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यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल याह्या सरीअ ने फिलिस्तीन के समर्थन में चलाए जा रहे यमन सेना के अभियान के बारे में बात करते हुए कहा कि यमन सेना ने शुक्रवार को लाल सागर में दुश्मन के 2 जहाजों को निशाना बनाया।

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने अपने बयान में कहा कि मक़बूज़ा फिलिस्तीन के बंदरगाहों की तरफ न जाने के हमारे प्रतिबंधों का उल्लंघन करने वाले अलग अलग कंपनियों के जहाज़ों पर हमारे सैन्य बलों ने कई ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ हमला किया।

ब्रिगेडियर जनरल याह्या सरीअ के बयान के अनुसार, उल्लिखित दो जहाजों के नाम (Elbella) और (GENOA) हैं, जिन पर यमनी बलों ने ज़ायोनी शासन के खिलाफ सैन्य अभियान के विस्तार के तहत हमला किया गया है।

याह्या सरीअ ने एक बार फिर यमन के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब तक फिलिस्तीन के खिलाफ साम्राज्यवाद और ज़ायोनी बलों के हमले और अत्याचार जारी रहते हैं यमन फिलिस्तीन के खिलाफ दुश्मन के हितों को निशाना बनाता रहेगा।

रूस के खिलाफ नाटो और अमेरिका का छद्म युद्ध लड़ रहे यूक्रेन से अमेरिका ने सैन्य सहायता में देरी के लिए माफ़ी मांगी है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सैन्य सहायता पैकेज में देरी के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से माफी मांगी। शुक्रवार को जेलेंस्की के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान अमेरिका ने यूक्रेन के लिए नए सैन्य पैकेज की घोषणा की तो बाइडन ने इसमें देरी के लिए यूंक्रेन से माफी भी मांगी। बाइडन ने यूक्रेनी राष्ट्रपति से कहा कि आप जैसे लड़ रहे हैं वह अद्भुत है।

जो बाइडन ने जेलेंस्की से कहा, "आप झुके नहीं हैं। आप जैसे लड़ रहे हैं, वह अद्भुत है। आप ऐसे ही लड़ना जारी रखें। हम आपका साथ नहीं छोड़ने वाले हैं।

उत्त्तर प्रदेश के कद्दावर नेता और सपा विधायक इरफ़ान सोलंकी पर MP MLA कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए उन्हें और उनके अन्य कई साथियों को 7 साल जेल की सज़ा सुनाई है।

 सपा नेता इरफान सोलंकी को करारा झटका लगा है। कोर्ट ने आगजनी मामले में विधायक और उनके भाई रिज़वान सोलंकी समेत पांच आरोपियों को सात साल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने एक को छोड़कर सभी आरोपियों पर 30 हजार 500 रूपये जुर्माना भी लगाया है।

कानपुर एमपी/ एमएलए कोर्ट ने जाजमऊ आगजनी केस में में सपा विधायक इरफान सोलंकी समेत पांच लोगों को दोषी करार दिया था। सेशन कोर्ट के स्पेशल जस्टिस सत्येंद्र नाथ त्रिपाठी ने आज सभी दोषियों को सात साल की सजा सुनाई है।

इस केस में इरफान दिसंबर, 2022 से जेल में बंद हैं। कोर्ट ने रिजवान सोलंकी, इजराइल आटावाला, मो. शरीफ और शौकत अली को भी 7 साल की सजा सुनाई गई है। रिजवान पर 30 हजार 500 और बाकी 3 दोषियों पर 29 हजार 500 रुपए का जुर्माना लगाया। सजा के सुनाने के वक्त इरफान को छोड़कर चारों दोषी कोर्ट में मौजूद थे।

एक तरफ ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सेना की ओर से पिछले 8 महीने से लगातार जनसंहार जारी है दूसरी तरफ दुनियाभर के मुसलमान हज के लिए मक्का में जमा हो रहे हैं। ग़ज़्ज़ा और फिलिस्तीन और मुसलमानों के लिए परेशां हाजियों को सऊदी सरकार ने चेतावनी देते हुए कहा है कि वह हज के मौके पर कोई भी राजनैतिक और सियासी नारे या संकेतात्मक प्रदर्शन भी न करें।

हज के दौरान राजनीतिक नारेबाजी या संकेतात्मक प्रदर्शन के कुछ मामले सामने आए हैं। इस पर सऊदी अरब की सरकार ने नाराजगी जताई है। सऊदी सरकार की ओर से कहा गया है कि हज एक धार्मिक आयोजन है राजनीतिक अभिव्यक्ति का मंच नहीं। ऐसे में यहां आए हाजी धार्मिक कामों पर ही ध्यान दें। सऊदी सरकार की ओर से यह बयान ऐसे समय आया है, जब दुनिया भर के मुसलमान ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के सैन्य अभियान की निंदा कर रहे हैं।

बता दें कि इस से पहले भी सऊदी मुफ़्ती लोगों को हज के दौरान किसी भी तरह की राजनैतिक गतिविधियों और विरोध से दूर रहने की नसीहत करते रहे हैं। जुमे के ख़ुत्बों में भी सऊदी मुफ्तियों ने लोगों और हाजियों को सिर्फ इबादत पर ध्यान केंद्रित करने की ताकीद की।

किसी भी दौर में इस्लामी दुनिया के लेवल पर शियों का आपसी राबेता और नेटवर्क का दायरा इतना बड़ा कभी नहीं रहा जैसा इमाम मोहम्मद तक़ी, इमाम अली नक़ी और इमाम हसन अस्करी अलैहिमुस्सलाम के ज़माने में वजूद में आया।

 इन दोनों इमामों के सामर्रा में नज़रबंद होने और उनसे पहले इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम और एक अलग अंदाज़ से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पर बंदिशें होने के बावजूद अवाम से राबेता लगातार बढ़ता गया।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई 6 अगस्त 2005

हरम मासूमा क़ुम (स) के वक्ता ने कहा: मनुष्य को उन सभी अवसरों और आशीर्वादों की सराहना करनी चाहिए जो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उसे दिए हैं और खुशी के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए इन आशीर्वादों का अधिकतम उपयोग करना चाहिए इमाम ख़ुमैनी (र) ने अवसरों और इस्लामी क्रांति लाकर आइम्मा ए अत्हार (अ) की आशाओं और सपनों को पूरा किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमिन सैयद हुसैन मोमिनी ने हज़रत मासूमा क़ुम (स) की दरगाह में हज़रत इमाम जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर आयोजित एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा: सफल जीवन के लिए जवाबदेही और ध्यान बहुत जरूरी है, अल्लाह ताला ने इंसान के अस्तित्व में अपार क्षमताएं और नेमतें रखी हैं, इंसान को इन क्षमताओं और नेमतों का जितना हो सके उपयोग करना चाहिए और उनसे लाभ उठाना चाहिए, क्योंकि अगर उनका उपयोग नहीं किया जाता है, वे धीरे-धीरे कम हो जाएंगे और गायब हो जाएंगे इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो उन पर ध्यान देता है और उनकी सराहना करता है।

उन्होंने युवावस्था, स्वास्थ्य और सुरक्षा, जीवन और जीवन शक्ति को मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी बताया और कहा: मनुष्य को इन आशीर्वादों का अधिकतम उपयोग करना चाहिए, जो व्यक्ति बुढ़ापे में पहुंच गया है वह युवावस्था के अवसरों को महत्व देता है; जीवन और अस्तित्व एक वरदान है और इसमें अनंत अवसर हैं, यह बात मनुष्य को तब समझ में आती है जब वह खुद में मृत्यु के प्रभाव को देखना शुरू कर देता है।

इमाम खुमैनी (र) ने अवसरों का भरपूर लाभ उठाया और इस्लामी क्रांति करके आइम्मा ए अत्हार (अ) की आशाओं और सपनों को पूरा किया।

 

 

 

 

 

शुक्रवार, 07 जून 2024 18:18

मशहद मे बेटे का शोक

इब्न अल-रज़ा हज़रत इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद की शहादत दिवस के अवसर पर बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों ने इमाम रऊफ की दरगाह की ज़ियारत की और इमाम को उनके बेटे का पुरसा दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, 29वाी ज़िलक़ादा आठवें इमाम हज़रत इमाम अली रज़ा (अ) के बेटे हज़रत इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद (अ) का शहादत दिवस है।

इमाम जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर, मशहद को पवित्र काले कपड़े पहनाए जाते हैं और उन्हें गहरा दुख होता है। पवित्र तीर्थ के आसपास रहने वाले तीर्थयात्री और भाग्यशाली लोग इस दिन इमाम को सम्मान देने के लिए हरम में आते थे।

गर्म मौसम के बावजूद, इमाम जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर शोक संगठन और शोक मनाने वाले इस शहर के शहीद चौक पर एकत्र हुए और इब्न अल-रज़ा (अ) के शहादत दिवस पर शोक व्यक्त किया।

शुक्रवार सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हुए इस जुलूस में मशहद और खुरासान प्रांत के प्रशासनिक अधिकारी, मशहद के इमाम जुमा और लोगों ने हिस्सा लिया।

इमाम रज़ा (अ) की दरगाह में पवित्र कुरान के पाठ के साथ एक शोक सभा आयोजित की गई, जिसके बाद इमाम रज़ा (अ) की ज़ियारत की गई और इस विषय पर बधाई कविताएँ भी प्रस्तुत की गईं।

इस मजलिस में मातम करने और छाती पीटने के बाद, मातम करने वालों ने काले, हरे और लाल झंडे लिए हुए शाहदा स्क्वायर (मेदान शाहदा) से हरम रज़वी तक जुलूस निकाला और इमाम रज़ा (अ) को उनके बेटे का पुरसा दिया।

इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद की शहादत के अवसर पर शोक मनाने वालों ने काज़मैन में एक जुलूस निकाला और तीर्थयात्रियों ने इमाम अल-जवाद, की दरगाह में शोक मनाया।

इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर, शोक संगठनों ने काज़मैन में एक जुलूस निकाला और तीर्थयात्रियों ने इमाम अल-जवाद (अ) की दरगाह पर शोक मनाया।

बगदाद में इमाम जवाद (अ) का हरम कल रात शोक मनाने वालों से भरा हुआ था और लोग हरम में प्रवेश कर रहे थे, इमाम जवाद (अ) की शहादत पर शोक व्यक्त कर रहे थे, तीर्थयात्री काले कपड़े पहने हुए थे और शोक सभा कर रहे थे। वह कल शाम से ही लगातार शोक में लगी हुई थी।

मातम मनाने वाले आगे बढ़ रहे थे, सिर झुका रहे थे और विलाप कर रहे थे और लब्बैक या जवाद अद्रकनी कह रहे थे, और हरम मुताहर की ओर सड़कें मातम करने वालों से भरी हुई थीं।

हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 10 रजब सन 195 हिजरी को मदीना शहर में हुआ इल्म, शराफ़त, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से अलग था,और 29 ज़िलक़द 220 हिजरी का दिन ऐसे महान व्यक्ति की शहादत का दिन है जिसे अत्याधिक दया तथा दान दक्षिणा के कारण जवाद अर्थात दानी की उपाधि दी गई।

हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 10 रजब सन 195 हिजरी को मदीना शहर में हुआ था। इल्म, शराफ़त, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से अलग था,

ख़ुदाई दायित्व के उचित ढंग से निर्वाह के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.व.) के परिजनों में से प्रत्येक ने अपने काल में हर कार्य के लिए तार्किक और प्रशंसनीय नीति अपनाई थी ताकि ख़ुदाई मार्गदर्शन जैसे अपने दायित्व का निर्वाह उचित ढंग से किया जा सके।

इन महापुरूषों के जीवन में अल्लाह पर केन्द्रियता उनका मूल मंत्र रही। इस प्रकार इंसाफ़ को लागू करने, ख़ुदा के सिवा किसी अन्य की बंदगी से मनुष्यों को मुक्ति दिलाने और व्यक्तिगत एवं सामाजिक संबंधों में सुधार जैसे विषयों पर उनका विशेष ध्यान था।

यद्यपि यह महापुरूष बहुत छोटे और सीमित वक़्त में इमामत के कार्यकाल में सफ़ल रहे किंतु उनकी दृष्टि में इंसाफ़ को स्थापित करने, हक़ व अधिकारों को दिलवाने, अन्याय को समाप्त करने और ख़ुदा के धर्म को फैलाने जैसे कार्य के लिए सत्ता एक माध्यम है। क्योंकि यह महापुरूष अपनी करनी तथा कथनी में मानवता और नैतिक मूल्यों का उदाहरण थे अतः वे लोगों के दिलों पर राज किया करते थे। रजब जैसे बरकतों वाले महीने की दसवीं तारीख़, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की एक कड़ी के शुभ जन्मदिवस से सुसज्जित है।

आज के दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ऐसे परिजन का जन्म दिवस है जो दान-दक्षिणा के कारण जवाद के उपनाम से जाने जाते थे। जवाद का अर्थ होता है अतिदानी। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म दस रजब सन १९५ हिजरी को मदीना में हुआ था। ज्ञान, शालीनता, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से भिन्न था। वे बचपन से ही ज्ञान, राज़ व नियाज़, शालीनता और अन्य विशेषताओं में अद्वितीय थे।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के इमामत के काल में अब्बासी शासन के दो शासक गुज़रे मामून और मोतसिम। क्योंकि अब्बासी शासक, इस्लामी शिक्षाओं को लागू करने में गंभीर नहीं थे और वे केवल "ज़वाहिर" को ही देखते थे अंतः यह शासक, धर्म के नियमों में परिवर्तन करने और उस में नई बातें डालने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। इस प्रकार के व्यवहार के मुक़ाबले में इमाम जवाद (अ) की प्रतिक्रियाओं और उनके विरोध के कारण व्यापक प्रतिक्रियाएं हुईं और यही विषय, अब्बासी शासन की ओर से इमाम और उनके अनुयाइयों को पीड़ित किये जाने का कारण बना।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अन्य परिजनों की ही भांति इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासकों के अत्याचारों और जनता को धोखा देने वाली उनकी कार्यवाहियों के मुक़ाबले में शांत नहीं बैठते और बहुत सख़्त परिस्थितियों में भी जनता के समक्ष वास्तविकताओं को स्पष्ट किया करते थे।

अत्याचार के मुक़ाबले में इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की दृढ़ता और बहादुरी, साथ ही उनकी बेहतरीन ख़िताबत कुछ इस प्रकार थी जिस को सहन करने की शक्ति अब्बासी शासकों में नहीं थी। यही कारण है कि इन दुष्टों ने मात्र 25 वर्ष की आयु में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद करवा दिया। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रयासों के आयामों में से एक, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के उन विश्वसनीय कथनों को प्रस्तुत करना और उन गूढ़ धार्मिक विषयों को पेश करना था जिनपर उन लोगों ने विभिन्न आयाम से प्रकाश डाला था।

इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम एक ओर तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के कथनों का वर्णन करते हुए समाज में धर्म की जीवनदाई संस्कृति और धार्मिक शिक्षाओं को प्रचलित कर रहे थे तो दूसरी ओर समय की आवश्यकता के अनुसार तथा जनता की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक क्षमता के अनुरूप विभिन्न विषयों पर भाषण दिया करते थे। ख़ुदाई आदेशों को लागू करने के लिए इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का एक उपाय या कार्य, पवित्र क़ुरआन और लोगों के बीच संपर्क स्थापित करना था।

उनका मानना था कि क़ुरआन की आयतों को समाज में प्रचलित किया जाए और मुसलमानों को अपनी कथनी-करनी और व्यवहार में पवित्र क़ुरआन और उसकी शिक्षाओं से लाभान्वित होना चाहिए। इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम ख़ुदाई इच्छा की प्राप्ति को लोक-परलोक में कल्याण की चाबी मानते थे। वे पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं के आधार पर इस बात पर बल दिया करते थे कि अल्लाह की प्रसन्नता हर वस्तु से सर्वोपरि है।

ख़ुदावंदे करीम सूरए तौबा की ७२ वीं आयत में अपनी इच्छा को मोमिनों के लिए हर चीज़, यहां तक स्वर्ग से भी बड़ा बताता है। इसी आधार पर इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम लोगों से कहते थे कि वे केवल ख़ुदा की प्रसन्नता प्राप्त करने के बारे में सोच-विचार करें और इस संदर्भ में वे अपने मार्गदर्शन प्रस्तुत करते थे। अपने मूल्यवान कथन में एक स्थान पर इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम कहते हैं: तीन चीज़े अल्लाह की प्रसन्नता का कारण बनती हैं। पहले, अल्लाह से अधिक से अधिक प्रायश्यित करना, दूसरे कृपालू होना और तीसरे अधिक दान देना। ख़ुदा की ओर से मनुष्य को प्रदान की गई नेअमतों में से एक नेअमत प्रायश्यित अर्थात अपने पापों के प्रति अल्लाह से क्षमा मांगना है।

प्रायश्चित, ख़ुदा के बंदों के लिए  ख़ुदा की नेअमतों के द्वार में से एक है। ख़ुदा से पापों का प्रायश्चित करने से पिछले पाप मिट जाते हैं और इससे इंसान को इस बात का फिर से अवसर प्राप्त होता है कि वह विगत की क्षतिपूर्ति करते हुए उचित कार्य करे और अपनी आत्मा को पवित्र एवं कोमल बनाए। इसी तर्क के आधार पर मनुष्य को तौबा या प्रायश्चित करने में विलंब नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे पछतावा ही हाथ आता है।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के अनुसार शराफ़त (शालीतना) उन अन्य उपायों में से है जिसके माध्यम से ख़ुदाई प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है। उसके पश्चात दूसरे और तीसरे भाग में मनुष्य को लोगों के साथ संपर्क के ढंग से परिचित कराते हैं। दूसरे शब्दों में अल्लाह को प्रसन्न करने का मार्ग अल्लाह के बंदों और उनकी सेवा से गुज़रता है। इस संपर्क को विनम्रता और दयालुता के साथ होना चाहिए।

निश्चित रूप से विनम्र व्यवहार विनम्रता का कारण बनता है जो मानव को घमण्ड से दूर रखता है। घमण्ड, दूसरों पर अत्याचार का कारण होता है। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने ख़ुत्बे के अन्तिम भाग में अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के तीसरे कारण को दान-दक्षिणा के रूप में परिचित करवाते हैं। स्वयं वे इस मानवीय विशेषता के प्रतीक थे।

इसी आधार पर उन्हें जवाद अर्थात अत्यधिक दानी के नाम से जाना जाता है। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम लोगों को उस मार्ग का निमंत्रण देते थे जिसे उन्होंने स्वयं भी तय किया और उसके बहुत से प्रभावों को ख़ुदा की रहमत और कृपादृष्टि को आकृष्ट करने में अनुभव किया। दूसरों को सदक़ा या दान देने का उल्लेख पवित्र क़ुरआन में बहुत से स्थान पर नमाज़ के साथ किया गया है। इस प्रकार इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम यह समझाना चाहते हैं कि ख़ुदा की इबादत के दो प्रमुख पंख हैं। इनमें से एक ख़ुदा के साथ सहीह एवं विनम्रतापूर्ण संबंध और दूसरा लोगों के साथ मधुर एवं विनम्रतापूर्ण व्यवहार है। यह कार्य दान से ही संभव होता है जिससे व्यक्ति अल्लाह की इच्छा प्राप्त कर सकता है।

मनुष्य अपनी संपत्ति में से जिस मात्रा में भी चाहे अल्लाह के मार्ग में वंचितों को दान कर सकता है। यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि दान-दक्षिणा में संतुलन होना चाहिए। ऐसा न हो कि यह मनुष्य के लिए निर्धन्ता का कारण बने। दान और परोपकार हर स्थिति में विशेषकर धन-दौलत का दान उन कार्यों में से एक है जो इंसान को ख़ुदा की प्रसन्नता की ओर बढ़ाता है। क्योंकि इंसान के पास जो कुछ है उसे वह अल्लाह के मार्ग में दान दे सकता है। इस प्रकार के लोग हर प्रकार के भौतिक लगाव को त्यागते हुए केवल अल्लाह की प्रशंसा की प्राप्ति चाहते हैं। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के एक कथन से इस लेख का अंत कर रहे हैं।

जैसा कि आप जानते हैं कि बहुत से लोग धन-दौलत, सत्ता, जातिवाद तथा इसी प्रकार की बातों को गर्व और महानता का कारण मानते हैं तथा जिन लोगों में यह चीज़ें नहीं पाई जातीं उन्हें वे तुच्छ समझते हैं किंतु इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम सच्ची शालीनता का कारण उस ज्ञान को मानते हैं जो व्यक्ति के भीतर निखार का कारण बने। वे महानता को आध्यात्मिक विशेषताओं में से मानते हैं।

एक स्थान पर आप कहते हैं: वास्तविक सज्जन वह व्यक्ति है जो इल्म से आरास्तां (ज्ञान से सुसज्जित) हो और वास्तविक महानता उसी के लिए है जो ख़ुदाई भय और ख़ुदाई पहचान के मार्ग को अपनाए।

अमरीकी यूनिवर्सिटियों में छात्र और प्रोफ़ेसर युद्ध ग्रस्त ग़ज़ा के लोगों के साथ जहां एकजुटता जताने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं इस देश के दो प्रमुख दलों के नेता और राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार वही पुरानी और घिसीपिटी चुनावी रणनीति को फिर से ज़िंदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

1968 में अमरीका में कोलंबिया विश्वविद्यालय समेत कई अन्य विश्वविद्यालयों में विरोध करने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करके रूढ़िवादियों ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की थी। यह छात्र वियतनाम में अमरीका के युद्ध का विरोध कर रहे थे। डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों ही पार्टियों ने इस विरोध को अवैध और अमरीका विरोधी बताया था। अब 56 साल बाद, हम अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों में एक समान राजनीतिक प्रक्रिया को आकार लेते हुए देख सकते हैं।

जब अमरीका की यूनिवर्सिटियों में फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारी छात्रों के टैंटों को उखाड़ फेंकने के लिए पुलिस को बुलाया गया, तो अमरीकी राजनेताओं ने पुरानी दास्तानों को दोहराया। हालांकि यह दास्तान उन लोगों के लिए आश्चर्यजनक नहीं है, जो अमरीकी इतिहास से वाक़िफ़ हैं।

1968 में निक्सन ने सविनय अवज्ञा को एक ऐसे कार्य के रूप में वर्णित करने का प्रयास किया जिसने अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था को ख़तरे में डाल दिया है, भले ही वह अहिंसक ही क्यों न हो। वियतनाम में अमेरिकी युद्ध-प्रणाली के ख़िलाफ़ छात्रों के नारों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा थाः नारा लगाना एक तरह की नई हिंसा है, जो लोगों को भ्रमित कर सकती है।

राष्ट्रपति जो बाइडन भी छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के ख़िलाफ़, इसी तरह की बयानबाज़ी कर रहे हैं। 5 मई को उन्होंने कहा था कि विरोध करने का अधिकार सभी को है, लेकिन अराजकता फैलाने का अधिकार किसी को नहीं है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि छात्र हिंसक तरीक़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

अब देखना है यह कि चुनावों में बाज़ी कौन मारता है। क्योंकि डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ही ज़ायोनी लॉबी को ख़ुश करने में लगे हुए हैं और पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के समर्थकों को बुरा-भला कह रहे हैं। शायद दोनों के सामने 1968 में निक्सन को व्हाइट हाउस पहुंचाने वाली प्रक्रिया है।

डेमोक्रेट यह दिखाना चाहते हैं कि वे रूढ़िवादियों की तुलना में विरोध प्रदर्शनों और सार्वजनिक अव्यवस्था पर अधिक सख़्त हैं, तो मतदाता रिपब्लिकन द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए अधिक रूढ़िवादी विकल्प को पसंद करते हैं।

क़ानून और व्यवस्था के नारे के साथ बाइडन न केवल राष्ट्रपति चुनाव में डोनल्ड ट्रम्प को फिर से चुनने में मदद कर रहे हैं, बल्कि प्रांतीय चुनावों में भी रिपब्लिकन की मदद करने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

रिपब्लिकन की ओर से 2024 के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ट्रम्प ने भी बाइडन और डेमोक्रेट्स द्वारा तैयार की गई पिच पर खेलते हुए कहाः मैं हर कॉलेज अध्यक्ष से इस अभियान को तुरंत बंद करने के लिए कहता हूं। कट्टरपंथियों को हराएं और सभी सामान्य छात्रों के लिए हमारे विश्वविद्यालयों को फिर से खोल दें।

जैसे-जैसे फ़िलिस्तीन के लिए समर्थन का मुद्दा ज़ोर पकड़ रहा है और विरोध प्रदर्शनों को तेज़ी से दबाया जा रहा है, हम विरोध प्रदर्शनों और विद्रोह की उन गर्म और लंबी गर्मियों में से एक के निकट होते जा रहे हैं, जो 1960 के दशक में अमरीका की पहचान बन गई थी।