रोज़ा और शिष्टाचार
ईश्वरीय आतिथ्य-4 रोज़। और शिष्टाचार
मनुष्य के जीवन में शिष्टाचार को बहुत महत्व प्राप्त है। शिष्टाचार का अर्थ होता है अच्छा आचरण। शिष्टाचार न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सामाजिक जीवन में भी बहुत प्रभावशाली होता है। लोगों को अच्छे व्यवहार वाले व्यक्ति के साथ मिलने में आनंद आता है। बहुत से लोग सदाचारियों से मिलने के लिए उत्सुक रहते हैं। अनुभव और सर्वेक्षण दोनों ही यह बताते हैं कि अन्य लोगों की तुलना में अच्छे व्यवहार वाले लोग अपने जीवन में अधिक सफल रहते हैं और उनकी सफलता का एक कारण उनका अच्छा व्यवहार होता है। समस्त धर्मों में अच्छा आचरण अपनाने पर बल दिया गया है। महापुरूषों के कथनों में भी शिष्टाचार की बहुत प्रशंसा की गई है। इस्लामी शिक्षाओं में कहा गया है कि सदाचारी लोग ईश्वर से अधिक निकट होते हैं। इन शिक्षाओं के अनुसार मनुष्य की यह विशेषता उसके लोक-परलोक में कल्याण का कारण बनती है। शिष्टाचार, मनुष्य के व्यवहार का एक ध्यान योग्य बिंदु है। मनुष्य को अच्छे व्यवहार और शिष्टाचार जैसी पूंजी को कभी भी और किसी भी स्थिति में अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। पवित्र महीने रमज़ान में दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने और सबसे प्रेमपूर्ण ढंग से मिलने पर विशेष रूप से बल दिया गया है। वैसे तो पूरे साल ही मनुष्य को सदगुणों को अपनाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए और यह एक प्रशंसनीय प्रयास है किंतु ईश्वर ने रमज़ान के महीने में सदगुण अपनाने पर विशेष ध्यान देने को कहा है। लोगों से प्रेमपूर्ण ढंग से मिलना, उनकी सहायता करना, भूखों को खाना खिलाना, अनाथों और विधवाओं की सहायता करना, बीमारों का कुशलक्षेम पूछने जाना, अपने परिजनों के साथ प्रेमपूर्ण संबन्धों को बनाए रखना और उसे विस्तृत बनाना, उनसे मिलने जाना और इसी प्रकार की बहुत सी अच्छी बातें, रमज़ान की शिक्षाओं का भाग हैं। इसी के विपरीत किसी की चुग़ली करने, झूठ बोलने, झूठी क़सम खाने, परनारी पर दृष्टि डालने, लड़ाई-झगड़ा करने, किसी पर आरोप लगाने और इसी प्रकार की बहुत सी बुराइयों से रोज़ेदार को रोका गया है। स्वभाविक सी बात है कि जब कोई मनुष्य रोज़े के दौरान दिये जाने वाले निर्देशों और आदेशों का पालन एक महीने तक निरंतर करेगा तो उसमें अभूतपूर्व सुधार दिखाई देगा। विषेषज्ञों का मानना है कि अपने भीतर सदगुण उत्पन्न करने के लिए मनुष्य को प्रयास करने के साथ ही साथ कुछ बाध्यकारी नियमों को भी अपनाना चाहिए तभी उसमें सही ढंग से सदगुणों का विकास हो सकेगा। सदगुणों को अपनाने और उन्हें व्यवहारिक बनाने का सबसे अच्छा अवसर रमज़ान है। रोज़े की स्थिति में जहां पर मनुष्य को दूसरों की भूख और प्यास का आभास होता है वहीं पर लंबे समय तक निरंतर भूखे और प्यासे रहने के कारण उसकी कुछ बुरी आदतें नियंत्रित हो जाती हैं। एसे में यदि मनुष्य अपने भीतर सदगुण अपनाने का प्रण कर ले तो वह बहुत सी बुरी आदतों से छुटकारा पाकर एक सदगुणी व्यक्ति बन सकता है। रमज़ान का पवित्र महीना लोगों के बीच संबन्धों की सुदृढ़ता का भी कारण बनता है। वास्तविक रोज़ेदार उस रोज़ेदार को माना जाता है जिसका रखने वाला अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक तीनों प्रकार के कर्तव्यों पर ध्यान देता हो और इस महीने में ईश्वर के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करता हो।