इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि विशेषज्ञों का मानना है कि अमरीका अब पतन की ओर अग्रसर है जबकि प्रेरणा, कार्य की भावना और अपने प्रिय युवाओं के प्रयास से ईरानी राष्ट्र का भविष्य पहले से अधिक उज्वल है।
ईरान के हज़ारों छात्रों ने शनिवार को तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से भेंट की। इन छात्रों ने विश्व वर्चस्ववाद के विरुद्ध राष्ट्रीय संघर्ष दिवस से एक दिन पहले वरिष्ठ नेता से भेंट की है।
इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने पिछले 40 वर्षों के दौरान ईरान के विरुद्ध अमरीकी षडयंत्रों की विफलता की ओर संकेत करते हुए कहा कि छात्रों के हाथों, जासूसी का अडडा बने अमरीकी दूतावास का परिवेष्टन, वास्तव में अमरीका के मुंह पर ईरानी राष्ट्र का तमाचा था। उन्होंने कहा कि संसार के बहुत से विशेषज्ञों, समाजशासत्रियों एवं राजनेताओं का मानना है कि अमरीका की "साफ्ट पाॅवर" कमज़ोर होती जा रही है। वरिष्ठ नेता का कहना था कि दूसरे देशों पर अपनी मर्ज़ी थोपने की अमरीकी नीति लगभग निष्कृय हो चुकी है। उन्होंने कहा कि अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति के सत्ता संभालने के साथ ही इसमें बहुत गिरावट आई है। अब तो स्थिति यह हो गई है कि संसार के बहुत से देश और राष्ट्र, खुलकर अमरीकी फैसलों का विरोध करने लगे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अमरीका की निरंतर कम होती शक्ति की ओर क्षेत्रीय देशों का ध्यान केन्द्रित करवाते हुए कहा कि वे लोेग जो अमरीका के समर्थन से फ़िलिस्तीन के मामले को हमेशा के लिए समाप्त करवाना चाहते हैं उनको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अमरीका अपने ही क्षेत्र में पिछड़ता जा रहा है जबकि क्षेत्रीय राष्ट्र और उनकी वास्तविकताएं बाक़ी रहेंगी।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले चार दशकों से ईरान के विरुद्ध अमरीकी प्रतिबंधों का मुख्य लक्ष्य, ईरान को हर हिसाब से नुक़सान पहुंचाना और उसके विकास को बाधित करना रहा है। उन्होंने कहा कि ईरान के विरुद्ध आर्थिक युद्ध में भी अमरीका को पराजय का ही मुंह देखना पड़ा है क्योंकि अमरीका की इच्छा के विरुद्ध ईरान, बहुत तेज़ी से स्वावलंबन की ओर बढ़ा है। वर्तमान समय में ईरान के हज़ारों युवा देश के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस प्रश्न के उत्तर में कि,अमरीका के विरुद्ध ईरानी राष्ट्र का प्रतिरोध कबतक जारी रहेगा, कहा कि जब अमरीका अपनी वर्चस्ववादी नीति को छोड़ देगा तो संसार के अन्य देशों की भांति उसके साथ भी सहयोग किया जा सकता है किंतु एेसा होना संभव दिखाई नहीं देता। इसका कारण यह है कि वर्चस्व की प्रवृत्ति ही ज़ोर-ज़बरदस्ती और दूसरों पर धौंस जमाने पर आधारित होती है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल देकर कहा कि वर्तमान समय में इस्लामी गणतंत्र ईरान ही एेसा देश है जिसके फैसलों में अमरीका की लेशमात्र इच्छा शामिल नहीं होती। वरिष्ठ नेता का कहना था कि यह वास्तव में अमरीका की पराजय के अर्थ में है।