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गज़्जा पट्टी पर इस्राईली युद्धक विमानों ने शनिवार को भीषण बमबारी की है जिसमें अब तक दो फिलिस्तीनी बच्चों के शहीद होने और 15 अन्य के घायल होने की खबर है।

इस्राईली बमबारी का जवाब देते हुए फिलिस्तीनी गुटों ने भी ज़ायोनी बस्तियों पर 301 राकेट दागे। 

इस्राईली सेना ने शनिवार को आरंभ होने वाली झड़प का ब्योरा देते हुए बताया है कि कुछ ही घंटों के दौरानस 170 से अधिक राकेट, यहूदी बस्तियों पर दागे गये जिनमें से केवल 30 को ही आयरन डोन एन्टी मिसाइल व्यवस्था , तबाह कर पायी। 

इस्राईली सेना के बयान में बताया गया है कि 100 से अधिक राकेट गज़्ज़ा के निकट स्थिति यहूदी बस्तियों में गिरे और आयरन डोम केवल 30 राकेटों को हवा में ही तबाह करने में कामयाब रहा है। 

टाइम्ज़ आॅफ इस्राईल ने लिखा है कि राकेट हमलों के बाद इ्सराईल ने हमास के 40 ठिकानों पर हवाई हमले  किये। 

इस्राईल ने फिलिस्तीनियों के राकेट हमलों से होने वाली हानि के ब्योरा नहीं दिया और केवल इतना बताया है कि इन हमलों में उसके तीन सैनिक घायल हो गये। 

मीडिया पर भी हमले के नुकसान का ब्योरा देने पर प्रतिबंध है। 

इस्राईली सेना ने शनिवार को गज़्ज़ा पट्टी को तोपखाने और युद्धक विमानों से निशाना बनाया। इस्राईल ने अपने इस हमले को सन 2014 के बाद गज़़्ज़ा के खिलाफ सब से बड़ी कार्यवाही कहा है। 

इस्राईल की ओर से व्यापक हमलों के बाद फिलिस्तीनियों ने यहूदी बस्तियों पर राकेट दागे  किंतु इस्राईल का दावा है कि पहले हमले हुए फिर उसने बमबारी है। 

इसी मध्य फिलिस्तीनी प्रतिरोध मोर्चे, जेहादे इस्लामी ने रविवार की सुबह कहा है कि मिस्र की मध्यस्थता से गज़्ज़ा पट्टी में फिलिस्तीनियों और इस्राईल के मध्य युद्ध विराम हो गया है।  

 

तेहरान के अस्थाई इमामे जुमा ने कहा है कि ईरान तेज़ी से उभरती हुई शक्ति है और उसके विकास और प्रगति की रफ़्तार को कदापि नहीं रोका जा सकता।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा मुहम्मद हसन अबू तुराबी की इमामत में अदा की गयी। उन्होंने नमाज़े जुमा के अपने भाषण में अमरीकी-सऊदी और ज़ायोनी अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि ईरान की तीव्र प्रगति और विकास को किसी भी क़ीमत पर नहीं रोका जा सकता क्योंकि ईरान तेज़ी के साथ उभरती हुई शक्ति में बदल चुका है।

उन्होंने कहा कि ईरान की राजनैतिक, प्रतिरक्षा, सुरक्षा और विज्ञान के क्षेत्रों में शक्ति अनुदाहरणीय और असमान्य है। तेहरान के इमामे जुमा ने कहा कि यह शक्ति प्रतिरोधक मोर्चे के गठन और वर्चस्ववादी व्यवस्था के विरुद्ध  युद्ध के मैदान में सफलता और पवित्र प्रतिरक्षा के दौरान ईरानी जियालों के बलिदानों और ईरानी जनता के धैर्य और साहस का परिणाम है। 

तेहरान के इमामे जुमा ने ईरान पर आर्थिक दबाव डालने के दुश्मनों के षड्यंत्रों की ओर संकेत करते हुए कहा कि ईरान के अर्थशास्त्री और अधिकारी, युक्ति अपनाकर ईरान को एशिया में एक बड़ी आर्थिक शक्ति और दुनिया के आर्थिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले देश में परिवर्तित कर देंगे और दुश्मन अपने इस षड्यंत्र में भी विफल रहे।

तेहरान के इमामे जुमा ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ईश्वरीय शिक्षाओं पर आधारित अपना मिशन जारी रखेगा और हर दिन नये नये मोर्चे जीतता रहेगा।

 

25 शव्वाल सन 148 हिजरी क़मरी को इस्लामी जगत पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन की एक अहम हस्ती की शहादत पर शोक में डूब गया।

जी हां इस दिन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम शहीद हुए। वह इमाम जिन्होंने जनता के मार्गदर्शन के ईश्वरीय दायित्व के 34 साल में लोगों के विचार में सांस्कृतिक क्रान्ति पैदा की और शुद्ध इस्लाम का प्रचार व प्रसार किया।

आज की दुनिया में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन तरक़्क़ी से मानव जीवन में बहुत बड़ा बदलाव पैदा हो गया है। इस बदलाव का धर्म व नैतिकता के प्रचार के क्षेत्र पर भी इतना बड़ा असर पड़ा है कि कुछ लोग यह समझने लगे हैं कि पुरानी शैलियों की अब उपयोगिता नहीं रह गयी है। लेकिन सच्चाई यह है कि मौजूदा दौर के इंसान की आदतें, नैतिकता और मूल ज़रूरतें शताब्दियों पूर्व के लोगों की तरह एक जैसी हैं। यही वजह है कि इंटरनेट, कंप्यूटर और दूसरे आधुनिक उपकरणों से न सिर्फ़ यह कि संबोधक तक संदेश पहुंचाना आसान हो गया है, बल्कि इनसे इंसान के मूल्य व प्रवृत्ति में भी बदलाव आ गया है।

शोध के अनुसार, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम धर्म के प्रचार में जिन बिन्दुओं को अहमियत देते थे वह इस प्रकार हैः संबोधक की पहचान, उनका सम्मान, मुहावरे की ज़बान का इस्तेमाल, अपने व्यवहार से लोगों को धर्म की ओर आमंत्रित करना और समय की पहचान। ये वे बिन्दु हैं जिनसे आज भी इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए मदद ली जा सकती है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम समाज के हर वर्ग से चाहे वह बच्चा, बूढ़ा, जवान, सेवक, दुश्मन, अनेकेश्वरवादी आदि जो भी हो, उसकी वैचारिक व सांस्कृतिक क्षमता के अनुसार व्यवहार करते थे।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के वैज्ञानिक आंदोलन से इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार हुआ और पूरे इस्लामी जगत में उनका चर्चा होने लगा। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का ऐसा दौर था जब बनू उमय्या का शासन कमज़ोर पड़ रहा था और बनी अब्बास की शक्ति बढ़ रही थी। इसलिए कोई एक भी इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम और उनके अनुयाइयों पर दबाव डालने की हालत में न था। इसी चीज़ ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए उचित अवसर मुहैया किया। इस तरह उन्होंने शुद्ध इस्लाम के प्रचार से ऐसे विशाल मत को वजूद दिया कि उससे ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के 4000 शिष्यों ने इस तरह ज्ञान हासिल किया कि उनमें से हर एक कई शाखाओं में दक्ष था और वे पूरे इस्लामी जगत में धर्म प्रचारकों के रूप में फैल गए।                            

ईश्वर के संदेश को जनता के मन में बिठाने के लिए सबसे अच्छी शैली मोहब्बत है। ईश्वरीय संदेश के लिए ज़रूरी है कि वह सिर्फ़ विचार की हद तक असर न करे बल्कि उनके मन में बैठ जाए तब बदलाव आता है और समाज मानवता के उच्च मूल्यों व आदर्श एकेश्वरवाद के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हरकत में आता है। इस बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः ईश्वर कहता हैं "लोग मेरे परिवार के सदस्य हैं तो मै उसे सबसे ज़्यादा दोस्त रखता हूं जो लोगों के साथ ज़्यादा मेहरबानी का व्यवहार करता और उनकी ज़रूरतों को पूरी करने के लिए अधिक कोशिश करता है।" यही वजह है कि ईश्वरीय दूतों ने धर्म के प्रचार में सबसे ज़्यादा मोहब्बत से काम लिया और अपने अनुयाइयों से अनुशंसा करते थे कि ईश्वर की निकटता पाने के लिए मोहब्बत का मार्ग अपनाओ।

छोटी छोटी बातों को नज़रअंदाज़ करना नैतिकता मूल सिद्धांतों में है कि जिससे मनोवैज्ञानिकों व समाजशास्त्रियों के अनुसार, समाज नैतिकता टकराव से बचता और उसमें शांति आती है। नज़रअंदाज़ करने का अर्थ यह है कि एक व्यक्ति किसी बात को जानता है लेकिन इस तरह व्यवहार करता है कि सामने वाले व्यक्ति को लगता है कि वह अस्ल बात को नहीं जानता। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम इस तरह नज़रअंदाज़ी से काम लेते थे कि कुछ मिथ्याचारी आपको भोला-भाला कहते। जैसा कि इस बारे में ईश्वर तौबा नामक सूरे की आयत नंबर 61 में फ़रमाता हैः "कुछ मिथ्याचारी पैग़म्बर को हमेशा सताते हैं चूंकि वह उनके झूठ को बड़ी उदारता से नज़रअंदाज़ कर देते है तो वे (मिथ्याचारी) कहते है, वह भोला-भाला व जल्दी से भरोसा करने वाला व्यक्ति है। कह दो कि उनके जल्दी से विश्वास करने में तुम्हारा फ़ायदा है।"

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम भी धर्म के प्रचार की अपनी शैली में इस शैली पर ध्यान देते थे और इस बारे में वह फ़रमाते हैः "लोगों के साथ अच्छी तरह जीवन बिताना ऐसे पैमाने की तरह है जिसका दो तिहाई भाग सतर्कता व सावधानी और एक तिहाई नज़रअंदाज़ करना है।" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की यह बात सार्थक नज़रअंदाज़ी पर ताकीद और नकारात्मक नज़रअंदाज़ी से दूरी पर बल देती है। क्योंकि आपने शुरु में सतर्कता व जागरुकता का उल्लेख करते हुए इसकी भागीदारी को दो तिहाई कहा और उसके बाद नज़रअंदाज़ करने पर बल दिया है। एक अन्य बिन्दु जिसे नहीं भूलना चाहिए यह है कि छोटी छोटी बातों को नज़रअंदाज़ करना, लोगों को अच्छाई की ओर बुलाने व बुराई से रोकने से विरोधाभास नहीं रखता। लोगों को भलाई की ओर बुलाने और बुराई से रोकना धर्म के अनिवार्य नियमों में है यह नज़रअंदाज़ी के दायरे में नहीं आता।                

हर दौर में धर्म की मूल शिक्षाओं में ग़लत बातें शामिल होती रही हैं जिन्हें बिदअत कहा जाता है। ये अलग से शामिल बातें ईश्वरीय आदेश के लागू होने और अध्यात्मक की प्राप्ति के मार्ग में रुकावट बनती हैं। धार्मिक उपदेशकों का एक कर्तव्य यह भी है कि वे बिना किसी झिझक के पथभ्रष्ट बातों को स्पष्ट करें और लोगों से इन बातों से दूर रहने की अनुशंसा करें। जैसा कि ईश्वर अहज़ाब नामक सूरे की आयत नंबर 39 में फ़रमाता हैः "जो लोग ईश्वरीय दायित्व को अदा करते हैं वे ईश्वर के सिवा किसी से नहीं डरते।" यह बात इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। वह सत्ता वर्ग के मुक़ाबले में पूरी तरह वीर थे और सत्ता वर्ग को उद्दंडता व अत्यचार से दूर रहने की नसीहत करने से तनिक भी संकोच से काम नहीं लेते थे। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के कालके शासक मंसूर के साथ आचरण के संबंध में मिलता है कि एक दिन शासक मंसूर पर एक मक्खी बैठ गयी, जिसे उड़ा दिया गया। मक्खी दोबारा उस पर बैठी, दूसरी बार भी उसे उड़ा दिया गया। मंसूर ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछाः ईश्वर ने मक्खी क्यों पैदा की? इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "अत्याचारियों को अपमानित करने के लिए।"

इस्लाम में एकता पर बहुत अधिक बल दिया गया है और ईश्वर पर आस्था रखने वाले मोमिन बंदों को एक दूसरे का आपस में भाई क़रार दिया गया है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के हुजरात नामक सूरे की आयत नंबर 10 में ईश्वर कह रहा हैः "मोमिन आपस में भाई हैं।" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम मुसलमानों से हमेशा आपस में भाईचारे के साथ रहने, इस्लामी मूल्यों का पालन करने, एक दूसरे के साथ सहयोग करने और एक दूसरे की ज़रूरत को पूरा करने की अनुशंसा करते थे।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक अनुयायी इस्हाक़ बिन अम्मार, कहते हैं कि मैं एक दिन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा तो उन्होंने उदासीन रवैया अपनाया जबकि वह मेरे साथ बहुत प्रेमपूर्ण रवैया अपनाते थे। मैंने बड़ी विनम्रता से पूछाः "हे पैग़म्बरे इस्लाम के सुपुत्र! आपके इस उदासीन रवैये की वजह क्या है?" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "चूंकि तुमने अपने धार्मिक बंधुओं के साथ उदासीन रवैया अपनाया है। मुझे सूचना मिली है कि तुमने अपने घर के द्वार पर दरबान तैनात कर दिया है ताकि वह ज़रूरतमंदों को तुम्हारे द्वार से भगाए।" इस्हाक़ बिन अम्मार कहते हैं कि मैंने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से विनम्रता से कहाः "मैं मशहूर होने से डरता हूं।" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "तुम्हें ईश्वर से डर नहीं लगता? मुसीबतों से नहीं डरते?" जान लो कि लोगों से दूरी बनाने से ईश्वर की कृपा दूर होती है। याद रखो! जब दो मोमिन भाई एक दूसरे से मिलते और एक दूसरे से गर्मजोशी से हाथ मिलाते हैं, तो ईश्वर की कृपा का पात्र बनते हैं। लेकिन इस कृपा का 99 फ़ीसद भाग उसे मिलता है जो अपने मोमिन भाई की ज़रूरत को पूरा करता है। अगर इनमें से किसी को भी एक दूसरे से किसी तरह की ज़रूरत न हो उस वक़्त दोनों बराबर से ईश्वर की कृपा का पात्र बनते हैं।        

धर्म के प्रचार-प्रसार की सबसे अच्छी शैली अपने व्यवहार व आचरण से प्रचार करना है। रवायत में है कि एक बार कूफ़ा शहर से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के अनुयाइयों का एक गुट ज्ञान हासिल करने आपके पास मदीना आया। यह गुट जब तक मुमकिन था मदीना में रहा और उस दौरान नियमित रूप से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से ज्ञान हासिल करने आता रहा। जब यह गुट वापस जाने लगा तो उसने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की सेवा में कहाः "हे पैग़म्बरे इस्लाम के सुपुत्र! हमें नसीहत कीजिए!" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायः "ईश्वर से डरने, उसके आदेश का पालन करने, पापों से दूर रहने, अमानतों को अदा करने, जिनके साथ उठना बैठना हो, उनके साथ अच्छा व्यवहार करो और लोगों को ख़ामोशी से हमारी ओर बुलाओ!" इस गुट ने फिर इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से सवाल कियाः "हे पैग़म्बरे इस्लाम के सुपुत्र! लोगों को किस तरह ख़ामोशी की हालत में आपकी ओर बुलाएं?" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "जिस तरह हमने तुम्हें ईश्वर का हुक्म मानने और बुरी बातों से दूर रहने का आदेश दिया, लोगों के साथ न्याय के साथ व्यवहार करो, उनकी अमानतों को लौटाओ, उन्हें भलाई करने और बुराई से दर रहने का हुक्म दो, इस तरह से कि लोगों को तुम्हारे  भीतर भलाई के सिवा कुछ दिखाई न दे। अगर तुम्हें इस हालत में देखेंगे तो कहेंगेः "ये फ़लां के अनुयायी हैं। ईश्वर फ़ला पर कृपा करे उन्होंने कितने अच्छे अनुयाइयों का प्रशिक्षण किया है! तब जाकर जो चीज़ हमारे पास है उसका मूल्य समझेंगे और हमारी ओर बढ़ेंगे।"

कार्यक्रम के अंत में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर एक बार फिर हार्दिक संवेदना के साथ उनकी वसीयत का एक भाग आपकी सेवा में पेश कर रहे है। आपने फ़रमायाः "पांच बातें जिसमें न हो, उसे ज़्यादा फ़ायदा नहीं पहुंचेगा। लोगों ने पूछा कि वे चीज़ें क्या हैं? इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "धर्म, बुद्धि, शर्म, अच्छी आदत और शिष्टाचार।"

 

आयतुल्लाह मुहम्मद इमामी काशानी ने कहा है कि ज़ायोनी, शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच मतभेदों को हवा दे रहे हैं।

तेहरान के अस्थाई इमामे जुमा ने कहा कि ज़ायोनी पहले तो मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाते हैं और बाद में अपने प्रभाव वाले संचार माध्यमों में इन मतभेदों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हुए कहते हैं कि यही वास्तविक इस्लाम है।

आयतुल्लाह इमामी काशानी ने अपने जुमे के ख़ुतबे में कहा कि संचार माध्यमों में ब्रिटिश समर्थित तथाकथित शिया गुट की बातें, सुन्नी और शिया मुसलमानों के बीच मतभेद फैलने का कारण बन रही हैं जो वास्तव में ज़ायोनियों की हार्दिक इच्छा है।  उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में मुसलमानों के बीच एकता के लिए सबसे उपयुक्त मानदंड "वलीये फ़क़ीह" का है।

तेहरान के इमामे जुमा ने शिया मुसलमानों के छठे इमाम, जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत की बरसी के संदर्भ में कहा कि जिस तरह से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम अपने जीवन काल में मुसलमानों के बीच एकता को बनाए रखने के प्रयास किया करते थे उसी प्रकार से इस समय इस्लामी गणतंत्र ईरान, मुस्लिम एकता के लिए प्रयासरत है।

ज्ञात रहे कि 9 जूलाई 2018 को इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत की बरसी है।     

 

भारतीय अधिकारियों का कहना है कि भारत पहले की ही तरह ईरान से तेल आयात जारी रखेगा। नई दिल्ली सरकार का अमेरिका से कोई समझौता नहीं हुआ है।

समाचार एजेंसी तसनीम की रिपोर्ट के मुताबिक़,  भारतीय सूत्रों ने बताया है कि ऐसी तमाम ख़बरें झूठी और मनगढ़ंत हैं जिनमें कहा जा रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच ऐसा समझौता हुआ है जिसके अनुसार भारत अब ईरान से तेल आयात नहीं करेगा। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक़ नई दिल्ली सरकार पहले की भांति ईरान से तेल आयात को जारी रखेगी।

याद रहे कि जून महीने में, अमेरिका की राष्ट्र संघ में प्रतिनिधि निकी हेली, भारत दौरे पर गईं थी, जहां उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात करके अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के उस संदेश को पहुंचाया था जिसमें वॉशिंग्टन ने भारत को निर्देश देने का प्रयास किया था कि वह ईरान से तेल के आयात को बंद कर दे। ट्रम्प के इस निर्देश में यह भी कहा गया था कि, भारत चाबहार बंदरगाह का उपयोग जारी रख सकता है।

उल्लेखनीय है कि अमेरिकी अधिकारियों ने दुनिया के सभी देशों को यह धमकी दी है कि वे 4 नवंबर तक ईरान से आयात किए जाने वाले तेल को पूरी तरह बंद कर दें और आगर ऐसा नहीं किया तो अमेरिका उनके ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंध लगा देगा। इस बीच भारत सहित कुछ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने दावा किया था कि भारत, जो ईरान से सबसे अधिक तेल आयात करने वाले देशों में से एक है, ईरान से तेल ख़रीदना बंद करने जा रहा है।

भारतीय अर्थशास्त्रियों के मुताबिक़, वर्तमान में  भारत और ईरान के बीच 12 अरब 80 करोड़ डॉलर का व्यापार है, जिसका अधिकतर भाग तेल है। दूसरी ओर भारत से ईरान को निर्यात होने वाली चीज़ें, जिनमें ज़्यादातर खाद्य उत्पादन हैं लगभग 2.4 बिलयन डॉलर की हैं। ऐसा माना जाता है कि भारत, ईरानी तेल के अलावा चाबहार बंदरगाह में भी रूचि रखता है क्योंकि इससे पाकिस्तान के बिना अफ़ग़ानिस्तान सहित दुनिया भर के देशों से भारत को आयात और निर्यात करने में काफ़ी आसानी मिल सकती है।  

 

 

अनातोलियन समाचार एजेंसी द्वारा उद्धृत की रिपोर्ट;न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, संयुक्त राष्ट्र के स्वीडिश राजदूत अलूफ़ स्कोग ने कहाः कि म्यांमार मामलों में संयुक्त राष्ट्र के नए राजदूत, क्रिस्टीन श्वार्जर बोगनर ने इस बैठक में रोहिंग्या शरणार्थी संकट के बारे में अपने पहले निष्कर्षों की रूपरेखा दी।
उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सुरक्षा परिषद के सभी सदस्य बांग्लादेश में म्यांमार के शरणार्थियों की वापसी के लिए शर्तों में सुधार करने के लिए काम करेंगे, उन्होंने कहा:इसे शरणार्थियों और म्यांमार सरकार के बीच विश्वास बनाने की जरूरत है, जो दुर्भाग्य से अभी यह भरोसा नहीं है।
स्कोग ने कहा, रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने देश जाने से इनकार करने का कारण मैं पूरी तरह से समझता है, और मुझे विश्वास है कि हमें बांग्लादेश और उन क्षेत्रों कि कॉक्स मार्केट में इन शरणार्थियों को स्वीकार करते हैं को मदद करनी चाहिए।
म्यांमार में शरणार्थियों के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की बैठक के गठन के अनुरोध के संबंध में उन्होंने कहा: हम चाहते हैं कि इस बैठक के आयोजन के साथ अल्पसंख्यकों सहित म्यांमार में सभी व्यक्ति के लिए शांतिपूर्ण जीवन के लिए दबाव जारी रहे।
याद रहे कि 25 अगस्त, 2017 को, म्यांमार सेना और बौद्ध कट्टरपंथी मिलिटेंस ने राख़ीन प्रांत में रोहिंग्या अल्पसंख्यक मुस्लिमों के खिलाफ क्रूर हमलों की शुरुआत की, जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा नस्लीय सफाई कहा गया, और कम से कम 9 हजार लोगों की हत्या की गई और 700,000 से ज्यादा रोहिंग्याई जिनमें से 60% बच्चे थे सीमा की ओर भाग निकले।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, म्यांमार सरकार, रोहिंग्या अल्पसंख्यक कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पीड़ित अल्पसंख्यक हैं, अवैध आप्रवासी मानती है जो बांग्लादेश से आऐ हैं।

 

इस्लामी संस्कृति और संचार संगठन की सूचना और संचार केंद्र के अनुसार; आयतुल्लाह मारेफ़त द्वारा संकलित पुस्तक "द हिस्ट्री ऑफ द कुरान" का अनुवाद "टॉप" प्रोजेक्ट के रूप में थाईलैंड में ईरानी सांस्कृतिक सलाहकार द्वारा सह-प्रायोजित थाई में किया गया और एक हजार प्रतियों को प्रकाशित किया गया।
अन्य भाषाओं में ईरानी इस्लामी विचारों और राय का परिचय, फारसी साहित्य का परिचय, अनुवादकों और फारसी कार्यों का अनुवाद करने वाले विदेशी प्रकाशकों का प्रोत्साहन, पुस्तकों के विश्व बाजार में उपस्थिति और ... इस परियोजना के लक्ष्यों में हैं।
इस समाचार के मुताबिक, पुस्तक के लेखक ने इसे अलग अध्यायों में स्थापित किया है जो कुरान को संकलित, लिखित, और प्रकाशन और वहि व नुज़ूल व किताबे वहि की अवधारणा से संबंधित है। लेखक की कोशिश है कि नुज़ूल के समय से पवित्र कुरान के उतार-चढ़ाव और खलीफा के ज़माने से वर्तमान समय और लेखन और कुरान को इकट्ठा करने में इमाम अली (अ.) की भूमिका की समीक्षा करे।

 

ट्रम्प ने पहली बार सितंबर 2017 में संयुक्त राज्य अमेरिका में मुस्लिमों के प्रवेश पर रोक लगाने वाले क़ानून को लागू किया था, जिसमें ईरान, लीबिया, सोमालिया, सीरिया और यमन समेत सात देशों हैं।
यद्यपि इस क़ानून में कनाडा का नाम नहीं दिया गया है, लेकिन बहुत से कनाडाई मुस्लिम भेदभाव और विभिन्न समस्याओं के साथ अमेरिकी सीमा पार करने के बारे में चिंतित हैं।
टोरंटो, कनाडा के ऐक निवासी, जो अपने परिवार को शिकागो में देखने के लिए सालाना कई बार संयुक्त राज्य अमेरीका की सीमा से यात्रा करना पड़ता है, ने कहा, "हर बार जब मैं सीमा पार करना चाहता हूं, तो मेरा दिल जल उठता है और सांसे रुक जाती हैं। मुझे नहीं पता कि वे मुझे वीज़ा देंगे या नहीं। क्योंकि मैंने अन्य मुसलमानों से कुछ ऐसी बातें सुनी हैं जिनसे मैं चिंतित हूं और मैं डरता हूं कि मेरे साथ भी उसी तरह का व्यवहार और भेदभाव करें।
मुस्लिम नागरिकों के खिलाफ भेदभाव के इसी तरह के मामले उच्च रहे हैं, और पिछले हफ्ते कनाडा में निवासी कई सीरियाई बच्चों को वाशिंगटन स्थित त्यौहार में भाग लेने के लिए वीजा जारी नहीं किया।
कनाडियन मुस्लिम राष्ट्रीय परिषद ने इस देश के मुस्लिमों को सलाह दी है, अमेरिकी दूतावास में प्रवेश करने से पहले टिकट और सही पता जहां स्वयं जाना चाहते हैं सभी दस्तावेजों के साथ जाऐं, और अगर उनका वीज़ा रद्द कर दिया गया हो और उनके साथ भेदभाव किया गया हो तो चाहिए कि अधिकारी से अपने वीजा के रद्द होने का कारण का विवरण लिखित रूप लें और उन्हें उस व्यक्ति का नाम भी याद रखें जिसने इनकार कर दिया था। इसके अलावा, अगर कोई गवाह है, तो उस से टेलीफ़ून नंबर ले लें।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने 30 जून को हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) कैडिट कॉलेज के दिक्षान्त समारोह को संबोधित करते हुए जो भाषण दिया था उसको भारत और पाकिस्तान के समाचार पत्रों ने विशेष कवरेज दी है।

भारत से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों, वेब साइटों, समाचार पोर्टलों और कई चैनलों में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के भाषड़ को प्रमुखता से पेश किया है।

कई भारतीय समाचार पत्रों ने लिखा है कि ईरान के वरिष्ठ नेता का ताज़ा बयान उन सभी अरब देशों के लिए शिक्षाप्रद है जो अमेरिका और पश्चिमी देशों की ग़ुलामी के चक्कर में अरब देशों और मुसलमानों के मान सम्मान का भी सौदा कर रहे हैं।

भारत से प्रकाशित समाचार पत्रः

दैनिक इंक़ेलाब ने लिखा है कि ईरान के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने अपने बयान में कहा है कि " अमेरिका ईरान पर गंभीर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर ईरानी जनता को देश की सरकार के विरुद्ध खड़ा करना चाहता है"  वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अमेरिका, ईरानी जनता को इस्लामी व्यवस्था के ख़िलाफ़ खड़ा करने की नाकाम कोशिश कर रहा है, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, अमेरिका ईरान के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि ट्रम्प से पहले भी 6 अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान पर दबाव डालने के लिए असफल प्रयास कर चुके हैं और अमेरिका को अभी भी उसके द्वारा किए जा रहे कुप्रयासों से विफलता ही हाथ लगेगी।

समाचार सुबह-नामा अपने लेख में लिखाता है कि, वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में कहा है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, ईरान की होशियार जनता और उसके मज़बूत ईमान पर टिका हुआ है, अमरीका के पिछले सभी राष्ट्रपतियों द्वारा इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ किए गए तमाम कुप्रयास विफल रहे हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने बयान में कहा है कि अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए जा रहे कड़े आर्थिक प्रतिबंधों के पीछे दुश्मन का लक्ष्य केवल जनता को झुकाना है, लेकिन ईश्वर की कृपा से हम जनता के साथ अपनी घनिष्ठता को और बढ़ाएंगे और अपनी एकता की रक्षा करते हुए मोमिन, उत्सुक और कर्मठ पीढ़ी को तैयार करेंगे।

दूसरी ओर पाकिस्तान से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र, वेबसाइट और टेलीविज़न चैनलों की ख़बरों का शीर्षक, वरिष्ठ नेता के भाषण पर आधारित रहा।

पाकिस्तान से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र एक्सप्रेस ने लिखा हैः

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने कहा है कि अमेरिका ईरान के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कार्यवाही करने में अकेला सक्षम नहीं है, अगर वह सक्षम होता  तो कभी अपने सहयोगियों से सहायता ने लेता। उन्होंने कहा कि अमेरिका ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर ईरान को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अकेला करना चाहता है और वित्तीय दबाव के माध्यम से ईरानी जनता को सरकार विरोधी करना चाहता है। वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ईरान में अराजकता पैदा करने का भरपूर प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका अकेले कार्यवाही करने में सक्षम होता तो कभी भी वह अपने सहयोगियों से मदद नहीं लेता।

 

मस्जिदुल अक़सा के इमामे जुमा ने कुछ अरब देशों द्वारा अमरीका की डील ऑफ़ सैंच्यूरी पर सहमति के प्रति चेतावनी दी है।

शुक्रवार को मस्जिदुल अक़सा में जुमे का ख़ुतबा देते हुए शेख़ अकरमा सबरी ने कहा, अमरीका की डील ऑफ़ सैंच्यूरी  इस शताब्दी की सबसे बड़ी साज़िश है और इसमें बैतुल मुक़द्दस को हर प्रकार की वार्त से अलग रखा गया है, इसलिए कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का मानना है कि बैतुल मुक़द्दस की फ़ाइल बंद कर दी गई है।

सबरी के अनुसार, तथाकथित डील ऑफ़ सैंच्यूरी  का दूसरा ख़तरा, बेघर फ़िलिस्तीनियों की घर वापसी के विषय को ही ख़त्म करना है, हालांकि अपने घरों को वापसी फ़िलिस्तीनियों का मूल अधिकार है और फ़िलिस्तीनी शरणार्थी अपने इस अधिकार से किसी भी क़ीमत पर समझौता नहीं करेंगे।

उन्होंने कहा, इस तथाकथित समझौते में फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में ज़ायोनियों की अवैध बस्तियों को बाक़ी रखने की बात कही गई है, हालांकि यह बस्तियां ग़ैर क़ानूनी हैं, जिन्हें कभी क़ानूनी रूप नहीं दिया जा सकता।