अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने केंद्र सरकार के उस दावे को ख़ारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरउद्दीन शाह ने कहा है कि संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा यूनिवर्सिटी के लिए ज़िंदगी और मौत का सवाल है।
वास्तव में वर्तमान केंद्र सरकार ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से सुप्रीम कोर्ट में इंकार कर दिया है।
सोमवार को अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने जस्टिस जेएस शेखर, जस्टिस एमवाई इक़बाल और जस्टिस सी नगप्पन की बेंच को बताया कि भारत सरकार का मत है कि अलीगढ़ यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी नहीं है। भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और हम यहां माइनॉरिटी संस्था का गठन होते हुए नहीं दिखना चाहते।
मोदी सरकार के इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए शाह ने कहा है कि यह भारतीय समाज में सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े हुए मुसलमानों के शिक्षा और तरक़्क़ी का सवाल है। सरकार ने भले ही अपना रूख़ पलट लिया है, लेकिन हम अदालत में अपने मक़सद के लिए मरते दम तक लड़ेंगे।
उल्लेखनीय है कि 4 अक्टूबर 2005 को अलाहबाद उच्च न्यायालय द्वारा एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को ग़लत क़रार दिए जाने के बाद एएमयू और तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी।
इस पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश ए.एन. रे और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि जिस तरह मुसलमानों को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है वह असंवैधानिक और ग़लत है।
जबकि केंद्र सरकार ने वर्ष 2004 में 25 फ़रवरी को एक अधिसूचना जारी करके एएमयू में मुसलमानों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था। केंद्र सरकार की इसी अधिसूचना के ख़िलाफ़ एक याचिका दायर की गई थी।
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले को कई बार अदालतों में चुनौती दी गई है।
1968 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा था कि विश्वविद्यालय केंद्रीय विधायिका द्वारा स्थापित किया गया है और इसे अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
लेकिन तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इस फ़ैसले को प्रभावहीन करते हुए 1981 में संविधान संशोधन विधेयक लाकर एएमयू को अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया था।
इंदिरा गांधी सरकार के इस फ़ैसले के विरोध में बीजेपी व आरएसएस से जुड़ी अन्य संस्थाएं सबसे आगे थीं।
अलाहबाद उच्च न्यायलय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील के बावजूद तत्कालीन यूपीए सरकार ने इसमें ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई और इसे एक राजनीतिक मुद्दे के तौर पर ज़िंदा रखने की कोशिश की गई।
ग़ौरतलब है कि 1920 में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज को भंग कर एएमयू एक्ट लागू किया गया था। संसद ने 1951 में एएमयू संशोधन एक्ट पारित कर इसके दरवाज़े ग़ैर मुसलमानों के लिए भी खोल दिए थे।
इस मामले की अब अगली सुनवाई 4 अप्रैल, 2016 को होनी है।