رضوی

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एक कथन के अनुसार यह दिन, पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र, इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस है। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बेटे हैं जो कर्बला की महात्रासदी में मौजूद थे किंतु बीमारी के कारण उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया और ईश्वर ने उन्हें इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए जीवित रखा। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम को  सन 94 हिजरी क़मरी में उमवी शासक हिशाम बिन अब्दुलमलिक की साज़िश के अंतर्गत, ज़हर दे दिया गया  और वे शहीद हो गये।

 

इस्लामी इतिहास के आरंभ में जब ओहद नामक युद्ध के दौरान पैगम्बरे इस्लाम के माथे पर एक पत्थर लगा और खून बहने लगा तो उनके दुश्मनों ने शोर मचा दिया कि पैगम्बरे  इस्लाम मारे गये। इस अफवाह के फैलने से दुश्मन का हौसला बढ़ा और बहुत से मुसलमान निराश हो गये और मैदान छोड़ कर भाग गये और कुछ, दुश्मन के कमांडरों से बात चीत करने की जुगत में लग गये लेकिन इन गिने चुने लोगों के सामने वह मुसलमान खड़े हो गये जो यह पुकार पुकार कर कह रहे थे कि अगर मुहम्मद न भी रहें तो भी मुहम्मद का रास्ता और मुहम्मद का ईश्वर तो है, भागो न । कुरआने  मजीद के सूरए आले इमरान की आयत नंबर 144  में इस बारे में कहा गया हैः मुहम्मद, ईश्वरीय दूत के अलावा कुछ नहीं हैं, उनसे पहले भी रसूल आए तो क्या कोई अगर मर जाए या मार दिया जाए तो अतीत में चले जाओगे तो जो भी पीछे की तरफ जाएगा जो वह ईश्वर को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा पाएगा और ईश्वर जल्द ही शुक्र करने वालों को प्रतिफल देगा।

 

यह पीछे लौटने की जो स्थिति है वह पैगम्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद सामने आयी। इसी वजह से कर्बला की घटना हुई। निश्चित रूप से कर्बला कोई सैन्य विद्रोह नहीं था जो अचानक हो गया हो बल्कि यह घटना, आधी सदी पहले से आरंभ हुई थी और एेसी छोटी छोटी घटनाओं से आरंभ हुई थी जो मुसलमानों की नज़र में महत्वपूर्ण नहीं थीं लेकिन धीरे धीरे इन घटनाओं की गंभीरता बढ़ती गयी और धीरे धीरे पूरे समाज के लिए खतरा बन गयीं। यह स्थिति सन 61 हिजरी क़मरी में अपनी चरम पर पहुंच गयी थी जिसकी वजह से इस्लाम अपने अस्त के निकट पहुंचता प्रतीत हो रहा था। यही वजह थी कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आंदोलन चलाया और कर्बला की घटना हुई और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने बहत्तर साथियों के साथ शहीद हो गये। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के साथ ही इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम की इमामत का काल आरंभ हो गया।

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का काल इस्लामी इतिहास में अत्याधिक घुटन भरा और काला युग था। यद्यपि उस से पूर्व भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इस्लामी सरकार, सत्ता में मुआविया के पहुंचने से तानाशाही सरकार में बदल चुकी थी किंतु चौथे  इमाम इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का युग उससे पहले के युगों से इस लिए भिन्न था कि उनके काल में शासक, बिना किसी संकोच व लज्जा के इस्लामी आस्थाओं का अपमान करते और खुले रूप में इस्लामी सिद्धान्तों को पैरों तले रौंदते यद्यपि वे इस्लामी शासक कहे जाते थे । वे इतने अत्याचारी थे कि उनके भय से कोई तनिक भी आपत्ति का साहस नहीं करता था। मुआविया ने इस्लाम का रूप बिगाड़ने के लिए, पैगम्बरे इस्लाम के नाम पर कथन अर्थात हदीस गढ़ने के लिए पूरी एक टीम बनायी थी जो रात दिन यही काम करती थी। इसके साथ ही पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों पर आरोप लगाए जाते और पूरे इ्सलामी समाज में उनकी छवि खराब की जाती। इसके साथ ही मुआविया एेसे लोगों को महिमामंडन कराता जो कभी पैगम्बरे इस्लाम के निकट लोगों में शामिल ही नहीं रहे इस तरह से धीरे धीरे इस्लामी समाज में पैगम्बरे इस्लाम की दुश्मनी के बीज बोए गये जो धीरे धीरे बड़े वृक्ष में बदल गयी। पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों के विरुद्ध प्रचार की स्थित जानने के लिए आप का यही जान लेना काफी है कि लगभग 80 वर्षों तक इस्लामी जगत की हर मस्जिद के हर मेंबर से अर्थात जहां भी जुमा की नमाज़ पढ़ी जाती वहां जुमा के भाषण का एक हिस्सा निश्चित रूप  से हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बुरा भला कहने पर आधारित होता  था और यह हर इमामे जुमा का कर्तव्य था।

इन हालात में इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम के लिए लोगों के मार्गदर्शन का काम अत्याधिक कठिन था। सब से पहले उनके लिए आवश्यक था कि वह लोगों को पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों के बारे में बताएं और उन्हें पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम व श्रद्धा का पाठ सिखाएं। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम ने सब से पहले यज़ीद के दरबार में अपने बंधे हाथों के साथ जो भाषण दिया उसमें उन्होंने मुसलमानों के बचे हुए ईमान को ध्यान में रख कर अपनी बात आरंभ की। उस दौर में पथभ्रष्टता के बावजूद लोग काबे का सम्मान करते थे  और हर साल हज के अवसर पर उसकी परिक्रमा करते थे। इसी लिए उन्होंने अपनी बात वहीं से शुरु की।

 

इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम ने यज़ीद के दरबार में अपने भाषण का आरंभ अपने परिचय से किया  और अपने परिचय में बताया कि वह पैगम्बरे इस्लाम के बेटे हैं, वही पैगम्बर जिसके धर्म का तुम लोग अनुसरण कर रहे हो। इसके बाद इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपना परिचय इस प्रकार करायाः हे लोगोः मैं मक्के का सपूत और मेना का बेटा और ज़मज़म व सफा का लाल हूं।  मैं सबसे उत्तम इंसान का पुत्र हूं, मैं उसका बेटा हूं जिसे मेराज की रात मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक़सा ले जाया गया। मैं उसका बेटा हूं जिसने बड़े बड़े घमंडियों को नाक रगड़ने पर मजबूर कर दिया और उसका बेटा हूं जो पैगम्बरे इस्लाम के साथ दो तलवारों  और दो भालों से दुश्मनों के खिलाफ लड़ता था और जिसने दो पर बैअत की और दो बार पलायन किया और बद्र व हुनैन के युद्धों में नास्तिकों से युद्ध किया और उसका बेटा हूं जिसने पलक झपकने तक की अवधि  के लिए भी ईश्वर का इन्कार नहीं किया।

 

यज़ीद के दरबार में लोग आंखे फाड़ कर इमाम ज़ैनुलआबेदीन को देख रहे थे। इमाम ने आगे कहा मैं कुरैश क़बीले के सर्वश्रेष्ठ हस्ती का बेटा हूं और उसका बेटा हूं जिसने सब से पहले ईश्वर और उसके दूत के निमंत्रण को स्वीकार किया, काफिरों का सर्वनाश किया,जो ईश्वरीय ज्ञान का स्वामी था।इसके बाद इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम ने नाम लेना आरंभ किया और कहा कि हां वह मेरे दादा अली इब्ने अबी तालिब हैं , हसन व हुसैन के पिता । फिर कहा कि हां मैं जगत की सर्वश्रेष्ठ महिला फातिमा ज़हरा का बेटा हूं। यह सुन कर लोगों में हलचल मच गयी और अचेतना की उनकी नींद टूटने लगी किंतु वर्षों से सोए हुए लोगों को जगाना इतना आसान भी नहीं था।

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के काल में इस्लामी समाज विभिन्न प्रकार की वैचारिक व आस्था संबंधी पथभ्रष्टताओं में फंसा हुआ था। लोग, पैगम्बरे इस्लाम की सही शिक्षाओं और उनके परिजनों से दूर हो गये थे और उमवी शासन का प्रयास था कि उन्हें अनावश्यक मुद्दों में व्यस्त रखे। उमवी शासकों द्वारा भोग- विलास और निर्रथक खेलों को प्रचलित करने से भी इस्लामी समाज के लिए बहुत से खतरे पैदा हो गये थे। एश्वर्य पूर्ण जीवन उस काल में सामान्य सी बात हो गयी थी जबकि इस्लाम में इसकी कड़ी मनाही है। बहुत से लोगों ने अत्याधिक धन और संपत्ति जमा कर ली थी और उनके पास सैंकड़ों दास और दासियां थीं । उनमें बहुत सी दासियों को विशेष रूप से गाने बजाने के लिए प्रशिक्षित किया गया होता था। फिर धीरे धीरे यह चलन मध्यमवर्ग के लोगों में भी आम हो गया था और यज़ीद के शासन काल में यह चलन इतना आम हुआ कि इससे इस्लाम के लिए अत्याधिक पवित्र नगर, मक्का और मदीना भी अछूते नहीं रहे। प्रसिद्ध इतिहासकार, मसऊदी ने इस संदर्भ में लिखा है कि यज़ीद का भ्रष्टाचार और नैतिक पतन उसके आस पास रहने वालों को भी प्रभावित कर रहा था और उसके काल में मक्का और मदीना में गीत संगीत का चलन आम हुआ और गीत संगीत तथा शराब पीने के लिए विशेष बैठकों का आयोजन किया जाने लगा। गाने बजाने में दक्ष लोग दमिश्क से इ्सलामी नगरों में भेजे जाते और विलासता की महफिले सजतीं ।

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम एसी परिस्थितियों में मार्गदर्शन का कठिन काम कर रहे थे। उन्हें उस काल की संवेदनशील परिस्थितियों का भली भांति ज्ञान था इसी लिए उन्होंने मार्गदर्शन के लिए एसी शैली का चयन किया जिससे न केवल यह कि उन्होंने उमवी शासन में भुला दी जाने वाली इस्लामी शिक्षाओं को नवजीवन प्रदान किया बल्कि उसके प्रसार व प्रचार का वातावरण भी बनाया। उन्होंने विशेष शिष्यों को प्रशिक्षण देकर अपने विचारों और इस्लामी शिक्षाओं से लोगों को परिचित कराया और इस प्रकार से बाद में जाफरी मत से प्रसिद्ध होने मत के लिए भूमिका प्रशस्त की। उन्होंने शिष्यों के प्रशिक्षण के साथ ही दासों को इस्लामी ज्ञान देकर और फिर उन्हें स्वतंत्र करके भी समाज में इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार किया। जैसा कि इतिहासकारों ने उल्लेख किया कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने ईश्वर की राह में एक हज़ार दासों को स्वतंत्र किया। वे दासों को खरीदते थे और उन्हें शिक्षा दीक्षा देते। वह दास, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के साथ रह कर उनके जीवन से प्रभावित होते और जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम उन्हें स्वतंत्र करते तो वे एक सही धार्मिक व ज्ञानी मनुष्य में बदल चुके होते। जितने समय यह दास इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास रहते उसके दौरान वे इमाम से इतने निकट हो जाते कि जब इमाम उन्हें स्वतंत्र करते तो भी वे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास से जाना स्वीकार नहीं करते।

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने इसी प्रकार अपने युग के लोगों के मार्गदर्शन के लिए दुआ की शैली चुनी और दुआओं द्वारा समाज को शिक्षित किया और इ्सलामी मूल्यों से अवगत कराया। अन्ततः 35 वर्षों तक अथक संघर्ष के बाद उन्हें हेशाम बिन अब्दुल मलिक के उकसावे पर वलीद बिन अब्दुलमलिक ने विष दिलवा दिया और इसी विष से उनकी शहादत हो गयी। उनकी क़ब्र वर्तमान सऊदी अरब के मदीना नगर के जन्नतुल बक़ीअ क़ब्रिस्तान में है जहां उनके चचा इमाम हसन अलैहिस्सलाम की भी कब्र है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का पूरा जीवन संघर्ष दुखों और विपदाओं से भरा है किंतु इसके बावजूद एक क्षण के लिए भी वे मार्गदर्शन के अपने ईश्वरीय कर्तव्य को अनदेखा नहीं किया और पूरा जीवन समाज के मार्गदर्शन के लिए समर्पित कर दिया।

 

भारत और पाकिस्तान के बीच न्यूयार्क में होने वाली वार्ता फिलहाल टल गई है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की ओर से भारत के साथ वार्ता का प्रस्ताव दिये जाने के एक दिन बाद नई दिल्ली से इस रद्द कर दिया है।

भारत की ओर से एलान किया गया है कि न्यूयार्क में महासभा के वार्षिक अधिवेशन के दौरान पाकिस्तान के साथ कोई वार्ता नहीं की जाएगी।  यह एलान कश्मीर में छापामारों हाथों तीन भारतीय पुलिसकर्मियों की हत्या तथा एक भारतीय बीएसएफ जवान की मौत के बाद किया गया है।

ज्ञात रहे कि इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के पत्र का जवाब देते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के अधिवेशन में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात पर सहमति ज़ाहिर कर दी है।

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने मीडिया को बताया कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच मुलाक़ात संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के अधिवशेन के अवसर पर पारस्परिक रूप से तय की जाने वाली तारीख़ के अनुसार होगी।

प्रवक्ता ने कहा कि हमने अभी मुलाक़ात का एजेंडा तय नहीं किया है केवल मुलाक़ात पर सहमति ज़ाहिर की है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह मुलाक़त पाकिस्तान के संबंधा में भारत की नीति में बदलाव का इशारा नहीं है और न ही इसका लक्ष्य वार्ता प्रक्रिया की बहाली है।

 

तेहरान के इमामे जुमा मुहम्मद हसन अबूतोराबी फ़र्द ने कहा है कि करबला की घटना हमें सही जीवन व्यतीत करने का मार्ग बताती है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद हसन अबूतोराबी फ़र्द ने जुमे के ख़ुत्बे में कहा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, राष्ट्रों के लिए आदर्श हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को स्वाभिमान और स्वतंत्रता का पाठ दिया है।  उन्होंने कहा कि ईरान पर थोपे गए युद्ध के दौरान प्रतिरक्षा को हुसैनी आदर्श ने सुदृढ बनाया।  अबूतोराबी फ़र्द ने कहा कि इसी प्रतरक्षा ने लेबनान और इराक़ के प्रतिरोधकर्ताओं को हिम्मद दी जिसके सहारे उन्होंने वर्चस्ववाद का डटकर मुक़ाबला किया।

ज्ञात रहे कि ईरान में आज ग्यारह मुहर्रम है जबकि भारत और पाकिस्तान में शुक्रवार को दस मुहर्रम है।  उल्लेखनीय है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने करबला आन्दोलन को स्पष्ट करते हुए कहा था कि मेरा लक्ष्य अच्छाइयों को फैलाना और बुराइयों को रोकना तथा अत्याचार का मुक़ाबला करना है।  उन्होंने कहा था कि मैं पवित्र क़ुरआन और इस्लाम की सुरक्षा करना चाहता हूं।

 

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने इराक़ी कुर्दिस्तान में आतंकी संगठन के सरग़नाओं की बैठक पर पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स आईआरजीसी के मिसाइल हमले का हवाला देते हुए कहा कि इस कार्यवाही ने ईरान की इंटैलीजेन्स ताक़त का प्रदर्शन किया और यह क्षेत्रीय तथा क्षेत्र से बाहर के दुशमनों के लिए गंभीर वार्निंग है।

केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन काज़िम सिद्दीक़ी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि युद्ध और प्रतिबंधों से डर जाना आशूर की संस्कृति से विरोधाभास रखता है। उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र चालीस साल से आशूर के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है और वह बड़ी शक्तियों का मुक़ाबला करके उन्हें पराजित करता रहा है।

अल-नशरा न्यूज साइट के मुताबिक बताया कि पहली कुरानिक प्रदर्शनी "सोहुफ" के नाम से सोमवार 23 जुलाई को बेरूत के यूनिकोस पैलेस में शुरू होगी।
कुरान, प्रिंट और दुर्लभ और पुराने कुरानिक यंत्रों की पांडुलिपियां उन कार्यों में से हैं जो आगंतुकों द्वारा प्रदर्शित की जाएग़ी।
लेबनान की सर्वोच्च शिया संसद के सभापति शेख अब्दुल अमीर कोबलान कुरान प्रदर्शनी विशेष अतिथि हैं।

 

उस्मान खान अलीम एफ़ मुफ्ती और उज़्बेकिस्तान के मुस्लिम बोर्ड के प्रमुख ने घोषणा कीः2018 की शुरुआत के बाद से जुलाई तक उजबेकिस्तान में 13 नई मस्जिदों ने अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं और इस कुल में से केवल "सरख़ानदरया" प्रांत में सात नई मस्जिदें स्थापित की गई हैं।
 
उजबेकिस्तान में ईरानी सांस्कृतिक सलाहकार ने इस घोषणा के साथ कहा: मुफ़्ती उस्मान ख़ान अलीमोव ने इस रिपोर्ट की अपने भाषण में जो कि अंतर्राष्ट्रीय संघ " उज़्बेक और कज़ाख ब्रदर के लोगों के आम मूल्य" जो कि कजाकिस्तान में उजबेकिस्तान की वार्षिक योजनाओं के ढांचे में आयोजित किया गया था,घोषणा की है।

 

क़ाफ कुरआनी न्यूज साइट के मुताबिक बताया कि कुरान के विशेष पाठ्यक्रमों के संयोजक अली खज़ाई ने कहा कि इराकी विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक केंद्रों के दर्जनों छात्र कुरान के इस विशेष पाठ्यक्रम ल में भाग ले रहे हैं।
उन्होंने कहा कि विशेष कुरान पाठ्यक्रमों के प्रतिभागी, जो आठ दिनों तक चला और प्रति दिन तीन बार आयोजित हुए, कुरानिक विज्ञान और मानव विकास के संबंध में एक कोर्स पढ़ाया ग़या ताकि अवधि के अंत में वे कुरानिक काल में अध्ययन कर सकें अपने प्रांतों में आयोजित पाठ्यक्रमों में एक शिक्षक के रूप में रहें।
अल-खज़ाई ने जारी रखते हुए कहा कि, यह कुरानिक पाठ्यक्रम में विशेषज्ञ प्रोफेसरों की देखरेख में प्रस्तुत किए जा रहे हैं, उन्होंने कहा: "सय्यद मुर्तज़ा जलालुद्दीन कुरानिक विज्ञान," शेख खैरुद्दीन अली अल-हादी "वक्फ और इब्तेदा में," अली ओबुद अल-ताई तज्वीद में, सफा अल- सयालावी, मानव विकास और फलाह जलीफ आवाज़ व लहन का दरस दिया।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा है कि फ़िलिस्तीन के बारे में अमरीका की शैतानी चाल कभी सफल नहीं होगी।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार को हज समिति के सदस्यों से मुलाक़ात में मुसलमानों से मुक़ाबले विशेष कर फ़िलिस्तीन समस्या और यमन के मामले पर दुश्मनों का ध्यान केंद्रित होने की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि अब अमरीकियों ने फ़िलिस्तीन के बारे में अपनी शैतानी नीति का नाम "डील आफ़ द सेंचुरी" रख दिया है लेकिन उन्हें जान लेना चाहिए कि ईश्वर की कृपा से यह डील कभी भी व्यवहारिक नहीं होगी और अमरीकी अधिकारियों की इच्छा के विपरीत फ़िलिस्तीन समस्या को भुलाया नहीं जाएगा और बैतुल मुक़द्दस फ़िलिस्तीन की राजधानी बना रहेगा।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र इस साज़िश के मुक़ाबले में डटा रहेगा और मुस्लिम राष्ट्र भी फ़िलिस्तीनी जनता का समर्थन करेंगे, कहा कि कुछ मुस्लिम सरकारें, जो इस्लाम पर तनिक भी विश्वास नहीं रखतीं, अपनी मूर्खता, अज्ञानता और सांसारिक लोभ के कारण अमरीकियों की पिछलग्गू बन गई हैं लेकिन ईश्वर की कृपा से इस्लामी समुदाय और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र अपने दुश्मनों पर विजयी रहेगा और वह दिन अवश्य देखेगा जब फ़िलिस्तीन की धरती से जाली ज़ायोनी शासन की जड़ें उखड़ जाएंगी।

 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इसी तरह वर्ष 2015 में मस्जिदुल हराम और मिना की दो त्रासदियों की तरफ़ इशारा करते हुए इसे एक बड़ा अत्याचार बताया और अधिकारों की बहाली के लिए निरंतर और गंभीर प्रयास जारी रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इस मांग को कभी भी भुलाया नहीं जाना चाहिए क्योंकि इन दो त्रासदियों में हाजियों की रक्षा का पालन नहीं किया गया जो सऊदी सरकार का सबसे बड़ा दायित्व है और मारे गए लोगों की मौत का हर्जाना भी नहीं दिया गया।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि काबा, मस्जिदुल हराम और मस्जिदुन्नबी उस धरती पर शासन करने वालों से नहीं बल्कि संसार के सभी मुसलमानों से संबंधित हैं, कहा कि किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह हज के सही संस्कारों में रोड़े अटकाए और अगर कोई सरकार एेसा करती है तो वास्तव में उसने ईश्वर के मार्ग मेें बाधा उत्पन्न की है।  

भारतीय सूत्रों का कहना है कि भारत सरकार ने इस देश में ईरानी बैंक बनाने के बारे में सहमति दी है।

एक भारतीय समाचार पत्र के अनुसार भारत के एक मंत्री पियूश गोयल का कहना है कि भारत की केन्द्रीय बैंक ने भी इसे उचित बताया है।  इस हिसाब से ईरान के विरुद्ध अमरीका के नए प्रतिबंधों से पहले भारत के मुंबई नगर में ईरान की बैंक "पासारगाद" की एक शाखा खोली जाएगी।

फाइनेंशियल ट्रिब्यून के अनुसार इससे पहले भारत की केन्द्रीय बैंक एलान कर चुकी है कि वह देश में ईरान की तीन बैंको की शाखाएं अपने यहां खोलने की समीक्षा कर रहा है।  पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत तथा ईरान के बीच बैंकिंग सिस्टम न होने के कारण व्यापारिक लेन-देन में तरह-तरह की समस्याएं आती रही हैं।

ज्ञात रहे कि 8 मई 2018 को अमरीकी राष्ट्रपति की ओर से परमाणु समझौते से एकपक्षीय रूप में निकलन जाने के बाद अमरीका की ओर से यह कहा गया था कि वह अगले तीन से छह महीनों के भीतर ईरान के विरुद्ध नए प्रतिबंध लगाने जा रहा है।  अमरीका के इस फैसले की व्यापक स्तर पर निंदा की गई थी।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा है कि आवश्यक क़दम उठाने पर ईरान की सरकार, समस्याओं का समाधान कर सकती है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार से अमरीकी षडयंत्रों को विफल बना दिया जाएगा।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार की सुबह तेहरान में राष्ट्रपति हसन रूहानी और मत्रिमण्डल के सदस्यों से भेंट की।  उन्होंने यूरोप में ईरानी राष्ट्रपति के बयान को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि विदेशियों विशेषकर अमरीकियों के सामने अपने महत्व को दर्शाना आवश्यक है।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस काम को उचित अवसर पर पूरी दृढ़ता के साथ किया जाए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने देश की क्षमताओं के आधार पर पूरी गंभीरता के साथ काम करने की ओर संकेत करते हुए कहा कि अब यूरोपीय पक्ष की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह परमाणु समझौते या जेसीपीओए के बारे में आवश्यक गारेंटी को सुनिश्चित बनाए।  इसी के साथ उन्होंने कहा कि एेसा न हो कि देश की अर्थव्यवस्था को उससे जोड़ा जाए। 

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने विदेश नीति तथा कूटनीति को अति सक्रिय बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि अमरीका जैसों को छोड़कर पूरब और पश्चिम के देशों के साथ संबन्धों को अधिक से अधिक विस्तृत बनाया जाए। 

वरिष्ठ नेता ने देश के लिए स्थिरआर्थिक रोडमैप को आवश्यक बताया।  उन्होंने कहा कि यदि स्थिर रोडमैप तैयार कर लिया जाए तो फिर देश की जनता और अर्थजगत से जुड़े लोग अपनी ज़िम्मेदारियां निभाएंगे और सरकार की सहायता के लिए आगे आएंगे।