
رضوی
सिर्फ़ इंसानियत ही काफ़ी है, अमेरिकी विश्वविद्यालयों की घटनाओं पर ईरानी विश्लेषकों की राय
एक विश्लेषक के अनुसार, पश्चिमी राजनीति ने लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया है और अब यह उस बिंदु पर पहुंच गया है जहां न केवल क्लर स्कीन के लोग नस्लीय भेदभाव के ख़िलाफ लड़ते हैं, बल्कि शिक्षाविद और यहां तक कि कुछ अमेरिकी राजनेता भी इस बुराई से लड़ते नज़र आ रहे हैं यहां तक कि इस देश के अधिकारियों के बच्चों ने भी आवाज़ उठाई है।
कोलंबिया विश्वविद्यालय में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी के बाद अमेरिकी विश्वविद्यालय परिसरों में फ़िलिस्तीन समर्थकों के विरोध की लहर फैल गई है और प्रदर्शनों की लहर इस देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों में फैलने के बाद यह दुनिया भर के अन्य देशों के विश्वविद्यालयों में भी फैल रही है।
न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय का विरोध प्रदर्शन 14 दिन पहले यानी (17 अप्रैल) शुरू हुआ और प्रदर्शनकारी छात्रों ने ग़ज़ा युद्ध में शामिल इस्राईली संस्थानों के साथ इस विश्वविद्यालय के संबंध तोड़ने की मांग की जबकि अन्य विश्वविद्यालयों में प्रदर्शनकारियों की ऐसी ही मांगें हैं।
दूसरी ओर, अमेरिकी सरकार ने इन प्रदर्शनों और विरोध प्रदर्शनों को ख़त्म करने के लिए सैन्य कार्यवाही शुरू कर दी है।
यहां हम इन घटनाओं के बारे में कु ईरानी विशेषज्ञों के विश्लेषण पर रोशनी डालेंगे:
ग़ैर-अप्रवासी अमेरिकियों की मज़बूत उपस्थिति
तेहरान विश्वविद्यालय में विश्व अध्ययन संकाय के एकेडमिक मेंबर फ़ुआद इज़दी:
इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए आपका मुस्लिम होना या वामपंथी विचारधारा से संपन्न होना ज़रूरी नहीं है। इन तस्वीरों को देखने के बाद विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए केवल मानवता ही काफ़ी है।
संभव है कि पश्चिमी मीडिया इन घटनाओं को तबाह कर दे लेकिन इससे काम की प्रवृत्ति नहीं बदलती। यदि इस आबादी का एक प्रतिशत भी मुसलमान है, तो हमें पता होना चाहिए कि वे अप्रवासी नहीं हैं। विदेशी छात्र आमतौर पर विरोध प्रदर्शनों में भाग नहीं लेते क्योंकि उन्हें अमेरिका से निकाले जाने का भय होता है।
प्रदर्शनकारियों में चाहे मुस्लिम हों या नहीं, हमें पता होना चाहिए कि ये लोग अमेरिकी नागरिक हैं।
अमेरिकन होने के कारण ही उनको डबल ड्यूटी का अनुभव होता है।
उदार लोकतंत्र की प्रेरक चुनौती
ईरान के पयामे नूर विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य सईद अब्दुलमलेकी:
2003 में, अमेरिका ने परमाणु बम की तलाश के लिए इराक़ में आप्रेशन किया लेकिन यह झूठ से ज्यादा कुछ नहीं था।
आज ग़ज़ा में 35000 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश निहत्थी महिलाएं और बच्चे थे।
उदार लोकतंत्र के पास इस नरसंहार का क्या औचित्य है?! वास्तव में, ऐसा कोई तर्क नहीं है जो इस संबंध में आम जनमत और अमेरिका के एकेडमिक वर्ग को आश्वस्त कर सके।
छात्रों और प्रोफेसरों ने एक राष्ट्रीय आंदोलन शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें लगता है कि इस व्यवस्था ने उनकी पहचान, गौरव और मानवता का हरण कर लिया है, और वे वास्तव में एक सैन्यवादी और कब्ज़ा करने वाली व्यवस्था का सामना कर रहे हैं।
पश्चिमी राजनीति ने लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया है और अब यह उस बिंदु पर पहुंच गया है जहां न केवल क्लर स्कीन के लोग नस्लीय भेदभाव के ख़िलाफ लड़ते हैं, बल्कि शिक्षाविद और यहां तक कि कुछ अमेरिकी राजनेता भी इस बुराई से लड़ते नज़र आ रहे हैं यहां तक कि इस देश के अधिकारियों के बच्चों ने भी आवाज़ उठाई है।
इस बात की संभावना करना बहुत ही क़रीब है कि विश्वविद्यालयों का यह आंदोलन, एक सामाजिक महामारी बन जाएगा क्योंकि अमेरिकी सरकार की ओर से हत्यारे ज़ायोनी शासन के चौतरफ़ा बचाव और समर्थन, अमेरिका की सामाजिक और राजनीतिक पूंजी को तबाह कर देगी यानी अमेरिकी मूल्यों की प्रतिष्ठा दांव पर लग जाएगी।
पहचान के संघर्ष की गंभीर भूमिका
अमेरिकी मुद्दों के विशेषज्ञ हादी ख़ुसरू शाहीन:
फ्रांसिस फुकुयामा के अनुसार, जिसे उनकी आख़िरी किताब बुक ऑफ आइडेंटिटी के रूप में प्रकाशित किया गया था, लगभग पुख्ता सबूत हैं - ख़ासकर नवम्बर 2016 के बाद - अमेरिका अपनी पहचान के युग में प्रवेश कर चुका है।
इन पहचान संघर्षों के प्रकट होने के कई कारण हैं।
शायद इन संघर्षों के उभरने का सबसे महत्वपूर्ण कारण पश्चिमी उदारवादी लोकतंत्रों में मौजूद कुछ कमियों की ओर पलटता है।
दूसरी ओर, अमेरिकी मुख्यधारा में मूल रूप से विभिन्न आवाज़ों का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता, संभावना या इच्छाशक्ति नहीं है जो पहचान के संघर्षों के ढांचे में परिभाषित होती है।
इसका विश्लेषण इस रूप में किया जा सकता है कि अमेरिका में हालिया विरोध प्रदर्शन बढ़े हैं बल्कि यह प्रदर्शन जारी हैं और साथ ही यह घरेलू राजनीति को भी चुनौती दे रहे हैं। विदेश नीति में अन्य श्रेणियों के विपरीत, ऐसे मुद्दे आमतौर पर अमेरिकी घरेलू नीति में कम ही टारगेटेड होते हैं लेकिन ग़ज़ा में नरसंहार का मुद्दा आखिरकार घरेलू राजनीति को चुनौती देने में सक्षम हो गया। इस एतेबार से इस घटना को पहचान के संघर्ष के युग में अमेरिका के दाख़िल होने के नमूनों में से एक या एक हिस्से के रूप में माना जा सकता है। वास्तव में लगभग दो मुख्य धाराओं के बीच पहचान का टकराव है। एक विचारधारा जो श्वेत अमेरिकियों के प्रभुत्व और संप्रभुता को संरक्षित करने और मूल व ऐतिहासिक अमेरिका की ओर लौटने का समर्थन करता है, यह वह अमेरिका जहां जातीय विविधता और बहुराष्ट्रीय प्रवृत्ति का निशान ही नज़र नहीं आता।
दूसरी ओर, एक और विचारधारा है जिसको एहसास है कि उसकी मांगों और उम्मीदों का घरेलू और विदेश नीति में जवाब ही नहीं मिलता। इसकी वजह यह है कि यह संघर्ष, बुनियादों और सिद्धांतों को लेकर है, यह संघर्ष ख़ुद बा ख़ुद हिंसक हो जाता है। नवम्बर 2020 में अमेरिकी चुनावों में, कुछ सर्वेक्षणों ने संकेत दिया कि दोनों पक्षों ने, चाहे बाइडेन या डेमोक्रेटिक समर्थक या ट्रम्प या रिपब्लिकन समर्थक हो, चुनावी लक्ष्यों को आगे बढ़ाने और पूरा करने के लिए एक निश्चित मात्रा में राजनीतिक हिंसा की अनुमति दी है।
विरोध प्रदर्शनों के आम लोगों तक पहुंचने की संभावना
तेहरान विश्वविद्यालय के फ़िलिस्तीन अध्ययन केन्द्र के प्रोफ़ेसर हादी बुरहानी:
पश्चिमी देशों और अमेरिका में विश्वविद्यालयों को एक विशेष स्थान प्राप्त है और दूसरी ओर ये विरोध प्रदर्शन, अमेरिका के प्रसिद्ध और बड़े विश्वविद्यालयों में हो रहे हैं और यदि ये जारी रहे, तो परिवर्तन की लहरें "आम लोगों" तक पहुंच सकती हैं।
यदि विरोध प्रदर्शन आम लोगों तक पहुंच गए, तो अमेरिकी सरकार इसे रोक नहीं पाएगी, और यह अंततः अमेरिका में ज़ायोनी शासन और उसकी लॉबी के लिए ख़तरा बन जाएगा।
अमेरिका में "पारशल डेमोक्रेसी" है और यदि इस देश में अधिकांश लोग ज़ायोनी शासन के समर्थन के ख़िलाफ़ हैं, तो इस शासन का समर्थन करने की नीति अब टिकाऊ नहीं रहेगी और तेल अवीव के लिए वाशिंगटन का समर्थन ख़तरे में पड़ जाएगा।
स्रोत:
अमेरिका में छात्रों का विरोध प्रदर्शन "आम लोगों" तक भी पहुंच सकता है। (1403 हिजरी शम्सी) मेहर न्यूज़ संवाददाता
7 अक्टूबर के छात्र आंदोलन की समाजशास्त्री, फ़रहिख़्तगान अखबार ब्रेमानी फ़ातेमा
अमेरिकी विश्वविद्यालयों का आंदोलन, एक सामाजिक आंदोलन बन गया। (1403 हिजरी शम्सी) तस्नीम समाचार एजेंसी
न्याय के लिए उठ खड़े हों: न्याय के बारे में पवित्र क़ुरआन की 8 महत्वपूर्ण आयतें
पवित्र क़ुरआन के दृष्टिकोण से, सृष्टि की दुनिया में, अस्तित्व की रचना न्याय पर आधारित है, और इसमें उत्पीड़न और अन्याय के लिए कोई जगह नहीं है और क़ानून की दुनिया में न्याय को ईश्वरीय दूतों के मिशन के तीन महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक माना जाता है। न्यायपूर्ण दृष्टि से हर चीज़ अपनी सही जगह पर होनी चाहिए और हर असली मालिक को उसका अधिकार मिलना चाहिए।
न्याय उन मूलभूत कान्सेप्ट में से एक है जिसे क़ुरआन ने नज़रियों, रूपांतर और कहानियों का इस्तेमाल करके विभिन्न सूरों और आयतों में व्यक्त और समझाया है, और इसका पालन करने और इसपर अमल करने पर ज़ोर दिया है। क़ुरआन के दृष्टिकोण से, सृष्टि की दुनिया में, अस्तित्व के निर्माण न्याय पर आधारित है, और इसमें उत्पीड़न और अन्याय के लिए कोई जगह नहीं है। साथ ही क़ानून की दुनिया में न्याय को ईश्वरीय दूतों के मिशन के तीन महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक माना जाता है। ईश्वर और इस्लाम की नज़र में न्याय के महत्व को बेहतर ढंग से समझने के लिए सबसे विश्वसनीय स्रोत किताब के रूप में पवित्र क़ुरआन है।
पार्सटुडे के इस लेख में, हम पवित्र क़ुरआन की सैकड़ों आयतों में से 8 ऐसी महत्वपूर्ण आयतों पर एक नज़र डालेंगे, जिनमें न्याय के मुद्दे का स्पष्ट या परोक्ष रूप से उल्लेख किया गया है:
अल्लाह (ईश्वर) के कार्य न्याय पर आधारित हैं
"شَهِدَ اللَّهُ أَنَّهُ لا إِلهَ إِلاَّ هُوَ وَ الْمَلائِکَةُ وَ أُولُوا الْعِلْمِ قائِماً بِالْقِسْطِ لا إِلهَ إِلاَّ هُوَ الْعَزیزُ الْحَکیمُ"؛ [قرآن: آل عمران، ۱۸[
"अल्लाह ने गवाही दी है कि उसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है और फ़रिश्तों तथा ज्ञानियों ने भी गवाही दी है। वह न्याय स्थापित करने वाला है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है, वह प्रभुत्वशाली और तत्वदर्शी है।"
अल्लाह के कार्य में रत्ती भर भी अन्याय नहीं है
"إِنَّ اللَّهَ لا یَظْلِمُ مِثْقالَ ذَرَّةٍ وَ إِنْ تَکُ حَسَنَةً یُضاعِفْها وَ یُؤْتِ مِنْ لَدُنْهُ أَجْراً عَظِیما"؛ [قرآن: نساء، 40[
"निसंदेह ईश्वर कण बराबर भी अत्याचार नहीं करता और यदि अच्छा कर्म हो तो उसका बदला दो गुना कर देता है और अपनी ओर से भी बड़ा बदला देता है"
लोगों के बीच न्याय के साथ फ़ैसला करो
"إِنَّ اللَّهَ یَأْمُرُکُمْ أَنْ تُؤَدُّوا الْأَماناتِ إِلى أَهْلِها وَ إِذا حَکَمْتُمْ بَیْنَ النَّاسِ أَنْ تَحْکُمُوا بِالْعَدْلِ إِنَّ اللَّهَ نِعِمَّا یَعِظُکُمْ بِهِ إِنَّ اللَّهَ کانَ سَمیعاً بَصیرا"؛ [قرآن: نساء، 58]
नि:संदेह ईश्वर तुम्हें आदेश देता है कि अमानतों को उनके मालिकों को लौटा दो और जब कभी लोगों के बीच फ़ैसला करो तो न्याय से फ़ैसला करो, नि:संदेह ईश्वर तुम्हें अच्छे उपदेश देता है, निश्चित रूप से वह सुनने और देखने वाला भी है।
दुश्मनी की वजह से दूसरों के साथ ना इंसाफ़ी न करो
"یا أَیُّهَا الَّذینَ آمَنُوا کُونُوا قَوَّامینَ لِلَّهِ شُهَداءَ بِالْقِسْطِ وَ لا یَجْرِمَنَّکُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلى أَلاَّ تَعْدِلُوا اعْدِلُوا هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوى وَ اتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ خَبیرٌ بِما تَعْمَلُونَ"؛ [قرآن: مائده، 8[
हे ईमान वालो! सदैव ईश्वर के लिए उठ खड़े होने वाले बनो और केवल (सत्य व) न्याय की गवाही दो और कदापि ऐसा न होने पाए कि किसी जाति की शत्रुता तुम्हें न्याय के मार्ग से विचलित कर दे। न्याय (पूर्ण व्यवहार) करो कि यही ईश्वर के भय के निकट है और ईश्वर से डरते रहो कि जो कुछ तुम करते हो निसन्देह, ईश्वर उससे अवगत है।
अल्लाह (ईश्वर) अत्याचारियों पर भी अत्याचार नहीं करता
"وَ لَوْ أَنَّ لِکُلِّ نَفْسٍ ظَلَمَتْ ما فِی الْأَرْضِ لاَفْتَدَتْ بِهِ وَ أَسَرُّوا النَّدامَةَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذابَ وَ قُضِیَ بَیْنَهُمْ بِالْقِسْطِ وَ هُمْ لا یُظْلَمُونَ"؛ [قرآن: یونس، ۴۷[
और हर समुदाय के लिए एक पैग़म्बर हो तो जब उनका पैग़म्बर आ जाता है तो उनका फ़ैसला न्यायपूर्वक कर दिया जाता है और उन पर कोई अत्याचार नहीं होता।
लोगों का हक़ अदा करने में नाइंसाफी न करें
"وَ یا قَوْمِ أَوْفُوا الْمِکْیالَ وَ الْمیزانَ بِالْقِسْطِ وَ لا تَبْخَسُوا النَّاسَ أَشْیاءَهُمْ وَ لا تَعْثَوْا فِی الْأَرْضِ مُفْسِدینَ" [قرآن، هود ۸۵[
हे मेरी क़ौम के लोगों! नाप और तुला को न्याय के साथ भरो और लोगों की वस्तुओं में से कुछ कम न करो और अपनी बुराई द्वारा धरती में बिगाड़ न फैलाओ।
लोगों को न्याय के लिए खड़ा होना चाहिए
"لَقَدْ أَرْسَلْنا رُسُلَنا بِالْبَیِّناتِ وَ أَنْزَلْنا مَعَهُمُ الْکِتابَ وَ الْمیزانَ لِیَقُومَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ"؛ [قرآن: حدید، ۲۵[
हमने अपने पैग़म्बरों को स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा (लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए) और उन पर किताब और न्याय का पैमाना उतारा ताकि लोग धार्मिकता और न्याय के साथ उठ खड़े हों।
अल्लाह (ईश्वर) न्याय प्रेमियों से प्रेम करता है
"وَ أَقْسِطُوا إِنَّ اللَّهَ یُحِبُّ الْمُقْسِطین"؛ [قرآن: حجرات، ۹[
न्याय के अनुसार काम करो, वास्तव में ईश्वर उन लोगों से प्रेम करता है जो न्याय चाहते हैं।
कानून के मुताबिक हिजाब का पालन नहीं करने वालों का उल्लेख करना जरूरी और शरी दायित्व है
अयातुल्ला नूरी हमदानी ने कहा: इस्लाम के बारे में जो निश्चित और निर्धारित है वह हिजाब की बाध्यता है। इस्लामिक समाज में इसका अभ्यास होना चाहिए।'
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने कुरान विषयों पर शोध करने वाली महिलाओं के साथ आयोजित एक कार्यक्रम में हिजाब से संबंधित कुरआन की आयतों का जिक्र किया और कहा: जो मुस्लिम और निश्चित है वह हिजाब और इस्लामी समाज का दायित्व है और खराब हिजाब को नहि-अनिल-मुनकर के रूप में उचित उपचार दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा: कुछ लोग कहते हैं कि हिजाब के मुद्दे पर तब तक ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए जब तक कि आर्थिक स्थिति ठीक न हो जाए, जब तक गबन और गबन समाप्त न हो जाए, या जब तक अमुक समस्या का समाधान न हो जाए।
इस मार्जा तकलीद ने कहा: हमने बार-बार लोगों की अर्थव्यवस्था और आर्थिक समस्याओं को हल करने पर जोर दिया है और हम लोगों के जीवन के बारे में चिंतित हैं। हमने बैंकों में सूदखोरी और रिश्वतखोरी को खत्म करने के लिए आवाज उठाई है, हमने भ्रष्टाचार रोकने की चेतावनी दी है और ऐसा करते रहेंगे।
आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने कहा: उसी तरह, हम हिजाब के मुद्दे को लेकर बहुत संवेदनशील हैं और कानून के मुताबिक हिजाब नहीं पहनने वालों का जिक्र करना जरूरी और शरिया कर्तव्य है।
उन्होंने कहा: पवित्र कुरान में, पवित्र पैगंबर (स) का स्पष्ट संबोधन है कि "अपनी महिलाओं को हिजाब पहनने का आदेश दें" इसलिए हम सभी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम इस कर्तव्य को अपने घरों और अपने आस-पास के लोगों से शुरू करें। . उसी प्रकार इस्लामिक देशों के शासकों के लिए भी इस कर्तव्य के पालन में मौजूदा कानूनों को लागू करना आवश्यक है।
इजराइल द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार के खिलाफ दुनिया भर के लोग मार्च में शामिल: लेबनानी सुन्नी मौलवी
लेबनान की "क़ौलना वल-अमल" समिति के प्रमुख शेख अहमद अल-क़त्तान ने कहा: दुनिया भर के विश्वविद्यालयों ने गाजा के समर्थन में बैठकें और प्रदर्शन करके कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार को गंभीर पीड़ा पहुंचाई है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, लेबनान की "क़ौलना वल-अमल" समिति के प्रमुख शेख अहमद अल-क़त्तान ने अपने बयान में कहा: "दुनिया भर के विश्वविद्यालयों ने बैठकें आयोजित करके ज़ायोनी सरकार को गंभीर पीड़ा पहुंचाई है।" और गाजा के समर्थन में प्रदर्शन। इसलिए, हम दुनिया के सभी विश्वविद्यालयों, विशेष रूप से लेबनानी विश्वविद्यालयों, उच्च विद्यालयों, संस्थानों और स्कूलों को गाजा में चल रहे नरसंहार की निंदा के संबंध में आयोजित प्रदर्शनों और बैठकों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं। उत्पीड़ितों का समर्थन कर सकते हैं।
उन्होंने कहा: हम देखते हैं कि कैसे इराक, यमन और दक्षिण लेबनान में हमारे लोग अपनी जान देकर और लड़कर और मिसाइलों से हमला करके उत्पीड़ितों का समर्थन कर रहे हैं और अपने मुस्लिम भाइयों का समर्थन करते हैं और कुछ भी करते हैं और विरोध करते हैं जिससे दुश्मन को नुकसान होता है।
शेख क़त्तान ने कहा: हमें पूरी दुनिया को बताना चाहिए कि ज़ायोनी सरकार किस तरह के अपराध कर रही है, फिलिस्तीन में हमारे लोगों और हमारे भाइयों पर कैसे अत्याचार हो रहा है, और वे कैसे नरसंहार कर रहे हैं जबकि वे स्वतंत्रता, मानवता के रक्षक होने का भी दावा करते हैं और बच्चों और महिलाओं के अधिकार।
इस लेबनानी सुन्नी धार्मिक विद्वान ने कहा: दुनिया को यह देखने दें कि ज़ायोनीवादियों का मानवता से कोई लेना-देना नहीं है, यह हमारा कर्तव्य है कि हम दुनिया को बताएं कि यह दमनकारी शासन कैसे खुलेआम नरसंहार कर रहा है।
यमनी सेना ने अमेरिका और दो ज़ायोनी जहाजों पर ड्रोन हमले किये
यमनी सेना के प्रवक्ता ने लाल सागर और हिंद महासागर में दो अमेरिकी और दो ज़ायोनी जहाजों पर ड्रोन हमलों की सूचना दी है।
अल-मसीरा के मुताबिक यमनी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल याहया सारी ने कहा है कि यमनी सेना ने लाल सागर और हिंद महासागर में इज़राइल की ओर जा रहे दो जहाजों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया है.
उन्होंने कहा कि यमनी सेना ने लाल सागर में साइक्लेडेस जहाज पर मिसाइल दागी, जिसने सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य पर हमला किया. उपरोक्त जहाज उम्म अल-रशाराश के ज़ायोनी बंदरगाह की ओर जा रहा था। यह जहाज यमनी सेना को चकमा देते हुए ज़ायोनी बंदरगाह की ओर जाना चाहता था, लेकिन यमनी सेना ने उसके प्रयास को विफल कर दिया।
जनरल याहया साड़ी ने इस बात का ज़िक्र करते हुए कि यमनी सेना ने हिंद महासागर में ज़ायोनी जहाज एमएससी ओरियन पर भी ड्रोन हमला किया है, कहा कि ज़ायोनी बंदरगाहों पर जाने वाले जहाजों को रोकने का सिलसिला जारी रहेगा उन्होंने कहा कि यमनी सेना की कार्रवाई तब तक जारी रहेगी जब तक गाजा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ आक्रामकता बंद नहीं हो जाती.
गौरतलब है कि गाजा में फिलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध के समर्थन में यमनी सेना लाल सागर और बाब अल-मंदेब जलडमरूमध्य में कब्जे वाले क्षेत्रों में जाने वाले अमेरिकी, ब्रिटिश और ज़ायोनी जहाजों को लगातार निशाना बना रही है।
मानवाधिकारों को लेकर यूरोप और अमेरिका की दोहरी नीति
ईरान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने कहा है कि अमेरिकी पुलिस को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में छात्रों पर अत्याचार करने की इजाजत देना इस तथ्य को दर्शाता है कि मानवाधिकार के मामले में यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका का रवैया पूरी तरह से अस्पष्ट है।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने पत्रकारों के साथ अपने साप्ताहिक साक्षात्कार में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में छात्रों के खिलाफ पुलिस हिंसा की निंदा की। उन्होंने कहा कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में घटित घटनाएँ इस बात की अभिव्यक्ति हैं कि विश्व जनमत में फ़िलिस्तीनी मुद्दे के प्रति जागरूकता बढ़ी है और नस्लवादी ज़ायोनी शासन, फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार करने वाली अत्याचारी सरकार के प्रति घृणा बढ़ रही है और यूरोप और अमेरिका के समर्थन से नरसंहार कर रहे हैं।
नासिर कनानी ने गाजा युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र और अन्य क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में ईरान के चल रहे प्रयासों का भी उल्लेख किया।
ईरान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने ईरान और रूस के बीच संबंधों और सहयोग के विस्तार का उल्लेख किया और कहा कि ईरान और रूस के बीच विभिन्न क्षेत्रों में संबंध और सहयोग सुखद तरीके से विकसित हो रहे हैं।
फ़िलिस्तीनी बच्चों के विरुद्ध प्रयोग होते जर्मनी के हथियार
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्त्ज़ ने अलअक़सा तूफ़ान आपरेशन के बाद अवैध ज़ायोनी शासन के लिए हथियारों की सप्लाई तेज़ कर दी।
क़ानून का समर्थन करने वाले यूरोपीय केन्द्र के अनुसार फ़िलिस्तीनी इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक डिप्लोमैटिक सर्विसेज़, फ़िलिस्तीनी अधिकार संगठन और जांच एजेन्सी फारेंसिक की घोषणा के अनुसार शिकायतकर्ताओं ने जर्मनी की सरकार से मांग की है कि उनके जीवन की रक्षा की जाए और अवैध ज़ायोनी शासन के लिए भेजे जाने वाले हथियारों के निर्यात को रोका जाए।
हालिया वर्ष के आरंभिक तीन महीनों के आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी की सरकार ने 5.2 यूरो मूल्य के हथियारों के निर्यात को हरी झंडी देदी है। जर्मन की फेडरल मिनिस्ट्री आफ इकॉनामी की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 90 प्रतिशत निर्यात, निकट के सहयोगी देशों के लिए होता है। लगभग तीन-चौथाई या 74 प्रतिशत निर्यात, केवल यूक्रेन के लिए किया गया। इस हिसाब से पिछले वर्षों की तुलना में इस साल के आरंभिक तीन महीनों के निर्यात के आंकड़े बहुत अधिक हैं जो अभूतपूर्व बताए जा रहे हैं।
महत्वपूर्ण ग्राहक ज़ायोनी शासनः
इसी तरह से शोध संस्था, SIPRI की ओर से किये गए शोध के आधार पर अमरीका के साथ ही जर्मनी, अवैध ज़ायोनी शासन के लिए लगभग 99 प्रतशित हथियारों की आपूर्ति करता है। एसआईपीआरआई के अनुसार ज़ायोनी शासन ने सन 2019 से 2023 के बीच जर्मनी से 30 प्रतिशत हथियारों का आयात किया है।
जर्मनी की सरकार ने ज़ायोनी शासन के लिए अपने यहां के बने हथियारों के निर्यात को प्राथमिकता में शामिल कर रखा है। शायद यही वजह है कि जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्त्ज़ ने अलअक़सा तूफ़ान आपरेशन के बाद अवैध ज़ायोनी शासन के लिए हथियारों की सप्लाई तेज़ कर दी है।
सन 2022 की तुलना में जर्मनी की ओर से ज़ायोनी शासन के लिए हथियारों का निर्यात दस बराबर बढ़कर 354 मिलयन डालर तक पहुंच चुका है। इनमें से लगभग 22 मिलयन डालर के हथियारों में पोर्टेबल एंटी टैंक, मशीनगनों के लिए गोलियां और पूरी तरह से या अर्ध स्वचालित फाएरआर्म्स शामिल हैं।
वकीलों की शिकायतेंः
इसी संबन्ध में चिंताओं के बीच जर्मनी के वकीलों ने बर्लिन की अदालत से अनुरोध किया है कि ज़ायोनी शासन के लिए देश की ओर से हथियारों के निर्यात को रोका जाना चाहिए क्योंकि इन हथियारों से अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन होता है।
मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार यूरोप में सक्रिय फ़िलिस्तीनी संगठनों से संबन्धित वकीलों की यह दूसरी शिकायत है।
क़ानून का समर्थन करने वाले यूरोपीय केन्द्र के एलान के अनुसार इन वकीलों ने इस बात की पुष्टि की है कि जर्मनी, इस्राईल को हथियार निर्यात करने वाला सबसे बड़ा यूरोपीय देश है। इन हथियारों को अधिकतर 7 अक्तूबर 2023 की घटना के बाद, ज़ायोनी शासन के लिए निर्यात किया गया है।
हथियारों पर नियंत्रण के क़ानून के अनुसार बर्लिन की ओर से इस्राईल के लिए हथियारों की आपूर्ति और उसके समर्थन से जर्मनी के संघीय दायित्वों के निर्वाह का उल्लंघन होता है।
हथियारों को निर्यात करने का एक क़ानून यह भी है कि इन हथियारों को अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों के प्रति जर्मनी की प्रतिबद्धता के विरुद्ध प्रयोग न किया जाए जबकि अवैध ज़ायोनी शासन, ग़ज़्ज़ा पर हमलें में अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का खुलकर उल्लंघन कर रहा है।
निकारागुआ की शिकायतः
इसी संबन्ध में निकारागुआ की सरकार ने नीदरलैण्ड में स्थित अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में एक याचिका दाखिल करके जर्मनी की ओर से इस्राईल के लिए भेजे जाने वाले हथियारों को रुकवाने की मांग की है। उसने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय से मांग की है कि जर्मनी की ओर से इस्राईल के लिए की जाने वाली सैन्य सहायता रुकवाई जाए।
निकारागुआ ने जर्मनी पर आरोप लगाया है कि वह ग़ज़्ज़ा में इस्राईल द्वारा किये जा रहे जातीय सफाए, अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों के उल्लंघन और मानवताप्रेमी क़ानूनों के उल्लंघन का समर्थन करता है। उसके अनुसार इसमे कोई शक नहीं है कि जर्मनी को जातीय सफाए की पूरी जानकारी है लेकिन फिर भी वह इस्राईल के समर्थन को जारी रखे हुए है।
न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेंगे: पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश
सुप्रीम कोर्ट में इस्लामाबाद हाई कोर्ट के 6 जजों के पत्र के मुद्दे पर स्वचालित नोटिस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने टिप्पणी की कि वह अदालत की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगे, अंदर या बाहर से कोई हमला नहीं होना चाहिए। .
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश क़ाज़ी फ़ैज़ ईसा की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय बड़ी पीठ ने छह न्यायाधीशों के पत्र पर सुनवाई की.
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश ने जजों के पत्र मामले में कहा है कि न्यायपालिका को अपने रास्ते पर धकेलना भी हस्तक्षेप है.
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि तीन सदस्यीय समिति ने सभी उपलब्ध न्यायाधीशों को मिलाकर एक पीठ बनाने का फैसला किया, न्यायमूर्ति याह्या अफरीदी को पीठ से अलग कर दिया गया, पूर्ण अदालत के लिए दो न्यायाधीश उपलब्ध नहीं हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि देश में बहुत अधिक विभाजन है, हमें एक तरफ या दूसरी तरफ खींचना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खिलाफ है, हमें अपने रास्ते पर चलने के लिए दबाव न डालें, न्यायपालिका को अपने रास्ते पर धकेलना भी है। हस्तक्षेप है.
मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर अटॉर्नी जनरल ने अदालत कक्ष में सिफारिशें पढ़ीं, जिसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट का स्वचालित नोटिस का आदेश सराहनीय है, लेकिन कार्यपालिका और एजेंसियों को शक्तियों के पृथक्करण को ध्यान में रखना चाहिए, कोई पृथक्करण नहीं है। जजों के बीच हां, सोशल मीडिया और मीडिया पर यह धारणा दी गई है कि जज बंटे हुए हैं, जजों के बंटवारे की धारणा को दूर करने की जरूरत है, हाई कोर्ट के जजों की आचार संहिता में संशोधन की जरूरत है. एवं जिला न्यायालय में न्यायाधीशों के साथ-साथ एजेंसियों के सदस्यों की बैठकों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए, यदि किसी न्यायाधीश के साथ कोई हस्तक्षेप हो तो उसे तुरंत सूचित किया जाए, सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों में एक स्थायी सेल की स्थापना की जाए। न्यायाधीशों की शिकायतों पर कानून के अनुसार तुरंत निर्णय जारी किये जाने चाहिए।
न्यायाधीशों की सिफारिशों में कहा गया है कि न्यायाधीशों या उनके परिवारों के फोन टैपिंग या वीडियो रिकॉर्डिंग में शामिल एजेंसियों या अधिकारियों की पहचान की जानी चाहिए और यदि वे जिला या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के मामलों में हस्तक्षेप करते हैं तो कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए। यदि ब्लैकमेल है, तो न्यायाधीश को अदालत की अवमानना की कार्यवाही करनी चाहिए, मुख्य न्यायाधीश और जिला एवं सत्र न्यायाधीश या किसी अन्य न्यायाधीश को सीसीटीवी रिकॉर्डिंग प्राप्त करनी चाहिए जहां उनके मामलों में हस्तक्षेप किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने आज की सुनवाई के लिखित आदेश में कहा कि सभी पांच हाई कोर्ट ने अपने सुझाव दे दिए हैं, अटॉर्नी जनरल चाहें तो आरोपों का जवाब दे सकते हैं या सुझाव दे सकते हैं
दुनिया के अलग-अलग देशों में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन
अमेरिकी और यूरोपीय छात्रों के साथ-साथ दुनिया के अलग-अलग देशों के शहरों में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन जारी है.
हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, इटली, जापान, मोरक्को, हॉलैंड, जर्मनी और कनाडा के साथ-साथ फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न देशों ने ज़ायोनी आक्रमण की निंदा की। गाजा और फिलिस्तीनियों के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं. इन विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वाले लोग गाजा में युद्धविराम की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी फ़िलिस्तीनी झंडा भी लहरा रहे हैं, जबकि प्रदर्शनकारियों ने ग्रुप ऑफ़ सेवन के नेताओं की तस्वीरें भी इस आधार पर जला दी हैं कि ये नेता ज़ायोनी आक्रमण पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दिखा रहे हैं।
गाजा में फिलिस्तीनी नागरिकों और महिलाओं के खिलाफ जारी बर्बर ज़ायोनी आक्रामकता और क्रूरता ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है, यही कारण है कि दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में इसका कड़ा विरोध हो रहा है और दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारों और संस्थानों द्वारा इसकी निंदा की जा रही है फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में और फ़िलिस्तीनियों के साथ एकजुटता व्यक्त की है।
तेल अवीव में सरकार विरोधी प्रदर्शन, ज़ायोनी सेना द्वारा हिंसा और बल का प्रयोग
अत्याचारी ज़ायोनी शासन तेल अवीव में नेतन्याहू सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा और बल का प्रयोग कर रहा है जो बातचीत के जरिए कैदियों की अदला-बदली की मांग कर रहे हैं।
प्रेस सूत्रों ने घोषणा की है कि हजारों ज़ायोनीवादियों ने सोमवार रात तेल अवीव में प्रदर्शन किया और कैदियों की अदला-बदली के लिए हमास के साथ एक समझौते की मांग की। ज़ायोनी पुलिस ने इन प्रदर्शनकारियों पर अत्याचार किया और उन्हें तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया।
अल-जज़ीरा टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी पुलिस ने लिकुड पार्टी के कार्यालय के सामने से पाँच प्रदर्शनकारियों को भी गिरफ़्तार किया। इससे पहले, ज़ायोनी कैदियों के रिश्तेदारों द्वारा तेल अवीव में युद्ध मंत्रालय भवन के सामने विरोध प्रदर्शन की खबरें थीं। ज़ायोनी कैदियों के परिवारों ने ज़ायोनी सरकार से मांग की है कि कैदियों की अदला-बदली का कोई भी मौका न चूका जाए। इन रिश्तेदारों का कहना है कि ज़ायोनी कैदियों को कैदी विनिमय समझौते के ज़रिए ही रिहा किया जा सकता है।