
رضوی
पुतिन की उत्तर कोरिया यात्रा ने उड़ाई दुश्मनों की नींद सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उत्तर कोरिया दौरे से पश्चिमी देशों की नींद उड़ी हुई है। बुधवार तड़के उत्तर कोरिया पहुंचे पुतिन का कोरियाई नेता किम जोंग ने बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया।
बता दें कि पुतिन के उत्तर कोरियाई दौरे को रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते टकराव के रूप में देखा जा रहा है। इस बीच iTV नेटवर्क ने व्लादिमीर पुतिन के उत्तर कोरिया दौरे को लेकर एक सर्वे किया है। इस सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले रहे। सर्वे में पूछा गया कि क्या
क्या पुतिन-किम की मुलाक़ात पश्चिमी देशों के लिए एक बड़ा ख़तरा है?
जिसका जवाब 48% लोगों ने हाँ में दिए जबकि 40% लोगों ने इस का नकारात्मक जवाब दिया जबकि 12% का कहना था कि कुछ कह नहीं सकते।
क्या किम जोंग का मक़सद हथियारों के बदले पुतिन से परमाणु तकनीक हासिल करना है? इस के जवाब में 58% ने हाँ, 26% ने ना और 16% ने कहा कि कुछ कह नहीं सकते।
अमेरिका रूस तनाव पर विश्व युद्ध के संभावित खतरे पर - 61% लोगों ने सहमति जताई जबकि 34 % लोगों ने ऐसी किसी भी संभावना का इंकार किया।
दिल्ली-एनसीआर पर गर्मी का कहर 24 घंटे में 50 लोगों की मौत
दिल्ली-एनसीआर में गर्मी ने हाहाकर मचा रखा है। दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में तो कुछ लोग लू की चपेट में आ गए हैं, और कई लोगों के लिए यह गर्मी जानलेवा साबित हो रही है।
राजधानी दिल्ली में गर्मी कहर बरपा रही है। इतना ही नहीं अस्पतालों में गर्मी की चपेट में आए लोगों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।
गर्मी के कारण पिछले 24 घंटे में गौतमबुद्ध नगर के कुछ स्थानों पर अबतक कुल 14 लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। इसमें से मरने वाले 14 लोगों में से 6 से 7 लोगों के शव ऐसे भी हैं जिनकी पहचान अभी तक नहीं हो पाई है।
गर्मी से बेहाल हाजी अब तक 900 से अधिक की मौत 1400 लापता
सऊदी अरब में जारी आमाले हज के दौरान गर्मी और हीट स्ट्रोक के साथ साथ सऊदी अरब की ओर से किये गए घटिया इंतेज़ाम के कारण हाजियों की जान पर बन आयी है।
यहां मक्का-मदीना पहुंच रहे हज यात्रियों की मौत की संख्या लगातार बढ़ रही है। एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, लू और हीटस्ट्रोक के कारण मरने वालों की संख्या 900 पार कर गई है और 1400 हज यात्री लापता हैं। अरब अधिकारियों के मुताबिक, लू से मरने वालों में 600 अकेले मिस्रवासी हैं, जबकि 90 भारतीय हज यात्रियों की भी मौत हो गई है।
आले सऊद के घटिया प्रबंध के साथ साथ सऊदी अरब की भीषण गर्मी हाजियों के लिए बड़ी मुश्किल बनी है। गर्मी की वजह से हुई बीमारियों से अब तक 900 हाजियों की मौतें सऊदी अरब में हो चुकी हैं, इनमें भारत के भी 90 लोग शामिल हैं। हज की रस्मों के दौरान लापता हो गए हाजियों को ढूंढ़ने में भी उनके परिजनों को काफी मुश्किल आ रही है। लापता हज यात्रियों के परिजन अस्पतालों में अपने लोगों को ढूंढ़ रहे हैं। मक्का में तापमान 51.8C तक पहुंच जाने की वजह से यहां सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। इस साल हज में करीब 18 लाख लोग शामिल हुए।
कनाडा ने आईआरजीसी को आतंकवादी संगठन घोषित किया
कनाडा ने एक बार फिर ईरान विरोध में क़दम उठाते हुए इस देश के शक्तिशाली सशस्त्र बल आईआरजीसी को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है।
ईरान के सशस्त्र बलों की एक शाखा, ईरान इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) को आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए कनाडा के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री डोमिनिक लेब्लांक ने कहा कि उनका देश आईआरजीसी की आतंकवादी गतिविधियों से निपटने की पूरी कोशिश करेगा। कनाडा में शीर्ष आईआरजीसी सदस्यों सहित ईरानी अधिकारियों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है।
ईरान की इस्लामी क्रांति ने दुनिया में जागरूकता पैदा की
जामिया अल मुदर्रिसीन क़ुम के मेंबर आयतुल्लाह मोहम्मद फ़ाज़िल लंकरानी ने कहा कि ईरान का इस्लामी इंक़ेलाब दूसरी अन्य घटनाओं की तरह नहीं थी कि जो गुज़रते वक़्त के साथ भुला दी जाए बल्कि, सबूत बताते हैं कि इस्लामी क्रांति मानवता के लिए अल्लाह का एक विशेष उपहार थी, जो ईरान में हुई।
इस क्रांति ने पहले देश में बाहरी और अन्य शक्तियों के हस्तक्षेप को कम किया और आज ईरान राजनैतिक रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर है। उन्होंने कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति ने पूरी दुनिया में एक सामान्य जागरूकता और बेदारी फैला दी है। आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकारानी ने कहा कि आज हम इस्राईल का पतन और अमेरिका की महाशक्ति को पतन की ओर जाते देख रहे हैं, और विश्व समुदाय इन घटनाओं से अनभिज्ञ नहीं रह सकता।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई की लीडरशिप की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के आधार स्तंभों को मुजाहेदीन की क़ुर्बानियों, शहीदों के पाक लहू और लोगों की मैदान में उपस्थिति के बिना हासिल नहीं किया जा सकता था।
आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकारानी ने कहा कि अल्लाह उस वक़्त तक किसी भी क़ौम की हालत नहीं बदलता जब तक वह खुद अपनी हालत बदलने के लिए कोई अमली और क़दम न उठाए। यह अल्लाह की सुन्नत है कि सामाजिक नियति का परिवर्तन इंसान के अपने हाथों से होता है, और इसलिए, यदि हम एक नेक और ईमानदार सरकार की तलाश करते हैं, तो अल्लाह भी हमें वैसा ही फल देगा। उन्होंने कहा कि यह इस्लामी क्रांति एक नेमत है जिसे हिफाज़त से आने वाली नस्लों के सुपुर्द करना है।
अमेरिका से हथियार मिलने में देरी बौखलाए नेतन्याहू ने बाइडन को आंखें दिखाई
ग़ज़्ज़ा में जनसंहार कर रहा अवैध राष्ट्र इस्राईल हथियारों की आपूर्ति में हो रही देरी की वजह से बौखलाया हुआ है। बताया जा रहा है कि ज़ायोनी प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन से नाराज है। नेतन्याहू ने बाइडन प्रशासन पर इस्राईल को गोलाबारूद और हथियार मुहैया नहीं कराने का आरोप लगाया है। नेतन्याहू ने अमेरिका को अपना सबसे करीबी दोस्त तो बताया साथ में ये शिकायत भी की है कि पिछले कुछ महीने से बाइडन प्रशासन हथियार देने में देरी कर रहा है, जो अवैध राष्ट्र के लिए हैरान करने वाला है।
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में हमास ने दशकों से चले आ रहे दमन और हर दिन हो रहे हमलों और क़त्ल के जवाब में इस्राईल पर ज़बरदस्त हमला किया था जिसके बाद ज़ायोनी सेना फिलिस्तीन में लगातार जनसंहार में लगी हुई है और अब तक 38 हजार फिलिस्तीनी नागरिकों का क़त्ले आम कर चुकी है।
हजः संकल्प करना-7
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए.............
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए.............
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि उचित पहचान और परिज्ञान, ईश्वर के घर का दर्शन करने वाले का वास्तविकताओं की ओर मार्गदर्शन करता है जो उसके प्रेम और लगाव में वृद्धि कर सकता है तथा कर्म के स्वाद में भी कई गुना वृद्धि कर सकता है। ईश्वर के घर के दर्शनार्थी जब अपनी नियत को शुद्ध कर लें और हृदय को मायामोह से अलग कर लें तो अब वे विशिष्टता एवं घमण्ड के परिधानों को अपने शरीर से अलग करके मोहरिम होते हैं। मोहरिम का अर्थ होता है बहुत सी वस्तुओं और कार्यों को न करना या उनसे वंचित रहना। लाखों की संख्या में एकेश्वरवादी एक ही प्रकार के सफेद कपड़े पहनकर और सांसारिक संबन्धों को त्यागते हुए मानव समुद्र के रूप में काबे की ओर बढ़ते हैं। यह लोग ईश्वर के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए वहां जा रहे हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या ९७ में ईश्वर कहता है कि लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे। एहराम बांधने से पूर्व ग़ुस्ल किया जाता है जो उसकी भूमिका है। इस ग़ुस्ल की वास्तविकता पवित्रता की प्राप्ति है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मोहरिम हो अर्थात दूरी करो हर उस वस्तु से जो तुमको ईश्वर की याद और उसके स्मरण से रोकती है और उसकी उपासना में बाधा बनती है।मोहरिम होने का कार्य मीक़ात नामक स्थान से आरंभ होता है। वे तीर्थ यात्री जो पवित्र नगर मदीना से मक्का जाते हैं वे मदीना के निकट स्थित मस्जिदे शजरा से मुहरिम होते हैं। इस मस्जिद का नाम शजरा रखने का कारण यह है कि इस्लाम के आरंभिक काल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस स्थान पर एक वृक्ष के नीचे मोहरिम हुआ करते थे। अब ईश्वर का आज्ञाकारी दास अपने पूरे अस्तित्व के साथ ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है। अपने विभिन्न प्रकार के संस्कारों और आश्चर्य चकित करने वाले प्रभावों के साथ हज, लोक-परलोक के बीच एक आंतरिक संपर्क है जो मनुष्य को प्रलय के दिन को समझने के लिए तैयार करता है। हज एसी आध्यात्मिक उपासना है जो परिजनों से विदाई तथा लंबी यात्रा से आरंभ होती है और यह, परलोक की यात्रा पर जाने के समान है। हज यात्री सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करके एकेश्वरवादियों के समूह में प्रविष्ट होता है और हज के संस्कारों को पूरा करते हुए मानो प्रलय के मैदान में उपस्थित है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम हज करने वालों को आध्यात्मिक उपदेश देते हुए कहते हैं कि महान ईश्वर ने जिस कार्य को भी अनिवार्य निर्धारित किया और पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने जिन परंपराओं का निर्धारण किया है, वे चाहे हराम हों या हलाल सबके सब मृत्यु और प्रलय के लिए तैयार रहने के उद्देश्य से हैं। इस प्रकार ईश्वर ने इन संस्कारों को निर्धारित करके प्रलय के दृश्य को स्वर्गवासियों के स्वर्ग में प्रवेश और नरक में नरकवासियों के जाने से पूर्व प्रस्तुत किया है। हज करने वाले एक ही प्रकार और एक ही रंग के वस्त्र धारण करके तथा पद, धन-संपत्ति और अन्य प्रकार के सांसारिक बंधनों को तोड़कर अपनी वास्तविकता को उचित ढंग से पहचानने का प्रयास करते हैं अर्थात उन्हें पवित्र एवं आडंबर रहित वातावरण में अपने अस्तित्व की वास्तविकताओं को देखना चाहिए और अपनी त्रुटियों एवं कमियों को समझना चाहिए। ईश्वर के घर का दर्शन करने वाला जब सफेद रंग के साधारण वस्त्र धारण करता है तो उसको ज्ञात होता है कि वह घमण्ड, आत्ममुग्धता, वर्चस्व की भावना तथा इसी प्रकार की अन्य बुराइयों को अपने अस्तित्व से दूर करे। जिस समय से तीर्थयात्री मोहरिम होता है उसी समय से उसे बहुत ही होशियारी से अपनी गतिविधियों और कार्यों के प्रति सतर्क रहना चाहिए क्योंकि उसे कुछ कार्य न करने का आदेश दिया जा चुका है। मानो वह ईश्वर की सत्ता का अपने अस्तित्व में आभास कर रहा है और उसे शैतान के लिए वर्जित क्षेत्र तथा सुरक्षित क्षेत्र घोषित करता है। इस भावना को मनुष्य के भीतर अधिक प्रभावी बनाने के लिए उससे कहा गया है कि वह अपने उस विदित स्वरूप को परिवर्ति करे जो सांसारिक स्थिति को प्रदर्शित करता है और सांसारिक वस्त्रों को त्याग देता है। जो व्यक्ति भी हज करने के उद्देश्य से सफ़ेद कपड़े पहनकर मोहरिम होता है उसे यह सोचना चाहिए कि वह ईश्वर की शरण में है अतः उसे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जो उसके अनुरूप हो।यही कारण है कि शिब्ली नामक व्यक्ति जब हज करने के पश्चात इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की सेवा में उपस्थित हुआ तो हज की वास्तविकता को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने शिब्ली से कुछ प्रश्न पूछे। इमाम सज्जाद अ. ने शिब्ली से पूछा कि क्या तुमने हज कर लिया? शिब्ली ने कहा हां, हे रसूल के पुत्र। इमाम ने पूछा कि क्या तुमने मीक़ात में अपने सिले हुए कपड़ों को उतार कर ग़ुस्ल किया था? शिब्ली ने कहा जी हां। इसपर इमाम ने कहा कि जब तुम मीक़ात पहुंचे तो क्या तुमने यह संकल्प किया था कि तुम पाप के वस्त्रों को अपने शरीर से दूर करोगे और ईश्वर के आज्ञापालन का वस्त्र धारण करोगे? शिब्ली ने कहा नहीं। अपने प्रश्नों को आगे बढ़ाते हुए इमाम ने शिब्ली से पूछा कि जब तुमने सिले हुए कपड़े उतारे तो क्या तुमने यह प्रण किया था कि तुम स्वयं को धोखे, दोग़लेपन तथा अन्य बुराइयों से पवित्र करोगे? शिब्ली ने कहा, नहीं। इमाम ने शिब्ली से पूछा कि हज करने का संकल्प करते समय क्या तुमने यह संकल्प किया था कि ईश्वर के अतिरिक्त हर चीज़ से अलग रहोगे? शिब्ली ने फिर कहा कि नहीं। इमाम ने कहा कि न तो तुमने एहराम बांधा, न तुम पवित्र हुए और न ही तुमने हज का संकल्प किया। एहराम की स्थिति में मनुष्य को जिन कार्यों से रोका गया है वे कार्य आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में मनुष्य के प्रतिरोध को सुदृढ़ करते हैं। उदाहरण स्वरूप शिकार पर रोक और पशुओं को क्षति न पहुंचाना, झूठ न बोलना, गाली न देना और लोगों के साथ झगड़े से बचना आदि। यह प्रतिबंध हज करने वाले के लिए वैस तो एक निर्धारित समय तक ही लागू रहते हैं किंतु मानवता के मार्ग में परिपूर्णता की प्राप्ति के लिए यह प्रतिबंध, मनुष्य का पूरे जीवन प्रशिक्षण करते हैं। एहराम की स्थिति में जिन कार्यों से रोका गया है यदि उनके कारणों पर ध्यान दिया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पशु-पक्षियों और पर्यावरण की सुरक्षा तथा छोटे-बड़े समस्त प्राणियों का सम्मान, इन आदेशों के लक्ष्यों में से है। इस प्रकार के कार्यों से बचते हुए मनुष्य, प्रशिक्षण के एक एसे चरण को तै करता है जो तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय की प्राप्ति के लिए व्यवहारिक भूमिका प्रशस्त करता है। इन कार्यों में से प्रत्येक, मनुष्य को इस प्रकार से प्रशिक्षित करता है कि वह उसे आंतरिक इच्छाओं के बहकावे से सुरक्षित रखे और अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।हज के दौरान जिन कार्यों से रोका गया है वास्तव में वे एसे कार्यों के परिचायक हैं जो तक़वे तक पहुंचने की भूमिका हैं। एहराम बांधकर मनुष्य का यह प्रयास रहता है कि वह एसे वातावरण में प्रविष्ट हो जो उसे ईश्वर के भय रखने वाले व्यक्ति के रूप में बनाए। हज के दौरान “मोहरिम”
हज,इस्लाम की पहचान- 6
जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के सामाजिक, राजनीतिक और आस्था संबंधी आयाम के बड़े
जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है
जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के सामाजिक, राजनीतिक और आस्था संबंधी आयाम के बड़े भाग को प्रतिबिम्बित करता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि हज इस्लाम की पताका है। ज़िलहिज्जा का महीना वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश उतरने की भूमि में महान ईश्वर पर आस्था रखने वालों के महासम्मेलन का महीना है। आज इस महीने का पहला दिन है। इस महान महीने की पहली तारीख को हम अपने हृदयों को वहि की मेज़बान भूमि की ओर ले चलते है तथा महान ईश्वर के प्रेम व श्रद्धा में डूबे लाखों व्यक्तियों की आवाज़ से आवाज़ मिलाते हैं जो हज के संस्कारों में भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं, लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैकहे ईश्वर हमने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया। यह पावन ध्वनि ईश्वरीय उपासना और प्रेम की वास्तविकता की सूचक है जो ईश्वर के घर का दर्शन करने वालों की ज़बान पर जारी है। हज उपासना एवं बंदगी व्यक्त करने का एक अन्य अवसर है और उससे ऐसी महानता प्रदर्शित व प्रकट होती है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। इस महानता को समझने के लिए हज के आध्यात्मिक महासम्मेलन में उपस्थित होकर उपासना के लिए माथे को ज़मीन पर रख देना चाहिये। अब विश्व के कोने कोने से हज़ारों मनुष्य काबे की ओर जा रहे हैं। वास्तव में कौन धर्म और पंथ है जो इस प्रकार मनुष्यों को उत्साह के साथ एक स्थान पर एकत्रित कर सकता है। इस का कारण इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं है कि महान ईश्वरीय धर्म इस्लाम लोगों के हृदयों पर शासन कर रहा है और यह इस धर्म की विशेषता है जो श्रृद्धालुओं को इस तरह काबे की ओर ले जा रहा है जैसे प्यासा व्यक्ति पानी के सोते की ओर जाता है। काबे के समीप लाखों मुसलमानों के एकत्रित होने से पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के जीवन के कुछ भागों की याद ताज़ा हो जाती है। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन के अंतिम हज में मुसलमानों को भाई चारे और एकता का आह्वान किया तथा एक दूसरे के अधिकारों का हनन करने से मना किया और कहा हे लोगो! मेरी बात सुनो शायद इसके बाद मैं तुमसे इस स्थान पर भेंट न करूं। हे लोगों! तुम्हारा जीवन और धन एक दूसरे के लिए आज के दिन और इस महीने की भांति उस समय तक सम्मानीय हैं जब तुम ईश्वर से भेंट करोगे और उन पर हर प्रकार का अतिक्रमण हराम है। अब मुसलमानों के विभिन्न गुट व दल इस्लामी जगत के प्रतिनिधित्व के रूप में सऊदी अरब के पवित्र नगर मक्का और मदीना गये हैं ताकि इस्लामी इतिहास की निर्णायक एवं महत्वपूर्ण घटनाओं की याद ताजा करें। पैग़म्बरे इस्लाम की अनुशंसाओं को याद करें और एक दूसरे के साथ भाई चारे व समरसता के साथ उपासना की घाटी में क़दम रखें। विशेषकर इस वर्ष कि जब इस्लामी जागरुकता व चेतना तथा मुसलमानों की पहचान की रक्षा, बहुत महत्वपूर्ण विषय हो गई है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस्लामी जागरुकता हज के मौसम में मुसलमानों के एक स्थान पर एकत्रित होने का एक प्रतिफल है। इस आधार पर इस्लामी जागरुकता को मज़बूत करने के लिए हज का मौसम एक मूल्यवान अवसर है जो विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के लोगों के मध्य एकता व वैचारिक समरसता से व्यवहारिक होगा। इस्लाम एक परिपूर्ण धर्म के रूप में मनुष्य की समस्त आवश्यकताओं पर ध्यान देता है और वह मनुष्य की समस्त प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला है। इस्लाम ने मनुष्य के अस्तित्व की पूर्ण पहचान के कारण महान ईश्वर ,मनुष्य और मनुष्यों के एक दूसरे के साथ संबंध के बारे में विशेष व्यवहार व क़ानून निर्धारित किया है। हज और उसके संस्कार इसी कार्यक्रम में से हैं जो मनुष्य की प्रगति व विकास में प्रभावी हो सकता है। जिस प्रकार धर्म ने मनुष्य के आध्यात्म एवं चरित्र आदि जैसे पहलुओं पर ध्यान दिया है हज के मौसम में उसकी व्यापकता को देखा जा सकता है। हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के राजनीतिक सामाजिक एवं आस्था संबंधी पहलुओं के बड़े भाग को प्रतिबिंबित करने वाला है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि हज इस्लाम की पताका है। पताका वह प्रतीक होता है जिसके माध्यम से एक संस्कृति की विशेषताओं को बयान करने का प्रयास किया जाता है। पूरे विश्व से मुसलमान हज के महासम्मेलन में एकत्रित होते हैं। भौतिक सीमाओं से हटकर विभिन्न राष्ट्रों के काले- गोरे समस्त मुसलमान एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विशेषताओं व अंतरों पर ध्यान दिये बिना वे समान व संयुक्त कार्य अंजाम देते हैं। यह संयुक्त कार्य किसी विशेष व्यक्ति या राष्ट्र से विशेष नहीं है। इस प्रकार के महासमारोह में है कि इसके संस्कार उसके लक्ष्यों की जानकारी के साथ मनुष्य का मार्गदर्शन एक पहचान की ओर करता है। इस आधार पर धार्मिक पहचान की प्राप्ति को हज का एक प्रतिफल समझा जा सकता है। इस प्रकार से कि एक पूर्वी मामलों के विशेषज्ञ Bernard lewis स्वीकार करते हैं" परेशानी की घड़ी में इस्लामी जगत में मुसलमानों ने बारम्बार यह दर्शा दिया है कि वे धार्मिक समन्वय के परिप्रेक्ष्य में अपनी धार्मिक पहचान बहाल कर लेते हैं। वह पहचान जिसका मापदंड राष्ट्र या क्षेत्र नहीं होता, बल्कि इस की परिभाषा इस्लाम ने की है। ईश्वरीय संदेश उतरने की पावन भूमि में हज आयोजित होने से हज करने वाले के लिए इस्लामी संस्कृति की विशेषताओं व इस्लामी पहचान सेअवगत होने की भूमि प्रशस्त होती है और हज करने वाला दूसरी संस्कृतियों के मध्य अपनी इस्लामी संस्कृति की पहचान उत्तम व बेहतर ढंग से प्राप्त कर सकता है। विश्वस्त इस्लामी स्रोतों पर संक्षिप्त दृष्टि डालने से दावा किया जा सकता है कि हज इस्लाम की व्यापकता का उदाहरण है। पैग़म्बरे इस्लाम हज के कारणों को बयान करते हुए उसकी तुलना समूचे धर्म से करते हैं। मानो महान ईश्वर नेविशेष रूप से इरादा किया है कि हज को उसके समस्त आयामों के साथ एक उपासना का स्थान दे। हज के हर एक संस्कार व कर्म का अपना एक अलग रहस्य है और यही रहस्य है जो हज को विशेष अर्थ प्रदान करता है तथा हज करने वाले के भीतर गहरे परिवर्तिन का कारण बनता है। हज में सफेद वस्त्र धारण करने से लेकर सफा व मरवा नाम की पहाड़ियों के मध्य तेज़ तेज़ चलने, काबे की परिक्रमा, अरफात और मेना नाम के मैदानों में उपस्थिति तक क्रमशः मनुष्य की आत्मा रचनात्मक अभ्यास के चरणों से गुज़रती है ताकि हाजी के मस्तिष्क एवं व्यवहार में गहरा परिवर्तन उत्पन्न हो सके। इस उपासना का पहला लाभ यह है कि हज यात्रा आरंभ होने के साथ सांसारिक लगाव व मोहमाया समाप्त होने लगती है। हज भौतिकि लगाव से मुक्ति पाने का बेहतरीन मार्ग है। हज पर जाने वाला व्यक्ति मानो हाथों और पैरों में पड़ी भौतिक लालसाओंकी बैड़ियों से मुक्ति प्राप्त करके महान परिवर्तन की ओर बढ़ता है। हर प्रकार के व्यक्तिगत, जातीय और वर्गिय भेदभाव से मुक्ति हज का दूसरा सुपरिणाम है। सफेद वस्त्र धारण करने का एक रहस्य यही है कि मनुष्य रंग और हर उस चीज़ से दूर व अलग हो गया है जो सामाजिक एवं जातीय भेदभाव का सूचक हो। इस्लाम में उपासना का रहस्य यह है कि मनुष्य धार्मिक दायित्वों के निर्वाह से स्वयं को सर्वसमर्थ व महान ईश्वर से निकट कर सकता है। हज में उपासना की एक विशेषता यह है कि इस आध्यात्मिक यात्रा में मनुष्य ईश्वरीय भय एवं सामाजिक सदगुणों से सुसज्जित होता है। यह इस्लाम द्वारा मनुष्य के व्यक्तिगत और सामाजिक तथा विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिये जान
हज में महिलाओं की भूमिका
हज का वातावरण हज़रत हाजेरा और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के काल से ही, पुरुषों के साथ महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है और इस प्रक्रिया में मानवीय व लैंगिक दोनों आयामों को दृष्टि में रखा गया है...
हज का वातावरण हज़रत हाजेरा और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के काल से ही, पुरुषों के साथ महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है और इस प्रक्रिया में मानवीय व लैंगिक दोनों आयामों को दृष्टि में रखा गया है। हज एक ऐसा मंच है जो महिलाओं को समाजिक स्तर पर नये अनुभव प्राप्त करने और अन्य लोगों के साथ व्यवहार की शैलियों से परिचित कराता है। इस्लाम के सब से बड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम के रूप में हज अधिवेशन, वर्ष में एक बार आयोजित होता है। हज के नियम व संस्कार कुछ इस प्रकार से हैं कि उसमें, लिंगभेद, जाति , पद व सामाजिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी लोगों को समान समझा गया है। सभी को हज के संस्कार करना होते हैं और स्वार्थ व अहंकार से निकलना होता है ताकि ईश्वर से निकट हुआ जा सके और स्वंय को एक नये मनुष्य के रूप में ढाला जा सके। हज संस्कारों में महिलाओं की प्रभावशाली व सराहनीय भूमिका स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ईश्वरीय धर्म के प्राचीन इतिहास में जिन महिलाओं को ईश्वर पर आस्था, उसके प्रति ज्ञान व उसकी पहचान का प्रतीक समझा गया, उनके साथ हज संस्कारों को कुछ इस प्रकार से जोड़ दिया गया है कि आज भी हज के बहुत से संस्कार और नियमों में उनकी झलक देखी जा सकती है। हज अत्यन्त प्राचीन संस्कार है। मक्का नगर में काबा, पृथ्वी के पहले मुनष्य हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के युग में बनाया गया था और उस समय से अब तक, एकेश्वरवादियों और ईश्वर में आस्था रखने वालों का उपासनास्थल रहा है। हज़रत इब्राहीम के युग में कि जब हज के अधिकांश संस्कारों की आधारशिला रखी गयी, सब से मुख्य भूमिका हज़रत हाजेरा नामक एक महान महिला ने निभाई। वे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पत्नी और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की माता हैं। उनकी महानता वास्तव में उन परीक्षाओं, संघर्षों, ईश्वर पर भरोसा और उसमें आस्था का परीणाम है जो उनके जीवन में जगह जगह देखने को मिलती है जिनकी याद मक्का के वातावरण और हज के संस्कार से दिलायी गयी है। मक्का के सूखे मरुस्थल में ईश्वर पर भरोसा और अपने पुत्र इस्माईल के लिए एक घूंट पानी के लिए इधर इधर व्याकुलता में हज़रत हाजरा का दौड़ना ईश्वरीय चिन्हों में गिना गया है। हज में हाजियों को सफ़ा और मरवा नामक दो पहाड़ियों के मध्य दौड़ कर हज़रत हाजरा के उसी संघर्ष को याद करना और ईश्वर पर भरोसे में का पाठ लेना होता है। हज़रत हाजेरा ने यह सिखा दिया कि अकेलेपन और बेसहारा हो जाने के बाद किस प्रकार से कृपालु ईश्वर से आशा रखनी चाहिए। यह कहा जा सकता है कि हज़रत इब्राहीम के साथ हज़रत हाजेरा की जीवनी, वास्तव में उपासना और ईश्वर पर आस्था का इतिहास है। निसंदेह हर मनुष्य किसी न किसी प्रकार इस तरह की परीक्षा का सामना करता है और यह परीक्षा कभी कभी बहुत कठिन होती है। इस स्थिति में संकटों और समस्याओं से निकलने के लिए, हज़रत इब्राहीम और हज़रत हाजेरा जैसे आदर्शों के पदचिन्हों पर चलना चाहिए। कु़रआने मजीद के सूरए मुमतहेना की आयत नंबर चार में कहा गया है कि तुम ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए अत्यन्त सराहनीय व अच्छी बात यह है कि इब्राहीम और उनके साथ रहने वालों का अनुसरण करो।
हज़रत हाजेरा की महानता का एक अन्य आयाम, ईश्वरीय आदेशों के सामने नतमस्तक होना है। जब उन्हें अपने बेटे इस्माईल की बलि चढ़ाने के ईश्वरीय आदेश का ज्ञान हुआ तो शैतानी बहकावा अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया। शैतान उनके पास गया कहने लगा कि इब्राहीम तुम्हारे बेटे को मार डालना चाहते हैं। हज़रत हाजेरा ने कहा कि क्या विश्व में एसा कोई है जो अपने ही बेटे को मार डाले? शैतान ने कहा वह दावा करते हैं कि यह ईश्वर का आदेश है। हज़रत हाजेरा ने कहा कि चूंकि यह ईश्वर का आदेश है इस लिए उसका पालन होना चाहिए। जो ईश्वर को पसन्द है मैं उसी में खुश हूं। ईश्वर के प्रति आस्था से परिपूर्ण हज़रत हाजेरा की इस बात ने उनकी महानता में चार चांद लगा दिये। आज हज़रत हाजेरा और हज़रत इस्माईल की क़ब्रें, हजरे इस्माईल नामक स्थान पर ईश्वरीय दूतों के साथ हैं। यह स्थान काबे के पास ही गोलार्ध आकार में मौजूद है। जो हाजी काबे की परिक्रमा करना चाहते हैं उन्हें काबे के साथ ही इस स्थान की भी परिक्रमा करनी होती है इस प्रकार से वह महिला जो ईश्वरीय आदेश के कारण मरुस्थल में अकेली रही और जिसने ईश्वरीय आदेश को सह्रदय स्वीकार किया, अन्य लोगों के लिए आदर्श बन गयी। हज़रत हाजेरा पहली महिला हैं जिन्होंने काबे के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए उसके द्वार पर पर्दा डाला। इस्लामी संस्कृति में यदि मनुष्य पवित्रता की सीढ़िया तय कर ले और महानता प्राप्त करने में सफल हो जाए तो वह अन्य लोगों के लिए आदर्श बन सकता है और इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह महिला है या पुरुष। कु़रआने मजीद में चार आदर्श महिलाओं की बात की गयी है जिन्हें ईश्वर ने धर्म में आस्था रखने वालों के लिए आदर्श कहा है। सूरए तहरीम की आयत नंबर ११ में कहा गया है और ईश्वर ने मोमिनों के लिए फिरऔन की पत्नी का उदाहरण दिया है जब उसने कहा हे पालनहार! तू मेरे लिए स्वर्ग में एक घर बना और मुझे नास्तिक फिरऔन, उसके चरित्र और अत्याचारी जाति से छुटकारा दिला। इसके बाद की आयत में ईश्वर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की माता हज़रत मरयम को, जिनकी एसी विशेषताए हैं जो किसी अन्य में नहीं हैं, सभी महिलाओं व पुरुषों का आदर्श बताया गया है। काबे के एक कोने में जिसे रुक्ने यमानी कहा जाता है, फातेमा बिन्ते असद नाम की एक अत्यन्त पवित्र महिला का चिन्ह देखा जा सकता है। वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम की माता हैं जिन्होंने अपने पुत्र के जन्म में सहायता के लिए काबे को सहारा बनाया था। इतिहासकारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा है कि अचानक काबे की दीवार फटी और फातेमा बिन्ते असद काबे के भीतर चली गयीं और तीन दिन बाद, अपने बच्चे को गोद में लिए उसी स्थान से बाहर निकलीं । यह वास्तव में ईश्वरीय संदेश के स्थान और काबे में महिलाओं के लिए एक अन्य सम्मान व गौरव है तथा इस से पवित्र महिलाओं की महानता व महत्व का भी पता चलता है।
इस्लाम के उदय के बाद कुछ तथ्य, महिलाओं के हज से परोक्ष व अपरोक्ष रूप से संबंध को दर्शाते हैं। हज़रत ख़दीजा वह एकमात्र महिला हैं जो इस्लाम के उदय के कठिन समय में पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ काबे में जाकर उपासना करती थीं। इन तीन हस्तियों ने क़ुरैश क़बीले की अनेकेश्वरवादी रीति रिवाजों के विपरीत एक नयी परंपरा की आधार शिला रखी और उसका प्रदर्शन किया। इस संस्कृति में महिला व पुरुष कांधे से कांधा मिलाकर अनन्य ईश्वर के घर काबे में जाते हैं। इस्लाम के विशेष नियमों के संकलन के यह आंरभिक क़दम, भविष्य में हज के व्यापक संस्कारों की भूमिका बने। इतिहास में महिलाओं के लिए यह भी एक गौरव लिख लिया गया है कि इस्लाम के उदय के दिनों में महिलाओं ने इस्लाम के विस्तार में पैगम्बरे इस्लाम के साथ भूमिका निभाई और काबे में इस्लामी संस्कृति की आधारशिला रखी। हज के दौरान महिलाओं द्वारा पैगम्बरे इस्लाम के समक्ष आज्ञापालन की प्रतिज्ञा भी महिलाओं की महानता का एक अन्य चिन्ह है। मक्का नगर में पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने ७३ साथियों के साथ मक्का के लोगों के साथ अक़बा नामक दूसरा जो समझौता किया था उस समय ७३ लोगों में कई महिलाएं शामिल थीं। इन लोगों ने आज्ञापालन की प्रतिज्ञा के लिए पैगम्बरे इस्लाम से समय मांगा। पैग़म्बरे इस्लाम ने मिना के मैदान में आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का समय निर्धारित किया। उन लोगों ने १३ ज़िलहिज्जा की रात पैगम्बरे इस्लाम से बात की
हज के शुभ अवसर पर विशेष कार्यक्रम- 5
बाप- बेटे मक्का के पहाड़ से काले पत्थर के कुछ टुकड़ों को लाये थे और उन्हें तराश कर उन्होंने काबे की आधारशिला रखी थी। बाप-बेटे ने महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के आदेश से बड़े और सादे घर का निर्माण किया। इस पावन घर का नाम उन्होंने काबा रखा। यही साधारण घर काबा समूची दुनिया में एकेश्वरवाद का प्रतीक और पूरी दुनिया का दिल बन गया। जिस तरह आकाशगंगा महान ईश्वर का गुणगान कर रही है ठीक उसी तरह यह पावन घर है जिसकी दुनिया के लाखों मुसलमान परिक्रमा करते हैं। हज महान ईश्वर की प्रशंसा व गुणगान का प्रतिबिंबन है। हज महान हस्तियों की बहुत सी कहानियों की याद दिलाता है।
हज एक ऐसा धार्मिक संस्कार है जो जाति और राष्ट्र से ऊपर उठकर है यानी इसमें सब शामिल होते हैं चाहे उनका संबंध किसी भी जाति या राष्ट्र से हो। ग़रीब, अमीर, काला, गोरा, अरब और ग़ैर अरब सब इसमें भाग लेते हैं। हज के अंतरराष्ट्रीय आयाम हैं और एकेश्वरवाद का नारा समस्त आसमानी धर्मों के मध्य निकटता का कारण बन सकता है।
पवित्र कुरआन की आयतों के अनुसार हज़रत इब्राहीम अलैहस्सलाम ने महान ईश्वर के आदेश से हज की सार्वजनिक घोषणा कर रखी है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है” और हे पैग़म्बर! हज के लिए लोगों के मध्य घोषणा कर दीजिये ताकि लोग हर ओर से सवार और पैदल, दूर और निकट से तुम्हारी ओर आयें और उसके बाद हज को अंजाम दें, अपने वचनों पर अमल करें और बैते अतीक़ यानी काबे की परिक्रमा करें।“
केवल कुछ संस्कारों को अंजाम देना हज नहीं है बल्कि हज के विदित संस्कारों के पीछे एक अर्थपूर्ण वास्तविकता नीहित है। अतः हज का अगर केवल विदित रूप अंजाम दिया जाये तो वह अपने वास्तविक अर्थ व प्रभाव से खाली होगा। यानी वह नीरस और बेजान हज होगा। एक विचारक व बुद्धिजीवी ने हज की उपमा शिक्षाप्रद एसी महाप्रदर्शनी से दी है जिसके पास बोलने की ज़बान है और उस कहानी व महाप्रदर्शनी में कुछ मूल हस्तियां हैं। हज़रत इब्राहीम, हज़रत हाजर और हज़रत इस्माईल इस कहानी के महानायक हैं। हरम, मस्जिदुल हराम, सफा और मरवा, मैदाने अरफात, मशअर और मेना में कुछ संस्कार अंजाम दिये जाते हैं। रोचक बात यह है कि इन संस्कारों को सभी अंजाम दे सकते हैं चाहे वह मर्द हो या औरत, धनी हो या निर्धन, काला हो या गोरा। जो भी हज के महासम्मेलन में भाग लेता है वह हज संस्कारों को अंजाम देता है और मुख्य भूमिका निभाता है। सभी उन महान ऐतिहासिक हस्तियों के स्थान पर होते हैं जिन्होंने महान ईश्वर की उपासना की और अनेकेश्वरवाद से मुकाबला किया ठीक उसी तरह हाजी एकेश्वरवाद का एहसास और अनेकेश्वरवाद से मुकाबले का अनुभव करते हैं।
जो लोग हज करने जाते हैं सबसे पहले वे मीक़ात नाम की जगह पर एहराम नाम का सफेद वस्त्र धारण करते हैं। एहराम में सफेद कपड़े के दो टुकड़े होते हैं। इसका अर्थ हर प्रकार के गर्व, घमंड को त्याग देना है। इसी प्रकार हर प्रकार के बंधन से मुक्त करके दिल को महान व सर्वसमर्थ की याद में लगाना है।
हज करने वाला जब एहराम का सफेद वस्त्र धारण करता है तो वह अपने कार्यों के प्रति सजग रहता है, उन पर नज़र रखता है लोगों के साथ अच्छे व मृदु स्वभाव में बात करता है, जब बोलता है तो सही बात करता है। इसी तरह वह संयम व धैर्य का अभ्यास करता है। एहराम की हालत में कुछ कार्य हराम हैं और इस कार्य से इच्छाओं से मुकाबला करने में इंसान के अंदर जो प्रतिरोध की शक्ति है वह मज़बूत होती है। जैसे एहराम की हालत में शिकार करना, जानवरों को कष्ट पहुंचाना, झूठ बोलना, महिला से शारीरिक संबंध बनाना और दूसरों से बहस करना आदि हराम हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम जब मेराज पर जा रहे थे यानी आसमानी यात्रा पर थे तो एक आवाज़ ने उन्हें संबोधित करके कहा कि क्या तुम्हारे पालनहार ने तुम्हें अनाथ नहीं पाया और तुम्हें शरण नहीं दी और तुम्हें गंतव्य से दूर नहीं पाया और तुम्हारा पथप्रदर्शन नहीं किया? उस वक्त पैग़म्बरे इस्लाम ने लब्बैक कहा। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की बारगाह में कहा” अल्लाहुम्मा लब्बैक, इन्नल हम्दा वन्नेमा लका वलमुल्का ला शरीका लका लब्बैक” अर्थात हे पालनहार तेरी आवाज़ पर लब्बैक कहता हूं, बेशक समस्त प्रशंसा, नेअमत और बादशाहत तेरी है। तेरा कोई भागीदार व समतुल्य नहीं है। (पालनहार!) तेरी आवाज़ पर लब्बैक कहता हूं।
हज के आध्यात्मिक वातावरण में दिल को छू जाने वाली आवाज़ लब्बैक अल्ला हुम्मा लब्बैक गूंज रही है। यह वह आवाज़ है जो हर हाजी की ज़बान पर है। यह आवाज़ इस बात की सूचक है कि हाजी महान ईश्वर के आदेशों के समक्ष नतमस्तक हैं वे पूरे तन- मन से महान ईश्वर के आदेशों को स्वीकार करते और उसकी मांग का उत्तर दे रहे हैं। समस्त हाजियों की ज़बान पर है कि हे ईश्वर तेरा कोई समतुल्य नहीं है और हम तेरे घर की परिक्रमा करने के लिए तैयार हैं।
काबे की परिक्रमा हज का पहला संस्कार है। हाजी जब सामूहिक रूप से काबे की परिक्रमा करते हैं तो वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि महान ईश्वर ही ब्रह्मांड का स्रोत व रचयिता है और जो कुछ भी है सबको उसी ने पैदा और अस्तित्व प्रदान किया है। जो हाजी तवाफ़ व परिक्रमा कर रहे हैं वे पूरी तरह महान ईश्वर की याद में डूबे हुए हैं। मानो ब्रह्मांड का कण- कण उनके साथ हो गया है। सब उनके साथ तवाफ कर रहे हैं। तवाफ के बाद वे नमाज़े तवाफ़ पढ़ते हैं, अपने कृपालु व दयालु ईश्वर के सामने सज्दा करते हैं और उसकी सराहना व गुणगान करते हैं।
हज का एक संस्कार सफा व मरवा नामक दो पहाड़ों के बीच सात बार चक्कर लगाना है।
हज का एक संस्कार सई करना है। सई उस महान महिला के प्रयासों की याद दिलाता है जो अपने पालनहार की असीम कृपा से कभी भी निराश नहीं हुई और सूखे व तपते हुए मरुस्थल में अपने प्यासे बच्चे के लिए पानी की खोज में दौड़ती रही। जब हज़रत इस्माईल की मां हज़रत हाजर अपने बच्चे के लिए पानी के लिए दौड़ती रहीं और सात बार वे सफा और मरवा का चक्कर लगा चुकीं तो महान ईश्वर की असीम कृपा से पानी का सोता फूट पड़ा जिसे आबे ज़मज़म के नाम से जाना जाता है। महान ईश्वर सूरे बकरा की 158वीं आयत में कहता है” सफा और मरवा ईश्वर की निशानियों में से है। इस आधार पर जो लोग अनिर्वाय या ग़ैर अनिवार्य हज करते हैं उन्हें चाहिये कि वे सफा और मरवा के बीच सई करें यानी उनके बीच चक्कर लगायें।
सई करके हाजी उस महान ऐतिहासिक घटना की याद ताज़ा करके महान ईश्वर पर धैर्य और भरोसा करने और एकेश्वरवाद का पाठ लेते हैं और महान ईश्वर की असीम कृपा को देखते हैं।
ज़िलहिज्जा महीने की नवीं तारीख़ की सुबह को हाजियों का जनसैलाब अरफात नामक मैदान की ओर रवाना होता है। अरफ़ात पहचान का मैदान है। एक पहचान यह है कि इंसान अपने पालनहार को पहचाने। अरफात के मैदान में हाजी का ध्यान स्वयं की ओर जाता है। हाजी अपना हिसाब- किताब करता है और अगर वह देखता है कि उसने कोई पाप या ग़लती की है तो उससे सच्चे दिल से तौबा व प्रायश्चित करता है। अरफात के विशाल मैदान में प्रलय के बारे में सोचता है और प्रलय की याद करके हिसाब- किताब करता है और हाजी दुआ करता है। कहा जाता है कि अगर इंसान का दिल और आत्मा अरफात के मैदान में परिवर्तित हो जाते हैं तो मशअर नामक मैदान में बैठने से महान ईश्वर की याद इस हालत को शिखर पर पहुंचा देती है और हज करने वाले ने एसा हज अंजाम दिया है जिसे महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने स्वीकार कर लिया है।
अपने अंदर से शैतान को भगाना हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की एक शैली है और वह हज संस्कार का भाग है। मिना नामक मैदान में कंकर फेंकने का अर्थ स्वयं से शैतान को भगाना है और केवल महान ईश्वर की उपासना और उसके आदेशों के समक्ष नतमस्तक होना है। हाजियों ने जो कंकरी मशअर के मैदान से एकत्रित की है उससे वे शैतान के प्रतीक को मारते हैं और हज़रत इब्राहीम की भांति महान ईश्वर के आदेशों के समक्ष नतमस्तक रहते हैं और कभी भी वे अपने नफ्स या शैतानी उकसावे पर अमल नहीं करते हैं।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहस्सलाम फरमाते हैं” इसी जगह पर” यानी जहां हाजी कंकरी फेंकते हैं” शैतान हज़रत इब्राहीम के समक्ष प्रकट हुआ था और उन्हें उकसाया था कि हज़रत इस्माईल को कुर्बानी करने का इरादा छोड़ दें परंतु हज़रत इब्राहीम ने पत्थर फेंक कर उसे स्वयं से दूर किया था।“
वास्तव में कंकरी का फेंकना दुश्मन की पहचान और उससे संघर्ष का प्रतीक है। दुनिया की वर्चस्ववादी शक्तियां विभिन्न शैलियों के माध्यम से मुसलमानों के खिलाफ शषडयंत्र रचती रहती हैं इन दुश्मनों और उनकी चालों को पहचानना बहुत ज़रूरी है। इसलिए कि जब तक दुश्मन और उसकी चालों को नहीं पहचानेंगे तब तक उसका मुकाबला नहीं कर सकते। दुश्मन और उसकी चालों से बेखबर रहना बहुत बड़ी ग़लती है और यह एसी ग़लती है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती और उसकी चालें मुसलमानों के बीच फूट या इस्लामी जगत की शक्ति को आघात पहुंचने का कारण बन सकती हैं।
कुर्बानी कराना हज का अंतिम संस्कार है। जिस दिन कुर्बानी कराई जाती है उसे ईदे कुर्बान कहा जाता है। ईदे कुरआन के दिन सर मुंडवाया जाता है या फिर सिर के बाल और नाखून को छोटा कराया जाता है। हज के दिन महान ईश्वर की बारगाह में स्वीकार हज अंजाम देने वाले प्रसन्न होते हैं और वे अपने पालनहार का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने उन्हें हज करने का सामर्थ्य प्रदान किया। उसके बाद हाजियों का जनसैलाब एक बार फिर काबे का तवाफ करता है और उसके बाद नमाज़े तवाफ पढ़ता है। जब वे काबे का तवाफ कर रहे होते हैं तो जिस तरह से चुंबक लोहे या उसके कण को अपनी ओर खींचता है उसी तरह खानये काबा हर हाजी को अपनी ओर खींचता व आकर्षित करता है।
इस प्रकार हज संस्कार समाप्त हो जाते हैं और हाजी अपने अंदर आत्मिक शांति व सुरक्षा का आभास करता है। वह भीतर से परिवर्तित हो चुका होता है। महान ईश्वर की याद उसके सामिप्य का कारण बनती है और महान विधाता व परम-परमेश्वर की याद सांसारिक बंधनों से मुक्ति का कारण बनती है। इसी प्रकार महान व कृपालु ईश्वर की याद इंसान के महत्व और उसकी प्रतिष्ठा को अधिक कर देती है। पैग़म्बरे इस्लाम हाजियों द्वारा अंजाम दिये गये हज संस्कारों के गूढ़ अर्थों पर ध्यान देते हुए फरमाते हैं” नमाज़, हज, तवाफ और दूसरे संस्कारों के अनिवार्य होने से तात्पर्य ईश्वर की याद को कायेम व जीवित करना है। तो जब तुम्हारा दिल ईश्वर की महानता को न समझ सके जो हज का मूल उद्देश्य है तो ज़बान से ईश्वर को याद करने का क्या लाभ है?