छात्रों को जुझारू होना चाहिए, 3000 छात्रों से वरिष्ठ नेता की मुलाक़ात

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छात्रों को जुझारू होना चाहिए, 3000 छात्रों से वरिष्ठ नेता की मुलाक़ात

रमज़ान के महीने में हर साल की तरह ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने रविवार को क़रीब 3 हज़ार छात्रों और राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संगठनों के प्रतिनिधियों से ढाई घंटे तक मुलाक़ात और बातचीत की।

इस मुलाक़ात की शुरुआत में छात्र संगठनों के कई प्रतिनिधियों ने ईरान और दुनिया से जुड़े मुद्दों पर अपने आलोचनात्मक विचार और सुझाव पेश किए, उसके बाद सुप्रीम लीडर ने अपनी राय रखी।

चर्चा की शुरुआत में सुप्रीम लीडर ने रमज़ान के पवित्र महीने में हासिल होने वाले प्रकाश और पवित्रता को संरक्षित करने का मुख्य तरीक़ा, पापों से दूरी बनाए रखना बताया।

इस्लामी क्रांति के नेता का कहना था कि कुछ कार्यों के पाप होने के बारे में अनजान होना, उन्हें अंजाम देने का कारण बनता है। उन्होंने कहाः वर्चुअल स्पेस में बिना सत्यापन के बात करना और लिखना, लापरवाही में किए गए पाप का उदाहरण है, जिसके लिए ईश्वर के सामने जवाबदेह होना होगा। हालांकि मैं किसी भी तरह रूढ़िवादी होने, आलोचना न करने और शिकायत न करने की सलाह नहीं दे रहा हूं, लेकिन हमें अपने हर शब्द के लिए और हर काम में सावधान रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि समाज और देश में उससे कहीं ज़्यादा समस्याएं हैं, जिनका ज़िक्र इस मुलाक़ात में छात्रों ने किया है। छात्रों का मूल उद्देश्य पढ़ाई करना है, लेकिन उसी के साथ लोगों और समाज पर नज़र रखना और समस्याओं का समाधान पेश करना भी उनकी असली ज़िम्मेदारियों में से है।

पहलवी शासन के भ्रष्टाचार और बुराईयों का उल्लेख करते हुए सुप्रीम लीडर ने कहाः उस ज़माने में ईरान जैसे महान देश पर हर प्रकार के भ्रष्टाचार में लिप्त परिवार ने लोगों पर शासन किया। इसके अलावा समाज के प्रबंधन में पूर्ण तानाशाही व्यवस्था का शासन था और आज के विपरीत देश के मामलों में लोगों की कोई भूमिका नहीं थी और उनकी कोई गिनती नहीं थी।

लोगों पर अत्याचार और राजनीतिक दबाव, विदेशियों के प्रति आज्ञाकारिता, पश्चिम के सांस्कृतिक अवशेषों का अनुसरण, गंभीर पक्षपात, न्याय की संवेदनहीनता, अधिकारियों और अदालत से संबंधित लोगों का भ्रष्टाचार क्रांति से पहले की अन्य वास्तविकताएं थीं, जिनका अयातुल्ला ख़ामेनई ने उल्लेख किया।

इस व्यस्था के ख़िलाफ़ धार्मिक विद्वानों और इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में जनसंघर्ष को वरिष्ठ नेता ने संपूर्ण संघर्ष बताते हुए कहाः इमाम ख़ुमैनी ने लोगों को एक धार्मिक और राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में संगठित किया, जिसके नतीजे में क्रांति सफल हुई, जो ईरानी राष्ट्र की ऐतिहासिक पहचान पत्र बन गई।

सुप्रीम लीडर का कहना थाः इस्लामी गणतंत्र के आदर्शों को दो सामान्य शीर्षकों में ख़ुलासा किया जा सकता हैः देश को इस्लामी तरीक़े से प्रशासित करना और देश के अच्छे शासन के लिए दुनिया के लोगों के सामने एक मॉडल पेश करना। आप लोग बौद्धिक और अध्ययन समूहों और उनकी बैठकों में और क्रांति में विश्वास करने वाले विशेषज्ञों के साथ मिलकर इन दो शीर्षकों को साकार करने के तरीक़ों को नवीनीकृत कर सकते हैं और उसके लिए आप लोगों को प्रयास करने चाहिए।

 

 आयतुल्लाह ख़ामेनई ने जन कल्याण, शारीरिक और नैतिक सुरक्षा, वैज्ञानिक प्रगति, स्वास्थ्य का विस्तार, जनसंख्या को युवा बनाए रखना, सभी प्रकार के निर्माण और नवाचार और न्याय को भौतिक प्रगति के मुख्य शीर्षकों के रूप में सूचीबद्ध किया और कहाः न्याय, जिसे सही ढंग से समझा जाना चाहिए, इसका अर्थ है सार्वजनिक अवसरों का उपयोग करने में वर्गीय अंतर को नकारना और समान अवसरों तक लोगों की पहुंच को आसान बनाना, क्योंकि अवसरों का उपयोग करने में विशेष विशेषाधिकार बनाना, अन्याय है और यह न्याय के ख़िलाफ़ है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने आध्यात्मिक प्रगति के विषयों में नैतिकता, धार्मिकता, सहयोग, इस्लामी जीवन शैली, बलिदान और संघर्ष को भी सूचीबद्ध किया और कहाः इन सभी आध्यात्मिक घटकों और विषयों की प्राप्ति के लिए नए विचारों और नई योजना की आवश्यकता है और छात्र समुदाय को अपनी चिंताओं और मांगों के साथ-साथ इस क्षेत्र में लगातार काम और प्रयास करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र का दूसरा आदर्श, जो दुनिया के सामने शासन का एक मॉडल पेश करना है, वास्तव में दुनिया के लोगों के लिए करुणा और परोपकार है। इस संदर्भ में उन्होंने कहाः यह आदर्श कुछ हद तक और कई आयामों में पूरा हुआ है, और बहुत सी ऐसी घटनाएं जो आप युवाओं को उत्साहित करती हैं और क्षेत्र और दुनिया के स्तर पर आप उन पर गर्व करते हैं, वह आपके देश, समाज और क्रांति से संबंधित हैं।

अपने भाषण के एक अन्य भाग में अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने ज्ञान को विश्वविद्यालय का मुख्य स्तंभ बताया और कहाः दुनिया के विश्वविद्यालय अपने तीसरे कर्तव्य में यानी विद्वानों के प्रशिक्षण और ज्ञान के उत्पादन को निर्देशित करने में समस्या का सामना कर रहे हैं और इस वजह से वे अहंकारी और ज़ायोनीवादियों का हथकंडा बन जाते हैं।

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