ईश्वरीय आतिथ्य-12

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ईश्वरीय आतिथ्य-12

अस्तित्व की ताज़गी

ध्यान से सुनिए उस मनोहर आवाज़ को जो महान और विभूतियों से परिपूर्ण महीने के आने की शुभ सूचना देती है। अपनी समस्त अनुकंपाओं, विभूतियों और सुन्दरताओं के साथ रमज़ान का पवित्र महीना हमारे बीच आया है। यह महीना आकाश के यात्री की भांति अपने अनंत प्रकाश के साथ आया है ताकि हमारे थके हुए अस्तित्व को तरावट प्रदान करे और ईश्वर की कृपा के साथ सामिप्य को सुनिश्चित बनाए। इस बार भी रमज़ान, धीरे-धीरे हमारे हृदयों के द्वार में प्रविष्ट हो रहा है ताकि अपने आध्यात्मिक क्षणों से हमारे जीवन के दिनों और रातों को स्वयं से समन्वित करें। पवित्र रमज़ान, सुन्दर क्षणों से परिपूर्ण महीना है। एसे क्षण जिनसे लाभान्वित होने के लिए केवल उनका अनुभव ही किया जा सकता है। विभूतियों से भरी इसकी भोर, सूर्यास्त के पश्चात आध्यात्मिक वातावरण से परिपूर्ण इसके इफतार के क्षण, प्रार्थना और पवित्र क़ुरआन से एक विशेष लगाव, भोर समय उठना और सूर्योदय तक जागते रहने जैसी समस्त विभूतियां आदि सबकुछ इसी उत्तम महीने की अनुकंपाओं का भाग हैं।

महान ईश्वर ने लोगों के लिए विभिन्न कालों और स्थानों पर पवित्रता एवं आध्यात्म से परिपूर्ण वातावरण उपलब्ध करवाया है ताकि परिवर्तन के लिए उनके पास उचित अवसर हो। इन मूल्यवान अवसरों में से एक, पवित्र रमज़ान का महीना है। वास्तव में हमको इस प्रकार के प्रिय अवसरों की कितनी अधिक आवश्यकता है कि अपने ईश्वर के साथ हम एकांत में प्रार्थना एवं मंत्रणा कर सकें। रमज़ान का पवित्र महीना एक ही प्रकार से बिताई जाने वाली दैनिक जीवन शैली में परिवर्तन उत्पन्न करता है ताकि मनुष्य स्वयं को समझ सके और एसा न हो कि बुराइयों के साथ युद्ध में उसकी सांसारिक आवश्यकताएं और संसार पर उसकी निर्भर्ता, उसको अक्षम बना दे। अब जबकि जीवन की समस्याओं ने हमको बुरी तरह से थका दिया है आइए इस महीने में ईश्वरीय अनुकंपाओं की वर्षा से तृप्त होते हैं और इस महीने में, पश्चाताप के पंखों का सहारा लेकर ईश्वर की अनुकंपाओं के आकाश में उड़ान भरें। हे ईश्वर तू धन्य है कि हम एक अन्य रमज़ान का अनुभव कर रहे हैं और यह हमारा सौभाग्य है कि पुनः हम इस पवित्र महीने के साक्षी बने हैं। हे ईश्वर की अनुकंपा के महीने तुझपर सलाम हो। सलाम हो तुझपर हे पवित्रता के महीने जिसके लिए हमारी इच्छा है कि तू सदैव हमारे साथ रहे। हे ईश्वर हम आशा से भरे मन के साथ आए हैं ताकि हृदय के मरूस्थल को तेरी अनुकंपा की वर्षा से, प्रेम और ईमान के बाग़ में परिवर्तित कर सकें। हम तेरी ओर आए हैं क्योंकि मन को केन्द्रित करने के लिए तेरे अतिरिक्त किसी अन्य को हम उचित नहीं समझते। हम अपने हृदय की खिड़कियों को खोलते हैं ताकि रमज़ान का पवित्र महीना स्वर्ग की पवन की भांति हमारे मन और हमारी आत्मा को तरावट प्रदान करे।

इतिहास में मिलता है कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) जब रमज़ान का चांद देखते थे तो काबे की ओर मुंह करके खड़े हो जाते और ईश्वर से स्वास्थ्य और सुरक्षा की प्रार्थना करते थे और नमाज़ पढ़ने, रोज़े रखने तथा पवित्र क़ुरआन पढ़ने के लिए उससे सहायता मांगते थे। जब रमज़ान का महीना आता था तो पैग़म्बरे (स) की ओर से दान-दक्षिणा और भलाइयों में वृद्धि हो जाया करती थी। दीन- दुखियों पर वे पूर्व की तुलना में अधिक स्नेह दर्शाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम लोगों से कहा करते थे कि रमज़ान के महीने में अधिक से अधिक क़ुरआन पढ़ो। एक दिन उनसे पूछा गया कि रमज़ान में सबसे अच्छा कार्य कौनसा है तो इसपर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उत्तर दिया कि इस महीने में महत्वपूर्ण कार्य, ईश्वर द्वारा वर्जित की गई बातों से बचना है अर्थात ईश्वर ने जिन कार्यों को मना किया है उसे मनुष्य को नहीं करना चाहिए।

रमज़ान के विशेष कार्यक्रम में हम प्रयास कर रहे हैं कि महापुरूषों के कथनों से आपको अवगत करवाएं। आज हम आपको रोज़े के लाभ के संबन्ध में ईरान के महान तत्वदर्शी एवं वरिष्ठ धर्मगुरू हाज मिर्ज़ा जवाद आग़ा मलिकी तबरीज़ी के विचारों से अवगत करवाएंगे। उन्होंने बहुत सी पुस्तकों की रचना की है जिनमें से एक का नाम “अलमुराक़ेबात” है। अपनी पुस्तक “अलमुराक़ेबात” में आग़ा मलिकी तबरीज़ी रोज़े की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि भूख, हृदय की पवित्रता एवं कोमलता का कारण बनती है और यह मनुष्य द्वारा चिंतन करने की भूमि प्रशस्त करती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि जो भी अपने पेट को खाली रखेगा उसकी सोच महान होगी, उसके विचार महान होंगे और वह तत्वदर्शिता के संदेशों को सुनेगा। यही कारण है कि इस्लामी शिक्षाओं में मिलता है कि कुछ समय तक सोच-विचार करना सत्तर वर्षों की उपासना से अधिक महत्वपूर्ण है। मलिकी तबरीज़ी आगे लिखते हैं कि सोच या चिंतन की यह भूमिका यदि प्रशस्त हो जाए तो फिर इसके बहुत ही अच्छे परिणाम सामने आएंगे। इससे निश्चित रूप से आपको यह ज्ञात हो जाएगा कि ईश्वर ने क्यों अपने अतिथियों के लिए भूख का चयन किया है? इसका कारण यह है कि ईश्वर की पहचान और उसकी निकटता से बढ़कर कोई और चीज़ नहीं है और उससे निकट करने वाले कारणों में से एक भूख है। एसी स्थिति में मनुष्य को पता चलता है कि रोज़े रखना केवल स्वर्ग और उसकी विभूतियों के लिए नहीं हैं बल्कि यह निमंत्रण ईश्वर से निकटता के लिए है।

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