رضوی

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हुजतुल इस्लाम पूर आरयन ने कहा: इस्लामी समाज में इस महान दिन की स्थिति और महत्व को समझाने की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है और इन दिनों में हमारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) के गुणों का वर्णन करना और ग़दीर का उल्लेख करना चाहिए।

ईरान के क़ज़विन प्रांत में प्रचार मामलों के महानिदेशक, हुज्जतुल इस्लाम पूर आरयन ने प्रांत में ईद ग़दीर के अवसर पर जश्न मनाने और कार्यक्रम आयोजित करने के लिए आयोजित एक बैठक में बोलते हुए कहा: ग़दीर बहुत कीमती है।

उन्होंने पवित्र पैगंबर की एक हदीस का उल्लेख किया,और कहा: ग़दीर खुम का दिन इस्लामी उम्माह की सबसे बड़ी ईद है और यह वह दिन है जिसे भगवान ने आदेश दिया है और इसे एक सबसे बड़ी ईदों में से घोषित किया है और इस दिन मेरे भाई अमीरुल मोमिनीन (अ) को मेरे हबीब (स) के उम्मत का नेता और कमांडर नियुक्त किया गया है ताकि उनके बाद उनके माध्यम से मार्गदर्शन किया जा सके और यही वह दिन है जिस पर अल्लाह तआला ने अपने धर्म की स्थापना की और अपनी उम्मत पर पूर्णता और आशीर्वाद प्रदान किया और इस्लाम को अपना धर्म बनाया।

हुज्जतुल इस्लाम पूर आरयन ने कहा: इस्लामी समाज में इस महान दिन के महत्व का वर्णन करना सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है और इन दिनों में हमारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य हज़रत अमीरुल मोमिनीन (उन पर शांति हो) के गुणों का वर्णन करना और ग़दीर का उल्लेख करना चाहिए।

उन्होंने ख़ुत्बा ग़दीर पढ़ने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया और कहा: हज़रत अली (अ) के गुणों का उल्लेख करने के उद्देश्य से विभिन्न स्थानों पर सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

एक रिपोर्ट के अनुसार,हिज़्बुल्लाह के सबसे बड़े हमले में 100 मिसाइलें फायर की गयीं और इस हमले में पहली बार अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के उत्तर में स्थित तबरिया क्षेत्र को निशाना बनाया गया हैं।

प्राप्त रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि हिज़्बुल्लाह ने बुधवार को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन पर मिसाइलों से बड़ा हमला किया जिसकी वजह से जायोनी सरकार से सफ़द शहर के बहुत से क्षेत्रों की बिजली कट गई।

लेबनानी प्रतिरोध के सबसे बड़े हमले में 100 मिसाइलें फायर की गयीं और इस हमले में पहली बार अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के उत्तर में स्थित तबरिया क्षेत्र को निशाना बनाया गया।

मिसाइलों की संख्या और उनके प्रकार की दृष्टि से यह हिज़्बुल्लाह का सबसे बड़ा हमला था। पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार इस मिसाइल हमले के दौरान अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के उत्तर में सायरन बजने लगे।

 कहा जा रहा है कि इस हमले में जायोनी सरकार की हथियार बनाने वाली राफ़ाएल कंपनी को सीधे रूप से निशाना बनाया गया हिज़्बुल्लाह के मिसाइल हमले कारण जायोनी सरकार के सफ़द शहर के बहुत से क्षेत्रों की बिजली कट गयी।

 फ़िलिस्तीन की न्यूज़ एजेन्सी "समा" ने भी अपनी रिपोर्ट में एलान किया है कि बहुत से मिसाइल जायोनी सेना की स्ट्रैटेजिक हवाई छावनी मीरून और उसके पास के क्षेत्रों पर गिरे। इस हमले से होने वाली जानी व माली क्षति के बारे में अभी तक कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है।

 पिछले कई महीनों से हिज़्बुल्लाह ग़ज्ज़ा पट्टी और दूसरे फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में जायोनी सरकार के नस्ली सफ़ाये और भीषण व जघन्य अपराधों के जवाब में अवैध अधिकृत फिलिस्तीन के उत्तर में स्थित जायोनी सेना के ठिकानों को लक्ष्य बना रहा है।

भारत ने चीन और पाकिस्तान के द्वारा पीओके में बनाए जा रहे आर्थिक गलियारे का एक बार फिर विरोध करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के मसले पर किसी भी अन्य देश की दखलअंदाजी हमें बर्दाश्त नहीं है।

बीजिंग में चीन-पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर एक साझा बयान दिया था जिस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और हमेशा रहेगा।

इस बयान में चीन ने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में भारत की एकतरफा कार्रवाई के विरोध में है। भारत और पाकिस्तान के बीच इस मुद्दे को लेकर लंबे समय से विरोध रहा है। ऐसे में इस मसले को शांति से हल करने के लिए यूएन चार्टर और यूएन काउंसिल के प्रस्तावों के जरिए हल किया जाना चाहिए।

चीन-पाकिस्तान इकोनाॅमिक कोरिडोर शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना है। इसकी शुरुआत 2013 में हुई थी। इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान के ग्वादर से चीन के काश्गर तक 3 लाख करोड़ रुपये की लागत से आर्थिक गलियारा बनाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के जरिए की चीन का सामान सीधे अरब सागर के जरिए अफ्रीकी और मध्य एशियाई देशों तक पहुंच सकेगा। CPEC के तहत चीन पीओके में सड़क, बंदरगाह, ऊर्जा और रेलवे के प्रोजेक्ट्स पर एक साथ काम कर रहा है।

मुंबई हाई कोर्ट ने जीव मैत्री ट्रस्ट और अनूप कुमार रज्जन पाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

 बंबई हाई कोर्ट ने बृहस्पतिवार को बकरीद के दौरान मुंबई में पशुओं की कुर्बानी करने की इजाजत देने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। जस्टिस एम एस सोनक और न्यायमूर्ति कमल खता की बेंच ने जीव मैत्री ट्रस्ट और अनूप कुमार रज्जन पाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पर्व से कुछ दिन पहले याचिकाकर्ता को कोई राहत देना उचित नहीं होगा।

पशुओं के संरक्षण के लिए काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन ‘जीव मैत्री ट्रस्ट’ ने बीएमसी द्वारा 29 मई को जारी उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें बकरीद पर्व के मौके पर 17 से 19 जून तक 67 निजी दुकानों और नगर निकाय के 47 बाजारों में पशुओं के कुर्बानी की इजाजत दी गई थी।

 

विश्व बैंक द्वारा 2024-2025 में ईरान की आर्थिक वृद्धि का अंदाज़ा 5 प्रतिशत घोषित किया गया था।

तेहरान के खिलाफ वाशिंगटन के अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों के बीच विश्व बैंक द्वारा ईरान की अर्थव्यवस्था की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।

विश्व बैंक की भविष्यवाणियों में 2024-2025 में ईरान की आर्थिक वृद्धि पांच फीसदी की दर से बढ़ने का एलान किया गया है जो 2022 के 8.3 फ़ीसदी की दर से थी।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में अपने आंकड़े में हालिया वर्षों में ईरान की आर्थिक वृद्धि का एलान किया है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में ईरान की वार्षिक आर्थिक वृद्धि 8.3 प्रतिशत थी जो पिछले आठ वर्षों में यानी 2013 से 2021 के अंत तक आर्थिक वृद्धि का 2.5 गुना है।

उत्तर प्रदेश प्रशासन और पुलिस की ओर से शहरों में सड़क पर नमाज अदा न करने की अपील के बाद ही शहर क़ाज़ी ने मुख्ययमंत्री को पात्र लिखते हुए शाही ईद गाह के बाहर सड़क पर नमाज़ अदा करने की मांग की।

बकरीद के अवसर पर दिल्ली रोड स्थित शाही ईदगाह के बाहर सड़क पर नमाज अदा करने की अनुमति दिए जाने को लेकर शहर काजी जैनुस साजिदीन ने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को पत्र लिखा है।

शहर काजी ने बताया कि अन्य धर्मों के लोगों के पर्वों पर सड़काे पर जुलूस और शोभायात्रा निकाली जाती हैं और आयोजन होते हैं और उन पर कोई रोक नहीं लगाई जाती उसी तरह बकरीद के अवसर पर शाही ईदगाह के भर जाने अकीदतमंदों को सड़कों पर नमाज अदा करने की छूट दी जाए।

सऊदी अरब में इन दिनों दुनिया भर के कोने कोने से हाजियों के पहुँचने का सिलसिला जारी है। सऊदी अरब के मक्का में बड़ी संख्या में हाजियों ने हज की आधिकारिक शुरुआत के लिए मिना की ओर जाने से एक दिन पहले गुरुवार को इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल काबा का तवाफ़ किया। सऊदी अधिकारियों के अनुसार मंगलवार तक यहां 15 लाख से अधिक तीर्थयात्री पहुंच चुके थे। अभी और लोगों के आने की उम्मीद है।

ऐसे कुछ लोग हैं जो दुनिया के लालची हैं और उन्हों ने अपनी ख़ाहिशात को भी हासिल कर लिया हैं यहाँ तक कि उस काम का अंजाम बद नसीबी और नाकामी है। इसी के साथ ऐसा भी होता है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आख़ेरत के कामों से कतराते हैं और उन को हासिल भी कर लेते हैं लेकिन उसी के ज़रिये ख़ुशनसीबी भी हासिल कर लेते हैं। (बिहारुल अनवार)

हज़रत ने फ़रमायाः मैं तुम्हें पाँच चीज़ों की सिफ़ारिश करता हूः-

अगर तुम पर ज़ुल्म किया जाये तो तुम बदले में ज़ुल्म न करो

अगर तुम्हारे साथ धोका किया जाये तो तुम धोका न देना,

अगर तुम्हें झुटलाया जाये तो तुम नाराज़ न होना

अगर तुम्हारी तारीफ़ की जाये तो तुम ख़ुश न होना,

अगर तुम्हें बुरा कहा जाये तो तुम बेचैनी का इज़हार न करना।

 (बिहारुल अनवार दारे एहया अर्बी जिल्द )

हज़रत ने फ़रमायाः

अच्छी बातें चाहे जिस से भी हों, चाहे उस पर अमल न किया जाये फिर भी सीख लो,

 (बिहारुल अनवार दारे एहया अर्बी जिल्द सफ़्हा,170)

हज़रत ने फ़रमायाः

 कोई भी चीज़ ऐसी चीज़ से मिली नहीं है जो कि इल्म के साथ हिल्म जैसी मिला हो।

(बिहारुल अनवार दारे एहया अर्बी जिल्द सफ़्हा 172)

नाम व लक़ब (उपाधियां)आपका नाम मुहम्मद व आपका मुख्य लक़ब बाक़िरूल उलूम है।

जन्म तिथि व जन्म स्थान

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 57 हिजरी मे रजब मास की प्रथम तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।

माता पिता

हज़रत इमाम बाकिर अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़ातिमा पुत्री हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम हैं।

पालन पोषण

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का पालन पोषण तीन वर्षों की आयु तक आपके दादा इमाम हुसैन व आपके पिता इमाम सज्जाद अलैहिमुस्सलाम की देख रेख मे हुआ। जब आपकी आयु साढ़े तीन वर्ष की थी उस समय कर्बला की घटना घटित हुई। तथा आपको अन्य बालकों के साथ क़ैदी बनाया गया। अर्थात आप का बाल्य काल विपत्तियों व कठिनाईयों के मध्य गुज़रा।

 

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का शिक्षण कार्य़

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत की अवधि मे शिक्षा के क्षेत्र मे जो दीपक ज्वलित किये उनका प्रकाश आज तक फैला हुआ हैं। इमाम ने फ़िक़्ह व इस्लामी सिद्धान्तो के अतिरिक्त ज्ञान के अन्य क्षेत्रों मे भी शिक्षण किया। तथा अपने ज्ञान व प्रशिक्षण के द्वारा ज्ञानी व आदर्श शिष्यों को प्रशिक्षित कर संसार के सम्मुख उपस्थित किया। आप अपने समय मे सबसे बड़े विद्वान माने जाते थे। महान विद्वान मुहम्मद पुत्र मुस्लिम ,ज़ुरारा पुत्र आयुन ,अबु नसीर ,हश्शाम पुत्र सालिम ,जाबिर पुत्र यज़ीद ,हिमरान पुत्र आयुन ,यज़ीद पुत्र मुआविया अजःली ,आपके मुख्यः शिष्यगण हैं।

इब्ने हज्रे हीतमी नामक एक सुन्नी विद्वान इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखता है कि इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने संसार को ज्ञान के छुपे हुए स्रोतो से परिचित कराया। उन्होंने ज्ञान व बुद्धिमत्ता का इस प्रकार वर्नण किया कि वर्तमान समय मे उनकी महानता सब पर प्रकाशित है।ज्ञान के क्षेत्र मे आपकी सेवाओं के कारण ही आपको बाक़िरूल उलूम कहा जाता है। बाक़िरूल उलूम अर्थात ज्ञान को चीर कर निकालने वाला।

अब्दुल्लाह पुत्र अता नामक एक विद्वान कहता है कि मैंने देखा कि इस्लामी विद्वान जब इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की सभा मे बैठते थे तो ज्ञान के क्षेत्र मे अपने आपको बहुत छोटा समझते थे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने कथनो को सिद्ध करने के लिए कुऑन की आयात प्रस्तुत करते थे। तथा कहते थे कि मैं जो कुछ भी कहूँ उसके बारे मे प्रश्न कर ?मैं बताऊँगा कि वह कुरआन मे कहाँ पर है।

इमाम बाक़िर और ईसाई पादरी

एक बार इमाम बाक़िर (अ.स.) ने अमवी बादशाह हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम का सफर किया और वहा से वापस लौटते वक्त रास्ते मे एक जगह लोगो को जमा देखा और जब आपने उनके बारे मे मालूम किया तो पता चला कि ये लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे मे जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके ये सुन कर इमाम बाकिर (अ.स) भी उस मजमे मे तशरीफ ले गऐ।

थोड़ा ही वक्त गुज़रा था कि वो बुज़ुर्ग पादरी अपनी शानो शोकत के साथ जलसे मे आ गया और जलसे के बीच मे एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारो तरफ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगो के बीच बैठे हुऐ इमाम (अ.स) पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख्सीयत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम (अ.स )से पूछा कि हम ईसाईयो मे से हो या मुसलमानो मे से ?????

इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः मुसलमानो मे से।

पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो मे से हो या जाहिलो मे से ?????

इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः जाहिलो मे से नही हुँ।

पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे ?????

इमाम (अ.स) ने फरमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।

पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत मे लोग खाऐंगे-पियेंगे लेकिन पैशाब-पैखाना नही करेंगे ?क्या इस दुनिया मे इसकी कोई दलील है ?

इमाम (अ.स) ने फरमायाः हाँ ,इसकी दलील माँ के पेट मे मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पेखाना नही करता।

पादरी ने कहाः ताज्जुब है आपने तो कहा था कि आलिमो मे से नही हो।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः मैने ऐसा नही कहा था बल्कि मैने कहा था कि जाहिलो मे से नही हुँ।

उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः बिस्मिल्लाह ,सवाल करे।

पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतो फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वो कम नही होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे।

क्या इसकी कोई दलील है ?

इमाम (अ.स) ने फरमायाः बेशक इस दुनिया मे इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लौ और रोशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारो चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रोशन रहेगा ओर उसमे कोई कमी नही होगी।

पादरी की नज़र मे जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम (अ.स) से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम (अ.स) से हासिल किये और जब वो अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत गुस्से आकर कहने लगाः

ऐ लोगों एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़्यादा है यहा ले आऐ हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।

खुदा कि क़सम फिर कभी तुमसे बात नही करुगां और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) मे नही देखोंगे।

इस बात को कह कर वो अपनी जगह से खड़ा हुआ और बाहर चला गया।

हज़रते इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के कथन

१. जो शख़्स किसी मुसलमान को धोका दे या सताये वह मुसलमान नहीं।

२. यतीम बच्चों पर माँ बाप की तरह मेहरबानी करो।

३. खाने से पहले हाथ धोने से फ़ख़्र (निर्धनता) कम होता है और खाने के बाद हाथ धोने से ग़ुस्सा (क्रोध) ।

४. क़र्ज़ कम करो ताकि आज़ाद रहो और गुनाह (पाप) कम करो ताकि मौत में आसानी हो।

५. हमेशा नेक काम करो ताकि फ़ायदा उठाओ बुरी बातों से परहेज़ (बचो) करो ताकि हमेशा महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहो।

६. ताअत (अनुसरण) व क़नाअत (आत्मसंतोष) बे नियाज़ी (बे परवाही) और इज़्ज़त का बायस है और गुनाह व लालच बदबख़्ती (अभाग्य) और ज़िल्लत का मोजिब (कारण) है।

७. जिस लज़्ज़त में अन्जाम कार पशेमानी हो नेकी नहीं।

८. दुनिया फ़क़त दो आदमियों के लिये बायसे ख़ैर (शुभ होने का कारण) है एक वह जो नेक आमाल में रोज़ इज़ाफ़ा करे ,दूसरा वह जो गुज़िश्ता गुनाहों (भूतकालीन पाप) की तलाफ़ी तौबा (प्रायश्चित) के ज़रिये करे।

९. अक़लमन्द वह है जिसका किरदार (चरित्र) उसकी गुफ़्तार (कथन) की तसदीक़ (प्रमाणित) करे और लोगों से नेकी का बर्ताव (व्यवहार) करे।

१०. बदतरीन शख़्स वह जो अपने को बेहतरीन (अच्छा) शख़्स ज़ाहिर करे।

११. अपने दोस्त के दुश्मनों से रफ़ाक़त (मित्रता) मत करो वरना अपने दोस्त को गवाँ (खो) दोगे।

१२. हर काम को उसके वक़्त (समय) पर अन्जाम (पूरा करो) दो जल्दबाज़ी से परहेज़ (बचो) करो।

१३. बड़े गुनाहों का कफ़्फ़ारा (रहजाना) बेकसों की मदद और ग़मज़दो की दिलजूई में है।

१४. जो दिन गुज़र गया वह तो पलट कर आयेगा नहीं और आने वाले कल पर भरोसा किया नहीं जा सकता।

१५. हर इन्सान अपनी ज़बान के नीचे पोशीदा (छिपा) है जब बात करता है तो पहचाना जाता है।

१६. माहे मुबारक रमज़ान के रोज़े अज़ाबे इलाही के लिये ढाल हैं।

१७. काहिली से बचो (क्योंकि) काहिल अपने हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) अदा नहीं कर सकता।

१८. तुम में सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो नादानों (अज्ञानियों) से फ़रार ( दूर भागे) करे।

१९. बुज़ुर्गों (अपने से बड़ों का) का एहतेराम (आदर) करो क्योंकि उनका एहतेराम (आदर) ख़ुदा की इबादत (तपस्या) के मानिन्द (तरह) है।

२०. सिल्हे रहम (अच्छा सुलूक) घरों की आबादी और तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) है।

२१. इसराफ़ (अपव्यय) में नेकी (अच्छाई) नहीं और नेकियों में इसराफ़ का वुजूद (अस्तित्व) नहीं।

२२. जिस मामले में पूरी वाक़्फ़ियत (जानकारी) नहीं उसमें दख़्ल मत दो वरना (मौक़े की ताक में रहने वाले) बुरे और बदकिरदार (दुष्कर्मी) लोग तुमकों मलामत का निशाना बनायेंगे।

२३. हमेशा लोगों से सच बोलो ताकि सच सुनों (याद रखो) सच्चाई तलवार से भी ज़्यादा तेज़ है।

२४. लोगों से मुआशेरत (अच्छा रहन सहन) निस्फ़ (आधा) ईमान है और उनसे नर्म बर्ताव आधी ज़िन्दगी।

२५. ज़ुल्म (अन्याय) फ़ौरी (तुरन्त) अज़ाब का बायस है।

२६. नागहानिए हादसात (अचानक घटनायें) से बचाने वाली कोई चीज़ दुआ से बेहतर नहीं ।

२७. मुनाफिक़ (जिसका अन्दरुनी और बाहरी व्यवहार में अन्तर हो ) से भी ख़ुश अख़लाक़ी से बात करो ।

२८. मोमिन से दोस्ती में ख़ुलूस पैदा करो ।

२९. हक़ (सत्य) के रास्ते (पथ) पर चलने के लिए सब्र का पेशा इख़्तियार करो ।

३०. ख़ुदावन्दे आलम मज़लूमों (जिनके साथ अन्याय किया गया हो) की फ़रयाद को सुनता है और सितमगारों (जिन्होंने ज़ुल्म किया हो) के लिए कमीनगाह में है ।

३१. सलाम और ख़ुश गुफ़्तारी गुनाहों से बख़्शिश (मुक्ति) का बायस (कारण) है।

३२. इल्म (ज्ञान) हासिल (प्राप्त) करो ताकि लोग तुम्हें पहचानें और उस पर अमल करो ताकि तुम्हारा शुमार ओलमा (ज्ञानियों) में हो।

 

३३. इबादते इलाही में ख़ास ख़्याल रखो आमाले ख़ैर (शुभकार्य) में जल्दी करो और बुराईयों से इज्तेनाब (बचो) करो।

३४. जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं क्या छोड़ा लेकिन जब फ़रिश्ते (ईश्वरीय दूत) सवाल करते हैं क्या भेजा ?

३५. बेहतरीन इन्सान वह है जिसका वजूद दूसरों के लिये फ़ायदा रसां (लाभकारी) हो।

३६. क़ायम आले मोहम्मद (अ.स.) वह इमाम हैं जिनको ख़ुदावन्दे आलम तमाम मज़ाहब पर ग़लबा ऐनायत (प्रदान) करेगा।

३७. खाना ख़ूब चबाकर खाओ और सेर होने से पहले खाना छोड़ दो।

३८. ख़ालिस इबादत (सच्चे मन से तपस्या) यह है कि इन्सान ख़ुदा के सिवा किसी से उम्मीदवार न हो और अपने गुनाहों के अलावा किसी से डरे नहीं।

३९. उजलत (जल्दी) हर काम में नापसन्दीदा मगर रफ़े शर (बुराई को दूर करने में) में।

४०. जिस तरह इन्सान अपने लिये तहक़ीराना (अनादर) लहजा नापसन्द करता है दूसरों से भी तहक़ीराना (अनादर) लहजे में गुफ़्तगू (बात चीत) न करे।

शहादत (स्वर्गवास)

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 114 हिजरी मे ज़िलहिज्जा मास की सातवीँ (7) तिथि को सोमवार के दिन हुई। बनी उमैय्या के ख़लीफ़ा हश्शाम पुत्र अब्दुल मलिक के आदेशानुसार एक षड़यन्त्र के अन्तर्गत आपको विष पान कराया गया। शहादत के समय आपकी आयु 57 वर्ष थी।

समाधि

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीने के जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। प्रत्येक वर्ष लाखो श्रृद्धालु आपकी समाधि पर सलाम व दर्शन हेतू जाते हैं।

गुरुवार, 13 जून 2024 18:08

हज क्या है?

यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं........... यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं। इस समय

यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं...........

यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं। इस समय लाखों की संख्या में मुसलमान ईश्वरीय संदेश की भूमि मक्के में एकत्रित हो रहे हैं।  विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से लोग गुटों और जत्थों में ईश्वर के घर की ओर जा रहे हैं और एकेश्वरवाद के ध्वज की छाया में वे एक बहुत व्यापक एकेश्वरवादी आयोजन का प्रदर्शन करेंगे। हज में लोगों की भव्य उपस्थिति, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की प्रार्थना के स्वीकार होने का परिणाम है जब हज़रत इब्राहमी अपने बेटे इस्माईल और अपनी पत्नी हाजरा को इस पवित्र भूमि पर लाए और उन्होंने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! मैंने अपनी संतान को इस बंजर भूमि में तेरे सम्मानीय घर के निकट बसा दिया है। प्रभुवर! ऐसा मैंने इसलिए किया ताकि वे नमाज़ स्थापित करें तो कुछ लोगों के ह्रदय इनकी ओर झुका दे और विभिन्न प्रकार के फलों से इन्हें आजीविका दे, कदाचित ये तेरे प्रति कृतज्ञ रह सकें।शताब्दियों से लोग ईश्वर के घर के दर्शन के उद्देश्य से पवित्र नगर मक्का जाते हैं ताकि हज जैसी पवित्र उपासना के लाभों से लाभान्वित हों तथा एकेश्वरवाद का अनुभव करें और एकेश्वरवाद के इतिहास को एक बार निकट से देखें।  यह महान आयोजन एवं महारैली स्वयं रहस्य की गाथा कहती है जिसके हर संस्कार में रहस्य और पाठ निहित हैं।  हज का महत्वपूर्ण पाठ, ईश्वर के सम्मुख अपनी दासता को स्वीकार करना है कि जो हज के समस्त संस्कारों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।  इन पवित्र एवं महत्वपूर्ण दिनों में हम आपको हज के संस्कारों के रहस्यों से अवगत करवाना चाहते हैं।    मनुष्य की प्रवृत्ति से इस्लाम की शिक्षाओं का समन्वय, उन विशेषताओं में से है जो सत्य और पवित्र विचारों की ओर झुकाव का कारण है।  यही विशिष्टता, इस्लाम के विश्वव्यापी तथा अमर होने का चिन्ह है।  इस आधार पर ईश्वर ने इस्लाम के नियमों को समस्त कालों के लिए मनुष्य की प्रवृत्ति से समनवित किया है।  हज सहित इस्लाम की समस्त उपासनाएं, हर काल की परिस्थितियों और हर काल में मनुष्य की शारीरिक, आध्यात्मिक, व्यक्तिगत तथा समाजी आवश्यकताओं के बावजूद उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।  इस्लाम की हर उपासना का कोई न कोई रहस्य है और इसके मीठे एवं मूल्यवान फलों की प्राप्ति, इन रहस्यों की उचित पहचान के अतिरिक्त किसी अन्य मार्ग से कदापि संभव नहीं है।  हज भी इसी प्रकार की एक उपासना है।  ईश्वर के घर के दर्शन करने के उद्देश्य से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से लोग हर प्रकार की समस्याएं सहन करते हुए और बहुत अधिक धन ख़र्च करके ईश्वरीय संदेश की धरती मक्का जाते हैं तथा “मीक़ात” नामक स्थान पर उपस्थित होकर अपने साधारण वस्त्रों को उतार देते हैं और “एहराम” नामक हज के विशेष कपड़े पहनकर लब्बैक कहते हुए मोहरिम होते हैं और फिर वे मक्का जाते हैं।  उसके पश्चात वे एकसाथ हज करते हैं।  पवित्र नगर मक्का पहुंचकर वे सफ़ा और मरवा नामक स्थान पर उपासना करते हैं।  उसके पश्चात अपने कुछ बाल या नाख़ून कटवाते हैं।  इसके बाद वे अरफ़ात नामक चटियल मैदान जाते हैं।  आधे दिन तक वे वहीं पर रहते हैं जिसके बाद हज करने वाले वादिये मशअरूल हराम की ओर जाते हैं।  वहां पर वे रात गुज़ारते हैं और फिर सूर्योदय के साथ ही मिना कूच करते हैं।  मिना में विशेष प्रकार की उपासना के बाद वापस लौटते हैं उसके पश्चात काबे की परिक्रमा करते हैं।  फिर सफ़ा और मरवा जाते हैं और उसके बाद तवाफ़े नेसा करने के बाद हज के संस्कार समाप्त हो जाते हैं।  इस प्रकार हाजी, ईश्वरीय प्रसन्नता की प्राप्ति की ख़ुशी के साथ अपने-अपने घरों को वापस लौट जाते हैं।हज जैसी उपासना, जिसमें उपस्थित होने का अवसर समान्यतः जीवन में एक बार ही प्राप्त होता है, क्या केवल विदित संस्कारों तक ही सीमित है जिसे पूरा करने के पश्चात हाजी बिना किसी परिवर्तन के अपने देश वापस आ जाए?  नहीं एसा बिल्कुल नहीं है।  हज के संस्कारों में बहुत से रहस्य छिपे हुए हैं।  इस महान उपासना में निहित रहस्यों की ओर कोई ध्यान दिये बिना यदि कोई हज के लिए किये जाने वाले संस्कारों की ओर देखेगा तो हो सकता है कि उसके मन में यह विचार आए कि इतनी कठिनाइयां सहन करना और धन ख़र्च करने का क्या कारण है और इन कार्यों का उद्देश्य क्या है?  पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में इब्ने अबिल औजा नामक एक बहुत ही दुस्साहसी अनेकेश्वरवादी, एक दिन इमाम सादिक़ (अ) की सेवा में आकर कहने लगा कि कबतक आप इस पत्थर की शरण लेते रहेंगे और कबतक ईंट तथा पत्थर से बने इस घर की उपासना करते रहेंगे और कबतक उसकी परिक्रमा करते रहेंगे?  इब्ने अबिल औजा की इस बात का उत्तर देते हुए इमाम जाफ़र सादिक़ अ. ने काबे की परिक्रमण के कुछ रहस्यों की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह वह घर है जिसके माध्यम से ईश्वर ने अपने बंदों को उपासना के लिए प्रेरित किया है ताकि इस स्थान पर पहुंचने पर वह उनकी उपासना की परीक्षा ले।  इसी उद्देश्य से उसने अपने बंदों को अपने इस घर के दर्शन और उसके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया और इस घर को नमाज़ियों का क़िब्ला निर्धारित किया।  पवित्र काबा, ईश्वर की प्रसन्नता की प्राप्ति का केन्द्र और उससे पश्चाताप का मार्ग है  अतः वह जिसके आदेशों का पालन किया जाए और जिसके द्वारा मना किये गए कामों से रूका जाए वह ईश्वर ही है जिसने हमारी सृष्टि की है।    इसलिए कहा जाता है कि हज का एक बाह्य रूप है और एक भीतरी रूप।  ईश्वर एसे हज का इच्छुक है जिसमें हाजी उसके अतिरिक्त किसी अन्य से लब्बैक अर्थात हे ईश्वर मैंने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया न कहे और उसके अतिरिक्त किसी अन्य की परिक्रमा न करे।  हज के संस्कारों का उद्देश्य, हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माईल, और हज़रत हाजरा जैसे महान लोगों के पवित्र जीवन में चिंतन-मनन करना है।  जो भी इस स्थान की यात्रा करता है उसे ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की उपासना से मुक्त होना चाहिए ताकि वह हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल जैसे महान लोगों की भांति ईश्वर की परीक्षा में सफल हो सके।  इस्लाम में हज मानव के आत्मनिर्माण के एक शिविर की भांति है जिसमें एक निर्धारित कालखण्ड के लिए कुछ विशेष कार्यक्रम निर्धारित किये गए हैं।  एक उपासना के रूप में हज, मनुष्य पर सार्थक प्रभाव डालती है।  हज के संस्कार कुछ इस प्रकार के हैं जो प्रत्येक मनुष्य के अहंकार और अभिमान को किसी सीमा तक दूर करते हैं।  अल्लाहुम्म लब्बैक के नारे के साथ अर्थात हे ईश्वर मैंने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया, ईश्वर के घर की यात्रा करने वाले लोग अन्य क्षेत्रों में भी एकेश्वर की बारगाह में अपनी श्रद्धा को प्रदर्शित करने को तैयार हैं।  लब्बैक को ज़बान पर लाने का अर्थ है ईश्वर के हर आदेश को स्वीकार करने के लिए आध्यात्मिक तत्परता का पाया जाना।इस प्रकार हज के संस्कार, मनुष्य को उच्च मानवीय मूल्यों और भौतिकता पर निर्भरता को दूर करने के लिए प्रेरित करते हैं।  इस मानवीय यात्रा की प्रथम शर्त, हृदय की स्वच्छता है अतःहृदय को ईश्वर के अतिरिक्त हर चीज़ से अलग करना चाहिए।  जबतक मनुष्य पापों में घिरा रहता है उस समय तक ईश्वर के साथ एंकात की मिठास का आभास नहीं कर सकता।  ईश्वर से निकटता के लिए पापों से दूरी का संकल्प करना चाहिए।  हज के स्वीकार होने की यह शर्त है।  जब दैनिक गतिविधियां मनुष्य को हर ओर से घेर लेती हैं और उच्चता क