इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई के विचार
ईरान में इस समय चुनावी वातावरण छाया हुआ है और 11वां राष्ट्रपति चुनाव निकट आ रहा है। इस संदर्भ में जहां और अनेक विषय चर्चा में हैं वहीं शूराए निगहबान या संविधान निरीक्ष परिषद का नाम भी चर्चा में है। शूराए निगहबान ईरान की एक निरीक्षक संस्था है जिसके 12 सदस्य होते हैं। छह सदस्य धर्म शस्त्र के विशेषज्ञ जिनको नियुक्त या बर्ख़ास्त करना इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के अधिकारक्षेत्र में होता है जबकि अन्य छह सदस्य क़ानून विद होते हें जो न्यायालिका की सिफ़ारिश से और संसद की स्वीकृति प्राप्त करके इस परिषद में आते हैं।
संसद में पास होने वाले सभी क़ानूनों और देश में होने वाले चुनावों के प्रत्याशियों को इस परिषद की स्वीकृति मिलना आवश्यक है।
इस सप्ताह हम कार्यक्रम मार्गदर्शन में इसी शूराए निगहबान या संविधान निरीक्षक परिषद के बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के विचार पेश कर रहे हैं। हम इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के विभिन्न भाषणों से शूराए निगहबान से संबंधित भागों को एकत्रित करके आपकी सेवा में पेश कर रहे हैं।
शूराए निगहबान या संविधान निरीक्षक परिषद एक पवित्र संस्था है क्योंकि इसका आधार ईश्वरीय भय पर रखा गया है। इस संस्था में उन लोगों को रखा जाता है जो न्यायप्रेमी और धर्मशास्त्री होते हैं। संविधान निरीक्षक परिषद अपने काम और फ़ैसलों में विश्वसनीय है। सबको चाहिए कि इस संस्था को ईमानदार संस्था के रूप में देखें। जब कोई जज फ़ैसला सुनाता है तो संभव है कि उस समय किसी व्यक्ति के मन में कोई आपत्ति हो और वह आपत्ती ठीक भी हो किंतु जज का फ़ैसला सबको मानना होता है।
अब जहां एक ओर इस संस्था पर जनता का भरोसा है वहीं इस संस्था का क्रियाकलाप भी एसा होना चाहिए कि वह जनता के विश्वास की पात्र बनी रहे। संस्था को चाहिए कि इस प्रकार से काम करे कि अलग अलग राजनैति रुजहान रखने वालों को चुनावों में भाग लेने का अवसर मिले। किसी भी राजनैतिक रुजहान के समूह को इस शिकायत का अवसर नहीं मिलना चाहिए कि चुनावी मैदान में उसका प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है। संस्था को इस प्रकार काम करना चाहिए कि हर जगह हर व्यक्ति को यह संतोष रहे कि वह अपनी पसंद के प्रत्याशी का चयन कर सकता है।
इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की मज़बूती उसकी पहिचान की सुरक्षा पर निर्भर है और इस पहिचान की सुरक्षा निरीक्षक परिषद के हाथ में है। यदि यह संस्था न होती तो धीरे धीरे इस्लामी व्यवस्था की पहिचान और उसके मूल स्तंभों में परिवर्तन होने लगता। शूराए निगहबान वह संस्था है जिसे इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान ने इस व्यवस्था की सत्यता को सुनिश्चित करने वाली संस्था घोषित किया है। यदि शूराए निगहबान न हो, या कमज़ोर पड़ जाए या अपना काम न करे तो ईरान की शासन व्यवस्था की इस्लामी कार्यशैली और प्रगति पर सवालिया निशान लग जाएगा। क्योंकि कोई भी व्यवस्था हो वह क़ानून के आधार पर आगे बढ़ती है। यदि क़ानून इस्लामी हुए तो ईरान की शासन व्यवस्था भी इस्लामी ही रहेगी। कौन सी संस्था है जो यह सुनिश्चित करे कि सारे क़ानून इस्लामी हैं? साफ़ है कि यह काम शूराए निगहबान या निरीक्षक परिषद का है।
इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था में शूराए निगहबान अन्य संस्थाओं की भांति नहीं है कि कहा जाए कि विभिन्न संस्थाएं हैं जिनमें कुछ बहुत महत्वपूर्ण हैं जबकि कुछ का महत्व इतना अधिक नहीं है और यह संस्था भी इसी सूचि में शामिल है। नहीं एसा नहीं है। शूराए निगहबान इस्लामी व्यवस्था के संविधान का दर्जा रखती है।
चुनाव में मतदाताओं की ओर से डाले गए वोटों की सुरक्षा अनिवार्य है। एक एक वोट की सुरक्षा होनी चाहिए, इसमें कोई कोताही सहनीय नहीं है। भला यह भी संभव है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के चुनाव में कोई यह साहस करे कि जनता के वोटों से छेड़छाड़ करे?! सबसे पहली बात तो यह है कि शूराए निगहबान, न्यायप्रेमी, होशियार और बहुत सावधानी और सतर्कता से काम करने वाली संस्था है। चुनावों के संबंध में वह किसी गड़बड़ी की कोई गुंजाइश ही नहीं रहने देती। इसके सदस्य क्रान्ति प्रेमी और धर्म परायण लोग हैं जिन पर देश को पूरा भरोसा है। उन्हें संसद से विश्वासमत प्राप्त हुआ है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की ओर से भी पूरी सतर्कता बरती जाती है कि चुनावों में कहीं कोई गड़बड़ी न होने पाए। और अगर मान लिया जाए कि कहीं कोई छोटी मोटी गड़बड़ी हुई है तो इससे पूरे चुनाव के पारदर्शी परिणामों पर असर नहीं पड़ने पाता।
चुनाव की पारदर्शिता पोलिंग और मतगणना तक ही सीमित नहीं है बल्कि सही चुनाव वह है जिससे पहले स्वस्थ चुनावी वातावरण बने। एसा वातावरण है जिसमे मतदाताओं को खुले मन से फ़ैसला करने का भरपूर मौक़ा मिले। मतदाताओं को यह अवसर अवश्य मिलना चाहिए कि वे सोच समझकर फ़ैसला करें। एसा कोई भी क़दम जो चुनावी वातावरण को अस्वस्थ बना दे और जिससे मतदाता इस प्रकार प्रभावित हो जाएं कि उनकी चयन क्षमता कमज़ोर हो जाए, ग़लत है। इस बिंदु पर चुनाव से पहले विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। जो चुनावी अभियान चलाया जाता है, जो भी क़दम उठाए जाते हैं, विशेष रूप से मीडिया जो काम करता है प्रत्याशियों को पहचनवाने या उनकी छवि बिगाड़ने के संबंध में या लोगों की ब्रेन वाशिंग करने के संबंध में और जिसके द्वारा लोगों के ध्यान को किसी विशेष दिशा में केन्द्रित करवा दिया जाता है, वह ग़लत हैं। यदि चुनावी अभियान में शामिल लोग या उनका चुनावी अभियान अथवा मीडिया की गतिविधियां एसा वातावरण उत्पन्न कर दें जिसमें लोगों से उनकी कुछ सोचने समझने और चयन करने की शक्ति ही छिन जाए तो इससे चुनाव को आघात पहुंचेगा।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान में शूराए निगहबान या निरीक्षक परिषद को निरीक्षण का काम सौंपने का उद्देश्य पूरी प्रक्रिया को संपूर्ण ढंग से विश्वसनीय और भरोसेमंद बनाना है। किसी भी अन्य संस्था को यदि चुनावों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई होती तो संभव था कि कुछ लोगों में मन में कुछ सवाल उत्पन्न होते। अर्थात देश के भीतर मौजूद संस्थाओं में कोई भी संस्था एसी नहीं थी कि जिसके निरीक्षण में चुनावों का आयोजन इतना विश्वासीय हो पाता जितना शीराए निगहबान के निरीक्षण में होता है। संविधान में चुनावों के निरीक्षण का दायित्व शूराए निगहबान को सौंपे जाने का फ़ैसला बौद्धिक परिपक्वता का प्रतीक है।