ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि इस्लामी क्रांति के साथ वर्चस्ववादी व्यवस्था की शत्रुता का मुख्य कारण इस क्रांति का मुख्य संदेश है जिसमें अत्याचारियों के विरुद्ध संघर्ष और अन्य लोगों पर अत्याचार करने से रोका गया है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मंगलवार को तेहरान में इस्लामी क्रांति के सुरक्षाबल, सिपाहे पासदारान के कमाण्डरों, कर्मचारियों और वरिष्ठ लोगों के साथ भेंट में क्रांति की सुरक्षा के विषय को समझाते हुए कहा कि वर्चस्ववादी व्यवस्था ने विश्व को अत्याचारियों और अत्याचार सहन करने वालों जैसे दो भागों में बांट रखा है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति, अत्याचार से दूरी का संदेश अपने साथ लाई और उसका यह संदेश, देश की सीमाओं के बाहर गया जिसका राष्ट्रों से स्वागत किया। वरिष्ठ नेता ने कहा कि तानाशाही और वर्चस्ववाद पर निर्भर सरकारों तथा अन्तर्राष्ट्रीय लुटेरों ने युद्ध भड़काने, ग़रीबी बढ़ाने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसी नीतियां अपना रखी हैं और इस्लाम की ओर से इन नीतियों का विरोध ही उनकी शत्रुता का मुख्य कारण है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने स्पष्ट किया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, न केवल अमरीका और ग़ैर अमरीका के लिए बल्कि अपनी इस्लामी आस्था के आधार पर परमाणु शस्त्रों के प्रयोग का विरोधी है किंतु ईरान की शांतिपूर्ण परमाणु गतविधियों के विरोधियों का मुख्य लक्ष्य कुछ और ही है। वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार सिपाहे पासदारान की उपलब्धियों को एक सफल राष्ट्र के अनुभवों, उसके व्यक्तित्व, गहरी पहचान और सफलता का परिचायक बताते हुए कहा कि दृढ़ता के साथ क्रांतिकारी बाक़ी रहना ही सिपाहे पासदारान की सुन्दर उपलब्धि है। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आगे कहा कि इस्लामी क्रांति के सुरक्षाबल, संसार के भीतर परिवर्तन या देश के भीतर परिवर्तन की आवश्यकता के बहाने मुख्य मार्ग से कभी नहीं हटे। वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि क्रांति की सुरक्षा के लिए इस्लामी क्रांति के सुरक्षाबलों को, परिवर्तनों और विभिन्न प्रक्रियाओं की उचित एवं पर्याप्त जानकारी रखनी चाहिए कहा कि इस बात की आवश्यकता नहीं है कि यह संगठन, राजनीति के क्षेत्र में भी गतिविधियां करे किंतु क्रांति की सुरक्षा के लिए उसे हर आयाम और हर ओर से चौकन्ना रहना चाहिए। वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरानी राष्ट्र, तार्किक और वैज्ञानिक आधारों पर आगे बढ़ रहा है किंतु शत्रु, अपने आंतरिक विरोधाभासों या अन्तर्विरोधों के कारण पीछे की ओर जा रहा है जिससे वह कमज़ोर होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि एसी स्थिति में स्वभाविक है कि भविष्य केवल उसी का है जो तार्किक, सुनियोजित और वैज्ञानिक ढंग से आगे बढ़ रहा है।