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पाकिस्तान से अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी इस संगोष्ठी में विभिन्न शिया और सुन्नी दलों जैसे जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान, शिया उलेमा काउंसिल, मजलिसे वहदतुल मुस्लिमीन के विद्वानों और विचारकों और अन्य दलों ने भाग लिया।

इस सेमिनार के वक्ताओं ने दुनिया में मुसलमानों की समस्याओं को हल करने के लिए उचित तरीकों की तलाश और मुस्लिम एकता में विद्वानों की भूमिका पर भाषण दिऐ।

इस संगोष्ठी में जो कि "एकता वीक और ईद मिलाद नबी (स.) " के अवसर पर आयोजित की गई थी, अल्लामा सैयद साजिद अली नक़वी, पाकिस्तान में सर्वोच्च नेता प्रतिनिधित्व, मौलवी राजा नासिर अब्बास, मुस्लिम एकता की परिषद के महासचिव और लियाकत बलूच, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के महासचिव ने इस्लामी संप्रदायों के बीच एकता पर जोर देने के साथ, सुन्नियों और शियाओं के बीच मतभेद को इस्लाम के दुश्मनों की साजिश बताई और पाकिस्तान में एकता पैदा करने में विद्वानों की भूमिका की बात की।

सेमिनार में मौजूद उलमा ने वर्तमान इस्लामी दुनिया में समस्याओं की ओर इशारा करते हुऐ मानव व इंसानी मुल्यों की रक्षा में उलमा व धार्मिक विचारकों की भूमिका को ज़रूरी तथा मुस्लिम विश्व में मतभेद को खतरनाक बताया।

वक्ताओं ने बल दियाःवर्तमान समय में इस्लामी समुदाय को उच्च स्तर पर समझौते व ऐकता की ज़रूरत है और यह समझ और ऐकता इस्लामी समुदाय में हासिल हो सकता है जब ऐक संयुक्त बोलती ज़बान वजूद में आजाऐ। और यह समझ और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिऐ एक दूसरे के विचारों का सम्मान करना पड़ेगा, इस्लामी समुदायों में ऐकता के लिऐ ऐक दूसरे की सुनना,सम्मान करना और स्वीकार करने का माहौल बनाना पड़ेगा।

 

भारत की राजधानी नयी दिल्ली में मंगलवार को रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में प्रदर्शन हुए।

मंगलवार को नयी दिल्ली में होने वाले प्रदर्शन में रोहिंग्या पलायनकर्ताओं ने भी भाग लिया।प्रदर्शन कारियों ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार की आलोचना की और दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के सामने एकत्रित होकर रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की चुप्पी की आलोचना की।

याद रहे हालिया सप्ताहों में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचारों का सिलसिला तेज़ हो गया है जिसकी विश्व स्तर पर आलोचना की जा रही है।  

 

 अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी  समाचार एजेंसी अराकान के हवाले से, हजारों भारतीय लोगों ने कल, 19 दिसंबर को नई दिल्ली भारत की राजधानी में, म्यांमारी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया।

यह विरोध प्रदर्शन सोमवार को नई दिल्ली के समय अनुसार 11 बजे शुरू हुआ और दोपहर एक बजे समाप्त हो गया।

इस प्रदर्शन में, भारतीय मुसलमानों और जम्मू, हरियाणा, हैदराबाद और अन्य शहरों से इस जगह के लिए बसों से लाऐ गऐ रोहिंग्याई शरणार्थियों स्वयं अपने मार्च का गठन किया।

प्रदर्शनकारी हाथों होल्डिंग उठा कर हज़ारों रोहिंग्याई मुसल्मानों की शांति स्थित की समीक्षा के लिऐ ऐक अंतरराष्ट्रीय व विशेष बोर्ड भेजने की मांग कर रहे थे और उनके लिऐ सुरक्षा व अम्न चाहते थे कि हर दिन इस शासन के सुरक्षा बलों की ओर से हत्या,अत्याचार,क़ैद और लूट मार का शिकार बनाया जारहा है।

इसी तरह विरोध प्रदर्शन के अंत में प्रतिभागियों ने जो कि रोहिंग्याई संगठनों, राजनीतिक दलों और हिंदी मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में आयोजित किया गया, संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने खड़े होकर नारे लगा कर अपना विरोध जताया।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए म्यांमार के उत्तर पश्चिम में राख़ीन प्रांत, रोहिंग्याई मुसल्मानों की एक बड़ी संख्या के रहने का स्थान, 2012 के बाद से अब तक, बौद्ध चरमपंथियों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ जातीय हिंसा का मैदान रहा है,इस हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान गई और दस्यों हजार लोगों ने मरने की आशंका से अपने घरों को छोड़ दिया और गंदे शिविरों में गंभीर परिस्थितियों में म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया में शरण लिया है।

म्यांमार सरकार मुसल्मानों को जो इस देश की 1,1 मिल्यून आबादी का हिस्सा है कम्पलीट नागरिक्ता का हक़ देने से मना कर रही है और उनको बंगलादेश से आऐ ग़ैर क़ानूनी मुहाजिर कहती है जब कि अधिकतम लोगों का मानना है कि रोहिंग्याई अल्पसंख्यकों का वंश व अस्लीयत म्यांमार में पुराना है।

रोहिंग्याई मुसलमानों को 1982 से एक नए कानून के मद्देनजर म्यांमार नागरिकता के अधिकार से वंचित किया गया है।

सहित संयुक्त राष्ट्र के अनुसार रोहिंग्या उन अल्पसंख्यकों में से है, जो दुनिया में सबसे अधिक उत्पीड़न और हिंसा का शिकार हैं।

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी  खबर «इंडिया टीवी समाचार»के हवाले से, भारत के राज्य "उत्तराखंड" सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान, जो परसों,18 दिसंबर को आयोजित हुई, यह निर्णय लिया गया है कि मुस्लिम कर्मचारियों के लिए विशेष 12;30 से 14 तक शुक्रवार को छुट्टी रहेगी।

हरीश रावत "उत्तराखंड" राज्य के मुख्यमंत्री ने कहाःइस बात पर ध्यान देते हुऐ कि अधिकतम मुसलमान प्रार्थना करने के पाबंद हैं तो हक़ रखते हैं कि औपचारिक रूप से एक समय उनके लिए निर्धारित किया जा सके।

यह निर्णय ऐक भारती पार्टी जो कि राष्ट्रीय बौध्द पार्टी है के विरोध का शिकार हुआ और इस पार्टी के वक्ता ने घोषणा की कि इस सूरत में बौधेदों को भी शनिवार व सोमवार को अपने इबादी काम अंजाम देने के लिऐ 2 घंटे की छुट्टी चाहिऐ।

"उत्तराखंड"सरकार ने अपने निर्णय की रक्षा करते हुऐ कहाःयह निर्णय चुनाव की पूर्व संध्या पर को मायूस न करने और काम के समय नमाज़ पढ़ने के लिऐ मुसल्मान कर्मचारियों की समस्याओं को दूर करने के लक्ष्य से लिया गया है।

भारतीय पीपुल्स पार्टी के प्रवक्ता ने दावा किया कि इस निर्णय से पता चलता है कि हरीश रावत सरकार लोगों के वोटों को आकर्षित करने के उद्देश्य से किसी भी मांग को स्वीकार कर सकती है।

 

17 रबीउल अव्वल मार्गदर्शन और प्रकाश के दूत पैग़म्बरे इस्लाम (स) का शुभ जन्म दिवस है।

सन 570 ईसवी को रबीउल अव्वल के महीने में पवित्र मक्का शहर में हज़रत का जन्म हुआ था। पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म के वर्ष और महीने के बारे में समस्त मुसलमानों के बीच सहमति है, हालांकि मुसलमानों के बीच उनके जन्म दिवस के बारे में थोड़ा सा मतभेद है। सुन्नी मुसलमानों के अनुसार, हज़रत रसूले ख़ुदा का जन्म सोमवार, 12 रबीउल अव्वल को हुआ था, जबकि शियों का मानना है कि हज़रत का जन्म शुक्रवार, 17 रबीउल अव्वल को हुआ था। इसलिए ईरान में शिया विद्वानों और सुन्नी विद्वानों के दृष्टिकोणों का सम्मान करते हुए और समस्त मुसलमानों के बीच एकता के उद्देश्य से 12 से 17 रबीउल अव्वल तक एकता सप्ताह की घोषणा की गई और दुनिया भर के मुसलमान इस सप्ताह का सम्मान करते हैं।

 

इसी प्रकार, 17 रबीउल अव्वल को शिया मुसलमानों के छठे इमाम हज़रत जाफ़र बिन मोहम्मद (अ) का शुभ जन्म दिवस भी है। छठे इमाम सादिक़ के नाम से प्रसिद्ध हैं। हज़रत के अन्य उपनाम साबिर, ताहिर और फ़ाज़िल भी हैं लेकिन तत्कालीन सुन्नी मुस्लिम विद्वानों ने हज़रत को सही और सच्ची हदीस बयान करने के कारण सादिक का लक़ब दिया, जो सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से विशेष किया है। वे इस रहस्यवादी किताब में इमाम का गुणगान कुछ इस प्रकार से करते हैं, अगर उनके किसी एक गुण का बखान करूं तो वह मेरे शब्दों और लेख में नहीं समा सकती, वे महान एवं संपूर्ण मार्गदर्शक थे। वे इस्लाम धर्म के समस्त मतों के इमाम थे, इसी प्रकार वे रहस्यवाद में रूची रखने वालों के मार्गदर्शक थे। आम लोग हों या विद्वान सभी उनका सम्मान करते थे। वे सत्य और वास्तविकता को उजागर करने वाले और क़ुरान एवं रहस्यों के अद्वितीय व्याख्याकार थे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपनी पूरी उम्र मानव समाज के लिए न्याय, शिक्षा और नैतिकता के लिए प्रयास किया। वे एकता और भाईचारे को उत्कृष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पहला क़दम बताते थे। इसीलिए मदीना पहुंचकर और आरम्भ में ही इस्लामी व्यवस्था की स्थापना करके, कई महत्वपूर्ण संधियां कीं। सबसे पहली संधि मदीना शहर के लोगों के साथ, इसमें मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम सभी शामिल थे।

इस संधि के पहले अनुच्छेद में, मदीना वासियों के लिए धर्म के चयन की आज़ादी का उल्लेख है और दुश्मन के मुक़ाबले में एकता पर बल दिया गया है। दूसरी संधि, मुहाजिर अर्थात अप्रवासियों और अंसार अर्थात स्थानीय लोगों के बीच भाईचारे की संधि थी। पलायनकर्ता पैग़म्बरे इस्लाम ने मस्जिदुन्नबी में मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा, आपस में दो दो लोग भाई बन जाएं। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों के बीच भाईचारे को बढ़ावा दिया और उनके बीच एकता को मज़बूत बनाया। ईश्वर पर ईमान की छत्रछाया, पैग़म्बरे इस्लाम की सिफ़ारिशों और आकाशवाणी के प्रति मुसलमानों के समर्पण के फलस्वरूप, यही एकता उनकी सफलता का कारण बनी।

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी इमामों ने भी उनकी शैली अपनायी। जिस प्रकार, पैग़म्बरे इस्लाम मुसलमानों के बीच किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिकता की अनुमति नहीं देते थे, उसी तरह से उनके उत्तराधिकारी इमामों ने भी क़ुरान और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण को आधार बनाकर मुसलमानों के बीच फूट डालने और साम्प्रदायिकता की अनुमति नहीं दी। इसलिए कि एकता बुद्धि और शरीयत के अनुसार, एक ज़रूरत है। साम्प्रदायिक मतभेदों के कारण मुसलमानों की एकता को भंग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के बाद, उनके उत्तराधिकारी हज़रत अली (अ) ने इस्लामी समाज में एकजुटता बने रहने के उद्देश्य से अपना अधिकार त्याग दिया और मुसलमानों के बीच फूट नहीं पड़ने दी। यही कारण है कि इमामों के जीवन में सुन्नी मुसलमानों से दूरी नहीं मिलेगी। उनका सुन्नी मुसलमानों के साथ अच्छा संपर्क और संबंध था। उनका ख़याल रखते थे और उनके साथ बैठकर खाना खाते थे। व्यवसाय में उन्हें अपना सहभागी बनाते थे और धार्मिक समारोहों में एक साथ भाग लेते थे। इसी प्रकार अपने अनुयाईयों से सिफ़ारिश करते थे कि हर उस क़दम से बचें।

दूसरे इमामों की भांति इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) भी शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करते थे और उन्हें इस्लामी अधिकारों में भागीदार मानते थे। वे फ़रमाते थेः मुसलमान, मुसलमान का भाई है और एक मुसलमान भाई पर दूसरे मुसलमान का अधिकार यह है कि वह अपना पेट नहीं भरता है, ऐसी स्थिति में कि जब उसका भाई भूखा होता है, वह ख़ुद पानी नहीं पीता है, जब उसका भाई प्यासा होता है, वह ख़ुद को नहीं ढांपता है, जब उसके भाई के पास ख़ुद को ढांपने के लिए कुछ नहीं होता है और मुसलमान भाई पर दूसरे मुसलमान भाई का अधिकार कितना अधिक है।

 

जब मआविया बिन वहब ने हज़रत से ग़ैर शियों के साथ बर्ताव के बारे में सवाल किया तो आप ने फ़रमाया, उन धर्मगुरूओं की ओर देखो जिनका वह अनुसरण करते हैं, जैसा वे बर्ताव करते हैं वैसा ही बर्ताव तुम करो, ईश्वर की सौगंध वे अपने रोगियों की देखभाल करते हैं और उनकी शव यात्रा में भाग लेते हैं और उनके लाभ और नुक़सान के लिए गवाही देते हैं और उनकी अमानत वापस करते हैं।

यही कारण है कि हम छठे इमाम के जीवन में देखते हैं कि वे समस्त मुसलमानों और समस्त इंसानों की आर्थिक सहायता करते थे। उनके एक शिष्य मोअल्ला बिन ख़नीस का कहना है, बारिश की एक रात इमाम सादिक़ (अ) बनी साएदा मोहल्ले में जाने के लिए अपने घर से बाहर निकले, मैं भी उनके पीछे पीछे चल दिया। रास्ते में कोई चीज़ उनके हाथ से गिर गई। मैं निकट गया और सलाम किया। मैंने देखा कि उनके कांधे पर जो रोटियां लदी हैं उनमें से कुछ गिर गई हैं। मैंने उन्हें उठाया और उन्हें दिया और कहा, मैं आपके क़ुर्बान जाऊं, अगर आपकी अनुमति हो तो इस भार को मैं उठा लूं? फ़रमायाः नहीं, इसे मैं ख़ुद ही उठाऊंगा। मोअल्ला आगे कहते हैं, बनी साएदा के यहां तक मैं इमाम के साथ गया, वहां मैंने कुछ निर्धन लोगों को सोते हुए देखा। इमाम जाफ़र सादिक़ आगे बढ़े, इस तरह से कि किसी की आंख न खुल जाए, उन्होंने हर एक के पास एक रोटी रखी, यह ऐसी स्थिति में था कि जब वे इमाम के अनुयाई नहीं थे।

सुन्नी मुसलमानों के चार इमामों में से एक इमाम शाफ़ेई, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) को बहुत बड़ा ज्ञानी और विशिष्ट व्यक्ति मानते हैं और कहते हैं कि बड़ी संख्या में धर्मगुरूओं ने इमाम से ज्ञान प्राप्त किया, जो एक विशिष्टता है। मोअतज़ली साहित्यकार जाहिज़ कहता है, जाफ़र इब्ने मोहम्मद का ज्ञान और धर्मशास्त्र दुनिया पर छा गया है।      

               

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः लोगों के बीच जब मतभेद हो जाए उस समय उनके बीच शांति की स्थापना और जब उनके बीच दूरी हो जाए उनके बीच दोस्ती करवाना, एक ऐसा पुण्य व दान है जिसे ईश्वर पसंद करता है। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम (स) की एक हदीस है जो कोई सुबह उठे लेकिन मुसमलानों के मामलों पर विचार न करे तो वह उनमें से नहीं है, और जो कोई मदद के लिए पुकार रहे किसी व्यक्ति की आवाज़ सुने लेकिन उसकी मदद न करे तो वह मुसलमान नहीं है।

यह और इस प्रकार की अन्य हदीसें मुलमानों के बीच एकता और बिना किसी भेदभाव के लोगों की सहायता पर बल देती हैं। क्योंकि इसी प्रकार लोगों के बीच एकता और एकजुटता की  स्थापना हो सकती है और दुश्मन निराश हो सकता है। इसलिए कि जहां लोगों के बीच सद्भावना होगी वहां दुश्मन की चालें सफल नहीं हो सकतीं।  

 

भारत और पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स) और उनके पौत्र हज़रत इमाम सादिक़ (अ) के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर कार्यक्रमों का सिलसिला जारी है।
भारत और पाकिस्तान से प्राप्त समाचारों के अनुसार दिल्ली और इस्लामाबाद में स्थित इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावासों में मुसलमानों की इस विशेष ईद पर, एकता सप्ताह के रूप में कार्यक्रम आयोजित किए गए।
भारत से हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार राजधानी नई दिल्ली में स्थित ईरान के सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित हुए एकता सप्ताह कार्यक्रम में मुसलमानों के हर मत ने भाग लिया। दिल्ली में शिया मुसलमानों के इमाम जुमा मौलाना मोहसिन तक़वी और सुन्नी मस्जिद के इमाम मौलाना मोहम्मद मुफ़्ती मुकर्रम अहमद भी शामिल हुए।
एकता सप्ताह के कार्यक्रम में शामिल तमाम धर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों ने इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमौनी द्वारा हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम (स) के जन्मदिवस के अवसर पर इस्लामी कलंडर के रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख़ से 17 तारीख़ तक एकता सप्ताह मनाने के फ़ैसले को इस सदी का सबसे महत्वपूर्ण और दूरदर्शीतपूर्ण फ़ैसला बताया।
दूसरी ओर भारत के ऐतिहासिक शहर लखनऊ में भी युवाओं द्वारा ईदे मिलादुन्नबी और हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ के जन्म दिवस को एकता सप्ताह के रूप में मनाया गया।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार युवाओं की सालेहीन नामक संस्था की ओर से आयोजित एकता सप्ताह में बड़ी संख्या में शिया और सुन्नी मुसलमानों ने भाग लिया। कार्यक्रम में शामिल सुन्नी धर्मगुरू मौलाना उबैद ने कहा की मुसलमानो में इस समय सबसे बड़ी ज़रूरत एकता की है, क्योंकि मुसलमान इस समय आपसी भाईचारे और एकता से बहुत दूर है। उन्होंने कहा कि हम सबको चाहिए के पैग़म्बरे इस्लाम (स) के द्वारा बताए गए रास्तों पर चलें और आपस में भाईचारा पैदा करे ताकि दुश्मनो की साज़ीशें नाकाम हो जाएं।
पाकिस्तान की राजधानी इस्लाबाद से हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार इस्लामाबाद में मौजूद ईरानी दूतावास की ओर से एक निजी होटल में ईदे मीलादुन्नबी के अवसर पर एकता के संबंध में एक प्रतिष्ठित समारोह आयोजित किया गया।
एकता सप्ताह के इस भव्य कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्री सरदार यूसुफ और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के विशेष सलाहकार इरफ़ान सिद्दीक़ी ने भाग लिया। समारोह में शिया उलेमा काउंसिल के प्रमुख अल्लामा सैयद साजिद अली नक़वी, मजलिस एकता मुसलमीन के महासचिव अल्लामा नासिर अब्बास जाफ़री और जमाते इस्लामी के महासचिव लियाक़त बलोच सहित विभिन्न मतों और धर्मों के विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।

 

तीसवां अतंरराष्ट्रीय एकता सम्मेलन, शनिवार की रात इस्लामी जगत में एकता तथा इस्लामी देशों के खिलाफ साज़िशों की ओर से सचेत रहने की ज़रूरत पर बल के साथ संपन्न हो गया।

एक एकता सम्मेलन के घोषणा पत्र में इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने वालों ने इस्लामी देशों में जारी परिवर्तनों का जायज़ा लिया तथा इसलामी जगत में मतभेदों को खत्म करने के लिए बनायी गयी योजनाओं को तत्काल लागू किये जाने की मांग की। 

घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर विशेष ध्यान दिये जाने की ज़रूत पर बल दिया गया। 

घोषणा पत्र में कहा गया है कि इस्लामी एकता और तकफीरी आतंकवादियों के खिलाफ संघर्ष, इस सम्मेलन का  मुख्य नारा था।  

बयान में बताया गया कि सम्मेलन में भाग लेने वालों ने तकफीरी विचारधारा और मुसलमानों की एकता को उससे पहुंचने वाले नुक़सान का जायज़ा लिया और इस बात पर बल दिया कि तकफीरी विचारधारा मुसलमानों के मध्य एकता की सब से बड़ी दुश्मन है इस लिए एकता के लिए काम करने वाले सभी लोगों को तकफीरी विचारधारा का मुक़ाबला करना चाहिए। 

तीसवें अंतरराष्ट्रीय इस्लामी एकता सम्मेलन के घोषणापत्र में फिलिस्तीन के विषय को यथावत महत्व दिये जाने की ज़रूरत पर बल दिया गया और इसी प्रकार इराक और सीरिया में आतंकवाद के खिलाफ जनता की विजय पर बधाई दी गयी और यह उम्मीद प्रकट की गयी कि इस्लामी जगत की मदद से और इन देशों की जनता के त्याग व बलिदान से इराक और सीरिया में यथाशीघ्र हालात सामान्य हो जाएंगे। 

सम्मेलन में भाग लेने वालों ने यमन में प्रतिदिन जनसहांर और उस पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों की खामोशी की आलोचना की और यह मांग की गयी कि यमन की जनता को बचाने के लिए यथाशीघ्र क़दम उठाया जाए। 

तीसवां अंतरराष्ट्रीय इस्लामी एकता सम्मेलन गुरुवार को तेहरान में आंरभ हुआ था। शनिवार की रात खत्म होने वाले इस सम्मेलन में इस्लामी जगत सहित साठ देशों से सैंकड़ों बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।

 

 

वरिष्ठ नेता ने कहा है कि ब्रिटेन सदैव ही पश्चिमी एशिया के लिए दुखों और कष्टों का कारण रहा है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शनिवार को तेहरान में उन मेहमानों से मुलाक़ात की जो एकता कांफ़्रेंस में भाग लेने के लिए ईरान आए थे।

इस्लामी देशों के राजदूतों और विदेशी अतिथियों को संबोधित करते हुए कहा कि क्षेत्र में दो परस्पर विरोधाभासी विचार पाए जाते हैं एकता और मतभेद।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि वर्तमान संवेदनशील परिस्थितियों में पवित्र क़ुरआन और ईश्वरीय दूतों की उच्च शिक्षाओं पर भरोसा करते हुए मतभेद फैलाने के कुप्रयास को विफल बनाया जा सकता है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि पिछली दो शताब्दियों के दौरान ब्रिटेन की नीतियां, क्षेत्र में मतभेद फैलाने पर आधारित रही हैं।  उन्होंने कहा कि हालिया दिनों में ब्रिटेन ने ईरान जैसे अत्याचारग्रस्त देश को क्षेत्र के लिए ख़तरा घोषित किया है।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि हालांकि इन आरोपों के बावजूद यह ब्रिटेन ही है जो सदैव ही दुखों और कष्टों का कारण बना रहा है।

वरिष्ठ नेता ने मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने के लिए वर्चस्ववादियों के कुप्रयासों की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस समय इस्लामी जगत, नाना प्रकार की समस्याओं में घिरा हुआ है जिनका समाधान, एकता के माध्यम से किया जा सकता है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी जगत में एकता स्थापित होने की स्थिति में मुसलमानों के एकजुट न करने के बारे में अमरीकी और ज़ायोनी प्रयास विफल हो जाएंगे और इसी के साथ फ़िलिस्तीनियों के विषय को एक किनारे डालने का उनका षडयंत्र भी विफल हो जाएगा।

वरिष्ठ नेता ने म्यांमार में मुसलमानों के जनसंहार से लेकर अफ़्रीका और पश्चिमी एशिया में जारी रक्तपात को वर्चस्ववादियों के षडयंत्रों का परिणाम बताते हुए कहा कि इन हालात में ब्रिटेन में सक्रिय कुछ शिया गुट और अमरीका में सक्रिय कुछ सुन्नी गुट, मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

उन्होंने एकता को मुसलमनों की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताते हुए कहा कि मुसलमानों के सभी पंथों को एकता का सम्मान करते हुए मतभेदों से बचना चाहिए।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि पवित्र क़ुरआन, पै़गम्बरे इस्लाम (स) और पवित्र काबा, मुसलमानों के बीच एकता का केन्द्र हैं।

 

पाकिस्तान, मीलादुन्नबी (s)की कुरआनी महफ़िलों का मेज़बान

«Samaa.tv»के हवाले से खबर, कल पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में पवित्र कुरान प्रतिस्पर्धा और पैगंबर (PBUH) की नअत के मुक़ाबले का आयोजन और विजेताओं को पुरस्कार से सम्मानित करके सराहा गया।

पैगंबर (PBUH) की मीलाद की महफ़िल और विभिन्न कार्यक्रम सभी शहरों और कस्बों और गांवों में आयोजित किऐ गऐ। इस्लामाबाद, कराची, लाहौर, पेशावर और क्वेटा जैसे प्रमुख शहर भी पैगंबर (PBUH) के जन्मदिन पर मुसलमानों के बड़े समूहों द्वारा जश्न मनाने के गवाह रहे।

पाकिस्तान में जन्मदिन समारोह, जो कि सुन्नी रवायत के अनुसार 12 रबीउलअव्वल को आयोजित किया जाता है मुस्लिम उम्मा एकता प्रार्थना और प्रगति और मुसल्मानों की समृद्धि के लिए प्रार्थना करने के साथ समाप्त हुआ।

इस दिन पाकिस्तान में सभी घरों, दुकानों, भवनों, मस्जिदों, हरमों और इबादी स्थानों को प्रबुद्ध और सजाया जाता है।

मेडिकल टेंट और राहत कार्यकर्ता भी तैनात रहते हैं ता कि जरूरत पर लोगों की मदद करें।

हजारों पुलिस बलों की कोशिश रहती है कि मस्जिदों और श्रेणियों की सुरक्षा बनाए रखें।

घर में विशेष भोजन पकाया जाता है और लोगों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों और जरूरतमंदों के बीच में वितरित किया जाता है।

बच्चे, वयस्कों के साथ समारोह में शामिल किऐ जाते हैं।

पैगंबर मुहम्मद (PBUH) के जीवन और सीरत पर सम्मेलन विभिन्न स्थानों में आयोजित किया जाता है और विद्वानों और बुद्धिजीवी हज़रात ने, पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं और जीवनी के बारे में लोगों को भाषण दिऐ।

 

 

 

  

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दुश्मन देश के युवाओं के मन व मस्तिष्क को प्रभावित करना चाह रहे हैं और इसका एक उद्देश्य ईरान पर अपना आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक वर्चस्व जमाना है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने मंगलवार को  तेहरान में छात्रों के एक कार्यक्रम के अवसर पर कहा कि युवाओं को जो आज ईरानी राष्ट्र के सपूत और देश के भावी नेता व अधिकारी हैं, अपनी सक्रिय उपस्थिति द्वारा दुश्मनों की इस साज़िश को नाकाम बनाना चाहिए।


 

 

वरिष्ठ नेता ने छात्रों के मध्य अपने भाषण में कहा कि सामाजिक व व्यक्तिगत विकास का रहस्य, ईश्वर से संपर्क बनाए रखने में निहित है और आज डूबती और पतन की ओर बढ़ती पश्चिमी सभ्यता की सब से बड़ी बुराई, ईश्वर से संपर्क खत्म करना है। 

 

 

वरिष्ठ नेता ने छात्रों से कहा कि वह देश पर जान न्योछावर करने वाले शहीदों को अपना आदर्श बनाएं जिन्होंने देश की स्वाधीनता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा और दुश्मनों को भगाने के लिए अपनी सब से मूल्यवान पूंजी अर्थात अपनी जान न्योछावर कर दी। 

 

 

वरिष्ठ नेता ने ईश्वर से संबंध बनाए रखने का रास्ता, नमाज़ और कुरआन की तिलावत बताया और कहा कि इस बात पर ध्यान देने से कि नमाज़ पढ़ते समय मनुष्य, ईश्वर से बात करता है इंसान में ईश्वर पर भरोसा, साहस और आत्मविश्वास पैदा होता है इस लिए नमाज़ उसके सही समय पर और पूरे ध्यान से पढ़ना चाहिए और कुरआन से उसके अर्थों को समझ कर निकट होना और स्थायी संबंध बनाना चाहिए।