رضوی

رضوی

अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी  खबर "अल्यौमुस्साबेअ" के अनुसार, लंदन का सूदबी नीलामी मार्केट 26 अप्रेल को "इस्लामी दुनिया की कला" शीर्षक के साथ नीलामी का आयोजन करेगा और उसमें कुरान की पांडुलिपियां और सैकड़ों वर्षों पुराने कुरानों को नीलामी के लिऐ पेश किया जाऐगा।

इस नीलामी में दुआओं की पुस्तकें और चौदहवीं शताब्दी ई से संबंधित आयतों को भी नीलामी के लिऐ पेश किया जाऐगा और उनकी कीमत 6 से 8 हजार पाउंड घोषणा की गई है।

इसी तरह फारसी कवि अब्दुर्रहमान जामी के हाथ से लिखी कुरान की पांडुलिपि कि सोलहवीं सदी के अंतर्गत आता है इस नीलामी में मूल्य 2 से 3 हजार पाउंड तक बेचने के लिऐ रखा जाऐगा।

सूतबी नीलामी बाज़ार इसी तरह मुस्तफ़ा अज़्ज़हनी के हाथ का लिखा दौरे उस्मानी का क़ीमती क़ुरआन जो कि 18वीं शताब्दी ई के अंतर्गत आता है 20 से 30 हज़ार पाउंड और ऐक क़ुरआन इस्तांबूल का 1124 से 1712 शताब्दी के अंतर्गत 180 से 250 हज़ार पाउंड की कीमत पर नीलामी के लिऐ रखेगा।

 

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने अमरीकी कार्यवाही को अमानवीय कार्यवाही बताया है।

अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने अपने ट्वीट में अमरीकी सेना की ओर से अफ़ग़ानिस्तान में सबसे बड़े ग़ैर परमाणु बम गिराए जाने की कड़े शब्दों में निंदा की है।

उन्होंने कहा कि अमरीका ने जो किया है वह आतंकवादियों के विरुद्ध युद्ध नहीं बल्कि अमानीय कार्यवाही है। अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने कहा कि अमरीका, अफ़ग़ानिस्तान को नये और ख़तरनाक हथियारों के टेस्टिंग ग्राउंड के रूप में प्रयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि अमरीका की इस प्रकार की कार्यवाही के विरुद्ध अफ़ग़ानिस्तान को उठ खड़ा होना होगा और उसे रोकना होगा।

ज्ञात रहे कि अमरीका ने दाइश पर हमले का बहाना बनाकर गुरुवार की शाम लगभग सात बजे अफ़ग़ानिस्तान में नंगरहार के अचन ज़िले में 16 वर्षीय युद्ध के दौरान पहली बार सबसे बड़ा ग़ैर परमाणु ख़तरनाक बम का प्रयोग किया। 

अंतर्राष्ट्रीय कुरान एजेंसी ने अल-कफील इंटरनेशनल वेबसाइट के अनुसार बताया कि यह कुरआनी समारोह पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव के अवसर पर इमाम हुसैन,इमाम अली,हज़रत अब्बास,असकरीएन के पवित्र हरम के कारीयों ने कुराने मजीद की तिलावत किया।

यह कुरआनी समारोह "कोलकाता" के इमामबाड़ा "फज़्लुन्निसा" में आयोजित किया गया जिसमें इमाम हुसैन अ0 के पवित्र हरम के क़ारी और मोअज़्ज़िन मुस्तफा अल-ग़ालबी ने इराकी शैली में तिलावत किया।

समारोह में इमाम अली अ0 के पवित्र हरम के "शेख मोहम्‍मद जाससिम" और असकरीएन के पवित्र हरम के क़ारी "कैसर अल ज़ोहैरी" ने कुरान के आयतों की तिलावत किया।

मोहब्बते इमाम अली (अ0) पर तवाशीह और हरमे हज़रत अब्बास के कारी "सैयद हैदर जोलु ख़ां ने दुआए कुमैल की तिलावत किया।

पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव 13 अप्रैल से भारत के शहर कलकत्ता में शुरू हुआ जो 16 अप्रैल तक जारी रहेग़ा।

पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव में पुस्तक मेला, भारत में अनाथ धार्मिक स्थल की यात्रा है।

 

 

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के चचेरे भाई, दामाद और उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज्ञान के बारे में बात करना किसी ज़बान और क़लम के लिए संभव नहीं है।

वे वही हैं जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा हैः ईश्वर ने अली को इतना ज्ञान व बुद्धि प्रदान की है कि अगर उसे धरती के समस्त लोगों में बांटा जाए तो वह सभी अपने दामन में ले लेगी और सभी लोग बुद्धिमान और ज्ञानी हो जाएंगे।

रजब के महीने का दूसरा शुक्रवार था, हिरा पर्वत से चलने वाली ठंडी हवा के झोंके काबे तक पहुंच रहे थे जहां कुछ लोग इस पवित्र स्थल की परिक्रमा करने में व्यस्त थे। अबू तालिब की पत्नी फ़ातेमा, थके हुए चेहरे के साथ ईश्वर के घर की परिक्रमा कर रही थीं। आंखों से टपकने वाले आंसू उनके चेहरे को भिगा रहे थे, उन्होंने गिड़गिड़ा कर अपने ईश्वर को पुकाराः हे मेरे पालनहार, मैं तुझ पर ईमान रखती हूं, इसी तरह मैं अपने पूर्वज इब्राहीम अलैहिस्सलाम के धर्म पर, जो काबे की आधारशिला रखने वाले थे, पूरा ईमान रखती हूं। प्रभुवर! हे शक्तिशाली व सर्वसक्षम ईश्वर! मैं तुझे इस घर की आधारशिला रखने वाले और इस बच्चे की सौगंध देती हूं जो मेरी कोख में है कि इस प्रसव को मेरे लिए सरल बना दे।

सहसा ही लोगों की आंखें खुली की खुली रह गईं, काबे की दीवार फटी और उसमें दरवाज़ा बन गया, जैसे ही फ़ातेमा बिन्ते असद काबे में गईं, दीवार पहले की तरह जुड़ गई। लोग आश्चर्य से चीख़ पड़े और फिर हर तरफ़ एक अर्थपूर्ण सन्नाटा पसर गया, सभी के चेहरे आश्चर्य की मूर्ति बन गए, अंदर की सांस अंदर रह गई, किसी में भी उस मौन को तोड़ने और यह कहने की हिम्मत नहीं थी कि अभी क्षण भर पहले काबे की दीवार फटी और ईश्वर ने एक गर्भवती महिला को अंदर बुला लिया।

किस को विश्वास हो सकता था कि अत्यंत कठोर पत्थरों की दीवार फट कर एक गर्भवती महिला को अंदर आने का निमंत्रण दे सकती है? लोगों का आश्चर्य उस समय दुगना हो गया जब काबे की देख-भाल करने वालों ने, जिनके पास उसकी चाबी थी, काबे का ताला खोलने का प्रयास किया और विफल रहे। अब वहां लोगों की भीड़ बढ़ती चली जा रही थी और हर एक को जिज्ञासा थी कि आगे क्या होगा ?

काफ़ी समय बीत गया और फिर अचानक ही काबे की दीवार, दोबारा दरवाज़ा बन गई और उसमें से दमकते चेहरे और गोद में अपने लाल को लिए फ़ातेमा बिन्ते असद बाहर आईं। नवजात का प्रकाशमयी चेहरा सभी को मोहित कर रहा था, उसके पिता अबू तालिब ने चमकती आंखों और ख़ुशी भरे स्वर में चिल्ला कर कहाः हे लोगो! मेरे बेटे अली ने, ईश्वर के घर में जन्म लिया है। सृष्टि के इतिहास की यह अनुपम और अद्वीतीय घटना, आमुल फ़ील (जिस साल अबरहा ने हाथियों के साथ काबे पर हमला किया था) के तीसवें साल के रजब महीने की तेरहवीं तारीख़ को शुक्रवार के दिन घटी थी।

जिस दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने काबे में आंखें खोलीं, सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि तब तक किसी ने भी काबे में जन्म नहीं लिया था और उसके बाद से आज तक भी ऐसा नहीं हुआ है और यह उस बच्चे की महानता का एक चिन्ह था। आज हम एक ऐसे सपूर्ण मनुष्य का शुभ जन्म दिन मना रहे हैं जिसे उसके ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अलावा किसी ने भी सही तरीक़े से नहीं पहचाना। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा थाः हे अली! ईश्वर को मेरे और तुम्हारे अलावा किसी ने भी नहीं पहचाना, मुझे ईश्वर और तुम्हारे सिवा किसी ने नहीं पहचाना और तुम्हें ईश्वर और मेरे अलावा किसी ने भी नहीं पहचाना लेकिन इसके बावजूद अली, इतिहास के पन्नों में सूरज की तरह चमक रहे हैं।

सातवीं शताब्दी हिजरी में अहले सुन्नत के प्रख्यात विद्वान इब्ने अबील हदीद, जिन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा की व्याख्या लिखी है, हज़रत अली के गुणों का वर्णन करते हुए कहते हैं। “मैं उस व्यक्ति के बारे में क्या कहूं जिसके गुणों को उसके शत्रु भी मानते हैं और वे कभी भी उनकी प्रतिष्ठा और सद्गुणों का न तो इन्कार कर सके और न ही उन्हें छिपा सके।“ इसके बाद वे कहते हैं कि बनी उमय्या ने धरती के पूरब और पश्चिम में इस्लामी शासन हासिल कर लिया और हर प्रकार के हथकंडे और चाल के माध्यम से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रकाशमयी अस्तित्व की छवि बिगाड़ने की कोशिश की, उन पर तरह तरह के आरोप लगाए गए, उनकी सराहना और गुणगान करने वाले हर व्यक्ति को धमकाया गया, उनकी प्रशंसा में किसी भी प्रकार की हदीस को बयान करने से रोका गया, यहां तक कि उनके नाम पर बच्चों का नाम रखने पर प्रतिबंध लगाया गया लेकिन इन सब कुप्रयासों के बावजूद उनकी महानता और प्रतिष्ठा और अधिक निखर कर और उभर कर सामने आने के कुछ और परिणाम नहीं निकला। वास्तव में बनी उमय्या की ये सारी कोशिशें हथेली से सूरज को छिपाने जैसी थीं। मैं उस व्यक्ति के बारे में क्या कह सकता हूं जिस पर जा कर सारे सद्गुण समाप्त हो जाते हैं और हर मत व गुट अपने आपको उससे जोड़ने की कोशिश करता है, हां अली ही सारे सद्गुणों के स्वामी हैं।

सच्चाई तो यह है कि ख़ुद हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बेहतर कोई भी उनका परिचय नहीं करा सकता। नहजुल बलाग़ा के 175वें भाषण में उन्हें ईश्वर द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान के एक भाग की ओर संकेत किया गया है। वे कहते हैं। ईश्वर की सौगंध! अगर मैं चाहूं तो तुममें से हर एक को उसके जीवन के आरंभ और अंत और ज़िंदगी के सभी मामलों के बारे में अवगत करा सकता हूं लेकिन इस बात से डरता हूं कि इस तरह की बातों के कारण तुम लोग पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का इन्कार न कर बैठो। जान लो कि मैं इन मूल्यवान राज़ों को अपने विश्वस्त दोस्तों के हवाले करूंगा। उस ईश्वर की सौगंध! जिसने मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) को सत्य के साथ पैग़म्बर बना कर भेजा, मैं सत्य के अलावा कुछ नहीं कहता।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की यह बात इस बात को स्पष्ट करती है कि उनके ज्ञान का जो भाग हम तक पहुंचा है वह उनके ज्ञान के अनंत सागर की केवल एक बूंद है क्योंकि अगर उनका सारा ज्ञान हम तक पहुंच जाता तो कुछ लोग इस प्रकार के ज्ञान को संभालने की क्षमता न रखने के कारण, सच्चे मार्ग से दूर हो जाते और वैचारिक व आस्था की दृष्टि से उनमें गहरा मतभेद पैदा हो जाता।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम इस संबंध में कहते हैं। हे अली! तुम (दुनिया के त्याग और ईश्वर की उपासना की दृष्टि से) मरयम के पुत्र ईसा जैसे हो अगर मुझे इस बात का भय न होता कि मेरी जाति का एक गुट तुम्हारे बारे में अतिशयोक्ति से काम लेगा और वही कहेगा जो ईसा के बारे में कहा गया, तो मैं तुम्हारे बारे में ऐसी बात कहता कि तुम जब भी लोगों के पास से गुज़रते तो वे तुम्हारे पैरों के नीचे की मिट्टी को उठा कर चूमते।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम का ज्ञान इतना व्यापक था कि वे विभिन्न ज्ञानों के सभी रहस्यों और छोटी-बड़ी बातों को पूरी दक्षता से जानते थे। वे कभी भी किसी भी सवाल या मामले पर परेशान नहीं होते थे और अविलम्ब उसका उत्तर देते थे या उसे हल कर देते थे। सुन्नी मुसलमानों के एक वरिष्ठ धर्मगुरू इब्ने ख़ारज़मी अपनी किताब मनाक़िब में लिखते हैं कि एक दिन दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पूछा कि किस प्रकार आप किसी भी सवाल या समस्या का बिना सोचे तुरंत उत्तर दे देते हैं। उन्होंने जवाब में पहले अपनी हथेली उनके सामने की और पूछा कि इसमें कितनी उंगलियां हैं? उन्हों ने तुरंत जवाब दियाः पांच। हज़रत अली ने पूछा कि तुमने सोचा क्यों नहीं? उमर ने कहा कि इसमें सोचने की क्या बात है, पांचों उंगलियां मेरे सामने हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहाः सभी बातें, धार्मिक आदेश और ज्ञान मेरे लिए इसी हथेली की तरह स्पष्ट हैं अतः मैं सवालों का अविलम्ब जवाब देता हूं।

इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस महान गुरू की ओर जिसने उन्हें ये ज्ञान सिखाएं हैं, संकेत किया और कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) ने सभी सूचनाएं और ज्ञान मुझे प्रदान किए हैं और मुझे बताया है कि कौन कहां मरेगा? किसे कहां मुक्ति मिलेगी? किसके शासन का अंत किस प्रकार होगा, उन्होंने हर घटना की मूझे सूचना दे दी है। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने प्रलय तक के हर हलाल या हराम, अच्छी या बुरी बात और ईश्वर की अवज्ञा या आज्ञापालन की सूचना मुझे दे दी है और मैंने उन्हें याद कर लिया है, मैं इन बातों का एक शब्द भी भूला नहीं हूं। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा और ईश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरे हृदय को ज्ञान, बुद्धि, तत्वदर्शिता और प्रकाश से भर दे और मुझे इस प्रकार ज्ञान प्रदान करे कि उसमें अज्ञानता घुस न पाए और मैं इस तरह बातों को याद रखूं कि कभी न भूलूं। यही कारण है कि दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर जब भी किसी समस्या में ग्रस्त होते और कोई उसे हल नहीं कर पाता तो वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास जाते। उन्होंने अनेक अवसरों पर कहा है कि अगर अली न होते तो उमर तबाह हो जाता।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से ज्ञान अर्जित करने के हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रयास, अथक व निरंतर थे और पैग़म्बर के जीवन के अंतिम क्षण तक जारी रहे और हज़रत अली उनके ज्ञान के अथाह सागर से तृप्त होते रहे। अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस का कहना है कि जब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने जीवन के अंतिम दिनों में थे तो उन्होंने हज़रत अली को बुलाया और जब वे आ गए तो उन्हें अपना कपड़ा ओढ़ाया और उनकी ओर झुक कर कुछ कहा। जब हज़रत अली बाहर निकले तो किसी ने उनसे पूछा कि पैग़म्बर ने आपसे क्या कहा? उन्होंने जवाब दियाः पैग़म्बर ने मुझे ज्ञान के एक हज़ार दरवाज़े सिखाए जिनमें से हर दरवाज़े से हज़ार दरवाज़े खुलते हैं।

 

 इस्लामी गणतंत्र ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने सेना के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाक़ात करते हुए सीरिया पर अमेरिकी हमलों की कड़ी निंदा करते हुए कहा, यह हमले अमेरिका की रणनीतिक भूल हैं । उन्होंने कहा कि अमेरिका पूर्व में की गयी अपनी गलतियों को दोहराने में लगा हुआ है । सुप्रीम लीडर ने कहा कि अतिक्रमण, हमला, अत्याचार, प्रताड़ना यह सब अमेरिका की घुट्टी में मिला हुआ है, अमेरिका से यही अपेक्षा है वह दुनिया भर में यह कुकृत्य करता रहा है बस हर बार मैदान बदल जाता है । उन्होंने कहा कि ईरान गणतंत्र ने दिखा दिया है कि खुदा पर भरोसा और आत्मविश्वास के साथ सफलतापूर्वक इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है । सुप्रीम लीडर ने कहा कि अमेरिका के तत्कालीन अधिकारीयों ने दाइश का गठन किया तथा समय - समय पर उसकी मदद की, यही काम वर्तमान अधिकारी कर रहे हैं। सुप्रीम लीडर ने कहा कि यूरोप आज आतंकी संगठनों की सहायता का अंजाम भुगत रहा है यूरोपियन लोगों में असुरक्षा की भावना घर कर गयी है, अमेरिका भी उसी गलती को दोहराने में लगा हुआ है । उन्होंने यूरोप कि दोहरी पॉलिसी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज सीरिया में रासायनिक हमलों का शोर मचाने वाले यूरोप ने ईरान के विरुद्ध प्रयोग करने के लिए सद्दाम को भारी मात्रा में केमिकल हथियार उपलब्ध कराये थे ।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी व्यवस्था के दुष्ट शत्रुओं के बड़े मोर्चे का लक्ष्य, इस्लामी व्यवस्था को नष्ट करना या भीतर से खोलना करना बताया है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार को व्यवस्था के कुछ अधिकारियों से नौरोज़ की मुलाक़ात में इस्लामी व्यवस्था के गठन और उसकी रक्षा के लिए बहने वाले मूल्यवान ख़ून और बलिदानों की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर करने में दुश्मनों को धूल चटाने के लिए हर प्रकार के प्रयास वास्तव में ईश्वर से सामिप्य प्राप्त करना ही है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी क्रांति के विभिन्न मंचों पर त्याग व बलिदान के पीछे जनता का मुख्य उद्देश्य, धार्मिक लक्ष्य बताया और कहा कि आज कुछ जवान उन्हीं पवित्र उद्देश्यों और लक्ष्यों के साथ तकफ़ीरी धड़ों से मुक़ाबले और रौज़ों की रक्षा के लिए रणक्षेत्र में जाने पर बल देते हैं और यह त्याग की निशानी और अधिकारियों से जनता के आगे रहने का स्पष्ट चिन्ह है। 
उन्होंने ईश्वरीय दूतों के निष्ठापूर्ण प्रयासों का लक्ष्य, धार्मिक व्यवस्था का गठन और सत्य की स्थापना बताया और कहा कि इस्लामी व्यवस्था में इस्लामी नियमों और इस्लामी जीवन शैली को लागू होना चाहिए और समाज के हर वर्ग की संस्कृति, क़ुरआनी शिक्षाओं के अनुसार होनी चाहिए। 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने नये वर्ष का नाम प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था, पैदावार और रोज़गार रखे जाने की ओर संकेत करते हुए कहा कि पैदावार और रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए जाने के लिए गंभीर निरिक्षण और निरंतर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। उनका कहना था कि उन उत्पादों पर प्रतिबंध होना चाहिए जिनके चलते ईरानी कारख़ाने बंद हो जाते हैं।   

 

सीरिया के ख़ान शैख़ून इलाक़े पर रासायनिक हमले को बहाना बना कर अमरीका ने सीरयिा के होम्स प्रांत पर बड़े पैमाने पर मीज़ाइल हमले शुरू कर दिए हैं।

अमरीका के सैन्य सूत्रों के अनुसार सीरिया में विभिन्न लक्ष्यों पर 70 गाइडेड मीज़ाइलोंसे हमला किया गया है। अलमयादीन टीवी चैनल ने भी बताया है कि भूमध्य सागर में तैनात अमरीका के युद्धपोतों से दसियों मीज़ाइल सीरिया की ओर फ़ायर किए गए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार होम्स प्रांत की शईरात हवाई छावनी को मुख्य रूप से इन हमलों में निशाना बनाया गया है। अभी इस हमले में होने वाले संभावित जानी नुक़सान के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है।

इस बीच अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने सीरिया पर मीज़ाइल हमले का आदेश देने के बाद दावा किया है कि इस देश के राष्ट्रपति बश्शार असद ने लोगों के जनसंहार के लिए रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने सीरिया पर हमले का समाचार सामने आने के तुरंत बाद कहा कि मैंने शईरात हवाई छावनी पर सीमित हमले का आदेश दिया है क्योंकि सीरिया में रासायनिक हमले यहीं से शुरू हुए हैं। ट्रम्प ने कहा कि रासायनिक हमलों के इस्तेमाल और फैलाव को रोकना अमरीका के राष्ट्रीय हितों के अनुसार है। अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा कि मैं दुनिया के सभी सभ्य देशों से अपील करता हूं कि वे सीरिया में हत्या और रक्तपात की समाप्ति के लिए आगे आएं। डोनल्ड ट्रम्प ने कहा कि अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा और अहम हितों की रक्षा के लिए सीरिया पर मीज़ाइल हमले किए गए हैं। उन्होंने कहा कि बश्शार असद ने सीरिया के लोगों के जनसंहार के लिए सरीन गैस का इस्तेमाल किया है। ट्रम्प ने दावा किया कि असद के रवैये को बदलने के लिए बरसों से जारी कोशिशें विफल हो चुकी हैं।  

 

 ईरान, भारत के साथ तकनीक, सूचना, अंतरिक्ष, बयोटेक्नोलोजी, दवाओं और व्यापार के क्षेत्र में संबन्ध विस्तार का स्वागत करता है।

भारत के नगर हैदराबाद में ईरान के काउन्सलर हसन नूरियान ने गुरूवार को कहा है कि वर्तमान समय में भारत और ईरान के बीच तेल, चावल, ग़ल्ले और खाद्य पदार्थों का व्यापक स्तर पर आयात और निर्यात हो रहा है।  हैदराबाद में ईरान के काउन्सलर ने कहा कि ईरान और गुट पांच धन एक के बीच समझौता, प्रतिबंधों के हटने का कारण बना है।

उन्होंने कहा कि पैसों के लेनदेन में पाई जाने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भारत में ईरानी बैंकों की शाखाएं खोली जाएं।  इस प्रकार से दोनो देशों के व्यापारिक संबन्ध विस्तृत होंगे।

हुसैन नूरियान ने भारत द्वारा ईरान के दक्षिण पूर्व में चाबहार बंदरगाह में पूंजी की ओर संकेत करते हुए कहा कि भारत इस पूंजीनिवेश के माध्यम से सरलता से केन्द्री एशिया और अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंच बना सकता है।

रजब के महीने को इस्लामी कैलेण्डर में विशेष महत्व प्राप्त है। 

इसका मुख्य कारण यह है कि इसमें पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के कई परिजनों का जन्म हुआ है।  रजब के महीने को मुसलमान बड़ी इज़्ज़त की नज़र से देखते हैं।  पहली रजब सन 57 हिजरी मे  इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।  इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र थे।  उनके पिता इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम थे। आपकी माता हज़रत फ़ातेमा थीं जो हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की सुपुत्री थीं।  इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का नाम पैग़म्बरे इस्लाम के नाम पर था। सदगुणों में वे पूर्णरूप से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्रतीक थे।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पैदा होने की शुभ सूचना पहले ही दी थी।  श्रोताओ, इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई देते हैं।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की एक विशेषता यह है कि उन्हें शिया संस्कृति की क्रांति की आधारशिला रखने वाला माना जाता है।  वैसे तो ज्ञान के प्रचार-प्रसार को मुख्य रूप से इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के सुपुत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से जोड़ा जाता है परंतु उसकी बुनियाद इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ही रखी थी। पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों में से हर एक, अपने समय और परिस्थितियों के अनुसार काम करता था। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के काल में राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियां इस प्रकार से थीं कि दूसरे इमामों की अपेक्षा धार्मिक शिक्षाओं, पवित्र कुरआन की व्याख्या और पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को बयान करने का उन्हें अधिक अवसर मिला।

उनके 19 वर्षीय इमामत काल में ऐसी सामाजिक परिस्थितियां उत्पन्न हुई जिनका लाभ उठाकर इमाम मोहम्मद बाक़िर ने इस्लामी शिक्षाओं का भरपूर प्रचार-प्रसार किया।  इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इमामत की अवधि मे ज्ञान के क्षेत्र मे जो दीपक जलाए उनका प्रकाश आजतक चारों ओर फैला हुआ है।  एक प्रख्यात सुन्नी विद्वान, इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखते हैं कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम  ने संसार को ज्ञान के छिपे हुए स्रोतों से परिचित कराया। उन्होंने ज्ञान की व्याख्या इस प्रकार से की जिसके कारण वर्तमान समय मे उनकी महानता सबके लिए स्पष्ट है।  ज्ञान के क्षेत्र में महान सेवाओं के कारण ही इमाम बाक़िर को “बाक़िरूल उलूम” कहा जाता है। बाक़िरूल उलूम का अर्थ होता है, ज्ञान को चीरकर निकालने वाला। शिया और सुन्नी मुसलमानों सहित समस्त विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने समय में श्रेष्ठ व्यक्ति थे।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने पवित्र क़ुरआन का अनुसरण करके समाज में ज्ञान के महत्व को इस प्रकार चित्रित किया कि लोग धर्म को उचित ढंग से पहचानें।  इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने मानव समाज का मार्गदर्शन ज्ञान की ओर किया।  ज्ञान के बारे में वे कहते थे कि जो विद्वान अपने ज्ञान से समाज को लाभ पहुंचाए वह सत्तर हज़ार उपासकों से बेहतर है।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जीवन, एक परिपूर्ण मनुष्य के जीवन का उच्चतम आदर्श है। इमाम बाक़िर की एक विशेषता उनके अंदर समस्त सदगुणों का एकत्रित हो जाना है।  इसी तरह इमाम, अध्यात्म और महान ईश्वर की उपासना पर जो ध्यान देते हैं वह इस बात में बाधा नहीं बनता था कि इमाम, सामाजिक एवं भौतिक जीवन पर ध्यान न दें। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के जीवन पर दृष्टि डालने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इमाम जीवन के समस्त क्षेत्रों में सर्वोच्च आदर्श हैं। वे ज्ञान एवं सदगुणों की दृष्टि से शिखर बिन्दु पर थे।

समाज में इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की महत्वपूर्ण उपस्थिति को बयान करने के लिए इस बिन्दु का उल्लेख करना काफी है कि इमाम मुहम्मद बाक़िर और उनके बाद उनके सुपुत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने शैक्षिक केन्द्रों की आधारशिला रखी।  जिन लोगों ने इन शिक्षा केन्द्रों से ज्ञान अर्जित किया उन्होंने लगभग छह हज़ार किताबें लिखी हैं। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम, पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम (स) की परम्पराओं से पूर्णत रूप से अवगत थे।  वे लोगों को इससे अवगत कराते और उन्हें अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश में ले आते थे।

इमाम बाक़िर इस बात को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे कि दूसरे उनकी आजीविका की पूर्ति करें।  मुहम्मद बिन मुनकदिर नामक एक व्यक्ति का कहना है कि एक बार मैं मदीना नगर में कहीं जा रहा था।  बहुत तेज़ गर्मी पड़ रही थी।  इस तेज़ गर्मी में इमाम बाक़िर एक खेत में काम कर रहे थे।  उनके शरीर से पसीना बह रहा था।  जब मेरी नज़र इमाम बाक़िर पर पड़ी तो मेरे मन में यह विचार आया कि क़ुरैश के क़बीले का एक महान व्यक्ति इस गर्मी में क्यों खेत में काम कर रहा है?  मैंने सोचा कि उनके पास जाकर मैं उन्हें समझाऊं कि आप जैसे महान व्यक्ति को यह शोभा नहीं देता कि वह खेत में काम करे।  उसने बड़े आश्चर्य से पूछा हे इमाम आपके जैसा समझदार और बुद्धिमान व्यक्ति, इस भीषण गर्मी में कुछ पैसों के लिए घर से बाहर इतनी मेहनत क्यों कर रहा है।  उसने कहा कि ऐसी स्थिति में यदि आपको मौत आ गयी तो अल्लाह को आप क्या जवाब देंगे?   

इमाम बाक़िर ने उसके उत्तर में कहा कि क्या तुमको लगता है कि केवल नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात ही इबादत है?  उन्होंने कहा कि इस समय मैं आजीविका की तलाश में हूं।  अब अगर एसे में मुझे मौत आती है तो मैं ईश्वर की उपासना करते हुए इस दुनिया से जाऊंगा।  इमाम मुहम्मद बाक़िर कहते हैं कि लोगों को पाप करते समय डरना चाहिए क्योंकि यदि उस समय मौत आ गई तो फिर क्या होगा?

 

वर्ष 254 हिजरी क़मरी के रजब महीने की तीसरी तारीख़ पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक अन्य पौत्र की शहादत की याद दिलाती है।

इस दिन जब सूरज ने अपनी किरणें ज़मीन पर बिखेरीं तो इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत की ख़बर ने बहुत सारे लोगों को शोकाकुल कर दिया। उनकी उपाधि, हादी अर्थात मार्गदर्शक थी।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने 15 ज़िलहिज्जा वर्ष 212 हिजरी क़मरी को मदीना नगर के निकट इस संसार में आंखें खोलीं। उन्होंने अपने पिता इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद 33 साल तक मुसलमानों के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली। उनके काल में विभिन्न प्रकार के मत और आस्था संबंधी विचार सामने आने लगे थे और इस्लामी जगत में धर्म व आस्था के बारे में तरह तरह की शंकाएं पैदा होने लगी थीं। ये शंकाएं कुछ धोखा खाए हुए, अवसरवादी और अवसर से ग़लत लाभ उठाने वाले लोग, इस्लामी जगत में फैला रहे थे। अलबत्ता अब्बासी शासक  भी मुसलमानों के वैचारिक व आस्था संबंधी आधारों को कमज़ोर करके अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश में थे। यही कारण था कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने भी, जो अन्य इमामों की तरह सामाजिक, राजनैतिक और वैचारिक घटनाओं के आधार पर मुसलमानों के मार्गदर्शन और सच्चे इस्लाम की रक्षा के लिए अनेक ठोस व गंभीर क़दम उठाते थे, काम किया और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के ज्ञान संबंधी मतों को इस प्रकार से पेश किया कि उनके काल में भी और बाद के कालों में भी लोगों की वैचारिक और राजनैतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।

 

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में ईश्वर को आंखों से देखने के संभव होने या न होने, ईश्वर के साकार या निराकार होने और कर्मों में बंदे के स्वाधीन या विवश होने जैसी बहसें मुस्लिम जनमत को अपनी चपेट में लिए हुए थीं और लोगों की आस्थाओं को प्रभावित कर रही थीं इस लिए इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन के परिप्रेक्ष्य में शास्त्रार्थों और पत्रों के माध्यम से ठोस व स्पष्ट तर्क पेश करके सच्चे इस्लाम को इस्लामी समाज के सामने पेश किया। उदाहरण स्वरूप उनके एक विस्तृत पत्र का उल्लेख किया जा सकता है जिसमें उन्होंने क़ुरआने मजीद, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के परिचय, उनके आज्ञापालन की अनिवार्यता और इसी प्रकार कर्मों में लोगों के स्वाधीन या विवश होने जैसी गूढ़ बहसों का बड़े स्पष्ट अंदाज़ में विस्तृत उत्तर दिया है।

इमाम हादी अलैहिस्सलाम, जिनके कांधों पर इस्लामी विचारों के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी थी और वे इस प्रकार के वैचारिक मतभेदों को इस्लाम के दुशमनों के हित में समझते थे, क़ुरआने मजीद के बारे में विवाद को अनुचित क़रार देते थे और अपने साथियों को इस प्रकार की बहसों में न पड़ने की सिफ़ारिश करते हुए कहते थे कि क़ुरआन के बारे में यह बहस कि वह रचना है या नहीं या पहले से मौजूद था या बाद में अस्तित्व में आया? पूरी तरह से अनुचित और धार्मिक दृष्टि से ग़लत है क्योंकि इसमें प्रश्न करने वाले को ऐसी चीज़ मिलती है जो उसके लिए उचित नहीं है और उत्तर देने वाला भी उस विषय के बारे में अपने आपको ज़बरदस्ती कठिनाई में डालता है जो उसकी क्षमता में नहीं है। रचयिता, ईश्वर के अलावा कोई भी नहीं है और उसके अतिरिक्त जो भी चीज़ है वह रचना है और क़ुरआने मजीद ईश्वर का कथन है अतः उसके लिए अपनी ओर से कोई नाम न रखो अन्यथा पथभ्रष्ट लोगों में शामिल हो जाओगे।

एक और अहम वैचारिक शंका जो इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में लोगों की आस्थाओं के लिए ख़तरा बनी हुई थी, ईश्वर के साकार होने के बारे में थी। इमाम ने बौद्धिक तर्क से इस विचार को ग़लत बताते हुए कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के मानने वाले ईश्वर को साकार नहीं मानते क्योंकि ईश्वर को अन्य चीज़ों के समान बताना, उसके साकार होने की कल्पना है और जो चीज़ आकार वाली होती है वह स्वयं किसी कारण का परिणाम होती है और ईश्वर इस प्रकार के उदाहरणों से कहीं उच्च है क्योंकि शरीर और आकार का स्वाभाविक परिणाम किसी समय या स्थान में सीमित होने और बुढ़ापे और कमज़ोर होने इत्यादि के रूप में सामने आता है जबकि ईश्वर के लिए इस प्रकार की बातों की कल्पना नहीं की जा सकती। ईश्वर के साकार होने की आस्था, ईसाइयत में तीन ईश्वरों का विचार सामने आने का कारण बनी है और ईसाई दो अन्य लोगों को ईश्वर का समकक्ष मानते हैं। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने ठोस तर्कों से मुसलमानों के बीच इस प्रकार के विचारों को फैलने से रोका। इस प्रकार की शंकाएं, एकेश्वरवाद के आधार पर हमला करती हैं जो ईश्वरीय पैग़म्बरों की सबसे पहली और सबसे अहम उपलब्धि है। इमाम अलैहिस्सलाम ने अपने काल में बेहतरीन ढंग से एकेश्वरवाद की आस्था की रक्षा की और इस के लिए उन्होंने बड़े बुनियादी कार्यक्रम तैयार किए।

 

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अपने जीवन में हमेशा अब्बासी शासकों की कड़ाइयों का सामना करना पड़ा और लोगों के साथ उनके संपर्क में हमेशा रुकावटें डाली गईं। यही कारण था कि उन्होंने कुछ विशेष युक्तियां अपनाईं जिनमें से एक उनके वकीलों या प्रतिनिधियों का संगठन बनाना था। यह गुप्त संगठन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में गठित हुआ था और इसने गोपनीय रूप से अपनी गतिविधियां जारी रखी थीं। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में यह संगठन एक औपचारिक और नए संगठन के रूप में ख़ास विशेषताओं के साथ सामने आया। इस अहम संगठन ने ज्ञान व धर्म की दृष्टि से लोगों की ज़रूरतों को मुख्य स्रोत तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त की जिसका आरंभिक परिणाम वैचारिक और आस्था संबंधी संदेहों का समाप्त होना था।

इसी काल में इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने ईरान, इराक़, यमन और मिस्र में अपने अनुयाइयों से, अपने प्रतिनिधियों और इसी प्रकार पत्रों के माध्यम से निरंतर संपर्क बनाए रखा। वे अपने प्रतिनिधियों में अनुशासन बनाए रखने के लिए हर थोड़े समय के बाद किसी प्रतिनिधि को हटाते और किसी दूसरे को नियुक्त करते थे। वे अपने आदेशों के माध्यम से उनका मार्गदर्शन भी करते रहते थे। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के प्रतिनिधियों ने धर्म और आस्था संबंधी मामलों में अत्यंत सकारात्मक भूमिका निभाई। कभी कभी उनमें से कोई पहचान लिया जाता और शासक के कारिंदे उसे गिरफ़्तार करके जेल में डाल देते थे। जेल में उन्हें भयावह यातनाएं दी जाती थीं जिसके चलते कुछ लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठते थे। अलबत्ता कुछ प्रतिनिधि ऐसे भी होते थे जो इमाम द्वारा निर्धारित दिशा से भटक जाते थे जिसके बाद इमाम उचित समय पर सही युक्ति द्वारा दूसरों को उनके स्थान पर ले आया करते थे।

सही लोगों की पहचान, उन्हें इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर प्रशिक्षित करना और उन्हें समाज के लिए आवश्यक ज्ञान व गुण से लैस करना सभी धार्मिक नेताओं के अहम दायित्वों में शामिल है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने भी, अब्बासी शासकों की ओर से लगाए जाने वाले हर तरह के प्रतिबंधों के बावजूद जिन्होंने इमाम तक लोगों की पहुंच को रोक रखा था, अनेक लोगों का प्रशिक्षण किया। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार विभिन्न ज्ञानों के बारे में जिन लोगों ने इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम से हदीसें बयान की हैं उनकी संख्या दो सौ के क़रीब है और उनमें ऐसे प्रतिष्ठित लोग भी शामिल हैं जिन्होंने अनेक ज्ञानों के बारे में किताबें लिखी हैं। अब्दुल अज़ीम हसनी भी इमाम के शिष्यों में से एक हैं। इसी तरह ख़ुरासान के रहने वाले फ़ज़्ल बिन शाज़ान भी इमाम अली नक़ी के अहम शिष्य हैं। इसके अलावा इमाम हादी के ऐसे भी शागिर्द हैं जिनकी शासन में अच्छी पैठ थी। इब्ने सिक्कीत उन्हीं लोगों में से एक हैं। वे इमाम के शिष्य थे लेकिन उन्होंने दरबार में अपना प्रभाव बनाया और वे इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के शास्त्रार्थों में भी उपस्थित होते थे।

अपनी पूरी विभूतिपूर्ण आयु में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के सद्गुण और उनकी प्रतिष्ठा इस प्रकार की थी कि बनी अब्बास के अत्याचारी शासक अपनी भरपूर कड़ाई के बावजूद इमाम के मार्गदर्शन के प्रकाश को सहन नहीं कर सके। उन्होंने इस्लामी समुदाय को इमाम के विचारों से दूर रख कर समाज में बुराइयों को फैलाने की कोशिश की ताकि इस प्रकार अपने शासन को सुरक्षित रख सके लेकिन इमाम हादी अलैहिस्सलाम हमेशा, शासकों की चालों और हथकंडों से लोगों को अवगत कराते रहते थे और विभिन्न अवसरों पर अत्याचारी शासकों के चेहरे पर पड़ी नक़ाब उलटते रहते थे। यही कारण था कि अब्बासी शासक उनके अस्तित्व को अपने हितों व लक्ष्यों के लिए बहुत बड़ी रुकावट समझते थे। इमाम के प्रति उनका द्वेष विभिन्न रूपों में सामने आता रहता था। इस प्रकार से कि अब्बासी ख़लीफ़ा मोतज़ ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अपने रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रचा। उसने वर्ष 254 हिजरी क़मरी में अपनी इस निंदनीय साज़िश को व्यवहारिक बना दिया।