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हज 2024 के लिए भारतीय हज यात्रियों का 10 इम्बार्केशन पॉइंट से प्रस्थान जारी है। आज दिल्ली इम्बार्केशन के आईजीआई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से सउदीया एयरलाइंस के दो विमानों मे लगभग 800 हज यात्री मदीना के लिए रवाना हुए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,दिल्ली/ हज 2024 के लिए भारतीय हज यात्रियों का 10 इम्बार्केशन पॉइंट से प्रस्थान जारी है आज दिल्ली इम्बार्केशन के आईजीआई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से सउदीया एयरलाइंस के दो विमानों मे लगभग 800 हज यात्री मदीना के लिए रवाना हुए।

जिसमें बिना महरम के 58 महिला भी हज बैतुल्लाह के लिए रवाना हुईं गौरतलब है कि अल्पसंख्यक मामलों और महिला एवं बाल मंत्री ने प्रधानमंत्री की महिला अधिकार नीति को और मजबूत करते हुए 45 वर्ष या उससे अधिक उम्र की  महिलाओं को बिना महरम अकेले हज पर जाने का अवसर प्रदान किया है। इस नीति के तहत 2024 में 4665 महिलाएं अकेले हज कर सकेंगी।

जिनमें सबसे ज्यादा संख्या केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक,महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की महिलाओं की है। इस अवसर पर हज कमेटी आफ़ इंडिया   के अधिकारियों और कर्मचारीयों  विशेष कर महिला कर्मचारीयों ने  आईजीआई हवाई अड्डे पर हज यात्रियों, विशेषकर बिना महरम वाली महिला हज यात्रियों को शुभकामनाएं दीं।

सीईओ डॉ. लियाकत अली अफाकी, डिप्टी सीईओ नजीम अहमद  के साथ महिला स्टाफ ने फूल और चॉकलेट देकर रुखसत किया। डॉ. अफाकी ने इस अवसर पर सभी हज यात्रियों से भारत सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाने की अपील की।

धैर्य रखें और उन कमियों को नज़रअंदाज़ करें जो तमाम प्रयासों के बावजूद रह जाती हैं।  हज की इबादत में मशगूल रहें और दुआ करें कि पूरे विश्व खासकर हमारे देश भारत मे शांति, व्यवस्था, मानवता और भाईचारे का माहौल स्थापित रहे।

कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के संयुक्त सेना प्रमुख ने गाजा में युद्ध जारी रखने के लिए नेतन्याहू की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि गाजा के खिलाफ युद्ध जारी रखने से कोई फायदा नहीं है।

आईआरएनए की रिपोर्ट के अनुसार, कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के संयुक्त सेना प्रमुख हर्ज़ी हलेवी ने बताया कि गाजा से इजरायली सेना की वापसी के बाद, तहरीक अल-इस्ताकम के मुजाहिदीन फिर से संगठित हो रहे हैं वहां खुद ने कहा कि गाजा इजराइल हमास के अलावा किसी अन्य सरकार के गठन की कोशिश नहीं कर रहा है। एक ज़ायोनी अख़बार ने भी इसराइली सैन्य सूत्रों का हवाला देते हुए लिखा है कि हमास पर जीत का कोई रास्ता नहीं बचा है.

कुछ ज़ायोनी अधिकारियों ने यह भी चेतावनी दी है कि युद्ध के बाद किसी भी निर्णय में इज़रायली कैबिनेट की कोई भागीदारी नहीं है, जिसके कारण इज़रायली लोगों की जान को ख़तरा हो गया है। गाजा युद्ध में अब तक छह सौ बीस इज़रायली सैनिक मारे जा चुके हैं और राफा पर हमला न करने के अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद, नेतन्याहू कैबिनेट राफा पर हमला करने पर जोर दे रही है। इजराइली अखबार मारिव ने भी गाजा युद्ध के अप्राप्य परिणामों का जिक्र किया है और इस बात पर जोर दिया है कि रफाह पर इजराइल के हमले से स्थिति और खराब हो जाएगी. हाल के महीनों में नेतन्याहू कैबिनेट पर गाजा युद्ध खत्म करने और राफा पर हमला न करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव काफी बढ़ गया है।

 

प्रदर्शन के दौरान गुस्साए प्रदर्शनकारी और पुलिस आमने-सामने आ गए, इस दौरान पथराव के जवाब में पुलिस ने आंसू गैस छोड़ी.पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर की संयुक्त कार्रवाई समिति के केंद्रीय नेतृत्व ने हिंसक घटनाओं पर उदासीनता व्यक्त की है.

केंद्रीय नेतृत्व ने न सिर्फ इन हिंसक घटनाओं पर उदासीनता जताई बल्कि यह भी दोहराया कि हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण है और रहेगा. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के खिलाफ दुष्प्रचार किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है, हम पाकिस्तानी हैं और पाकिस्तान हमारा है.

याद रहे कि 10 मई से पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में सस्ती बिजली और सस्ते आटे की आपूर्ति को लेकर विरोध प्रदर्शन और हड़तालें चल रही हैं.

 

हड़ताल और विरोध प्रदर्शन के तीसरे दिन आज आज़ाद कश्मीर में सभी व्यापारिक केंद्र, कार्यालय और शैक्षणिक संस्थान बंद हैं।

प्रदर्शन के दौरान गुस्साए प्रदर्शनकारी और पुलिस आमने-सामने आ गए, इस दौरान पथराव के जवाब में पुलिस ने आंसू गैस छोड़ी.

प्रदर्शनकारियों ने महंगी बिजली नहीं, महंगा आटा नहीं, के नारे लगाए, जिला प्रशासन ने मीरपुर में धारा 144 लगा दी है. प्रदर्शनकारियों से झड़प के दौरान गोली लगने से घायल एएसआई की मौत हो गई.

अवामी एक्शन कमेटी ने महंगाई और टैक्स के खिलाफ मीरपुर से मुजफ्फराबाद तक लंबे मार्च की घोषणा की है.

इराक के इस्लामी प्रतिरोध ने कब्जे वाले क्षेत्रों के दक्षिण में रेमन हवाई अड्डे पर मिसाइल हमला किया है।

अल-मायादीन चैनल के मुताबिक, इराक के इस्लामिक प्रतिरोध ने अपने बयान में कहा है कि हमने कब्जे वाले इलाकों में रेमन एयरबेस को निशाना बनाया है. बयान के मुताबिक, यह हमला उन्नत किस्म की अल अरकिब क्रूज मिसाइल से किया गया. यह हमला गाजा पट्टी में निर्दोष फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के अपराधों और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के प्रति उसके समर्थन के जवाब में किया गया था।

पिछले दिनों क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में किए गए अभियानों में इराक़ के इस्लामी प्रतिरोध ने चेतावनी दी थी कि यदि ज़ायोनी सरकार ने गाज़ा पर अपने हमले जारी रखे, तो वह इस सरकार के ठिकानों के ख़िलाफ़ अपने अभियान तेज़ कर देगी। कब्जे वाले क्षेत्रों में विभिन्न अभियानों के दौरान, इस समूह ने हमेशा गाजा के लोगों के समर्थन और कब्जे वाले ज़ायोनी शासन के खिलाफ हमले पर जोर दिया है।

ईरान की वास्तविकता उससे बिल्कुल अलग है जैसी पश्चिमी संचार माध्यम दिखाते हैं।

आयरलैण्ड के एक फिल्म निर्माता जान मुरे ने हाल में एक इंटरव्यू में कहा है कि पश्चिमी संचार माध्यम हमेशा ही ईरान को चित्रों के माध्यम से बुरा दिखाने में लगे रहे हैं।  शुरू से मैं यह सोचता आया हूं कि घटने वाली घटनाओं को लेकर ईरान, बहुत धैर्यवान रहा है।

उन्होंने ईरान की मेहर न्यूज़ एजेन्सी को दिये अपने साक्षात्कार में बताय कि मैं संचार माध्यमों विशेषकर प्रेस टीवी के माध्यम से ईरान से परिचित हुआ।  अपनी हालिया ईरान की यात्रा में मैं वहां के कुछ संचार माध्यमों से अवगत हुआ।

मैं हमेशा ही ईरान की संस्कृति और ईरान की इस्लामी क्रांति के साथ ही उपनिवेशवाद और वर्चस्ववाद के विरुद्ध ईरान के संघर्ष से प्रभावित रहा हूं।  उन्होंने सुब्ह नामक दूसरे इंटरनैशनल मीडिया फेस्टिवल के आयोजन और इसमें पश्चिमी संचार माध्यमों की उपस्थिति के बारे में कहा कि इस प्रकार के आयोजनों में पश्चिम के स्वतंत्र मीडिया संस्थानों की उपस्थति उपयोगी हो सकती है।

ईरान की वास्तविकता उससे बिल्कुल अलग है जैसी पश्चिमी संचार माध्यम दिखाते हैं।

जान मुरे ने कहा कि पश्चिमी संचार माध्यम ईरान को तीसरी दुनिया के देश में रूप में पेश करते हैं।  जिसने भी ईरान की यात्रा की है उसको यह वास्तविकता पता है कि जो पश्चिमी संचार माध्यम दिखाते हैं, ईरान उससे बहुत भिन्न है।  ईरान पहुंचकर मैंने पाया कि यह बहुत ही सुन्दर देश है।

यह मेरे लिए बहुत ही विचित्र था।  मैंने लंबे समय तक ईरान की संस्कृति विशेषकर सासानी काल की संस्कृति और उसके इस्लामी संस्कृति में बदलने की शैली का अध्ययन किया।  यह विषय मेरे लिए बहुत ही रोचक था।  हालांकि पश्चिमी संचार माध्यम ईरान को एक कमज़ोर देश दिखाना चाहते हैं।  इस तरह से वे अपने देश के लोगों को ईरान जैसे देश की जानकारियों से दूर रखते हैं।

आयरलैण्ड के इस फिल्म निर्माता ने अपने इंटरव्यू में कहाः

इस विचार को दूर करने के लिए और पश्चिमी जनमत से संपर्क के लिए बेहतरीन रास्ता यह है कि संपर्क चैनेल स्थापित किये जाएं और पश्चिम के स्वतंत्र संचार माध्यमों से संपर्क को विस्तृत किया जाए।  स्वतंत्र मीडिया के माध्यम से अब हम एक नए चरण में दाख़िल हुए हैं।  सोशल मीडिया और डिजीटल मीडिया का दायरा बढ़ रहा है।  ईरान जैसे देश के साथ संपर्क बनाने की बेहतरीन भूमिका मौजूद है।

जान मूरे कहते हैं कि इस समय हम देख रहे हैं कि फ़िलिस्तीनियों के साथ खुलकर अन्याय किया जा रहा है।  अफ़सोस की बात है कि फ़िलिस्तीनियों के साथ बहुत नाइंसाफ़ी की जा रही है।  इस बारे में पश्चिम के स्वतंत्र संचार माध्यम, ईरानी संचार माध्यमों के विचारों से एकमत हैं।  एसे में परस्पर सहयोग की भूमिका उपलब्ध कराई जा सकती है।

पश्चिमी संचार माध्यम हमेशा की ईरान की बुरी छवि पेश करते आए हैं

मूरे के अनुसार मीडिया के क्षेत्र में पश्चिमी, ईरान जैसे देशों से वर्षों आगे हैं लेकिन वे हमेशा ही ईरान की बुरी तस्वीर पेश करने में लगे रहते हैं।  मैं पहले से यह सोचता आया हूं कि घटने वाली घटनाओं को लेकर ईरान ने बहुत धैर्य से काम लिया है।

यह फिल्म निर्माता कहता हैः

ग़ज़्ज़ा में इस्राईल की ओर से किये जा रहे जातीय सफाए और आयरलैण्ड में ब्रिटिश उपनिवेशवाद द्वारा किये गए अत्याचारों में बहुत समानता है।  इसपर अमरीकी और ब्रिटेन की नई पीढ़ी की प्रतिक्रियाएं आई हैं।  यह बात इस्राईल की तबाही और ज़ायोनी विचारधारा के समाप्त होने की उम्मीद को बढ़ाती है।  मैं सोचता हूं कि इस्राईल से 11 अक्तूबर के बाद से जो कुछ किया है उससे उसने वापस न लौटने के रास्ते का चुनाव किया है।

याद रहे कि 19 मई से 21 मई 2024 तक सुब्ह नामक दूसरे इंटरनैशनल मीडिया फेस्टिवल का आयोजन किया जाएगा।  इस फेस्टिवल में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के फिल्म निर्माताओं तथा कार्यक्रम बनाने वालों से भाग लेने का आह्वान किया गया है।

ईरान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स को आतंकवादी घोषित करने के कनाडाई संसद के कदम को नासमझीपूर्ण, शत्रुतापूर्ण और अंतरराष्ट्रीय कानूनों और सिद्धांतों के विपरीत बताते हुए कहा है कि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स एक आतंकवादी के खिलाफ अभियान का नेता है आतंकवाद.

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के खिलाफ कनाडाई संसद की कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि यह शत्रुतापूर्ण कार्रवाई ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है और ईरान की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ है। है।

उन्होंने कहा कि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स ईरान के सशस्त्र बलों के साथ मिलकर देश की सीमाओं की सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ अभियान के साथ-साथ क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित करने में अपनी पूरी भूमिका निभा रही है। नासिर कनानी ने कनाडाई सांसदों की अतार्किक कार्रवाई पर निशाना साधा और कहा कि ये सदस्य एक दशक से अधिक समय से दमनकारी ज़ायोनी सरकार के प्रभाव में कुछ प्रतिबंधित समूहों के साथ सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कनाडाई सांसदों को ईरान की सेना की स्थिति और तथ्यों पर विचार करना चाहिए, जो ईरान के मूल संविधान के अनुसार, अपनी आधिकारिक पहचान के साथ क्षेत्र में आतंकवाद से लड़ रही है और शांति और स्थिरता स्थापित करने में पूरा सहयोग कर रही है।

ईरान के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि कनाडा के शत्रुतापूर्ण कदम से आईआरजीसी के अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा और इस्लामी गणतंत्र ईरान इस तरह के अवैध और मूर्खतापूर्ण कदम पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार सुरक्षित रखता है।

अपने सैनिकों को नाइजेर से वापस बुलाने के लिए अमरीका अब मजबूर हो चुका है।

अमरीकी रक्षामंत्रालय पेंटागन, नाइजेर से अपने सैनिकों की वापसी के लिए मजबूर हो गया है।

पोलिटिको ने शुक्रवार को नाम छिपाने की शर्त पर एक अमरीकी अधिकारी के हवाले से बताय है कि नाइजेर में अमरीकी सैनिकों के बाक़ी रहने की संभावना के पिछले सप्ताह पूरी तरह से समाप्त हो जाने के बाद पेंटागन ने वहां पर मौजूद सभी एक हज़ार अमरीकी सैनिकों को नाइजेर से निकलने का आदेश जारी कर दिया है।

अमरीका ने अप्रैल में एलान किया था कि नाइजेर से अपने सैनिकों की ज़िम्मेदाराना वापसी का वह आग़ाज़ करने जा रहा है।  हलांकि इसी बीच अमरीकी अधिकारी, नाइजेर के अधिकारियों से उनके देश में अपने सैनिकों के बाक़ी रहने के बारे में वार्ता में व्यस्त हैं।

इससे पहले तक नाइजेर, इस क्षेत्र में वाशिग्टन के साथ सैन्य सहयोग में अपनी भूमिका निभाने के लिए बाध्य था।  इस देश ने यह बात स्वीकार कर ली थी कि नाइजेर में अमरीका की एक बड़ी हवाई छावनी बनाई जाए।

नाइजेर में हालिया राजनीतिक परिवर्तनों के बाद इस देश के नए शासकों ने पश्चिमी उपनिवेशवादियों विशेषकर फ्रांस और अमरीका के साथ अपने सैनिक संबन्धों को जल्द अज़ जल्द तोड़ने का फैसला कर लिया।  उनके इस काम का नाइजेर की जनता ने खुलकर समर्थन किया।

हालिया दिनों में चाड भी उन अफ़्रीकी देशों की सूचि में शामिल हो गया जो अपने यहां से अमरीकी सैनिकों की वापसी चाहते हैं।  वर्तमान समय में चाड़ में लगभग एक हज़ार अमरीकी सैनिक मौजूद हैं।

इससे पहले फ़्रांसीसी सैनिक नाइजेर, माली और बोर्कीनाफ़ासो से निकलने पर मजबूर हुए थे।

इसी बीच उत्तरी नाइजीरिया के नेताओं के गुट के प्रवक्ता जबरीन इब्रामहीम ने ईरान प्रेस के साथ विशेष बातचीत में नाइजीरिया में सैन्य छावनी बनाने के लिए इस देश की सरकार के साथ अमरीका और फ्रांस की वार्ता पर चिंता जताई थी।  उन्होंने कहा था कि माली, नाइजेर और बोर्कीनाफ़ासो में अमरीकी और फ्रांसीसी सैनिकों की उपस्थति के अनुभव ने सिद्ध कर दिया कि इन देशों को अपने यहां मौजूद अमरीकी और फ्रांसीसी सैन्य अड्डों के निरीक्षण की अनुमति नहीं थी।  यही काम अब नाइजीरिया के साथ होने जा रहा है।

नाइजीरिया के राष्ट्रपति अपने देश के भीतर फ्रांसीसी और अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति के बारे में वार्ता कर रहे हैं कि जब इससे पहले नाइजेर, माली और बोर्कीनाफासो के लोगों ने विरोध प्रदर्शन करके अपनी नई सरकारों से विदेशी सैनिकों की वापसी पर बल दिया था।

चाड, नाइजेर और उससे पहले माली तथा बोर्कीनाफ़ासो से पश्चिम की वर्चस्ववादी शक्तियों के सैनिकों की वापसी की मांग से ने केवल यह कि अफ़्रीका महाद्वीप में उनका और उनके घटकों का प्रभाव कम होगा बल्कि यह काम भू-राजीतिक संबन्धों में उल्लेखनीय परिवर्तन के अर्थ में है।  वास्तव में अफ्रीका में अमरकी और उसके घटक देशों की सैन्य उपस्थति में कमी से पश्चिमी देशों की विदेश नीतियों में कई प्रकार की समस्याएं आ सकती हैं जिसका परिणाम वाशिग्टन और उसके घटकों की भू-राजीतिक पराजय के रूप में सामने आएगा।

सीना रोबोट का नाम ईरान के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बू अली सीना के नाम पर रखा गया है।

ईरान ने दुनिया के सबसे अच्छे सर्जन रोबोटों में से एक, "सीना" नामक सर्जन रोबोट बनाया है।  इसका अनावरण सन 2015 में तेहरान में आयोजित एनोटेक्स, एक्ज़ीबिशन में किया जा चुका है।

यह रोबोट बनाकर ईरान के इन्जीनियरों ने मेडिकल इन्जीनियरिंग की उस दुनिया में प्रेवश किया जो हाइएस्ट लेवेल की तकनीक का हिस्सा है।  ईरानी वैज्ञानिकों द्वारा इस सर्जन रोबोट को बनाने से पहले तक व्यापार जगत में अमरीका का डाविंची सर्जन रोबोट ही मौजूद था।

इस रोबोट का नाम ईरान के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बू अली सीना के नाम पर "सीना" रखा गया है।

सीना रोबोट के क्रियाकलापः

सीना नामक रोबोटिक सर्जरी सिस्टम को सनअती शरीफ यूनिवर्सिटी के बायोमैकेनिक ग्रुप और तेहरान यूनिवर्सिटी के बायोमेडिकल और रोबोटिक टेक्नालोजी अनुसंधान केन्द्र व न्यू मेडिकल टेक्नालाजी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सहयोग से बनाया गया है।  इसके दो भाग हैं।  एक, रिमोट सर्जरी कंसोल और दूसरे मरीज़ के बेड पर आधारित सर्जन रोबोट।

सर्जिकल कंसोल में एक मानीटर, दो मार्गदर्शक रोबोट और पैरों से नियंत्रित करने वाला पैडल शामिल है।  इसके पीछे बैठकर डाक्टर या सर्जन, आपरेशन केन्द्र से भेजी गई तस्वीरों को देखता है।  वह सर्जिकल उपकरणों के साथ ही इमैजिंग कैमरे को दूर से नियंत्रित करता है।  दूसरी ओर तीन रोबोट, जिनमें दो उपकरण ले जाने वाले और एक, फोटो लेने वाला रोबोट होता है, मरीज़ के बिस्तर के पास तैनात रहता है।  उसपर सर्जन के आदेशों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी होती है।

ईरान के सीना सर्जन रोबोट का फोटो

आपरेश के दौरान सर्जन के हाथों की गतिविधियों को दूसरे रोबोट द्वारा हासिल किया जाता है जिसको बाद वाले रोबोट तक भेजा जाता है ताकि आपरेशन को बहुत ही सावधानी से अंजाम दिया जा सके।  बीमार के बिस्तर के पीछे चलने वाले रोबोट और सर्जिकल कंसोल में काम करने वाले रोबोट, के बीच संबन्ध या संपर्क को इंटरनेट जैसी तकनीक से किया जाता है।  यही वजह है कि इस प्रकार की सर्जरी को, देश के दूरस्थ क्षेत्र या फिर किसी पोत पर भी किया जा सकता है।

विश्व बाज़ार में उपस्थतिः  

जवानी एक बढ़ता हुआ पौधा है। यह अधिकांश खूबियों, रौनक और नूरानीयत का केंद्र है। मेरे प्यारों ! मैं आपसे अर्ज़ करूं कि यह मोहब्बत और उल्फत दो तरफा है। आपके बुज़ुर्ग और बूढ़े बाप के तौर मेरा दिल आपकी मोहब्बत से भरा हुआ है।

हमारे देश के जवान युद्ध के दौरान और उसके बाद भी अपनी पाकीज़गी को बाक़ी रखने में कामयाब रहे। ऐसा भी नहीं है कि मैं जवानों के बीच गलत मूवमेंट और रुझान को फैलाने की कोशिशों से बेखबर और अनभिज्ञ हूँ , ऐसा बिल्कुल नहीं है ! मैं समझता और जनता हूँ कि क्या हो रहा है। लेकिन इन तहों और गर्दो ग़ुबार के नीचे मुझे शराफत, तक़वा, पाकीज़गी और नूरानीयत की धारा भी नज़र आती है।

वह सब लोग जिनका सरोकार और वास्ता जवानों और नौजवानों से है, या मेरे जवानों आप खुद जो किसी इस्लामी संस्था और तालीम और तरबियत के काम में लगे हुए हैं कोशिश करें कि आपका तरीक़ा और काम करने के अंदाज़, प्रेमपूर्वक, बुद्धिमता से भरा, ख़ुलूस , पाकीज़गी और परोपकारी हो। तुम में से प्रत्येक इस्लाम का सिपाही है। आप सब इस्लाम के सिपाही हैं। अपनी हिफाज़त करें, आत्मनिर्माण करें, अपने विकास का ध्यान रखें। यूनिवर्सिटी हो या हौज़ए इल्मिया, दाखिले के लिए तैयार हो जाएं ताकि बाद में देश और समाज में अपनी चमक बिखेर सकें।

मुझे इस में ज़रा भी संदेह नहीं है कि आप में से बहुत से जवान हैं जिन पर इमामे ज़माना अ.स. की ख़ास नज़र है। मुझे इस बात में ज़रा भी शक नही है कि आपके पाको पाकीज़ा दिल इमाम की निगाहों के केंद्र में हैं।

फ़िलिस्तीनी इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन (हमास) के राजनीतिक कार्यालय के उप प्रमुख ने घोषणा की कि ज़ायोनी शासन के प्रधान मंत्री के विरोध के कारण गाजा में युद्धविराम और कैदियों की अदला-बदली की सभी प्रस्तावित योजनाएँ असफल और निरर्थक रही हैं।

आईआरएनए रिपोर्ट के अनुसार, हमास के राजनीतिक कार्यालय "खलील अल-हिया" के उप प्रमुख ने कहा है कि हमास युद्धविराम और कैदियों की अदला-बदली के लिए एक वास्तविक समझौते की तलाश में है, लेकिन प्रधान मंत्री ज़ायोनी सरकार, बेंजामिन नेतन्याहू याहू अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए युद्ध जारी रखने की कोशिश कर रही है।

खलील अल-हया ने कहा कि गाजा के दक्षिण में राफा शहर पर ज़ायोनी सरकार के जमीनी हमले के कारण युद्धविराम और कैदियों की अदला-बदली के लिए बातचीत में कोई प्रगति नहीं हुई है।

हमास आंदोलन ने कतर और मिस्र द्वारा कैदियों की अदला-बदली और ज़ायोनी सरकार के साथ युद्धविराम की स्थापना के संबंध में प्रस्तुत प्रस्ताव पर अपनी सहमति की घोषणा की है।

विभिन्न अंतरराष्ट्रीय दलों द्वारा हमास के कदम को स्वीकार किए जाने के बावजूद, नेतन्याहू ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया, यह दावा करते हुए कि यह तेल अवीव की मांगों से बहुत दूर था और सैनिकों को गाजा पट्टी के दक्षिण में एक शहर राफा में प्रवेश करने की अनुमति देकर ही दबाव बनाया जा सकता था हमास पर दबाव डाला और आंदोलन को तेल अवीव की शर्तों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया।