फिलिस्तीन पर क़ब्ज़े के बाद से ही यह मुद्दा शिया उलमा और मराजे ए किराम की निगाहों के केंद्र में रहा है। यह चीज़ जहाँ इस मुद्दे पर शिया समुदाय के ध्यान और चिंताओं को दर्शाती है वहीँ पंथ और संप्रदाय की भावना से ऊपर उठकर अहले बैत अस की तालीम और सिद्धांतों में इसकी अहमियत और शिया उलमा और मराजे की दुश्मन की शिनाख्त की क्षमता भी बताती है।
फिलिस्तीन पर कब्जे की शुरुआत के बाद से,इस मुद्दे पर हमेशा शिया उलमा और मराजे ए किराम का ध्यान केंद्रित रहा है, और फ़िलिस्तीन का यह मुद्दा कई वर्षों से शिया शिया उलमा और विशेष रूप से मराजे ए तकलीद का ध्यान आकर्षित करता रहा है।
शिया उलमा और मराजे ए किराम के बीच फिलिस्तीन के मुद्दे पर यह ध्यान इमाम खुमैनी के पहले से ही मौजूद था, और आज ईरान किसी भी सांप्रदायिक और धार्मिक भेदभाव से दूर, फिलिस्तीन का हर तरह से समर्थन करने के लिए मैदान में उतर चुका है।
मक़बूज़ा फिलिस्तीन के पूरे इतिहास में शिया उलमा और मराजे ए किराम ने कुछ लोगों की कल्पना के विपरीत हमेशा ही ऐलान किया कि फ़िलिस्तीन का मुद्दा इस्लामी उम्मह के लिए एक महत्वपूर्ण और बुनियादी मुद्दा है, हालाँकि दुश्मन शुरू से ही इस मुद्दे के महत्व को कम करने में सफल रहे और अरब दुनिया में विभाजन और मतभेद के बीज बोकर इसे एक मामूली मुद्दा बना दिया। उसके बाद दुश्मनों ने फ़िलिस्तीन को बाँटना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे इन क्षेत्रों पर ज़ायोनीवादियों का प्रभुत्व बढ़ता गया।
बिकाऊ और मज़दूर मीडिया तथ्यों को उलट-पुलट कर और धार्मिक मतभेदों का ढोल पीटकर, अरब जगत के लोगों के सामने ज़ायोनी शासन के बजाय एक नया दुश्मन पेश करने की कोशिश कर रहा है और सांप्रदायिक और धार्मिक मतभेद पैदा करके इस्लामी उम्मह को उसके सीधे रास्ते से भटका रहा है।
आयतुल्लाह खामेनेई ने अपने बयान में इस तथ्य पर जोर दिया कि दुश्मन धार्मिक मतभेदों को बढ़ाने और ज़ायोनी शासन को हाशिये पर धकेलने की कोशिश कर रहे हैं, वह दुश्मन जिसे इस सॉफ्टवॉर से पहले नंबर एक दुश्मन माना जाता था।
फ़िलिस्तीनी मुद्दे में शियाओं की भूमिका को समझाने के लिए हमें एक शिया मरजए तक़लीद की फ़िलिस्तीन यात्रा का उल्लेख करना चाहिए। शिया मराजे ए तक़लीद में से एक आयतुल्लाह मोहम्मद हुसैन काशिफ अल-गता ने 1931 में फिलिस्तीन की यात्रा की और एक इस्लामी कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया जो फिलिस्तीन का समर्थन करने के लिए आयोजित की गई थी। आप ने इस सम्मलेन में बहुत ही प्रभावी भाषण दिया जिसके नतीजे में फिलिस्तीन में समर्थन में बहुत सी प्रतिक्रिया सामने आई।
आयतुल्लाह सय्यद मोहसिनुल हकीम, आयतुल्लाह खुई , आयतुल्लाह मोहम्मद बाकिर सद्र और आयतुल्लाह खामेनेई जैसे बुज़ुर्ग मराजे ए तक़लीद के बयानों में फिलिस्तीन मुद्दा अपनी पूरी ताक़त और दृढ़ता के साथ मौजूद है जिन्हे फिलिस्तीन पर लिखी गई पुस्तक
फिलिस्तीन क़ज़यतुल-मुसलीमीन अल-कुबरा" में जमा किया गया है।
शिया मुसलमानों के रूप में, हम मानते हैं कि इस्लामी भूमि का हर टुकड़ा इस्लामी उम्मह का हिस्सा माना जाता है, और यदि उस पर आक्रमण या कब्जा किया जाता है, तो उसे आज़ाद कराने के लिए मैदान में उतरना हमारा कर्तव्य और हम सब पर वाजिब है।