رضوی

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पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम का प्रसिद्ध कथन है कि मैं तुम्हारे मध्य दो मूल्यवान चीज़ें छोड़कर जा रहा हूं एक क़ुरआन और दूसरे अपने अहलेबैत।

जब तक तुम इन दोनों को थामे रहोगे गुमराह नहीं होगे और ये दोनों कभी भी एक दूसरे से अलग नहीं होगें यहां तक कि दोनों हौज़े कौसर पर मेरे पास आयेंगे।

  

पैग़म्बरे इस्लाम ने पवित्र कुरआन के बाद जो अहलेबैत से जुड़े रहने पर बल दिया है उसका एक कारण यह है कि महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम की इच्छा यह है कि लोग पवित्र क़ुरआन को सीखने और सीधे रास्ते पर चलने के लिए अहलेबैत को आदर्श बनाए और उनका अनुसरण करें। इस आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम ने जिन हस्तियों को आदर्श बनाने और उनके अनुसरण की बात कही है उनका स्थान बहुत ऊंचा है। जिस समय सत्य-असत्य का पता न चले और असत्य, सत्य के रूप में दिखाई दे तो सत्य-असत्य को पहचानने का बेहतरीन मार्ग कुरआन और अहलेबैत हैं। इस आधार पर इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम जामेअ कबीरा नामक प्रसिद्ध ज़ियारत में इमामों को ईश्वरीय कृपा का स्रोत, ज्ञान के खज़ाने, सच्चाई के मार्गदर्शक और अंधकार का चेराग़ कहते हैं।

 हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की एक प्रसिद्ध उपाधि हादी है। उन्होंने अपने पिता हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद ३४ वर्षों तक लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। इमाम हादी अलैहिस्सलाम के लोगों के मार्गदर्शन के काल में ६ अब्बासी शासकों का शासन था। इसी प्रकार इमाम हादी अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शन के लगभग १३ वर्ष पवित्र नगर मदीने में गुज़रे। यह वह काल था जब अब्बासी शासकों के मध्य सत्ता की खींचतान चल रही थी और इमाम ने इस अवसर का लाभ उठाकर इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया। ज्ञान के प्यासे लोग हर ओर से इमाम के पास आते थे और ज्ञान के अथाह सागर के प्रतिमूर्ति से अपनी प्यास बुझाते थे। इमाम हादी अलैहिस्सलाम के चाहने वाले और उनके अनुयाइ ईरान, इराक़ और मिस्र जैसे विभिन्न देशों  व क्षेत्रों से उनकी सेवा में उपस्थित होकर या पत्रों के माध्यम से अपनी समस्याओं व कठिनाइयों को इमाम के समक्ष रखते थे और उनका समाधान मालूम करते थे।

  

इसी तरह इमाम के प्रतिनिधि लोगों के मध्य थे और धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक मामलों के समाधान में वे लोगों और इमाम के मध्य संपर्क साधन थे।

 

पवित्र नगर मदीना में  इमाम हादी अलैहिस्सलाम  का दीनःदुखियों और वंचितों से भी गहरा संबंध था और जिन लोगों को आर्थिक समस्याओं का सामना होता था और उन्हें कहीं कोई सहारा नहीं मिलता था तो लोग उन्हें इमाम के घर की ओर जाने के लिए कहते थे और इमाम उन लोगों की सहायता करते थे। जो ख़ुम्स, ज़कात अर्थात विशेष धार्मिक राशि इमाम को दी जाती थी अधिकतर वे उसे वंचितों की सहायता से विशेष करते थे।

 

कभी इमाम निर्धनों को इतना धन देते थे कि वे उससे कोई काम करें और आर्थिक स्वाधीनता के साथ अपने सम्मान की रक्षा करें। जो लोग यात्रा के दौरान रास्ते में फंस जाते थे तो इमाम हादी अलैहिस्सलाम उनकी भी सहायता करते थे और इमाम ने कभी भी पवित्र नगर मदीना में किसी को भूखा सोने या किसी अनाथ को किसी अभिभावन के न होने के कारण आंसू बहाने का अवसर नही दिया।

 

पवित्र नगर मदीना में इमाम हादी अलैहिस्सलाम की लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि मदीने के गवर्नर में इस बात की क्षमता नहीं थी कि वह इमाम पर अपना कोई दृष्टिकोण थोप सके। इमाम हादी अलैहिस्सलाम का आध्यात्मिक व सामाजिक प्रभाव इस बात का कारण बना कि बुरैहा नाम का एक व्यक्ति जिस अब्बासी शासकों की ओर से मक्का और मदीना की निगरानी का काम सौंपा गया था। वह अब्बासी शासक मुतवक्किल के नाम पत्र में इस प्रकार लिखता है” अगर तुझे हरमैन शरीफ़ैन यानी मक्का और मदीना चाहिये तो अली बिन मोहम्मद यानी इमाम हादी को इन दोनों नगरों से बाहर कर दे इसलिए कि उन्होंने लोगों को अपनी ओर बुलाया है।“

  

अंततः २३३ हिजरी क़मरी में इमाम हादी अलैहिस्सलाम को अपने बेटे इमाम हसन अस्करी अलैहिस्लाम और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ मदीना छोड़कर इराक़ के सामर्रा नगर में रहने पर विवश किया गया। उस समय सामर्रा अब्बासी शासकों की सरकार का केन्द्र था। अब्बासी शासकों की ओर से यहिया बिन हरसमा नाम के एक व्यक्ति को इमाम हादी अलैहिस्सलाम को मदीने से सामर्रा लाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। वह तीन सौ सैनिकों के साथ मदीने गया। हरसमा कहता है मैं मदीने गया। शहर में दाखिल हो गया। लोग बहुत दुःखी और परेशान थे। धीरे-२ यह अप्रसन्नता इतनी अधिक हो गयी कि चीख-पुकार की आवाज़ आने लगी। वे इमाम हादी के जीवन के प्रति चिंतित थे। उन्होंने लोगों के साथ बड़ी भलाई की थी और लोग अपने पास इमाम की मौजूदगी को ईश्वरीय कृपा व बरकत का कारण समझते थे। मैंने लोगों को शांत रहने के लिए कहा और मैंने सौगंध खाई कि इमाम के साथ किसी प्रकार का हिंसात्मक व्यवहार नहीं किया जायेगा।“ इतिहास में आया है कि इस यात्रा के दौरान यहिया बिन हरसमा इमाम का श्रद्धालु बन गया और वह दिल से इमाम को चाहने लगा।

  

इतिहास इस बात का साक्षी है कि अमवी और अब्बासी शासकों ने इमामों के स्थान को लोगों के दिलों से हटाने के लिए ऐसा कोई कार्य नहीं था जो न किया हो परंतु कभी भी वे ज्ञान, जानकारी और इमामों की आध्यात्मिक श्रेष्ठता को प्रभावित न कर सके। उमवी और अब्बासी शासकों ने पूरी मानवता विशेषकर मुसलमानों पर यह अत्याचार किया कि उन्होंने इस्लामी समाज में अहलेबैत के ज्ञान को फैलने नहीं दिया और इस दिशा में वे रुकावट बने रहे। यह कार्य इमाम हादी और उनके बेटे इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के काल में अधिक था। इसके बावजूद इमाम हादी अलैहिस्सलाम लोगों के मार्गदर्शन के लिए हर समय व अवसर से लाभ उठाने का प्रयास करते थे।

  

इमाम हादी अलैहिस्सलाम २० वर्ष ९ महीने सामर्रा में रहे। यह नगर बग़दाद के उत्तर में १३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चूंकि इमाम हादी अलैहिस्सलाम को मदीने से सामर्रा लाने का मुतवक्किल का लक्ष्य इमाम पर नज़र रखना और उन्हें सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से दूर रखना था इसलिए उसने इमाम को ऐसे स्थान पर रखा जो उसके लक्ष्य के अनुसार था। इसी कारण उसने इमाम को उस घर में रखा जो सैनिक छावनी और विशेष सैनिकों के मोहल्ले में था। जिस मकान में इमाम रखा गया वह कारावास से कम न था। क्योंकि सेवकों और दरबारियों के रूप में जासूसों को इमाम की निगरानी के लिए लगा दिया था और वे इमाम की समस्त गतिविधियों पर पैनी नज़र रखते और उसे नियंत्रित करते थे और सारी रिपोर्ट ख़लीफा को देते थे। इमाम हादी अलैहिस्सलाम को सामर्रा में बहुत कठिनाई में रखा गया और उन्होंने बहुत सारी कठिनाइयों का सामना किया परंतु उन्होंने कभी भी अत्याचारियों से कोई समझौता नहीं किया और जितने दिन गुज़र रहे थे लोगों के मध्य इमाम का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा था। इमाम हादी अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस की पावन बेला पर एक बार फिर आप सबको हार्धिक बधाई प्रस्तुत करते हैं और कार्यक्रम का समापन उनके कुछ कथनों से कर रहे हैं।

  

परिपूर्णता के शिखर को तय करने की एक महत्वपूर्ण शैली ज्ञान की प्राप्ति है और इंसान ज्ञान के बिना कुछ नहीं कर सकता। इमाम हादी अलैहिस्सलाम का मानना था कि उच्च मानवीय उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। क्योंकि जानकारी और ज्ञान की प्राप्ति के बिना कोई राही अपने उद्देश्य तक नहीं पहुंचता है। इमाम हादी अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” ज्ञानी और ज्ञान प्राप्त करने वाले दोनों मार्गदर्शन में भागीदार हैं।”

 

अगर समाज के विद्वान और बुद्धिजीवी प्रयास न करें और समाज के सामान्य लोग भी ज्ञान प्राप्त न करें तो लोगों की सोच और सांस्कृतिक सतह पर कोई प्रगति नहीं होगी। इमाम हादी अलैहिस्सलाम की दृष्टि में ईश्वर के अच्छे व भले बंदों की एक विशेषता लोगों की ग़लतियों को माफ़ कर देना है। अय्यूब बिन नूह कहता है इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने हमारे एक साथी के नाम पत्र में, जो एक व्यक्ति की अप्रसन्नता का कारण बना था, इस प्रकार लिखा कि जाओ अमुक व्यक्ति से माफी मांगों और कहो कि अगर ईश्वर किसी बंदे की भलाई चाहता है तो उसे वह हालत प्रदान करता है कि जब भी उससे माफी मांगे जाये तो वह उसे स्वीकार करता है और तू भी मेरी ग़लती को स्वीकार कर।“

 

अच्छे दोस्तों को सुरक्षित रखने के लिए उनके बारे में कड़ाई से काम नहीं लिया जाना चाहिये बल्कि उनकी ग़लतियों के संबंध में नर्मी से काम लिया जाना चाहिये और उनकी अनदेखी कर देनी चाहिये। क्योंकि अगर इंसान छोटी -छोटी बात पर अपने दोस्तों से कड़ाई से पेश आने लगे तो धीरे- धीरे वह अकेला हो जायेगा और उसके विरोधियों की संख्या अधिक हो जायेगी जबकि अच्छे दोस्त इंसान के जीवन में भुजा समान होते हैं। इस आधार पर जीवन में सफल होने के लिए इंसान को चाहिये कि वह अच्छे दोस्तों की सुरक्षा करे और छोटी सी ग़लती पर उनसे नाता न तोड़े और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की जीवन शैली दूसरों की ग़लतियों की अनदेखी व उन्हें माफ कर देना रही है। 

 

ज़ायोनी शासन की अतिग्रहित इलाक़ों में गतिविधियों से ज़ाहिर हो रहा है कि यह शासन फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास से भविष्य में जंग करने की तय्यारी कर रहा है।

अलअहद वेबसाइट के अनुसार, इस्राईली सेना की विशेष टुकड़ी भविष्य में हमास से जंग की तय्यारी कर रही है।

इसी संदर्भ में ज़ायोनी वेबसाइट ‘वाला’ के अनुसार, इस्राइली सेना ने ग़ज़्ज़ा की सीमा पर बढ़ते तनाव से मुक़ाबला करने के लिए पहली बार रिज़र्व फ़ोर्स की इकाइयों को ट्रेनिंग देने का फ़ैसला किया है। इस वेबसाइट के अनुसार, इस्राइली फ़ोर्स घुसपैठ की कार्यवाही से निपटने के लिए ज़रूरी समय और राहत पहुंचाने वाले संगठनों और पुलिस से सहयोग की अपनी क्षमता की समीक्षा कर रही है।  

 

इस्राइली सुरक्षा बल के हाथों फ़िलिस्तीनियों का चाकू घोंपने के आरोप में हत्या का क्रम जारी है।

इसी क्रम में एक इस्राइली सैनिक ने अतिग्रहित पश्चिमी तट में एक और फ़िलिस्तीनी को यह आरोप लगाते हुए गोली मार दी कि उन्होंने उन पर चाकू से हमला किया था।

 

शुक्रवार को इस्राइली सेना ने दावा किया कि उसके सैनिकों ने क़लन्दिया क़स्बे में 28 साल के फ़िलिस्तीनी व्यक्ति को उस वक़्त गोली मार दी जब उसने इस्राइली चेकपोस्ट पर पहुंच कर एक सैनिक को चाकू मारा जिससे उसे मध्यम स्तर का घाव लगा है।

 

इस घटना के एक घंटे बाद लगभग 200 फ़िलिस्तीनियों ने क़लन्दिया चेकप्वाइंट पर धरना दिया। क़लन्दिया पश्चिमी तट के रामल्ला शहर में दाख़िल होने वाला मुख्य चौराहा है।

ज्ञात रहे 20 सितंबर 2016 को अलख़लील (हिब्रोन) शहर से 8 किलोमीटर पूरब में स्थित बनी नईम क़स्बे के प्रवेश द्वार के क़रीब ज़ायोनी सैनिकों के हाथों एक फ़िलिस्तीनी किशोर उस वक़्त गोली से शहीद हुआ जब उसने कथित रूप से इस्राइली सैनिक पर चाकू से हमले की कोशिश की थी।

ज्ञात रहे इन दिनों ज़ायोनी सैनिक इस आरोप की आड़ में फ़िलिस्तीनियों की हत्या कर रहे हैं कि फ़िलिस्तीनी उन पर चाकू से हमला करते हैं।

 

 

ज़ायोनी सेना से वरिष्ठ अधिकारियों का पलायन इस्राईली सेना के सबसे बड़े संकट में परिवर्तित हो गया है।

"इस्राईल डिफ़ेंस" नामक वेबसाइट के प्रधान संपादक उमेर रबाबूत ने इस्राईली सेना से बड़े बड़े सैन्य अधिकारियों के फ़रार होने और साधारण जीवन की ओर लौटने को ज़ायोनी सेना के इतिहास का सबसे बड़ा संकट बताया है और कहा है कि इस संकट के आरंभिक लक्षण वर्ष 2006 में लेबनान के विरुद्ध लड़ाई में प्रतिरोध के मुक़ाबले में इस्राईल की पराजय के बाद से ही सामने आने लगे थे। उन्होंने कहा कि इस समय इस्राईली सेना के अधिकतर बड़े व अहम पद ख़ाली पड़े हुए हैं और सुरक्षा संस्थाएं इस संकट को मीडिया से छिपाने की कोशिश कर रही हैं।

 

इससे पहले इस्राईली समाचारपत्र हाआरेत्ज़ ने भी सेना से सैनिकों के निकल भागने की प्रक्रिया को अभूतपूर्व बताते हुए लिखा था कि इस्राईली सैनिक, अपनी अनिवार्य सैन्य सेवा के लिए भी तैयार नहीं हैं। भविष्य की ओर से इस्राईली सैनिकों की निराशा, राजनेताओं के झूठे वादे और फ़िलिस्तीन व लेबनान में प्रतिरोधकर्ता गुटों से मिलने वाली निरंतर पराजय, ज़ायोनी सैनिकों का मनोबल गिरने और सेना से उनके भागने के मुख्य कारणों में से हैं। मजबूरी के कारण सेना में काम करने वाले अधिकांश इस्राईली सैनिक, ज़ायोनी अधिकारियों की युद्ध प्रेमी नीतियों से अप्रसन्न हैं और मौक़ा मिलते ही सेना से निकल भागने का प्रयास करते हैं।  

 

ईरान के ख़ातुमल अम्बिया एयर डिफ़ेंस सेंटर के कमांडर ने बताया है कि अमरीका के एक जासूसी विमान को ईरान की वायु सीमा में घुसने से रोक दिया गया।

ब्रिगेडियर फ़रज़ाद इस्माईली ने बताया कि अमरीका की लाकहीड मार्टिन कंपनी का बना हुआ लम्बी दूरी का विकसित यू-2 विमान वर्षों से सिर्फ़ अमरीकी वायु सेना ही इस्तेमाल कर रही है। यह टोही विमान 21 किलो मीटर की ऊंचाई पर निरंतर 12 घंटे उड़ान भर सकता है।

 

ब्रिगेडियर इस्माईली ने पवित्र प्रतिरक्षा सप्ताह के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि हालिया दिनों में अमरीका का एक यू-2 जासूसी विमान ईरान की वायु सीमा में घुसना चाहता था कि हमने उसे वार्निंग दी। उन्होंने कहा कि दुश्मन हमारे हथियारों और उपकरणों से नहीं डरता बल्कि जिस बात ने हमारे शत्रुओं के दिल में भय व आतंक डाल रखा है वह ईरानी राष्ट्र और शहीदों के परिजनों का संकल्प व फ़ौलादी इरादा है। (HN

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने रविवार को ईरान की इस्लामी क्रांति संरक्षक बल आईआरजीसी के कमांडरों के साथ मुलाक़ात में इस सैन्य बल की सुरक्षा पर बल देते हुए कहा, सुरक्षा का अर्थ समय में ठहर जाना नहीं है, बल्कि दुश्मन की प्रगति और उसके उपकरणों में बदलाव के साथ साथ स्वयं की वैज्ञानिक प्रगति में ठहराव नहीं आना चाहिए और आगे बढ़ने से रुकना नहीं चाहिए।

वरिष्ठ नेता का कहना था कि देश के भीतर और बाहर सुरक्षा व्यवस्था की स्थापना, आईआरजीसी की ज़िम्मेदारियों में से है, इसलिए कि अगर देश की सीमा के बाहर शांति नहीं होगी और सीमाओं के बाहर ही दुश्मन को नहीं रोका जाएगा तो आंतरिक सुरक्षा भी ख़तरे में पड़ जाएगी।

विश्व घटनाक्रमों में ईरान की भूमिका की ओर संकेत करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा, अगर ईरानी अधिकारी और जनता प्रतिरोधी अर्थव्यवस्था को वास्तविक रूप में लागू करने में सफल हो गयी तो वे अन्य देशों को भी सुरक्षित रख सकेंगे और उनके लिए आदर्श बन जायेंगे।

उन्होंने कहा कि अधिक दबाव, प्रतिबंधों और धमकियों के बावजूद, ईरानी राष्ट्र दिन प्रतिदिन मज़बूत हो रहा है और इस्लामी क्रांति का पौधा फलफूल रहा है।

 

ज़ायोनी शासन की नौसेना के कमान्डर ने लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह द्वारा आधुनिक व नवीन मीज़ाइलों की प्राप्ति पर चिंता प्रकट की है।

अल आलम टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, एडमिरलत राम रोटेबर्ग ने कहा कि हिज़्बुल्लाह ने एेसे आधुनिक व विकसित मीज़ाइल प्राप्त कर लिए हैं जो केवल याख़ून्त मीज़ाइल सिस्टम से नियंत्रित नहीं हो सकते। रोटेबर्ग जो सितंबर के अंत में रिटायर्ड हो रहे हैं, यदीयेत आहारनोत समाचार पत्र से बात करते हुए कहा कि लेबनान एक विशाल युद्धपोत में परिवर्तित हो चुका है जो भीषण गोलेबारूद से भी नहीं डूब सकता।

उनका कहना था कि संभव है कि हिज़्बुल्लाह के मीज़ाइल दक्षिणी सीरिया या उत्तरी सीरिया से हम पर मीज़ाइल फ़ायर हों । इस्राईल के इस कमान्डर का कहना था कि सीरिया के पास क़दीर या इससे आधुनिक क़ादिर मीज़ाइलेें हैं जिनकी मारक क्षमता तीन सौ किलोमीटर है और जिसका विकासित माॅडल  C-802 है।

ज्ञात रहे कि याख़ून्त मीज़ाइल सिस्टम सुपरसोनिक है और इस्राईल ने मीज़ाइल हमलों से बचने के लिए इसको विभिन्न स्थानों पर लगा रखा है।  

 

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सोमवार को ईदुल अज़हा के अवसर पर शिया और सुन्नी मुसलमानों ने एक साथ एक जमात में नमाज़ पढ़कर मुसलमानों के बीच एकता और भाईचारे की मिसाल क़ायम की है।

लखनऊ शहर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक मतभेदों के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन पिछले कई वर्षों से यही शहर अब मुसलमानों के इन दो प्रमुख समुदायों के बीच एकता की भी मिसाल बन रहा है।

जहां तक संघर्ष की वजह का सवाल है तो लखनऊ में सुन्नी धर्मगुरु मौलाना ख़ालिद रशीद फ़िरंगी महली कहते हैं कि शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच धार्मिक मतभेद बहुत गहरे नहीं हैं, इसलिए कि दोनों ही एक ईश्वर, उसके दूत और क़ुरान पर विश्वास रखते हैं, जो इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत हैं।

फिरंगी महली कहते हैं कि सभी धर्म और पंथ शांति की ही बात करते हैं, इसलिए इनके बीच लड़ाई नहीं होनी चाहिए।

वहीं शिया धर्मगुरु मौलाना क़ल्बे सादिक़ कहते हैं कि शिया और सुन्नी दोनों ही शांतिप्रिय हैं। कई बार कुछ बातों को लेकर दोनों के बीच ग़लतफ़हमी होती है और ग़लतफ़हमी और नासमझी दोनों के बीच फ़साद की वजह बन जाती है।

क़ल्बे सादिक़ के मुताबिक़ दोनों पंथों में महज़ तीन फ़ीसद लोग नफ़रत पर आधारित सोच रखने वाले हैं। लेकिन यही लोग कई बार बड़े झगड़े करा देते हैं।  

 

 

सात ज़िलहिज्जा ११४ हिजरी क़मरी वह दिन  है जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम शहीद हुए थे।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अज्ञानता और अन्याय के काल में ज्ञान का सूरज बनकर चमके और इस्लाम की उच्च शिक्षाओं में दोबारा प्राण फूंक दिया।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत की ख़बर सुनकर उनके एक साथी जाबिर बिन यज़ीद जोअफ़ी बहुत दुःखी थे। जाबिर ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पावन मुख से जो पहली सिफारिश सुनी थी वह हमेशा उन्हें याद थी। जब उन्होंने पहली बार इमाम से मस्जिद में मुलाक़ात की थी तो इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फरमाया था “ज्ञान प्राप्त करो क्योंकि ज्ञान प्राप्त करना भला कार्य है। अंधकार में ज्ञान तुम्हारा मार्गदर्शक और कठिनाइयों में तुम्हारा सहायक और इंसान के लिए मूल्यवान दोस्त है।“

  

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की यह सिफ़ारिश इस बात का कारण बनी कि जाबिर ज्ञान एवं इमाम मोहम्मद बाक़िर की शास्त्रार्थ की सभाओं में भाग लेते और उससे लाभान्वित होते थे। जाबिर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के वियोग में उनके प्रेमपूर्ण व्यवहार को याद करके बहुत रोते थे और उन्हें इमाम की दूसरी सिफारिशें भी याद आती थीं। वह इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के उस वाक्य को याद करते थे जिसमें इमाम ने फ़रमाया था हे जाबिर जिस अस्तित्व में ईश्वर की याद का स्वाद समा गया हो उसका दिल दूसरे प्रेम में व्यस्त नहीं होगा। ईश्वर से प्रेम करने वाले इस दुनिया पर भरोसा नहीं करते और दुनिया से दिल नहीं लगाते। तो जो कुछ ईश्वर ने धर्म और अपनी तत्वदर्शिता को तुम्हारे पास अमानत के रूप में रखा है उसकी सुरक्षा करो।“

  

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की एक चिंता लोगों का मार्गदर्शन था। अतः इन महान हस्तियों में से हर एक ने अपने समय और परिस्थिति के अनुरूप भिन्न शैली अपनाई ताकि यह उद्देश्य व्यवहारिक हो सके। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की इमामत १९ वर्षों तक रही और उस समय की स्थिति इस प्रकार थी कि इमाम अपनी गतिविधियों के एक भाग को इस्लाम धर्म की उच्च व जीवनदायक शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष करें। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सबसे प्रसिद्ध उपाधि “बाक़िरुल उलूम” है जिसका अर्थ है ज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने वाला यह उपाधि पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें दी थी। इस बात का उल्लेख शीया और सुन्नी रवायतों में बहुत किया गया है। शीया किताब जैसे बिहारुल अनवार, अमालीये सदूक़, उयूनुल अख़बार जबकि सुन्नी किताब तारीखे इब्ने असाकिर और तज़केरतुल ख़वास में बयान किया गया है। जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी नामक पैग़म्बरे इस्लाम के एक साथी कहते हैं एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने मुझसे फ़रमाया मेरे बाद तुम मेरे कुटुम्ब के एक व्यक्ति को देखोगे कि उसका नाम मेरा नाम होगा और वह मेरी तरह होगा। वह ज्ञान की गुत्थियों को सुलझाएगा और लोगों की तरफ ज्ञान का द्वार खोल देगा।“

  

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम दूसरों को ज्ञान सिखाने और ज्ञान के प्रचार- प्रसार पर बहुत ध्यान देते थे। वास्तव में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इस्लामी जगत के शैक्षिक व सांस्कृतिक अभियान की आधारशिला रखने वाले हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ज्ञान के विभिन्न विषयों को एक दूसरे से अलग किया। इस्लामी इतिहासकारों के अनुसार इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने अनथक प्रयासों ने इस्लाम की उच्च शिक्षाओं में नई जान डाल दी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने समय के विद्वानों से बहस और शास्त्रार्थ के परिप्रेक्ष्य में इस्लामी शिक्षाओं को बयान किया। शास्त्रार्थ वह बेहतरीन शैली है जिसके माध्यम से इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस्लामी शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाया। शास्त्रार्थ के बारे में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं विद्वानों को चाहिये कि वे कहने की अपेक्षा सुनने के लिए अधिक आतुर रहें।

 

उन्हें चाहिये कि अच्छी तरह बोलने की कला के अतिरिक्त अच्छी तरह सुनने की कला को भी मज़बूत करें।“ इसी प्रकार इमाम ने फ़रमाया  जब विद्वान के पास बैठो तो बोलने से अधिक सुनने पर ध्यान दो और अच्छी तरह सुनने की कला सीखो जिस तरह तुम अच्छी तरह बात करना सीखते हो उसी तरह किसी की बात को न काटो।“ इसी कारण इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम जब विभिन्न मतों यहां तक कि अपने विरोधियों के साथ बहस की सभाओं में बैठते थे तो इस्लामी शिक्षाओं को विस्तृत रूप से बयान करते थे। दूसरे शब्दों में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम न केवल इस्लामी जगत में नई शैली की आधार शिला रखने वाले हैं बल्कि इस्लामी इतिहास में नये दौर का आरंभ करने वाले हैं। ज्ञान को विस्तृत करने के लिए इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के अनथक प्रयासों को इसी दिशा में देखा जा सकता है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के अनथक परिश्रम का एक परिणाम इस्लामी ज्ञानों के विश्व विद्यालय की स्थापना और विभिन्न क्षेत्रों में बहुत सारे मेधावी व प्रतीभाशाली शिष्यों का प्रशिक्षण है। इतिहास में उनके शिष्यों की संख्या ४६५ बताई गयी है जिनमें से हर एक हज़ारों हदीसों अर्थात कथनों को याद रखता और उसे संकलित करता था।

  

 हर कार्य का आधार विचार होता है। अतः अगर यह चाहते हैं कि समाज में ज्ञान प्रचलित हो तो सबसे पहले ज्ञान अर्जित करने के महत्व, विद्वानों का महत्व, ज्ञान अर्जित करने का उद्देश्य और इसके मार्ग में आने वाली रुकावटों के बारे में विचार किया जाना चाहिये। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ज्ञान अर्जित करने की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम उठाया।

  

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करने के संदर्भ में फरमाया” ज्ञान खज़ाना है और प्रश्न उसकी कुंजी है तो प्रश्न करो ताकि ईश्वर तुम पर अपनी कृपा करे क्योंकि पूछना कारण बनता है कि इसका बदला चार लोगों को मिले। पूछने वाले को, शिक्षक को, सुनने वाले को और जवाब देने वाले को।“

  

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक प्रयास यह भी है कि उन्हों ने धार्मिक शिक्षाओं को लिखित रूप देकर भूरक्षित किया। लिखने की संस्कृति के प्रभाव व परिणाम उनके बाद इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के शैक्षिक अभियान और उनके बाद की शताब्दियों में स्पष्ट हुए। इसी प्रकार इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ज्ञान को बनी उमय्या के वर्चस्व से मुक्त कराने के लिए प्रयास किया और ज्ञान की दरबार निर्भरता को कम करने का प्रयास किया। इस बात को नहीं भूलना चाहिये कि बनी उमय्या के शासकों की चेष्टा ज्ञान के अभियान को अपने नियंत्रण में रखने की थी परंतु इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शैली इससे पूर्णतः भिन्न थी और उनका प्रयास समस्त इस्लामी समुदाय के बीच ज्ञान के आधारों को मज़बूत करना था। ज्ञान के आधारों के मज़बूत होने के साथ- साथ अनुवाद की भी भूमि प्रशस्त हो गयी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ज्ञान के अभियान में जिस चीज़ पर ध्यान देते थे वह ज्ञान का प्रचार-प्रसार था।

 

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते थे “ज्ञान की ज़कात उसे ईश्वर के बंदों को सिखाना है।“इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने शैक्षिक अभियान के साथ समाज के मामलों के सुधार का बहुत प्रयास किया। इस बीच अमवी शासकों में हेशाम बिन अब्दुल मलिक था जो इमाम के साथ बहुत कड़ाई से पेश आया। यहां तक कि उसने मजबूर करके इमाम को अपनी सत्ता के केन्द्र शाम अर्थात वर्तमान सीरिया बुला लिया और वहां पर उसने इमाम पर कड़ी निगरानी की। इसी प्रकार उसने इमाम को कुछ समय के लिए कारावास में बंद भी रखा।

  

हेशाम बिन अब्दुल मलिक ने जब यह देख लिया कि उसके इस कार्य का कोई परिणाम नहीं निकल रहा है और उसके कार्यों के उसके लिए उल्टे परिणाम निकल रहे हैं तो उसने दोबारा इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को पवित्र नगर मदीना भेज दिया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम चमकते प्रकाश की भांति लोगों को जागरुक बना रहे थे और शिक्षित कर रहे थे अतः हेशाम बिन अब्दुल मलिक इतिहास के दूसरे अत्याचारी शासकों की भांति यह सोचता था कि उसकी सत्ता लोगों की निरक्षरता में इसलिए वह इमाम के पावन अस्तित्व से चिंतित था। इसी कारण उसने एक षड़यंत्र के अंतर्गत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को ज़हर देकर शहीद करवा दिया।

  

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने लोगों के मध्य ईश्वरीय धर्म इस्लाम की उच्च मानवीय व नैतिक शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए अनथक प्रयास किये। वे अपने अनुयाइयों के व्यवहार को सुधारने पर बहुत ध्यान देते थे। यहां पर हम इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की कुछ सिफारिशों को बयान कर रहे हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं हमारे अनुयाइ पहचाने नहीं जाते किन्तु विनम्रता और नर्म व्यवहार से। वे अमानतदार होते हैं और वे ईश्वर को बहुत अधिक याद करते हैं।

 

नमाज़ पढ़ते हैं और रोज़ा रखते हैं और अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। वे अपने निर्धन पड़ोसियों की सहायता करते हैं और अनाथों एवं संकटग्रस्त लोगों की चिंता में रहते हैं। मेरे अनुयाइ सच बोलते हैं। वे दूसरों को बुरा-भला कहने से अपनी ज़बान को सुरक्षित रखते हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने  एक दिन अपने कुछ अनुयाइयों के हाथ अपने दूसरे अनुयाइयों के लिए संदेश भेजा और फरमाया कि मेरे संदेश को इस प्रकार पहुंचाओ। मेरे अनुयाइयों को मेरा सलाम कहना और उन लोगों से तक़वे अर्थात ईश्वर से डरने भय की सिफारिश करो और उनसे कहो कि उनमें से धनी, निर्धनों का हाल- चाल पूछने जायें और निर्धनों के बीमारों को देखने जायें और उनकी शव यात्रा में शामिल  हों और एक दूसरे को देखने के लिए जायें क्योंकि यह आवा-जाही हमारे आदेशों व शिक्षाओं के जीवित होने का कारण बनेगी।

 

ईश्वर उस पर दया करे जो हमारे आदेशों को जीवित करे और उसमें से बेहतरीन पर अमल करे और उनसे कहो कि प्रलय के दिन सबसे अधिक वह व्यक्ति पछतायेगा जो अच्छे कार्यों की सिफ़ारिश तो दूसरे लोगों से करे परंतु स्वयं उसका उल्टा करे।“

 

रविवार, 11 सितम्बर 2016 04:43

वरिष्ठ नेता का हज संदेश

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

पूरी दुनिया के मुसलमान भाइयो और बहनो! 

हज का अवसर, वास्तव में गौरव, लोगों की नज़रों में प्रतिष्ठा, दिल के प्रकाशमय होने और रचयिता के सामने गिड़गिड़ाने व शीश नवाने की ऋतु है। हज, पवित्र, सांसारिक, ईश्वरीय व जन कर्तव्य है। एक ओर से अल्लाह को याद करो जैसे तुम अपने पूर्वजों को याद करते हो या उससे भी अधिक का आदेश, और दूसरी ओर यह कहा जाना कि हमने उसे लोगों के लिए समान बनाया है चाहे वह मक्का में रहने वाला हो या मरुस्थल में, हज के अनंत व विविधतापूर्ण आयामों को स्पष्ट करता है।

इस अभूतपूर्व कर्तव्य में समय व स्थान की सुरक्षा, स्पष्ट चिन्ह और किसी चमकते सितारे की भांति इन्सानों के दिलों को शांति प्रदान करती है और हाजियों को वर्चस्ववादी अत्याचारियों की ओर से खींचे गये असुरक्षा के उस दायरे से बाहर ले जाती है जो हमेशा इन्सानों के लिए ख़तरा रहा है और हाजियों को एक विशेष समय तक सुरक्षा के सुख का आभास कराती है।

इब्राहीमी हज जो वास्तव में इस्लाम की ओर से मुसलमानों को मिलने वाला उपहार है, प्रतिष्ठा, अध्यात्म, एकता व महानता का प्रतीक और दुश्मनों व बुरा चाहने वालों के सामने इस्लामी राष्ट्र की महानता और ईश्वर की अनंत शक्ति पर उनके भरोसे को दिखाता और अंतराष्ट्रीय शक्तियों और वर्चस्ववादियों की ओर से मानव समाज पर थोपे गये भ्रष्टाचार व तुच्छता से उनकी दूरी को स्पष्ट करता है। इस्लामी व एकतावादी हज, काफ़िरों के प्रति कठोर और आपस में कृपालु होने का प्रतीक और अनेकेश्वरवादियों से विरक्तता तथा मोमिनों के मध्य प्रेम, एकता व सौहार्द की जगह है।

जिन लोगों ने हज को सैर-सपाटे के लिए की जाने वाली यात्रा की हद तक गिरा दिया है और ईरान की मोमिन और क्रांतिकारी जनता के प्रति अपने द्वेष को, हज के राजनीतिकरण के दावे के पीछे छुपाया है वे वास्तव में ऐसे छोटे व तुच्छ शैतान हैं जो बड़े शैतान अमरीका के हितों के लिए ख़तरा पैदा होने पर कांपने लगते हैं। इस साल अल्लाह की राह और काबे के रास्ते को बंद करने वाले सऊदी अधिकारी, जिन्होंने ईरानी हाजियों को काबा जाने से रोक दिया, वास्तव में काली करतूतों वाले भ्रष्ट शासक हैं जो अपनी अन्यायपूर्ण सत्ता को, विश्व साम्राज्य के समर्थन, ज़ायोनिज़्म और अमरीका के साथ दोस्ती और उनके आदेशों के पालन पर निर्भर समझते हैं और इसके लिए किसी भी प्रकार की ग़द्दारी में तनिक भी संकोच नहीं करते।

मिना की दुखदायी त्रासदी को लगभग एक साल का समय बीत गया कि जिस में ईद के दिन और हज की विशेष पोशाक में, तेज़ धूप में प्यास की दशा में असहाय होकर हज़ारों हाजी मारे गये थे और उससे कुछ पहले भी काबे में उपासना और परिक्रमा व नमाज़ के दौरान बहुत से हाजियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। सऊदी अधिकारी दोनों दुर्घटनाओं के ज़िम्मेदार हैं और इस वास्तविकता पर वहां उपस्थित सभी लोग, सारे विशेषज्ञ और निरीक्षक एकमत हैं और कुछ विशेषज्ञों ने तो इस दुर्घटना के पीछे साज़िश की आशंका भी प्रकट की है। ईदुलअज़हा के अवसर पर ईश्वर के नाम और उसके संदेश का जाप करने वाले घायल व मरते हाजियों को बचाने में निश्चित रूप से लापरवाही भी बरती गयी है। निर्दयी व अपराधी सऊदी अधिकारियों ने इन घायल हाजियों को मर जाने वाले हाजियों के साथ कंटेनरों में बंद कर दिया और उनका उपचार करने और उन्हें पानी पिलाने के बजाए उन्हें शहीद कर दिया। विभिन्न देशों के कई हज़ार परिवारों के प्रियजन मारे गये और कितने राष्ट्र शोकाकुल हुए। इस्लामी गणतंत्र ईरान के लगभग 500 हाजी शहीद हुए, उनके परिजन अब भी दुखी हैं और ईरानी राष्ट्र अब भी उनका शोक मना रहा है।

लेकिन सऊदी नेता, माफ़ी मांगने और खेद प्रकट करने तथा इस भयानक त्रासदी के सीधे ज़िम्मेदारों को सज़ा देने के बजाए, बड़ी निर्लज्जता के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी जांच समिति के गठन तक पर तैयार नहीं हुए और दोषी के रूप में कटघरे में खड़े होने के बजाए, दावेदार बन गये। उन्होंने इस्लामी गणतंत्र ईरान और अनेकेश्वरवाद व साम्राज्य के मुकाबले में लहराने वाली हर पताका के ख़िलाफ़ अपनी पुरानी दुश्मनी को अधिक घृणित रूप में प्रकट कर दिया।

ज़ायोनियों और अमरीका के प्रति अपने व्यवहार से इस्लामी जगत के लिए कलंक बनने वाले राजनेताओं, ईश्वर से न डरने वाले, हराम खाने वाले और क़ुरआन व हदीस के विपरीत फ़तवा देने वाले मुफ्तियों और उन मीडिया एजेन्टों सहित कि जिनका कर्तव्यबोध भी उन्हें झूठ फैलाने और झूठ बोलने से नहीं रोक पाता, सऊदी शासकों के सभी प्रचारिक भोंपू, इस साल ईरानियों को हज से वंचित करने का ज़िम्मेदार, इस्लामी गणतंत्र ईरान को दर्शाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। तकफ़ीरी व आतंकवादी गुटों को बना कर उन्हें सशस्त्र करने और इस्लामी जगत को गृहयुद्धों में फंसाने वाले, बेगुनाहों का ख़ून बहाने वाले, यमन, इराक़, सीरिया व लीबिया तथा अन्य देशों में रक्तपात करने वाले, ईश्वर को भूल कर ज़ायोनियों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने वाले, फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा व दुखों की अनदेखी करने वाले, बहरैन के नगरों और गांवों में अत्याचार व अन्याय फैलाने वाले, अंतरात्माहीन, अधर्मी शासक कि जिन्होंने मिना की महात्रासदी को जन्म दिया और मक्का व मदीना के पवित्र स्थलों के सेवकों का रूप धार कर इन स्थलों की पवित्रता व शांति को भंग करने वाले और ईद के दिन और उससे पहले काबा में ईश्वर के अतिथियों की बलि चढ़ाने वाले सऊदी शासक अब हज को राजनीति से दूर रखने की बात कर रहे हैं और दूसरों को उन पापों का ज़िम्मेदार बता रहे हैं जो उन्होंने खुद किए हैं और जिनका कारण रहे हैं। ये लोग क़ुरआने मजीद की इन आयतों को यथार्थ करते हैं कि जिनमें कहा गया हैः और जब उसे सत्ता मिलती है तो वह धरती पर भ्रष्टाचार व ख़राबी फैलाने का प्रयास करता है, खेतियां और पीढ़ियां तबाह करता है और अल्लाह फ़साद पसन्द नहीं करता। और जब उससे कहा जाता है कि अल्लाह से डर तो उसे पाप पर घमंड होता है तो उसके लिए नरक काफ़ी है और वह बहुत बुरा ठिकाना है।

इस साल के हज में भी रिपोर्टों के अनुसार ईरानी और कुछ अन्य देशों के हाजियों का रास्ता रोकने के अलावा दूसरे देशों के हाजियों को अमरीका और ज़ायोनी शासन की ख़ुफिया एजेन्सियों के सहयोग से अभूतपूर्व निगरानी में रखा गया है और अल्लाह के सुरक्षित घर को सबके लिए असुरक्षित बना दिया गया है।

इस्लामी सरकारों और राष्ट्रों सहित पूरे इस्लामी जगत को चाहिए कि वह सऊदी शासकों को पहचाने और धर्म से दूर उनकी भौतिकता से भरी मानसिकता को सही तरह से समझे, उन्होंने इस्लामी जगत में जो अपराध किये हैं उनके लिए उनसे सवाल करे और ईश्वर के अतिथियों के साथ उनके अत्याचारपूर्ण व्यवहार की वजह से मक्का व मदीना के पवित्र स्थलों के संचालन और हज के लिए कोई रास्ता खोजे। इस कर्तव्य के प्रति लापरवाही इस्लामी राष्ट्र के भविष्य को अधिक बड़ी समस्याओं में ग्रस्त कर देगी।

मुसलमान भाइयो और बहनो! इस साल ईरान के आस्था से भरे हाजियों की कमी महूसस की जा रही है लेकिन उनके दिल पूरी दुनिया से हज करने वालों के साथ हैं और उनके लिए चिंतित हैं और दुआ करते हैं कि दुष्ट शासकों का गिरोह उन्हें कोई नुक़सान न पहुंचा पाए। अपने ईरानी भाईयों और बहनों को अपनी दुआओं और उपासनाओं में याद रखिएगा और इस्लामी समाजों की चिंताओं के निवारण और इस्लामी जगत में साम्राज्यवादियों, ज़ायोनियों और उनके एजेन्टों के प्रभावों के अंत की दुआ कीजिए।

मैं पिछले साल मिना और काबा के शहीदों और 31 जूलाई सन 1987 को मक्का के शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं और महान ईश्वर से उनके लिए क्षमा, कृपा और उनकी महानता की दुआ करता हूं और इमामे ज़माना पर सलाम भेजते हुए याचना करता हूं कि वे इस्लामी राष्ट्र की महानता और दुश्मनों की दुष्टता से मुसलमानों को छुटकारा मिलने की दुआ करें।

सैयद अली ख़ामेनेई

२ सितम्बर सन २०१६