वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने कहा है कि देश की वास्तविक पहचान और महासंघर्ष से, इस्लामी क्रान्ति के उद्देश्यों को प्राप्त करके व्यवस्था को बचाते हुए उसे आगे ले जाया जा सकता है।
वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली पांचवीं विशेषज्ञ परिषद के सदस्यों ने गुरूवार को आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई से मुलाक़ात की। उन्होंने कहा कि दुश्मन का अनुसरण न करना ही महासंघर्ष है।
उन्होंने ईरानी जनता के विभिन्न वर्गों के साथ, विशेषज्ञ परिषद के सदस्य धर्मगुरुओं व विद्वानों के संपर्क और इन वर्गों पर उनके प्रभाव की ओर इशारा करते हुए कहा कि संविधान में वर्णित कर्तव्यों को पूरा करने के लिए ज़रूरी समय के आने तक इस परिषद के सदस्यों को हाथ पर हाथ धरे बैठा नहीं रहना चाहिए।
वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल दिया कि विशेषज्ञ परिषद का मार्ग व लक्ष्य वही होना चाहिए जो क्रान्ति का मार्ग व लक्ष्य है। उन्होंने इस्लाम की प्रभुसत्ता, स्वतंत्रता, स्वाधीनता, सामाजिक न्याय, जनकल्याण, निर्धनता व निरक्षरता उन्मूलन, पश्चिम के अनैतिक भ्रष्टाचार से मुक़ाबला, आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक बुराइयों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध और साम्राज्यवादी मोर्चे के मुक़ाबले में दृढ़ता को ईरानी राष्ट्र के महत्वपूर्ण लक्ष्य बताया।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने वर्चस्ववाद को साम्राज्य की प्रवृत्ति का हिस्सा बताते हुए कहा कि साम्राज्यवादी मोर्चा राष्ट्रों पर वर्चस्व के दायरे को बढ़ाना चाहता है। उन्होंने कहा कि जो राष्ट्र उसका मुक़ाबला नहीं करेगा उसके जाल में फंस जाएगा।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस बात में शक नहीं कि इस्लाम ही साम्राज्य व अत्याचार को ख़त्म करेगा। उन्होंने कहा कि वह इस्लाम ही दुनिया के वर्चस्ववादी मोर्चे को ख़त्म कर सकता है जो प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में स्थापित हो और राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, मीडिया और सैन्य शक्ति के साधन से संपन्न हो।