ब्रिटिश मीडिया की ज़िम्मेदारी बताते एक यहूदी प्रोफ़ेसर

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ब्रिटिश मीडिया की ज़िम्मेदारी बताते एक यहूदी प्रोफ़ेसर

ज़बनेर का कहना है कि सभी ब्रिटिश मीडिया इस्राईली लॉबी के प्रभाव में हैं। वे इस्राईल के अप्रमाणित व अपुष्ट दावों को साझा करके जो कि निरा झूठ है, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ नफ़रत की आग भड़काते हैं।

बातचीत का दूसरा भाग

प्रोफ़ेसर हैम ब्रेशीथ-ज़बनेर, एक प्रसिद्ध इस्राईली यहूदी शिक्षाविद हैं और उनका संबंध तथाकथित होलोकॉस्ट से बचे से है। वह एक लेखक, फ़िल्म अध्ययन शोधकर्ता और फिल्म निर्माता होने के साथ इस्राईली सेना के पूर्व सैनिक भी हैं। हालिया दशकों में, ब्रेशीथ-ज़बनेर फ़िलिस्तीनियों के साथ इस्राईल के बर्ताव के मुखर आलोचक बन गए हैं। उनके विचार में, ब्रिटिश मीडिया भयावह रूप से इस्लामोफ़ोबिक, एम्पेरियलिस्ट और अंधा है।

यहां हम फ़िलिस्तीनी नरसंहार के लिए ब्रिटिश और इस्राईली मीडिया की पृष्ठभूमि के बारे में (the new arab) पत्रिका से सलवा अमोर (Salwa Amor) के सवालों के जवाब पर एक नज़र डालते हैं।

नफ़रत की आग भड़काने में इस्राईली मीडिया कितना कारगर रहा है?

इस्राईली मीडिया ग़ज़ा की जनता को अमानवीय प्राणियों के रूप में पेश करता है। वे फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा नहीं दिखाते और उन्हें इंसान के रूप में नहीं देखते। वे ग़ज़ा में होने वाले अपराधों को स्पष्ट रूप से नज़रअंदाज करते हैं। वे अपने सैनिकों के काले कारनामों को साहस और वीरता के रूप में पेश करते हैं। इस्राईली सेना को वास्तव में युद्ध के शिकार के रूप में दिखाया जाता है। मीडिया, इमारतों और सैनिकों पर बमबारी को गर्व से दिखाता है। वे यह नहीं दिखाते कि ये इस्राईली सैनिक फ़िलिस्तीनियों के साथ क्या कर रहे हैं।

आप एक ओर हमास की निंदा करने और दूसरी ओर इस्राईली नरसंहार की निंदा न करने की ज़िद के बारे में ब्रिटिश मीडिया की स्थिति को कैसे समझते हैं?

 मुझे लगता है कि ब्रिटिश मीडिया मीडिया भयावह रूप से इस्लामोफ़ोबिक, एम्पेरियलिस्ट और अंधा है। सभी अंग्रेज़ी मीडिया इस्राईली लॉबी के प्रभाव में हैं। वे इस्राईल के अप्रमाणित दावों को साझा करके जो कि निरा झूठ हैं, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नफ़रत भड़काते हैं। झूठ जैसे, "शिशुओं का सिर काटना, सामूहिक बलात्कार और लोगों को जिंदा जला दिया जाना वग़ैरह... यह सूची बहुत लंबी है। जब उनका झूठ उजागर होता है, तो ब्रिटिश मीडिया उन्हें अनदेखा कर देता है या उन्हें पूरी तरह से किनारे लगा देता है। हमास को कभी भी इस्राईल के झूठ का जवाब देने की अनुमति नहीं दी गई और ग़ज़ा में एक भी विदेशी पत्रकार के बिना, अंग्रेज़ी मीडिया यरूशलेम और तेल अवीव से इस्राईल के झूठ फैला रहा था। ब्रिटिश मीडिया ने नरसंहार को इस्राईल के अपनी रक्षा के अधिकार के रूप में दिखाया। ब्रिटिश सरकार 1917 की तरह ज़ायोनी कार्ड खेल रही है। ब्रिटिश साम्राज्य एक और अपराध को अंजाम दे रहा है। ब्रिटिश सरकार का मानना ​​है कि इस हक़ीक़त के बावजूद कि युद्ध अपराध करने वाले शासन को हथियार बेचना अवैध है, उन्हें और अधिक हथियार बेचती है।

इस्राईल के इस दावे से आप क्या समझते हैं कि उसकी कार्यवाही आत्मरक्षा है?

हमें यह जानना चाहिए कि युद्ध 7 अक्टूबर को शुरू नहीं हुआ। इसकी शुरुआत 125 साल से भी पहले हुई थी। इसका हमेशा का लक्ष्य, फ़िलिस्तीन पर कब्ज़ा करना रहा है। ज़ायोनिज़्म के संस्थापक थियोडोर हर्ज़ल ने फ़िलिस्तीन को निर्जन करने की अपनी योजना के तहत 1890 के दशक में नरसंहार के नज़रिए की बुनियाद डाली और तभी यह नज़रिया शुरुआत हुआ।1948  में, नज़रिया यह था कि एक फ़िलिस्तीनी गांव के लोगों को मार डाला जाए या वे ख़ुद ही डर के मारे दूसरे गांवों की ओर फ़रार कर जाए।  आज ग़ज़ा में जो हो रहा है वह फिलिस्तीन को फिलिस्तीनियों से खाली करने की हर्ज़ल की योजना का ही विकसित रूप है। हालांकि, हम और जनता, सिर्फ़ तमाशा देख रहे हैं और यद्यपि मुमकिन है कि वे हमें अहमियत न दें लेकिन हम भविष्य में उन पर मुक़द्दमा चलाने के लिए सबूत इकट्ठा करने और उनके युद्ध अपराधों की गवाही देकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वैसा ही जैसा कुछ नाज़ियों के साथ हुआ था।

 

 

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