फिलिस्तीन की गज्जा पट्टी में जायोनी सरकार द्वारा आवासीय मकानों पर बमबारी और विशेष परिस्थिति का सामना होने के कारण हर घंटे तीन फिलिस्तीनी महिलायें शहीद हो रही हैं। ये महिलायें पुरूषों की अपेक्षा अधिक कठिनाइ से मलबों के नीचे से निकल पाती या आग लगने की घटनाओं से मुक्ति हासिल कर पाती हैं।
इस इलाक़े की स्थिति ऐसी हो गयी है कि 60 हज़ार गर्भवती महिलायें किसी प्रकार की चिकित्सा सेवा या बेहोश किये बिना बच्चे को जन्म दे रही हैं और बहुत अधिक भूख की वजह से कम से कम 21 महिलाओं की मौत हो गयी।
फिलिस्तीनी प्रशासन में महिलाओं के मामलों की मंत्री आमाल हमद का मानना है कि फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों के खिलाफ इस्राईली हमले पूर्व नियोजित हैं और वे नस्ली सफाये के परिप्रेक्ष्य में अंजाम दिये जा रहे हैं।
वह कहती हैं” फ़िलिस्तीन की घायल महिलायें शवों और घायलों के बीच अपने मरने की प्रतीक्षा करती हैं चाहे हवाई हमले की वजह से या चाहे भूख, प्यास या बीमारी की वजह से।
एक विश्लेषण के अनुसार इस्राईल जो नस्ली सफाया कर रहा है उसका यह व्यवहार अमेरिका के उस व्यवहार से लिया गया है जो उसने 9 मार्च 1945 को जापान में अंजाम दिया है। नरसंहार की यह शैली इस बात का ज्ञान होने के बावजूद अपनाई जा रही है कि आम नागरिक विशेषकर महिलाओं और बच्चों को कठिन परिस्थितियों का सामना है और आवासीय मकानों और इलाकों पर भारी बमबारी की वजह से धुओं और जलने की समस्या का सामना है। इस तरह का जो नरसंहार हो रहा है।
इसका संबंध द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान में होने वाले जनसंहार से है।
जापान में अमेरिका की वायुसेना ने जो कृत्य अंजाम दिये उसके संबंध में दो दृष्टिकोण मौजूद थे। एक दृष्टिकोण यह था कि अमेरिकी सैनिक जो बमबारी करते थे उसके संबंध में दावे किये जाते थे कि गैर ज़रूरी चीज़ों को लक्ष्य नहीं बनाया जा रहा है ताकि आम जनमत में यह संदेश दिया जा सके कि न तो अनुचित जगहों पर बमबारी की जा रही है और न ही आम लोग मारे जा रहे हैं जबकि दूसरा दृष्टिकोण यह था कि बमबारी लक्ष्यपूर्ण नहीं है और इस प्रकार का दृष्टिकोण रखने वालों की पूरी कोशिश यह दिखाने की थी कि जो जंग और बमबारी हो रही है उसमें सैनिकों के साथ महिलायें और बच्चे मारे जा रहे हैं।
जो लोग पहले दृष्टिकोण के पक्षधर थे वर्ष 1945 से पहले सत्ता उनके हाथ में थी परंतु अमेरिका की वायुसेना का नेतृत्व एसे कमांडर के हाथ में आया जिससे दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया। अमेरिकी जनरल क्रिटिस इमर्सन लेमेय (Curtis emerson lemay) का मानना था कि समय नष्ट नहीं करना चाहिये और भीषण बमबारी करके जापान को हराया जा सकता है।
अमेरिकी कमांडर का कहना था कि इस त्रासदी और भीषण बमबारी में तबाही इतनी अधिक हो कि जापान दोबारा प्रतिरोध की ताकत पैदा न कर सके।
इस बीच अमेरिका के हारवर्ड विश्व विद्यालय ने लगभग वर्ष 1942 में एक ऐसे पदार्थ का आविष्कार किया जो विचित्र तरीक़े से ज्वलनशील था। यह जेलेटिन की भांति नेपाल्म नाम का एक पदार्थ था जिसकी कुछ बूंदें लगभग चार वर्गमीटर के क्षेत्रफल में मौजूद हर चीज़ को जलाकर भस्म कर देती थीं। नेपाल्म पर जल का प्रभाव नहीं होता था और उससे काला और दम घुटने वाला धुंआ उठता था और वह महिलाओं के फेफड़े पर अधिक प्रभावी था।
नेपाल्म बम का आविष्कार हो जाने और उससे होने वाली तबाही का पता चल जाने के बाद जंग में इस्तेमाल करने के लिए अमेरिका को अच्छी चीज़ मिल गयी थी। यह ऐसी चीज़ थी जो दुश्मन और उसके घर को जला सकती थी। इस बात के साथ इस महत्वपूर्ण बिन्दु के किनारे से सरसरी तौर पर नहीं गुज़रना चाहिये कि उस समय जापान के अधिकांश लोगों के मकान लकड़ी के बनाये गये थे।
अमेरिकी जनरल लेमेय ने जेलेटिन से होने वाली तबाही से आश्वस्त होने के लिए अमेरिका में जापान की तरह लकड़ी के मकान बनाये जाने का आदेश दिया ताकि नेपाल्म बम का उन पर परीक्षण किया जाये। जब अमेरिका में इस बम का परीक्षण किया गया तो उससे होने वाली तबाही चकित करने वाली थी और अमेरिका इस बात से आश्वस्त हो गया कि इस बम के प्रयोग से जापान में भीषण व अनउदाहरणीय तबाही होगी।