رضوی

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तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोगन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन जारी है इस्तांबुल के मेयर की गिरफ्तारी के बाद अर्दोग़ान के खिलाफ शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन थमने का कोई संकेत नहीं है जनता में गुस्सा बढ़ रहा है जिसके चलते कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं।

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोगन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन जारी है इस्तांबुल के मेयर की गिरफ्तारी के बाद अर्दोग़ान के खिलाफ शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन थमने का कोई संकेत नहीं है जनता में गुस्सा बढ़ रहा है जिसके चलते कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं।

राष्ट्रपति चुनाव में अर्दोग़ान के खिलाफ उतरने का ऐलान करने वाले इस्तांबुल के मेयर इकराम इमामोग़्लू के मामले की सुनवाई करते हुए तुर्की की एक अदालत ने उनकी हिरासत बढ़ाने का आदेश दिए हैं, इस आदेश के बाद देश में हो रहे प्रदर्शनों के और तेज होने की आशंका है।यह गिरफ्तारी राष्ट्रपति अर्दोग़ान के खिलाफ बढ़ते विरोध का संकेत है और देश में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकती है।

इमामोग्लू की परेशानी अदालत ने और बढ़ा दी है, अदालत ने इमामोग्लू को भ्रष्टाचार के आरोपों पर मुकदमे का नतीजा आने तक जेल में रखने का आदेश दिया है, जिसके बाद उनके समर्थन में होने वाले प्रदर्शनों के उग्र होने की आशंका जताई जा रही है।

इमामोग्लू को एक प्रमुख विपक्षी नेता और लंबे समय से राष्ट्रपति अर्दोग़ान का संभावित प्रतिद्वंदी माना जाता है, उन्हें बुधवार को सरकार ने कथित भ्रष्टाचार और आतंकवाद के आरोप में हिरासत में ले लिया था। जिसकी वजह से देशभर में प्रदर्शन शुरू हुए थे। इमामोग्लू ने सभी आरोपों से इनकार करते हुए इन्हें ‘बदनाम करने के अभियान’ का हिस्सा बताया है।

इमामोग्लू के सहयोगी अंकारा के मेयर मंसूर यावस ने मीडिया से कहा कि जेल जाना न्यायिक प्रणाली के लिए अपमानजनक है।

मस्जिद ए मुक़द्दस जमकरान के ख़तीब ने कहा,गुनहगार अल्लाह की रहमत से निराश न हों अगर कोई गलती या गुनाह हो जाए तो इमाम-ए-ज़माना अ.ज. के दरबार में तौबा करें और उनसे दुआ की दरख़्वास्त करें कि वे ख़ुदा से आपके गुनाहों की माफ़ी माँगें।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद हुसैन मोमनी ने मस्जिद ए मुक़द्दस जमकरान में माह-ए-रमज़ान की 23वीं रात की महफ़िल में अपने ख़ुत्बे में कहा,अगर इंसान सच्चे दिल से नदामत (पछतावे) के साथ ख़ुदा के सामने तौबा करे तो उसकी तौबा ज़रूर क़ुबूल होती है।

रमज़ान की पवित्र रातों का महत्व,19वीं रात दुआ और इल्तिजा (विनती) की रात है,21वीं रात दुआ के स्थिर होने की रात, 23वीं रात, इमाम ए ज़माना अ.ज.के ज़रिए दुआओं पर मुहर लगने की रात

शब-ए-क़द्र का चमत्कार,इस एक रात में इंसान 80 साल के गुनाहों की तलाफ़ी (क्षतिपूर्ति) कर सकता है रिवायतों के अनुसार, जो कोई शब-ए-क़द्र में जागता है अल्लाह उसके सारे गुनाह माफ़ कर देता है। 

तौबा और मग़फ़िरत की दरख़्वास्त,गुनहगारों को चाहिए कि वे अल्लाह की रहमत से निराश न हों। इस मुबारक रात में इमाम-ए-ज़माना अ.ज. के दरबार में तौबा करें और उनसे दुआ की गुज़ारिश करें कि वे ख़ुदा से उनकी मग़फ़िरत की सिफ़ारिश करें। 

मुहासिबा की रात,शब-ए-क़द्र मुहासिब की रात है हमें अल्लाह से दुआ करनी चाहिए कि वह हमारे गुनाहों के बुरे असरात को हमसे दूर कर दे।हमें अपने जीवन का पांच चीज़ों के आधार पर मुहासिबा करना चाहिए,वाजिबात,मुहर्रमात,मुस्तहब्बात,अल्लाह के सामने इख़्लास

शब-ए-क़द्र अल्लाह की रहमत और मग़फ़िरत की रात है हमें इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर सच्चे दिल से तौबा करनी चाहिए और अपने अमल का मुहासिबा करना चाहिए।

 

क़ुम प्रांत की इस्लामी प्रचार परिषद ने सम्मानित और क्रांतिकारी जनता को विश्व क़ुद्स दिवस की रैली में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया।

क़ुम प्रांत की इस्लामी प्रचार परिषद ने सम्मानित और क्रांतिकारी जनता को विश्व क़ुद्स दिवस की रैली में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया।

आमंत्रित पत्र कुछ इस प्रकार है:

फ़िलिस्तीन का मुद्दा जो इस्लामी जगत का एक महत्वपूर्ण विषय है न केवल पीड़ित फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन का प्रतीक है बल्कि इससे बढ़कर यह अत्याचार के खिलाफ संघर्ष और मज़लूमों की रक्षा का भी प्रतिनिधित्व करता है।

यह ईरानी इस्लामी गणराज्य की विदेश नीति का एक अभिन्न हिस्सा है और इस आंदोलन के संस्थापक, आयतुल्लाह इमाम ख़ुमैनी (रह.) की वैचारिक एवं धार्मिक धरोहर का प्रतीक भी है। जैसा कि इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने फ़रमाया आज फ़िलिस्तीन की रक्षा करना केवल फ़िलिस्तीन की सुरक्षा नहीं बल्कि एक व्यापक सत्य की रक्षा करना है।

अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस अत्याचारी ज़ायोनी शासन के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है यह न केवल सभी मुस्लिमों को बल्कि पूरी दुनिया के स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों को एकजुट करने वाला दिन है जो अन्याय और बर्बरता की निंदा करते हुए अत्याचार के शिकार लोगों के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं।

इस्लामी प्रचार समन्वय परिषद, क़ुम प्रांत, इस पवित्र महीने में सभी की इबादतों की क़ुबूलियत की दुआ करते हुए हज़रत अली (अ.स.) के इस उपदेश का पालन करने की अपील करती है कि हमें हर हाल में मज़लूमों का समर्थन करना चाहिए।

परिषद क़ुम प्रांत के समस्त सम्मानित नागरिकों को आमंत्रित करती है कि वे दुनिया के सभी मुस्लिमों और स्वतंत्रता-प्रेमियों के साथ मिलकर अली अलअहद या क़ुद्स के नारे के साथ शुक्रवार,को क़ुद्स दिवस की रैली में भाग लें।

क़ुद्स दिवस रैली का कार्यक्रम:

समय व स्थान: सुबह 10 बजे, पवित्र दरगाह हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ.) के पैगंबर ए आज़म स. प्रांगण में एकत्रित होना।

अंतर्राष्ट्रीय कुद्स दिवस के अवसर पर जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के बयान का पाठ इस प्रकार है:

अंतर्राष्ट्रीय कुद्स दिवस के अवसर पर जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के बयान का पाठ इस प्रकार है

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

रमजान के पवित्र महीने के अंतिम शुक्रवार को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय कुद्स दिवस हमारे इमाम की रणनीतिक और स्थायी स्मृति है, और यह दिन फिलिस्तीनी मुद्दे को जीवित रखने तथा इस्लामी दुनिया के लिए एक केंद्रीय और मौलिक मुद्दे के रूप में इसे न भूलने देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

फिलिस्तीन के उत्पीड़ित लोगों का समर्थन करके, इस्लामी ईरान ने दृढ़ता दिखाई और अपनी प्रामाणिक इस्लामी पहचान को उजागर किया, इमाम अली (अ) की इच्छा के अनुसार "उत्पीड़क का दुश्मन और उत्पीड़ितों का सहायक बनना।" उन संघर्षों के बदले में, फिलिस्तीन और पवित्र कुद्स इस्लामी दुनिया का प्राथमिक मुद्दा बने हुए हैं।

उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों ने वर्षों तक उत्पीड़न और अलगाव में अपने पवित्र शहर येरुशलम और अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए लड़ाई लड़ी, और आज, कुछ इस्लामी देशों के विश्वासघात और निष्क्रियता के बावजूद, ज़ायोनी शासन की कमजोरी और गिरावट की प्रक्रिया तेज हो गई है।

अल-अक्सा तूफान की महान घटना ने यह दिखा दिया कि निष्ठा और धैर्य से किया गया संघर्ष शक्ति पैदा करता है, और अल-अक्सा तूफान के बाद प्रतिरोध मोर्चा इजरायल के लिए अधिकार और शक्ति के समीकरणों को बाधित करने में सक्षम रहा है। फिलीस्तीन और लेबनान में हाल ही में हुए गाजा युद्ध के दौरान ज़ायोनीवादियों के पागलपन भरे अपराधों ने सभी के सामने अतिक्रमणकारी शासन की चरम क्रूरता और हताशा को उजागर कर दिया, और दुनिया ने अपनी आँखों से देखा कि इजरायल युद्ध के मैदान में अपनी कमजोरियों का बदला शिशुहत्या, नरसंहार और अस्पतालों और स्कूलों के विनाश के साथ ले रहा था।

वर्षों की वार्ता और समझौता योजनाएं न केवल उत्पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों को बहाल करने में विफल रही हैं, बल्कि अपराधी ज़ायोनी शासन को हत्या और रक्तपात करने के लिए प्रोत्साहित भी किया है। आज इस्लामी उम्माह, स्वतंत्रता-प्रेमी लोग और विश्व के बुद्धिजीवी भी इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं कि फिलिस्तीनी मुद्दे का समाधान इस्लामी दुनिया में उग्रवादी और प्रतिरोधी गुट को मजबूत करना और हड़पने वाली सरकार और उसके समर्थकों के खिलाफ संघर्ष को तेज करना है। निश्चय ही, एक महाकाव्य और सुनियोजित संघर्ष शत्रु को पराभव की स्थिति तक पीछे हटने पर मजबूर कर देगा, और संघर्ष के मार्ग से यरूशलेम की मुक्ति का दिन आएगा।

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम ईरान, लेबनान और फ़िलिस्तीन में क़ुद्स की मुक्ति के मार्ग के महान शहीदों, विशेष रूप से गौरवशाली शहीदों हाजी क़ासिम सुलेमानी, सय्यद हसन नसरुल्लाह, सय्यद हाशिम सफ़ीउद्दीन, डॉ. इस्माइल हनीया, याह्या सिनवार और अन्य कमांडरों और सेनानियों के नाम और स्मृति का सम्मान करते हुए घोषणा करता है:

इन शहीदों का खून प्रतिरोध मोर्चे की ताकत और महानता में वृद्धि करेगा, और इस्लामी प्रतिरोध के लड़ाके इजरायल को नष्ट करने की अपनी इच्छा में और अधिक दृढ़ हो जाएंगे।

गाजा और फिलिस्तीन के संबंध में ट्रम्प की नापाक योजनाएँ कहीं नहीं पहुँचेंगी, और दुनिया इस धौंस और ज्यादतियों के खिलाफ खड़ी होगी।

कुद्स दिवस इस्लामी राष्ट्र के पुनरुत्थान और एकजुट इस्लामी राष्ट्र की शक्ति के प्रदर्शन का दिन है। अंतर्राष्ट्रीय कुद्स दिवस मार्च में ईरान के वीर और लड़ाकू राष्ट्र, विशेष रूप से उत्साही युवाओं की उत्साहपूर्ण और महाकाव्यात्मक भागीदारी, फिलिस्तीन के उत्पीड़ितों के प्रति समर्थन की घोषणा है और वैश्विक अहंकार और आपराधिक ज़ायोनीवाद के खिलाफ संघर्ष के मार्ग को जारी रखने के लिए स्वर्गीय इमाम के साथ किए गए संकल्प को नवीनीकृत करती है। आशा है कि प्रिय राष्ट्र के सभी वर्ग इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस में सक्रिय रूप से भाग लेंगे और एक बार फिर फिलिस्तीनी इस्लामी प्रतिरोध के प्रति अपना समर्थन तथा फिलिस्तीनी लड़ाकों की सहायता के लिए अपनी तत्परता की घोषणा करेंगे। निस्संदेह, इस दिन उपवास करने वाले मोमिनों के दृढ़ कदम इजरायल के खिलाफ लड़ाई में एक महान जिहाद हैं।

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम

 

आयतुल्लाह ईल्म अलहुदा ने सामाजिक जीवन में दीन-ए-खुदा की मदद करने की अहमियत पर ज़ोर दिया और कहा, अगर भौतिकवादी और अहंकारी प्रवृत्तियों के खिलाफ प्रतिरोध नहीं हुआ तो इबादतगाहें तबाह हो जाएंगी।

मशहद के इमाम-ए-जुमा आयतुल्लाह सैयद अहमद इल्म अलहुदा ने हुसैनिया दफ्तर-ए-नुमाइंदा-ए-वली-ए-फकीह खुरासान रिज़वी में सूरह हज की आयत नंबर 40

الَّذِینَ أُخْرِجُوا مِنْ دِیَارِهِمْ بِغَیْرِ حَقٍّ... وَلَیَنْصُرَنَّ اللَّهُ مَنْ یَنْصُرُهُ إِنَّ اللَّهَ لَقَوِیٌّ عَزِیزٌ"
की तफ्सीर बयान करते हुए कहा,जिन लोगों को उनके घरों से बिना किसी हक के निकाला गया, और अल्लाह उसकी ज़रूर मदद करेगा जो उसकी मदद करेगा बेशक अल्लाह ताक़तवर और ग़ालिब है।इस आयत में सबसे पहला नुक्ता यह है कि जो खुदा की मदद करता है खुदा भी उसकी मदद करता है। 

उन्होंने कहा, जब कोई दीन-ए-खुदा की मदद के लिए मैदान में आता है और मुस्तकबिरों के ज़ुल्म-ओ-जबर से बंदगान-ए-खुदा को निजात दिलाने की कोशिश करता है तो जब तक वह इस राह पर रहेगा खुदा भी उसकी मदद करेगा। 

हौज़ा-ए-इल्मिया खुरासान की आला कौंसिल के इस सदस्य ने कहा, आज दुनिया में इस्लाम को निशाना बनाया जा रहा है। तारीख-ए-इस्लाम के शुरू से लेकर आज तक जितना इस दौर में नबी-ए-अकरम (स.अ.व.व) की मुबारक ज़ात पर हमला हो रहा है, पहले कभी नहीं हुआ। आज दुनिया की तमाम ताक़तें इस्लामी फिक्र के खिलाफ जंग लड़ रही हैं जिनमें सबसे आगे अमेरिका है।

उन्होंने कहा, जो भी वैश्विक व्यवस्था (Global Order) का नज़रिया रखता है वह इस्लाम का दुश्मन है उन्होंने सवाल उठाया कि क्यों दुनिया के दूसरे मुल्क इसराइल द्वारा लेबनान और ग़ज़ा के लोगों पर ढाए जा रहे मज़ालिम के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाते?

इसका सबब यह है कि वे इस्लाम को मिटाने के अमेरिकी मंसूबे में शरीक हैं इसलिए इन हालात में इस्लाम-दुश्मनों के खिलाफ मुक़ाबला करना हमारा फ़र्ज़ है।

 

सोमवार, 24 मार्च 2025 19:12

क़ुरआने मजीद और नारी

इस्लाम में नारी के विषय पर अध्धयन करने से पहले इस बात पर तवज्जो करना चाहिये कि इस्लाम ने इन बातों को उस समय पेश किया जब बाप अपनी बेटी को ज़िन्दा दफ़्न कर देता था और उस कुर्रता को अपने लिये इज़्ज़त और सम्मान समझता था। औरत दुनिया के हर समाज में बहुत बेक़ीमत प्राणी समझी जाती थी। औलाद माँ को बाप की मीरास में हासिल किया करती थी। लोग बड़ी आज़ादी से औरत का लेन देन करते थे और उसकी राय का कोई क़ीमत नही थी। हद यह है कि यूनान के फ़लासेफ़ा इस बात पर बहस कर रहे थे कि उसे इंसानों की एक क़िस्म क़रार दिया जाये या यह एक इंसान नुमा प्राणी है जिसे इस शक्ल व सूरत में इंसान के मुहब्बत करने के लिये पैदा किया गया है ताकि वह उससे हर तरह का फ़ायदा उठा सके वर्ना उसका इंसानियत से कोई ताअल्लुक़ नही है।

इस ज़माने में औरत की आज़ादी और उसको बराबरी का दर्जा दिये जाने का नारा और इस्लाम पर तरह तरह के इल्ज़ामात लगाने वाले इस सच्चाई को भूल जाते हैं कि औरतों के बारे में इस तरह की आदरनीय सोच और उसके सिलसिले में हुक़ुक़ का तसव्वुर भी इस्लाम ही का दिया हुआ है। इस्लाम ने औरत को ज़िल्लत की गहरी खाई से निकाल कर इज़्ज़त की बुलंदी पर न पहुचा दिया होता तो आज भी कोई उसके बारे में इस अंदाज़ में सोचने वाला न होता। यहूदीयत व ईसाईयत तो इस्लाम से पहले भी इन विषयों पर बहस किया करते थे उन्हे उस समय इस आज़ादी का ख़्याल क्यो नही आया और उन्होने उस ज़माने में औरत को बराबर का दर्जा दिये जाने का नारा क्यों नही लगाया यह आज औरत की अज़मत का ख़्याल कहाँ से आ गया और उसकी हमदर्दी का इस क़दर ज़ज़्बा कहाँ से आ गया?

वास्तव में यह इस्लाम के बारे में अहसान फ़रामोशी के अलावा कुछ नही है कि जिसने तीर चलाना सीखाना उसी को निशाना बना दिया और जिसने आज़ादी और हुक़ुक का नारा दिया उसी पर इल्ज़ामात लगा दिये। बात सिर्फ़ यह है कि जब दुनिया को आज़ादी का ख़्याल पैदा हुआ तो उसने यह ग़ौर करना शुरु किया कि आज़ादी की यह बात तो हमारे पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है आज़ादी का यह ख़्याल तो इस बात की दावत देता है कि हर मसले में उसकी मर्ज़ी का ख़्याल रखा जाये और उस पर किसी तरह का दबाव न डाला जाये और उसके हुक़ुक़ का तक़ाज़ा यह है कि उसे मीरास में हिस्सा दिया जाये उसे जागीरदारी और व्यापार का पाटनर समझा जाये और यह हमारे तमाम घटिया, ज़लील और पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है लिहाज़ा उन्होने उसी आज़ादी और हक़ के शब्द को बाक़ी रखते हुए अपने मतलब के लिये नया रास्ता चुना और यह ऐलान करना शुरु कर दिया कि औरत की आज़ादी का मतलब यह है कि वह जिसके साथ चाहे चली जाये और उसका दर्जा बराबर होने के मतलब यह है कि वह जितने लोगों से चाहे संबंध रखे। इससे ज़्यादा इस ज़माने के मर्दों को औरतों से कोई दिलचस्बी नही है। यह औरत को सत्ता की कुर्सी पर बैठाते हैं तो उसका कोई न कोई लक्ष्य होता है और उसके कुर्सी पर लाने में किसी न किसी साहिबे क़ुव्वत व जज़्बात का हाथ होता है और यही वजह है कि वह क़ौमों की मुखिया होने के बाद भी किसी न किसी मुखिया की हाँ में हाँ मिलाती रहती है और अंदर से किसी न किसी अहसासे कमतरी में मुब्तला रहती है। इस्लाम उसे साहिबे इख़्तियार देखना चाहता है लेकिन मर्दों का आला ए कार बन कर नही। वह उसे इख़्तियार व इंतेख़ाब देना चाहता है लेकिन अपनी शख़्सियत, हैसियत, इज़्ज़त और करामत का ख़ात्मा करने के बाद नही। उसकी निगाह में इस तरह के इख़्तियारात मर्दों को हासिल नही हैं तो औरतों को कहाँ से हो जायेगा जबकि उस की इज़्ज़त की क़ीमत मर्द से ज़्यादा है उसकी इज़्ज़त जाने के बाद दोबारा वापस नही आ सकती है जबकि मर्द के साथ ऐसी कोई परेशानी नही है।

इस्लाम मर्दों से भी यह मुतालेबा करता है कि वह जिन्सी तसकीन के लिये क़ानून का दामन न छोड़े और कोई ऐसा क़दम न उठाएँ जो उनकी इज़्ज़त व शराफ़त के ख़िलाफ़ हो इसी लिये उन तमाम औरतों की निशानदहीकर दी गई जिनसे जिन्सी ताअल्लुक़ात का जवाज़ नही है। उन तमाम सूरतों की तरफञ इशारा कर दिया गया जिनसे साबेक़ा रिश्ता मजरूह होता है और उन तमाम ताअल्लुक़ात को भी वाज़ेह कर दिया जिनके बाद दूसरा जिन्सी ताअल्लुक़ मुमकिन नही रह जाता। ऐसे मुकम्मल और मुरत्तब निज़ामें ज़िन्दगी के बारे में यह सोचना कि उसने एक तरफ़ा फ़ैसला किया है और औरतों के हक़ में नाइंसाफ़ी से काम लिया है ख़ुद उसके हक़ में नाइंसाफ़ी बल्कि अहसान फ़रामोशी है वर्ना उससे पहले उसी के साबेक़ा क़वानीन के अलावा कोई उस सिन्फ़ का पुरसाने हाल नही था और दुनिया की हर क़ौम में उसे ज़ुल्म का निशाना बना लिया गया था।

हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने कहा: शबे क़द्र पर हम जो सबसे अच्छे काम कर सकते हैं वह दान देना और सच्ची और शुद्ध प्रार्थना करना है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी उर्मिया के संवाददाता के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम हसन रहीमी ने मदरसा ज़ैनब काबरा (स) उर्मिया में इमाम अली (अ) की शहादत के अवसर पर आयोजित समारोह में बोलते हुए कहा: सर्वशक्तिमान ईश्वर की निकटता भाग्य की छाया में मनुष्य के लिए यह एक महान अवसर है।

उन्होंने आगे कहा: इस रात के सबसे अच्छे कामों में दान और सच्चे दिल से दुआ करना है।

हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने कहा: इस रात में हम कुरान, जिक्र और दुआ के पाठ के माध्यम से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं और आने वाले दिनों में पापों से मुक्ति और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना कर सकते हैं।

हौज़ा इल्मिया पश्चिम आज़रबाइजान के इस शिक्षक ने कहा: दान देना उन कार्यों में से एक है जो हमारी मानवीय भावना को बेहतर बनाने और दूसरों की मदद करने में मदद करता है, दान देना दूसरों के प्रति हमारी करुणा, प्रेम और उदारता का प्रतीक है और हमें मानवता और दयालुता की ओर आकर्षित करता है।

उन्होंने आगे कहा: क़द्र की रात में इमाम अल-ज़माना (अ) के ज़हूर मे तेजी लाने के लिए दुआ करने पर भी बहुत जोर दिया जाता है।

हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने हज़रत इमाम अली (अ) की महानता और बुलंद व्यक्तित्व की ओर इशारा किया और कहा: इमाम अली (अ) इस्लाम के इतिहास में सबसे महान शख्सियतों में से एक हैं। वह साहस, न्याय, ज्ञान और धर्मनिष्ठा में अद्वितीय हैं। उन्हें उत्पीड़न के खिलाफ खड़े होकर और न्याय स्थापित करके मानवता के लिए एक महान संपत्ति के रूप में जाना जाता है।

सोमवार, 24 मार्च 2025 19:09

शब ए क़द्र की अज़मत

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में शब ए क़द्र की अज़मत को बयान फरमाया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "बिहारूल अनवार ,,पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

:قال رسول الله صلی الله علیه وآله وسلم

في أوَّلِ لَيلَةٍ مِن شَهرِ رَمَضانَ تُغَلُّ المَرَدَةُ مِنَ الشَّياطينِ ، و يُغفَرُ في كُلِّ لَيلَةٍ سَبعينَ ألفا ، فَإِذا كانَ في لَيلَةِ القَدرِ غَفَرَ اللّه ُ بِمِثلِ ما غَفَرَ في رَجَبٍ وشَعبانَ وشَهرِ رَمَضانَ إلى ذلِكَ اليَومِ إلاّ رَجُلٌ بَينَهُ وبَينَ أخيهِ شَحناءُ، فَيَقولُ اللّه ُ عز و جل : أنظِروا هؤُلاءِ حَتّى يَصطَلِحوا

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:

माहें रमज़ान उल मुबारक की पहली रात को शैतान को बांध दिया जाता है और हर रात 70हज़ार लोगों के गुनाह बख्श दिए जाते हैं और जब शबे कद्र आती है तो जितने लोग की माहे रजब,शाबान और रमज़ान में बख्शीश होती थी,अल्लाह तआला इतने ही लोगों को सिर्फ इसी रात बख्श देता है मगर दो मोमिन भाइयों की आपस में दुश्मनी(जो गैरक्षमा का कारण बनता हैं) तो इस सूरत में अल्लाह ताला फरमाता है कि जब तक यह आपस में सुलाह नहीं कर लेते तब तक उनकी मगफिरत को टाल दो,

बिहारूल अनवार,97/36/16

पवित्र रमज़ान के अन्तिम दस दिन, रोज़ा रखने वालों के लिए विशेष रूप से आनंदाई होते हैं।

इन दस रातों में पड़ने वाली शबेक़द्र या बरकत वाली रातों को छोटे-बड़े, बूढ़े-जवान, पुरूष-महिला, धनवान व निर्धन, ज्ञानी व अज्ञानी सबके सब निष्ठा के साथ रात भर ईश्वर की उपासना करते हैं।  इन रातों अर्थात शबेक़द्र में लोगों के बीच उपासना के लिए विशेष प्रकार का उत्साह पाया जाता है।  लोग पूरी रात उपासना में गुज़ारते हैं।

शबेक़द्र को इसलिए शबेक़द्र कहा जाता है क्योंकि पवित्र क़ुरआन के अनुसार इसी रात मनुष्य के पूरे वर्ष का लेखाजोखा निर्धारित किया जाता है।  यह ऐसी रात है जो हज़ार महीनों से भी अधिक महत्वपूर्ण है।  यह रात उन लोगों के लिए सुनहरा अवसर है जिनके हृदय पापों से मुर्दा हो चुके हैं।  यह बहुत ही बरकत वाली रात है।  इस रात में उपासना करके मनुष्य जहां अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है वहीं पर आने वाले साल में अपने लिए सौभाग्य को निर्धारित कर सकता है।

पवित्र क़ुरआन के सूरेए क़द्र में ईश्वर कहता है कि हमने क़ुरआन को शबेक़द्र में नाज़िल किया और तुमको क्या मालूम के शबेक़द्र क्या है? शबेक़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है।  इस रात फ़रिश्ते और रूह, सालभर की हर बात का आदेश लेकर अपने पालनहार के आदेश से उतरते हैं।  यह रात सुबह होने तक सलामती है।  सूरए क़द्र में बताया गया है कि क़ुरआन क़द्र की रात में नाज़िल किया गया जो रमज़ान के महीने में पड़ती है। इस रात को हज़ार महीनों से बेहतर कहा गया है। क़ुरआन की आयतों से यह पता चलता है कि क़ुरआन को दो रूपों में नाज़िल किया गया है एक तो एक बार में और दूसरे चरणबद्ध रूप से। पहले चरण में क़ुरआन एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर उतरा।  यह क़द्र की रात थी जिसे शबेक़द्र कहा जाता है। बाद के चरण में क़ुरआन के शब्द पूरे विस्तार के साथ धीरे-धीरे अलग-अलग अवसरों पर उतरे जिसमें 23 वर्षों का समय लगा। 

क़द्र की रात में क़ुरआन का उतरना भी इस बात का प्रमाण है कि यह महान ईश्वरीय ग्रंथ निर्णायक ग्रंथ है। क़ुरआन, मार्गदर्शन के लिए ईश्वर का बहुत बड़ा चमत्कार तथा सौभाग्यपूर्ण जीवन के लिए सर्वोत्तम उपहार है।  इस पुस्तक में वह ज्ञान पाया जाता है कि यदि दुनिया उस पर अमल करे तो संसार, उत्थान और महानता के चरम बिंदु पर पहुंच जाएगा।

सूरए क़द्र में उस रात को, जिसमें क़ुरआन उतारा गया, क़द्र की रात अर्थात अति महत्वपूर्ण रात कहा गया है।  क़द्र से तात्पर्य है मात्रा और चीज़ों का निर्धारण।  इस रात में पूरे साल की घटनाओं और परिवर्तनों का निर्धारण किया जाता है।  सौभाग्य, दुर्भाग्य और अन्य चीज़ों की मात्रा इसी रात में तय की जाती है। इस रात की महानता को इससे समझा जा सकता है कि क़ुरआन ने इसे हज़ार महीनों से बेहतर बताया है। रिवायत में है कि क़द्र की रात में की जाने वाली उपासना हज़ार महीने की उपासनाओं से बेहतर है। सूरए क़द्र की आयतें जहां इंसान को इस रात में उपासना और ईश्वर से प्रार्थना की निमंत्रण देती हैं वहीं इस रात में ईश्वर की विशेष कृपा का भी उल्लेख करती हैं और बताती हैं कि किस तरह इंसानों को यह अवसर दिया गया है कि वह इस रात में उपासना करके हज़ार महीने  की उपासना का सवाब प्राप्त कर लें। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि ईश्वर ने मेरी क़ौम को क़द्र की रात प्रदान की है जो इससे पहले के पैग़म्बरों की क़ौमों को नहीं मिली है।

रिवायत में है कि क़द्र की रात में आकाश के दरवाज़े खुल जाते हैं, धरती और आकाश के बीच संपर्क बन जाता है। इस रात फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं और ज़मीन प्रकाशमय हो जाती है।  वे मोमिन बंदों को सलाम करते हैं। इस रात इंसान के हृदय के भीतर जितनी तत्परता होगी वह इस रात की महानता को उतना अधिक समझ सकेगा।  क़ुरआन के अनुसार इस रात सुबह तक ईश्वरीय कृपा और दया की वर्षा होती रहती है। इस रात ईश्वर की कृपा की छाया में वह सभी लोग होते हैं जो जागकर इबादत करते हैं।

शबेक़द्र की एक विशेषता, आसमान से फ़रिश्तों का उस काल के इमाम पर उतरना है।  इस्लामी कथनों के अनुसार शबेक़द्र केवल पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल से विशेष नहीं है बल्कि यह प्रतिवर्ष आती है।  इसी रात फरिश्ते अपने काल के इमाम के पास आते हैं और ईश्वर ने जो आदेश दिया है उसे वे उनको बताते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि रमज़ान का महीना, ईश्वर का महीना है।  यह ऐसा महीना है जिसमें ईश्वर भलाइयों को बढ़ाता है और पापों को क्षमा करता है।  यह सब रमज़ान के कारण है।  इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम कहते हैं कि लोगों के कर्मों के हिसाब का आरंभ शबेक़द्र से होता है क्योंकि उसी रात अगले वर्ष का भाग्य निर्धारित किया जाता है।

शबेक़द्र के इसी महत्व के कारण इसका हर पल महत्व का स्वामी है।  इस रात जागकर उपासना करने का विशेष महत्व है।  इस रात की अनेदखी करना अनुचित है।  इस रात को सोते रहना उसे अनदेखा करने के अर्थ में है अतः एसा करने से बचना चाहिए।  शबेक़द्र के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस रात अपने घरवालों को जगाए रखते थे।  जो लोग नींद में होते उनके चेहरे पर पानी की छींटे मारते थे।  वे कहते थे कि जो भी इस रात को जागकर गुज़ारे, अगले साल तक उससे ईश्वरीय प्रकोप को दूर कर दिया जाएगा और उसके पिछले पापों को माफ किया जाएगा।  पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा शबेक़द्र में अपने घर के किसी भी सदस्य को सोने नहीं देती थीं।  इस रात वे घर के सदस्यों को खाना बहुत हल्का देती थीं और स्वयं एक दिन पहले से शबेक़द्र के आगमन की तैयारी करती थीं।  वे कहती थीं कि वास्वत में दुर्भागी है वह व्यक्ति जो विभूतियों से भरी इस रात से वंचित रह जाए।

शबेक़द्र को शबे एहया भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है जीवित करना।  इस रात को शबे एहया इसलिए कहा जाता है ताकि रात में ईश्वर की याद में डूबकर अपने हृदय को पवित्र एवं जीवित किया जा सके।  हृदय को जीवित करने का अर्थ है बुरे कामों से दूरी।  मरे हुए हृदय का अर्थ है सच्चाई को न सुनना, बुरी बातों को देखते हुए खामोश रहना।  झूठ और सच को एक जैसा समझना और अपने लिए मार्गदर्शन के रास्तों को बंद कर लेना।  इस प्रकार के हृदय के स्वामी को क़ुरआन, मुर्दा बताता है।  ईश्वर के अनुसार ऐसा इन्सान चलती-फिरती लाश के समान है।  जिस व्यक्ति का मन मर जाए वह पशुओं की भांति है।  उसमें और पशु में कोई अंतर नहीं है।  पापों की अधिकता के कारण पापियों के हृदय मर जाते हैं और वे जानवरों की भांति हो जाते हैं।

अपने बंदों पर ईश्वर की अनुकंपाओं में से एक अनुकंपा यह है कि उसने मरे हुए दिलों को ज़िंदा करने के लिए कुछ उपाय बताए हैं।  इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि ईश्वर पर भरोसा, प्रायश्चित, उपासना और प्रार्थना, दान-दक्षिणा और भले काम करके मनुष्य अपने मरे हुए हृदय को जीवित कर सकता है।  ईश्वर ने शबेक़द्र को इसीलिए बनाया है कि मनुष्य इस रात पूरी निष्ठा के साथ उपासना करके अपने मन को स्वच्छ और शुद्ध कर सकता है।  यही कारण है कि शबेक़द्र की पवित्र रात के प्रति किसी भी प्रकार की निश्चेतना को बहुत बड़ा घाटा बताया गया है।  इसीलिए महापुरूष इस रात के एक-एक क्षण का सदुपयोग करते हुए सुबह तक ईश्वर की उपासना में लीन रहा करते थे।

 

 

सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी यमन के अंसारुल्लाह के नेता ने लेबनान की जनता को संबोधित करते हुए कहा,हम अपने भाइयों हिज़्बुल्लाह और लेबनान की जनता से कहते हैं कि आप अकेले नहीं हैं और हम हर आक्रमण में आपके साथ खड़े हैं।

अंसारुल्लाह आंदोलन के नेता सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी ने कहा कि हमने इस्राइली हमलों को लेबनान के विभिन्न क्षेत्रों में देखा है और उन्होंने इसे अकारण आक्रमण करार दिया है।

यमन के अंसारुल्लाह नेता ने जोर देकर कहा, हम अपने स्पष्ट और सिद्धांतों पर आधारित रुख पर कायम हैं और किसी भी बड़े घटनाक्रम या समग्र रूप से बढ़ते तनाव की स्थिति में अपने भाइयों, हिज़्बुल्लाह और लेबनान की जनता का समर्थन करते रहेंगे।

उन्होंने कहा,हम लेबनान पर हो रहे इस्राइली हमलों के केवल दर्शक नहीं रहेंगे। साथ ही उन्होंने लेबनान की जनता और हिज़्बुल्लाह से कहा,आप अकेले नहीं हैं और हम हर आक्रमण में आपके साथ हैं।

सैयद अब्दुल मलिक ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी भी परिस्थिति में हस्तक्षेप की आवश्यकता हुई तो हम अपने भाइयों हिज़्बुल्लाह और लेबनान की जनता के साथ खड़े होंगे और इसके लिए हम पूरी तरह तैयार हैं।