
رضوی
गैर-मुसलमान द्वारा शारजाह प्रदर्शनी की "कुरान कहानियों" का स्वागत
शारजाह इंटरनेशनल बुक फेयर, भारतीय प्रकाशन के बुकस्टोर में अरबी, अंग्रेजी और हिंदी में "द स्टोरीज ऑफ़ द कुरान" और "पैगंबर के साथ 365 दिन" किताबों के पेश होने का गवाह बना।
प्रदर्शनी में भारतीय प्रकाशकों में से एक ने कहा: "ये किताबें हिंदी और अंग्रेजी में प्रकाशित हुई हैं, और इन पुस्तकों का भी मुसलमानों के अलावा गैर-मुस्लिमों द्वारा स्वागत किया गया है।
इस प्रकाशक ने कहा: शारजाह के अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में और इसी तरह भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में कुरानी कहानियों गैर-मुसलमानों ने अभूतपूर्व स्वागत किया है और पुस्तक प्रकाशित होने के बाद दो साल दौरान दो मिल्युन प्रतियां बेची गई हैं।
उन्होंने कहा कि किताब " पैगंबर (स.व.) के साथ 365 दिन " का भी गैर-मुस्लिमों ने अभूतपूर्व स्वागत किया गया और लगभग 20,000 प्रतियां बेची गई हैं।
साथ ही, 77 देशों के 1874 प्रकाशकों के साथ "द स्टोरी ऑफ लेटर्स" नामक शारजाह का 37वां अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला बुधवार, 31अक्टूबर से शुरू हुआ और आज, 11 नवंबर को समाप्त होगय।
अमीरात महिला कुरान प्रतियोगिताओं में ईरान के प्रतिनिधि का निष्पादन समय
अंतर्राष्ट्रीय कुरआनी समाचार एजेंसी ने Emirati के अल-बायान वेबसाइट का हवाला देते हुए बताया कि आज तीसरी अंतर्राष्ट्रीय महिला अमीरात कुरान तियोगिताके सातवें दिन, ईरान से ज़हरा खलीली समरिन, मोरक्को से साकिना अल-मुग़ाज़ी, अफगानिस्तान से सफुरिया अब्दुल रहीम काजी, इंडोनेशिया से इस्तेक़ामा सलमीन राना,मैमुना लो सेनेगल और आएशा कमारा कैमरून गिना से एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करेंग़ें।
टूर्नामेंट के प्रतिभागी के बीच दुबई अंतर्राष्ट्रीय कुरान पुरस्कार संस्कृति और विज्ञान क्लब में आयोजित की जाएग़ी।
उल्लेखनीय है कि तीसरी अंतर्राष्ट्रीय अमीरात महिला कुरान प्रतियोगिता पुरे कुरआन के हिफ्ज़ के क्षेत्र में हुआ जो रविवार 4 नवंबर से 63 देशों की भागीदारी के साथ शुरू हुआ था और 16 नवंबर तक जारी रहेग़ा। टूर्नामेंट पिछले शुक्रवार (9 नवंबर) को बंद कर दिया गया था और इसकी गतिविधियों को कल (10 नवंबर) फिर से शुरू किया गया था।
अगर जेहाद व शहादत की भावना व्यापक हो जाए तो पूरब और पश्चिम की ओर झुकाव समाप्त हो जाएगाः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अगर जेहाद व शहादत की भावना व्यापक हो जाए तो पूरब और पश्चिम की ओर झुकाव समाप्त हो जाएगा।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पश्चिमी ईरान के क़ज़वीन प्रांत के शहीदों के बारे में सम्मेलन के आयोजनकर्ताओं से मुलाक़ात में, कहा है कि शहादत और जेहाद की भावना, अन्य सभी रुझानों को समाप्त कर देती है। यह मुलाक़ात पांच नवम्बर को हुई थी और इसमें वरिष्ठ नेता के संबंधोन को रविवार को क़ज़वीन में सम्मेलन के दौरान प्रसारित किया गया। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शहीदों को देश में आध्यात्मिक जीवन की रौनक़ और वास्तविक लक्ष्यों की ओर क़दम बढ़ते रहने का कारण बताया और कहा कि शहीद, अपने जीवन में अपने शरीर व आत्मा के साथ इस्लाम की सेवा करता है और शहादत के बाद आध्यात्मिक वातावरण पैदा करके इस्लामी समाज की सेवा करता है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने शहीदों की आवाज़ को ईश्वर से प्रेरित बताया और कहा कि शहीदों को श्रद्धांजली अर्पित करने से जागृत और सचेत करने वाली उनकी यह आवाज़ सभी के कानों तक पहुंच जाती है और हृदयों को बदल देती है। इसी आधार पर अगर अगर जेहाद व शहादत की भावना फैल जाए तो पूरब और पश्चिम और कुफ़्र व नास्तिकता की ओर झुकाव समाप्त हो जाएगा। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शहीदों की याद मिटाने और उनके महान काम में त्रुटि निकालने का प्रयास करने वालों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यद्यपि इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गए युद्ध की समाप्ति को 30 साल हो चुके हैं लेकिन शहीदों को न केवल यह कि भुलाया नहीं जा सकता बल्कि वे दिन प्रति दिन समाज में जीवित होते जा रहे हैं क्योंकि वे आदर्श और रोल माॅडल हैं।
ईरान के तेल ख़रीदारों में चीन पहले नंबर पर
चीन ईरान का पहला व्यापारिक साझेदार है और ईरान से प्रति वर्ष 15 बिलियन अमरीकी डॉलर का तेल ख़रीदता है, जबकि चीनी अधिकारियों के मुताबिक़, उनका देश आज भी ईरानी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार माना जाता है।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार चीन हमेशा से ईरान के ऊर्जा बाज़ार को अपने तेल की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में देखता आया है। चीनी सरकार इस बात को भलीभांती जानती है कि घरेलू व्यापार के विकास के स्तर को बनाए रखने के लिए उसका ईरान के ऊर्जा स्रोतों तक पहुंच बनाए रखना आवश्यक है। चीनी अधिकारियों ने इस्लामी गणतंत्र ईरान को ऊर्जा के मामले में दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली देश क़रार दिया है। चीनी अधिकारी मानते हैं कि तेल के उत्पादन से संबंधित ईरान की दिन प्रतिदिन बढ़ती क्षमता और शक्ति को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
चीन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 के बाद चीन द्वारा ईरान से उत्पाद ख़रीद में महत्वपूर्ण वृद्धि देखने में आई है जबकि पिछले दो वर्षों में चीन ने कुल मिलाकर 5 लाख 30 हज़ार से 6 लाख 55 हज़ार बैरल कच्चा तेल ईरान से लिया है। हाल ही में अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद, चीन को ईरान से तेल लेने में छूट मिली है, इसलिए यह आशा भी व्यक्त की जा रही है कि चीन की तेल कंपनियां ईरान से तेल ख़रीद में और अधिक बढ़ोतरी करेंगी।
इस बीच चीनी अधिकारियों और अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान और चीन के बीच मौजूद व्यापारिक संबंधों पर किसी भी तरह के दबाव से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, विशेष रूप से तेहरान और बीजिंग के बीच ऊर्जा के क्षेत्र में एक दूसरे का सहयोग हमेशा जारी रहेगा और इसपर किसी भी तरह के प्रतिबंधों का असर नहीं पड़ने वाला है।
नोटबंदी की दूसरी सालगिरह पर प्रदर्शनों का आयोजन
भारत में नोटबंदी लागू हुए आज दो वर्ष पूरे हो गए जिस असवसर पर विपक्षी दल प्रदर्शनों के लिए तैयार हैं।
नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने नोटबंदी के फैसले को फिर ग़लत बताया है। ममता बनर्जी ने ट्वीट करके नोटबंदी के फैसले को ग़लत ठहराया है। ममता ने ट्वीट में लिखा है कि 'नोटबंदी आपदा की आज दूसरी सालगिरह है। उन्होंने लिखा है कि नोटबंदी के लागू करने के वक्त मैंने इसके दुष्परिणाम बताए थे। उनका कहना है कि अब प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, आम लोग और विशेषज्ञ सभी मेरी कही बातों पर सहमति जता रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी ने लिखा है कि सरकार ने देश को धोखा देकर नोटबंदी घोटाला किया था। इसने भारत की अर्थव्यवस्था और लाखों लोगों के जीवन को बर्बाद कर दिया। ममता बनर्जी का कहना है कि जिन्होंने ऐसा किया है जनता उन्हें दंडित करेगी।
ज़ी न्यूज़ के अनुसार दूसरी ओर भारत के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने नोटबंदी की सालगिरह पर देशभर में विरोध प्रदर्शन करने का फैसला लिया है। कांग्रेस ने कहा है कि नोटबंदी के दो साल होने पर वह शुक्रवार को राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेगी। पार्टी ने कहा है कि अर्थव्यवस्था को बर्बाद और तहस-नहस करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोगों से माफी मांगनी चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि दो साल पहले नोटबंदी के तुगलकी फरमान से देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह करने के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने के लिए कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर उतरेंगे।
मनीष तिवारी ने कहा कि दो साल पहले आठ नवंबर को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए तकरीबन 16.99 लाख करोड़ रूपये मूल्य की मुद्रा को चलन से बाहर कर दिया। उस तुगलकी फरमान के लिए तीन कारण दिए गए थे कि इससे काले धन पर रोक लगेगी, जाली मुद्रा बाहर होगी और आतंकवाद को वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाएगी लेकिन दो साल बाद इनमें से कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया।
तिवारी ने कहा कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था में आठ नवंबर 2016 की तुलना में चलन में ज्यादा नकदी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस, आठ नवंबर 2018 को मांग करेगी कि भारतीय अर्थव्यस्था को बर्बाद तथा तहस-नहस करने के लिए प्रधानमंत्री को देश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। . यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रदर्शन में हिस्सा लेंगे, उन्होंने कहा कि सभी नेता और कार्यकर्ता हिस्सा लेंगे.
ज्ञात रहे कि 8 नवंबर सन 2016 को स्थानीय समय के अनुसार रात आठ बजे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टीवी चैनलों और रेडियो के माध्यम से ऐलान किया था कि उस समय से 500 तथा 1000 रुपयों के नोट चलने से बाहर हो जाएंगे। मोदी का कहना था कि इन नोटों की जगह नए नोट लाए जाएंगे। इसके बाद भारत में पुराने नोटों को बैंकों में जमा कराने के लिए अफरातफरी मच गई थी। भारत सरकार को यह अनुमान था कि नोटबंदी के फैसले से भारत का काला धन सामने आ जाएगा, हालांकि आरबीआई के आकंड़े मुताबिक ऐसा नहीं हुआ। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में कहा था कि नोटबंदी का सीधा असर जीडीपी पर पड़ेगा, जो बाद के दिनों में सही साबित हुआ।
जब ईरान ने पहली बार अमरीका की नाक रगड़ी
तेहरान के जुमे के इमाम ने कहा है कि दुनिया में अमरीका की शक्ति क्षीण हो रही और इस देश के ख़िलाफ़ दुनिया के राष्ट्रों की नफ़रत बढ़ रही है।
तेहरान के जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने, 4 नवंबर की रैली और तेहरान में अमरीकी जासूसी के अड्डे पर नियंत्रण की वर्षगांठ की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस्लामी क्रान्ति ने पहली बार दुनिया में अमरीका की नाक रगड़ी और विश्व शक्ति के रूप में इस देश के आधिपत्य को तोड़ दिया।
उन्होंने ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ पिछले 40 साल से अमरीकी धमकी व पाबंदियों की ओर इशारा करते हुए कहाः "इन अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों की वजह से ईरानी राष्ट्र वैज्ञानिक, सैन्य और राजनैतिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर हुआ और साथ ही क्षेत्र में उसका प्रभाव बढ़ा है।"
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि पिछले 40 साल में अमरीका ईरानी राष्ट्र के मुक़ाबले में हारा है, कहा कि ईरान के ख़िलाफ़ अमरीकी दुष्प्रचारों का कोई असर नहीं है और अब दुनिया भर में अमरीका से नफ़रत बढ़ रही है।
जुमे के इमाम ने इसी तरह बहरैन में सबसे बड़े विपक्षी दल अलवेफ़ाक़ के महासचिव शैख़ अली सलमान को आले ख़लीफ़ा शासन की दिखावटी अदालत की ओर से उम्र क़ैद की सज़ा सुनाए जाने के फ़ैसले की आलोचना करते हुए, इसे आले ख़लीफ़ा शासन की काली करतूतों की संज्ञा दी।
ईरान-भारत के बीच चाबहार बंदरगाह के संबंध में अहम बैठक
ईरान-भारत ने चाबहार बंदरगाह में पूंजिनिवेश और दोनों देशों के समुद्री व बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के मार्गों की समीक्षा की।
इरना के अनुसार, ईरान के जहाज़रानी व बंदरगाह विभाग के प्रबंधक निदेशक मोहम्मद रास्ताद ने भारत के अपने दो दिवसीय दौरे पर इस देश के जहाज़रानी मंत्रालय के सचिव और मुख्य बंदरगाहों के निदेशकों से बातचीत की।
मोहम्मद रास्ताद और भारतीय बंदरगाहों के निदेशकों के साथ बैठक में दोनों देशों के बीच समुद्री व बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग में विस्तार तथा ईरान की चाबहार बंदरगाह के पहले फ़ेज़ में भारतीय कंपनी आईपीजीएल के साथ हुए समझौते की समीक्षा हुयी।
दोनों पक्षों ने चाबहार बंदरगाह के कन्टेनर टर्मिनल में भारतीय कंपनी द्वारा उपकरणों की ख़रीदारी के मामले को अंतिम रूप देने के बारे में बातचीत की और ईरान, भारत व अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों की उपस्थिति में त्रिपक्षीय चाबहार ट्रान्ज़िट सहमतिपत्र को लागू करने के लिए पहली बैठक के आयोजन पर बल दिया।
चाबहार ओमान सागर के उत्तरी छोर पर स्थित ईरान की अहम बंदरगाह है। यह बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र तक पहुंच और अपनी रणनैतिक स्थिति के मद्देनज़र क्षेत्र के देशों के साथ ईरान के व्यापारिक लेन-देन में विशेष अहमियत रखती है।
ईरान, डरने वाला देश नहीं हैः मुस्लिम अमरीकी धर्मगुरु
मरीका के मुस्लिम धार्मिक नेता और उम्मते इस्लामी आंदोलन के प्रमुख लुईस फ़रा ख़ान ने कहा कि अमरीका कभी भी लोकतांत्रिक देश नहीं रहा बल्कि उसने हमेशा पूंजीपतियों और शक्तिशाली वर्ग का समर्थन किया है।
अमरीका के मुस्लिम धार्मिक नेता लुईस फ़रा ख़ान ने तेहरान विश्वविद्यालय की पोलेटिकल साइंस संकाय में एक गोल मेज़ काफ़्रेंस में कहा कि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के दौर में अमरीका इस समय दुनिया पर अपने वर्चस्व से वंचित होता जा रहा है।
उन्होंने इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाओं को प्राप्त स्वतंत्रता का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान में महिलाओं को यह स्वतंत्रता एक ऐसे समय में मिली हुई है कि जब अमरीका और यूरोप में महिलाओं को पुरुषों के खिलौने और मनोरंजन की वस्तु के रूप में देखा जाता है और उनका शोषण किया जाता है।
लुईस फ़रा ख़ान ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि ईरानी जनता को इस बात का प्रयास जारी रखना चाहिए कि वह दुनिया के बेहतरीन राष्ट्र के रूप में पहुचाने जाते हैं, कहा कि अमरीका केवल धोखा देने के लिए वचन देता है किन्तु उसके जवाब में ईरानी जनता को चाहिए कि वह देश के भीतर और बाहर एकजुट रहें।
अमरीका के उम्मते इस्लामी आंदोलन के नेता लुईस फ़रा ख़ान ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि वाशिंग्टन केवल मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने का प्रयास करता है, कहा कि यमन में कुछ अरब देशों के पाश्विक हमलों पर अमरीका की चुप्पी की वजह, हमलावर अरब देशों को अरबों डॉलर के हथियार बेचने और इस्राईल के साथ इन अरब देशों के संबंधों को अधिक से अधिक बेहतर बनाना है।
उनका कहना था कि अमरीका और इस्राईल को आज सबसे अधिक भय इस्लामी गणतंत्र ईरान से है क्योंकि वह जानते हैं कि यदि ईरान के विरुद्ध युद्ध छिड़ा तो ईरान पीछे हटने वाला नहीं है।
ईरान लगातार शक्तिशाली हो रहा है जबकि अमरीका पतन की ओर उन्मुख हैः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि विशेषज्ञों का मानना है कि अमरीका अब पतन की ओर अग्रसर है जबकि प्रेरणा, कार्य की भावना और अपने प्रिय युवाओं के प्रयास से ईरानी राष्ट्र का भविष्य पहले से अधिक उज्वल है।
ईरान के हज़ारों छात्रों ने शनिवार को तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से भेंट की। इन छात्रों ने विश्व वर्चस्ववाद के विरुद्ध राष्ट्रीय संघर्ष दिवस से एक दिन पहले वरिष्ठ नेता से भेंट की है।
इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने पिछले 40 वर्षों के दौरान ईरान के विरुद्ध अमरीकी षडयंत्रों की विफलता की ओर संकेत करते हुए कहा कि छात्रों के हाथों, जासूसी का अडडा बने अमरीकी दूतावास का परिवेष्टन, वास्तव में अमरीका के मुंह पर ईरानी राष्ट्र का तमाचा था। उन्होंने कहा कि संसार के बहुत से विशेषज्ञों, समाजशासत्रियों एवं राजनेताओं का मानना है कि अमरीका की "साफ्ट पाॅवर" कमज़ोर होती जा रही है। वरिष्ठ नेता का कहना था कि दूसरे देशों पर अपनी मर्ज़ी थोपने की अमरीकी नीति लगभग निष्कृय हो चुकी है। उन्होंने कहा कि अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति के सत्ता संभालने के साथ ही इसमें बहुत गिरावट आई है। अब तो स्थिति यह हो गई है कि संसार के बहुत से देश और राष्ट्र, खुलकर अमरीकी फैसलों का विरोध करने लगे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अमरीका की निरंतर कम होती शक्ति की ओर क्षेत्रीय देशों का ध्यान केन्द्रित करवाते हुए कहा कि वे लोेग जो अमरीका के समर्थन से फ़िलिस्तीन के मामले को हमेशा के लिए समाप्त करवाना चाहते हैं उनको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अमरीका अपने ही क्षेत्र में पिछड़ता जा रहा है जबकि क्षेत्रीय राष्ट्र और उनकी वास्तविकताएं बाक़ी रहेंगी।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले चार दशकों से ईरान के विरुद्ध अमरीकी प्रतिबंधों का मुख्य लक्ष्य, ईरान को हर हिसाब से नुक़सान पहुंचाना और उसके विकास को बाधित करना रहा है। उन्होंने कहा कि ईरान के विरुद्ध आर्थिक युद्ध में भी अमरीका को पराजय का ही मुंह देखना पड़ा है क्योंकि अमरीका की इच्छा के विरुद्ध ईरान, बहुत तेज़ी से स्वावलंबन की ओर बढ़ा है। वर्तमान समय में ईरान के हज़ारों युवा देश के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस प्रश्न के उत्तर में कि,अमरीका के विरुद्ध ईरानी राष्ट्र का प्रतिरोध कबतक जारी रहेगा, कहा कि जब अमरीका अपनी वर्चस्ववादी नीति को छोड़ देगा तो संसार के अन्य देशों की भांति उसके साथ भी सहयोग किया जा सकता है किंतु एेसा होना संभव दिखाई नहीं देता। इसका कारण यह है कि वर्चस्व की प्रवृत्ति ही ज़ोर-ज़बरदस्ती और दूसरों पर धौंस जमाने पर आधारित होती है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल देकर कहा कि वर्तमान समय में इस्लामी गणतंत्र ईरान ही एेसा देश है जिसके फैसलों में अमरीका की लेशमात्र इच्छा शामिल नहीं होती। वरिष्ठ नेता का कहना था कि यह वास्तव में अमरीका की पराजय के अर्थ में है।
इमाम हुसैन के चेहलुम के अवसर पर “मिलयन मार्च” न केवल ज़रूरी बल्कि वाजिब है!
सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ मुफ़्ती ने कहा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर निकलने वाला मिलयन मार्च न केवल “मुस्तहब” है बल्कि अधिक संभव है कि “वाजिब” हो।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के अवसर पर निकलने वाले मार्च के बारे में कहते हैं कि “यह मिलयन मार्च, एकता और आध्यात्मिकता के लिए अमूल्य है और न केवल सुन्नी मुसलमानों के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा बेहतरीन कार्य है जिसमें भाग लेना संभव है कि सभी मुसलमानों के लिए वाजिब हो और हर वर्ष इस महारैली में सुन्नी मुसलमानों की बढ़ती संख्या प्रशंसनीय है।”
तसनीम समाचार एजेंसी से बातचीत करते हुए सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर ने कहा कि गत वर्ष उन्हें भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ था कि वह इस भव्य चेहुलम मार्च का हिस्सा बनें और अब दिल यही करता है कि ऐसी एकता और आध्यात्मिकता की महारैली का हर वर्ष भाग बनें। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और अन्य इमामों एवं पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों का दर्शन करने के संबंध में इस्लाम की मुख्य पुस्तकों में बहुत अधिक बल दिया गया है। मुफ़्ती रज़्ज़ाक़ ने कहा कि, यह सभी जानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों से मोहब्बत करना हर मुसलमान पर वाजिब अर्थात अनिवार्य है।
वरिष्ठ मुफ़्ती अब्दुल रज़्ज़ाक़ रहबर ने कहा कि सुन्नी मुसलमानों के लगभग सभी बड़े धर्मगुरुओं और मुफ़्तियों ने इमाम हुसैन (अ) की ज़यारत अर्थात दर्शन करने को मुस्तहब बताया है। उन्होंने कहा कि ऐसे भी बहुत से सुन्नी धर्मगुरू थे और हैं जिन्होंने इमाम हुसैन (अ) की ज़यारत को वाजिब अर्थात अनिवार्य बताया है। उन्होंने कहा कि हमें चाहिए कि ऐसे आध्यात्मिक समारोह से लाभ उठाएं और इस मिलयन मार्च का भाग बनें। मुफ़्ती रज़्ज़ाक़ ने कहा कि यह एक अच्छा अवसर है कि जब हम दुश्मनों की साज़िशों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए हम यह दिखा सकते हैं कि शिया और सुन्नी दोनों भाई हैं। उन्होंने कहा कि आज मुसलमानों के दुश्मनों की नज़र पवित्र नगर करबला की ओर जाने वाले इस भव्य मिलयन मार्च की तरफ़ है और यह देखकर उनके होश उड़े हुए हैं कि कैसे इस मार्च में शिया-सुन्नी मुसलमान हाथ में हाथ दिए आगे बढ़ रहे हैं।