
رضوی
इमाम हुसैन की विचारधारा जीवन्त और प्रेरणादायक
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, एक एसी घटना है जिसमें प्रेरणादायक और प्रभावशाली तत्वों की भरमार है। यह आंदोलन इतना शक्तिशाली है जो हर युग में लोगों को संघर्ष और प्रयास पर प्रोत्साहित कर सकता है। निश्चित रूप से यह विशेषताएं उन ठोस विचारों के कारण हैं जिन पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन आधारित है।
इस आंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मूल उद्देश्य ईश्वरीय कर्तव्यों का पालन था। ईश्वर की ओर से जो कुछ कर्तव्य के रूप में मनुष्य के लिए अनिवार्य किया गया है वह वास्तव में हितों की रक्षा और बुराईयों से दूरी के लिए है। जो मनुष्य उपासक के महान पद पर आसीन होता है और जिसके लिए ईश्वर की उपासना गर्व का कारण होता है, वह ईश्वरीय कर्तव्यों के पालन और ईश्वर को प्रसन्न करने के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ के बारे में नहीं सोचता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथनों और उनके कामों में जो चीज़ सब से अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है वह अपने ईश्वरीय कर्तव्य का पालन और इतिहास के उस संवेदनशील काल में उचित क़दम उठाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बुराईयों से रोकने की इमाम हुसैन की कार्यवाही, उनके विभिन्न प्रयासों का ध्रुव रही है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य, ऐसी प्रक्रिया से लोहा लेना था जो धर्म और इस्लामी राष्ट्र की जड़ों को खोखली कर रहे थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एसे मोर्चे से टकराने का निर्णय लिया जो समाज को धर्म की सही विचारधारा और उच्च मान्यताओं से दूर करने का प्रयास कर रही थी। यह भ्रष्ट प्रक्रिया, यद्यपि धर्म और सही इस्लामी शिक्षाओं से दूर थी किंतु स्वंय को धर्म की आड़ में छिपा कर वार करती थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भलीभांति ज्ञान था कि शासन व्यवस्था में व्याप्त यह बुराई और भ्रष्टाचार इसी प्रकार जारी रहा तो धर्म की शिक्षाओं के बड़े भाग को भुला दिया जाएगा और धर्म के नाम पर केवल उसका नाम ही बाक़ी बचेगा। इसी लिए यज़ीद की भ्रष्ट व मिथ्याचारी सरकार से मुक़ाबले के लिए विशेष प्रकार की चेतना व बुद्धिमत्ता की आवश्यकता थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन के आरंभ में मदीना नगर से निकलते समय कहा थाः मैं भलाईयों की ओर बुलाने और बुराईयों से रोकने के लिए मदीना छोड़ रहा हूं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचार धारा में अत्याचारी शासन के विरुद्ध आंदोलन, समाज के राजनीतिक ढांचे में सुधार और न्याय के आधार पर एक सरकार के गठन के लिए प्रयास भलाईयों का आदेश देने और बुराईयों से रोकने के ईश्वरीय कर्तव्य के पालन के उदाहरण हैं। ईरान के प्रसिद्ध विचारक शहीद मुतह्हरी इस विचारधारा के महत्व के बारे में कहते हैं
भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने के विचार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अत्याधिक महत्वपूर्ण बना दिया। अली के पुत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने अर्थात इस्लामी समाज के अस्तित्व को निश्चित बनाने वाले सब से अधिक महत्वपूर्ण कार्यवाही की राह में शहीद हुए और यह एसा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि यदि यह न होता तो समाज टुकड़ों में बंट जाता।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक चेतनापूर्ण सुधारक के रूप में स्वंय का यह दायित्व समझते थे कि अत्याचार, अन्याय व भ्रष्टाचार के सामने चुप न बैठें। बनी उमैया ने प्रचारों द्वारा अपनी एसी छवि बनायी थी कि शाम क्षेत्र के लोग, उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के सब से निकटवर्ती समझते थे और यह सोचते थे कि भविष्य में भी उमैया का वंश ही पैग़म्बरे इस्लाम का सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी होगा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस गलत विचारधारा पर अंकुश लगाना था और इस्लामी मामलों की देख रेख के संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की योग्यता और अधिकार को सब के सामने सिद्ध करना था। यही कारण है कि उन्होंने बसरा नगर वासियों के नाम अपने पत्र में, अपने आंदोलन के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए लिखा थाः
हम अहलेबैत, पैग़म्बरे इस्लाम के सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी थे किंतु हमारा यह अधिकार हम से छीन लिया गया और अपनी योग्यता की जानकारी के बावजूद हमने समाज की भलाई और हर प्रकार की अराजकता व हंगामे को रोकने के लिए, समाज की शांति को दृष्टि में रखा किंतु अब मैं तुम लोगों को कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शैली की ओर बुलाता हूं क्योंकि अब परिस्थितियां एसी हो गयी हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की शैली नष्ट हो चुकी है और इसके स्थान पर धर्म से दूर विषयों को धर्म में शामिल कर लिया गया है। यदि तुम लोग मेरे निमंत्रण को स्वीकार करते हो तो मैं कल्याण व सफलता का मार्ग तुम लोगों को दिखाउंगा।
कर्बला के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा इस वास्तविकता का चिन्ह है कि इस्लाम एक एसा धर्म है जो आध्यात्मिक आयामों के साथ राजनीतिक व समाजिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक संभावनाओं का स्वामी है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में धर्म और राजनीति का जुड़ाव इस पूरे आंदोलन में जगह जगह नज़र आता है। वास्तव में यह आंदोलन, अत्याचारी शासकों के राजनीतिक व धार्मिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष था। सत्ता, नेतृत्व और अपने समाजिक भविष्य में जनता की भागीदारी, इस्लाम में अत्याधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है।
इसी लिए जब सत्ता किसी अयोग्य व्यक्ति के हाथ में चली जाए और वह धर्म की शिक्षाओं और नियमों पर ध्यान न दे तो इस स्थिति में ईश्वरीय आदेशों के कार्यान्वयन को निश्चित नहीं समझा जा सकता और फेर बदल तथा नये नये विषय, धर्म की मूल शिक्षाओं में मिल जाते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इन परिस्थितियों को सुधारने के विचार के साथ संघर्ष व आंदोलन का मार्ग अपनाया। क्योंकि वे देख रहे थे कि ईश्वरीय दूत की करनी व कथनी को भुला दिया गया है और धर्म से अलग विषयों को धर्म का रूप देकर समाज के सामने परोसा जा रहा है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दृष्टि में मानवीय व ईश्वरीय आधारों पर, समाज-सुधार का सबसे अधिक प्रभावी साधन सत्ता है। इस स्थिति में पवित्र ईश्वरीय विचारधारा समाज में विस्तृत होती है और समाजिक न्याय जैसी मानवीय आंकाक्षाएं व्यवहारिक हो जाती हैं।
आशूर के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा का एक आधार, न्यायप्रेम और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। न्याय, धर्म के स्पष्ट आदेशों में से है कि जिसका प्रभाव मानव जीवन के प्रत्येक आयाम पर व्याप्त है। उमवी शासन श्रंखला की सब से बड़ी बुराई, जनता पर अत्याचार और उनके अधिकारों की अनेदेखी थी। स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती इस संदर्भ में मौन धारण नहीं कर सकती थी। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विचार में चुप्पी और लापरवाही, एक प्रकार से अत्याचारियों के साथ सहयोग था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में हुर नामक सेनापति के सिपाहियों के सामने अपने भाषण में कहते हैं।
हे लोगो! पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई किसी एसे अत्याचारी शासक को देखे जो ईश्वर द्वारा वैध की गयी चीज़ों को अवैध करता हो, ईश्वरीय प्रतिज्ञा व वचनों को तोड़ता हो, ईश्वरीय दूत की शैली का विरोध करता हो और अन्याय करता हो, और वह व्यक्ति एसे शासक के विरुद्ध अपनी करनी व कथनी द्वारा खड़ा न हो तो ईश्वर के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उस व्यक्ति को भी उसी अत्याचारी का साथी समझे। हे लोगो! उमैया के वंश ने भ्रष्टाचार और विनाश को स्पष्ट कर दिया है, ईश्वरीय आदेशों को निरस्त कर दिया है और जन संपत्तियों को स्वंय से विशेष कर रखा है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के तर्क में अत्याचारी शासक के सामने मौन धारण करना बहुत बड़ा पाप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में स्वतंत्रता प्रेम, उदारता और आत्मसम्मान का सागर ठांठे मार रहा था। यह विशेषताएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अन्य लोगों से भिन्न बना देती हैं। उनमें प्रतिष्ठा व सम्मान इस सीमा तक था कि जिसके कारण वे यजीद जैसे भ्रष्ट व पापी शासक के आदेशों के पालन की प्रतिज्ञा नहीं कर सकते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में ऐसे शासक की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का परिणाम जो ईश्वर और जनता के अधिकारों का रक्षक न हो, अपमान और तुच्छता के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। इसी लिए वे, अभूतपूर्व साहस व वीरता के साथ अत्याचार व अन्याय के प्रतीक यजीद की आज्ञापालन के विरुद्ध मज़बूत संकल्प के साथ खड़े हो जाते हैं और अन्ततः मृत्यु को गले लगा लेते हैं। वे मृत्यु को इस अपमान की तुलना में वरीयता देते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में मानवीय सम्मान का इतना महत्व है कि यदि आवश्यक हो तो मनुष्य को इसकी सुरक्षा के लिए अपने प्राण की भी आहूति दे देनी चाहिए।
इस प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में एसे जीवंत और आकर्षक विचार नज़र आते हैं जो इस आंदोलन को इस प्रकार के सभी आंदोलनों से भिन्न बना देते हैं। यही कारण है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का स्वतंत्रताप्रेमी आंदोलन, सभी युगों में प्रेरणादायक और प्रभावशाली रहा है और आज भी है।
जनाब ऐ मुस्लिम के दोनों बेटे मुहम्मद और इब्राहिम की शहादत |
२८ रजब का चला काफिला ४ शाबान को मक्का पहुंचा । इस वक़्त तक इमाम हुसैन (अ. स ) ने अभी तक यह तय नहीं किया था की उन्हें किस तरफ जाना है बस यह सोंचा रहे थे की ज़िलहिज्जा के महीने में हज करने के बाद आगे कहाँ का सफर करना है तय किया जायगा ।
उधर इराक़ के शहर कूफा में लोगों को पता चला कि इमाम हुसैन (अ स ) के साथ क्या हुआ तो उन्हें भी फ़िक्र होने लगी की कूफा में क्या होगा क्यों की वहाँ के लोग वैसे ही मुआव्विया के सताए हुए थे और उन्हें इस बात की फ़िक्र भी रहा करती थी की हज़रत मुहम्मद स अ व के बताये और फैलाये इस्लाम को कही ये बातिल खलीफा इतना न बिगाड़ दें की आने वाले नसलें असल इस्लाम जो अमन और शांति का संदेश देता भुला दिया जाय । वहाँ के लोगों को एक ऐसे इमाम की ज़रुरत पेश आई जो दीन ऐ इलाही को बचा सके और उन्हें सही क़ुरआन की तफ़्सीर और अहादीस बता सके ।
ऐसे में कूफा वालों ने सुलेमान बिन सुराद के घर पे मीटिंग की और फैसला किया की इमाम हुसैन को कूफा खत लिख के बुलाया जाय । उन सभी के अपने क़ासिद के हाथों हज़ारों की तादात में खत लिखे और इमाम को यह कह के बुलाया की उनके पास कोई इमाम नहीं है । खत देखने के बाद इमाम हुसैन (अ स ) ने अपने भाई जनाब ऐ मुस्लिम को कूफा भेजा जिससे वहाँ के हालात मालूम हो सकें ।
मुस्लिम हज़रत अली (अ स ) के भाई अक़ील के बेटे थे और जब जनाब ऐ मुस्लिम कूफा की तैयारी करने लगे तो इमाम हुसैन ने जनाब ऐ मुस्लिम से कहाँ की तुम अकेले जाओगे तो शायद वहाँ का गवर्नर ये ना समझ ले की तुम जंग की नीयत से आ रहे हो इसलिए अपने दो बेटों मुहम्मद जो १० साल का था और इब्राहिम जो ८ साल का था, को अपने साथ ले जाओ जिस से लोगों को लगे की तुम्हारा जंग का इरादा नहीं है । इस तरह जब जनाब ऐ मुस्लिम कूफा की जानिब अपने दो बेटो को ले के चले तो एक बेटा अब्दुल्लाह और एक बेटी रुकैया इमाम हुसैन के साथ रह गए ।
सबसे जनाब ऐ मुस्लिम को सेहरा के एक सख्त सफर के लिए रुखसत किया । जनाब ऐ मुस्लिम जुलकाद के आखिरी दिनों में कूफा पहुंचे और वहाँ पे १८००० से ज़्यादा लोगों ने उनके हाथ पे बैयत कर ली । जनाब ऐ मुस्लिम ने इमाम हुसैन को खत लिखा की यहां १८००० से ज़्यादा लोगों ने उकी बैयत कर ली है इसलिए कूफ़े की तरफ रवाना हो जाएँ ।
इधर यह खबर यज़ीद तक भी पहुँची की जनाब ऐ मुस्लिम कूफा पहुँच चुके हैं और जल्द ही इमाम हुसैन भी आने वाले है । यज़ीद ने फौरन अपने एक ज़ालिम गवर्नर ओबेदुल्ला इब्ने ज़ियाद को हुक्म दिया की कूफा जाय और वहाँ के नरम दिल गवर्नर नुमान इब्ने बसीर को हटा दे और वहाँ के हालात को संभाले और मुस्लिम बिन अक़ील को जितनी जल्द हो सके क़त्ल कर दे ।
इब्ने ज़ियाद जैसे ही कूफा पहुंचा उसने ऐलान करवा दिया की जो कोई भी मुस्लिम का साथ देगा उसकी सजा मौत होगी और यह भी हुक्म दिया हो सके मुस्लिम को उनके हवाले किया जाय और कोई मुस्लिम को पनाह ना दे। इसी के साथ कूफा से बाहर जाने वाले सारे रस्ते बंद कर दिए गए ।
जनाब ऐ मुस्लिम अल मुख्तार के घर में उस वक़्त ठहरे हुए थे लेकिन खतरा देख के जनाब ऐ हानी ने उन्हें अपने घर बुला लिया । लेकिन इब्ने ज़ियाद को इसकी खबर लग गयी और उसने जनाब ऐ हानी को बुला भेजा और मुस्लिम का पता ना बताने में उन्हें ज़ख़्मी कर के क़ैद कर दिया । जनाब ऐ मुस्लिम से सोंचा क्यों जनाब ऐ हानी के घर वालो को कोई नुकसान इब्ने ज़ियाद की तरफ से पहुंचे और घर अपने दोनों बच्चो के साथ वहाँ से निकल गए । अपने दोनों बच्चों को वहाँ के क़ाज़ी के घर पे छोड़ा और खुद निकल गए सेहरा की तरफ इस कोशिश के लिए की इमाम हुसैन से मना कर दें की वो कूफा ना आएं क्यों की िंबे ज़ियाद के खौफ से बैयत करने वालों ने बैयत छोड़ दी है ।
ये ७ ज़िलहिज्जा थी जब जनाब ऐ मुस्लिम ने पूरी कोशिश कर ली कूफा से बाहर जाने की लेकिन सभी रास्ते बंद होने की वजह से थक के बैठ गए । ८ ज़िलहिज्जा को जनाब ऐ मुस्लिम ने एक घर के बाहर दस्तक दी तो तुआ नाम की एक साहिबा से दरवाज़ा खोला जनाब ऐ मुस्लिम ने पानी माँगा उसके बाद पुछा कौन है मुसाफिर और जब मुस्लिम ने बताया की वो मुस्लिम बिन अक़ील हैं तो उन्हें अपने घर में बुला लिया और उन्हें खिला पिला के घर के एक कोने में सोने का इंतज़ाम कर दिया ।
देर रात उस औरत का बेटा घर आया और जब उसे पता चला की ये वो शख्स है जिसकी तलाश में इब्ने ज़ियाद है तो दौलत और इनाम पाने की लालच में इब्ने ज़ियाद को खबर कर दी । सुबह होते ही इब्ने ज़ियाद के ५०० से ज़्यादा सिपाहियों ने उस घर को घेर लिए । जनाब ऐ मुस्लिम बहादुर थे और उन्होंने ३ बार फ़ौज को पीछे भगाया और इब्ने ज़ियाद फ़ौज में सिपाही बढ़ाता गया । फिर भी जब वो मुस्लिम को क़ैद ना कर सके तो उन्हने मैदान में गढ्डे खुदवा के उसे घास से धक दिया और कुछ को ऊचाई से बिठा दिया की वहाँ से पथ्थर मारे और जनाब ऐ मुस्लिम ज़ख़्मी और ढके हारे एक गढ्ढे में फँस गए ।
जनाब ऐ मुस्लिम को ५० सिपाहयो ने क़ैद कर लिया और ज़ंजीरों में बाँध के इब्ने ज़ियाद के पास ले गए । इब्ने ज़ियाद के खा की अब तुम्हारी मौत सामने है अगर कोई वसीयत हो तो बताओ । जनाब ऐ मुस्लिम ने कहा मैंने कुछ क़र्ज़ लिया है जिसे मेरी तलवार बेच के अदा कर देना । दुसरे मेरे क़ब्र में मुझे शरीयत के मुताबिक़ दफन किया जाय और तीसरे इमाम हुसैन को कूफा आने से मना कर दिया जाय । इब्ने ज़ियाद ने पहली वसीयत तो मानी लेकिन बाक़ी से इंकार कर दिया ।
जनाब ऐ मुस्लिम को दारुल अमारा की छत पे ले जाय गया जहां उनका सर क़लम करने के बाद उनके जिस्म को वहीं से नीचे फैंक दिया गया । यह ९ ज़िलहिज्जा थी और जनाब ऐ मुस्लिम की शहादत के फ़ौरन बाद जनाब ऐ हानी को भी वैसे ही शहीद कर दिया गया ।
जनाब ऐ मुस्लिम के दोनों बेटे मुहम्मद और इब्राहिम ।
जब जनाब ऐ मुस्लिम शहीद कर दिए गए तो उनके दोनों बेटो मुहम्मद और इब्राहिम को भी कैदी बना लिया गया । २० ज़िलहिज्जा को जब जेलर उनको खाना देने आया तो उसने देखा दोनों नमाज़ अदा कर रहे हैं । नमाज़ ख़त्म होने के बाद उस जेलर ने उन बच्चों से पुछा की वो कौन हैं और जब उसे पता चला की ये मुस्लिम के बच्चे हैं तो उसने उन दोनों को रिहा कर दिया । दोनों ने रिहा होते ही सबसे पहले सोंचा की चलो कूफा से बाहर जाते हैं और इमाम हुसैन को यहां आने से रोक देते हैं लेकिन इतना सख्त पहरा था की दोनों जा ही नहीं सके और सुबह होने का वक़्त आ गया । दोनों ने आस पास देखा और खुद को नहर ऐ फुरात के किनारे पाया । दोनों ने पानी फुरात से पीया और इस डर से की कोई देख ना ले एक पेड़ पे चढ़ गए और इंतज़ार करने लगे रात होने का । इतने में एक औरत पानी भरने फुरात पे आई और उसने छुपे हुए बच्चों को देखा फिर बच्चो को बोली मैं जिनकी खादिम हूँ वो बहुत ही नेक औरत है चलो मेरे साथ वो तुम्हारी मदद ज़रूर करेगी ।
जब बच्चे उसके घर पहुंचे और उसे पता चला की ये कौन बच्चे हैं तो वो घबरा गयी क्यों की उसका शौहर हारीत इब्ने ज़्याद के लिए काम करता था जो ख़ुशक़िस्मती से घर पे नहीं था । बच्चे सो गए लेकिन रात को अचानक मुहम्मद उठ गया और रोने लगा । जब इब्राहिम ने वजह पूछी तो उसने बताया बाबा ख्वाब में आये थे इतना सून्नना था की इब्राहिम ने बताया की उसने भी बाबा को देखा है और कह रहे थे की जल्द ही तुम दोनों मेरे साथ होगे ।
मुहम्मद का रोना सुन के हारीत जो घर आ चूका था उन बच्चों के पास पहुंच गया और जब उसे पता चला की यह मुस्लिम के बच्चे हैं तो उनको खम्बे से बाँध दिया इस लालच में की इब्ने ज़ियाद से इनाम पाएगा । उसकी बीवी ने जब मना किया तो उसे भी मारा पीटा ।
रात भर बच्चे खम्बे से बंधे रहे और सुबह होते ही उन दोनों को फुरात के किनारे ले गया और तलवार निकाल ली । इब्राहिम ने पुछा क्या तुम हम दोनों को मारने जा रहे हो ? हारीत ने कहा हाँ । बच्चों ने नमाज़ ऐ सुबह की इजाज़त मांगी । बच्चों ने अल्लाह से दुआ मांगी की उनका इन्साफ करना और उनकी मान को सब्र देना बस इतना ही दुआ मांग सके थे की तलवार चली और दोनों शहीद हो गए और उनका लाश एक दुसरे को पकडे नहर ऐ फुरात में बह गयी गयी
अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी से ऑस्ट्रेलियाई राजदूत से मुलाक़ात
ह़ज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी से इराक में ऑस्ट्रेलिया के नए राजदूत श्री ग्लेन माइल्स और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल का नजफ़ अशरफ़ के केंद्रीय में स्वागत किया इस मुलाक़ात के दौरान दोनों देशों इराक और ऑस्ट्रेलिया के बीच आपसी संबंधों और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के महत्व पर ज़ोर दिया गया।
ह़ज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी से इराक में ऑस्ट्रेलिया के नए राजदूत श्री ग्लेन माइल्स और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल का नजफ़ अशरफ़ के केंद्रीय में स्वागत किया इस मुलाक़ात के दौरान दोनों देशों इराक और ऑस्ट्रेलिया के बीच आपसी संबंधों और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के महत्व पर ज़ोर दिया गया।
ह़ज़रत आयतुल्लाह अल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने इराक में ऑस्ट्रेलिया के नए राजदूत श्री ग्लेन माइल्स और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल का नजफ़ अशरफ़ के केंद्रीय में स्वागत किया।
ह़ज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी से बगदाद में ऑस्ट्रेलियाई राजदूत से मुलाक़ात
मुलाक़ात के दौरान दोनों देशों, इराक और ऑस्ट्रेलिया के बीच आपसी संबंधों और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया गया।
मरज ए आली क़द्र ने आर्थिक और अन्य क्षेत्रों में संबंधों को और मजबूत करने के महत्व पर जोर दिया जो दोनों देशों के लोगों के पक्ष में है।
दूसरी ओर,मरज ए आली क़द्र के बेटे और केंद्रीय कार्यालय के प्रमुख हज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफी ने अतिथि राजदूत और उनके प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाक़ात में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों और अन्य क्षेत्रों को और बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
उन्होंने देशों के सम्मान और संप्रभुता पर आधारित राजनयिक संबंधों का भी स्वागत किया, बशर्ते वे मित्र देशों की सांस्कृतिक और सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक हस्तक्षेप से दूर रहें।
अपनी ओर से, माइल्स ने इराक में अपने महत्वपूर्ण राजनयिक मिशनों के बारे में बताया, और गर्मजोशी से स्वागत के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
इसराइल जनसंहार रोकने के लिए उठाए कठोर कदम
संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत ने अपने एक फ़ैसले में कहा है कि इसराइल को ग़ज़ा में जनसंहार रोकने के लिए हर ज़रूरी क़दम उठाना होगा।
इस साल जनवरी में संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत ने अपने एक फ़ैसले में कहा है कि इसराइल को ग़ज़ा में जनसंहार रोकने के लिए हर ज़रूरी क़दम उठाना होगा।
उसे सार्वजनिक तौर पर नरसंहार के लिए उकसाने वाले बयान न देने के लिए भी कहा गया था इसराइल अपने ऊपर लगने वाले नरसंहार के आरोपों को ख़ारिज करता रहा है।
उसका कहना है कि इंटरनेशनल कोर्ट में उसके ख़िलाफ़ लाया गया मामला अपमानजनक है. लेकिन क्या कोर्ट के फ़ैसले के बाद इसराइल ने इस दिशा में कोई क़दम उठाए? अगर हां तो वो क़दम क्या थे?
इस बीच इसराइल की तरफ़ से सार्वजनिक तौर पर क्या बयान दिए गए हैं उसने अपने बचाव के लिए कई दलीलें पेश की है मगर इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस ने इसको रद्द कर दिया हैं।
गाज़ा में 50 हज़ार से अधिक बच्चे गंभीर भुखमरी के शिकार:यूनिसेफ
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के एक अधिकारी ने कहा कि गाजा में 50हज़ार से अधिक बच्चों को कुपोषण के कारण तत्काल उपचार की आवश्यकता हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक , संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के पोषण विभाग के निदेशक एंथनी लेक ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि गाजा युद्ध और सीमित मानवीय पहुंचने के कारण क्षेत्र में भोजन और चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से नष्ट हो गई है।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि गाजा में स्थिति बहुत खराब है और आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए स्थितियां और शर्तें अभी तक उपलब्ध नहीं हैं।
इस बीच मानवीय मामलों के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने एक बयान में कहा कि गाजा में दस लाख लोगों को अगस्त में कोई खाद्य राशन नहीं मिला।
पिछले मई में गाज़ा की बाहरी दुनिया तक पहुंच के एकमात्र रास्ते राफा क्रॉसिंग की घेराबंदी और जब्ती ने गाजा के दो मिलियन से अधिक निवासियों के लिए भोजन और दवा और यहां तक कि पीने के पानी की कमी को बढ़ा दिया है।
राफ़ा क्रॉसिंग पर कब्ज़ा करने के बाद कब्ज़ा करने वाली सेनाएँ मानवीय सहायता ले जाने वाले ट्रकों को केवल करम अबू सलेम क्रॉसिंग के माध्यम से गाजा में प्रवेश करने की अनुमति देती हैं, जो कि कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में स्थित है, नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार 350 से अधिक ट्रक गाजा में प्रवेश करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
दूसरी ओर युद्ध शुरू हुए 335 दिन बीत चुके हैं, गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने आज घोषणा की है कि शहीदों की संख्या 40 हजार 878 और घायलों की संख्या 94 हजार 454 तक पहुंच गई है इमारतों के मलबे में 10 हज़ार से ज़्यादा लोग दबे हुए हैं और बचाव दल शहीदों के शवों का पता लगाने और उन तक पहुंचने में असमर्थ हैं।
गाज़ा में शोहदा की संख्या 40हज़ार 878 तक पहुंच गई
गाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि 335 दिनों के युद्ध के दौरान शहीदों की संख्या 40 हजार 878 और घायलों की संख्या 94 हज़ार 454 तक पहुंच गई है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक , गाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि युद्ध के 335 दिन बीत चुके हैं और इस दौरान 40 हजार 878 लोग शहीद हुए हैं और 94 हज़ार 454 लोग घायल हुए हैं।
इसके अलावा इमारतों के मलबे में 10,000 से ज्यादा लोग दबे हुए हैं और बचाव दल शहीदों के शवों तक नहीं पहुंच पा रही हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 24 घंटों के दौरान 17 फिलिस्तीनी शहीद हो गए और 56 घायल हो गए हैं।
गाज़ा में युद्ध धीरे धीरे अपनी एक साल की सालगिरह के करीब पहुंच रहा है क्योंकि विस्थापित लोगों के घरों और शिविरों को निशाना बनाकर इजरायली हवाई हमले और तोपखाने हमले जारी हैं।
हालाँकि, जॉर्डन सेना के पूर्व डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल कासिद महमूद के अनुसार, गाजा के प्रतिरोध बलों के पास अभी भी इज़राईल के हमलों से निपटने की क्षमता और व्यापक सुविधाएँ हैं।
उन्होंने फ़िलिस्तीन की शिहाब समाचार एजेंसी को बताया कि प्रतिरोध अभी भी कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सेना को रोकने और हमला करने में सक्षम है, और गाजा प्रतिरोध ज़मीन पर ज़ायोनी दुश्मन की परिचालन स्थिति और युद्ध के तरीकों को समझने में सफल रहा है हर कोई उन्हें आवश्यक जानकारी प्रदान करता है।
ज़ंगज़ोर कॉरिडोर का निर्माण नहीं हो सकता, ईरान की चेतावनी
ऐसा लगता है कि रूसी विदेश मंत्रालय भ्रमित हो गया है और उसका मानना है कि काल्पनिक ज़ंगज़ोर कॉरिडोर का उपयोग करके, निश्चित रूप से जिसका निर्माण ईरान के विरोध के कारण नहीं किया जा सकता, वह आर्मेनिया के साथ अपनी समस्या का समाधान निकाल सकता है।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया बाकू यात्रा के बाद, दक्षिण काकेशस क्षेत्र में कॉरिडोर के संबंध में रूस के सीनियर अधिकारियों के बयानों से पता चलता है कि पुतिन की टीम में भ्रामक सलाहकार भरे पड़े हैं। इस क्षेत्र के भूगोल के बारे में, ईरान की नीतियों और बुनियादी बातों के बारे में रूसी अधिकारियों को पूर्ण जानकारी का होना ज़रूरी है।
तसनीम न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक़, बाकू की पुतिन की यात्रा के बाद, रूस के विदेश मंत्री सरगेई लारोव ने एक इंटरव्यू में कहाः हम बाकू और येरेवन के बीच शांति संधि कराने और संचार में आने वाली रुकावटों को दूर करने के पक्ष में हैं।
उन्होंने आर्मेनियाई सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस मार्ग में रुकावट डाल रही है। उन्होंने कहाः दुर्भाग्य से, यह अर्मेनियाई नेतृत्व है जो आर्मेनिया के सिवनिक क्षेत्र से संचार के संबंध में प्रधान मंत्री पशिनियान द्वारा हस्ताक्षरित समझौते में बाधा डाल रहा है।
लावरोव का कहना थाः आर्मेनिया द्वारा ज़ंगज़ोर को बंद करने के कारण, क्षेत्र में संचार बहुत मुश्किल हो गया है।
रूसी विदेश मंत्री के इस बयान के मीडिया में अलग-अलग मतलब निकाल गए और ज़ांगज़ोर कॉरिडोर को खोलने की मास्को की इच्छा के बारे में अटकलें लगाई गईं। यह कॉरिडोर पूरब से पश्चिम में अर्मेनिया, आज़रबाइजान और नख़चिवान क्षेत्र तक होगा।
ईरान के वरिष्ठ अधिकारियों ने रूस, आज़रबाइजान , आर्मेनिया और तुर्की के अधिकारियों के साथ विभिन्न बैठकों में बार-बार इस गलियारे का विरोध किया है, क्योंकि इससे क्षेत्र में भू-राजनीतिक परिवर्तन हो जाएगा।
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा के हालिया बयानों के बाद रूस की इस स्थिति के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि ज़ंगज़ोर एक मार्ग है, जो आज़रबाइजान गणराज्य के मुख्य क्षेत्र को सिवनिक, आर्मेनिया के माध्यम से नख़चिवान तक को जोड़ सकता है। आर्मेनिया के साथ त्रिपक्षीय शांति वार्ता के ढांचे में ज़ंगज़ोर को अनब्लॉक करने पर निश्चित रूप से चर्चा की जाएगी।
ईरान की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर, ज़खारोवा का कहना थाः हम ज़ंगज़ोर कॉरिडोर के बारे में ईरान की चिंताओं से अवगत हैं। इस संबंध में अधिक स्पष्टीकरण, तेहरान ही दे सकता है, लेकिन इस मामले पर मॉस्को की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। हम इस तथ्य के आधार पर आगे बढ़ेंगे, कि कोई भी समाधान, आर्मेनिया, आज़रबाइजान और क्षेत्र के पड़ोसियों को स्वीकार्य होना चाहिए।
इस तरह की चर्चाओं के बाद, ईरान ने रूसी पक्ष को आवश्यक संदेश देने के लिए राजनयिक उपाय भी किए हैं, और विदेश मामलों के सहायक मंत्री और यूरेशिया के महानिदेशक मुजतबा दमीरची लू ने तेहरान में रूसी राजदूत को विदेश मंत्रालय में तलब करके तेहरान की आपत्ति से अवगत कर दिया था। इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ने उन्हें सूचित किया और उल्लेख किया कि राष्ट्रीय संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और देशों के आपसी हितों का सम्मान, काकेशस में स्थायी शांति की गारंटी और क्षेत्रीय सहयोग का आधार है।
इसके अलावा, रूस में ईरान के राजदूत ने रूस के विदेश मंत्रालय के हालिया बयानों पर ईरान की आपत्ति दर्ज करा दी थी।
रूसी अधिकारियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण सिफ़ारिशें
सबसे पहले यह कि रूसी विदेश मंत्रालय ने ऐसे बयान दिये जो ईरान की अपेक्षाओं के विपरीत थे। कई मौकों पर मास्को को तेहरान की स्पष्ट स्थिति के बारे में सूचित किया जा चुका है। ईरान ज़ंगज़ोर और अन्य ऐसे किसी भी प्रकार के गलियारे के ख़िलाफ़ है, जो नख़चिवान को आज़रबाइजान से जोड़ता है। इसलिए मास्को का यह रुख़, आश्चर्यजनक है!
दूसरा, मॉस्को के अधिकारी अच्छी तरह से जानते हैं कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, एक स्वतंत्र देश के रूप में, हमेशा अमेरिका और पश्चिम और उन सभी का विरोध करता रहा है, जो क्षेत्र और दुनिया पर वर्चस्व जमाने का प्रयास करते हैं। इस्लामी क्रांति के बाद, वैश्विक ग़ुंडागर्दी के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होना, तेहरान की बुनियादी रणनीतियों में से एक है।
तीसरे यह कि ईरान अपनी सीमा या सुरक्षा से संबंधित किसी भी हिस्से में किसी भी बदलाव को स्वीकार नहीं करता है।
चौथा, किसी भी नियम के अनुसार, दक्षिण काकेशस के किसी भी देश की सुरक्षा और भू-राजनीतिक स्थिति को, दूसरों पर प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है। तो हमारे रूसी मित्र ऐसा क्यों सोचते हैं कि उन्हें आर्मेनिया के साथ अपनी समस्याओं को हल करने के लिए ज़ंगज़ोर कॉरिडोर का उपयोग करना चाहिए?
पांचवां, जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चरम पर था, अमरीकी नाटो की केचली में किसी सांप की तरह, दक्षिण काकेशस में एक रास्ता खोलना चाहते थे। तो इस्लामी गणतंत्र ईरान अपनी पूरी ताक़त से नाटो और अमेरिका के सामने खड़ा हो गया। जिसके बाद, बाइडन सरकार ने कहा था कि ईरान, ज़ंगज़ोर कॉरिडोर के उद्घाटन में एकमात्र बाधा है।
रूस को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि जब यह देश पिछले दो वर्षों से यूक्रेन के मुद्दे पर उलझा हुआ था, तो यह ईरान ही था, जो क्षेत्र में पश्चिमी शक्तियों की वर्चस्ववादी चालों के सामने डट गया और उसने उनकी कोई भी चाल सफल नहीं होने दी।
अब जब ईरान ने स्पष्ट रूप से अपने रुख़ की घोषणा कर दी है और इस मुद्दे पर सभी पक्षों द्वारा ईरान का पक्ष स्वीकार भी किया जाता है, तो रूस ने यह घोषणा क्यों की है? यह एक आश्चर्यजनक बात है!
छठा बिंदु यह है कि दोनों देशों के अधिकारी रणनीतिक संबंधों की स्थापना की तैयारी कर रहे हैं, और यह इस्लामी गणराज्य ईरान की इच्छाशक्ति का संकेत है।
इस्लामिक गणराज्य ईरान के साथ राष्ट्रपति पुतिन के रणनीतिक संबंधों को मज़बूत बनाने पर ज़ोर देने के बावजूद, रूसी विदेश मंत्रालय का यह रुख़ आश्चर्यजनक है!
ऐसा लगता है कि रूसी विदेश मंत्रालय के लिए "रणनीतिक संबंधों" के व्यावहारिक अर्थ को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए।
यहां यह उल्लेखनीय है कि ज़ंगज़ोर कॉरिडोर खोलने का मतलब, यूरोप की ओर ईरान के एक द्वार को बंद करना और इस्लामी गणतंत्र ईरान के पड़ोसियों की संख्या 15 से घटाकर 14 करना है।
ईरान और रूस जिस "रणनीतिक संबंध" की अवधारणा की तलाश में हैं, उसके अनुसार इस तरह के सामरिक क़दम उठाना, रणनीतिक संबंधों के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
अगर कोई देश यह सोचता है कि वह दूसरों की क़ीमत पर संघर्ष का नया मोर्चा खोलकर अपनी सीमाओं के बाहर अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है, तो वह ग़लत सोच रहा है
तेहरान के खिलाफ वाशिंगटन का प्रतिबंध विफल हो गया
रिचर्ड नेफ्यू ने जिन्हें ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंधों के नेटवर्क के वास्तुकार के रूप में जाना जाता है, स्वीकार किया: तेहरान के खिलाफ वाशिंगटन का प्रतिबंध अभियान बुरी तरह से नाकाम हो गया है।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन में ईरान पर प्रतिबंधों के वास्तुकार और नियर ईस्ट नीतियों पर वाशिंगटन थिंक टैंक के सदस्य "रिचर्ड नेफ्यू" ने एक लेख में कहा: आज, नई रणनीतिक घटनाओं और चुनौतियों के मद्देनज़र जो ईरान के ख़िलाफ प्रतिबंधों के कियान्यवन के लिए ज़रूरी महसूस होती हैं, पिछले वर्षों की तरह इस्लामी गणतंत्र ईरान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को नवीनीकृत करना कठिन हो गया है।
वाशिंगटन थिंक टैंक की वेबसाइट पर प्रकाशित इस लेख में, नेफ़्यू ने बताया कि हक़ीक़त में इस समय सबसे समस्या ग्रस्त हिस्सा, ईरान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का कार्यान्वयन है।
प्रतिबंध ख़ुद ही लागू नहीं होते
इस लेख में, ईरान के खिलाफ आम सहमति बनाने के अमेरिकी प्रयासों की विफलता का ज़िक्र करते हुए, नेफ्यू ने कहा कि कुछ लोगों की सोच के विपरीत, प्रतिबंधों को तैयार करना, निगरानी करना और लागू करना" एक बहुत ही मुश्किल काम है और इसके लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा ख़र्च किए जाने की ज़रूरत है।
इस पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने इस स्थिति की तुलना उस बत्तख से की जो ज़ाहिरी तौर पर पानी पर शांति से तैरते नज़र आती है लेकिन पानी के भीतर संघर्ष करती रहती है और पैर चलाती रहती है।
वह प्रतिबंधों को लागू करने की कठिनाइयों के बारे में लिखते हैं:
सैद्धांतिक रूप में प्रतिबंध ख़ुद ही लागू होते नज़र आ सकते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। मिसाल के तौर पर, ईरान अपने मिसाइलों के कलपुर्ज़ों के आयात पर प्रतिबंध का पालन करने से इनकार करता है और कंपनियां, शिपिंग कंपनियां और बैंक ख़ुद बा ख़ुद ही ऐसा नहीं करते हैं।
रिचर्ड नेफ्यू के अनुसार, जेसीपीओए समझौते से पहले और 2006 में, ऐसी जटिलताओं को देखते हुए, अमेरिका ने सरकारों, बैंकों और सेवा देने वाली कंपनियों को प्रतिबंधों को लागू न करने के परिणामों की चेतावनी भी दी थी।
उनके लेखन के अनुसार, अमेरिका ने आख़िरकार "दूसरे दर्जे का प्रतिबंध" नामक एक ढांचा बनाकर इन ख़तरों को अर्थ दिया और यह एलान किया कि जो कोई भी ईरान के स्वीकृत पक्षों के साथ लेनदेन में शामिल होगा उसे अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से बेदख़ल कर दिया जाएगा और बाहर रखा जाएगा।
उन्होंने लिखा: जैसा कि इस लेख से स्पष्ट होता है, जेसीपीओए की वजह से ख़त्म होने वाले ईरान पर लगे प्रतिबंध, व्यापक थे और इसे डिजाइन करना कठिन था।
इन्हें दोबारा लागू करना बहुत मुश्किल होगा, ख़ासकर अब जब इस्लामी गणतंत्र ईरान और अमेरिका के अन्य दुश्मन, अपने ऊपर आने वाले ख़तरों और परेशानियों के बारे में अधिक जागरूक हैं।
"नेफ़्यू" ने आगे लिखा कि वर्तमान समय में, ईरानी अधिकारी अपनी और अपनी संपत्तियों की अधिक प्रभावी ढंग से रक्षा कर रहे हैं और कुछ हद तक, ट्रम्प का ज़्यादा से ज़्यादा दबाव वाला दृष्टिकोण इस बात की पुष्टि करता है। इस नीति का ईरान पर महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़ा, लेकिन ट्रम्प के सत्ता छोड़ने पर इससे कोई नया परमाणु समझौता नहीं हुआ।
ईरान के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध तेज़ करने में चुनौतियां
इस पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने हालिया वर्षों में क्षेत्रीय और वैश्विक परिवर्तनों की ओर इशारा किया और कहा: हालिया वर्षों में, प्रतिबंधों का जवाब देने के लिए ईरान के दबाव के हथकंडे व्यापक और अधिक हो गए हैं।
रिचर्ड नेफ्यू के अनुसार, इस्लामी गणतंत्र ईरान अब पहले की तुलना में अधिक मज़बूत है और उसके पास हजारों एक्टिव सेंट्रीफ्यूज हैं।
इस लेख के अंत में कहा गया है: आज, हक़ीक़त यह है कि 2015 में एक समझौता हुआ था जिसे अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने स्वीकार कर लिया था जिसकी वजह से प्रतिबंधों को तेज करना एक चुनौती होगी।
इस समझौते के न काफ़ी होने के बारे में तर्क दोहराना दुनिया के कई देशों को आश्वस्त नहीं कर सकता है जो ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम से कोई सीधा ख़तरा महसूस नहीं करते हैं।
ईरान पर लगे प्रतिबंधों को बनाने वाले के अनुसार, एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध मिशन को लागू करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है, यह सब कुछ ऐसा है जिसका अब कोई वजूद ही नहीं है।
हौज़ा ए इल्मिया कि तालीमी साल की शुरुआत
हौज़ा ए इल्मिया के नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत और हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के अध्यापकों का कॉन्फ्रेंस,आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी के खिताब के साथ शनिवार 7 दिसंबर को मदरसे इल्मिया फैज़िया कुंम में आयोजित होगा।
हौज़ा ए इल्मिया के नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत और हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के अध्यापकों का कॉन्फ्रेंस,आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी के खिताब के साथ शनिवार 7 दिसंबर को मदरसे इल्मिया फैज़िया कुंम में आयोजित होगा।
यह कॉन्फ्रेंस उलेमा दीनीविद्यार्थीयों और हौज़ा ए इल्मिया के टीचरों की मौजूदगी में शनिवार, 7 सितंबर, 2024 को सुबह 9:00 बजे शिक्षकों की उपस्थिति में आयोजित किया जाएगा।
इस कांफ्रेंस में मरजय तकलीद आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी के एक विशेष संबोधन से होगा जबकि हौजाए इल्मिया के प्रमुख अयातुल्लाह अली रज़ा अराफी हौज़ा इल्मिया की गतिविधियों और भविष्य की योजनाओं पर एक रिपोर्ट पेश करेंगे।
हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत
पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में ज्ञान, समस्त सदगुणों और ईश्वरीय भय व सदाचारिता के प्रतीक थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी दूसरे इमामों की भांति अत्याचारी शासकों की कड़ी निगरानी में थे। अधिकांश लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का महत्व नहीं समझते थे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में एक प्रश्न जो सदैव किया जाता है वह यह है कि इमाम रज़ा ने मामून जैसे अत्याचारी शासक का उत्तराधिकारी बनना क्यों स्वीकार किया? इस प्रश्न के उत्तर में इस बिन्दु पर ध्यान दिया चाहिये कि मामून यह सुझाव इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने क्यों प्रस्तुत किया? क्या यह सुझाव वास्तविक व सच्चा था या मात्र एक राजनीतिक खेल था और मामून इस कार्य के माध्यम से अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत करने की चेष्टा में था?
मामून ने अपने भाई अमीन और दूसरे हज़ारों लोगों की हत्या करके सत्ता प्राप्त की थी वह किस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए तैयार हो गया था जबकि वह स्वयं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को एक प्रकार से अपना प्रतिस्पर्धी समझता था। उसके सुझाव की वास्तविकता और उसके लक्ष्य को स्वयं मामून की ज़बान से सुनते हैं।
जब मामून ने आधिकारिक रूप से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने अपने उत्तराधिकारी पद का सुझाव दिया तो बहुत से अब्बासियों ने मामून की भर्त्सना की और कहा कि तू क्यों खेलाफत के गर्व को अब्बासी परिवार से बाहर करना और अली के परिवार को वापस करना चाहता है? तुमने अपने इस कार्य से अली बिन मूसा रज़ा के स्थान को ऊंचा और अपने स्थान को नीचा कर दिया है। तूने एसा क्यों किया?
मामून बहुत ही धूर्त, चालाक और पाखंडी व्यक्ति था। उसने इस प्रश्न के उत्तर में कहा मेरे इस कार्य के बहुत से कारण हैं। इमाम रज़ा के सरकारी तंत्र में शामिल हो जाने से वह हमारी सरकार को स्वीकार करने पर बाध्य हैं। हमारे इस कार्य से उनके प्रेम करने वाले उनसे विमुख हो जायेंगे और वे विश्वास कर लेंगे कि इमाम रज़ा वैसा नहीं हैं जैसा वह दावा करते हैं। मेरे इस कार्य का दूसरा कारण यह है कि मैं इस बात से डरता हूं कि अली बिन मूसा को उनकी हाल पर छोड़ दूं और वह हमारे लिए समस्याएं उत्पन्न करें कि हम उन पर नियंत्रण न कर सकें। इस आधार पर उनके बारे में लापरवाही से काम नहीं लिया जाना चाहिये। इस प्रकार हम धीरे धीरे उनकी महानता एवं व्यक्तित्व को कम करेंगे ताकि वह लोगों की दृष्टि में खिलाफत के योग्य न रह जायें और जान लो कि जब इमाम रज़ा को हमने अपना उत्तराधिकारी बना दिया तो फिर अबु तालिब की संतान में से किसी से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है”
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम मामून के षडयंत्र और उसकी चाल से भलिभांति अवगत थे और जानते थे कि उसने अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत करने के लिए यह सुझाव दिया है परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा मामून के धूर्ततापूर्ण सुझाव का स्वीकार किया जाना महीनों लम्बा खिंचा यहां तक कि उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को जान से मारने की धमकी दी और इमाम ने विवश होकर इस सुझाव को स्वीकार किया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीने से मामून की सरकार के केन्द्र मर्व आ रहे थे तो उस समय उन्होंने जो कुछ कहा उससे समस्त लोग समझ गये कि मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को किसी चाल के अंतर्गत उनकी मातृभूमि से दूर कर रहा है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीने से मर्व जाने के लिए तैयार हुए तो वह पैग़म्बरे इस्लाम की पावन समाधि पर गये, अपने परिजनों से विदा और काबे की परिक्रमा की और अपने कार्यों एवं बयानों से सबके लिए यह सिद्ध कर दिया कि यह उनकी मृत्यु की यात्रा है जो मामून का उत्तराधिकारी बनने और सम्मान की आड़ में हो रही है।
उसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने हर अवसर से लाभ उठाया और लोगों तक यह बात पहुंचा दी कि मामून ने बाध्य करके उन्हें अपना उत्तराधिकार बनाया है और इमाम हमेशा यह कहते थे कि हमें हत्या की धमकी दी गयी यहां कि मैंने उत्तराधिकारी के पद को स्वीकार किया।
साथ ही इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी बनने की एक शर्त यह थी कि इमाम किसी को आदेश नहीं देंगे, किसी काम को रोकेंगे नहीं, सरकार के मुफ्ती और न्यायधीश नहीं होंगे, किसी को न पद से हटायेंगे और न किसी को पद पर नियुक्त करेंगे और किसी चीज़ को परिवर्तित नहीं करेंगे। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने स्वयं को सरकार के विरुद्ध हर प्रकार के कार्य से अलग कर लिया और दूसरी बात यह थी कि उत्तराधिकारी बनने के लिए इमाम रज़ा ने जो शर्तें लगायी थीं वह इमाम की आपत्ति की सूचक थीं। क्योंकि यह बात स्पष्ट थी कि जो व्यक्ति स्वयं को समस्त सरकारी कार्यों से अलग कर ले वह सरकार का मित्र व पक्षधर नहीं हो सकता। मामून भी इस बात को अच्छी तरह समझ गया अतः बारम्बार उसने इमाम से कहा कि पहले की शर्तों का उल्लंघन व अनदेखी करके वह सरकारी कार्यों में भाग लें। इसी तरह वह अपने विरोधियों को नियंत्रित करने हेतु इमाम रज़ा का दुरूप्रयोग करना चाहता था। इमाम रज़ा उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने की शर्तों को याद दिलाते थे। मामून ने इमाम रज़ा से मांग की कि वह अपने चाहने वालों को एक पत्र लिखकर उन्हें मामून का मुकाबला करने से मना कर दें क्योंकि इमाम के चाहने वालों ने संघर्ष करके मामून के लिए परिस्थिति को कठिन बना दिया था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून की बात के जवाब में कहा” मैंने शर्त की थी कि सरकारी कार्यो में हस्तक्षेप नहीं करूंगा और जिस दिन से मैंने उत्तराधिकारी बनना स्वीकार किया है उस दिन से मेरी अनुकंपा में कोई वृद्धि नहीं हुई है”
एक बहुत महत्वपूर्ण घटना व नमूना ईद की नमाज़ का है।
मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से ईद की नमाज़ पढ़ाने के लिए कहा। इसके पीछे मामून का लक्ष्य यह था कि लोग इमाम रज़ा के महत्व को पहचानें और उनके दिल शांत हो जायें परंतु आरंभ में इमाम ने ईद की नमाज़ पढ़ाने हेतु मामून की बात स्वीकार नहीं की पंरतु जब मामून ने बहुत अधिक आग्रह किया तो इमाम ने उसकी बात एक शर्त के साथ स्वीकार कर ली। इमाम की शर्त यह थी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शैली में ईद की नमाज़ पढ़ायेंगे। मामून ने भी इमाम के उत्तर में कहा कि आप स्वतंत्र हैं आप जिस तरह से चाहें नमाज़ पढ़ा सकते हैं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम की भांति नंगे पैर घर से बाहर निकले और उनके हाथ में छड़ी थी। जब मामून के सैनिकों एवं प्रमुखों ने देखा कि इमाम नंगे पैर पूरी विनम्रता के साथ घर से बाहर निकले हैं तो वे भी घोड़े से उतर गये और जूतों को उतार कर वे भी नंगे पैर हो गये और इमाम के पीछे पीछे चलने लगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम हर १० क़दम पर रुक कर तीन बार अल्लाहो अकबर कहते थे। इमाम के साथ दूसरे लोग भी तीन बार अल्लाहो अकबर की तकबीर कहते थे। मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के इस रोब व वैभव को देखकर डर गया और उसने इमाम को ईद की नमाज़ पढ़ाने से रोक दिया। इस प्रकार वह स्वयं अपमानित हो गया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उत्तराधिकारी के पद से बहुत ही होशियारी एवं विवेक से लाभ उठाया। इमाम ने यह पद स्वीकार करके एसा कार्य किया जो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के इतिहास में अद्वतीय है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने वह बातें सबके समक्ष कह दीं जिसे पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने एक सौ पचास वर्षों के दौरान घुटन के वातावरण में अपने अनुयाइयों व चाहने वालों के अतिरिक्त किसी और से नहीं कहा था।
मामून ज्ञान की सभाओं का आयोजन करता था और उसमें पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को बयान करने वालों और धर्मशास्त्रियों आदि को बुलाता था ताकि वह स्वयं को ज्ञान प्रेमी दर्शा सके परंतु इस कार्य से उसका मूल लक्ष्य यह था कि शायद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से कोई कठिन प्रश्न किया जाये जिसका उत्तर वह न दे सकें। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अविश्वसनीय हो जायेंगे किन्तु इस प्रकार की सभाओं का उल्टा परिणाम निकला और सबके लिए सिद्ध हो गया कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ज्ञान, सदगुण और सदाचारिता की दृष्टि से पूरिपूर्ण व्यक्ति हैं और वही खिलाफत के योग्य व सही पात्र हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को सत्तर वर्षों तक मिम्बरों से बुरा भला कहा गया और वर्षों तक कोई उनके सदगुणों को सार्वजनिक रूप से बयान करने का साहस नहीं करता था परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी काल में उनके सदगुणों को बयान किया गया और उन्हें सही रूप में लोगों के समक्ष पेश किया गया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करके बहुत से उन लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अवगत किया जो अवगत नहीं थे या अवगत थे परंतु उनके दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के प्रति द्वेष व शत्रुता थी। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी के संबंध में जो बहुत से शेर हैं वे इसी परिचय एवं लगाव के सूचक व परिणाम हैं। उदाहरण स्वरूप देअबिल नाम के एक सरकार विरोधी प्रसिद्ध शायर थे और उन्होंने कभी भी किसी खलीफा या खलीफा के उत्तराधिकारी के प्रति प्रसन्नता नहीं दिखाई थी। इसी कारण सरकार सदैव उनकी खोज में थी और वह लम्बे वर्षों तक नगरों एवं आबादियों में भागते व गोपनीय ढंग से जीवन व्यतीत करते रहे पंरतु देअबिल इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचे और उन्होंने अत्याचारी व असत्य अमवी एवं अब्बासी सरकारों के विरुद्ध अपने प्रसिद्ध शेरों को पढ़ा। कुछ ही समय में देअबिल के शेर पूरे इस्लामी जगत में फैल गये। इस प्रकार से कि देअबिल के अपने नगर पहुंचने से पहले ही उनके शेर लोगों तक पहुंच गये और लोगों को ज़बानी याद हो गये थे। यह विषय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सफलता के सूचक हैं।
मामून अपनी सत्ता को खतरे से बचाने के लिए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को मदीने से मर्व लाया था परंतु जब उसने देखा कि इमाम की होशियारी व विवेक से उसके सारे षडयंत्र विफल हो गये हैं तो वह इन विफलताओं की भरपाई की सोच में पड़ गया। अंत में अब्बासी खलीफा मामून ने गुप्त रूप से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को शहीद करने का निर्णय किया ताकि उसकी सरकार के लिए कोई गम्भीर समस्या न खड़ी हो जाये। अतः उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को विष कर शहीद कर दिया और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम वर्ष २०३ हिजरी क़मरी में सफर महीने की अंतिम तारीख या 23 ज़ीक़ाद को इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये।