सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ मुफ़्ती ने कहा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर निकलने वाला मिलयन मार्च न केवल “मुस्तहब” है बल्कि अधिक संभव है कि “वाजिब” हो।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के अवसर पर निकलने वाले मार्च के बारे में कहते हैं कि “यह मिलयन मार्च, एकता और आध्यात्मिकता के लिए अमूल्य है और न केवल सुन्नी मुसलमानों के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा बेहतरीन कार्य है जिसमें भाग लेना संभव है कि सभी मुसलमानों के लिए वाजिब हो और हर वर्ष इस महारैली में सुन्नी मुसलमानों की बढ़ती संख्या प्रशंसनीय है।”
तसनीम समाचार एजेंसी से बातचीत करते हुए सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर ने कहा कि गत वर्ष उन्हें भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ था कि वह इस भव्य चेहुलम मार्च का हिस्सा बनें और अब दिल यही करता है कि ऐसी एकता और आध्यात्मिकता की महारैली का हर वर्ष भाग बनें। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और अन्य इमामों एवं पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों का दर्शन करने के संबंध में इस्लाम की मुख्य पुस्तकों में बहुत अधिक बल दिया गया है। मुफ़्ती रज़्ज़ाक़ ने कहा कि, यह सभी जानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों से मोहब्बत करना हर मुसलमान पर वाजिब अर्थात अनिवार्य है।
वरिष्ठ मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर ने कहा कि सुन्नी मुसलमानों के लगभग सभी बड़े धर्मगुरुओं और मुफ़्तियों ने इमाम हुसैन (अ) की ज़यारत अर्थात दर्शन करने को मुस्तहब बताया है। उन्होंने कहा कि ऐसे भी बहुत से सुन्नी धर्मगुरू थे और हैं जिन्होंने इमाम हुसैन (अ) की ज़यारत को वाजिब अर्थात अनिवार्य बताया है। उन्होंने कहा कि हमें चाहिए कि ऐसे आध्यात्मिक समारोह से लाभ उठाएं और इस मिलयन मार्च का भाग बनें। मुफ़्ती रज़्ज़ाक़ ने कहा कि यह एक अच्छा अवसर है कि जब हम दुश्मनों की साज़िशों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए हम यह दिखा सकते हैं कि शिया और सुन्नी दोनों भाई हैं। उन्होंने कहा कि आज मुसलमानों के दुश्मनों की नज़र पवित्र नगर करबला की ओर जाने वाले इस भव्य मिलयन मार्च की तरफ़ है और यह देखकर उनके होश उड़े हुए हैं कि कैसे इस मार्च में शिया-सुन्नी मुसलमान हाथ में हाथ दिए आगे बढ़ रहे हैं।