رضوی

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ज़ायोनी सरकार अमेरिकी कांग्रेस पर दबाव डाल रही है ताकि दक्षिण अफ़्रीक़ा उसके ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय अदालत में शिकायत करने की अनदेखी कर दे।

अमेरिकी पत्रिका अक्सिओस ने इस्राईली विदेशमंत्रालय के हवाले से लिखा है कि ज़ायोनी सरकार ने अमेरिकी कांग्रेस पर दबाव डाला है ताकि अमेरिकी कांग्रेस ज़ायोनी सरकार को इस बात से आश्वस्त करा सके कि दक्षिण अफ्रीक़ा तेलअवीव के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय अदालत में शिकायत नहीं करेगा।

ग़ज़ा की मानवता प्रेमी सहायता पहुंचाने वाले रास्ते को न खोलने के कारण ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ दक्षिण अफ़्रीक़ा ने अंतरराष्ट्रीय अदालत में शिकायत की थी जिस पर कार्यवाही करते हुए अदालत ने सुनवाई की और एक आदेश जारी करके रफ़ह में सैनिक कार्यवाही बंद करने और ग़ज़ा के ज़मीनी राहत मार्ग को खोले जाने का आदेश दिया है।

दक्षिण अफ़्रीक़ा ने तर्क दिया है कि ज़ायोनी सरकार की कार्यवाहियां नस्ली सफ़ाये का उदाहरण हैं क्योंकि ग़ज़ा में रहने वाले फ़िलिस्तीनियों के ध्यानयोग्य भाग को ख़त्म करने के लिए इसे अंजाम दिया जा रहा है। अमेरिकी पत्रिका अक्सिओस की रिपोर्ट के अनुसार तेअलवीव ने अमेरिका में स्थित अपने दूतावास और काउंसलेट को भेजे गये संदेश में उनका आह्वान किया है कि वे अमेरिकी कांग्रेस पर दबाव डालें और न्यायधीशों और यहूदी संगठनों से सहयोग करें ताकि वे इस्राईल के संबंध में अपनी नीतियों को परिवर्तत हेतु दक्षिण अफ़्रीक़ा पर दबाव डालें।

इस गोपनीय पत्र व संदेश में कहा गया है कि इस्राईल ने अदालत के अधिकारियों व न्यायधीशों को धमकी दी है कि हमास आंदोलन का समर्थन जारी रखना और इस्राईल विरोधी कार्यवाहियों को अंजाम देना उनके लिए बहुत महंगा पड़ेगा।

इस रिपोर्ट में आया है कि तेअलवीव अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों पर दबाव डाल रहा है ताकि वह दक्षिण अफ्रीक़ा पर दबाव डालें कि वह ग़ज़ा के संबंध में अपनी क़ानूनी कार्यवाहियों व शिकायतों की अनदेखी कर दे।

यज़ीद के दरबार में जब हज़रत ज़ैनब (स) की निगाह अपने भाई हुसैन के ख़ून से रंगे सर पर पड़ी तो उन्होंने दुख भरी आवाज़ में जो दिलों की दहला रही थी पुकाराः

«يا حُسَيْناهُ! يا حَبيبَ رَسُولِ اللهِ! يَابْنَ مَكَّةَ وَ مِنى، يَابْنَ فاطِمَةَ الزَّهْراءِ سَيِّدَةَ النِّساءِ، يَابْنَ بِنْتِ الْمُصْطَفى»

हे हुसैन, हे रसूलुल्लाह (स) के चहीते, हे मक्का और मिला के बेटे, हे सारे संसार की महिलाओं की मलिका फ़ातेमा ज़हरा (स) के बेटे हो मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) की बेटी के बेटे।

रावी कहता हैः ईश्वर की सौगंध हज़रत ज़ैनब (स) की इस आवाज़ को सुनकर दरबार में उपस्थित हर व्यक्ति रोने लगा, और यज़ीद चुप था!!

यज़ीद ने आदेश दिया की उसकी छड़ी लाई जाए और वह उस छड़ी से इमाम हुसैन (अ) के होठों और पवित्र दांतो से मार रहा था।

अबू बरज़ा असलमी जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सहाबी और उस दरबार में उपस्थित थे, ने यज़ीद को संबोधित करके कहाः हे यहीं तू अपनी छड़ी से फ़ातेमा (स) के बेटे हुसैन (अ) को मार रहा है? मैंने अपनी आँखों से देखा है कि पैग़म्बरे अकरम (स) हसन (अ) और हुसैन (अ) के होठों और दांतों को चूमा करते थे और फ़रमाते थेः

 

:«أَنْتُما سَيِّدا شَبابِ أهْلِ الْجَنَّةِ، فَقَتَلَ اللهُ قاتِلَكُما وَلَعَنَهُ، وَأَعَدَّلَهُ جَهَنَّمَ َوساءَتْ مَصيراً»

तुम दोनों स्वर्ग के जवानों के सरदार हो, ईश्वर तुम्हारे हत्यारे को मारे और उसपर लानत करे और उसके लिए नर्क तैयार करे और वह सबरे बुरा स्थान है।

 

यज़ीद ने जब असलमी की इन बातों को सुना तो क्रोधित हो गया और उसने आदेश दिया कि उनको दरबार से बाहर निकाल दिया जाए।

 

यज़ीद जो घमंड और अहंकार से चूर था, यह समझ रहा था कि उनसे कर्बला पर विजय प्राप्त कर ली है, उसने इन शेरों को पढ़ा जो उसके और बनी उमय्या के इस्लाम से दूर होने और इस्लामी शिक्षाओं को स्वीकार न करने का प्रमाण हैं:

 

لَيْتَ أَشْياخي بِبَدْر شَهِدُوا *** جَزِعَ الْخَزْرَجُ مِنْ وَقْعِ الاَْسَلْ

 

فَأَهَلُّوا وَ اسْتَهَلُّوا فَرَحاً *** ثُمَّ قالُوا يايَزيدُ لاتَشَلْ

 

لَسْتُ مِنْ خِنْدَفَ إِنْ لَمْ أَنْتَقِمْ *** مِنْ بَني أَحْمَدَ، ما كـانَ فَعَلْ(1)

 

 

 

काश मेरे वह पूर्वज जो बद्र के युद्ध में मारे गए थे आज देखते कि ख़ज़रज क़बीला किस प्रकार भालों के वार से रो रहा है।

 

वह लोग शुख़ी से चिल्लाह रहे थे और कह रहे थेः यज़ीद तेरे हाथ सलामत रहें!

 

मैं ख़िनदफ़ (2) की संतान नहीं हूँ अगर मैं अहमद (अल्लाह के रसूल (स)) के परिवार से इंतेक़ाम न लूँ

 

यज़ीद यह शेर पढ़ता जा रहा था और अपनी इस्लाम से दूरी और शत्रुता को दिखाता जा रहा था, और यही वह समय था कि जब अली (अ) की शेरदिल बेटी ज़ैनब (स) उठती है और वह एतिहासिक ख़ुत्बा पढ़ती हैं जिसे इतिहास कभी भुला न सकेगा। आप फ़रमाती हैं

 

 

 

«أَلْحَمْدُللهِِ رَبِّ الْعالَمينَ، وَصَلَّى اللهُ عَلى رَسُولِهِ وَآلِهِ أجْمَعينَ، صَدَقَ اللهُ كَذلِكَ يَقُولُ: ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِينَ أَسَاءُوا السُّوأَى أَنْ كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللهِ وَكَانُوا بِهَا يَسْتَهْزِئُون. (3)

 

أَظَنَنْتَ يا يَزِيدُ حَيْثُ أَخَذْتَ عَلَيْنا أَقْطارَ الاَْرْضِ وَآفاقَ السَّماءِ، فَأَصْبَحْنا نُساقُ كَما تسُاقُ الأُسارى أَنَّ بِنا عَلَى اللهِ هَواناً، وَبِكَ عَلَيْهِ كَرامَةً وَأَنَّ ذلِكَ لِعِظَمِ خَطَرِكَ عِنْدَهُ، فَشَمَخْتَ بِأَنْفِكَ، وَنَظَرْتَ فِي عِطْفِكَ جَذْلانَ مَسْرُوراً حِينَ رَأَيْتَ الدُّنْيا لَكَ مُسْتَوْثِقَةٌ وَالاُْمُورَ مُتَّسِقَةٌ وَحِينَ صَفا لَكَ مُلْكُنا وَسُلْطانُنا، فَمَهْلاً مَهْلاً، أَنَسِيتَ قَوْلَ اللهِ عَزَّوَجَلَّ: وَ لاَ يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّمَا نُمْلِى لَهُمْ خَيْرٌ لاَِّنْفُسِهِمْ إِنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ لِيَزْدَادُوا إِثْماً وَ لَهُمْ عَذَابٌ مُهِينٌ». (4)

 

 

 

प्रशंसा विशेष है उस ईश्वर के लिये जो संसारों का पालने वाला है, और ईश्वर की सलवात उसके दूत पर और उसके परिवार पर। ईश्वर ने सत्य कहा जब फ़रमायाः “वह लोग जिन्होंने पाप और कुकर्म किये उनका अंत (परिणाम) इस स्थान तक पहुँच गया कि उन्होंने ईश्वरीय आयतों को झुठलाना दिया और उनका उपहास किया”

 

हे यज़ीद! क्या अब जब कि ज़मीन और आसमान तो (विभन्न दिशाओं से) हम पर तंग कर दिया और और क़ैदियों की भाति हम को हर दिशा में घुमाया, तू समझता है कि हम ईश्वर के नज़दीक अपमानित हो गए और तू उसके नज़दीक सम्मानित हो जाएगा? और तूने समझा कि यह ईश्वर के नज़दीक तेरी शक्ति और सम्मान की निशानी है? इसलिये तूने अहंकार की हवा को नाक में भर लिया और स्वंय पर गर्व किया और प्रसन्न हो गया, यह देख कर कि दुनिया तेरी झोली में आ गई कार्य तुझ से व्यवस्थित हो गए और हमारी हुकूमत और ख़िलाफ़त तेरे हाथ में आ गई, तो थोड़ा ठहर! क्या तूने ईश्वर का यह कथन भुला दिया कि उसने फ़रमायाः “जो लोग काफ़िर हो गए वह यह न समझें कि अगर हम उनको मोहलत दे रहे हैं, तो यह उनके लाभ में है। हम उनको छूट देते हैं ताकि वह अपने पापों को बढ़ाएं और उनके लिये अपमानित करने वाला अज़ाब (तैयार) है”

 

 

 

आपने अली (अ) के लहजे में यज़ीद और दरबार में बैठे सारे लोगों को यह जता दिया कि देख अगर तू यह समझता है कि तूने हमारे मर्दों की हत्या करके और हम लोगों को बंदी बना कर अपमानित कर दिया है तो यह तेरी समझ का फेर है जान ले कि इज़्ज़त और सम्मान ईश्वर के हाथ में है, वह जिसको चाहता है उसकों सम्मान देता है और जिसको चाहता है अपमानित कर देता है।

 

 

 

इसी ख़ुत्बे में आपने एक स्थान पर फ़रमायाः

 

«أَ مِنَ الْعَدْلِ يَابْنَ الطُّلَقاءِ! تَخْدِيرُكَ حَرائِرَكَ وَ إِمائَكَ، وَ سَوْقُكَ بَناتِ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَ سَلَّم سَبايا، قَدْ هَتَكْتَ سُتُورَهُنَّ، وَ أَبْدَيْتَ وُجُوهَهُنَّ، تَحْدُو بِهِنَّ الاَْعداءُ مِنْ بَلد اِلى بَلد، يَسْتَشْرِفُهُنَّ أَهْلُ الْمَناهِلِ وَ الْمَناقِلِ، وَ يَتَصَفَّحُ وُجُوهَهُنَّ الْقَرِيبُ وَ الْبَعِيدُ، وَ الدَّنِيُّ وَ الشَّرِيفُ، لَيْسَ مَعَهُنَّ مِنْ رِجالِهِنَّ وَلِيُّ، وَ لا مِنْ حُماتِهِنَّ حَمِيٌّ، وَ كَيْفَ يُرْتَجى مُراقَبَةُ مَنْ لَفَظَ فُوهُ أَكْبادَ الاَْزْكِياءِ، وَ نَبَتَ لَحْمُهُ مِنْ دِماءِ الشُّهَداءِ، وَ كَيْفَ يَسْتَبْطِأُ فِي بُغْضِنا أَهْلَ الْبَيْتِ مَنْ نَظَرَ إِلَيْنا بِالشَّنَفِ وَ الشَّنَآنِ وَ الاِْحَنِ وَ الاَْضْغانِ، ثُمَّ تَقُولُ غَيْرَ مُتَّأَثِّم وَ لا مُسْتَعْظِم:

 

 

 

لاََهَلُّوا و اسْتَهَلُّوا فَرَحاً *** ثُمَّ قالُوا يا يَزيدُ لا تَشَلْ

 

 

 

مُنْتَحِياً عَلى ثَنايا أَبِي عَبْدِاللهِ سَيِّدِ شَبابِ أَهْلِ الجَنَّةِ، تَنْكُتُها بِمِخْصَرَتِكَ، وَ كَيْفَ لا تَقُولُ ذلِكَ وَ قَدْ نَكَأْتَ الْقَرْحَةَ، وَ اسْتَأْصَلْتَ الشَّأْفَةَ بِإِراقَتِكَ دِماءَ ذُرّيَةِ مُحَمَّد صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ، وَ نُجُومِ الاَْرْضِ مِنْ آلِ عَبْدِالمُطَّلِبِ، وَ تَهْتِفُ بِأَشْياخِكَ، زَعَمْتَ أَنَّكَ تُنادِيهِمْ، فَلَتَرِدَنَّ وَ شِيكاً مَوْرِدَهُمْ وَ لَتَوَدَّنَّ أَنَّكَ شَلَلْتَ وَ بَكِمْتَ، وَ لَمْ تَكُنْ قُلْتَ ما قُلْتَ وَ فَعَلْتَ ما فَعَلْتَ».

 

 

 

हे स्वतंत्र किये गए काफ़िरों के बेटे! (5) क्या यह न्याय है कि तू अपनी महिलाओं और दासियों को तो पर्दे में रखे, लेकिन अल्लाह के रसूल (स) की बेटियों को बंदी बनाकर इधर उधर घुमाता फिरे, जब कि तूने उनके सम्मान को ठेस पहुँचाई और उनको चेहरों के लोगों के सामने रख दिया, उनको शत्रुओं के माध्यम से विभिन्न शहरों में घुमाए ताकि हर शहर और गली के लोग उनका तमाशा देखें, और क़रीब, दूर शरीफ़ और तुच्छ लोग उनके चेहरों को देखें, जब कि उनके साथ मर्द और सुरक्षा करने वाले नहीं थे (लेकिन इन बातों का क्या लाभ, क्योंकि) कैसे उस व्यक्ति की सुरक्षा और समर्थन की आशा की जा सकती है कि (जिसकी माँ ने) पवित्र लोगों का जिगर खाया हो (आपने यज़ीद की माँ हिन्द की कहानी की तरफ़ इशारा किया है) और जिसका गोश्त शहीदों को रक्त से बना है?! और किस प्रकार वह हम अहलेबैत (अ) से शत्रुता में तेज़ी न दिखाए जो हम को अहंकार, नफ़रत, क्रोधित और प्रतिशोधात्मक नज़र से देखता है और फिर (बिना अपराध बोध और अपने अत्याचारों को देखे अहंकार के साथ) कहता हैः

 

 

 

काश मेरे पूर्वज होते और इस दृश्य को देखते और शुख़ी एवं प्रसंन्ता से कहतेः यज़ीद तेरे हाथ सलामत रहें।

 

इन शब्दों को उस समय कहता है कि जब अबा अब्दिल्लाह (अ) जो स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं के होठ और पवित्र दांतों पर मारता है!

 

 

 

हां तू क्यों ऐसा नहीं कहेगा, जब कि तूने अल्लाह के रसूल के बेटों और अब्दुल मुत्तलिब के ख़ानदान के ज़मीनी सितारों का ख़ून बहाकर, हमारे दिलों के घवों को खोल दिया है, और तू हमारे ख़ानदान की जड़ ख़तरा बन गया है, तू अपने पूर्वजों को पुकारता है और समझता है कि वह तेरी आवाज़ को सुन रहे हैं?! (जल्दी न कर) बहुत जल्द तू भी उनके पास चला जाएगा, और उस दिन तू आशा करेगा कि काश तेरा हाथ शल होता और तेरी ज़बान गूँगी होती और तू यह बात न कहता और इन कुकर्मों को न करता)

 

 

 

फ़िर आप फ़रमाती हैं:

 

«أَللّهُمَّ خُذْ بِحَقِّنا، وَ انْتَقِمْ مِنْ ظالِمِنا، وَ أَحْلِلْ غَضَبَكَ بِمَنْ سَفَكَ دِماءَنا، وَ قَتَلَ حُماتَنا، فَوَاللهِ ما فَرَيْتَ إِلاّ جِلْدَكَ، وَلا حَزَزْتَ إِلاّ لَحْمَكَ، وَ لَتَرِدَنَّ عَلى رَسُولِ اللهِ بِما تَحَمَّلْتَ مِنْ سَفْكِ دِماءِ ذُرِّيَّتِهِ، وَ انْتَهَكْتَ مِنْ حُرْمَتِهِ فِي عَتْرَتِهِ وَ لُحْمَتِهِ، حَيْثُ يَجْمَعُ اللهُ شَمْلَهُمْ، وَ يَلُمُّ شَعْثَهُمْ، وَ يَأْخُذُ بِحَقِّهِمْ وَ لاَ تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ قُتِلُوا فِى سَبِيلِ اللهِ أَمْوَاتاً بَلْ أَحْيَاءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُونَ. (6) وَ حَسْبُكَ بِاللهِ حاكِماً، وَ بِمُحَمَّد صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَ سَلَّمَ خَصِيماً، وَ بِجَبْرَئِيلَ ظَهِيراً، وَ سَيَعْلَمُ مَنْ سَوّى لَكَ وَ مَكَّنَكَ مِنْ رِقابِ المُسْلِمِينَ، بِئْسَ لِلظّالِمِينَ بَدَلاً، وَ أَيُّكُمْ شَرٌّ مَكاناً، وَ أَضْعَفُ جُنْداً».

 

 

 

हे ईश्वर! हमारे अधिकार को ले, और हम पर अत्याचार कनरे वालों से इंतेक़ाम ले, और जिसने हमारे ख़ून को ज़मीन पर बहाया और हमारी साथियों की हत्या की उस पर अपना क्रोध उतार।

 

 

 

हे यज़ीद! ईश्वर की सौगंध (इस अपराध से) तूने केवल अपनी खाल उतारी है, और अपना गोश्त काटा है, और वास्तव में तूने स्वंय को बरबाद किया है, निःसंदेह वह बोझ – अल्लाह के रसूल (स) के बेटे की हत्या करके और उनके ख़ानदान और चहीतों का अपमान करके- अपने कांधे पर डाला है, तू पैग़म्बर के सामने जाएगा, वहां ईश्वर उन सबको इकट्ठा करेगा और उनकी परेशानी को दूर करेगा और उनके दिलों की आग को ठंडा करेगा, (हां) “यह न समझ कि जो लोग ईश्वर की राह में मार दिये गए, वह मर गए हैं, बल्कि वह जीवित है और ईश्वर से रोज़ी पाते हैं” यही काफ़ी है कि तू उस न्यायालय में हाज़िर होगा जिसका न्याय करने वाला ईश्वर है और अल्लाह का रसूल (स) तेरे मुक़ाबले में है और जिब्रईल गवाह और उनके साथे हैं।

 

 

 

बहुत जल्द जिसने हुकूमत को तेरे लिये निर्विघ्न किया और तुझे मुसलमानों की गर्दनों पर सवार कर दिया, जान जाएगा कि कितना बुरा अज़ाब अत्याचारियों के हिस्से में आएगा, और समझ जाएगा कि किसके ठहरे का स्थान बुरा है और किसकी सेना अधिक कमज़ोर और शक्तिविहीन है।

 

उसके बाद आपने अपने ख़ुत्बे के इस चरण में यज़ीद की धज्जियाँ उड़ा दीं:

 

 

 

«وَ لَئِنْ جَرَّتْ عَلَيَّ الدَّواهِي مُخاطَبَتَكَ، إِنِّي لاََسْتَصْغِرُ قَدْرَكَ، وَ أَسْتَعْظِمُ تَقْرِيعَكَ، وَ أَسْتَكْثِرُ تَوْبِيخَكَ، لكِنَّ العُيُونَ عَبْرى، وَ الصُّدُورَ حَرّى، أَلا فَالْعَجَبُ كُلُّ الْعَجَبِ لِقَتْلِ حِزْبِ اللهِ النُّجَباءِ بِحِزْبِ الشَّيْطانِ الطُّلَقاءِ، فَهذِهِ الاَْيْدِي تَنْطِفُ مِنْ دِمائِنا، وَ الأَفْواهُ تَتَحَلَّبُ مِنْ لُحُومِنا، وَ تِلْكَ الجُثَثُ الطَّواهِرُ الزَّواكِي تَنْتابُها العَواسِلُ، وَ تُعَفِّرُها اُمَّهاتُ الْفَراعِلِ.

 

 

 

وَ لَئِنِ اتَّخَذْتَنا مَغْنَماً لَتَجِدَ بِنا وَ شِيكاً مَغْرَماً حِيْنَ لا تَجِدُ إلاّ ما قَدَّمَتْ يَداكَ، وَ ما رَبُّكَ بِظَلاَّم لِلْعَبِيدِ، وَ إِلَى اللهِ الْمُشْتَكى، وَ عَلَيْهِ الْمُعَوَّلُ، فَكِدْ كَيْدَكَ، وَ اسْعَ سَعْيَكَ، وَ ناصِبْ جُهْدَكَ، فَوَاللهِ لا تَمْحُو ذِكْرَنا، وَ لا تُمِيتُ وَحْيَنا، وَ لا تُدْرِكُ أَمَدَنا، وَ لا تَرْحَضُ عَنْكَ عارَها، وَ هَلْ رَأيُكَ إِلاّ فَنَدٌ، وَ أَيّامُكَ إِلاّ عَدَدٌ، وَ جَمْعُكَ إِلاّ بَدَدٌ؟ يَوْمَ يُنادِي الْمُنادِي: أَلا لَعْنَةُ اللهِ عَلَى الظّالِمِينَ.

 

 

 

وَ الْحَمْدُ للهِ رَبِّ الْعالَمِينَ، أَلَّذِي خَتَمَ لاَِوَّلِنا بِالسَّعادَةِ وَ الْمَغْفِرَةِ، وَ لاِخِرِنا بِالشَّهادَةِ وَ الرَّحْمَةِ. وَ نَسْأَلُ اللهَ أَنْ يُكْمِلَ لَهُمُ الثَّوابَ، وَ يُوجِبَ لَهُمُ الْمَزيدَ، وَ يُحْسِنَ عَلَيْنَا الْخِلافَةَ، إِنَّهُ رَحيمٌ وَدُودٌ، وَ حَسْبُنَا اللهُ وَ نِعْمَ الْوَكيلُ».

 

 

 

अगर बुरे समय ने मुझे इस मक़ाम पर ला खड़ा किया है कि मैं तुझ से बात करूँ, लेकिन (जान ले) मैं निःसंदेह तेरी शक्ति को कम और तेरे दोष को बड़ा समझती हूँ और बहुत तेरी निंदा करती हूँ, लेकिन मैं क्या करूँ कि आख़े रोती और सीने जले हुए हैं।

 

 

 

बहुत आश्चर्य का स्थान है कि एक ईश्वरीय और चुना हुआ गुट, शैतान के चेलों और स्वतंत्र किये हुए दासों के हाथों क़त्ल कर दिया जाए और हमारा रक्त इन (अपवित्र) पंजों से टपके और हमारे गोश्त के टुकड़े तुम्हारे (अपवित्र) मुंह से बाहर गिरें, और तुम जंगली भेड़िये सदैव उन पवित्र शरीरों के पास आओ और उनके मिट्टी में मिलाओ!

 

अगर आज (हम पर विजय) को अपने लिये ग़नीमत समझता है, अतिशीघ्र उसके अपनी हानि और नुक़सान पाएगा, उस दिन अपने कुकर्मों के अतिरिक्त कुछ और नहीं पाएगा। और कदापि परवरदिगार अपने बंदों पर अत्याचार नहीं करेगा। मैं केवल ईश्वर से शिकायत करती हूँ और केवल उस पर विश्वास करती हूँ।

 

हे यज़ीद! जितनी भी मक्कारियां है उनका उपयोग कर ले, और अपनी सारी कोशिश कर ले और जितना प्रयत्न कर सकता है कर ले, लेकिन ईश्वर की सौगंध (इन सारी कोशिशों के बाद भी) हमारी यादों को (दिलों से) न मिटा सकेगा और वही (ईश्वरीय कथन) के (चिराग़ को) बुझा न सकेगा, और हमारे सम्मान और इज़्ज़ात को ठेस न पहुँचा सकेगा। इस घिनौने कार्य का धब्बा, तेरे दामन से कभी न मिट सकेगा। तेरी राय क्षीण और तेरी सत्ता का ज़माना कम है, और तेरी एकता का अंत अनेकता होगा जिस दिन आवाज़ देने वाला आवाज़ लगाएगाः “अत्याचारियों पर ईश्वर की लानत हो”

 

 

 

प्रशंसा और तारीफ़ विशेष है उस ईश्वर के लिये जो संसारों का परवरदिगार है। वही जिसने हमरे आरम्भ को सौभाग्य और मग़फ़िरत और अंत को शहादत और रहमत बनाया। ईश्वर से मैं उन शहीदों के लिये पूर्ण इन्आम और, इन्आमों पर अधिक चाहती हूँ (और उससे चाहती हूँ कि) हमको उनका अच्छा उत्तराधिकारी बनाए, वह दयालू और मोहब्बत करने वाला है, और ईश्वर हमारे लिये काफ़ी है और वह हमारा बेहतरीन समर्थक है। (7)

 

हज़रत ज़ैनब (स) का यह ख़ुत्बा इस्लामी इतिहास का सबसे बेहतरीन और मुह तोड़ ख़ुत्बा है, ऐसा लगता है कि यह सारा ख़ुत्बा इमाम अली (अ) की पवित्र आत्मा और उनकी वीरता की बूंदों से भीगकर उनकी महान बेटी के ज़बान से जारी हुआ है, कि सुनने वालों ने कहा कि ऐसा लगता है कि अली बोल रहे हैं।

 

शारांश

 

 

 

हज़रत ज़ैनब (स) ने अपने इस ख़ुत्बे में बहुत सी बातें कहीं है जिनको इस संक्षिप्त से लेख में बयान करना संभव नहीं है और न ही हम इस स्थान पर हैं कि इन सारी बातों को बयान कर सके, लेकिन संक्षेप में इस ख़ुत्बे के सारांश को बयान किया जाए तो कुछ इस प्रकार होगा

 

  1. इस्लामी इतिहास की इस वीर महिला ने सबसे पहले यज़ीद के अहंकार को चकनाचूर किया और क़ुरआन की तिलावत करके उसको बता दिया कि उसका स्थान ईश्वर के नज़दीन क्या है और बता दिया कि हे यज़ीदः तू हुकूमत दौलन, महल आदि को अपने लिये बड़ा न समझ तो उन लोगों में से है जिसे ईश्वर ने मोहलत दी है ताकि वह अपने पापों का बोझ बढ़ाते रहें और उसके बाद वह उन्हें नर्क के हलावे कर दे।

 

  1. उसके बाद आपने यज़ीद के पूर्वजों के साथ मक्के की विजय के समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) के व्यवहार के बारे में बयान किया है और बताया है कि जिस नबी ने उसके पूर्वजों को क्षमा कर के स्वतंत्र कर दिया था उसकी के बेटे ने पैग़म्बर (स) की औलाद की हत्या की उस परिवार की महिलाओं को एक शहर से दूसरे शहर फिराया और इस प्रकार आपने यज़ीद के माथे पर अपमान की मोहर लगा दी।

 

  1. उसके बाद आप यज़ीद के कुफ़्र भरे शब्दों के बारे में बयान करती है और बताती है कि यज़ीद का इस्लाम या मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है, और आपने बता दिया की यज़ीद भी बहुत जल्द अपने पूर्वजों की भाति नर्क पहुंच जाएगा।

 

  1. फिर आपने शहीदों विशेष कर पैगम़्बर (स) के ख़ानदान के शहीदों के महान स्थान के बारे में बयान किया है और बताया है कि इनकी शहादत इस ख़ानदान के लिये सम्मान की बात है।

 

  1. उसके बाद आप यज़ीद के सामने ईश्वर के न्याय की तरफ़ इशारा करती हैं और कहती है कि सोंच उस समय क्या होगा कि जब न्याय करने वाला ईश्वर होगा तेरा विरोध अल्लाह का रसूल (स) होगा औऱ गवाह अल्लाह के फ़रिश्ते होंगे।

 

  1. उसके बाद आपने यज़ीद का अदिर्तीय अपमान किया और कहाः हे यज़ीद अगर ज़माने ने मुझ पर अत्याचार किया और मुझे बंदी बनाकर देते सामने पेश कर दिया तो तू यह न समझ कि मैंने तुझे सम्मान दे दिया, मैं तो तुझे बात करने के लायक़ भी नहीं समझती हूँ, और अगर इस समय बोल रही हूँ तो यह केवल मजबूरी है और बस।

 

  1. सबसे अंत में हज़रत ज़ैनब (स) ने पैगम़्बर (स) के ख़ानदान पर ईश्वर की बेशुमान अनुकम्पाओं पर उसका धन्यवाद और प्रशंसा की है और फ़रमाया है उस ईश्वर ने हमारा आरम्भ सौभाग्य और अंत शहादत के सम्मान पर किया है।

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 (1)    इस शेर का दूसरा मिसरा पैग़म्बरे इस्लाम से बहुत बड़े शत्रु अब्दुल्लाह बिन ज़बअरी का है जिसने इस शेक को ओहद की जंग में पैगम़्बर के साथियों की शाहादत के बार कहा था और आशा की थी कि काश बद्र के युद्ध में हमारे मारे जाने वाले लोग होते और देखते कि किस प्रकार ख़ज़रज (मदीना का एक मुसलमान) क़बीले वाले रोते हैं, यज़ीद ने इस शेर को मिलाया और बाक़ी शेर स्वंय कहे हैं।

 

(2)    ख़ुनदफ़ क़ुरैश और यज़ीद के सबसे बड़ा पूर्वज था (तारीख़े तबरी, जिल्द 1, पेज 24-25)

 

(3)    सूरा रूम आयत 10

 

(4)    सूरा आले इमरान आयत 178

 

(5)    आपने मक्के की विजय की तरफ़ ईशारा किया है कि जब पैगम़्बर ने अबू सुफ़ियान, मोआविया और क़ुरैश के दूसरे सरदारों को क्षमा कर दिया और फ़रमाया «إذْهَبُوا فَأَنتُمُ الطُّلَقاءُ»؛ जाओ तुम स्वतंत्र हो (बिहारुल अनवार जिल्द 21, पेज 106, तारीख़े तबरी, जिल्द 2, पेज 337)

 

(6)    सूरा आले इमरान आयत 169

 

(7)    मक़तलुल हुसैन मक़रम, पेज 357-359, बिहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 132-135,

हम  इस्लामिक क्रांति का संदेश फैलाने के लिए दुनिया में युद्ध नहीं चाहते हैं, लेकिन साथ ही हम गाजा की समस्याओं को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि इस्लाम किसी विशेष भूमि से संबंधित नहीं है, बल्कि इस्लाम पूरी दुनिया के लिए है इस्लाम की नज़र में, "सभी मुसलमान एक शरीर के विभिन्न हिस्सों की तरह हैं"।

आयतुल्लाह हुसैनी बुशेहरी ने क्यूम अल-मकदीसा के रेडियो और टेलीविजन के प्रमुख के साथ एक बैठक के दौरान कहा कि दर्शकों का विश्वास जीतने के लिए रेडियो और टेलीविजन को दर्शकों तक ईमानदारी से समाचार पहुंचाना चाहिए।

आयतुल्लाह हुसैनी बुशहरी ने क़ुम अल-मुक़द्देसा के रेडियो और टेलीविजन के प्रमुख के साथ एक बैठक के दौरान कहा: रेडियो और टेलीविजन को लोगों का विश्वास हासिल करने के लिए विश्वसनीयता के साथ समाचार देना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुश्मन हमारे समाज के सभी तत्वों को निशाना बना रहे हैं और उनका उद्देश्य हमारी सफलताओं को छिपाना और हमारी विफलताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना है।

मीडिया की भूमिका पर बोलते हुए जामिया मुद्ररेसीन हौज़ा इलमिया क़ुम के प्रमुख ने कहा: मीडिया की पहली और सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सही जानकारी प्रदान करना और उसका प्रभावी ढंग से विश्लेषण करना है, विश्लेषण के बिना समाचार आमतौर पर सतही होते हैं और उनका प्रभाव सीमित होता है ।

क़ुम के आध्यात्मिक और शैक्षणिक महत्व के बारे में बोलते हुए, आयतुल्लाह हुसैनी बुशहरी ने कहा: क़ुम को एक सामान्य प्रांत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, क़ुम की धार्मिक और आध्यात्मिक खबरें समाज में अधिक प्रमुख होनी चाहिए।

गाजा की समस्याओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, हम नहीं चाहते कि दुनिया में इस्लामिक क्रांति का संदेश फैलाने के लिए युद्ध हो, लेकिन साथ ही हम गाजा की समस्याओं को नजरअंदाज भी नहीं कर सकते, क्योंकि इस्लाम एक विशेष भूमि नंबर से संबंधित है , लेकिन इस्लाम पूरी दुनिया के लिए है, इस्लाम की नज़र में "अल-मुस्लेमूना कलजसद अल-वाहिद" सभी मुसलमान एक शरीर के अलग-अलग हिस्सों की तरह हैं।

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान को 2024 विश्व छात्र ओलंपियाड की पदक रैंकिंग में तीसरा स्थान हासिल हो गया है।

साइंस ओलंपियाड 2024 के समापन के साथ ही, सबसे अधिक भाग लेने वाले देशों यानी (53 से 110 देशों) के साथ 5 ओलंपियाड में, ईरान ने 22 रंग बिरंगे पदक हासिल करके दुनिया में तीसरा स्थान हासिल किया।

पार्सटुडे के अनुसार, ईरान ने 5 ओलंपियाड में कुल 10 स्वर्ण, 10 रजत और 2 कांस्य पदक जीते और दुनिया में तीसरी पोज़ीशन हासिल की।

 ज्ञात रहे कि 2024 में ईरानी बुद्धिजीवी विश्व खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी ओलंपियाड में पहला स्थान, जीव विज्ञान और भौतिकी ओलंपियाड में चौथा स्थान, रसायन विज्ञान ओलंपियाड में आठवां स्थान, कंप्यूटर ओलंपियाड में नौवां स्थान और गणित ओलंपियाड में अठारहवां स्थान हासिल करने में कामयाब रहे थे।

 

 

फ़िलिस्तीन में एक नया शैक्षणिक वर्ष शुरू हो गया है। फिलिस्तीनी शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, गाजा में 600,000 छात्र शिक्षा से वंचित हैं जबकि 85 प्रतिशत स्कूल नष्ट हो गए हैं। शिक्षा की कमी के कारण गाजा के बच्चों को दीर्घकालिक नुकसान का खतरा है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि युद्ध से पहले, गाजा में साक्षरता दर लगभग 98% थी।

दुनिया के कई देशों में नया साल शुरू हो चुका है, वहीं गाजा में युद्ध के दौरान स्कूलों और विश्वविद्यालयों के नष्ट होने के कारण फिलिस्तीनी बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। गाजा के शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, नए स्कूल वर्ष की शुरुआत से एक दिन पहले 600,000 छात्र स्कूल से बाहर थे। इज़रायली हमलों में 85 प्रतिशत से अधिक स्कूल भवन (सार्वजनिक और निजी स्कूलों सहित) नष्ट हो गए हैं। मंत्रालय के बयान के मुताबिक, इजरायली आक्रामकता के परिणामस्वरूप फिलिस्तीनी क्षेत्र में 25,000 से अधिक बच्चे मारे गए हैं और घायल हुए हैं, जिनमें 10,000 छात्र भी शामिल हैं। गाजा में 307 पब्लिक स्कूल भवनों में से 90% नष्ट हो गए हैं।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि फिलिस्तीनियों के लिए शिक्षा हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। युद्ध से पहले, गाजा में साक्षरता दर लगभग 98 प्रतिशत थी। मंत्रालय ने कहा कि शिक्षा तक पहुंच सभी का अधिकार है, इसलिए बमबारी के बावजूद, मंत्रालय ई-लर्निंग के अवसर शुरू करने और टेंट में कक्षाएं बनाने की कोशिश कर रहा है। सहायता कर्मियों ने कहा है कि शिक्षा की कमी के कारण गाजा के बच्चों को दीर्घकालिक नुकसान होने का खतरा है।

संयुक्त राष्ट्र की बच्चों की एजेंसी यूनिसेफ के एक स्थानीय प्रवक्ता ने कहा कि गाजा में छोटे बच्चों का विकास ठीक से नहीं हो रहा है, जबकि बड़े बच्चों को प्रसव पीड़ा या जल्दी शादी का खतरा है। बच्चे जितने अधिक समय तक स्कूल से चूकेंगे, उनके स्कूल छोड़ने या स्कूल न लौटने का जोखिम उतना ही अधिक होगा।

 

एक मानवाधिकार संगठन ने रविवार को घोषणा किया है कि इज़रायली सेना ने पिछले महीने से अब तक 16 स्कूलों को निशाना बनाया हैं।

एक मानवाधिकार संगठन ने रविवार को घोषणा की कि पिछले महीने में इज़राइली सेना ने 16 स्कूलों को निशाना बनाया है।

यूरोप मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स ने इज़राईली सरकार द्वारा गाजा के स्कूलों पर लगातार बढ़ते हमलों की सूचना दी है उन स्कूलों को फिलिस्तीनी शरणार्थियों द्वारा आश्रय के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनके घर नष्ट हो चुके हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार, यह हमले बिना किसी पूर्व सूचना के किए गए जिनके परिणामस्वरूप कई फिलिस्तीनी शहीद और घायल हो गए।

यूरोप मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स वॉचडॉग की रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइली सेना ने अगस्त से अब तक गाजा पट्टी में 16 स्कूलों को निशाना बनाया है इन हमलों में कम से कम 217 फिलिस्तीनी शहीद हुए और कई घायल हुए हैं।

पिछली रात उत्तरी गाजा में हलीमा अससादिया स्कूल पर बमबारी के कारण कम से कम 4 लोग शहीद और 15लोग घायल हो गए यह स्कूल संयुक्त राष्ट्र के स्वामित्व में था और गाजा युद्ध की शुरुआत से ही शरणार्थियों के लिए आवास के रूप में उपयोग किया जा रहा था।

इस मानवाधिकार संगठन ने इन हमलों की निंदा करते हुए कहा कि पिछले हफ्ते ज़ायोनी सरकार के हमलों में नागरिकों पर हमलों में वृद्धि हुई है, और आवासीय क्षेत्र तथा शरणस्थल निशाना बनाए जा रहे हैं।

यूरोप-मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स ने इन कृत्यों को गाजा में इजराइली सेना की जनसंहार की कोशिशों का हिस्सा बताया जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक फिलिस्तीनियों को बेघर करना है।

गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय की घोषणा के अनुसार, फिलिस्तीनी शहीदों की संख्या 40,972 तक पहुंच गई है।

 

 

 

 

 

 

 

 

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में कुछ ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं जिन पर रोहिंग्या मुसलमानों और ग़ैर हिन्दुओं के गांव में प्रतिबंध की बात लिखी है।

रोहिंग्या मुसलमानों व फेरी वालों का गाँव में व्यापार करना घूमना वर्जित है।पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में कुछ ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं जिन पर रोहिंग्या मुसलमानों और ग़ैर हिन्दुओं के गांव में प्रतिबंध की बात लिखी है।

सार्वजनिक जगहों पर लगाए गए इन बोर्ड पर इस बात को एक 'चेतावनी' के रूप में लिखा गया है।

इस मामले पर मुस्लिम प्रतिनिधिमंडलों ने उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक डीजीपी अभिनव कुमार से मुलाक़ात की और मामले के बारे में जानकारी दी है।

स्थानीय पुलिस का कहना है कि उसे जहां ऐसे बोर्ड का पता चला है उसे हटा दिया गया है और इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगें।

 

 

 

 

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के कस्टम विभाग के प्रमुख ने पिछले पांच महीनों में इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्य देशों के साथ ईरान के ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार में वृद्धि का एलान किया है।

ईरान के कस्टम विभाग के महानिदेशक मुहम्मद रिज़वानीफ़र का कहना है: इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्य देशों के साथ ईरान का ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार, इस वर्ष के पहले पांच महीनों में 15 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 26.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है।

मुहम्मद रिज़वानीफ़र ने इस आंकड़े का एलान करते हुए कहा: इस अवधि के दौरान इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्य देशों के साथ ईरान का ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार 42.3 मिलियन टन था जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 10 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।

ईरान के कस्टम विभाग के प्रमुख ने कहा कि इस्लामिक सहयोग संगठन के 56 सदस्य देशों के साथ ईरान के कुल ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार के आदान-प्रदान में से 13.5 बिलियन डॉलर मूल्य के 33.6 मिलियन टन का निर्यात किया गया था।

उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों से ईरान में 13.2 अरब डॉलर मूल्य का 8.7 मिलियन टन सामान आयात किया गया जो वजन के मामले में 18 प्रतिशत और मूल्य के लेहाज़ से 15 प्रतिशत बढ़ गया है।

मुहम्मद रिज़वानीफ़र के अनुसार, इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों के बीच इस वर्ष के पहले पांच महीनों में ईरान का सबसे बड़ा ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार का लेनदेन संयुक्त अरब इमारात, तुर्किए, इराक़, पाकिस्तान और ओमान के साथ था जो ईरान के ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार की लेनदेन की कुल मात्रा का 24 बिलियन डॉलर इन पांच सदस्य देशों से विशेष है।

सीरिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी सना के अनुसार,इसराइल ने सीरिया के कई सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए जिसमें 16 लोगों की मौत और 36 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं।

सीरिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी सना के अनुसार,इसराइल ने सीरिया के कई सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए जिसमें 16 लोगों की मौत और 36 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं।

सीरिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी सना के अनुसार इसमें 16 लोगों की जान गई है इसमें से 36 गंभीर रूप से घायल हुए हैं।

वहीं इसराइली सेना ने कहा है कि वो विदेशी मीडिया की रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी सीरिया के विदेश मंत्रालय ने हमले की निंदा की है।

ईरान के विदेश मंत्रालय ने इसे आपराधिक हमला करार दिया है इसराइल पिछले कुछ सालों में सीरिया पर कई हमले किए हैं ।

 

 

 

 

 

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, एक एसी घटना है जिसमें प्रेरणादायक और प्रभावशाली तत्वों की भरमार है। यह आंदोलन इतना शक्तिशाली है जो हर युग में लोगों को संघर्ष और प्रयास पर प्रोत्साहित कर सकता है। निश्चित रूप से यह विशेषताएं उन ठोस विचारों के कारण हैं जिन पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन आधारित है।

इस आंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मूल उद्देश्य ईश्वरीय कर्तव्यों का पालन था। ईश्वर की ओर से जो कुछ कर्तव्य के रूप में मनुष्य के लिए अनिवार्य किया गया है वह वास्तव में हितों की रक्षा और बुराईयों से दूरी के लिए है। जो मनुष्य उपासक के महान पद पर आसीन होता है और जिसके लिए ईश्वर की उपासना गर्व का कारण होता है, वह ईश्वरीय कर्तव्यों के पालन और ईश्वर को प्रसन्न करने के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ के बारे में नहीं सोचता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथनों और उनके कामों में जो चीज़ सब से अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है वह अपने ईश्वरीय कर्तव्य का पालन और इतिहास के उस संवेदनशील काल में उचित क़दम उठाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बुराईयों से रोकने की इमाम हुसैन की कार्यवाही, उनके विभिन्न प्रयासों का ध्रुव रही है।

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य, ऐसी प्रक्रिया से लोहा लेना था जो धर्म और इस्लामी राष्ट्र की जड़ों को खोखली कर रहे थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एसे मोर्चे से टकराने का निर्णय लिया जो समाज को धर्म की सही विचारधारा और उच्च मान्यताओं से दूर करने का प्रयास कर रही थी। यह भ्रष्ट प्रक्रिया, यद्यपि धर्म और सही इस्लामी शिक्षाओं से दूर थी किंतु स्वंय को धर्म की आड़ में छिपा कर वार करती थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भलीभांति ज्ञान था कि शासन व्यवस्था में व्याप्त यह बुराई और भ्रष्टाचार इसी प्रकार जारी रहा तो धर्म की शिक्षाओं के बड़े भाग को भुला दिया जाएगा और धर्म के नाम पर केवल उसका नाम ही बाक़ी बचेगा। इसी लिए यज़ीद की भ्रष्ट व मिथ्याचारी सरकार से मुक़ाबले के लिए विशेष प्रकार की चेतना व बुद्धिमत्ता की आवश्यकता थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन के आरंभ में मदीना नगर से निकलते समय कहा थाः मैं भलाईयों की ओर बुलाने और बुराईयों से रोकने के लिए मदीना छोड़ रहा हूं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचार धारा में अत्याचारी शासन के विरुद्ध आंदोलन, समाज के राजनीतिक ढांचे में सुधार और न्याय के आधार पर एक सरकार के गठन के लिए प्रयास भलाईयों का आदेश देने और बुराईयों से रोकने के ईश्वरीय कर्तव्य के पालन के उदाहरण हैं। ईरान के प्रसिद्ध विचारक शहीद मुतह्हरी इस विचारधारा के महत्व के बारे में कहते हैं

भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने के विचार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अत्याधिक महत्वपूर्ण बना दिया। अली के पुत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने अर्थात इस्लामी समाज के अस्तित्व को निश्चित बनाने वाले सब से अधिक महत्वपूर्ण कार्यवाही की राह में शहीद हुए और यह एसा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि यदि यह न होता तो समाज टुकड़ों में बंट जाता।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक चेतनापूर्ण सुधारक के रूप में स्वंय का यह दायित्व समझते थे कि अत्याचार, अन्याय व भ्रष्टाचार के सामने चुप न बैठें। बनी उमैया ने प्रचारों द्वारा अपनी एसी छवि बनायी थी कि शाम क्षेत्र के लोग, उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के सब से निकटवर्ती समझते थे और यह सोचते थे कि भविष्य में भी उमैया का वंश ही पैग़म्बरे इस्लाम का सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी होगा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस गलत विचारधारा पर अंकुश लगाना था और इस्लामी मामलों की देख रेख के संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की योग्यता और अधिकार को सब के सामने सिद्ध करना था। यही कारण है कि उन्होंने बसरा नगर वासियों के नाम अपने पत्र में, अपने आंदोलन के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए लिखा थाः

हम अहलेबैत, पैग़म्बरे इस्लाम के सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी थे किंतु हमारा यह अधिकार हम से छीन लिया गया और अपनी योग्यता की जानकारी के बावजूद हमने समाज की भलाई और हर प्रकार की अराजकता व हंगामे को रोकने के लिए, समाज की शांति को दृष्टि में रखा किंतु अब मैं तुम लोगों को कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शैली की ओर बुलाता हूं क्योंकि अब परिस्थितियां एसी हो गयी हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की शैली नष्ट हो चुकी है और इसके स्थान पर धर्म से दूर विषयों को धर्म में शामिल कर लिया गया है। यदि तुम लोग मेरे निमंत्रण को स्वीकार करते हो तो मैं कल्याण व सफलता का मार्ग तुम लोगों को दिखाउंगा।

कर्बला के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा इस वास्तविकता का चिन्ह है कि इस्लाम एक एसा धर्म है जो आध्यात्मिक आयामों के साथ राजनीतिक व समाजिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक संभावनाओं का स्वामी है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में धर्म और राजनीति का जुड़ाव इस पूरे आंदोलन में जगह जगह नज़र आता है। वास्तव में यह आंदोलन, अत्याचारी शासकों के राजनीतिक व धार्मिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष था। सत्ता, नेतृत्व और अपने समाजिक भविष्य में जनता की भागीदारी, इस्लाम में अत्याधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है।

इसी लिए जब सत्ता किसी अयोग्य व्यक्ति के हाथ में चली जाए और वह धर्म की शिक्षाओं और नियमों पर ध्यान न दे तो इस स्थिति में ईश्वरीय आदेशों के कार्यान्वयन को निश्चित नहीं समझा जा सकता और फेर बदल तथा नये नये विषय, धर्म की मूल शिक्षाओं में मिल जाते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इन परिस्थितियों को सुधारने के विचार के साथ संघर्ष व आंदोलन का मार्ग अपनाया। क्योंकि वे देख रहे थे कि ईश्वरीय दूत की करनी व कथनी को भुला दिया गया है और धर्म से अलग विषयों को धर्म का रूप देकर समाज के सामने परोसा जा रहा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दृष्टि में मानवीय व ईश्वरीय आधारों पर, समाज-सुधार का सबसे अधिक प्रभावी साधन सत्ता है। इस स्थिति में पवित्र ईश्वरीय विचारधारा समाज में विस्तृत होती है और समाजिक न्याय जैसी मानवीय आंकाक्षाएं व्यवहारिक हो जाती हैं।

आशूर के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा का एक आधार, न्यायप्रेम और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। न्याय, धर्म के स्पष्ट आदेशों में से है कि जिसका प्रभाव मानव जीवन के प्रत्येक आयाम पर व्याप्त है। उमवी शासन श्रंखला की सब से बड़ी बुराई, जनता पर अत्याचार और उनके अधिकारों की अनेदेखी थी। स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती इस संदर्भ में मौन धारण नहीं कर सकती थी। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विचार में चुप्पी और लापरवाही, एक प्रकार से अत्याचारियों के साथ सहयोग था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में हुर नामक सेनापति के सिपाहियों के सामने अपने भाषण में कहते हैं।

हे लोगो! पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई किसी एसे अत्याचारी शासक को देखे जो ईश्वर द्वारा वैध की गयी चीज़ों को अवैध करता हो, ईश्वरीय प्रतिज्ञा व वचनों को तोड़ता हो, ईश्वरीय दूत की शैली का विरोध करता हो और अन्याय करता हो, और वह व्यक्ति एसे शासक के विरुद्ध अपनी करनी व कथनी द्वारा खड़ा न हो तो ईश्वर के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उस व्यक्ति को भी उसी अत्याचारी का साथी समझे। हे लोगो! उमैया के वंश ने भ्रष्टाचार और विनाश को स्पष्ट कर दिया है, ईश्वरीय आदेशों को निरस्त कर दिया है और जन संपत्तियों को स्वंय से विशेष कर रखा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के तर्क में अत्याचारी शासक के सामने मौन धारण करना बहुत बड़ा पाप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में स्वतंत्रता प्रेम, उदारता और आत्मसम्मान का सागर ठांठे मार रहा था। यह विशेषताएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अन्य लोगों से भिन्न बना देती हैं। उनमें प्रतिष्ठा व सम्मान इस सीमा तक था कि जिसके कारण वे यजीद जैसे भ्रष्ट व पापी शासक के आदेशों के पालन की प्रतिज्ञा नहीं कर सकते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में ऐसे शासक की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का परिणाम जो ईश्वर और जनता के अधिकारों का रक्षक न हो, अपमान और तुच्छता के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। इसी लिए वे, अभूतपूर्व साहस व वीरता के साथ अत्याचार व अन्याय के प्रतीक यजीद की आज्ञापालन के विरुद्ध मज़बूत संकल्प के साथ खड़े हो जाते हैं और अन्ततः मृत्यु को गले लगा लेते हैं। वे मृत्यु को इस अपमान की तुलना में वरीयता देते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में मानवीय सम्मान का इतना महत्व है कि यदि आवश्यक हो तो मनुष्य को इसकी सुरक्षा के लिए अपने प्राण की भी आहूति दे देनी चाहिए।

इस प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में एसे जीवंत और आकर्षक विचार नज़र आते हैं जो इस आंदोलन को इस प्रकार के सभी आंदोलनों से भिन्न बना देते हैं। यही कारण है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का स्वतंत्रताप्रेमी आंदोलन, सभी युगों में प्रेरणादायक और प्रभावशाली रहा है और आज भी है।