता है। एक संपूर्ण धर्म के रूप में इस्लाम एक ओर इंसान को अपने ज़ाहिर को साफ़ सुथरा रखने और शिष्ट व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है तो दूसरी ओर इंसान के भीतर के प्रशिक्षण के लिए उसे एकेश्वरवाद, अपने और सृष्टि के बारे में चिंतन मनन से परिचित कराता है।
धर्म का एक अहम उद्देश्य इंसान को वास्तविक जीवन तक पहुंचाना है। इसी लिए धार्मिक शिक्षाओं में इंसान की हमेशा के लिए समाप्ने का विचार नहीं है बल्कि धर्म इंसान के जीवन को अमर मानता है। पवित्र क़ुरआन की नज़र में पूरी सृष्टि हरकत में है। अगर इस दृष्टि से इस्लाम को देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि सभी शिक्षाओं व धार्मिक विषयों में जीवन के लक्ष्ण मौजूद हैं। धर्म का ज्ञान से अटूट संबंध है। जिन्होंने उपासना की दुनिया की सैर की है वह ऐसे आनंदायक माहौल का आभास करते हैं जिसमें दुख दर्द का कोई स्थान नहीं होता बल्कि सिर्फ़ आनंद ही आनंद होता है। जो उपासना करते हैं वे अपने मन में ईश्वर से प्रेम को महसूस करते हैं और उनके सामने आत्मज्ञान का द्वार खुल जाता है। इस्लाम ऐसा धर्म है जिसमें व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों प्रकार के नियम हैं जिन पर अमल करके इंसान संतुष्टि का आभास करता है। नमाज़, रोज़ा, हज, ख़ुम्स और ज़कात जैसे अनिवार्य कर्मों और उपासना संबंधी दूसरे कर्मों का इंसान के मन पर बहुत अच्छा असर पड़ता है। यहां तक कि इस्लाम की सामाजिक शिक्षाएं भी समाज और ईश्वरीय रचनाओं की सेवा, ईश्वर की उपासना और वंदना से अलग नहीं है। सामाजिक मामलों में इस्लाम की अनुशंसाओं पर अमल से इंसानों के बीच मेल जोल, दोस्ती व समरसता बढ़ेगी। जब किसी समाज के इंसान एक दूसरे की सेवा करते हैं तो उस समाज का माहौल सौहार्दपूर्ण बन जाता है और उस समाज के लोग अपने जीवन के हर क्षण का आनंद उठाते हैं।
इंसान को ख़ुश करने वाली चीज़ों की समीक्षा में दो प्रकार की चीज़े सामने आती हैं। एक भौतिक और दूसरी आध्यात्मिक। जिन चीज़ों से आध्यात्मिक आनंद मिलता है ज़रूरी नहीं है कि उनसे भौतिक फ़ायदा भी मिले। इस तरह के आनंद बाक़ी रहते और व्यापक रूप से असर डालते हैं लेकिन भौतिक आनंद और ख़ुशियां इंसान के भौतिक जीवन से जुड़ी होती हैं और उनका असर अल्पावधि का होता है और कभी कभी तो उनका असर बहुत ही नुक़सानदेह होता है। जैसा कि ईश्वर पवित्र क़ुरआन के ताहा सूरे की आयत नंबर 124 में फ़रमाता हैः जो भी ईश्वर की याद से मुंह मोड़े उसके सामने कठिनाइयां होंगी। इस विषय को अगर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो पता चलेगा कि ईश्वर की याद का फ़ायदा यह है कि इंसान उन चीज़ों से दूर हो जाता है जो उसके मन में तनाव पैदा करती हैं। ईश्वर से निकट संबंध से इंसान परिपूर्णतः की ओर बढ़ता है नतीजे में अपने जीवन को लक्ष्यपूर्ण बनाता है। यही वजह है कि जब हम धार्मिक आस्था व मूल्यों का पालन करने वालों लोगों को देखते हैं तो पाते हैं कि वे कठिन से कठिन हालात में भी आशा नहीं छोड़ते और उनकी आस्था पर कोई असर नहीं पड़ता।
आपको ऐसे लोगों का अवश्य सामना हुआ होगा जो भौतिक दृष्टि से बहुत समृद्ध लगते हैं। लेकिन इसके बावजूद जीवन के संबंध में शिकायत करते हैं। इसके मुक़ाबले में ऐसे लोग भी होते हैं जो भौतिक दृष्टि से इतने समृद्ध नहीं होते लेकिन ख़ुशियों भरा जीवन बिताते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ख़ुद को सौभाग्यशाली समझने की भावना का संबंध बहुत हद तक भौतिक संसाधन से नहीं है। चूंकि इंसान के कल्याण का संबंध बहुत हद तक जीवन के अध्यात्मिक मामलों से जुड़ा है इसलिए ईश्वरीय धर्म इंसान को अध्यात्मिक आनंद की ओर प्रेरित करते हैं। ईश्वर पर भरोसा रखने वाले व्यक्ति की नज़र में किसी चीज़ का आनंद ईश्वर की वंदना से अधिक नहीं है यही वजह है कि धर्म परायण लोग नमाज़, रोज़ा और वंदना में आनंद महसूस करते हैं और इस तरह के लोग सांसारिक व परालौकिक जीवन की आशा में बहुत सी कठिनाइयों का मुक़ाबला करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैः "मेरी नज़र में आधी रात में दो रकअत नमाज़ जो कुछ दुनिया में मूल्यवान चीज़ें हैं उनसे अधिक मूल्य रखती है।"
नए शोध दर्शाते हैं कि इस्लाम में रोज़ा एक सार्थक कार्यक्रम है और बहुत आयाम से इंसान के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। रोज़ा दूसरी उपासनाओं की तरह मन को आनंदित करता और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। चूंकि इंसान रोज़े में ईश्वर की याद में होता है, इसलिए उसके ख़ुश रहने के अधिक साधन मुहैया होते हैं। रोज़ेदार व्यक्ति ईश्वर की प्रसन्नता में खाने पानी से दूर रहता और पवित्र क़ुरआन की तिलावत करता है जिससे उसके मन में ईश्वर पर भरोसा बढ़ता है, वह अपने भीतर आनंद महसूस करता है और उसके भीतर से दुख चला जाता है। वास्तव में पवित्र रमज़ान में रोज़ा रखने वाला अपने मन में अधिक आनंद का आभास करता है। जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः रोज़ा रखने वाले के लिए दो प्रकार की ख़ुशी हैः एक इफ़्तार के समय और दूसरी प्रलय में ईश्वर से मुलाक़ात के समय। इस तरह पवित्र रमज़ान में आध्यात्मिक संपर्क से मन को बहुत अधिक सुकून मिलता है।
पवित्र रमज़ान में रोज़ादारों को ख़ुशी देने वाला एक और तत्व सुबह सवेरे सहरी के लिए उठना है। सुबह सवेरे उठने का एक फ़ायदा ईश्वर की निष्ठापूर्ण प्रार्थना है। यह प्रार्थना कभी नमाज़े शब नामक विशेष नमाज़ के रूप में प्रकट होती है जिससे मन को बहुत आनंद मिलता है। यह देखा गया है कि जो लोग सुबह सवेरे उठते हैं वह प्रफुल्लित रहते हैं। सुबह सवेरे उठने का एक फ़ायदा यह है कि इंसान की कार्यकुशलता बढ़ती है। रात में सोने की वजह से सहरी के समय उठने से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक दृष्टि से अधिक तय्यार रहता है। यही वजह है कि इस्लाम में बल दिया गया है कि सुबह सवेरे उठने से रोज़ी व आजीविका बढ़ती है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैः "सुबह सवेरे अपनी रोज़ी रोटी और ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निकलो। सुबह उठना बर्कत व विभूतियां लाता है।" सुबह उठने के विशेष शिष्टाचार हैं। एक शिष्टाचार मिस्वाक या दातुन करना है। इसी तरह पवित्र क़ुरआन की तिलावत और नमाज़े शब पढ़ना अन्य उपासनाएं हैं जिन पर बल दिया गया है। यद्यपि पवित्र क़ुरआन को कभी भी पढ़ सकते हैं लेकिन सुबह के वक़्त इसे पढ़ने का अलग ही आनंद है। जैसा कि एक मसल हैः अगर तुम अपने सिर पर सेब की एक टोकरी लेकर गलियों व बाज़ारों में फिरो तो ऐसा करने से तुम्हें किसी तरह की ऊर्जा नहीं मिलेगी बल्कि तुम्हारी शारीरिक ऊर्जा ही कम होगी लेकिन अगर उस टोकरी में से एक सेब खालो तो तुम्हें ऊर्जा व प्रफुल्लता मिलेगी। पवित्र क़ुरआन भी सेब की टोकरी की तरह है। अगर उसकी आयतें व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर असर कर जाए और उसे अपने जीवन में उतार ले तो उसे ऊर्जा व आत्मज्ञान मिलेगा।
आध्यात्मिक आयाम से भी ख़ुशी का धर्म के साथ निकट संबंध है। मिसाल के तौर पर ईश्वर से प्रार्थना, पवित्र क़ुरआन की तिलावत या रोज़ा रखने से व्यक्ति जो महसूस करता है ये उसी की मिसाल है। धार्मिक शिक्षाओं में दर्शन करने या यात्रा पर जाने को भी सुकून देने वाला कारक बताया गया है। अलबत्ता जीवन के प्रति इंसान के मन में जितना सार्थक दृष्टिकोण होगा उतना अधिक वह संतुष्टि का आभास करेगा। यद्यपि लोग अलग अलग चीज़ों से ख़ुश होते हैं लेकिन अहम बात यह है कि इंसान ख़ुश व आशावान रहे और भला जीवन बिताए।
कार्यक्रम के इस भाग में आपको 27वीं रमज़ान को पढ़ी जाने वाली दुआ के एक भाग से परिचित कराने जा रहे हैं। इस दुआ के एक टुकड़े में प्रार्थी ईश्वर से कहता है कि इस महीने में हमारे काम को आसान कर दे। ईश्वर कभी नहीं चाहता कि इंसान कठिनाई उठाए बल्कि वह इंसान के लिए आसानी व सुकून चाहता है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के बक़रा सूरे की आयत नंबर 185 में ईश्वर कहता हैः "ईश्वर तुम्हारे लिए आसानी चाहता है, तुम्हारे लिए कठिनाई नहीं चाहता।" लेकिन भौतिक जीवन के आनंद कठिनाई से हासिल होते हैं। अलबत्ता इन कठिनाइयों को कुछ उपायों से आसान कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर निर्धनों व अनाथों की मदद से जीवन यापन की कठिनाइयां कम होती हैं। रिवायत में है कि एक व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम के पास आया और उसने कहाः हे ईश्वरीय दूत मेरा हाथ पैसों से ख़ाली है। जीवन बहुत कठिनाइयों में है। पैग़म्बरे इस्लाम ने उस व्यक्ति से फ़रमायाः दान कर। उस व्यक्ति ने कहा कि मैंने आपकी सेवा में अर्ज़ किया कि मेरा हाथ पैसों से ख़ाली है और आप दान करने के लिए कह रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः दान करो कि दान रोज़ी को अपनी ओर खींच कर लाता है।
ईश्वर की एक और विशेषता यह है कि वह बंदों के पापों को क्षमा कर देता है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के ज़ुमर सूरे की आयत नंबर 53 में ईश्वर अपनी क्षमाशीलता के बारे में कहता हैः "हे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले मेरे बंदो! ईश्वर की कृपा से निराश मत हो कि ईश्वर सभी पाप को क्षमा कर देगा। वह बहुत ही क्षमाशील व मेहरबान है।" इस आयत में ईश्वर ने सभी के लिए अपनी क्षमाशीलता का दामन खोल दिया है ताकि वे अपने पापों का प्रायश्चित कर उसकी ओर पलट आएं।