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«टाइम्स ऑफ इंडिया»के हवाले बताया कि यह प्रदर्शनी इस्लाम के सही अर्थ को बताने के लिए भारत के राज्य "कर्नाटक" के शहर "मंगलौर" में 5 दिनों के लिए 'चमत्कार' नामी कुरानी प्रदर्शनी आयोजित किया गया।

इस बैठक के दौरान अन्य विषयों जैसे भ्रूणविज्ञान, मानव शरीर रचना विज्ञान, शराब के हानिकारक प्रभावों,आईएसआईएस और आतंकवाद की कुरान के अनुसार जांच की गई।

प्रदर्शनी अधिकारियों में से मोहम्मद हनीफ, ओपीनाथ ग़ाधी ने कहा कि इस्लाम हमको शांति सिखाता है और पवित्र कुरान स्पष्ट रूप से हत्या से मना करता है।

उन्होंने कहा कि कुरान के अनुसार अग़र किसी ने अग़र कोई कीसी मानव को मारे तो ग़ोया उसने सभी मानवता को मार डाला है।

ओपीनाथ ग़ाधी ने कुरान की शिक्षाओं पर बल दिया: कुछ लोग़ इस्लाम को आतंकवाद संबंधित करते है जो पूरी तरह से गलत हैं।

यह 5 दिवसीय प्रदर्शनी 10 जनवरी से शुरू हुआ, हर दिन विभिन्न धर्मों के 5 हजार लोग आते थे।

रविवार, 15 जनवरी 2017 11:55

हज़रत मासूमा का स्वर्गवास

हज़रत मासूमा का जन्म वर्ष 173 हिजरी क़मरी के ज़ीक़ादा महीने में हुआ और वर्ष 201 हिजरी क़मरी के रबीउस्सानी महीनें उन्होंने इस नश्वर संसार से विदा ली। पवित्रता और आध्यात्मिक महानता की दृष्टि से उनका स्थान बहुत ऊंचा है।

संयम, सहनशीलता और दृढ़ता उनके व्यक्तित्व की स्पष्ट विशेषताएं हैं। रबीउस्सानी महीने की दस तारीख़ को हज़रत मासूमा का स्वर्गवास हुआ और पूरा इस्लामी जगत शोक में डूब गया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में क़ुम नगर में क़दम रखकर इस शहर को हमेशा के लिए सुशोभित कर दिया और इसी नगर में उनका निधन हो गया। हम भी अपने दिलों को इस महान हस्ती की ओर उन्मुख करते हुए उन पर सलाम भेजते हैं। सलाम हो आप पर हे पवित्र, प्रशंसनीय, सदाचारी, बुद्धिमान और ईश्वर की पसंदीदा हस्ती।

हज़रत मासूमा का पालन पोषण एसे ख़ानदान में हुआ जो ज्ञान, सदाचार और शिष्टाचारिक विशेषताओं की दृष्टि से अद्वितीय था। उनके पिता सातवें इमाम हज़रत मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम थे और उनकी माता हज़रत नजमा ख़ातून थीं जिन्हें पहली संतान अर्थात हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के जन्म के बाद ताहेरा अर्थात पवित्र की उपाधि मिली थी। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की संतानों में हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के बाद हज़रत मासूमा ज्ञान और शिष्टाचार की दृष्टि से सबसे बड़े दर्जे पर थीं। यह बात ईश्वरीय दूतों द्वारा उनकी प्रशंसा से पूरी तरह स्पष्ट है।

हज़रत मासूमा को करीमए अहले बैत अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के ख़ानदान की महान दाता की उपाधि मिली जो पैग़म्बरे इस्लाम के वंशजों में से किसी भी महिला को नहीं मिली। उनकी एक अन्य उपाधि थी सिद्दीक़ा अर्थात बड़ी सच्ची महिला। उनकी एक अन्य उपाधि मुहद्देसा अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम तथा अन्य ईश्वरीय दूतों के कथनों की ज्ञानी महिला थी। अपने भाई हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में हज़रत मासूमा हदीसें बयान करके आम लोगों को ईश्वरीय तथ्यों से अवगत करवाती थीं। वह अपने पिता और पूर्वजों की हदीसें और कथन बयान करती थीं जो शीया और सुन्नी धर्मगुरुओं के लिए ज्ञान का आधार बनीं। हज़रत मासूमा द्वारा बयान किए गए कथनों में चूंकि किसी शक और संदेह की गुंजाइश नहीं होती थी अतः उन्हें सभी लोग स्वीकार करते थे। उदाहरण स्वरूप हज़रत मासूमा ने एक हदीस बयान की कि पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि जान लो कि जो भी पैग़म्बर के वंशजों की मुहब्बत में मरे व शहीद है।

इतिहासकारों ने लिखा है कि एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के श्रद्धालु फ़िक़ह तथा अन्य विषयों के बारे में अपने कुछ सवाल लेकर मदीना नगर पहुंचे। वह पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से अपने सवालों के जवाब प्राप्त करना चाहते थे। जब यह लोग हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के घर पहुंचे तो पता चला कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम सफ़र पर गए हुए हैं। उन्होंने अपने सवाल लिखित रूप में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के घर दे दिया और कहा कि जब अगली बार वह मदीना आएंगे तो अपने सवालों के उत्तर ले लेंगे। कुछ दिन बाद वह मदीने से रवाना होने से पहले इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के घर विदा लेने गए तो उन्हें पता चला कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सुपुत्री हज़रत मासूमा ने सारे सवालों के जवाब लिखकर तैयार कर दिए हैं। अपने सवालों के जवाब पाकर वह सब बहुत ख़ुश हुए। जब वह लोग मदीना से लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम मिले। उन लोगों ने पूरी बात इमाम को बताई। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने सवाल और उनके जवाब देखे तो कहा कि सारे जवाब सही हैं और फिर भावुक होकर कहा कि इस बेटी पर बाप क़ुरबान जाए।

 

वैसे तो नबी और इमाम की एक विशेषता मासूम अर्थात हर प्रकार के गुनाह और ग़लती से सुरक्षित होना है लेकिन कुछ ऐसे लोग भी इतिहास में गुज़रे हैं जो इमाम और नबी न होने क बावजूद अपनी तपस्या और पवित्रता से बहुत महान स्थान पर पहुंचे और उन्होंने ख़ुद को हर प्रकार की ग़लती और भूल से सुरक्षित बना लिया। शिष्टाचारिक बुराइयां उनसे कोसों दूर रहीं। हज़रत मासूमा भी ऐसी ही हस्तियों में से एक थीं। उनका नाम फ़ातेमा कुबरा था लेकिन वह इतने महान आध्यात्मिक स्थान पर पहुंच गईं कि उनके भाई हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने उन्हें मासूमा की उपाधि दी। उन्होंने कहा कि जिनके भी क़ुम में मासूमा की क़ब्र की ज़ियारत की उसने मानो मेरी ज़ियारत की है। इससे पहले हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के दादा हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम  भी जब क़ुम और इस शहर की महानता के बारे में बात होती तो हज़रत मासूमा का उल्लेख करते हुए कहते कि क़ुम छोटा कूफ़ा है। स्वर्ग के आठ दरवाज़े हैं और इनमें तीन दरवाज़ें क़ुम की ओर खुलते हैं। मेरी औलाद में से एक महिला वहां दफ़्न होगी जिसका नाम फ़ातेमा होगा और जिसकी सिफ़ारिश से शीया स्वर्ग में जाएंगे।

हज़रत मासूमा ने अपने भाई हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के लिए मदीने से जो यात्रा की वह उनकी राजनैतिक और सामाजिक कार्यशैली को समझने के लिए काफ़ी है। जब अब्बासी ख़लीफ़ा मामून ने हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनने पर मजबूर दिया और उन्हें मदीना छोड़कर मर्व जाना पड़ा तो हज़रत मासूमा ने अपने भाइयों और श्रद्धालुओं के साथ मर्व जाने का इरादा किया ताकि अब्बासी शासकों के असली चेहरे को बेनक़ाब करें और समाज के लोगों को असली स्थिति से अवगत करवाएं। इस यात्रा में हज़रत मासूमा ने धर्म की शिक्षाओं का प्रचार किया। उन्हेंने इमामत के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को बयान किया और अब्बासी शासकों की हक़ीक़त आम लोगों के सामने खोल कर रख दी। जब हज़रत मासूमा मदीने से निकलीं और रास्ते में अब्बासी शासक के कारिंदों ने उनके कारवां पर हमला किया और झड़पें हुईं तो सबको मालूम हो गया कि मामून ने हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी केवल जनता को धोखा देने और अपनी छवि सुधारने के लिए बनाया है। जब हज़रत मासूमा का कारवां सावे शहर के क़रीब पर पहुंचा और उस पर अब्बासी शासक के कारिंदों का हमला हुआ तो सबको मालूम हो गया कि अब्बासी ख़लीफ़ा पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों का दुशमन है। अब्बासी ख़लीफ़ा के कारिंदों ने हज़रत मासूमा के कारवां का रास्ता रोक लिया और उनके काफ़िले में शामिल कई लोगों को शहीद कर दिया। यह घटना इतनी भयानक थी कि इसके  कारण हज़रत मासूमा गंभीर रूप से बीमार हो गईं। जब हज़रत मासूमा को यह यक़ीन हो गया कि वह मर्व की ओर अपनी यात्रा जारी नहीं रख सकेंगी तो उन्होंने अपने कारवां के लोगों से कहा कि क़ुम की ओर बढ़ें। उन्होंने इसकी वजह भी बयान की। हज़रत मासूमा ने कहा कि मुझे क़ुम ले चलो इस लिए कि मैंने अपने पिता से सुना है कि यह शहर पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के श्रद्धालुओं का है। इस निर्णय से भी हज़रत मासूमा की दूरदर्शिता और ज्ञान पूर्णतः स्पष्ट है।

 

 जब क़ुम के लोगों को यह पता चला कि हज़रत मासूमा इस शहर की ओर आ रही हैं तो पूरा शहर उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़ा। सअद ख़ानदान के मूसा इब्ने ख़ज़रज सबसे पहले हज़रत मासूमा के पास जा पहुंचे और हज़रत मासूमा के ऊंट की मेहार अपने हाथ में ले ली और उन्हें अपने घर लाए। लेकिन हज़रत मासूमा सावे की घटना से इतनी आहत थीं कि वह बीमारी से उबर नहीं सकीं और 16 या 17 दिन बाद उनका निधन हो गया।

हज़रत मासूमा ने क़ुम में 16 या 17 दिन मूसा इब्ने ख़ज़रज के घर में एक उपासना स्थल में व्यतीत किए जो आ भी बाक़ी है। इस समय वहां बड़ी वैभवशाली इमारत बनी हुई है जिसमें अनेक कमरे है। और वहां धार्मिक शिक्षार्थी रहते हैं। इस इमारत से लगी हुई एक मस्जिद है।

हज की वेबसाइट के हवाले से, हुज्जतु ल इस्लाम सैय्यद अली क़ाजी, हज और तीर्थयात्रा मामलों में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि और ईरानियों के सरपरस्त ने कहा, इन्शाअल्लाह, उसी तारीख पर कि सऊदी अधिकारियों ने कहा है ईरानी प्रतिनिधिमंडल वार्ता के लिए सऊदी अरब की यात्रा करेगा।

हज मामलों में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि इस बारे में कि ईरानी प्रतिनिधिमंडल किस तारीख में सऊदी अरब का दौरा करेगा, कहाः ईरानी प्रतिनिधिमंडल 24 फ़रवरी को सऊदी अरब की यात्रा करेगा और हम आशा करते हैं कि इस बैठक में अपनी स्थिति को स्पष्ट कर सकें और विशिष्ट परिणाम प्राप्त कर सकें।

क़ाज़ी अस्कर इस बारे में कि हमारे देश के विदेश मंत्री ने घोषणा की है कि हज तमत्तो इस साल ना मुम्किन है,कहाःकि वर्तमान में इस बारे में कोई बात यक़ीनी नहीं है और हम जब तक हमारे लिऐ शरायत मौजूद होंगे तो हज में जाऐंगे लेकि बिला शक समस्याऐं अधिक हैं उनका समाधान होना चाहिऐ।

 

 

पश्चिम की ओर से ईरान पर लगे प्रतिबंधों के हटने के बाद भारतीय तेल कंपनियों ने ईरान से बड़ी मात्रा में तेल आयात करना आरंभ कर दिया है।

रोइटर्ज़ के हवाले से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार भारत ने वर्ष 2016 में ईरान से तेल आयात करने में रिकार्ड तोड़ वृद्धि की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत द्वारा ईरान से बड़ी मात्रा में तेल ख़रीदने की वजह से वर्ष 2016 में ईरान, भारत के तेल की आपूर्ति करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है जबकि वर्ष 2015 में ईरान पांचवें नंबर पर था। प्रतिबंधों से पहले तक ईरान, भारत को तेल की आपूर्ति करने वाले दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश था।

रिपोर्टों से पता चलता है कि वर्ष 2016 में दुनिया में तीसरे नंबर पर सबसे अधिक तेल ख़र्च करने वाले देश के रूप में भारत ने प्रतिदिन चार लाख 73 हज़ार बैरल तेल ईरान से ख़रीदे जबकि वर्ष 2015 में यह संख्या 2 लाख 8 हज़ार तीन सौ बैरल प्रतिदिन थी।

दिसंबर के महीने पिछले वर्ष की तुलना में ईरान से भारत ने तीन गुना तेल आयात किया है और इस प्रकार प्रतिदिन पांच लाख 46 हज़ार 600 बैरल तेल ईरान से ख़रीदता रहा है। भारतीय तेल कंपनियों ने वर्ष 2015 में ईरान पर लगे पश्चिम के प्रतिबंधों और बीमा समस्याओं के कारण ईरान से तेल ख़रीदना कम कर  दिया था।

रिलायंस इन्टरप्राइज़ेज़, भारत पेट्रोलियम, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम और मित्तल एनर्जी जैसी भारत की प्रसिद्ध तेल कंपनियों ने पिछले वर्ष तेहरान की ओर से दी गयी भारी छूट के बाद ईरान से पुनः तेल की ख़रीदारी शुरु कर दी।   

 

समाचार चैनल अल-आलम के हवाले से, संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय ने सोमवार को कहाःपिछले सात दिनों में, 22 हजार रोहिंग्याई मुसलमान म्यांमार से बांग्लादेश के लिए भाग गए। पिछले वर्ष अक्टूबर से म्यांमार में रोहिंग्याई मुसलमानों के खिलाफ सैन्य अभियान की शुरुआत के बाद से, 65 हजार लोग बांग्लादेश के लिए भाग चुके हैं।

म्यांमार सेना, रोहिंग्याई मुसलमानों पर नौ पुलिस वालों की हत्या का आरोप लगाती है। बहुत से रोहिंग्याई शरणार्थियों ने, म्यांमार सेना पर नरसंहार, बलात्कार के कृत्य और मकान जलाने का आरोप लगाया है।

पिछले हफ्ते, म्यांमार सरकार ने वादा किया था 4 अधिकारियों को जिन्हों ने एक वीडियो में रोहिंग्याई युवाओं के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल किया है परिक्षण करेगी। लेकिन इस देश की सरकार, सेना और सुरक्षा बलों के खिलाफ लगाऐ गए सभी आरोपों से इनकार कर दिया।

कुछ 1 मिल्युन 1 लाख रोहिंग्याई मुस्लिम म्यांमार के राखिने राज्य में रहते हैं,इस देश की बहुमत बौद्ध ने उन्हें धार्मिक अल्पसंख्यकों के बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया है। "यांग ली", म्यांमार मामलों में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के प्रतिनिधि ने वर्तमान में इस देश का दौरा किया है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने एक संदेश में आयतुल्लाह हाशमी रफसन्जानी के निधन का संवेदना प्रकट की है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने अपने संदेश में कहा है कि बहुत दुख की बात है कि इस्लामी क्राति के आंदोलन में साथ साथ संघर्ष करने वाले और इस्लामी गणतंत्र के काल में बरसों तक एक साथ काम करने वाले अपने पुराने साथी हुज्जतुलइस्लाम वल मुसलेमीन हाज शैख अकबर हाशमी रफसंजानी के अचानक निधन की खबर मिली।

आयतुल्लाह हाशमी रफसन्जानी का निधन!

 मेरे लिए 59 वर्षों तक एक साथ काम करने वाले अपने इस साथी को खोना कठिन है। इन दसियों वर्षों के दौरान हमने न जाने कितनी कठिनाइयां सहन की और न जाने कितने अवसरों पर हमारी समान सोच व विचारधारा ने हमें एक राह पर आगे बढ़ाया और खतरों को स्वीकार करने और कोशिश करने पर हमें प्रोत्साहित किया। 

वरिष्ठ नेता ने अपने संदेश में कहा है कि इस लंबी अवधि में  मतों और विचारों में मतभेद हमारी उस दोस्ती के बंधन को कमज़ोर नहीं कर पाए जिसका आरंभ पवित्र नगर कर्बला से हुआ था और न ही इन हालिया वर्षों में वैचारिक मतभेदों से फायदा उठाने की भरसक कोशिश करने वाले मेरे प्रति उनके प्रेम में कमी ला पाए। 

वह राजशाही शासन व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष की पहली पीढ़ी के अनुदाहरणीय आदर्श थे और इस खतरनाक व दुखदायी राह में बहुत दुख उठाये हुए थे। वर्षों तक उन्होंने सावाक की ओर से दी जाने वाली यातनाएं सहन की जेल गये लेकिन डटे रहे और फिर पवित्र रक्षा के दौरान बड़ी बड़ी ज़िम्मेदारियां उठायीं संसद सभापति रहे और विशेषज्ञ परिषद आदि के प्रमुख रहे और यह सब उतार चढ़ाव  भरे इस पुराने संघर्षकर्ता के जीवन के स्वर्णिम अध्ययाय हैं।  

हाश्मी रफसन्जानी के निधन के बाद अब मैं किसी एेसी हस्ती को नहीं जानता जिसके साथ उतार चढ़ाव भरे व इतिहासिक चरण में  मेरा संयुक्त व दीर्घकालिक अनुभव हो। इस समय यह प्राचीन संघर्षकर्ता विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से भरे अपने कर्मपत्र के साथ ईश्वरीय अदालत में है और इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के हम तमाम अधिकारियों का भविष्य यही है।

 

मैं दिल की गहराइयों से उनके लिए ईश्वर की कृपा व क्षमाशीलता की दुआ करता हूं और उनकी जीवन साथी, उनकी संतान , भाइयों और अन्य परिजनों की सेवा में संवेदना प्रकट करता हूं।

ईश्वर हमें और उन्हें माफ करे।

सैयद अली ख़ामेनई।

19 दैय 1395 हिजरी शम्सी    

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल देकर कहा है कि एक आत्मनिर्भर और प्रगतिशील ईरान के मुख्य शत्रु अमरीका, ब्रिटेन, अंतर्राष्ट्रीय पूंजीपति और ज़ायोनी हैं।

19 दैय माह 1356 हिजरी शम्सी बराबर 8 जनवरी 1978 की क्रांतिकारी कार्यवाही की वर्षगांठ के अवसर पर पवित्र नगर क़ुम के हज़ारों लोगों ने तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।  उन्होंने   गगनभेदी नारे लगाकर अपने लोकप्रिय धर्मगुरू और नेता के प्रति असीम प्रेम प्रकट किया।

पवित्र नगर क़ुम से आए हज़ारों क्रांतिकारी नागरिकों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा कि मुख्य विदेशी शत्रुओं को एक नारे में नहीं बल्कि एक तर्क संगत आधार पर आधारित वास्तविकता में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमरीका के तथाकथित चरित्रवान विदेशमंत्री ने अपने विदाई पत्र में अगली सरकार को सलाह दी है कि ईरान के साथ कड़ाई की जाए और प्रतिबंधों को जारी रखा जाए क्योंकि ईरान से कड़ाई द्वारा ही विशिष्टताएं प्राप्त की जा सकती हैं।  उन्होंने कहा कि इस शत्रु में और उस शत्रुता में कोई अंतर नहीं है जो ईरान को दुश्मनी की धुरी कहता है।

वरिष्ठ नेता ने ब्रिटेन की दुश्मनी के बारे में कहा कि बूढ़ा और निष्क्रय ब्रिटिश साम्राज्यवाद, एक बार फिर फ़ार्स की खाड़ी में आ पहुंचा है और क्षेत्र के अपने घटक देशों को प्रयोग करके अपने हितों को साधाने के प्रयास में है।  अब जबकि वह स्वयं एक वास्तविक ख़तरा है, दावा कर रहा है कि ईरान ख़तरा है।

उन्होंने कहा कि आज ब्रिटिश हल्क़े, क्षेत्र और ईरान के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं और उनमें से एक षड्यंत्र, क्षेत्र के देशों इराक़, सीरिया, यमन और लीबिया को विभाजित करना है।   इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि वे लोग ईरान के बारे में भी इसी प्रकार के विचार रखते हैं किंतु वे ईरानी जनमत से बहुत डरते हैं इसलिए ईरान का नाम नहीं लेते।   

उन्होंने कहा कि ब्रिटेन अपने हिसाब से जेसीपीओए के बाद के चरण में ईरान पर प्रतिबंध लगाने और उसको सीमित करने के लिए कार्यक्रम बना रहा है और इसी प्रकार वह ईरान सहित क्षेत्र के स्थानीय लोगों को   ट्रेनिंग  दे कर सशस्त्र कर रहा है ताकि यह लोग बुरी तरह से इस्लामी व्यवस्था और ईरानी राष्ट्र के पीछे पड़ जाएं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने राजनीति से धर्म को अलग करने और धार्मिक राजनीति से मुक़ाबले के लिए अमरीका और ब्रिटेन के थिंक टैंकों के षड्यंत्रों और योजनाओं की ओर से संकेत करते हुए कहा कि यह लोग एेसे धर्म के प्रयास में हैं जो मस्जिदों और घरों के अंदर और लोगों के भीतर सीमित रहने वाला धर्म हो न कि एेसा धर्म जो आर्थिक और राजनैतिक मैदान में सक्रिय होने के साथ दुश्मन के वर्चस्व को नकारने वाला हो।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दुश्मन उस धर्म से डरते हैं जो अर्थशास्त्र, शक्ति, राजनीति, सेना और वित्तीय सिस्टम सहित पूरी एक व्यवस्था हो, यही कारण है कि शुद्ध धर्म वह है जो जीवन से अलग न हो और राजनीत को भी अपने साथ लिए हो।

वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार दुश्मनों द्वारा ईरानी राष्ट्र की सही पहचान न होने की ओर संकेत करते हुए सन 88 हिजरी शम्समी में हुए दंगों को दुश्मनों के ग़लत समीकरणों की स्पष्ट निशानी बताया।  उन्होंने कहा कि दुश्मनों ने 88 हिजरी शम्सी में दंगे करवाकर अपने हिसाब से मिशप को संवेदनशील चरण में पहुंचा दिया था किन्तु 9 दैय की घटना ने सभी को आश्चर्य चकित कर दिया जो 19 दैय 1356 की क्रांति से प्रेरित थी।  

ज्ञात रहे कि क़ुम के हज़ारों लोगों ने 19 देइ 1356 की क्रांतिकारी घटना की 39वीं वर्षगांठ पर तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से भेंट की।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल दिया है कि एक राष्ट्र और एक देश की वैज्ञानिक प्रगति के साथ क्रांतिकारी और उच्च अध्यात्मिक उमंगे, क्षेत्र, इस्लामी जगत और दुनिया के लिए आदर्श बनने की भूमिका प्रशस्त करेंगी।

वरिष्ठ नेता से सोमवार को शरीफ़ पाॅलिटेक्निक कालेज के मेधावी और पदक प्राप्त करने वाले छात्रों ने मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने कहा कि भौतिक क्षेत्र में पश्चिम की भारी प्रगति के बावजूद, पश्चिमी सभ्यता के वर्तमान आधारों की कमज़ोरी, कमियों और मतभेदों का कारण, ईश्वरीय व अध्यात्मिक उमंगों का न होना है।

उन्होंने कहा कि अमरीका के कुछ विचारकों और बुद्धिजीवियों ने स्पष्ट रूप से पश्चिमी समाजों विशेषकर अमरीका में विभिन्न प्रकार की वैचारिक, वैज्ञानिक और शिष्टाचारिक पथभ्रष्टताओं, पारिवारिक आधारों के धराशायी होने, हिंसाओं में दिन प्रतिदिन की वृद्धि, नैतिक भ्रष्टाचार और आत्महत्याओं की बात स्वीकार की है।

उन्होंने अमरीकी समाज में बढ़ती हिंसाओं और हथियारों से लोगों के जनसंहार की ओर संकेत करते हुए कहा कि अमरीका में शस्त्रों के प्रचलन और लोगों को मौत के घाट उतार देना, एक गंभीर समस्या में परिवर्तित हो गया है और इसका उपचार, लोगों के मध्य हथियारों के प्रयोग को रोकना है किन्तु अमरीका में शस्त्र निर्माण कंपनियों के माफ़िया के वर्चस्व के कारण इस देश के सत्ताधारी लोगों में शस्त्रों के प्रयोग को ग़ैर क़ानूनी करने का साहस नहीं है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था से कैसे लाभ उठाया जाए यह देशों के लक्ष्यों पर निर्भर है। उनका कहना था कि यह विषय कि प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था विश्व शक्तियों के मुक़ाबले में चाहे वह बुरा चाहने वाली हों या बुरा चाहने वाली न हों, ईरान की रक्षा करेगी और यह एक अटल सच्चाई है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले ढेड़ सौ वर्ष के दौरान अमरीका की वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति का कारण प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था से लाभ उठाना था। उनका कहना था कि अलबत्ता अमरीकियों ने इस विचार को भौतिक लाभ और पैसे जमा करने के लिए प्रयोग किया किन्तु विश्व स्तर पर स्वीकृत इसी अनुभव से लाभ उठाते हुए सर्वेच्च लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार बल दिया कि ईरान में वैज्ञानिक प्रगति और वैज्ञानिक प्रयासों को कभी भी सुस्त नहीं होना चाहिए या कभी भी नहीं रुकना चाहिए बल्कि पूरी तेज़ी के साथ जारी रहना चाहिए।

 

विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव को पत्र लिखकर म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की दुखद स्थिति पर गंभीर रूप से ध्यान देने की अपील की है।

मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने अंटोनियो गुटेरस को लिखे गए पत्र में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति बद से बदतर होने पर चिंता प्रकट की है।  उन्होंने कहा है कि इन मुसलमानों के अधिकारों के हनन को तुरंत रोके जाने और उनतक तत्काल मानवीय सहायता पहुंचने की आवश्यकता से म्यांमार सरकार को अवगत कराया जाना चाहिए। इस पत्र में कहा गया है कि रोहिंग्या मुसलमान अपने आरंभिक अधिकारों से वंचित हैं और प्रतिदिन जनसंहार और हिंसक रवैये का शिकार बन रहे हैं जबकि उनमें से बहुत से लोग अन्य देशों में शरणार्थियों का जीवन बिता रहे हैं।

 

ईरान के विदेशमंत्री ने अपने पत्र में बल देकर कहा है कि रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति ने, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र और मानवाधिकारों के बुनियादों दस्तावेज़ों से विरोधाभास रखती है, विश्व समुदाय और इस्लामी जगत में गहरी चिंता उत्पन्न कर दी है। मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनियो गुटेरस को लिखे पत्र में कहा है कि म्यांमार की सरकार से विश्व समुदाय को अपेक्षा है कि रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति के बारे में पूरा कंट्रोल अपने हाथ में ले और इस बात की अनुमति न दे कि हिंसक व चरमपंथी गुट, बुद्धमत की शांतिपूर्ण छवि को बिगाड़ दें।

 

आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी ने आज की दुनिया की राजनीति की आलोचना करते हुए कहा है कि दुनिया की राजनीति झूठ और पाखंड से भरी पड़ी है।
उन्होंने कहा कि हम दुनिया के राजनीतिक माहौल में अपने विश्वास को बहुत तेजी से खो रहे हैं और पश्चिम से दोहरे मापदंड की राजनीति ने एक अविश्वसनीय वातावरण बनाया है आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी ने कहा कि पश्चिम की ऐसी नीतियों का स्पष्ट उदाहरण सीरिया के हलब शहर में आतंकवादियों की हार है जिसके बाद घड़ियाली आंसू बहाए गए लेकिन हलब में हत्या किए जाने वाले मासूम बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन होगा।
यूनिसेफ के अनुसार, एक हजार यमनी मासूम बच्चे हर हफ़्ते हवाई और जमीनी बमबारी और कुपोषण के कारण मौत का शिकार होते हैं।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सौभाग्य से दुनिया पश्चिम नीतियों से बहुत अच्छी तरह परिचित है और उन्हें मगरमच्छ के आंसू बहाने से कोई लाभ नहीं होगा।