رضوی

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जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा (स.) ने अपनी वसीयत में इमाम अली (अ.) से फ़रमाया कि मुझे रात में दफ़न करना ताकि ज़ालिमों को मेरी तद्फीन में हिस्सा न मिले। आपकी क़ब्र आज भी दुनिया से छुपी हुई है, जो आपकी मज़लूमियत का सबूत है।

अय्याम -ए-फ़ातेमिया, जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की याद में मनाया जाता है। ये दिन उस दुख भरी दास्तान की याद दिलाते हैं जो हज़रत ज़हरा (स.) ने रसूलुल्लाह (स.अ.व.) की वफ़ात के बाद बर्दाश्त किए थे। ऐयाम-ए-फ़ातेमिया में, पूरी दुनिया के शिया जनाब-ए-ज़हरा (स.) की मज़लूमियत की याद में मजलिसें आयोजित करते हैं, नौहा पढ़ते हैं और सोग मनाते हैं। यह मातम सिर्फ़ उनके लिए नहीं है, बल्कि उनके हक़ और अद्ल की आवाज़ को ज़िंदा रखने के लिए है।

जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा (स.) की मज़लूमियत:

हज़रत फ़ातमा ज़हरा (स.) रसूलुल्लाह (स.अ.व.) की सबसे प्यारी बेटी थीं, जिन्हें "उम्म-ए-अबीहा" (अपने पिता की माँ) कहा जाता था। आपने इस्लाम के शुरुआती दौर में नबी करीम (स.अ.व.) का पूरा साथ दिया। लेकिन नबी (स.अ.व.) की वफ़ात के बाद, दुनिया ने आपको उस एहतेराम से  नहीं नवाज़ा जिसकी आप हक़दार थीं। आपने अपने हक़ और विलायत-ए-अली (अ.) के लिए आवाज़ उठाई, लेकिन आपके साथ नाइंसाफ़ी की गई। आपके घर का दरवाज़ा जलाया गया, आपके घर पर हमला किया गया, और आपको शारीरिक रूप से चोट पहुँचाई गई।

जब रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने फ़रमाया था, "फ़ातिमा मेरा हिस्सा हैं," तो क्या ये वही लोग थे जो इस बात को भूल गए? जनाब-ए-ज़हरा (स.) ने अपने हक़ के लिए 'ख़ुत्बा-ए-फ़दक' दिया, जिसमें आपने न केवल फ़दक की बात की, बल्कि दीन के असल उसूलों पर रोशनी डाली। लेकिन आपका हक़ छीना गया और आपकी आवाज़ को दबाया गया।

शहादत की रात:

जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा (स.) ने अपनी वसीयत में इमाम अली (अ.) से फ़रमाया कि मुझे रात में दफ़न करना ताकि ज़ालिमों को मेरी तद्फीन में हिस्सा न मिले। आपकी क़ब्र आज भी दुनिया से छुपी हुई है, जो आपकी मज़लूमियत का सबूत है।

अय्याम-ए-अज़ा-ए-फ़ातेमिया की अहमियत:

ये दिन हमें याद दिलाते हैं कि हम जनाब-ए-फ़ातिमा ज़हरा (स.) की कुर्बानियों और उनके हक़ की लड़ाई को कभी नहीं भूल सकते। इन दिनों में, हम उनकी मज़लूमियत को याद करके, अपनी अक़ीदत (आस्था) को और मजबूत करते हैं। इस मौके पर नौहा, मर्सिया और मातम के ज़रिए उनकी तकलीफ़ों को बयान किया जाता है, ताकि दुनिया को उनकी मज़लूमियत की दास्तान मालूम हो सके।

हमारी ज़िम्मेदारी

आज हमारी ये ज़िम्मेदारी बनती है कि हम ऐयाम-ए-फ़ातेमिया के दौरान जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा (स.) के फ़ज़ाइल और मसायब को आम करें। हमें उनकी सीरत को अपनाना चाहिए और उनके बताए हुए रास्ते पर चलना चाहिए। जनाब-ए-ज़हरा (स.) ने हमें सिखाया कि हक़ और अद्ल के लिए खड़े होना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।

ये दिन हमें रसूलुल्लाह (स.अ.व.) के इस फ़रमान की याद दिलाते हैं: "फ़ातिमा जन्नत की औरतों की सरदार हैं।" आज हम उनकी याद में आँसू बहाते हैं, उनके मसायब पर ग़मगीन होते हैं, और उनकी कुर्बानी के आगे सर झुकाते हैं।

या ज़हरा (स.), हमें आपकी शिफ़ाअत नसीब हो और आपकी मज़लूमी का दर्द हमारे दिलों में हमेशा ज़िंदा रहे।

 

 

 

 

 

यह आयत मुसलमानों को अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानने का महत्व बताती है। साथ ही, यह अल्लाह की दया और क्षमा के व्यापक द्वार की ओर ले जाता है। इस आयत के माध्यम से एक मुसलमान को यह संदेश दिया गया है कि वह पश्चाताप और क्षमा के माध्यम से अपनी गलतियों को सुधार सकता है और अल्लाह की दया से लाभ उठा सकता है।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ رَسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ وَلَوْ أَنَّهُمْ إِذْ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ جَاءُوكَ فَاسْتَغْفَرُوا اللَّهَ وَاسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُولُ لَوَجَدُوا اللَّهَ تَوَّابًا رَحِيمًا.    वमा अरसलना मिन रसूलिन इल्ला लेयोताआ बेइज़्निल्लाहे वलौ अन्नहुम इज़ ज़लमू अन्फ़ोसहुम जाऊका फ़स्तग़फ़ोरुल्लाहा वसतग़फ़रा लहोमुर रसूलो ला वजदुल्लाहा तव्वाबर रहीमा (नेसा 64)

 

अनुवाद: और हमने कोई पैगम्बर नहीं भेजा, सिवाय इसके कि वह बुद्धिमान ईश्वर की आज्ञा का पालन करे, और यदि वे लोग तुम्हारे पास आते और अपने पापों की क्षमा माँगते, यदि वे ऐसा करते और रसूल भी उनकी ओर से क्षमा माँगते , तो वे ईश्वर को बहुत पश्चाताप स्वीकार करने वाला और दयालु पाएंगे।

विषय:

पैग़म्बर मुहम्मद (स) की आज्ञाकारिता और हिमायत की भूमिका

पृष्ठभूमि:

इस आयत मे अल्लाह ने अपने रसूल (स) की स्थिति और गरिमा को स्पष्ट किया है। आयत इस बात पर जोर देती है कि सभी पैगंबरों को भेजने का उद्देश्य अल्लाह के आदेश का पालन करना है। आयत में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जब लोग अपने कार्यों से पाप करते हैं, तो उनके लिए पश्चाताप करने और अल्लाह के रसूल (स) की हिमायत करने का द्वार खुला होता है।

 

तफ़सीर:

  1. रसूल की आज्ञापालन की आवश्यकता: आयत में कहा गया है कि अल्लाह ने रसूल को आज्ञापालन के लिए भेजा है। यह आज्ञापालन अल्लाह के आदेश के अधीन है और पैगम्बर अल्लाह के आदेशों की अभिव्यक्ति हैं।
  2. तौबा का तरीका: अगर लोग कोई गुनाह करते हैं तो उन्हें अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के पास आना चाहिए, अल्लाह से माफ़ी मांगनी चाहिए और रसूल को उनके लिए माफ़ी मांगनी चाहिए।
  3. ईश्वरीय दया का द्वार: आयत के अंत में अल्लाह की दया और क्षमा का उल्लेख किया गया है। अल्लाह दयालु है और अपने बंदों की तौबा स्वीकार करने वाला है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. रसूल की आज्ञाकारिता अल्लाह की आज्ञाकारिता है: यह आयत पैगंबर (PBUH) की आज्ञाकारिता को अल्लाह की आज्ञाकारिता से जोड़ती है, जो विश्वास का मूल सिद्धांत है।
  2. रसूल की मध्यस्थता की भूमिका: अल्लाह के रसूल (स) पापियों के लिए अल्लाह के सामने मध्यस्थता करते हैं। यह उम्मत के लिए बहुत बड़ी सुविधा है।
  3. तौबा का महत्व: मनुष्य का अपने पापों का एहसास करना और अल्लाह की ओर फिरना ही उसकी क्षमा का साधन है।

परिणाम:

यह आयत मुसलमानों को अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानने का महत्व बताती है। साथ ही, यह अल्लाह की दया और क्षमा के व्यापक द्वार की ओर ले जाता है। इस आयत के माध्यम से एक मुसलमान को यह संदेश दिया गया है कि वह पश्चाताप और क्षमा के माध्यम से अपनी गलतियों को सुधार सकता है और अल्लाह की दया से लाभ उठा सकता है।

हरम-ए-इमाम रज़ा अ.स. के गैर मुल्की ज़ायरीन विभाग की कोशिशों से पाकिस्तान के शहर पाराचिनार में आतंकवाद की घटना में शहीद होने वाले शहीदों के इसाल-ए-सवाब और बुलंदी-ए-दराजात के लिए हरम-ए-इमाम रज़ा अ.स.में मजलिस का आयोजन किया गया।

एक रिपोर्ट के अनुसार , शहीदा ए पाराचिनार के इसाल-ए-सवाब के लिए मजलिस का आयोजन हरम-ए-इमाम रज़ा (अ.स.) के रवाक-ए-ग़दीर में किया गया इस मजलिस में उर्दू भाषा ज़ायरीन और मुज़ावरों की बड़ी संख्या ने शिरकत की।

हुज्जतुल इस्लाम दीदार अली अकबरी ने इस आतंकवादी घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि शहादत हमारा विरसा है जो हमें सय्यदुश शोहदा हज़रत हुसैन (अ.स.) से मिला है। इसलिए हम शहीद होने से डरते नहीं बल्कि इसे अपने लिए सम्मान समझते हैं।

अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि पाराचिनार के मज़लूम शहीद, कर्बला के शहीदों के रास्ते पर चल रहे हैं और फ़िलिस्तीन, ग़ज़ा, यमन और लेबनान के मज़लूमों की तरह अपने विचारों की रक्षा में शहीद हुए हैं यह रास्ता आगे भी जारी रहेगा।

हरम-ए-इमाम रज़ा (अ.ल.) के उर्दू भाषा ख़तीब हुज्जतुल इस्लाम अकबरी ने आगे कहा कि इस्लाम के दुश्मनों, खासतौर पर अमेरिका और इस्राइल, के पास न तो कोई स्पष्ट तर्क है, न विचारधारा और न ही कोई सिद्धांत।

यही कारण है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके सामने कौन खड़ा है। वे फ़िलिस्तीन, लेबनान या पाराचिनार जैसे स्थानों पर मासूम इंसानों की हत्या करते हैं। उनकी इस बर्बरता और जुल्म से उनकी वहशत का पता चलता है।

उन्होंने कहा कि दुनिया के साम्राज्यवादी ताकतों को यह समझ लेना चाहिए कि उनके कायराना और बर्बर कृत्य हमें अपने विचारों से दूर नहीं कर सकते। हम अपने विचारों की रक्षा में एक कदम भी पीछे नहीं हटेंगे।

इस्लाम के बचाव का परचम कभी ज़मीन पर नहीं गिरने देंगे और अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने विचारों पर डटे रहेंगे।

मजलिस के दौरान नजफ अली सआदती ने ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह पढ़ी और क़ारी हमीद रज़ा अहमदी ने क़ुरान की कुछ आयतों की तिलावत की।

 

 

 

दक्षिणी और पूर्वी लेबनान पर इजरायली हवाई हमलों में कम से कम 17 लोग शहीद हो गए और 36 अन्य घायल हो गए।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,दक्षिणी और पूर्वी लेबनान पर इजरायली हवाई हमलों में कम से कम 17 लोग शहीद हो गए और 36 अन्य घायल हो गए।

पूर्वी लेबनानी गवर्नरेट बालबेक-हर्मेल पर इजरायली हवाई हमले में 11 लोग मारे गए, जिनमें नबी चित गांव के एक आवासीय अपार्टमेंट में आठ लोग और हर्मेल में तीन अन्य शामिल थे।

इस बीच दक्षिणी लेबनान पर इजरायली हवाई हमलों में 25 लोग मारे गए जिनमें मराके गांव में नौ ऐन बाल गांव में तीन गाजीह शहर में दो, टायर जिले में 10 और योहमोर गांव में एक व्यक्ति शामिल है।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हिजबुल्लाह ने उत्तरी इज़राइल के दो मोशाविम और मल्कियेह बस्ती में भी इजरायली सेना पर हमला किया, रिपोर्ट में कहा गया है कि हिजबुल्लाह ने अपनी वापसी के दौरान अलबयादा में एक घर में शरण लिए हुए इजरायली बल को निशाना बनाया, संरचना को नष्ट कर दिया और कई लोगों को हताहत किया हैं।

 

 

 

 

 

इराक के मशहूर शिया धर्मगुरु ने पाकिस्तान के शहर पाराचिनार में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हुए पाकिस्तान सरकार से मांग की है कि वह शिया मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और ऐसे घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,इराक के प्रमुख धर्मगुरु आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद तकी मुदर्रसी के कार्यालय से जारी एक बयान:पाकिस्तान के शहर पाराचिनार में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हुए पाकिस्तान सरकार से यह मांग की है कि वह शिया मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और ऐसे घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए।

उनका बयान इस प्रकार है:

بسم اللہ الرحمن الرحیم

"وَمَن یَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَآؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِیهَا وَغَضِبَ اللّهُ عَلَیْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِیمًا"

(सूरह निसा, आयत 93)

एक बार फिर वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों के एजेंटों ने मुसलमानों के बीच फूट डालने के उद्देश्य से पाकिस्तान के पाराचिनार क्षेत्र के मासूम और निहत्थे लोगों का नरसंहार किया इस हमले में दर्जनों निर्दोष लोग शहीद और घायल हुए।

हम पाकिस्तान के मुसलमानों के प्रति गहरी सहानुभूति और एकजुटता व्यक्त करते हैं और उम्माते मुस्लिमा की एकता पर ज़ोर देते हैं विशेष रूप से ऐसे संवेदनशील समय में जब ज़ायोनी ताकतें फिलिस्तीन और लेबनान के मुसलमानों का नरसंहार कर रही हैं और पूरी मुस्लिम उम्मा को तबाह करने की कोशिश में हैं।

हम पाकिस्तान के अधिकारियों से यह मांग करते हैं कि वे इस क्षेत्र के मासूम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और ऐसे आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए तुरंत और प्रभावी कदम उठाएं।

कार्यालय आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद तकी मुदर्रसी

कर्बला-ए-मुअल्ला

 

 

 

 

 

 

हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आज स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ वर्गों से मुलाक़ात में इसे सांस्कृतिक, सामाजिक और सैन्य नेटवर्क बताया। उन्होंने कहा कि इमाम ख़ुमैनी ने जासूसी के केन्द्र (अमरीकी दूतावास) पर क़ब्ज़ा किए जाने और अमरीका की ओर से खुली धमकी के तीन हफ़्ते बाद, 26 नवम्बर 1979 को बसीज का गठन कर उस बड़े ख़तरे को बड़े अवसर में बदल दिया और इस पाकीज़ा दरख़्त की जड़ को मुल्क के सामाजिक, सांस्कृतिक और सैन्य तानेबाने तक पहुंचा दिया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सैन्य आयाम को स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ पहलुओं में से एक पहलू बताया और कहा कि बसीज सबसे पहले एक सोच और एक मत है जिसके मूल स्तंभ अल्लाह पर ईमान और आत्म विश्वास है जिसने मुख़्तलिफ़ मंचों पर मुख्य रूप से रोल निभाया और योगदान किया और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा। 

हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आज स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ वर्गों से मुलाक़ात में इसे सांस्कृतिक, सामाजिक और सैन्य नेटवर्क बताया। उन्होंने कहा कि इमाम ख़ुमैनी ने जासूसी के केन्द्र (अमरीकी दूतावास) पर क़ब्ज़ा किए जाने और अमरीका की ओर से खुली धमकी के तीन हफ़्ते बाद, 26 नवम्बर 1979 को बसीज का गठन कर उस बड़े ख़तरे को बड़े अवसर में बदल दिया

और इस पाकीज़ा दरख़्त की जड़ को मुल्क के सामाजिक, सांस्कृतिक और सैन्य तानेबाने तक पहुंचा दिया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सैन्य आयाम को स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ पहलुओं में से एक पहलू बताया और कहा कि बसीज सबसे पहले एक सोच और एक मत है जिसके मूल स्तंभ अल्लाह पर ईमान और आत्म विश्वास है जिसने मुख़्तलिफ़ मंचों पर मुख्य रूप से रोल निभाया और योगदान किया और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच में, फ़िलिस्तीन और लेबनान के ताज़ा हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी मूर्ख यह न सोचें कि घरों, अस्पतालों और आम सभाओं पर बमबारी, उनकी कामयाबी की निशानी है, दुनिया में कोई भी इसे कामयाबी नहीं मानता। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि दुश्मन ग़ज़ा और लेबनान में इतने बड़े युद्ध अपराध के बावजूद कामयाब नहीं हुआ और नहीं हो पाएगा, कहा कि नेतनयाहू की गिरफ़्तारी का हुक्म जारी करना काफ़ी नहीं है बल्कि उसके और ज़ायोनी शासन के सरग़नाओं की मौत की सज़ा का हुक्म जारी होना चाहिए। 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ग़ज़ा और लेबनान में ज़ायोनी शासन के अपराधों को उनकी इच्छाओं के विपरीत रेज़िस्टेंस के और भी मज़बूत होने और उसकी रफ़तार तेज़ होने का कारण बताया और कहा कि लेबनान और फ़िलिस्तीन का ग़ैरतमंद जवान जिस वर्ग का भी हो, जब देखता है कि चाहे वह जंग के मैदान में हो या न हो उस पर बमबारी और मौत का ख़तरा मंडरा रहा है तो उसके पास संघर्ष और रेज़िस्टेंस के सिवा कोई और रास्ता नहीं बचता, इसलिए ये मूर्ख अपराधी, हक़ीक़त में अपने हाथों से रेज़िस्टेंस मोर्चे के दायरे को बढ़ा रहे हैं। उन्होंने ने रेज़िस्टेंस मोर्चे में विस्तार को एक निश्चित ज़रूरत बताते हुए बल दिया कि रेज़िस्टेंस मोर्चा आज जितना फैला है, कल इससे कई गुना ज़्यादा इसका दायरा फैलेगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने आगे कहा कि राष्ट्रों की क्षमताओं का इंकार और उनका अपमान करना, वर्चस्ववादियों की पुरानी नीति रही है। उन्होंने कहा कि क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़, फ़िरऔन अपनी क़ौम का अपमान करता और उसे नीचा दिखाता था ताकि वह उसका अनुसरण करे, अलबत्ता फ़िरऔन आज के अमरीका और यूरोप के बादशाहों से ज़्यादा सभ्य था, क्योंकि ये दूसरी क़ौमों का अपमान करने के साथ साथ उनके हितों पर डाका डालते और उनकी सपंत्ति लूटते हैं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने साम्राज्यवाद के एजेंटों को वर्चस्ववादी ताक़तों के बाहरी और मनोवैज्ञानिक दबावों का पूरक बताते हुए कहा कि ये तत्व जैसा कि तेल के राष्ट्रीयकरण की घटना के दौरान पेश आया, अपने मालिकों की हाँ में हाँ मिलाकर क़ौमों के इतिहास, उसकी पहचान और क्षमता का इंकार करते हैं ताकि वर्चस्ववादियों के लिए रास्ता समतल हो सके। 

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने स्वयंसेवा के विचार को घेरा तोड़ने वाला बताया और कहा कि स्वयंसेवा की भावना से प्रेरित आत्मविश्वास, क़ौम का अपमान करने, उसे झुकाने और नाउम्मीद करने के वर्चस्ववादियों के बहुत ही ख़तरनाक साफ़्ट पावर को नाकाम बनाता है और मुल्क तथा रेज़िस्टेंस मोर्चे के सदस्यों में यह भावना और उससे पैदा होने वाली ताक़त निश्चित तौर पर अमरीका, पश्चिम और ज़ायोनी शासन की सभी नीतियों पर हावी हो जाएगी।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने, इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम के मसले में अमरीका की घटिया साज़िश की नाकामी को बसीजी भावना की देन बताया और कहा कि ऐसे हालात में जब मुल्क को 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम की बहुत ज़रूरत थी, अमरीकियों ने उस वक़्त दुनिया के दो मशहूर राष्ट्रपतियों की मध्यस्थता से, उसे बेचने के संबंध में होने वाली सहमति के बावजूद, बातचीत के दौरान चालबाज़ी की, लेकिन शहीद शहरयारी सहित हमारे बसीजी वैज्ञानिकों ने 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम का उत्पादन करके दिखाया जिससे अमरीकियों की आँखें फटी की फटी रह गयीं। 

उन्होंने निरर्थकता के एहसास और मुश्किलों के सामने में असमर्थता के एहसास तथा मानसिक लेहाज़ से बंद गली में होने की सोच और उसके नतीजे में ख़ुदकुशी को दुनिया के मुख़्तलिफ़ मुल्कों के जवानों की मुश्किल क़रार देते हुए कहा कि बसीजी, वर्चस्ववादियों के शोर ग़ुल से प्रभावित नहीं होता और मुख़्तलिफ़ मसलों के संबंध में अमरीका तथा ज़ायोनी शासन जैसे साम्राज्यवादियों के प्रचारिक हंगामे के सामने मुस्कुराता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि स्वयंसेवी बल बसीज अपने मक़सद पर यक़ीन यानी इस्लामी समाज और इस्लामी सभ्यता के निर्माण, न्याय की स्थापना और मौत से निडर होकर शहादत की भावना के साथ आगे बढ़ता है और इसी ख़ूबी की वजह से ईरानी बसीजी को यक़ीन है कि एक न एक दिन ज़ायोनी शासन को उखाड़ फेंकेगा। 

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अंत में क्षेत्रीय देशों के लिए अमरीका की साज़िश के बारे में जागरुकता और उस साज़िश के मुक़ाबले में दृढ़ता को राजनैतिक क्षेत्र में बसीज के मज़बूत होने का एक कारक बताया और कहा कि अमरीका क्षेत्र में अपने हित साधने के लिए मुल्कों में ज़ुल्म और तानाशाही पैदा करना या अराजकता फैलाना चाहता है। इन दोनों में से कोई भी एक स्थिति मुल्क में पेश आए तो इसमें दुश्मन का हाथ है जिसके ख़िलाफ़ बसीज को डट जाना चाहिए।

धर्म के नाम पर नफरत का खेल अपना दायरा बढ़ाता ही जा रहा है। उत्तर प्रदेश के मेरठ में 'जय श्री राम' का नारा नहीं लगाने पर एक मुस्लिम खिलाड़ी को कथित तौर पर निर्वस्त्र कर पीटा गया। सोमवार को युवक के घर वालों ने आरोप लगाया है कि पहले उसे 'जय श्री राम का नारा लगाने को मजबूर किया गया, और तब उसने ऐसा करने से मना किया तो उसके साथ मारपीट की गई। हालांकि, इस मामले में पुलिस ने इस बात से इनकार किया है कि आरोपियों ने उसके कपड़े उतरवा कर 'जय श्री राम' का नारा लगाने को मजबूर किया। पीड़ित युवक राष्ट्रीय निशानेबाजी प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है।

मेरठ के पल्लवपुरम के सोफीपुर गांव का निवासी गुलफाम मंगल पांडे नगर में एक निजी शूटिंग रेंज में प्रैक्टिस करने के बाद घर लौट रहा था। रास्ते में गुलफाम को मोटरसाइकिल पर तीन नौजवानों ने पकड़ लिया और उसे जबरन विक्टोरिया पार्क ले गया, जहां उन्होंने उसकी पिटाई की। उसके कपड़े उतरवा दिए और उसे 'जय श्री राम' का नारा लगाने को मजबूर किया गया अपराधियों ने गुलफाम का मोबाइल फोन भी छीन लिया।

मंगलवार, 26 नवम्बर 2024 18:59

ईरान कराटे में विश्व उपचैंपियन

ईरानी पुरूषों की कराटे की टीम ने विश्व उपचैंपियन का ख़िताब जीत लिया।

स्पेन की मेज़बानी में होने वाले मुक़ाबले में ईरानी पुरूषों की कराटे की टीम ने उप चैंपियन का ख़िताब जीत लिया।

इस मुक़ाबले में विश्व के 43 देशों की कराटे की 80 टीमों और कराटे के 388 खिलाड़ियों ने भाग लिया। इस मुक़ाबले से पहले यह मुक़ाबला अलग- अलग आयोजित होता था।

ईरानी पुरूषों की कराटे की टीम का मुक़ाबला इटली, ऑस्ट्रेलिया, मैसिडोनिया और क्रुएशिया की टीमों से हुआ और ईरानी टीम ने इन देशों की टीमों को क्वाटर फ़ाइनल मुक़ाबले में हरा दिया।

इसके बाद ईरान की पुरूषों की टीम का मुक़ाबला स्लोवाकिया की टीम से हुआ जिसे हराकर ईरानी टीम सेमीफ़ाइन में पहुंच गयी और उसके बाद ईरानी टीम का मुक़ाबला अपने परम्परागत प्रतिस्पर्धी जापानी टीम से हुआ और ईरानी टीम शून्य के मुक़ाबले तीन प्वांइट से उसे भी पछाड़ कर फ़ाइनल में पहुंच गयी।

इसके बाद ईरानी पुरूषों की कराटे की टीम का मुक़ाबला मिस्र की टीम से हुआ और अंततः उसने उपचैंपियन का ख़िताब जीत लिया और रजत पदक भी हासिल किया।

लेबनान और शाम की ताज़ा स्थिति का जायज़ा लेने के लिए मदरसा आली फकाहत आलम-ए-आले मोहम्मद स.ल.व.में एक बैठक आयोजित की गई जिसमें लेबनान में जामेआतुल मुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय के हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हुसैन मेहदवी मेहर और मदरसा आली फकाहत के छात्रों ने भाग लिया।

एक रिपोर्ट के अनुसार, लेबनान और सीरीया की ताज़ा स्थिति का जायज़ा लेने के लिए मदरसा आली फकाहत आलम-ए-आले मोहम्मद स.ल. में एक बैठक आयोजित की गई।

इस बैठक में लेबनान में जामेआतुल मुस्तफा अल-आलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय के हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हुसैन महदवी मेहर और मदरसा आली फकाहत के छात्रों ने भाग लिया।

जामेआतुल मुस्तफा अलआलमिया की लेबनान शाखा के प्रमुख ने तूफान-अल-अक्सा ऑपरेशन के आरंभ में नेतन्याहू के दावों का जिक्र करते हुए कहा कि नेतन्याहू ने दावा किया था कि पहले तीन दिनों में ही हमास को नष्ट कर देंगे लेकिन एक साल बीतने के बाद भी वह अपने इस दावे को पूरा नहीं कर सका।

हुज्जतुल इस्लाम वल-मस्लिमीन मोहम्मद हुसैन महदवी मेहर ने आगे कहा कि जब नेतन्याहू अपने लक्ष्यों में असफल रहा तो उसने निर्दोष लोगों पर हमले करके अपनी असफलता पर पर्दा डालने की कोशिश की।

हुज्जतुल इस्लाम महदवी मेहर ने बताया कि तूफान-अल-अक्सा ऑपरेशन के बाद सियोनी प्रधानमंत्री न केवल कब्जे वाले इलाकों में सियोनियों को सुरक्षा देने में विफल रहा बल्कि पूरी दुनिया में एक ऐसी लहर उठ खड़ी हुई जिससे लोगों में सियोनियों के प्रति नफरत बढ़ने लगी।

आज दुनिया भर के सियोनी स्वतंत्रता प्रेमियों के डर के साये में हैं और भय और आतंक के माहौल में अपना जीवन बिता रहे हैं।

मेंहदवी मेहर ने दक्षिणी लेबनान की जनता के धैर्य और दृढ़ता का उल्लेख करते हुए कहा कि मैंने दक्षिणी लेबनान से बेरूत की ओर पलायन करने वाले बेघर लेबनानी लोगों में प्रतिरोध और धैर्य को देखा है ऐसा प्रतीत होता था मानो उन पर कोई विपत्ति आई ही न हो।

 

 

 

 

 

ज़ायोनी सरकार अयातुल्ला सैय्यद अली सिस्तानी और सर्वोच्च नेता सैय्यद अली खामेनेई के संभावित जिहाद फतवे से बहुत डरी हुई है, यही कारण है कि वह उन्हें जान से मारने की धमकी दे रही है। इज़राइल के चैनल 14 ने उन्हें संभावित लक्ष्य के रूप में उद्धृत किया, जिससे पूरे इस्लामी जगत में आक्रोश फैल गया।

ज़ायोनी सरकार का अयातुल्ला सैय्यद अली सिस्तानी और सर्वोच्च नेता सैय्यद अली खामेनेई के संभावित जिहाद का डर इस हद तक बढ़ गया है कि वह उन्हें जान से मारने की धमकी दे रही है।

हाल ही में, इज़राइल के चैनल 14 ने इराक के शिया मरजा तकलीद ग्रैंड अयातुल्ला सैय्यद अली सिस्तानी और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता सैय्यद अली खामेनेई की तस्वीरें प्रसारित कीं, और उन्हें ज़ायोनी शासन के अगले संभावित हत्या लक्ष्य के रूप में उद्धृत किया। इस घोषणा से इराक, ईरान और अन्य इस्लामी देशों में मरजियाह के अनुयायियों और प्रशंसकों के बीच आक्रोश की लहर फैल गई। सोशल मीडिया पर लोगों ने उनके समर्थन में पोस्ट शेयर किए हैं, जिसके बाद उन्हें इंटरनेट से हटाना पड़ा और यूजर्स के अकाउंट ब्लॉक करने पड़े।

ज़ायोनी सरकार के इस डर के पीछे इराक में आईएसआईएस के ख़िलाफ़ युद्ध और आईएसआईएस और उसका समर्थन करने वाली अमेरिकी और ज़ायोनी सरकारों की सबसे बुरी हार है। ईरान और इराक के प्रतिरोध मोर्चे की एकता और अयातुल्ला सैय्यद अली सिस्तानी के जिहाद फतवे ने पश्चिमी शक्तियों की उपज आईएसआईएस को अस्तित्व से ही मिटा दिया था। इससे ज़ायोनी सरकार अब भी डरी हुई है. वह अच्छी तरह जानती है कि अगर शिया सर्वोच्च सत्ता की ओर से जिहाद का फतवा आ गया तो इस युद्ध में उसकी हार निश्चित होगी. इस कारण यह महान शिया अनुयायियों के प्रति शत्रुता पर उतर आया है। कोई अन्य विचारधारा ज़ायोनी शासन के लिए इतना ख़तरा नहीं है, यही कारण है कि वह शिया विद्वानों को धमकी दे रहा है।

हाल ही में शिया मुसलमानों ने लेबनान के हालात को देखते हुए इमाम के हिस्से के ख़ुम्स का एक हिस्सा लेबनानी मुसलमानों को देने की इजाज़त दे दी है. इसी प्रकार पवित्र पैगम्बर के नेता की ओर से यह कथन आया कि "सभी मुसलमानों पर यह अनिवार्य है कि वे अपनी क्षमता के अनुसार लेबनान और हिजबुल्लाह के साथ खड़े हों और उन्हें हड़पने वाली, दमनकारी और दमनकारी सरकार के खिलाफ लड़ने में मदद करें।"

जैसे ही ये आदेश जारी हुए, दुनिया भर के लोगों ने खुले तौर पर उत्पीड़ित लेबनानी और फिलिस्तीनी लोगों का समर्थन किया। महिलाओं ने इस उद्देश्य के लिए अपने गहने भी पेश किए, जिससे यह साबित हुआ कि सभी पुरुष और महिलाएं मरजिया के हर आदेश का पालन करने के लिए हमेशा तैयार थे। यह वैश्विक अहंकारी शक्तियों की नींद में खलल डालने और भय बढ़ाने के लिए काफी है।

ज़ायोनी सरकार द्वारा जारी की गई सूची इस बात का प्रमाण है कि वह बहुत डरी हुई है और बहादुर ताकतों का सामना करने के बजाय मौलवियों और निर्दोष नागरिकों को निशाना बना रही है। लेकिन वह यह भी जानती है कि उनकी इन धमकियों से अनुयायियों की ओर से उत्पीड़कों के समर्थन में कोई कमी नहीं आएगी, बल्कि उत्पीड़कों के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठेगा।

जिहाद का हुक्म आये तो एक पल की भी देरी न करना

हम सिर पर कफन बांध कर हर पल तैयार हैं