हैंगिग गार्डन्स नामक किताब, ईरान की एक महिला लेखक सुमय्या आलेमी की नई रचना है।
इस किताब में सीरिया के नुबल व अज़्ज़हरा नगरों की सात सीरियन महिलाओं की ज़िंदगी के बारे में बताया गया हैं जिन्होंने चार वर्षों तक आतंकवादियों के परिवेष्टन वाले नगर में जीवन गुज़ारा था।
सुमय्या आलेमी, हालिया वर्षों में ईरान में सक्रिय कहानीकारों में से एक हैं जो इस समय साहित्य की अग्रणी हस्तियों में गिनी जाती हैं। सुमय्या आलेमी का जन्म सन 1979 में हुआ था। उन्होंने हर्बल चिकित्सा का अध्ययन किया था।
सन 2009 में उन्होंने बायोटेक्नालोजी के विषय को छोडकर कहानी लिखने का काम शुरू किया। सुमय्या आलेमी ने कई उपन्यास लिखने के साथ ही कथाओं और कहानियों का संग्रह भी तैयार किया।
इस ईरानी लेखिका ने अपने जीवन का एक वर्ष सीरिया में गुज़ारा। वहां पर उन्होंने सीरिया की महिलाओं को पढ़ाने का भी काम किया।
सुमैय्या आलेमी, अपनी किताब हैंगिंग गार्डन्स के आरंभिक विचार के बारे में बताया कि किसी नगर में युद्ध के साथ एक महिला के संबन्ध और शांति स्थापित कराने में उसकी भमिका के विचार हमेशा मेरे साथ रहे हैं।
मैने हमेशा यह जानने का प्रयास किया है कि आदर्श समाज में महिला का स्थान कहां पर है। इस आदर्श समाज में मैंने जितनी भी खोज की पश्चिम को मैंने केवल नारीवाद के रूप में ही देखा जो पूंजीवादी संस्कृति से पूरी तरह से चिपका हुआ है। उनका कोई भी संबन्ध मानवीय पूंजी से नहीं है।
अपनी किताब के आइडिये के बारे में वे कहती हैं कि मेरा बचपन, ईरान पर इराक़ के बासी शासन द्वारा थोपे गए युद्ध में गुज़रा। मेरा बचपन हमेशा ही युद्ध की स्थति में माता-पिता की यात्राओं में गुज़र रहा था। मेरी माता, थोपे गए युद्ध के ज़माने में युद्ध के लिए सहायता सामग्री भेजने वाली संस्था में सक्रिय रहीं। उसी काल से मेरे मन में महिलाओं की ज़िम्मेदारी, एक आदर्श के रूप में रचबस गई थी।
वे कहती हैं कि इस बात को चाहे कोई अपने मुंह से न भी कहे लेकिन यह बात मेरे लिए बहुत स्पष्ट थी कि महिलाओं और किसी देश के पतन के बीच घनिष्ठ संबन्ध होता है। जब मैं दमिश्क़ पहुंची तो मेरे दिमाग़ में यह बात आई कि क्यों न सीरिया युद्ध से प्रभावित महिलाओं से मिलकर उनकी बातों को किताब का रूप दूं।
अपनी किताब के नाम, हैंगिंग गार्डन्स के बारे में सुमय्या आलेमी कहती हैं कि बाग़ उस जगह को कहते हैं जहां पर पेड़ होते हैं। उनका कहना है कि वनस्पतियों की तुलना में पेड़ों की जड़ें काफ़ी गहरी और अधिक मज़बूत होती हैं। जड़ें ही पेड़ों के तनों को बहुत ही मज़बूती से ज़मीन के भीतर रोके रखती हैं।
वे पेड़ों से महिलाओं की संक्षा देते हुए कहती हैं कि महिलाएं, बाग़ के पेड़ों की भांति हैं जो जन्म देने के आदर्श के रूप में मौजूद हैं। अपने इस आदर्श के साथ वे परिवार का संचालन भी करती हैं। हालांकि मेरी किताब के शीर्षक का कुछ संबन्ध सीरिया के नगरों के हालात से भी है।
सीरिया के नुबल और अज़्ज़हरा नगरों में सीरिया की महिलाओं ने चार वर्षों तक सशस्त्र आतंकवादियों के परिवेष्टन में अपना जीवन गुज़ारा
हैंगिंग गार्डन्स नामक अपनी किताब की महिलाओं के बारे में वे कहती हैं कि यह वे महिलाएं हैं जिन्होंने बहुआयामी युद्ध के दौरान अपने जीवन के 10 वर्ष, बहुत ही कठिन परिस्थतियों में गुज़ारे थे। इस दौरान इन महिलाओं ने अपने बच्चों को ज़िंदा रखने के लिए जी-तोड़ प्रयास किये थे। वे हमेशा ही सहायता की प्रतीक्षा में रहा करती थीं। यह सहायता कभी-कभी आसमान से नीचे की ओर आया करती थी।
सीरिया में कड़ा प्रतिरोध करने वाली इन महिलाओं के बारे में लेखिका बताती हैं कि यह महिलाएं उस देश में जीवन गुज़ार रही हैं जो लंबे समय तक फ्रांसीसी उपनिवेश रहा है।वर्तमान समय में इसका कुछ भाग इस्राईल के अतिग्रहण में है। सीरिया के गोलान क्षेत्र पर लंबे समय से अवैध ज़ायोनी शासन ने क़ब्ज़ा कर रखा है। सीरिया के भीतर फ़िलिस्तीनी पलायनकर्ता भी ज़िंदगी गुज़ारते हैं। अब वे उनके साथ रचबस गए हैं।
इसके अतिरिक्त सीरिया और फ़िलिस्तीन की सांस्कृतिक तथा भौगौलिक समानताओं ने भी इन दोनो राष्ट्र के लोगों को एक-दूसरे से निकट होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।मेरे हिसाब से ज़ायोनी वर्चस्ववाद के मुक़ाबले में सीरिया की महिलाओं के प्रतिरोध के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है।
राष्ट्रों के प्रतिरोध को बयान करने की आवश्यकता के बारे में सुमय्या आलेमी कहती हैं कि राष्ट्रों के प्रतिरोध की कहानी, युद्ध के समापन और उसके पुनर्निमाण के बाद अपने चरम को पहुंचती है। ईरान में भी यह काम सुरक्षा और सत्ता की छाया में परवान चढ चुका है। एसे में दुनिया भर के प्रतिरोधों की कहानियां पेश करने में ईरानी लेखक अग्रणी रह सकते हैं।
हैंगिंग गार्डन्स की लेखिका आगे कहती हैं कि नए और पुराने उपनिवेशवाद से सुरक्षित रहने के लिए किसी संयुक्त भौगोलिक क्षेत्र के निवासियों के बीच सामुदायिक भावना उत्पन्न करने में प्रतिरोध की कहानियां बहुत प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं।
अगर इस प्रकार की घटनाओं को लिखा न जाए तो बहुत से राष्ट्र, इन घटनाओं को भुला दिये जाने के कारण बाहरी उपनिवेशवाद और आंतरिक तानाशाही की ज़द में आ सकते हैं। वह राष्ट्र जिसके पास प्रतिरोध की कोई कहानी न हो या जो प्रतिरोध को जन्म न दे पाए तो उसको भुला दिया जाता है।
यह लेख, श्रीमती सुमय्या आलेमी के उस इंटरव्यू पर आधारित है जो ईरान आनलाइन साइट पर उपलब्ध है।