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ऑपरेशन "वादा सादिक" ने इस्राईली शासन के झूठे आतंक की दीवार को ढहा दिया
अस्ताने क़ुद्स रिज़वी के संरक्षक ने कहा: इस्लाम के सैनिकों द्वारा किए गए ऑपरेशन "वादा सादिक" ने इस्राईली शासन के झूठे आतंक की दीवार को तोड़ दिया।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी मशहद के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मरवी, हरम मुताहर इमाम रज़ा (अ) के संरक्षक ने कहा: गौरवपूर्ण और सम्मानजनक ऑपरेशन "वादा सादिक" वास्तव में एक अनूठा ऑपरेशन था।
उन्होंने कहा: हम इस ऑपरेशन को ईरान देश और इस्लाम के लिए गर्व का स्रोत मानते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम मारवी ने कहा: इस ऑपरेशन के दौरान, लगभग 60 वर्षों के बाद, एक इस्लामी देश को इस्राईली शासन के लिए ख़तरा घोषित किया गया; हालाँकि छह दशकों तक इस्लामिक देशों की ओर से इन कब्ज़ा करने वालों की ओर एक भी गोली नहीं चलाई गई और हर कोई इन कब्ज़ा करने वालों से डरता था।
ईरान राष्ट्रपति की पाकिस्तान यात्रा महत्वपूर्ण
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने ईरान के राष्ट्रपति की पाकिस्तान यात्रा को ऐतिहासिक और दोनों पड़ोसी देशों के उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक बताया है.
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज ज़हरा बलूच ने इस्लामाबाद में ईरान के राष्ट्रपति की यात्रा को लेकर एक साक्षात्कार में कहा है कि सैयद इब्राहिम रायसी की पाकिस्तान यात्रा दोनों देशों के लिए शांति और दोस्ती का संदेश है.
उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक यात्रा होगी क्योंकि श्री रईसी हाल के आम चुनावों और नई सरकार के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान का दौरा करने वाले पहले राष्ट्राध्यक्ष हैं।
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति अयातुल्ला अली खामेनेई की ऐतिहासिक पाकिस्तान यात्रा का जिक्र करते हुए कहा, ''श्री की यात्रा को लेकर पाकिस्तानी लोगों में जो उत्साह और उत्साह पाया गया और यह उनकी अभिव्यक्ति है.'' पड़ोसी देश की सभ्यता एवं संस्कृति से प्रेम एवं लगाव।
उन्होंने कहा कि ईरान और पाकिस्तान के लंबे समय से चले आ रहे पड़ोस, गहरे जनसंपर्क, ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक और भौगोलिक समानताएं उनके संबंधों की स्थिरता के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं।
मुमताज ज़हरा बलूच ने कहा कि इस यात्रा के परिणाम पाकिस्तान के लिए सकारात्मक और रचनात्मक होंगे और हमारा मानना है कि ईरान के राष्ट्रपति की पाकिस्तान यात्रा दोनों देशों के देशों के लिए शांति और दोस्ती का संदेश है और इन दोनों की दोस्ती और निकटता है। यह क्षेत्र के दो देशों में प्रगति और समृद्धि लाएगा।
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि ईरान और पाकिस्तान के नेता व्यापक और रचनात्मक वार्ता करेंगे, जिसमें व्यापक सहयोग, नई परियोजनाएं और पिछले समझौतों की समीक्षा शामिल होगी.उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति डॉ रायसी की पाकिस्तान यात्रा से दोनों देशों के लिए आपसी सांस्कृतिक, आर्थिक, संचार और व्यापार सहयोग को बढ़ावा देने और एक-दूसरे की आर्थिक क्षमताओं से लाभ उठाने के नए क्षितिज खुलेंगे।
ईरान ने इस्राईली शासन को जवाब देने में देरी क्यों की और सीधे हमला क्यों किया?
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सलह मिर्ज़ई ने ऑपरेशन "वादा सादिक" के बारे में संदेह का जवाब देते हुए कहा: "सच्चाई और झूठ के बीच हमेशा युद्ध होता रहा है, और जब सच्चाई हमले का जवाब नहीं देती तो झूठ और जरी हो जाए तो हक़ पर वाजिब हो जाता है कि वह बातिल के हमले का जवाब दे।''
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मजलिसे ख़ुबरगाने रहबरी के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सलह मिर्ज़ई ने ऑपरेशन "वादा सादिक" के बारे में संदेह का जवाब देते हुए कहा: सच और झूठ के बीच हमेशा जंग होती रही है और जब सच्चाई हमले का जवाब नहीं देती तो झूठ और जरी हो जाए तो हक़ पर वाजिब हो जाता है कि वह बातिल के हमले का जवाब दे।
उन्होंने कहा: हर कोई जानता है कि 1967 में, जब छह दिवसीय युद्ध हुआ था, तो किसी भी सरकार ने इजरायल पर सीधे हमला नहीं किया था, जबकि सीरिया पर इजरायल द्वारा बार-बार बमबारी की गई थी, लेकिन फिर भी सीरिया ने इजरायल पर सीधे हमला नहीं किया, जो प्रतिरोध समूह हमला कर रहे थे उनके पास किसी सरकार की उपाधि नहीं थी लेकिन वे स्वतंत्र थे और लगातार आक्रमण करते रहते थे, इसलिए ईरान ने सीधे हमला करके इस परंपरा को तोड़ दिया और इजराइल के इस घमंड को कुचल दिया कि कोई भी उन पर सीधे हमला करने की हिम्मत नहीं करेगा।
उन्होंने आगे कहा: वे सभी सोच रहे थे कि इन सभी मिसाइलों को रोक दिया जाएगा, लेकिन यह देखा गया कि इस्लामिक रिपब्लिक ने उन केंद्रों पर हमला किया जहां नागरिक मौजूद नहीं थे और उन स्थानों में से एक एयरबेस था जहां से हमलावर विमानों ने दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास के ऊपर से उड़ान भरी थी।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सलाह मिर्ज़ई ने आगे कहा: जब ईरान ने इज़राइल को जवाब देने में देरी की, तो इस बारे में कई अटकलें लगाई गईं, उदाहरण के लिए, कुछ लोगों ने कहा कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ने इराक के एरबिल शहर में आतंकवादियों को मार डाला होगा। ऐसी और भी अटकलें थीं कि वह सभा स्थलों पर मिसाइल हमला करना चाहता था।
मजलिसे ख़ुबरगाने रहबरी के सदस्य ने कहा: दमिश्क में हमले के तुरंत बाद, ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की एक बैठक हुई और अंततः इस्राईली सरकार की इस गुस्ताखी का बदला लेने का निर्णय लिया गया, लेकिन यह हमला सिर्फ नहीं था सैन्य कमांडरों का काम बैठो और फैसला करो और हमला करो, लेकिन इस मामले में कूटनीति और मैदान दोनों में बातचीत की जरूरत थी।
उन्होंने कहा: इस्राईली सरकार के ख़िलाफ़ इस्लामी गणतंत्र की प्रतिक्रिया में देरी की गई ताकि ईरानी लोग इस हमले के लिए मानसिक रूप से तैयार रहें और देरी के कारण इजरायली राजनेताओं के बीच आंतरिक तनाव पैदा हो गया।
ईरान की नौसैनिक शक्ति से विश्व के स्वतंत्र देशों को लाभ होने से पश्चिम में भय व्याप्त
तेहरान अब पश्चिम के वर्चस्ववादी मोर्चे को भारी नुक़सान पहुंचाने की स्थति में आ चुका है।
हालिया महीनों के दौरान बढ़ते क्षेत्रीय तनाव के बीच वह बिंदु जो बहुत स्पष्ट हुआ है वह है विश्व में ईरान के एक नौसैनिक शक्ति के रूप में परिवर्तित होना। यह वह विषय है जो वर्चस्ववादी शक्तियों को बिल्कुल भी पसंद नहीं है। उनकी इस सोच के विपरीत, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के स्वतंत्र देश इससे लाभ उठाएंगे।
पिछले कुछ महीनों के दौरान पश्चिमी एशिया में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव और तनाव व्याप्त रहा है। इसी बीच हमास की ओर से अलअक़सा तूफ़ान के सफलतापूर्वक अंजाम दिये जाने के बाद से फ़िलिस्तीन का ग़ज़्ज़ा क्षेत्र, अवैध ज़ायोनी शासन की ओर से आरंभ किये गए युद्ध का रणक्षेत्र बना हुआ है। यह युद्ध पिछले छह महीनों से लगातार जारी है। ग़ज़्ज़ा युद्ध में अबतक एक लाख से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और घायल हो चुके हैं।
इस युद्ध के दौरान क्षेत्र में प्रतिरोध के मोर्चे के समर्थक कई गुटों ने अवैध ज़ायोनी शासन के विरुद्ध थका देने वाला सैन्य अभियान आरंभ कर रखा है जिसका उद्देश्य, ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनियों की ओर से किये जाने वाले हमलों के ज़ोर को कम करना रहा है।
इन बातों के बावजूद हालिया दिनों के दौरान इस्लामी गणतंत्र ईरान और अवैध ज़ायोनी शासन के बीच हम बढ़ते तनाव के साक्षी रहे हैं।
हुआ यह था कि अवैध ज़ायोनी शासन ने सीरिया की राजधानी दमिश्क़ में ईरानी दूतावास के काउंस्लेट पर हमला कर दिया था। इस हमले में ईरान के कुछ सैन्य सलाहकार शहीद हो गए थे जिनको सीरिया ने आधिकारिक निमंत्रण देकर बुलवाया था।
इस कायवाही के उत्तर में ईरान ने जवाबी कार्यवाही की घोषणा कर दी थी। ईरान ने "सच्चे वादे" के स्लोगन के साथ जवाबी कार्यवाही करते हुए अवैध ज़ायोनी शासन पर ड्रोन और मिसइलों की बारिश कर दी।
बहुत से टीकाकार ईरान की इस कार्यवाही को दुनिया की सबसे बड़ी ड्रोन कार्यवाही का नाम दे रहे हैं। यह वह आपरेशन था जिसने इस्राईल को स्ट्रैटेजिक नुक़सान पहुंचाया। इन्ही घटनाओं के बीच यह बात उभर कर सामने आई कि ईरान, विश्व की एक बड़ी नौसैनिक शक्ति के रूप में परिवर्तित हो रहा है।
इस विषय ने अमरीका और औपनिवेशिक इतिहास रखने वाले देशों के लिए गंभीर चिंता पैदा कर दी है।
इस संदर्भ में बहुत से राजनीतिक टीकाकार इस बिंदु की ओर संकेत कर रहे हैं कि हालिया वर्षों के दौरान ईरान ने स्ट्रैटेजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हुरमुज़ जलडमरू मध्य पर उल्लेखनीय ढंग से नियंत्रण स्थापित कर लिया है। ऊर्जा परिवहन की दृष्टि से यह क्षेत्र, विश्व का ऐसा स्थान है जहां से विश्व का 60 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा का परिवहन होता है।
इसी बीच ईरान के एक निकट घटक अंसारुल्ला ने बाबुल मंदब स्ट्रेट पर अपने कंट्रोल को मज़बूत बनाते हुए वहां के समीकरणों को पूरी तरह से अपने हित में बदल दिया है।
बाबुल मंदब स्ट्रैट, इस्राईल और पश्चिमी शक्तियों के लिए विशेष स्ट्रटेजिक महत्व रखता है। विश्व का 12 प्रतिशत से अधिक कन्टेर व्यापार का यातायात यहीं से होता है।
स्ट्रटेजिक महत्व के स्वामी स्ट्रैट्स पर ईरान और उसके घटकों की मज़बूत पकड़ के दृष्टिगत अमरीका के नेतृत्व में पश्चिम के वर्चस्ववादी मोर्चे के भीतर यह चिंता व्याप्त हो चुकी है कि तेहरान अब उस पोज़ीशन में पहुंच चुका है कि वह पश्चिम के वर्चस्ववादी मोर्चे को भारी नुक़सान पहुंचा सकता है।
ईरान और पाकिस्तान के राष्ट्रपति की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस - दोनों देशों के बीच 8 क्षेत्रों में एमओयू पर हस्ताक्षर
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि वह गाजा के लोगों का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान के लोगों को सलाम करते हैं.
पाकिस्तान से मिली खबर के मुताबिक, ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि गाजा के लोगों का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान के लोगों को बधाई, गाजा के लोगों का नरसंहार किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद गाजा के मुद्दे पर अपनी जिम्मेदारियां नहीं निभा रही है, गाजा के लोगों को एक दिन उनका अधिकार और न्याय मिलेगा.
इस मौके पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने ईरान के राष्ट्रपति अयातुल्ला इब्राहिम रईसी के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि आज हमारी बेहतरीन चर्चा हुई, हमारे बीच धर्म, सभ्यता, निवेश और सुरक्षा के रिश्ते हैं.
शाहबाज शरीफ ने कहा कि सभी क्षेत्रों पर विस्तृत चर्चा हुई, ईरान और पाकिस्तान के रिश्ते सिर्फ 76 साल से नहीं हैं, पाकिस्तान को सबसे पहले ईरान ने मान्यता दी थी. उन्होंने कहा कि ईरान के माननीय राष्ट्रपति न्यायशास्त्र और कानून के विशेषज्ञ हैं, गाजा पर सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का उल्लंघन किया जा रहा है और संयुक्त राष्ट्र चुप है।
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पाकिस्तान से जुड़ी ईरानी शायर की कविताएं भी पढ़ीं.
इससे पहले ईरान के राष्ट्रपति डॉ. इब्राहिम रायसी इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री आवास पहुंचे और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने उनका स्वागत किया। ईरान के राष्ट्रपति डॉ. इब्राहिम रायसी को इस्लामाबाद स्थित प्रधान मंत्री आवास पहुंचने पर गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।
पाकिस्तान और ईरान के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर समारोह इस्लामाबाद में आयोजित किया गया, जिसमें प्रधान मंत्री शाहबाज शरीफ और ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने भाग लिया। पाकिस्तान और ईरान ने 8 क्षेत्रों में समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए।
पाकिस्तान और ईरान के बीच एक संयुक्त आर्थिक मुक्त क्षेत्र को मंजूरी दी गई जबकि नागरिक मामलों में न्यायिक मामलों पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
पाकिस्तान और ईरान के बीच सुरक्षा सहयोग समझौते, पशु चिकित्सा और पशु स्वास्थ्य समझौते पर हस्ताक्षर किये गये।
इस्राईल की बंदरगाहों और सरकारी संस्थाओं व प्रतिष्ठानों को लक्ष्य बना सकते थे
ईरान के विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान अभी पिछले दिनों न्यूयार्क की यात्रा पर गये थे वहां उन्होंने "एनबीसीन्यूज़" के साथ साक्षात्कार में क्षेत्र के हालिया परिवर्तनों और ईरान की नीतियों के बारे में महत्वपूर्ण बातें कही हैं। उन्होंने इस साक्षात्कार में महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर संकेत किया है कि उसके सारांश की ओर हम संकेत कर रहे हैं।
साक्षात्कार करने वाला या एंकर श्रीमान विदेशमंत्री जी आपका आभार प्रकट करते हैं कि आपने हमारे साथ साक्षात्कार करने को स्वीकार किया है। हम सब जानते हैं कि वातावरण काफी तनावग्रस्त है, इस साक्षात्कार को जो अमेरिकी देख रहे हैं वे ईरान और इस्राईल के मध्य एक ख़तरनाक जंग को लेकर बहुत चिंतित हैं उनके लिए आपका क्या संदेश है?
विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियानः हमने गज्जा संकट के आरंभ से ही बारमबार एलान किया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान क्षेत्र में जंग और तनाव में वृद्धि नहीं चाहता। जारी शनिवार को जो कुछ हुआ उसमें हमने अपनी रक्षा के कानूनी अधिकार के परिप्रेक्ष्य में इस्राईल के दो सैनिक ठिकानों को लक्ष्य बनाया। इस्राईल ने दमिश्क में ईरानी काउंसलेट पर जो हमला किया था उसके जवाब में हमने यह हमला किया था। कामयाबी के साथ इस हमले के समाप्त होने के तुरंत बाद एक संदेश देकर हमने अमेरिका को बता दिया कि इस्राईल के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने का हमारा कोई इरादा नहीं है मगर हमने अमेरिका से बारमबार कहा था कि वह जायोनी सरकार से कहे कि जंग को क्षेत्र में विस्तृत न करे। यह वह पद्धति व चाल है जिस पर नेतनयाहू चल रहे हैं ताकि वह सत्ता में बाकी रह सकें और उनकी सरकार भी बनी रहे। इस्लामी गणतंत्र ईरान क्षेत्र के सकारात्मक परिवर्तनों का भाग है, चाहे हालिया वर्षों में आतंकवाद से मुकाबले में और चाहे गज्जा पट्टी में जंग को बंद कराने और क्षेत्र में दोबारा शांति व सुरक्षा बहाल कराने, भूमध्य सागर के तटों से लेकर लाल सागर और समूचे क्षेत्र तक।
एंकरः आपसे एक महत्वपूर्ण सवाल पर संक्षेप में करना चाहता हूं कि क्या ईरान जवाब देगा?
विदेशमंत्री अमीर अब्दुल्लाहियानः अगर इस्राईल कोई पैंतरेबाज़ी करता है और ईरान के खिलाफ कार्यवाही करना चाहता है तो हमारा जवाब पहले से भिन्न होगा। पहले वाला हमारा जवाब कम से कम और सीमित था। हमने इस्राईल के केवल दो सैनिक ठिकानों को लक्ष्य बनाया। एक हवाई छावनी व ठिकाना नवातिम और दूसरा अतिग्रहित गोलान की पहाड़ियों पर जासूसी व सूचना केन्द्र को लक्ष्य बनाया। दमिश्क में ईरानी काउंसलेट पर हमने में इन दोनों केन्द्रों की भूमिका थी। अगर जायोनी सरकार पैंतरेबाज़ी नहीं करेगी तो ईरान जायोनी सरकार के खिलाफ कोई नई कार्यवाही नहीं करेगा।
साक्षात्कार करने वालाः हमारे स्रोतों ने कहा है कि इस्राईल ने पिछली रात को बदला ले लिया है और यह इस्राईल था जिसने ईरान पर बमबारी की है।
विदेशमंत्री अमीर अब्दुल्लाहियानः जो कुछ गत रात्रि हुआ वह केवल दो या तीन क्वाडक्वाप्टर थे जो एक बहुत ही सीमित जगह व वातावरण में थे और उन्हें तुरंत मार गिराया गया और इसकी ज़िम्मेदारी भी किसी ने स्वीकार नहीं की है।
एंकरः क्या कल रात को इस्राईल के प्रतिशोध लेने वाले हमले से ईरान अवगत हो गया था?
विदेशमंत्रीः हमारा एअर डिफेन्स सिस्टम आटोमैटिक व स्वचलित है जैसे ही दो या तीन क्वाडक्वाप्टर इस्फहान के आसमान में दिखाई दिये उन्हें भेद दिया गया और वे ध्वस्त होकर गिर गये। हमारी सशस्त्र सेनायें शत प्रतिशत चौकस व मुस्तैद हैं।
एंकरः क्या सीरिया में ईरानी काउंसलेट पर हमले के विषय को खत्म हुआ जानते हैं और अब आप कोई अन्य कार्यवाही नहीं करेंगे?
विदेशमंत्रीः हम जंग को विस्तृत नहीं करना चाहते इस वजह से हमने संयंम से काम लिया। नेतनयाहू हमारे संयंम को ग़लत समझ बैठे और उन्होंने रेड लाइन को पार कर दिया और हमारे काउंसलेट पर 6 मिसाइलों से हमल किया। यहां पर हमारे सामने दो रास्ता था एक इस्राईल को तुरंत जवाब और दूसरा संयंम और डिप्लोमेसी को अवसर देना। हमने डिप्लोमैसी को अवसर दिया और क्षेत्र और गज्जा की स्थिति को ध्यान में रखते हुए हमने संयंम से काम लिया और जंग को विस्तृत न करने की नीति अपनाई। हमारी यह नीति इस बात का कारण बनी कि राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई गयी। हमें इस बात की अपेक्षा थी कि वियना कन्वेशन का उल्लंघन हुआ है और सुरक्षा परिषद में इस्राईल के हमले की भर्त्सना में एक प्रस्ताव पारित किया जायेगा परंतु खेद के साथ कहना पड़ता है कि अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के कारण ऐसा न हो सका और उन्होंने इस्राईल के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने का विरोध किया। फिर हमारे सामने एक ही विकल्प बाकी बचा। स्पष्ट जवाब और अपनी वैध रक्षा के परिप्रेक्ष्य में ईरान की चेतावनी। जब हमने इस्राईल के खिलाफ सैनिक कार्यवाही का फैसला किया तो पहले हम चेतावनी देना चाहते थे और इस्राईल को सज़ा देना चाहते थे इसलिए हमने हमले में मुनासिब होने को ध्यान में रखा। हम हैफा और तेलअवीव को लक्ष्य बना सकते थे, हम जायोनी सरकार की बंदरगाहों को लक्ष्य बना सकते थे, हम जायोनी सरकार की सरकारी संस्थाओं और आर्थिक प्रतिष्ठानों को लक्ष्य बना सकते थे परंतु आम नागरिक हमारी रेड लाइन थी। हमारा लक्ष्य केवल सैनिक था और वह भी केवल दो सैनिक ठिकाने जिनका प्रयोग दमिश्क में हमारे काउंसलेट पर हमला करने के लिए किया गया था। हम यह दिखाना चाहते थे कि हम अपने हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए तैयार हैं और इसी तरह हम इसके बाद के परिणामों के लिए भी तैयार हैं। जायोनी सरकार ने अगर गलती की तो बाद वाला जवाब कड़ा, तुरंत और पछताने वाला होगा।
एंकरः ईरान इस्राईल के खिलाफ जंग में दाखिल हो गया है, आपका देश सीरिया में इस्राईल के हमले में दो जनरलों और सिपाहे पासदारान के 5 सदस्यों को खो चुका है, गज्जा पट्टी के दसियों हज़ार लोग मारे जा चुके हैं, जब अतीत पर नज़र डालें और सात अक्तूबर को इस्राईल पर होने वाले हमले के बारे में सोचें तो आपके विचार में क्या हमास सीमा से आगे बढ़ गया है?
विदेशमंत्रीः हमास ने जो किया है उसके बारे में हमें पहले से नहीं पता था मगर एक वास्तविकता मौजूद है। इसकी जड़ सात अक्तूबर में नहीं है। इसकी जड़ 75 साल पुरानी है। जड़ 75 साल पहले फिलिस्तीनियों की ज़मीन के अतिग्रहण में है। इस्राईल एक वैध व कानूनी सरकार नहीं है। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार इस्राईल एक अतिग्रहणकारी सरकार है। अतिग्रहण की अवधि के लंबा होने से अतिग्रहणकारी के लिए कोई अधिकार उत्पन्न नहीं हो जाता है। अंतरराष्ट्रीय कानून कहता है कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए स्वतंत्रता प्रेमी गुट व आंदोलन अपने देश से अतिग्रहणकारियों को बाहर निकालने के लिए कार्यवाही कर सकते हैं। हमास आतंकवादी गुट नहीं है। हमास एक एसा गुट है जिसकी जड़ें फिलिस्तीनी लोगों व जनता में है और वह अतिग्रहण के मुकाबले में एक स्वतंत्रता प्रेमी गुट व आंदोलन है। संकट की जड़ अतिग्रहण में है उस पर ध्यान दिया जाना चाहिये। उसकी जड़ सात अक्तूबर नहीं है।
एंकरः मैं जानता हूं कि आप कई साल तक डिप्लोमेट थे। क्या इस बात की अहमियत व ज़रूरत थी कि हमास इस प्रकार की कार्यवाही करता और उसका नतीजा इस प्रकार निकला?
विदेशमंत्रीः हमास फिलिस्तीनी जनता के हितों के परिप्रेक्ष्य में फैसला करता है। हमास फिलिस्तीनी लोगों की इच्छाओं के परिप्रेक्ष्य में फैसला लेता है। हमास ने अपना भविष्य निर्धारित करने हेतु राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य में कदम उठाया है। अतिग्रहण के मुकाबले में हम हमास का समर्थन करते हैं। हमने इस संकट के आरंभ और सात अक्तूबर के शुरू से स्पष्ट शब्दों में एलान किया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने कभी भी आम नागरिकों, बच्चों और महिलाओं की हत्या का दुनिया में न तो समर्थन किया है न करता है।
एंकरः क्या आप समझते हैं कि बाइडन सरकार फिलिस्तीन को एक देश के रूप मान्यता देने में सच्ची है जबकि राष्ट्रसंघ में उसने फिलिस्तीन की सदस्यता का विरोध किया है?
विदेशमंत्रीः देखिये मेरे विचार में बाइडन की सरकार ने फिलिस्तीन के विषय और गज्जा के बारे में कुछ चीज़ों को अपनी कार्यसूची में शामिल कर रखा है और कुछ चीज़ें उनके व्यवहार में देखी जा रही हैं। हम अमेरिका की कथनी और करनी में विरोधाभास को देख रहे हैं। मिसाल के तौर पर एक तरफ अमेरिका यह कहता है कि वह युद्धविराम के लिए प्रयास कर रहा है और दूसरी तरफ वह युद्ध विराम को कबूल करने के लिए नेतनयाहू पर अपने प्रभाव का अच्छी तरह प्रयोग नहीं कर रहा है। आप देखिये ईरानी काउंसलेट पर हमला करने के लिए अमेरिका इस्राईल के अख्तियार में अपना युद्धक विमान देता है और अमेरिकियों ने हमें संदेश दिया कि हम इस हमले में शामिल नहीं थे और हमारी तरफ से इस्राईल को हरी झंडी नहीं दिखाई गयी थी और न ही हमसे समन्वय किया गया था। अगर हम इस बात को मान लें कि अमेरिका और वाइट हाउस की बात सही है तो हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिये कि नेतनयाहू किसी भी रेड लाइन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। अगर नेतनयाहू किसी भी रेड लाइन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो इतना उनका समर्थन क्यों किया जा रहा है? वह अमेरिका जो शांति, युद्ध विराम और क्षेत्र में सुरक्षा के बहाल होने और युद्ध के विस्तृत न होने की बात करता है वही अमेरिका क्यों एक अरब डॉलर का हथियार इस्राईल भेजने का फैसला करता है? अमेरिकी अधिकारी उसके बारे में क्यों साक्षात्कार करते हैं? अगर अमेरिका यह चाहता है कि नेतनयाहू रेड लाइन क्रास न करें तो जब अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन की वजह से इस्राईल की भर्त्सना में बयान जारी होने वाला होता है तो अमेरिका उस पर विरोध करता व आपत्ति क्यों जताता है? अमेरिका वियना कंवेन्शन का समर्थन करने के लिए क्यों तैयार नहीं होता है? जबकि इस कंवेन्शन में कूटनयिकों और कूटनयिक स्थानों की सुरक्षा का समर्थन किया गया है ?
एंकरः जैसाकि आप जानते हैं कि अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं। ईरान बाइडेन के साथ वार्ता को प्राथमिकता देगा या ट्रंप के साथ?
विदेशमंत्रीः अमेरिकी लोगों को पसंद करना चाहिये। अमेरिका में होने वाला हर चुनाव अमेरिकी समाज से संबंधित है। हमारी अपनी विदेश नीति के कुछ सिद्धांत हैं। हमारे लिए डेमोक्रेटों और रिपब्लिकंस में कोई फर्क नहीं है। वास्तविक अंतर को अमेरिकी व्यवहार में देखना चाहिये। हम अमेरिकी व्यवहार के आधार पर फैसला करेंगे। अगर अमेरिकी व्यवहार का आधार ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, ईरानी लोगों और ईरानी सम्प्रभुता के सम्मान पर रहा तो अमेरिकी लोग जिसे भी चुनेंगे उसका सम्मान किया जायेगा।
एंकरः ईरान ने अपनी इस्लामी क्रांति की 45वीं वर्षगांठ मनाई। ईरानी लोगों के अपने यहां की अर्थ व्यवस्था और सरकार से नाराज़ होने की रिपोर्टें हम तक पहुंची हैं। मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के हनन की रिपोर्टें भी मौजूद हैं। अगले 45 सालों के लिए दुनिया से आप क्या कहेंगे?
विदेशमंत्रीः पहली बात तो यह है कि गत 45 वर्षों में हमने राजनीतिक क्षेत्र में और दूसरे नंबर पर विज्ञान, तकनीक, उद्योग और प्रतिरक्षा आदि के क्षेत्रों में काफी बड़ी व उल्लेखनीय प्रगति की। कुछ विषयों में हम दुनिया के पांच या देशों में पहले नंबर पर हैं और प्रतिबंधों के कारण जिन क्षेत्रों में हमें अनुमति नहीं दी जाती थी उसमें भी हमने लोगों और जवानों की सहायता से उल्लेखनीय प्रगति की है। आर्थिक कठिनाइयों के संबंध में यह एक वास्तविकता है। उसके कुछ भागों का संबंध अमेरिका की गैर कानूनी नीतियों और अमेरिका के एकपक्षीय प्रतिबंधों और अमेरिका द्वारा दूसरे देशों को डराने से है। इसी प्रकार विदेशमंत्री ने कहा कि आर्थिक कठिनाइयों के एक भाग का संबंध पूरे क्षेत्र में मौजूद आर्थिक कठिनाइयों से है और वह केवल ईरान तक सीमित नहीं है। हमने बड़ी रुकावटों को पार कर लिया है। हमारा देश आज विज्ञान, तकनीक और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में दुनिया के एक मज़बूत व शक्तिशाली देशों में से एक है। आर्थिक क्षेत्र में भी लोगों और जवानों की सहायता से हमारी सरकार ने जो कार्यक्रम बना रखा है उसके दृष्टिगत ईरान और ईरानी लोगों का भविष्य उज्जवल होगा। हमारी सरकार भी इस दिशा में लोगों की मदद से बड़ी कामयाबी हासिल करेगी। आर्थिक प्रतिबंधों ने हमें नुकसान पहुंचाया है मगर उसने हमें बड़ा दर्स दिया है और उसने नतीजों और बड़ी उपलब्धियों को ईरानी लोगों को समर्पित किया है।
इराकी प्रधानमंत्री ने जो बाइडन से मुलाकात में क्या कहा?
अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ अपनी बातचीत में इराकी प्रधान मंत्री ने ईरान की प्रतिक्रिया को इज़राइल की आक्रामकता के खिलाफ अपनी रक्षा करने का प्राकृतिक अधिकार बताया।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार , इराकी प्रधान मंत्री मुहम्मद शायआ अलसुदानी ने अमेरिका की अपनी छह दिवसीय यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, कांग्रेस के कई प्रतिनिधियों, व्यापारियों और विभिन्न कंपनी प्रबंधकों से मुलाकात करेंगें।
इराकी प्रधान मंत्री मुहम्मद शायआ अलसुदानी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा कि आईएसआईएस से लड़ने और उस पर इराक की जीत में विदेशी सहायता का बड़ा हाथ था दरअसल, इराकी प्रधान मंत्री ने इस कठिन परिस्थिति में इस्लामिक रिपब्लिक की मदद का स्पष्ट उल्लेख किया हैं।
उन्होंने ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमले की भी निंदा की और कहा यह कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है।
इराकी प्रधान मंत्री ने परोक्ष रूप से ईरान की प्रतिक्रिया को इज़राइल की आक्रामकता के खिलाफ अपनी रक्षा करने का प्राकृतिक अधिकार बताया।
इस बयान के बाद ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमले को लेकर अंतरराष्ट्रीय निंदा बयानों में इराकी प्रधानमंत्री का रुख इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण और साहसिक रुख माना जा सकता है।
अलसुदानी ने कहां,गाजा में जारी हत्याओं की भी निंदा की और अमेरिकी राष्ट्रपति से अंतरराष्ट्रीय कानूनों और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का सम्मान करने का आग्रह किया जो युद्धों में नागरिकों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करता हैं।
इराकी प्रधान मंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ अपनी बातचीत को एक महत्वपूर्ण नैतिक सबक के साथ समाप्त किया और कहा मनुष्य के रूप में हमें मानवाधिकारों के मूल्यों का सम्मान करना चाहिए,
और सभी प्रकार की आक्रामकता की निंदा करनी चाहिए, नागरिकों को युद्ध और मुसीबतों की आपदाओं से बचाना चाहिए टाला जाना चाहिए, और राजनयिक मुख्यालय का सम्मान किया जाना चाहिए, और जो हो रहा है उसके बारे में हमें चुप नहीं रहना चाहिए।
इज़रायली सैन्य ठिकानों पर हिज़्बुल्लाह का हमला, ज़ायोनी सेना को भारी नुकसान
लेबनान में हिज़्बुल्लाह ने सोमवार को उत्तरी अधिकृत फ़िलिस्तीन में कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के कई और सैन्य ठिकानों पर हमला किया और ज़ायोनी सेना को भारी नुकसान पहुँचाया।
हिजबुल्लाह लेबनान ने एक बयान में घोषणा की है कि गाजा के खिलाफ ज़ायोनी आक्रमण के जवाब में, फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में, हनीता ज़ायोनी सैन्य अड्डे पर रॉकेट हमले किए गए हैं। हिजबुल्लाह ने अल जहीरा में उस सैन्य केंद्र को भी निशाना बनाया जहां सैनिक एकत्र थे और मिसाइल हमला किया।
इससे पहले, इस्लामिक स्टेट ऑफ़ लेबनान ने घोषणा की थी कि उसने दक्षिणी लेबनान में अल-आइशिया के ऊपर उड़ रहे एक ज़ायोनी ड्रोन को मार गिराया है।
गौरतलब है कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलन के अल-अक्सा तूफान ऑपरेशन और उसके बाद ज़ायोनी क्रूर आक्रमण की शुरुआत के बाद से और फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में, हिज़्बुल्लाह लेबनान ने उत्तरी अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी सैन्य ठिकानों पर लगातार हमले किए हैं, जिसके कारण उत्तरी अधिकृत फ़िलिस्तीन के ज़ायोनीवादियों में भारी भय पाया जाता है।
इजरायली सरकार के सैन्य खुफिया प्रमुख के इस्तीफे की वजह का खुलासा
ज़ायोनी हलकों ने दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमले में ज़ायोनी सरकार की गलतियों की आलोचना की।
ज़ायोनी मीडिया ने घोषणा की है कि दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास कार्यालय पर हमले और अल-अक्सा तूफान ऑपरेशन में हार के बाद ज़ायोनी सरकार के सैन्य खुफिया विभाग के प्रमुख ने आज इस्तीफा दे दिया है पहला इस्तीफा.
ज़ायोनी हलकों ने पहले दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमले में ज़ायोनी सरकार की गलतियों की आलोचना की थी। ज़ायोनी नेताओं ने भी परोक्ष रूप से कहा है कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि ईरान अपने वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले पर इस तरह प्रतिक्रिया देगा.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, ज़ायोनी सरकार के सैन्य खुफिया विभाग के प्रमुख अहरोन हलिफ़ा ने युद्ध की शुरुआत में लगातार विफलताओं के बाद इस्तीफा देने का फैसला किया था, लेकिन पिछले हफ्ते उन्होंने आखिरकार अपने इस्तीफे को लागू करने का फैसला किया।
ज़ायोनी समाचार पत्र येदिओट अहरनोत ने लिखा है कि सेना के ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख के इस्तीफ़े का मामला इतना गुप्त था कि उनके करीबी लोगों को भी इसके बारे में पता नहीं था, लेकिन आज सुबह वह सेना प्रमुख के पास गए और अपना इस्तीफा सौंप दिया.
ज़ायोनी सरकार के टीवी चैनल थर्टीन ने यह भी बताया कि अहरोन हलिफ़ा इस्तीफा दे देंगे और युद्ध समाप्त होने का इंतज़ार नहीं करेंगे।
ज़ायोनी सरकार की युद्ध परिषद के सदस्यों के बीच इस बात पर असहमति बढ़ गई है कि युद्ध जारी रखा जाए या पहले कैदियों को रिहा किया जाए।
जैसा कि नेतन्याहू की कैबिनेट युद्ध जारी रखने पर जोर दे रही है, गैंट्ज़ की टीम कैदियों की रिहाई के लिए बातचीत करना चाहती है।
इस बीच, नरसंहारक ज़ायोनी शासन की आरक्षित सेना के एक जनरल ने ज़ायोनी अधिकारियों से गाजा पट्टी में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के सामने विफलता स्वीकार करते हुए युद्ध को समाप्त करने की घोषणा करने का आह्वान किया है।
ज़ायोनी सेना की रिज़र्व सेना के जनरल इसहाक बराक ने बताया कि गाजा पट्टी पर हमले के लक्ष्य हासिल नहीं किए गए, और कहा कि इज़राइल को गाजा युद्ध की समाप्ति की घोषणा करनी चाहिए और दक्षिणी में राफा पर हमला करना चाहिए ग़ाज़ा ज़ायोनी सरकार की मदद नहीं करता क्योंकि युद्ध में इसराइल हार गया है.
नरसंहारक ज़ायोनी शासन की आरक्षित सेना के इस जनरल ने कहा कि ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो हठ को हमेशा के लिए ख़त्म कर सके।
पिछले छह महीनों से ग़ाज़ा पर ज़ायोनी सरकार के असफल आक्रमण के बाद से कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार दिन-ब-दिन आंतरिक और बाहरी संकटों में फँसती जा रही है।
पिछले छह महीनों में, ज़ायोनी शासन ने अपराध, नरसंहार, विनाश, युद्ध अपराध, अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन, सहायता एजेंसियों और उनके कार्यकर्ताओं पर बमबारी और भुखमरी के अलावा कुछ भी हासिल नहीं किया है।
जन्नतुल बक़ी का इतिहास और उसकी तबाही के ज़िम्मेदार
जन्नतुल बक़ी तारीख़े इस्लाम के जुमला मुहिम आसार में से एक है, अफ़सोस! बीती हुई सदी में जिसे वहाबियों ने 8 शव्वाल 1345 मुताबिक़ २१ अप्रैल 1925 को शहीद करके दूसरी कर्बला की दास्तान को लिख कर अपने यज़ीदी किरदार और अक़ीदे का वाज़ेह तौर पर इज़हार किया है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,जन्नतुल बक़ी तारीख़े इस्लाम के जुमला मुहिम आसार में से एक है, अफ़सोस! बीती हुई सदी में जिसे वहाबियों ने 8 शव्वाल 1345 मुताबिक़ २१ अप्रैल 1925 को शहीद करके दूसरी कर्बला की दास्तान को लिख कर अपने यज़ीदी किरदार और अक़ीदे का वाज़ेह तौर पर इज़हार किया है।
क़ब्रिस्ताने बक़ीअ (जन्नतुल बक़ीअ) के तारीख़ को पढ़ने से मालूम होता है कि यह मक़बरा सदरे इस्लाम से बहुत ही मोहतरम का मुक़ाम रखता था।
हज़रत रसूले ख़ुदा स.ल.व. ने जब मदीना मुनव्वरा हिजरत की तो क़ब्रिस्तान बक़ीअ मुसलमानों का इकलौता क़ब्रिस्तान था और हिजरत से पहले मदीना मुनव्वरा के मुसलमान ‘‘बनी हराम’’ और ‘‘बनी सालिम’’ के मक़बरों में अपने मुर्दों को दफ़नाते थे और कभी कभार तो अपने ही घरों में मुर्दों को दफ़नाते थे और हिजरत के बाद रसूले ख़ुदा हज़रत मुहम्मद स॰ के हुक्म से बक़ीअ जिसका नाम ‘‘बक़ीउल ग़रक़द’’ भी है मक़बरे के लिये मख़सूस हो गया।
इसमें सबसे पहले जो सहाबी दफन हुए उनका नाम था उस्मान इब्ने मधून जिनका इन्तेका ३ हिजरी की तीसरी शाबान हो हुआ था |
जन्नतुल बक़ीअ हर एतबार से तारीख़ी, मुहिम और मुक़द्दस है। हज़रत रसूले ख़ुदा स॰ ने जंगे ओहद के कुछ शहीदों को और अपने बेटे ‘‘इब्राहीम’’ अ॰ को भी जन्नतुल बक़ीअ में दफ़नाया था। इसके अलावा मुहम्मद और आले मुहम्मद सलावातुल्लाहे अलैइहिम अजमईन के मकतब यानी मकतबे एहले बैत अ॰ के पैरोकारों के लिये बक़ीअ के साथ इस्लाम और ईमान जुड़े हुऐ हैं क्योंकि यहां पर पांच मासूमीन अलै0 पहली जनाब ऐ फातिमा ज़हरा बीनते हज़रात मुहम्मद (s.अ.व) ,दूसरे इमाम हज़रत हसन बिन अली अलैहिस्सलाम, तीसरे इमाम हज़रत अली बिन हुसैन ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम, चौथे इमाम हज़रत मुहम्मद बिन अली अलबाक़र अलैहिस्सलाम, और पांचवे इमाम हज़रत जाफ़र बिन सादिक़ अलैहिस्सलाम के दफ़्न होने की जगह है।
इसके अलावा अज़वाजे रसूले ख़ुदा स॰ हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स॰, और हज़रत अली अ॰ की ज़ौजा, उम्मुल बनीन फ़ात्मा बिन्ते असद वालिदा मुकर्रमा अलमदार कर्बला हज़रत अबुलफ़ज़्ल अलअब्बास अलै0, हज़रत के चचा ‘‘अब्बास’’ और कई बुज़ुर्ग सहाबी हज़रात दफ़्न हैं।
तारीख़े इस्लाम का गहवारा ‘‘मक्का मुकर्रमा’’ और ‘‘मदीना मुनव्वरा’’ रहा है जहाँ तारीखे इस्लाम की हैसिय्यत का एक मरकज़ है लेकिन वहाबियत के आने से ‘‘शिर्क’’ के उन्वान से बेमन्तक़ व बुरहान क़ुरआनी इन तमाम तारीख़ी इस्लामी आसार को मिटाने का सिलसिला भी शुरू हुआ जिस पर आलमे इस्लाम में मकतबे अहले बैत अलैहिमुस्सलाम, को छोड़ कर सभी मुजरिमाना ख़ामोशी इखि़्तयार किये हुए हैं।
तारीख़ को पढ़ने और सफर करने वालों और सफ़रनामों से तारीख़े इस्लाम के आसारे क़दीमा की हिफ़ाज़त और मौजूदगी का पता मिलता है अज़ जुमला जन्नतुल बक़ी कि जिसकी दौरे वहाबियत तक हिफ़ाज़त की जाती थी और क़ब्रों पर कतीबा लिखे पड़े थे जिसमें साहिबे क़ब्र के नाम व निशानी सब्त थे वहाबियों ने सब महू कर दिया है। यहाँ तक कि अइम्मा मासूमीन अलैइहिमुस्सलाम की क़ब्रों पर जो रौज़े तामीर थे उनको भी मुसमार कर दिया गया है।
ऐसे फ़ज़ीलत वाले क़ब्रिस्तान में आलमे इस्लाम की ऐसी अज़ीमुशान शख़सियतें आराम कर रही है जिनकी अज़मत व मंजि़लत को तमाम मुसलमान, मुत्तफ़ेक़ा तौर पर क़ुबूल करते हैं। आइये देखें कि वे शख़सियतें कौन हैः
(1) इमाम हसन मुजतबा (अ॰)
आप पैग़म्बरे अकरम स॰ के नवासे और हज़रत अली व फ़ात्मा के बड़े साहबज़ादे हैं। मन्सबे इमामत के एतेबार से दूसरे इमाम और इसमत के लिहाज़ से चैथे मासूम हैं। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हुसैन ने आपको पैग़म्बरे इस्लाम स॰ के पहलू में दफ़न करना चाहा मगर जब एक सरकश गिरोह ने रास्ता रोका और तीर बरसाये तो इमाम हुसैन ने आपको बक़ीअ में दादी की क़ब्र के पास दफ़न किया। इस सिलसिले में इब्ने अब्दुल बर से रिवायत है कि जब ख़बर अबूहुरैरह को मिली तो कहाः ‘‘ख़ुदा की क़सम यह सरासर ज़ुल्म है कि हसन अ॰ को बाप के पहलू में दफ़न होने से रोका गया जबकि ख़ुदा की क़सम वह रिसालत मआब स॰ के फ़रजंद थे। आपके मज़ार के सिलसिले में सातवीं हिजरी क़मरी का सय्याह इब्ने बतूता अपने सफ़रनामे में लिखता है किः बक़ीअ में रसूले इस्लाम स॰ के चचा अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब और अबुतालिब के पोते हसन बिन अली अ॰ की क़ब्रें हैं जिनके ऊपर सोने का कु़ब्बा है जो बक़ीअ के बाहर ही से दिखाई देता है। दोनों की क़ब्रें ज़मीन से बुलंद हैं और नक़्शो निगार से सजे हैं। एक और सुन्नी सय्याह रफ़त पाशा भी नक़्ल करता है कि अब्बास और हसन अ॰ की क़ब्रें एक ही क़ुब्बे में हैं और यह बक़ीअ का सबसे बुलंद क़ुब्बा है। बतनूनी ने लिखा है किः इमाम हसन अ॰ की ज़रीह चांदी की है और उस पर फ़ारसी में नक़्श हैं। मगर आज आले सऊद अपनी नादानी के नतीजे में यह अज़ीम बारगाह और बुलंद व बाला क़ुब्बा मुन्हदिम कर दिया गया है और इस इमाम की क़ब्रे मुतहर ज़ेरे आसमान है।
(2) हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन सज्जाद (अ॰)
आपका नाम अली है और इमाम हुसैन अ॰ के बेटे हैं और शियों के चैथे इमाम हैं। आपकी विलादत 38 हिजरी में हुई। आपके ज़माने के मशहूर सुन्नी मुहद्दिस व फ़क़ीह मुहम्मद बिन मुस्लिम ज़हरी आपके बारे में कहते हैं किः मैंने क़ुरैश में से किसी को आपसे बढ़कर परहेज़गार और बुलंद मर्तबा नहीं देखा यही नहीं बल्कि कहते हैं किः दुनिया में सब से ज़्यादा मेरी गर्दन पर जिसका हक़ है वो अली बिन हुसैन अ॰ की ज़ात है। आपकी शहादत 94 हि0 में25 मुहर्रमुलहराम को हुई और बक़ीअ में चचा इमाम हसन अ॰ के पहलू में दफ़न किया गया। रफ़त पाशा ने अपने सफ़रनामे में जि़क्र किया है कि इमाम हसन अ॰ के पहलू में एक और क़ब्र है जो इमाम सज्जाद अ॰ की है जिसके ऊपर क़ुब्बा है मगर अफ़सोस 1344 में दुश्मनी की आंधी ने ग़ुरबा के इस आशयाने को भी न छोड़ा और आज इस अज़ीम इमाम और अख़लाक़ के नमुने की क़ब्र वीरान है।
(3) हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़र (अ॰)
आप रिसालत मआब के पांचवे जानशीन व वसी और इमाम सज्जाद अ॰ के बेटे हैं नीज़ इमाम हसन अ॰ के नवासे और इमाम हुसैन अ॰ के पोते हैं। 56 हि0 में विलादत और शहादत हुई। वाक़-ए कर्बला में आपकी उमरे मुबारक चार साल की थी, इब्ने हजर हेसमी (अलसवाइक़ अलमुहर्रिक़ा के मुसन्निफ़) का बयान है कि इमाम मुहम्मद बाक़र अलै0 से इल्म व मआरिफ़, हक़ाइक़े अहकाम, हिकमत और लताइफ़ के ऐसे चश्मे फूटे जिनका इनकार बे बसीरत या बदसीरत व बेबहरा इन्सान ही कर सकता है। इसी वजह से यह कहा गया है कि आप इल्म को शिगाफ़ता करके उसे जमा करने वाले हैं, यही नहीं बल्कि आप ही परचमे इल्म के आशकार व बुलंद करने वाले हैं। इसी तरह अब्दुल्लाह इब्ने अता का बयान है कि मैंने इल्मे वफ़क़ा के मशहूर आलिम हकम बिन उतबा (सुन्नी आलिमे दीन) को इमाम बाक़र के सामने इस तरह ज़ानुए अदब तय करके आपसे इल्मी इस्तेफ़ादा करते हुए देखा जैसे कोई बच्चा किसी बहुत अज़ीम उस्ताद के सामने बैठा हो।
आपकी अज़मत का अंदाज़ा इस वाकि़ये से बहुत अच्छी तरह लगाया जा सकता है कि हज़रत रूसले अकरम स॰ ने जनाब जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी जैसे जलीलुक़दर सहाबी से फ़रमाया था किः ऐ जाबिर अगर बाक़र अ॰ से मुलाक़ात हो तो मेरी तरफ़ से सलाम कहना। इसी वजस से जनाब जाबिर आपकी दस्तबोसी (हाथों को चूमना) में फ़ख्र (गर्व) महसूस करते थे और ज़्यादातर मस्जिदे नबवी में बैठ कर रिसालतपनाह की तरफ़ से सलाम पहुंचाने की फ़रमाइश का तज़करा करते थे।
आलमे इस्लाम बताऐ कि ऐसी अज़ीम शख़सियत की क़ब्र को वीरान करके आले सऊद ने क्या किसी एक फि़रक़े का दिल तोड़ा है या तमाम मुसलमानों को तकलीफ़ पहुंचाई है।
(4) हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अ॰:
आप इमाम मुहम्मद बाक़र अ॰ के फ़रज़न्दे अरजुमंद और शियों के छटे इमाम हैं।83 हिज0 में विलादत और 148 में शहादत हुई। आपके सिलसिले में हनफ़ी फि़रके़ के पेशवा इमाम अबुहनीफ़ा का बयान है कि मैंने किसी को नहीं देखा कि किसी के पास इमाम जाफ़र सादिक़ अ॰ से ज़्यादा इल्म हो। इसी तरह मालिकी फि़रक़े के इमाम मालिक कहते हैं। किसी को इल्म व इबादत व तक़वे में इमाम जाफ़र सादिक़ अ॰ से बढ़ कर न तो किसी आँख ने देखा है और न किसी कान ने सुना है और न किसी के ज़हन में यह बात आ सकती है। नीज़ आठवें क़र्न में लिखी जाने वाली किताब ‘‘अलसवाइक़ अलमुहर्रिक़ा’’ के मुसन्निफ़ ने लिखा है किः इमाम सादिक़ से इस क़दर इलम सादिर (ज़ाहिर) हुए हैं कि लोगों की ज़बानों पर था यही नहीं बल्कि बकि़या फि़रक़ों के पेशवा जैसे याहया बिन सईद, मालिक, सुफि़यान सूरी, अबुहनीफ़ा वग़ैरा आपसे रिवायत नक्ल करते थे। महशहूर मोअर्रिख़ इब्ने ख़लकान रक़्मतराज़ हैं कि मशहूर ज़मानाए शख़सियत और इल्मुल जबरा के मूजिद जाबिर बिन हयान आपके शागिर्द थे
मुसलमानों की इस अज़ीम हसती के मज़ार पर एक अज़ीमुश्शान रौज़ा व क़ुब्बा था मगर अफ़सोस एक बे अक़्ल गिरोह की सरकशी के नतीजे में इस वारिसे पैग़म्बर की लहद आज वीरान है।
(5) जनाबे फ़ात्मा बिन्ते असद
आप हज़रत अली की माँ हैं और आप ही ने जनाबे रसूले ख़ुदा स॰ की वालिदा के इन्तिक़ाल के बाद आँहज़रत स॰ की परवरिश फ़रमाई थी, जनाबे फ़ातिमा बिन्ते असद को आपसे बेहद उनसियत व मुहब्बत थी और आप भी अपनी औलाद से ज़्यादा रिसालत मआब का ख़याल रखती थीं। हिजरत के वक़्त हज़रत अली के साथ मक्का तशरीफ़ लाईं और उम्र के आखि़र तक वहीं रहीं। आपके इन्तिक़ाल पर रिसालत मआब को बहुत ज़्यादा दुख हुआ था और आपके कफ़न के लिये अपना कुर्ता इनायत फ़रमाया था नीज़ दफ़न से क़ब्ल कुछ देर के लिए क़ब्र में लेटे थे और क़ुरआन की तिलावत फ़रमाई थी, नमाज़े मय्यत पढ़ने के बाद आपने फ़रमाया थाः किसी भी इन्सान को फि़शारे क़ब्र से निजात नहीं है सिवाए फ़ात्मा बिन्त असद के, नीज़ आपने क़ब्र देख कर फ़रमाया थाः
आपका रसूले मक़बूल सल0 ने इतना एहतेराम फ़रमाया मगर आंहज़रत सल0 की उम्मत ने आपकी तौहीन में कोई कसर उठा न रखी, यहां तक कि आपकी क़ब्र भी वीरान कर दी। जिस क़ब्र में रसूल सल0 ने लेट कर आपको फि़शारे क़ब्र से बचाया था और क़ुरआन की तिलावत फ़रमाई थी उस पर बिलडोज़र चलाया गया और निशाने क़ब्र को भी मिटा दिया गया।
(6) जनाबे अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब
आप रसूले इस्लाम स॰ के चचा और मक्के के शरीफ़ और बुजर्ग लोगों में से थे,आपका शुमार हज़रत पैग़म्बर स॰ के चाहने वालों और मद्द करने वालों, नीज़ आप स॰ के बाद हज़रत अमीरूल मोमेनीन के वफ़ादारों और जाँनिसारों में होता है।
आमुलफ़ील से तीन साल पहले विलादत हुई और 33 हि0 में इन्तिक़ाल हुआ। आप आलमे इस्लाम की अज़ीम शख़सियत हैं। माज़ी के सय्याहों ने आपके रौज़ा और कु़ब्बा का तज़किरा किया है, मगर अफ़सोस आपके क़ुब्बे को मुन्हदिम कर दिया गया और क़ब्र वीरान हो गई।
(7) जनाबे अक़ील इब्ने अबूतालिब अ॰
आप हज़रत अली अ॰ के बड़े भाई थे और नबीए करीम स॰ आपको बहुत चाहते थे,अरब के मशहूर नस्साब थे और आप ही ने हज़रत अमीर का अक़्द जनाब उम्मुल बनीन से कराया था। इन्तिक़ाल के बाद आपके घर (दारूल अक़ील) में दफ़न किया गया, जन्नतुल बक़ी को गिराने से पहले आप की क़ब्र ज़मीन से ऊँची थी। मगर इन्हेदाम के बाद आपकी क़ब्र का निशान मिटा दिया गया है।
(8) जनाब अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र
आप जनाब जाफ़र तैयार ज़लजिनाहैन के बड़े साहबज़ादे और इमाम अली अ॰ के दामाद (जनाब ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के शौहर) थे। आपने दो बेटों मुहम्मद और औन को कर्बला इसलिये भेजा था कि इमाम हुसैन अ॰ पर अपनी जान निसार कर सकें। आपका इन्तिक़ाल 80 हि0 में हुआ और बक़ीअ में चचा अक़ील के पहलू में दफ़न किया गया। इब्ने बतूता के सफ़रनामे में आपकी क़ब्र का जि़क्र है। सुन्नी आलिम समहूदी ने लिखा हैः चूंकि आप बहुत सख़ी थे इस वजह से ख़ुदावंदे आलम ने आपकी क़ब्र को लोगों की दुआयें मक़बूल होने की जगह क़रार दिया है। मगर अफ़सोस! आज जनाब ज़ैनब के सुहाग के कब्र का निशान भी बाक़ी नहीं रहा।
(9) जनाब उम्मुल बनीन अ॰
आप हज़रत अली अ॰ की बीवी और हज़रत अबुल फ़ज़्ल अब्बास अ॰ की माँ हैं,साहिबे ‘‘मआलिकुम मक्का वलमदीना’’ के मुताबिक़ आपका नाम फ़ात्मा था मगर सिर्फ़ इस वजह से आपने अपना नाम बदल दिया कि मुबादा हज़रात हसन व हुसैन अ॰ को शहज़ादी कौनेन अ॰ न याद आ जायें और तकलीफ़ पहुंचे। आप उन दो शहज़ादों से बेपनाह मुहब्बत करती थीं। वाक़-ए कर्बला में आपके चार बेटों ने इमाम हुसैन अ॰ पर अपनी जान निसार की है इन्तिक़ाल के बाद आपको बक़ीअ में रिसालत मआब स॰ की फूपियों के बग़ल में दफ़न किया गया, यह क़ब्र मौजूदा क़ब्रिसतान की बाईं जानिब वाली दीवार से मिली हूई है और ज़ायरीन यहाँ ज़्यादा तादाद में आते हैं।
(10) जनाब सफि़या बिन्त अब्दुल मुत्तलिब
आप रसूले इस्लाम स॰ की फूफी और अवाम बिन ख़ोलद की बीवी थीं, आप एक बहादुर और शुजाअ ख़ातून थीं। एक जंग में जब बनी क़रेज़ा का एक यहूदी, मुसलमान औरतों के साथ ज़्यादती के लिए खे़मों में घुस आया तो आपने हसान बिन साबित से उसको क़त्ल करने के लिये कहा मगर जब उनकी हिम्मत न पड़ी तो आप ख़ुद बनफ़से नफ़ीस उन्हीं पर हमला करके उसे क़त्ल कर दिया। आपका इन्तिक़ाल 20 हि0 में हुआ। आपको बक़ीअ में मुग़य्यरा बिन शेबा के घर के पास दफ़न किया गया। पहले यह जगह ‘‘बक़ीउल उम्मात’’ के नाम से मशहूर थी। मोअर्रेख़ीन और सय्याहों के नक़्ल से मालूम होता है कि पहले क़ब्र की तखती ज़ाहिर थी मगर अब फ़क़त निशाने क़ब्र बाक़ी बचा है।
(11) जनाब आतिका बिन्ते अब्दुलमुत्तलिब
आप रूसलुल्लाह सल0 की फूफी थीं। आपका इन्तिक़ाल मदीना मुनव्वरा में हुआ और बहन सफि़या के पहलू में दफ़न किया गया। रफ़त पाशा ने अपने सफ़रनामे में आपकी क़ब्र का तजि़क्रा किया है मगर अब सिर्फ़ क़ब्र का निशान ही बाक़ी रह गया है।
(12) जनाब हलीमा सादिया
आप रसूले इस्लाम सल0 की रज़ाई माँ थीं यानी आप ने जनाबे हलीमा का दूध पिया था। आपका ताल्लुक़ क़बीला साद बिन बकर से था। इन्तिक़ाल मदीने में हुआ और बक़ीअ के शुमाल मशरिक़ी सिरे पर दफ़न हुईं। आपकी क़ब्र पर एक आलीशान कु़ब्बा था। रिसालत मआब स॰ अकसर व बेशतर यहाँ आकर आपकी ज़्यारत फ़रमाते थे। मगर अफ़सोस! साजि़श व तास्सुब के हाथों ने सय्यदुल मुरसलीन स॰ की इस महबूब ज़्यारतगाह को भी न छोड़ा और क़ुब्बा को ज़मीन बोस करके क़ब्र का निशान मिटा दिया गया।
(13) जनाब इब्राहीम बिन रसूलुल्लाह स॰.
आपकी विलादत सातवीं हिजरी क़मरी में मदीना मुनव्वरा में हुई मगर सोलह सत्तरह माह बाद ही आपका इन्तिक़ाल हो गया। इस मौक़े पर रसूल सल0 मक़बूल ने फ़रमाया थाः इसको बक़ीअ में दफ़न करो, बेशक इसकी दूध पिलाने वाली जन्नत में मौजूद है जो इसको दूध पिलायेगी। आपके दफ़न होने के बाद बक़ीअ के तमाम दरख़तों को काट दिया गया और उसके बाद हर क़बीले ने अपनी जगह मख़सूस कर दी जिससे यह बाग़ क़ब्रिस्तान बन गया। इब्ने बतूता के मुताबिक़ जनाब इब्राहीम अलै0 की क़ब्र पर सफ़ेद गुंबद था। इसी तरह रफ़त पाशा ने भी क़ब्र पर क़ुब्बे का जि़क्र किया है मगर अफ़सोस आले सऊद के जु़ल्म व सितम का नतीजा यह है कि आपकी फ़क़त क़ब्र का निशान ही बाक़ी रह गया है।
(14) जनाब उसमान बिन मज़ऊन
आप रिसालते मआब स॰ के बावफ़ा व बाअज़मत सहाबी थे। आपने उस वक़्त इस्लाम कु़बूल किया था जब फ़क़त 13 आदमी मुसलमान थे। इस तरह आप कायनात के चैधवें मुसलमान थे। आपने पहली हिजरत में अपने साहबज़ादे के साथ शिर्कत फ़रमाई फिर उसके बाद मदीना मूनव्वरा भी हिजरत करके आये, जंगे बदर में भी शरीक थे, इबादत में भी बेनज़ीर थे। आपका इन्तिक़ाल 2 हिजरी में हुआ। इस तरह आप पहले महाजिर हैं जिनका इन्तिकलाल मदीना में हुआ। जनाब आयशा से मनक़ूल रिवायत के मुताबिक़ हज़रत रसले इस्लाम स॰ ने आपकी मय्यत का बोसा लिया, नीज़ आप स॰ शिद्दत से गिरया फ़रमा रहे थे। आंहज़रत स॰ ने जनाब उसमान की क़ब्र पर एक पत्थर लगाया गया था ताकि निशानी रहे मगर मरवान बिन हकम ने अपनी मदीने की हुकूमत के ज़माने में उसको उखाड़ कर फेक दिया था जिस पर बनी उमय्या ने उसकी बड़ी मज़म्मत की थी।
(15) जनाब इस्माईल बिन सादिक़
आप इमाम सादिक़ अ॰ के बडे़ साहबज़ादे थे और आँहज़रत स॰ की जि़न्दगी ही में आपका इन्तिक़ाल हो गया था। समहूदी ने लिखा है कि आपकी क़ब्र ज़मीन से काफ़ी ऊँची थी। इसी तरह मोअत्तरी ने जि़क्र किया है कि जनाबे इस्माईल की क़ब्र और उसके शुमाल का हिस्सा इमाम सज्जाद अ॰ का घर था जिसके कुछ हिस्से में मस्जिद बनाई गई थी जिसका नाम मस्जिदे जै़नुल आबेदीन अ॰ था। मरातुल हरमैन के मोअल्लिफ़ ने भी इस्माईल की क़ब्र पर क़ुब्बा का जि़क्र किया है। 1395 हि0 में जब सऊदी हुकूमत ने मदीने की शाही रास्तों को चैडा करना शुरू किया तो आपकी क़ब्र खोद डाली मगर जब अन्दर से सही बदन निकला तो उसे बक़ी में शोहदाए ओहद के शहीदों के क़रीब दफ़न किया गया।
(16) जनाब अबु सईद ख़ुज़री
रिसालत पनाह के जांनिसार और हज़रत अली अ॰ के आशिक़ व पैरू थे। मदीने में इन्तिक़ाल हुआ और वसीयत की बिना पर बक़ीअ में दफ़न हुए। रफ़त पाशा ने अपने सफ़रनामे में लिखा है कि आपकी क़ब्र की गिन्ती मारूफ़ क़ब्रों में होती है। इमाम रज़ा ने मामून रशीद को इस्लाम की हक़ीक़त से मुताल्लिक़ जो ख़त लिखा था उसमे जनाब अबुसईद ख़ुज़री को साबित क़दम और बाईमान क़रार देते हुए आपके लिये रजि़अल्लाहु अन्हो व रिज़वानुल्लाहु अलैह के लफ़्ज़ इस्तेमाल किये थे।
(17) जनाब अब्दुल्लाह बिन मसऊद
आप बुज़ुर्ग सहाबी और क़ुरआन मजीद के मशहूर क़ारी थे। आप हज़रत अली अ॰ के मुख़लेसीन व जांनिसारों में से थे। आपको दूसरी खि़लाफ़त के ज़माने में नबीए अकरम स॰ से अहादीस नक़्ल करने के जुर्म में गिरफ़तार किया गया था जिसकी वजह से आपको अच्छा ख़ासा ज़माना जि़न्दान में गुज़ारना पड़ा। आपका इन्तिक़ाल 33 हि0 में हुआ था। आपने वसीयत फ़रमाई थी कि जनाब उसमान बिन मज़ऊन के पहलू में दफ़न किया जाये और कहा था कि: बेशक उसमान इब्ने मज़ऊन फ़क़ी थे। रफ़त पाशा के सफ़रनामें में आपकी क़ब्र का जि़क्र है।
पैग़म्बर (स॰) की बीवियों की क़ब्रें बक़ीअ में नीचे दी गई अज़वाज की क़बरें हैं
(18) ज़ैनब बिन्ते ख़ज़ीमा वफ़ात 4 हि0
(19) रेहाना बिन्ते ज़ैद वफ़ात 8 हि0
(20) मारिया क़बतिया वफ़ात 16 हि0
(21) ज़ैनब बिन्ते जहश वफ़ात 20 हि0
(22) उम्मे हबीबा वफ़ात 42 हि0 या 43 हि0
(23) मारिया क़बतिया वफ़ात 45 हि0
(24) सौदा बिन्ते ज़मा वफ़ात 50 हि0
(25) सफि़या बिन्ते हई वफ़ात 50 हि0
(26) जवेरिया बिन्ते हारिस वफ़ात 50 हि0
(27) उम्मे सलमा वफ़ात 61 हि0
ये क़बरें जनाबे अक़ील अ॰ की क़ब्र के क़रीब हैं। इब्ने बतूता के सफ़रनामे में रौज़े का जि़क्र है। मगर अब रौज़ा कहाँ है?
(28.30) जनाब रूक़ईया, उम्मे कुलसूम, ज़ैनबः आप तीनों की परवरिश जनाब रिसालत मआब स॰ और हज़रत ख़दीजा ने फ़रमाई थी, इसी वजह से बाज़ मोअर्रेख़ीन ने आपकी क़ब्रों को ‘‘क़ुबूर बनाते रसूलुल्लाह’’ के नाम से याद किया है। रफ़त पाशा ने भी इसी ग़लती की वजह से उन सब को औलादे पैग़म्बर क़रार दिया है वह लिखते हैं। ‘‘अकसर लोगों की क़ब्रों को पहचानना मुश्किल है अलबत्ता कुछ बुज़ुर्गान की क़ब्रों पर क़ुब्बा बना हुआ है, इन कु़ब्बादार क़ब्रों में जनाब इब्राहीम, उम्मे कुलसूम, रूक़ईया, ज़ैनब वग़ैरा औलादे पैग़म्बर की क़बे्रं हैं।
(31) शोहदाए ओहद
यूँ तो मैदाने ओहद में शहीद होने वाले फ़क़त सत्तर अफ़राद थे मगर कुछ ज़्यादा ज़ख़्मों की वजह से मदीने में आकर शहीद हुए। उन शहीदों को बक़ी में एक ही जगह दफ़न किया गया जो जनाबे इब्राहीम की क़ब्र से तक़रीबन 20 मीटर की दूरी पर है। अब फ़क़त इन शोहदा की क़ब्रों का निशान बाक़ी रह गया है।
(32) वाकि़या हुर्रा के शहीद
कर्बला में इमाम हुसैन अलै0 की शहादत के बाद मदीने में एक ऐसी बग़ावत की आँधी उठी जिससे यह महसूस हो रहा था कि बनी उमय्या के खि़लाफ़ पूरा आलमे इस्लाम उठ खड़ा होगा और खि़लाफ़त तबदील हो जायेगी मगर मदीने वालों को ख़ामोश करने के लिये यज़ीद ने मुस्लिम बिन उक़बा की सिपेह सालारी में एक ऐसा लश्कर भेजा जिसने मदीने में घुस कर वो ज़ुल्म ढाये जिनके बयान से ज़बान व क़लम मजबूर हैं। इस वाकि़ये में शहीद होने वालों को बक़ीअ में एक साथ दफ़न किया गया। इस जगह पहले एक चहार दीवारी और छत थी मगर अब छत को ख़त्म करके फ़क़त छोटी छोटी दीवारें छोड़ दी गई हैं।
(33) जनाब मुहम्मद बिन हनफि़या
.आप हज़रत अमीर के बहादुर साहबज़ाते थे। आपको अपनी मां के नाम से याद किया जाता है। इमाम हुसैन अ॰ का वह मशहूर ख़त जिसमें आपने कर्बला की तरफ़ सफ़र की वजह बयान की है, आप ही के नाम लिखा गया था। आपका इन्तिक़ाल 83 हि0 में हुआ और बक़ी में दफ़न किया गया।
(34) जनाब जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी
आप रिसालते पनाह स॰ और हज़रत अमीर के जलीलुलक़द्र सहाबी थे। आँहज़रत स॰ की हिजरत से 15 साल पहले मदीने में पैदा हुए और आप स॰ के मदीना तशरीफ़ लाने से पहले इस्लाम ला चुके थे। आँहज़रत स॰ ने इमाम बाक़र अ॰ तक सलाम पहुँचाने का जि़म्मा आप ही को दिया था। आपने हमेशा एहले बैत की मुहब्बत का दम भरा। इमाम हुसैन अ॰ की शहादत के बाद कर्बला का पहला ज़ाइर बनने का शर्फ आप ही को मिला मगर जनाब हुज्जाम बिन यूसुफ़ सक़फ़ी ने मुहम्मद व आले मुहम्मद की मुहब्बत के जुर्म में बदन को जलवा डाला था। आपका इन्तिक़ाल 77 हि0 में हुआ और बक़ीअ में दफ़न हुए।
(35) जनाब मिक़दाद बिन असवद
हज़रत रसूले ख़ुदा स॰ और हज़रत अली के बहुत ही मोअतबर सहाबी थे। आख़री लम्हे तक हज़रत अमीर अ॰ की इमामत पर बाक़ी रहे और आपकी तरफ़ से दिफ़ा भी करते रहे। इमाम मुहम्मद बाक़र अ॰ की रिवायत के मुताबिक़ आपकी गिन्ती उन जली-लु-लक़द्र असहाब में होती है जो पैग़म्बरे अकरम स॰ की रेहलत के बाद साबित क़दम और बाईमान रहे।
यह था बक़ीअ में दफ़न होने वाले बाज़ बुज़ुर्गान का जि़क्र जिनके जि़क्र से सऊदी हुकूमत बचती है और उनके आसार को मिटा कर उनका नाम भी मिटा देना चाहती है क्योंकि उनमें से ज़्यादातर लोग ऐसे हैं जो जि़ंदगी भर मुहम्मद व आले मुहम्मद अ॰ की मुहब्बत का दम भरते रहे और उस दुनिया की भलाई लेकर इस दुनिया से गये। इन बुज़ुर्गान और इस्लाम के रेहनुमा की तारीख़ और जि़न्दगी ख़ुद एक मुस्तकि़ल बहस है जिसकी गुन्जाइश यहाँ नहीं है।
आख़िर में हम रब्बे करीम से दुआ करते हैं। ख़ुदारा! मुहम्मद और आले मुहम्मद अ॰ का वास्ता हमें इन अफ़राद के नक़शे क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा जो तेरे नुमाइन्दों के बावफ़ा रहे नीज़ हमें उन लोगों में क़रार दे जो हक़ के ज़ाहिर करने में साबित क़दम रहे और जिनके इरादों को ज़ालिम हाकिमें भी हिला न सके।