ग़ज़्ज़ा युद्ध के 180 से अधिक दिन गुज़र जाने के बावजूद हिब्रू भाषा के संचार माध्यमों में ज़ायोनी शासन के मंत्रीमण्डल के क्रियाकलापों की आलोचना बढ़ती जा रही है।
ज़ायोनी समाचारपत्र हआरेत्ज़ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए छह महीनों का समय बीतने के बावजूद इस्राईल की हालत, दिन-प्रतिदिन ख़राब होती जा रही है।
इस रिपोर्ट में आया है कि हमको युद्ध रोक देना चाहिए और हमास में नियंत्रण से अपने बंदियों को वापस उनके घरों को लाना चाहिए। समाचारपत्र हआरेत्ज़ के अनुसार ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतनयाहू को अपने पद से हट जाना चाहिए।
ज़ायोनी संचार माध्यमों में इस बात पर विशेष रूप से बल दिया गया है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए आधा साल गुज़र चुका है किंतु अबतक निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सके हैं। इन 6 महीनों के दौरान न तो कोई हमारा बंधक वापस अपने घर पर आया है और न ही हमास को पराजित किया जा सका है।
हआरेत्ज़ की रिपोर्ट बताती है कि इस्राईल को अपने क्रियाकलापों पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि निर्धारित लक्ष्यों तक पहुंचना बहुत ही कठिन दिखाई दे रहा है। ज़ायोनी शासन के लिए ग़ज़्ज़ा युद्ध में उसके रिज़र्व फोर्स के कम से कम 1500 सैनिकों के हताहत होने हज़ारों के घायल होने की बात बताती है कि इस्राईलियों को इस युद्ध का बड़ा बदला देना होगा।
हिब्रू भाषा के संचार माध्यमों के अनुसार इस्राईल के मंत्रीमण्डल की विफलता केवल ग़ज़्ज़ा तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसका उत्तरी मोर्चा भी उसके लिए मुसीबत बना हुआ है क्योंकि वहां पर इस्राईलियों की वापसी के लिए इस क्षेत्र से हिज़बुल्ला को पीछे हटाना लगभग असंभव दिखाई दे रहा है।
यह संचार माध्यम इस बात की पुष्टि करते हैं कि सात अक्तूबर से लेकर अबतक इस्राईल की हालत हर रोज़ ख़राब होती जा रह है। हम इस्राईल के भीतर उसकी कूटनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबन्धी समस्याओं में अभूतपूर्व वृद्धि के साक्षी हैं।
ग़ज़्ज़ा युद्ध के छह महीने गुज़रने के साथ ही इस्राईल, अपनी वैधता खो चुका है। इस समय वह बहुत ही अलग-थलग पड़ चुका है। इसके अधिकारियों को इस समय प्रतिबंधों और क़ानूनी कार्यवाहियों का ख़तरनाक ढंग से सामना है।
इस बीच इस्राईल ने वार्ता प्रक्रिया की तुलना में सैन्य दबाव डालने को वरीयता यह कहते हुए दे रखी है कि जब-जब हमास पर दबाव बढ़ा है, उसकी रणनीति लचीली हो जाती है। हालांकि ज़ायोनियों की यह स्ट्रैटेजी भी विफल सिद्ध हुई। ग़ज़्ज़ा युद्ध के आरंभ से अबतक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कम से कम 604 इस्राईली सैनिक मारे जा चुके हैं।
इससे पहले अवैध ज़ायोनी शासन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री एहूद ओलमर्ट ने ग़ज़्ज़ा युद्ध के तत्काल रोके जाने और इस्राईली बंदियों की वापसी पर बल दिया था। उन्होंने कहा था कि इस स्थति में इस्राईल की उपलब्धि, युद्ध को जारी रखने की तुलना में अधिक होती।ओलमर्ट का कहना है कि नेतनयाहू, स्वयं को मुक्ति दिलाने के लिए युद्ध को जारी रखे हुए है वह इस्राईली बंदियों की आज़ादी के लिए युद्ध नहीं कर रहा है। उनका कहना था कि इस युद्ध में नेतनयाहू की ओर से निर्धारित किये गए लक्ष्य, हासिल नहीं हो पाएंगे।
ग़ज़्ज़ा युद्ध से संबन्धित ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार इस युद्ध में ज़ायोनियों के हमलों में अबतक 33000 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं। ज़ायोनियों के हमलों से 75000 से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं।
याद रहे कि ब्रिटिश उपनिवेशवादा के षडयंत्र के अन्तर्गत सन 1917 में इस्राईल के गठन की योजना तैयार हो चुकी थी किंतु विश्व के अन्य देशों से फ़िलिस्तीन की भूमि की ओर यहूदियों के पलायन के बाद 1948 में अवैध ज़ायोनी शासन के गठन की घोषणा की गई। उस समय से लेकर अबतक ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों की भूमि पर क़ब्ज़ा करने और उनके जातीय सफाए की कार्यवाहियां विभिन्न शैलियों में जारी हैं।