लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा है कि तकफ़ीरी गुट अपने पाश्विक कार्यों से पैग़म्बरे इस्लाम, पवित्र क़ुरआन और मुसलमानों का अनादर कर रहे हैं।
उन्होंने शुक्रवार को पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस और एकता सप्ताह के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि वह लोग जो लोगों को गर्दनें काट रहे हैं वह स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम का रक्षक नहीं कह सकते।
उन्होंने कहा कि तकफ़ीरियों ने इस्लाम का जितना अनादर किया है वह इस्लामी इतिहास में अभूतपूर्व है। हिज़्बुल्लाह लेबनान के सेक्रेट्री जनरल ने कहा कि अब इस्लाम की रक्षा का समय आ गया है तो हम को वैसे ही करना होगा जैसा हज़रत इमाम हुसैन ने करबला के मैदान में किया था क्योंकि इमाम हुसैन ने इस्लाम को बचाया और यह एक ऐसी ज़िम्मेदारी है जो समस्त इस्लामी महापुरुषों के कांधे पर है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने अफ़ग़ानिस्तान से सीरिया और इराक़ की ओर आतंकियों की प्रगति की ओर संकेत करते हुए कहा कि आतंकी अब उन देशों तक पहुंच गये हैं जो उनके समर्थक थे और जिन्होंने उनके लिए भूमि प्रशस्त की और इस विषय की ओर से पहले ही सचेत किया गया था। उन्होंने बल दिया कि देश की सशस्त्र सेना के जवान और प्रतिरोध के साहसी योद्धा जो कठिन परिस्थितियों में ज़ायोनी शासन और तकफ़ीरी आतंकियों के मुक़ाबले में देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं, पैग़म्बरे इस्लाम के वास्तविक अनुयायी और वास्तविक नायक हैं। उन्होंने हिज़्बुल्लाह और अल मुसतक़बल पार्टी के मध्य वार्ता के बारे में कहा कि वार्ता सही डगर पर है और वार्ता के परिणामदायक की होने की पूरी संभावना है। उन्होंने कहा कि यह सही नहीं है कि देश का राष्ट्रपति विदेशी सहमति के आधार पर चुना जाए और देश के राजनैतिक धड़ों को देश के भीतर वार्ता करनी चाहिए और उन्हें क्षेत्रीय और विदेश सहमति की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।
उन्होंने बहरैन के विपक्षी नेता शैख़ अली सलमान की गिरफ़्तारी और इस देश के हालिया परिवर्तनों की ओर संकेत करते हुए कहा कि गिरफ़्तारियां और शैख़ सलमान की हिरासत की अवधि में वृद्धि, ख़तरनाक क़दम है। उन्होंने कहा कि आले ख़लीफ़ा शासन, ज़ायोनी शासन की भांति विदेशियों को नागरिकता प्रदान करके देश की जनसंख्या के ढांचे को परिवर्तन करने के प्रयास में है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि बहरैन की जनता अपनी संस्कृति और शैख़ ईसा क़ासिम और शैख़ अली सलमान जैसे धार्मिक नेताओं के नेतृत्व से संपन्न होने के कारण, हिंसक आंदोलन नहीं चला रही है।