कुर्दिस्तान की मज़लूम लड़कियां धोखे का शिकार

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कुर्दिस्तान की मज़लूम लड़कियां धोखे का शिकार

मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों का ढ़िंढोरा पीटने वाले पश्चिमी संगठन बहुत से स्थानों पर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचरों पे मौन क्यों धारण कर लेते हैं।

पीकेके जैसे ईरान विरोधी प्रथक्तावादी गुटों के नेता, महिलाओं को भर्ती के लिए केवल एक वस्तु या प्रचार सामग्री की दृष्टि से क्यों देखते हैं।

पीकेके के संचार माध्यमों में महिलाएं, आकर्षित करने का मात्र माध्यम हैं।  ईरान विरोधी विघटनकारी गुटों में लड़कियों और महिलाओं का कठिन जीवन, जो उनके झूठे वादों के झांसे में आ गईं, वह इन गुटों के नेताओ और उनके पश्चिमी समर्थकों की सोच का परिणाम हैं। 

जब हम पीकेके जैसे विघटनकारी गुट और उसकी विभिन्न शाख़ाओं में सक्रिय महिलाओं के चित्रों को देखते हैं तो यह बात साफ पता चलती है कि वे बहुत ही बुरी परिस्थतियों में जीवन गुज़ार रही हैं।

 

इन गुटों द्वारा महिलाओं के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया जाता है वह, महिलाओं के अधिकारों का खुला उल्लंघन है जैसे उनसे थका देने वाले काम लेना, उनकी क्षमता से अधिक काम करवाना, उनकी भावनाओं को अनदेखा करना, इन भावनाओं का दमन और महिलाओं की मातृत्व की भावना की पूरी तरह से अनदेखी करना आदि।

एसे में पीकेके के नेता किस प्रकार से महिलाओं के समर्थन का दावा करते हैं, जबकि वे अपने ही गुट की महिला सदस्यों से रोज़ाना उनकी क्षमता से अधिक काम काम करवाते हैं। इस गुट की महिला सदस्यों के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जाता है कि उनके हीतर से परिवार गठन की सोच ही समाप्त हो जाए।

सवाल यह पैदा होता है कि महिलाओं को उनके जो अधिकार मिलने चाहिए वे इस गुट के नेताओं की नज़र में क्या कोई महत्व ही नहीं रखते? क्यों यह गुट, उन महिलाओं और लड़कियों के हाथों में हथियार देकर उनको सैनिक के रूप में प्रयोग करते हैं जबकि महिलाएं तो राष्ट्र का निर्माण करने वाली होती हैं।  हथियारों का प्रयोग, महिलाओं के स्वभाव से मेल नहीं खाता।

सुरैया शफीई, दो बच्चों की मां हैं।  अपनी घरेलू परेशानियों के कारण वे पीकेके के झांसे में आ जाती हैं। उनके बारे में पीकेके से अलग होने वाले एक सदस्य ने बताया कि सुरैया शफीई ने जबसे पीकेके ज्वाइन किया था उस समय से अपनी मौत के बीच वे हमेशा अपने बच्चों की याद में रहा करती थीं किंतु उनके गुट ने उनको कभी भी वापस जाने का मौक़ा नहीं दिया।  इस गुट ने हमेशा ही इस महिला की भवनाओं का दमन किया यहां तक कि उसकी मौत हो गई।

कुर्द क्षेत्रों में अशांति के दौरान, पश्चिम का समर्थन प्राप्त कुछ नेता महिलाओं को उपकरण के रूप में देखते हैं।  एसा ही कटु अनुभव उन महिलाओं या माओं को करना पड़ा जो अपनी किसी मजबूरी के कारण या इन गुटों के नेताओं के धोखे में आकर यहां पहुंची और फिर बहुत ही बुरे हालात में उनको अपना जीवन गुज़ारना पड़ा।

अब सवाल यह है कि मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों का ढ़िंढोरा पीटने वाले पश्चिमी संगठन, जो कुछ देशों में अशांति फैलाने के लिए "महिला, जीवन, आज़ादी" के नारे का प्रयोग करते हैं, वे पीकेके जैसे गुटों के भीतर महिलाओं के विरुद्ध इतने व्यापक स्तर पर किये जा रहे महिलाओं के अधिकारों के हनन को देखने के बावजूद कुछ क्यों नहीं बोलते?

इस लेख को ईरान के कूटनीतक स्रोत से लिया गया है।

 

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