ऐसा लगता है कि रूसी विदेश मंत्रालय भ्रमित हो गया है और उसका मानना है कि काल्पनिक ज़ंगज़ोर कॉरिडोर का उपयोग करके, निश्चित रूप से जिसका निर्माण ईरान के विरोध के कारण नहीं किया जा सकता, वह आर्मेनिया के साथ अपनी समस्या का समाधान निकाल सकता है।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया बाकू यात्रा के बाद, दक्षिण काकेशस क्षेत्र में कॉरिडोर के संबंध में रूस के सीनियर अधिकारियों के बयानों से पता चलता है कि पुतिन की टीम में भ्रामक सलाहकार भरे पड़े हैं। इस क्षेत्र के भूगोल के बारे में, ईरान की नीतियों और बुनियादी बातों के बारे में रूसी अधिकारियों को पूर्ण जानकारी का होना ज़रूरी है।
तसनीम न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक़, बाकू की पुतिन की यात्रा के बाद, रूस के विदेश मंत्री सरगेई लारोव ने एक इंटरव्यू में कहाः हम बाकू और येरेवन के बीच शांति संधि कराने और संचार में आने वाली रुकावटों को दूर करने के पक्ष में हैं।
उन्होंने आर्मेनियाई सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस मार्ग में रुकावट डाल रही है। उन्होंने कहाः दुर्भाग्य से, यह अर्मेनियाई नेतृत्व है जो आर्मेनिया के सिवनिक क्षेत्र से संचार के संबंध में प्रधान मंत्री पशिनियान द्वारा हस्ताक्षरित समझौते में बाधा डाल रहा है।
लावरोव का कहना थाः आर्मेनिया द्वारा ज़ंगज़ोर को बंद करने के कारण, क्षेत्र में संचार बहुत मुश्किल हो गया है।
रूसी विदेश मंत्री के इस बयान के मीडिया में अलग-अलग मतलब निकाल गए और ज़ांगज़ोर कॉरिडोर को खोलने की मास्को की इच्छा के बारे में अटकलें लगाई गईं। यह कॉरिडोर पूरब से पश्चिम में अर्मेनिया, आज़रबाइजान और नख़चिवान क्षेत्र तक होगा।
ईरान के वरिष्ठ अधिकारियों ने रूस, आज़रबाइजान , आर्मेनिया और तुर्की के अधिकारियों के साथ विभिन्न बैठकों में बार-बार इस गलियारे का विरोध किया है, क्योंकि इससे क्षेत्र में भू-राजनीतिक परिवर्तन हो जाएगा।
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा के हालिया बयानों के बाद रूस की इस स्थिति के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि ज़ंगज़ोर एक मार्ग है, जो आज़रबाइजान गणराज्य के मुख्य क्षेत्र को सिवनिक, आर्मेनिया के माध्यम से नख़चिवान तक को जोड़ सकता है। आर्मेनिया के साथ त्रिपक्षीय शांति वार्ता के ढांचे में ज़ंगज़ोर को अनब्लॉक करने पर निश्चित रूप से चर्चा की जाएगी।
ईरान की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर, ज़खारोवा का कहना थाः हम ज़ंगज़ोर कॉरिडोर के बारे में ईरान की चिंताओं से अवगत हैं। इस संबंध में अधिक स्पष्टीकरण, तेहरान ही दे सकता है, लेकिन इस मामले पर मॉस्को की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। हम इस तथ्य के आधार पर आगे बढ़ेंगे, कि कोई भी समाधान, आर्मेनिया, आज़रबाइजान और क्षेत्र के पड़ोसियों को स्वीकार्य होना चाहिए।
इस तरह की चर्चाओं के बाद, ईरान ने रूसी पक्ष को आवश्यक संदेश देने के लिए राजनयिक उपाय भी किए हैं, और विदेश मामलों के सहायक मंत्री और यूरेशिया के महानिदेशक मुजतबा दमीरची लू ने तेहरान में रूसी राजदूत को विदेश मंत्रालय में तलब करके तेहरान की आपत्ति से अवगत कर दिया था। इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ने उन्हें सूचित किया और उल्लेख किया कि राष्ट्रीय संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और देशों के आपसी हितों का सम्मान, काकेशस में स्थायी शांति की गारंटी और क्षेत्रीय सहयोग का आधार है।
इसके अलावा, रूस में ईरान के राजदूत ने रूस के विदेश मंत्रालय के हालिया बयानों पर ईरान की आपत्ति दर्ज करा दी थी।
रूसी अधिकारियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण सिफ़ारिशें
सबसे पहले यह कि रूसी विदेश मंत्रालय ने ऐसे बयान दिये जो ईरान की अपेक्षाओं के विपरीत थे। कई मौकों पर मास्को को तेहरान की स्पष्ट स्थिति के बारे में सूचित किया जा चुका है। ईरान ज़ंगज़ोर और अन्य ऐसे किसी भी प्रकार के गलियारे के ख़िलाफ़ है, जो नख़चिवान को आज़रबाइजान से जोड़ता है। इसलिए मास्को का यह रुख़, आश्चर्यजनक है!
दूसरा, मॉस्को के अधिकारी अच्छी तरह से जानते हैं कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, एक स्वतंत्र देश के रूप में, हमेशा अमेरिका और पश्चिम और उन सभी का विरोध करता रहा है, जो क्षेत्र और दुनिया पर वर्चस्व जमाने का प्रयास करते हैं। इस्लामी क्रांति के बाद, वैश्विक ग़ुंडागर्दी के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होना, तेहरान की बुनियादी रणनीतियों में से एक है।
तीसरे यह कि ईरान अपनी सीमा या सुरक्षा से संबंधित किसी भी हिस्से में किसी भी बदलाव को स्वीकार नहीं करता है।
चौथा, किसी भी नियम के अनुसार, दक्षिण काकेशस के किसी भी देश की सुरक्षा और भू-राजनीतिक स्थिति को, दूसरों पर प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है। तो हमारे रूसी मित्र ऐसा क्यों सोचते हैं कि उन्हें आर्मेनिया के साथ अपनी समस्याओं को हल करने के लिए ज़ंगज़ोर कॉरिडोर का उपयोग करना चाहिए?
पांचवां, जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चरम पर था, अमरीकी नाटो की केचली में किसी सांप की तरह, दक्षिण काकेशस में एक रास्ता खोलना चाहते थे। तो इस्लामी गणतंत्र ईरान अपनी पूरी ताक़त से नाटो और अमेरिका के सामने खड़ा हो गया। जिसके बाद, बाइडन सरकार ने कहा था कि ईरान, ज़ंगज़ोर कॉरिडोर के उद्घाटन में एकमात्र बाधा है।
रूस को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि जब यह देश पिछले दो वर्षों से यूक्रेन के मुद्दे पर उलझा हुआ था, तो यह ईरान ही था, जो क्षेत्र में पश्चिमी शक्तियों की वर्चस्ववादी चालों के सामने डट गया और उसने उनकी कोई भी चाल सफल नहीं होने दी।
अब जब ईरान ने स्पष्ट रूप से अपने रुख़ की घोषणा कर दी है और इस मुद्दे पर सभी पक्षों द्वारा ईरान का पक्ष स्वीकार भी किया जाता है, तो रूस ने यह घोषणा क्यों की है? यह एक आश्चर्यजनक बात है!
छठा बिंदु यह है कि दोनों देशों के अधिकारी रणनीतिक संबंधों की स्थापना की तैयारी कर रहे हैं, और यह इस्लामी गणराज्य ईरान की इच्छाशक्ति का संकेत है।
इस्लामिक गणराज्य ईरान के साथ राष्ट्रपति पुतिन के रणनीतिक संबंधों को मज़बूत बनाने पर ज़ोर देने के बावजूद, रूसी विदेश मंत्रालय का यह रुख़ आश्चर्यजनक है!
ऐसा लगता है कि रूसी विदेश मंत्रालय के लिए "रणनीतिक संबंधों" के व्यावहारिक अर्थ को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए।
यहां यह उल्लेखनीय है कि ज़ंगज़ोर कॉरिडोर खोलने का मतलब, यूरोप की ओर ईरान के एक द्वार को बंद करना और इस्लामी गणतंत्र ईरान के पड़ोसियों की संख्या 15 से घटाकर 14 करना है।
ईरान और रूस जिस "रणनीतिक संबंध" की अवधारणा की तलाश में हैं, उसके अनुसार इस तरह के सामरिक क़दम उठाना, रणनीतिक संबंधों के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
अगर कोई देश यह सोचता है कि वह दूसरों की क़ीमत पर संघर्ष का नया मोर्चा खोलकर अपनी सीमाओं के बाहर अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है, तो वह ग़लत सोच रहा है