رضوی

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दक्षिण अफ्रीक़ा ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के नाम अपने एक बयान में कहा है कि ग़ज़ा में नए तथ्यों, विशेष रूप से व्यापक कुपोषण और भुखमरी के कारण वह एक बार फिर इस्राईल के ख़िलाफ़ अदालत का दरवाज़ा खटखटाने के लिए मजबूर है।

दक्षिण अफ़्रीक़ा ने कहा है कि इस्राईल नरसंहार की रोकथाम वाले कन्वेंशन का निरंतर उल्लंघन कर रहा है, जिससे जिसके कारण वह एक बार फिर अदालत का रुख़ करने के लिए मजबूर है।

क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में मानवाधिकार की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत फ्रांसेस्का अल्बनीज़ ने ग़ज़ा युद्ध से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में दक्षिण अफ्रीक़ा की नई अपील के लिए उसका आभार व्यक्त किया है।

दक्षिण अफ्रीक़ा का कहना है कि उसने आईसीजे से इस्राईल को अतिरिक्त आपातकालीन उपायों का आदेश देने का आग्रह किया है, क्योंकि लोग ग़ज़ा में अब भूख से मर रहे हैं और समय तेज़ी से हाथ से निकलता जा रहा है।

दक्षिण अफ़्रीक़ा ने एक बयान में कहा है कि ग़ज़ा में सम्पूर्ण अकाल का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। इस भयानक त्रासदी को रोकने के लिए अदालत को अब आगे आकर कार्यवाही करने की ज़रूरत है।

ईरान की एक अदालत के आदेश के बाद अमरीकी तेल ले जाने वाले एक टैंकर को आधिकारिक रूप से ज़ब्त कर लिया गया है। अमरीकी तेल कार्गो फ़ारस की खाड़ी में मार्शल आइलैंड्स फ़्लैग वाले जहाज़ एडवांटेज स्वीट द्वारा ढोया जा रहा था। अप्रैल 2023 में एक ईरानी बोट से टकराने के बाद, ईरान ने इस तेल टैंकर को रोक लिया था।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, इस तेल कार्गो को ईरान की एक अदालत के आदेश के बाद ज़ब्द किया गया है, जिसने एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (ईबी) से पीड़ित रोगियों या बटरफ्लाई रोगियों की शिकायत पर सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला सुनाया है ।

एक दुर्लभ त्वचा रोग से पीड़ित रोगियों ने अमरीकी प्रतिबंधों द्वारा उपचार में होने वाली समस्याओं को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था। अपनी शिकायत में ईबी रोगियों ने अमरीकी प्रतिबंधों के कारण होने वाले नुक़सान की भरपाई किए जाने की मांग की थी।

शिकायत में रोगियों ने कहा था कि पश्चिमी प्रतिबंधों विशेष रूप से अमरीका के ग़ैर क़ानूनी और एकपक्षीय प्रतिबंधों ने स्वीडिश कंपनी द्वारा ईरान को दवाएं बेचने से रोक दिया है, जिससे उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक नुक़सान पहुंच रहा है।

हालिया वर्षों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के अधिकारियों ने ईरान में कुछ रोगियों सहित लोगों के स्वास्थ्य पर अमरीकी प्रतिबंधों के प्रभाव के बारे में बार-बार चेतावनी दी है, और इस बात पर ज़ोर दिया है कि यह प्रतिबंध प्रतिदिन रोगियों की मृत्यु का कारण बन रहे हैं।

पश्चिमी देशों, विशेषकर अमरीका का दावा है कि यह दवा कभी भी प्रतिबंध सूची में नहीं थी; फ़ारस की खाड़ी में एक अमरीकी तेल कार्गो की ज़ब्ती की घोषणा के जवाब में, अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने एक बार फिर दावा किया है कि ईरान के खिलाफ़ अमरीकी प्रतिबंधों में कभी भी दवा शामिल नहीं थी, और अब भी नहीं है।

इस बीच, बैंकों पर प्रतिबंध और ईरान के मौद्रिक विनिमय में पैदा हुई समस्याओं ने विशेष और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए दवा प्राप्त करना कठिन और कुछ मामलों में असंभव बना दिया है। इन प्रतिबंधों का परिणाम ईरान में बटरफ़्लाई रोगियों के साथ-साथ थैलेसीमिया और कैंसर से पीड़ित हज़ारों रोगियों के जीवन के लिए ख़तरा है।

बुधवार, 06 मार्च 2024 15:52

घर परिवार- 1

आज के कार्यक्रम के पहले भाग में हम दपंति के बारे में कुछ मनोवैज्ञानिक बातों का उल्लेख कर रहे हैं।

वास्तव में विवाह, अपनी समस्या व जटिलताओं के साथ, उस पौधे की भांति होता है जिसे यदि सही दिशा न दी जाए और उसके लिए सही सहारे का इंतेज़ाम न किया जाए तो हो सकता है इस संबंध का वह परिणाम न निकले जिसकी इच्छा हो। हम दो लोगों के परियाय सूत्र में बंध जाने के बाद की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं क्योंकि उस समय सब कुछ स्पष्ट हो चुका होता है। सब से पहले तो पति और पत्नी को एक दूसरे की विविधता पर ध्यान देना चाहिए। पति और पत्नी के मध्य सब से पहला और बड़ा अंतर,  लैंगिक होता है । आज आधुनिक मनोविज्ञान में भी यह सिद्ध हो चुका है कि महिला और पुरुष की मनोदशा समान नहीं होती और रचना और सृष्टि के लिहाज़ से भी दोनों में बुनियादी अंतर होता है जो उनके अनुभवों और संस्कारों से हट कर भी, उनके मध्य अंतर का कारण बनती है और इसी अंतर के कारण वह एक दूसरे की ओर आकृष्ट होते हैं। इस लिए ज़रूरी है कि पति पत्नी सब से पहले एक दूसरे की लैंगिक विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करें और यह सीखें कि उनके मध्य जो मतभेद है उसका मूल कारण कहीं,उनका लैंगिक अंतर तो नहीं है? या वास्तव में यह अलग अलग सोच का नतीजा है? क्योंकि सोच के अंतर की वजह से पैदा होने वाला मतभेद खत्म हो सकता है और उसका निवारण संभव है मगर लैंगिक अंतर के कारण पैदा होने वाले मतभेद का अंत आसान नहीं होगा और उसका एक ही समाधान है और वह यह कि दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से समझें।

बेहतर यह है कि दंपति, संयुक्त जीवन के आरंभ में ही, अपने अपने कर्तव्यों का निर्धारण कर लें। उदाहरण स्वरूप यह तय कर लें कि पति या पत्नी की आय किस प्रकार से घर में खर्च होगी या किस तरह से बचत की जाएगी , घर का काम काज कैसे होगा और यह कि दोनों किस प्रकार से एक दूसरे की मदद कर सकते हैं। यदि यह सब कुछ बुद्धिमत्ता और सूझबूझ के साथ तय किया जाए तो फिर आगे चल कर दांपत्य जीवन में कोई समस्या नहीं खड़ी होगी और पति और पत्नी में से किसी को यह नहीं महसूस होगा कि उसके कांधे पर दूसरे का बोझ है। पैगम्बरे इस्लाम की बेटे हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का जीवन एक सफल मुसलमान महिला के जीवन के लिए आदर्श है। इतिहास में लिखा है कि उनके पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने यह तय कर रखा था कि घर के लिए ज़रूरी कामों को आपस में बांट लिया जाए और घर के अंदर के काम जैसे खाना पकाना या आटा गूंथना आदि हज़रत फातेमा के ज़िम्मे था और ईंधन लाना और सामान खरीदना, हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िम्मेदारी थी। इसके साथ ही हज़रत अली घर के अंदर भी काम काज में अपनी पत्नी का हाथ बंटाते थे।

ईरान सहित पूरी दुनिया में परिवार के गठन की प्रक्रिया के बारे में हमने पिछले कार्यक्रम में बताया था कि समाज की सामूहिक दशा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन, परिवार के ढांचे में परिवर्तन का कारण बनता है। जब समय के साथ साथ मनुष्य की ज़रूरतें और उद्देश्य, बदलते हैं तो परिवार का ढांचा भी बदल जाता है। उन्नीसवीं सदी के बाद से फैक्टरी और उद्योग के महत्व के कारण परिवार के ढांचे में भी बदलाव पैदा हुए। सामाजिक व्यवस्था में विकास और आधुनिक शिक्षा संस्थानों के गठन की वजह से, परिवार के कई महत्वपूर्ण काम, इन संस्थाओं को सौंप दिये गये और परिवार की भूमिका कम हो गयी और इसके साथ ही परिवार के सदस्यों की संख्या भी कम हुई और मुख्य सदस्यों पर आधारित परिवार के गठन का चलन बढ़ा।

मुख्य सदस्यों पर आधारित वह परिवार होता है जो माता पिता और संतान पर ही आधारित होता है। इस प्रकार के परिवारों का चलन, पश्चिम में औद्योगिक क्रांति के बाद आम हुआ। इस प्रकार के परिवार में पति, पत्नी अपने बच्चों के साथ रहते हैं और उनके साथ उनका कोई दूसरा रिश्तेदार नहीं रहता। इस प्रकार के परिवार में माता, पिता या दोनों मिल कर परिवार के खर्च का बोझ उठाते हैं और अपने कामों में वह परिवार से बाहर किसी से सलाह नहीं लेते और प्रायः फैसले एक दूसरे से बात चीत करके कर लेते हैं।

पारसंस जैसै समाज शास्त्रियों की नज़र में परमाणु परिवार बौद्धिक होता है क्योंकि इस प्रकार के परिवार में बुद्धि व तर्क से काम लिया जाता है और फैसलों में परिवार का हर सदस्य शामिल होता है और फैसला करने का अधिकार उसी को होता है जो तर्क व बुद्धि में सब से अधिक शक्तिशाली होता है। न्यू क्लियर फैमिली कभी बढ़ती नहीं, क्योंकि बच्चे जैसे ही बड़े होते हैं अपना जीवन जीने के लिए माता पिता से अलग हो जाते हैं और एक दूसरे परिवार का गठन करते हैं। इस प्रकार के परिवार को इस समय दुनिया के बहुत से देशों में देखा जा सकता है।

हम रहीमी और उनकी पत्नी को ईरान में परमाणु परिवार का एक उदाहरण बना कर पेश कर रहे हैं । इस काल्पनिक परिवार में तीन बेटियां और दो बेटे हैं जिन्होंने शादी के बाद अपने पिता का घर छोड़ दिया है और हरेक की अपनी अलग दुनिया है। इस परिवार में माता पिता वर्षों गुज़र जाने के बाद भी एक दूसरे से प्रेम करते हैं और एक दूसरे के साथ रहते हैं। वह सत्तर मीटर के दो बेडरूम वाले फ्लैट में रहते हैं। छुट्टियों के दिन चूंकि उनके बच्चे भी उनसे मिलने आते हैं इस लिए घर में काफी चहल पहल रहती है लेकिन आम दिनों में पूरे घर में खामोशी छाई रहती है। उनके बच्चों के घर उनसे काफी दूरी पर हैं इस लिए वह आसानी से उनके घर नहीं जा सकते इसी लिए उनके लिए फोन सब से अच्छा संपर्क साधन है। रहीमी साहब  और उनकी पत्नी अनुभवी हैं इस लिए पूरे मोहल्ले के लोग उन्हें जानते हैं और उनसे सलाह मशिवरा करते हैं। मस्जिद में जाना भी उनके लिए अन्य लोगों से संपर्क का एक अच्छा अवसर होता है। उनकी मुख्य समस्या, बेटे और बहू में मतभेद है । उनके बेटे का 6 साल का एक बेटा भी है लेकिन इस बच्चे के बावजूद वह अपनी पत्नी के साथ नहीं रह सकता। अब दादा दादी को अपने पोते की चिंता है जो, माता पिता के मध्य अलगाव के बाद, अकेला पड़ जाएगा। हालांकि मोहल्ले में वह इस प्रकार के बहुत से परिवारों की समस्याओं का निवारण करते रहते हैं मगर उन्होंने अभी तक अपने बेटे और बहू के मामले में दखल नहीं दिया है । उन्हें लगता है कि कहीं यह न समझा जाए कि वह अपने बेटे का समर्थन कर रहे हैं जिससे मामला अधिक खराब हो जाए। वह अपने बेटे की पारिवारिक समस्या के निवारण के साधन की खोज में जुटे हैं। रहीमी साहब का दूसरा बेटा यारी दोस्ती में व्यस्त है और माता पिता से मिलने का उसे कम ही समय मिलता है मगर फिर भी रहीमी साहब खुश हैं कि वह अपनी पत्नी के साथ खुशी से ज़िंदगी गुज़ार रहा है।

यह कहा जा सकता है कि न्यू क्लियर फैमिली, के आधारों को वर्तमान उद्योगिक परिस्थितियों ने जनम दिया है। इस प्रकार के परिवार का मक़सद, शांति व मौन व प्रेम होता है। आज के काल में ईरान सहित विश्व के अधिकांश देशों में इसी प्रकार के परिवारों का चलन है और सन 2011 के आंकड़ों के अनुसार ईरान में 60 प्रतिशत से अधिक परिवार, परमाणु परिवारों के रूप में रहते हैं।  वास्तव में परिवारों के रूप में बदलाव के साथ ही परिवार के गठन की शैली भी बदल गयी है और लोग स्वंय ही अपने जीवन साथी का चयन करने लगे हैं।

इस्लाम समाज में एकता को , परिवार के भीतर एकता का परिणाम समझता है और परिवार के सदस्यों की रुचियों को समाज में सार्वाजनिक रूप से प्रचारित किये जाने योग्य समझता है। इस्लाम की नज़र में परिवार, भौतिकता से परे आध्यात्मक व नैतिकता के आधार पर बनाया जाता है इस लिए यह संभव नहीं है कि कोई परिवार, दिखावा करे, भौतिकता में डूबा रहे और उसके बाद यह आशा रखे कि उसके परिवार में उच्च आध्यात्मिक मूल्यों का विकास होगा। ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, इस्लामी जीवन शैली के कई सफल आदर्श नज़र आते हैं जिनमें से किसी भी आदर्श पर गौर करके इन्सान अपने परिवार को उच्च स्थान तक ले जा सकता है।

शहीद मेहदी ज़ैनुद्दीन की पत्नी कहती हैं: हम सब उनके पिता के घर में थे, सब लोग खाना खा रहे थे, तभी में कोई चीज़ लाने के लिए किचन में गयी और जब वापस आयी तो देखा, मेहदी साहब, हाथ रोके मेरा इंतेज़ार कर रहे हैं  ताकि मेरे साथ ही खाना शुरु करें। मुझे उनका यह काम इतना अच्छा लगा कि आज भी मुझे अच्छीतरह से याद है।

शहीद सैयद मीर सईद की पत्नी अपने पति के बारे में कहती हैंः

 

उस रात बहुत बारिश हो रही थी, दूसरे दिन ही उनका इम्तेहान था, मैं आंगन में जाकर कपड़े धोने लगी। तभी मैंने देखा कि वह मेरे पीछे आकर खड़े हो गये। मैंने कहा, यहां क्या कर रहे हैं आप? कल आप का इम्तेहान नहीं है क्या? वह आंगन में बने हौज़ के पास घुटनों के बल बैठ गये, बर्फ जैसे ठंडे मेरे हाथों को टब से बाहर निकाला और कहा मुझे तुम से शर्म आ रही है, मैं तुम्हारे लिए वह सब कुछ नहीं कर सका जिसकी तुम योग्य हो, जिस लड़की के घर में कपड़े धोने की मशीन हो वह मेरे घर में इस ठंडक में बैठ कर ... मैंने उनकी बात काट दी और कहा: किसी ने मुझे मजबूर नहीं किया है, मैं दिल से यह काम करती हूं यह जो आप समझते हैं और मेरी क़द्र करते हैं वही मेरे लिए काफी है।

 

 

 

 

बुधवार, 06 मार्च 2024 15:51

मार्गदर्शन -1

इंसान भौतिक जीवन में डूब जाता है, जिसके परिणाम उसकी आत्मा थक जाती है।

अगर इंसान मज़बूत आध्यात्मिक और धार्मिक स्रोत से जुड़ा नहीं होगा, तो वह भटक जाएगा और निराशा का शिकार हो जाएगा। ईश्वरीय दूत भी इसीलिए आए थे, ताकि इंसान का आध्यात्मिक एवं ईश्वरीय मार्ग की ओर मार्गदर्शन कर सकें। उनके इस मार्गदर्शन का उद्देश्य इंसान को इस भौतिक जीवन में फंसने और नष्ट होने से बचाना था। शुद्ध इस्लामी शिक्षाएं इंसान के लिए आध्यात्मिक उत्कृष्टता और नैतिक ऊंचाईयां चढ़ने की सीढ़ियां हैं।

इस्लाम और उसकी शिक्षाओं को बेहतर तरीक़े से समझने के लिए ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई के कथनों का सहारा लेंगे और सांस्कृतिक, सामाजिक एवं धार्मिक विश्वासों के बारे में उनके दृष्टिकोणों की समीक्षा करेंगे। वरिष्ठ नेता का मानना है कि भौतिक एवं मशीनी जीवन ने इंसान को थका दिया है। इस्लाम ऐसे लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण बन सकता है और उनके लिए नए जगत का द्वार खोल सकता है।

इस्लाम शांति, न्याय और कल्याण का संदेशवाहक है। इस्लाम ने अपने इतिहास के समस्त चरणों में बड़ी संख्या में लोगों के दिलों को अपनी ओर खींचा है। वरिष्ठ नेता के मुताबिक़, अगर इस्लाम को सही रूप में पेश किया जाए, तो अतीत की भांति आज भी इस्लाम एकमात्र मुक्तिदाता धर्म है। 1400 वर्ष पूर्व की भांति आज भी यह आवाज़ गूंज रही है, ईश्वर की ओर से तुम्हारे लिए प्रकाश और स्पष्ट किताब आई। ईश्वर उसकी बरकत से उन लोगों का कल्याण के मार्ग की ओर मार्गदर्शन करता है जो उसकी प्रसन्नता का अनुसरण करते हैं और उन्हें अपनी अनुमति से अंधेरों से रोशनी की ओर ले जाता है और उन्हें सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शित करता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता जीवन में इस्लाम की भूमिका का इस प्रकार से उल्लेख करते हैं कि, इस्लाम जीवन को अर्थ प्रदान करके और उसके लिए सही मार्ग प्रशस्त करके, वास्तव में सुखी जीवन जीने में इंसान की मदद करता है और ईश्वरीय सीधा मार्ग उसके लिए प्रशस्त करता है। यह ईश्वरीय धर्म अपनी व्यापक शिक्षाओं के कारण, आकर्षक है और भले लोगों का ध्यान खींचता है। पश्चिम समेत विश्व में होने वाले शोधों और आंकड़ों के मुताबिक़, दिन प्रतिदिन इस्लाम की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है और यह रुझान युवकों में अधिक पाया जाता है, जिससे इंसान के प्रभाव और आकर्षण का पता चलता है।

 

अन्य ईश्वरीय धर्मों की भांति इस्लाम धर्म की भी बुनियाद एकेश्वरवाद और एक ईश्वर की इबादत पर है। इसके अलावा उसके अन्य मूल सिद्धांत हैं, नबूव्वत, मआद, इमामत और ईश्वरीय न्याय। मूल सिद्धांत वही हैं, जिनपर धर्म की इमारत की बुनियाद रखी हुई है। एक मुसलमान को पहले मूल सिद्धांतों पर ईमान लाना होगा, उसके बाद उन्हीं से निकलने वाले अन्य सिद्धांतों पर जिन्हें फ़ुरुए दीन कहा जाता है, अमल करना होगा। फ़ुरुए दीन के 9 भाग हैं, नमाज़, रोज़ा, ख़ुम्स, ज़कात, हज, जेहाद, अम्र बे मारूफ़ यानी अच्छाई का आदेश, नहि अज़ मुनकर यानी बुराई से रोकना, तवल्ला यानी ईश्वर के दोस्तों से दोस्ती और तबर्रा यानी ईश्वर के दुश्मनों से दुश्मनी।

इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता भी इस्लाम के समस्त नियमों और शिक्षाओं को इंसान को वास्तविक सुख या कल्याण तक पहुंचाने के लिए बताते हैं और कहते हैं, इस्लाम के समस्त आदेश और नियम और इस्लाम के समस्त आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दिशानिर्देश और इस्लाम की समस्त व्यक्तिगत एवं सामूहिक इबादतें जीवन को सुख पहुंचाने वाले इस नुस्ख़े का भाग हैं।

इस्लाम अपनी व्यापक शिक्षाओं द्वारा मानवता को भौतिक एवं आध्यात्मिक परिपूर्णता तक पहुंचाना चाहता है। यह ईश्वरीय धर्म उत्कृष्टता और कल्याण तक पहुंचने के मार्ग को अनिवार्य आदेशों को अंजाम देने और पापों से बचने तथा पैग़म्बरे इस्लाम (स), अहले बैत और क़ुरान से जुड़ना बताता है।

इस्लाम की शिक्षाओं की रोशनी में जीवन, एक ऐसी दुनिया को उपहार स्वरूप देता है जो अत्याचार से पाक और अध्यात्म से परिपूर्ण होती है। वरिष्ठ नेता इस्लाम धर्म को मुसलमानों की पूंजी बताते हुए कहते हैं कि मुसलमानों की महत्वपूर्ण पूंजी, इंसान के जीवन के लिए इस्लाम के नियम और व्यापक एवं स्पष्ट दिशानिर्देश हैं। इस्लाम, विश्व और इंसान के बारे में व्यापक एवं तार्किक दृष्टिकोण पेश करके और शुद्ध एकेश्वरवाद एवं नैतिक एवं आयात्मिक नियमों और मज़बूत राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था और व्यक्तिगत कर्तव्यों एवं कर्मों द्वारा समस्त इंसानों से अपनी आंतरिक बुराईयों, कमज़ोरियों और गंदगियों को पाक करने और अपने मन को ईमान, श्रद्धा, सच्चाई, प्रेम, उम्मीद और ताज़गी से सुसज्जित करने की दावत देता है, ताकि लोग अपनी दुनिया को भुखमरी, जिहालत, अत्याचार, भेदभाव, पिछड़ेपन, ठहराव, वर्चस्व, दबाव, अपमान और पागलपन से आज़ाद कर लें।

वरिष्ठ नेता के अनुसार, इस्लाम ने अपने उदय के समय और उसके बाद दुनिया के सामने ऐसा मार्ग खोल दिया, जो इंसान के कल्याण और सुख की गारंटी देता है। यह न्याय एवं मध्यमार्गी, बुद्धिमत्ता और सत्य को स्वीकार करने का धर्म है। इसके अनुसार, इंसान की समस्याओं का समाधान, अतिवाद और घमंड से दूरी है। इस्लाम इंसान से ईश्वर को याद रखने और उसके साथ आंतरिक रूप से संपर्क स्थापित करने का आहवान करता है। यह ईश्वरीय धर्म इंसानों से बुराई, अपराध, अत्याचार और भ्रष्टाचार से मुक़ाबले की मांग करता है और छापूति एवं घमंड के ख़िलाफ़ निरंतर संघर्ष का आहवान करता है। इस्लाम के दिशानिर्देशों का आधार यही है और व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन को सुख एवं शांति देने वाले धर्म के कार्यक्रम की बुनियाद भी यही है।

आज ऐसे समाज जो विभिन्न प्रकार के मतों का अनुसरण करते हैं, अध्यात्म से दूर हैं और व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में बड़ी बड़ी समस्याओं से ग्रस्त हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि वर्तमान समय में विशेष रूप से कुछ मतों की पराजय के बाद, अधिक लोगों के दिल इस्लाम की ओर झुक रहे हैं। वे कहते हैं, आज ग़ैर ईश्वरीय मतों के आहवान के बाद, यह आहवान चाहे मार्क्सवाद की ओर से हो या उदारवाद जैसे अन्य मतों की ओर से, साबित करता है कि यह मत इंसान का कल्याण नहीं कर सकते, लोगों के दिल इस्लाम की ओर झुक गए हैं। इसके बाद वरिष्ठ नेता एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर संकेत करते हुए कहते हैं, इस्लाम की दावत या आहवान और महत्वपूर्ण शिक्षाएं न केवल उन राष्टों के लिए है जो भुखमरी और निर्धनता की आग में झुलस रहे हैं, बल्कि उन समस्त इंसानों के लिए भी है जो विकसित एवं समृद्ध देशों में आध्यात्मिक निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस्लाम के दुश्मन बहुत ज़्यादा हैं, जो इस ईश्वरीय धर्म को जड़ से उखाड़ फेंकना और बदल देना चाहते हैं। वे ऐसे अत्याचारी हैं जो क़ुरान और अहले बैत की शिक्षाओं को अपने अत्याचारों और अपराधों के मार्ग में रुकावट समझते हैं। इसीलिए वह इस धर्म के अनुयाईयों के बीच मतभेद उत्पन्न करना चाहते हैं।

वरिष्ठ नेता मुसलमानों से दुश्मनों की साज़िशों के प्रति सजग रहने की सिफ़ारिश करते हुए हैं, दुश्मनों ने कुछ शताब्दियों से और नादान एवं नासमझ दोस्तों ने लम्बे समय से इस्लाम के प्रकाशमय चेहरे को बिगाड़ दिया है और किसी मक़सद के तहत ग़लत परम्पराओं की इसमें वृद्धि कर दी है या उसमें कुछ कमी कर दी है। आज भी यद्यपि इस्लाम का बुरा सोचने वाले इस्लाम की तस्वीर ख़राब करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में इस संदर्भ में दुश्मनों के प्रयास कुछ अधिक हैं और वे बहुत ही चालाकी और मक्कारी के साथ इन कृत्यों में लिप्त हैं। लेकिन विश्व के मुसलमान, इस महान पूंजी के महत्व और मूल्य को सही तरीक़े से पहचान कर अपने जीवनों में वास्तविक क्रांति लायेंगे और इस्लामी देशों को कमज़ोरी, पिछड़ेपन और पतन से मुक्ति दिलायेंगे।                                    

 

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा शेख मुहम्मद इस्हाक़ फ़य्याज़ ने कहा: शिया धर्म का प्रचार और प्रसार हौज़ात इल्मिया के माध्यम से किया गया है और हौज़ा ने उपदेश देने के लिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रचारक भेजे हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मरजा तकलीद हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा शेख मुहम्मद इस्हाक फ़य्याज़ ने हौज़ा इल्मिया के अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख और सदस्यों के साथ एक बैठक में हौज़ा उलमिया के महत्व का उल्लेख किया और कहा: शिया धर्म का प्रचार और प्रकाशन हौज़त इल्मिया द्वारा किया गया है और हौज़त ने उपदेशकों को प्रचार के लिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भेजा है।

उन्होंने क़ुम और मशहद के महत्व और स्थिति का उल्लेख किया और कहा: इस युग में, विद्वानों के खिलाफ प्रचार बढ़ गया है और विद्वानों को अकेला छोड़ दिया गया है। मुझे डर है कि क़ोम और मशहद को नुकसान होगा, क़ोम और मशहद तक न पहुँचें। बहुत महत्वपूर्ण है और मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर ज्ञान के इन क्षेत्रों को बुराई और आपदाओं से बचाए।

आयतुल्लाह इस्हाक़ फय्याज ने इजराइल के वित्तीय और सैन्य समर्थन का उल्लेख करते हुए कहा: यदि अरब देश इजराइल के साथ संबंध तोड़ लें तो यह बहुत बेहतर होगा, लेकिन वे अमेरिका से डरते हैं।

इस मरजा तकलीद ने अपने शिक्षक हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा खूई का उल्लेख किया और कहा: आदरणीय शिक्षक बहुत धैर्यवान थे, भले ही कई लोगों ने उनकी सयादत से इनकार किया, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा और धैर्य रखा।

उन्होंने आगे कहा: यह केवल आयतुल्लाह खूई के धैर्य के कारण है कि हौज़ा इल्मिया नजफ़ आज भी बना हुआ है। उनके जीवन के अंत में, नजफ़ में छात्रों की संख्या लगभग 600 थी, लेकिन आज, अल्हम्दुलिल्लाह, हजारों छात्र नजफ़ में पढ़ रहे हैं।

ज़ायोनी सैनिकों ने एक बार फिर सहायता सामग्री लेने के लिए लाइन में खड़े फ़िलिस्तीनियों पर गोलियां बरसा दीं

अल-मयादीन टीवी चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक़, बुधवार को ग़ज़ा पट्टी के दक्षिण में मानवीय सहायता लेने का इंतज़ार करने वालों पर ज़ायोनी सैनिकों ने फ़ायरिंग कर दी, जिसमें कई लोग ज़ख़्मी हो गए।

इससे पहले भी कई बार ज़ायोनी सैनिकों ने यह अपराध किया है और पिछले हफ़्ते सहायता प्राप्त करने के लिए लाइन में लगे फ़िलिस्तीनियों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर कम से कम 115 लोगों का नरसंहार कर दिया था।

इस घटना की दुनिया भर में व्यापक आलोचना हुई थी, लेकिन फिर भी ज़ायोनी सेना लगातार इस तरह के अपराधों को अंजाम देने से बाज़ नहीं आ रही है।

इस बीच, ज़ायोनी सेना ने एक बार फिर ग़ज़ा पट्टी पर अपने हवाई हमलों में वृद्धि कर दी है। मंगलवार को ज़ायोनी लड़ाकू विमानों ने मध्य ग़ज़ा स्थित अल-नसीरात कैम्प पर बम बरसाए।

आवासीय इलाक़ों पर ज़ायोनी सेना की बमबारी में कई फ़िलिस्तीनी नागरिक शहीद और ज़ख़्मी हो गए।

अर्दोग़ान का कहना है कि इस्राईल को फ़िलिस्तीनियों के ख़ून का हिसाब देना होगा। रजब तैयब अर्दोग़ान कहते हैं कि पश्चिम के असीमित समर्थन के साथ बहुत ही स्पष्ट ढंग से नेतनयाहू, फ़िलिस्तीनियों का जातीय सफाया कर रहा है।

तुर्किये के राष्ट्रपति के अनुसार अत्याचारग्रस्त फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध अपराध में लिप्त नेतनयाहू और उसके सहयोगी, क़ानून और मानव के विवेक के सामने उत्तरदाई है जिन्हें फ़िलिस्तीन में गिरने वाले हर ख़ून के क़तरे का जवाब देना होगा।

फ़िलिस्तीन की तथाकथित स्वशासित सरकार के प्रमुख महमूद अब्बास के साथ भेंट में अर्दोग़ान ने कहा कि फ़िलिस्तीन मामले का स्थाई समाधान, एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी देश का गठन है जिसकी राजधानी पूर्वी बैतुल मुक़द्द हो।  उन्होंने कहा कि यह बात अब पूरी तरह से स्पष्ट है कि जबतक फ़िलिस्तीन मुद्दे का न्यायपूर्वक समाधान न किया जाए, मध्यपूर्व में शांति की स्थापना संभव नहीं है।

तुर्किये के राष्ट्रपति का कहना है कि ग़ज़्ज़ा में जनसंहार और जातीय सफाए के आरोप में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में अवैध ज़ायोनी शासन के विरुद्ध केस चला लेकिन वह अब भी खुलकर फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार में व्यस्त है।  अर्दोग़ान कहते हैं कि तुर्किये पहले भी फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करता रहा है और उनके कल्याण के लिए वह आगे भी अपने समर्थन और सहायता को जारी रखेगा।

ईरान के पूर्व विदेशमंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने कहा है कि अमेरिका यमनियों का मुकाबला नहीं कर पा रहा है।

मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने कहा है कि अमेरिका ने इस साल 780 अरब डालर सैन्य बजट विशेष किया और दुनिया की सबसे बड़ी सैनिक ताकत है फिर भी वह यमनियों से नहीं निपट पा रहा है। उन्होंने कहा कि दुनिया के राजनेताओं की बुनियादी मुश्किल समझ में गलती है और उसी गलती के कारण अपरिहार्य क्षति का सामना करना पड़ता है और ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले हम विश्व की दो ध्रुवीय व्यस्था में ज़िन्दगी गुज़ारते थे जिसका परिप्रेक्ष्य थोड़ा- बहुत स्पष्ट था और राजनेता भी किसी सीमा तक भविष्यवाणी कर सकते थे।

इस आधार पर दो ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में गलतियां व भूल कम थीं यहां तक कि गुट निरपेक्ष आंदोलन में कुछ देश पूर्वी ब्लाक के समर्थक थे जबकि कुछ दूसरे पश्चिमी ब्लाक से संबंधित थे और नीति स्पष्ट थी। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि ईरान में इस्लामी क्रांति के सफल होने से दो ध्रुवीय व्यवस्था समाप्त हो गयी और कोई पार्टी व देश दोनों में से किसी एक ब्लाक से विशेष नहीं रहा और लोगों का नेता वह था जो पूरब और पश्चिम के मुकाबले में डट गया।

ईरान के पूर्व विदेशमंत्री ने कहा कि परमाणु वार्ता के पहले दिन ही हमने पश्चिमी पक्षों से कहा कि सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव हमें कबूल नहीं है। हमारी यह बात फ्रांस के विदेशमंत्री को अखर गयी। मैंने कहा कि आपको हर्जाना भी देना चाहिये क्योंकि आठ साल ईरान- इराक युद्ध के दौरान आपने सद्दाम को हथियारों और युद्धक विमानों से लैस किया।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि जब ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. ने गोर्बाचौफ को खत लिखा और इस बात का एलान किया कि कम्यूनिज़्म खत्म हो रहा है यह उस वक्त की बात थी कि जब पूर्व सोवियत संघ के पास बहुत अधिक हथियार था और जब ईरान- इराक युद्ध चल रहा था तो उस वक्त सुरक्षा परिषद के समस्त सदस्य देश इस बात पर एकमत थे कि यह जंग ईरान के हित में खत्म नहीं होनी चाहिये। वे सोचते थे कि एक हफ्ते में हम खत्म हो जायेंगे और उसके समस्त सदस्य यहां तक कि पूर्व सोवियत संघ का भी यही विश्वास था।

ईरान के पूर्व विदेशमंत्री ने कहा कि सुरक्षा परिषद के पहले प्रस्ताव में नहीं चाहते थे कि इराक ईरान की भूमि से निकल जाये परंतु दुनिया बदल गयी है अब अमेरिका यमनियों से नहीं निपट पा रहा है, इस्राईल ने गज्जा पट्टी को लगभग पूरी तरह तबाह कर दिया है और उसके पास कम से कम 200 परमाणु बम हैं किन्तु फिलिस्तीनी लोगों को इतना अधिक नुकसान पहुंचाने के बावजूद वह इस कल्पना व मिथक को ज़िन्दा नहीं कर पा रहा है कि इस्राईल अजेय है।

बहरहाल जानकार हल्कों का मानना है कि इस्राईल कभी भी न तो अजेय था और न है बल्कि उसने जानबूझकर स्वयं के अजेय होने का दुष्प्रचार कर रखा था ताकि कोई उससे लड़ने का साहस न कर सके।

तालेबान की सरकार के सेना प्रमुख ने अमरीकी क्रियाकलापों की कड़ी आलोचना की है।

तालेबान इस बात को लेकर काफ़ी नाराज़ हैं कि अमरीकी विमान, अफ़ग़ानिस्तान की वायुसीमा का उल्लंघन कर रहे हैं।

तालेबान की सरकार में सेना प्रमुख का पद संभालने वाले क़ारी फ़सीहुद्दीन फ़ितरत ने बताया है कि अफ़ग़ानिस्तान की वायुसीमा अब भी अमरीकी अतिक्रमण का शिकार है।  उन्होंने कहा कि अमरीका के चालक रहित विमान, आए दिन अफ़ग़ानिस्तान की वायुसीमा का उल्लंघन करते रहते हैं।

फ़सीहुद्दीन ने किसी भी देश का नाम लिए बिना कहा कि अमरीकी विमान हमारे एक पड़ोसी देश की सीमा से अफ़ग़ानिस्तान की वायुसीमा में प्रविष्ट होते हैं।  इस घटना से पहले तालेबान सरकार में विदेश उपमंत्री के पद पर आसीन शीर मुहम्मद ने भी शिकायत की थी कि अमरीका के चालक रहित विमान, सामान्यतः अफ़ग़ानिस्तान की वायु सीमा का उल्लंघन करते रहते हैं जिनको रोका जाना चाहिए।

याद रहे कि बीस वर्षों तक अफ़ग़ानिस्तान में अवैध रूप से विराजमान रहने के बाद अमरीका को बहुत ही बेइज़्ज़त होकर अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान से वापस जाना पड़ा था।  अफ़ग़ानिस्तान से विदित रूप में वापस जाने के बावजूद अमरीका अब भी इस देश का पीछा नहीं छोड़ रहा है।  इस बात की अक्सर रिपोर्टें आती रहती हैं कि किसी न किसी बहाने अमरीका, अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहता है।

 

 

ओआईसी का कहना है कि अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के आदेश को लागू करवाने के लिए ज़ायोनी शासन पर दबाव बनाया जाए।

इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी के महासचिव ने मांग की है कि इस्राईल के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार के बारे में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के आदेश को लागू करवाने के लिए विश्व के देशों को अवैध ज़ायोनी शासन पर दबाव डालना चाहिए।

हुसैन इब्राहीम ताहा ने कहा कि ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनियों के हमलों में लगातार वृद्धि हो रही है।  यह शासन, सारे ही अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करते हुए फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध मानवता विरोधी अपराध कर रहा है।  फ़िलिस्तीनी पलायनकर्ताओं की सहायता करने वाली संस्था की अमरीका सहित कुछ पश्चिमी देशों की ओर से सहायता रोके जाने की ओआईसी महासचिव ने कड़ी निंदा की।  उन्होंने कहा कि यह काम वास्तव में फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध एक षडयंत्र जैसा है।

सऊदी अरब के जद्दा नगर में फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर आयोजित होने वाली ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में दक्षिण अफ्रीका की ओर से इस्राईल की निंदा के लिए तैयार किये गए प्रस्ताव का समर्थन करते हुए इस अवैध शासन को दंडित किये जाने की मांग की गई।

सात अक्तूबर वाले अलअक़सा तूफ़ान नामक आपरेशन से बौखलाए ज़ायोनी शासन ने ग़ज्ज़ा पर हमलें आरंभ कर रखे हैं जो लगभग पिछले पांच महीनों से जारी हैं।  इन हमलों में अबतक 30500 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं जबकि घायल फ़िलिस्तीनियों की संख्या लगभग 72 हज़ार हो चुकी है।