رضوی

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रमज़ान के पवित्र महीने के पहले दिन, फ़िलिस्तीनी जमा हुए और ज़ायोनी शासन के नरसंहार से नष्ट हुए घरों के पास उन्होंने अपना रोज़ा खोला।

रमज़ान के पवित्र महीने की शुरुआत और जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट में जेनिन शिविर में रहने वाले फ़िलिस्तीनियों की घेराबंदी की वजह से पैदा कठिन आर्थिक और सामाजिक स्थिति के साए में, इस कैंप पर ज़ायोनी हमले और जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट में फ़िलिस्तीनी घरों का विनाश जारी है।

ज़ायोनी शासन के बुलडोज़रों ने वेस्ट बैंक में जेनिन कैंप की मुख्य और छोटी मोटी सड़कों को भी नष्ट कर दिया। पार्सटुडे के अनुसार, फ़िलिस्तीनी सूत्रों के अनुसार, इस हमले के बाद लगभग 40 हज़ार फ़िलिस्तीनी विस्थापित हो गए हैं।

एक फ़िलिस्तीनी शरणार्थी ने अल-आलम न्यूज़ चैनल से बात करते हुए कहा: हम अपने घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं। ज़ायोनी शत्रु सोचता है कि वह विस्थापन से फ़िलिस्तीनियों की इच्छा को कुचल सकता है, लेकिन यह ग़लत है। ज़ायोनी शासन के हमलों के बावजूद हम अपनी मातृभूमि में रहना चाहते हैं, जेनिन उनका नहीं, बल्कि फ़िलिस्तीनियों का है।

दूसरी ओर शनिवार से ज़ायोनी शासन ने वेस्ट बैंक के उत्तर में तूलकर्म शहर के पूर्व में स्थित नूर अल-शम्स कैंप में आवासीय घरों को नष्ट करना जारी रखा और इस शासन के बुलडोज़रों ने इस शिविर के अंदर लगभग 30 आवासीय इकाइयों को नष्ट कर दिया।

हमास ने वेस्ट बैंक पर हमले की निंदा की

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "हमास" ने ज़ायोनी शासन द्वारा नूर अल- शम्स कैंप में फ़िलिस्तीनी घरों को नष्ट करने की निंदा की, और इस कार्रवाई को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन और युद्ध अपराध क़रार दिया।

हमास ने इस बात पर जोर दिया कि अतिग्रहणकारी सेना की कार्रवाई उसके प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री सहित ज़ायोनी शासन के नेताओं के दस्तावेज़ी बयानों से मेल खाती है, जो वेस्ट बैंक के उत्तरी हिस्से में स्थित कैंपों से फिलिस्तीनियों को स्थानांतरित करने की एक योजनाबद्ध योजना का संकेत देते हैं।

युद्ध के खंडहरों पर ग़ज़ा के लोगों की इफ्तार मेज़

दूसरी ख़बर यह है कि ग़ज़ापट्टी में रहने वाले फ़िलिस्तीनी भी रमजान के पवित्र महीने के पहले शनिवार को अपने नष्ट हुए घरों के खंडहरों के बीच और अपने प्रियजनों को खोने के असहनीय दर्द के साथ इफ्तार की मेज पर जमा हुए।

ग़ज़ापट्टी के उत्तर में, जहां सभी आवासीय क्षेत्र नष्ट हो गए हैं, फिलिस्तीनियों ने उन कैंप्स में शरण ली है जिनमें सबसे बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं और उन्होंने साधारण भोजन, मुख्य रूप से डिब्बाबंद भोजन के साथ अपना रोज़ा खोला।

ग़ज़ा पट्टी के दक्षिण में स्थित ख़ान यूनिस शहर में हालात इससे बहुत अलग नहीं हैं, जहां हजारों फिलिस्तीनी शरणार्थियों को पानी और भोजन की कमी के बीच कैंप में इफ्तार के लिए मजबूर होना पड़ा।

ग़ज़ा में नरसंहार और जातीय सफ़ाए के युद्ध से बचे लोगों ने कुछ जरूरतमंदों को भोजन वितरित किया और जवानों ने स्वेच्छा से रोज़ा खोलने वालों को खजूर और पानी भी दिया।

रफ़ा शहर में, ग़ज़ापट्टी के दक्षिण में और शुजाइया के पड़ोस में, एक सामूहिक इफ्तार की मेज रखी गई थी और सैकड़ों फिलिस्तीनी अपने घरों के खंडहरों के बीच एकत्र हुए थे जो नरसंहार और जातीय सफ़ाए के युद्ध के परिणामस्वरूप नष्ट हो गए थे।

विनाश के बावजूद, ग़ज़ा के लोग एक आशाजनक जीवन बनाने की कोशिश कर रहे हैं और अपने घरों की नष्ट हो चुकी दीवारों पर लालटेन लटकाकर, वे विनाश के बीच आशा की एक किरण जगाने करने की कोशिश कर रहे हैं

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने रविवार 2 मार्च 2025 को रमज़ान मुबारक के पहले दिन, तेहरान में "क़ुरआन से उंस" नामक महफ़िल में जिसमें मुल्क के बड़े क़ारियों, हाफ़िज़ों और क़ुरआन के नुमायां उस्तादों ने शिरकत की, व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर क़ुरआन की शिक्षाओं को अहम ज़रूरत बताया जो इंसान की बीमारियों का इलाज करने वाली हैं और ताकीद की कि क़ुरआनी समाज इस तरह व्यवहार करे कि अल्लाह की किताब का अध्यात्मिक सोता सभी लोगों के दिलों, विचारों और फिर नतीजे के तौर पर व्यवहार और अमल में रच बस जाए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ढाई घंटे से ज़्यादा देशी और विदेश क़ारियों, सामूहिक तिलावत करने वाली टीमों और 'तवाशीह' पढ़ने वाले ग्रुप्स को सुना और मोमिनों की सच्ची और बड़ी ईद के तौर पर रमज़ानुल मुबारक की बधाई दी और मुल्क में क़ुरआन के क़ारियों की लगातार बढ़ती हुयी तादाद पर अल्लाह का शुक्र अदा किया। उन्होंने मुख़्तलिफ़ मुश्किलों के हल के लिए समाज को क़ुरआन के अमर सोते की ज़रूरत को वास्तविक और अहम ज़रूरत बताया।

 इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने व्यक्तिगत रूप से अल्लाह की इस किताब की ज़रूरत की व्याख्या में कहा कि एक एक इंसान की मानसिक और नैतिक बीमारियों जैसे ईर्ष्या, कंजूसी, दूसरों के बारे में बुरे विचार, सुस्ती, आत्ममुग्धता, इच्छाओं का अंधा अनुसरण और व्यक्तिगत हितों को सामूहिक हितों पर प्राथमिकता देने का इलाज क़ुरआन में है।

इसी तरह उन्होंने समाज के भीतर आपसी संपर्क के संबंध में कहा कि तौहीद के बाद सबसे अहम विषय सामाजिक न्याय सहित सामाजिक मुश्किलों के हल के लिए भी हमें क़ुरआन की ज़रूरत है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने दूसरे देशों से संपर्क के संबंध में भी क़ुरआन को रहनुमा कितबा बताया जो सटीक तौर पर रहनुमाई करती है। उन्होंने कहा कि ईरानी क़ौम को दूसरी क़ौमों के साथ कोई मुश्किल नहीं है लेकिन आज उसे काफ़िरों या मुनाफ़िक़ों पर आधारित दुनिया की ताक़तों का सामना है, जिनसे निपटने का तरीक़ा क़ुरआन सिखाता है। उन्होंने कहा कि क़ुरआन हमको बताता है कि हमें कब उनसे बात करनी चाहिए, कब किस चरण में हम सहयोग करें, किस वक़्त उन्हें मुंहतोड़ जवाब दें और किस वक़्त तलवार निकाल लें।

उन्होंने सही तरीक़े से तिलावत और सही तरीक़े से सुनने को मानवता की बीमारियों के दूर होने का सबब बताया और कहा कि जिस वक़्त क़ुरआन की अच्छी तरह तिलावत हो और उसे सही तरह से सुना जाए तो इंसान में सुधार और निजात का जज़्बा पैदा होता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने क़ुरआन की एक आयत का हवाला देते हुए पैग़म्बरे इस्लाम का क़ुरआन की आयतों की तिलावत का मक़सद सभी मानसिक बीमारियों से शिफ़ा देना; किताब की शिक्षा का मक़सद व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िंदगी के मूल ढांचे कि शिक्षा देना और हिकमत की शिक्षा का मतलब इस सृष्टि की हक़ीक़तों को पहचानने कि शिक्षा देना बताया और कहा कि तिलावत, पैग़म्बरों का काम है और क़ारी हक़ीक़त में पैग़म्बर का काम कर रहे हैं।

उन्होंने क़ुरआन के अर्थ के एक एक शख़्स के वैचारिक आधारों में रच बस जाने को सही तिलावत की उपयोगिता में गिनवाया और क़ुरआन मजीद के सही प्रभाव के लिए उसको सही 'तरतील' से पढ़ने पर ताकीद की। उन्होंने तरतील के सही मानी की व्याख्या में कहा कि तरतील एक आध्यात्मिक चीज़ है, इसका मानी समझकर और ग़ौर व फ़िक्र के साथ तिलावत करना और ठहर ठहर कर पढ़ना है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने क़ुरआन के मानी की समझ को तिलावत के प्रभावी होने में अहम बताया और कहा कि आज इंक़ेलाब के आग़ाज़ के दिनों की तुलना में हमारे क़ारी, अल्लाह के इस कलाम को अच्छी तरह समझते हैं लेकिन आयतों के मानी की समझ आम जनता स्तर पर फैलनी चाहिए।

उन्होंने मुल्क में क़ुरआन के अच्छे कंटेन्ट बनाए जाने की ओर इशारा किया और कहा कि ख़ुशी की बात है कि मुल्क में क़ुरआन के मैदान में तेज़ी से तरक़्क़ी हुयी है और इंक़ेलाब से पहले की तुलना में कि जब क़ुरआन नज़रअंदाज़ कर दिया गया था और उसकी तिलावत गिने चुने क़ारियों तक सीमित थी, आज पूरे मुल्क यहाँ तक कि छोटे शहरों और कुछ गावों में अच्छे और नुमायां क़ारी मौजूद हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अंत में उम्मीद जतायी कि इन सूक्ष्म बिंदुओं के पालन से, क़ुरआन का आध्यात्मिक सोता, आम लोगों के दिलों, विचारों और व्यवहार में रच बस जाएगा।

 

 

इजराइल ने रविवार को कहा कि वह गाजा पट्टी में किसी भी वस्तु को प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगा।

इजराइल ने रविवार को कहा कि वह गाजा पट्टी में किसी भी वस्तु को प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगा।

प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस निर्णय के बारे में विस्तार से नहीं बताया लेकिन चेतावनी दी कि यदि हमास ने संघर्ष विराम के विस्तार के लिए अमेरिकी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया तो उसे अतिरिक्त परिणाम भुगतने होंगे।

इजराइल हमास के बीच संर्घष विराम का पहला चरण शनिवार को समाप्त हो गया इसमें मानवीय सहायता में वृद्धि शामिल थी। दोनों पक्षों के बीच अभी दूसरे चरण पर बातचीत होनी बाकी है जिसमें इजराइल के अपनी सेना वापस बुलाने और स्थायी युद्ध विराम के बदले में हमास दर्जनों शेष बंधकों को रिहा करेगा।

इजराइल ने रविवार को कहा कि वह पासओवर या 20 अप्रैल तक संघर्ष विराम को आगे बढ़ाने के पक्ष में है इसने कहा कि यह प्रस्ताव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के पश्चिम एशिया के दूत स्टीव विटकॉफ की ओर से आया है।

 

जिस तरह से ट्रम्प और उनके डिप्टी ने ज़ेलेंस्की के साथ बर्ताव किया, उसकी आलोचना करते हुए एक लेख में ब्रिटि अखबार "ऑब्जर्वर" ने इसे एक शातिर, लापरवाह और धोखेबाज हमला क़रार दिया है।

ब्रिटिश अख़बार "ऑब्जर्वर" का मानना ​​है कि शुक्रवार को वाइट हाउस में मुलाकात के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का यूक्रेन के राष्ट्रपति "विलोदीमीर ज़ेलेंस्की" के साथ बर्ताव, पिछले कुछ दशकों में अमेरिकी कूटनीति के क्षेत्र में सबसे चौंकाने वाले क्षणों में से एक था।

इस आर्टिकल में बताया गया है: ट्रम्प और उनके डिप्टी के इस बर्ताव ने यूरोप और अमेरिका के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं।

"द ऑब्ज़र्वर" ने अपने संपादकीय में यूरोपीय जनता को डोनल्ड ट्रम्प के क्रियाकलापों और कार्यों से पाठ सीखने की सलाह देते हुए कहा: पहला सबक जो सीखना चाहिए वह ट्रम्प के राष्ट्रपति पद की शुरुआत के बाद से ही स्पष्ट है कि: अमेरिका को व्यापार, खुफिया और सुरक्षा भागीदार के रूप में नहीं गिना जा सकता है।

 

इस ब्रिटिश अख़बार के अनुसार: नैटो और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वाशिंगटन के समर्थन की अब कोई गारंटी नहीं है। रूस की मदद करके, जिसने अब तक ब्रिटेन सहित यूक्रेन से परे यूरोपीय देशों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण कार्रवाई की है, ट्रम्प ने खुद को आज यूरोप के सामने सबसे बड़े खतरे के रूप में पेश कर दिया है।

ऑब्जर्वर आगे लिखता है: इसका मतलब यह है कि यूरोपीय राजधानियों को न केवल सैन्य बजट के संबंध में कठिन निर्णय लेने होंगे, बल्कि सार्वजनिक रूप से यह संदेश देना होगा कि रूस के साथ व्यापक युद्ध अमेरिकी समर्थन के बिना अकल्पनीय नहीं है।

अपने लेख के अंत में, ऑब्ज़र्वर ने कहा: ट्रम्प के कार्यों को एक अहंकारी और अत्यधिक असुरक्षित व्यक्ति की आक्रामक नाटकीय प्रतिक्रियाओं के रूप में देखना आसान है, लेकिन इन कार्यों के परिणाम इन विवरणों से कहीं आगे की बात हैं।

अगर आशा की कोई किरण है तो वह यह है कि ट्रम्प के ज़हरीले विवादों के पीछे हम उनकी कमजोरी और असंगति को चुनौती दे सकते हैं। पार्सटुडे के अनुसार, तीन साल पहले, यूक्रेन में युद्ध के आरंभिक दिनों में, इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने रणनीतिक विश्लेषण के साथ इस संकट की जड़ों को बयान किया था और कहा था कि यूक्रेन अमेरिका की संकट पैदा करने वाली नीति का शिकार हुआ।

उन्होंने यूक्रेन के आंतरिक मामलों में अमेरिका के हस्तक्षेप, मख़मली तख्तापलट के समर्थन और कलरफ़ुल गैदरिंग को इस संकट का मुख्य कारक क़रार दिया था। सुप्रीम लीडर का कहना था: पश्चिमी शक्तियों का उन देशों और सरकारों से समर्थन जो उनके एजेंट हैं, एक धोखा है, यह वास्तविकता नहीं है, सभी सरकारों को यह जान लेना चाहिए।

 

यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के एक नेता ने सऊदी अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें व्हाइट हाउस में ज़ेलेंस्की के अपमान से सबक लेना चाहिए।

अंसारुल्लाह के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य मोहम्मद फरह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर सऊदी अधिकारियों के लिए एक पोस्ट किया उन्होंने लिखा,क्या तुमने नहीं देखा कि अमेरिका ने अपने सबसे करीबी पूर्वी यूरोपीय सहयोगी और एक यहूदी व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार किया? उन्होंने कैसे ज़ेलेंस्की के साथ गठबंधन से हाथ खींच लिया? तुम्हें क्या गारंटी है कि तुम्हारी संपत्तियाँ और धन जो अमेरिकी बैंकों में जमा हैं सुरक्षित रहेंगे?

उन्होंने आगे कहा,क्या इस बात की कोई गारंटी है कि अमेरिका तुमसे मुंह नहीं मोड़ेगा और तुम्हारी नीतियों की निंदा नहीं करेगा ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने यूक्रेन के साथ किया?

अंसारुल्लाह नेता ने ज़ोर देकर कहा,जब वे उन लोगों के साथ अपमानजनक और तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करते हैं, जिन्हें वे अपना सबसे करीबी मित्र मानते थे, तो सोचो कि वे उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, जिनसे वे नफरत करते हैं यानी अरबों और मुसलमानों के साथ?

एक महीने पहले डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से फोन पर बात की थी। इस दौरान बिन सलमान ने अगले चार वर्षों में अमेरिका के साथ व्यापार संबंध बढ़ाने की सऊदी योजना की घोषणा की उन्होंने कहा कि यह निवेश 600 अरब डॉलर या उससे अधिक का होगा।

यह बातचीत उस समय हुई जब ट्रंप ने संकेत दिया था कि यदि सऊदी अरब अमेरिका से 500 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुएँ खरीदने पर सहमत होता है, तो यह उनका पहला विदेशी दौरा हो सकता है।

पहले भी डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद उनका पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब था जहाँ दोनों देशों ने लगभग 400 अरब डॉलर के निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे।

 

शनिवार, 01 मार्च 2025 18:41

मुनाज़ेरा ए इमाम सादिक़ अ.स.

इब्ने अबी लैला से मंक़ूल है कि मुफ़्ती ए वक़्त अबू हनीफ़ा और मैं बज़्मे इल्म व हिकमते सादिक़े आले मुहम्मद हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम में वारिद हुए।

इमाम (अ) ने अबू हनीफ़ा से सवाल किया कि तुम कौन हो?

मैं: अबू हनीफ़ा

इमाम (अ): वही मुफ़्ती ए अहले इराक़

अबू हनीफ़ा: जी हाँ

इमाम (अ): लोगों को किस चीज़ से फ़तवा देते हो?

अबू हनीफ़ा: क़ुरआन से

इमाम (अ): क्या पूरे क़ुरआन, नासिख़ और मंसूख़ से लेकर मोहकम व मुतशाबेह तक का इल्म है तुम्हारे पास?

अबू हनीफ़ा: जी हाँ

इमाम (अ): क़ुरआने मजीद में सूर ए सबा की 18 वी आयत में कहा गया है कि उन में बग़ैर किसी ख़ौफ़ के रफ़्त व आमद करो।

इस आयत में ख़ुदा वंदे आलम की मुराद कौन सी चीज़ है?

अबू हनीफ़ा: इस आयत में मक्का और मदीना मुराद है।

इमाम (अ): (इमाम (अ) ने यह जवाब सुन कर अहले मजलिस को मुख़ातब कर के कहा) क्या ऐसा हुआ है कि मक्के और मदीने के दरमियान में तुम ने सैर की हो और अपने जान और माल का कोई ख़ौफ़ न रहा हो?

अहले मजलिस: बा ख़ुदा ऐसा तो नही है।

इमाम (अ): अफ़सोस ऐ अबू हनीफ़ा, ख़ुदा हक़ के सिवा कुछ नही कहता ज़रा यह बताओ कि ख़ुदा वंदे आलम सूर ए आले इमरान की 97 वी आयत में किस जगह का ज़िक्र कर रहा है:

व मन दख़लहू काना आमेनन

अबू हनीफ़ा: ख़ुदा इस आयत में बैतल्लाहिल हराम का ज़िक्र कर रहा है।

इमाम (अ) ने अहले मजलिस की तरफ़ रुख़ कर के कहा क्या अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर और सईद बिन जुबैर बैतुल्लाह में क़त्ल होने से बच गये?

अहले मजलिस: आप सही फ़रमाते हैं।

इमाम (अ): अफ़सोस है तुझ पर ऐ अबू हनीफ़ा, ख़ुदा वंदे आलम हक़ के सिवा कुछ नही कहता।

अबू हनीफ़ा: मैं क़ुरआन का नही क़यास का आलिम हूँ।

इमाम (अ): अपने क़यास के ज़रिये से यह बता कि अल्लाह के नज़दीक क़त्ल बड़ा गुनाह है या ज़ेना?

अबू हनीफ़ा: क़त्ल

इमाम (अ): फ़िर क्यों ख़ुदा ने क़त्ल में दो गवाहों की शर्त रखी लेकिन ज़ेना में चार गवाहो की शर्त रखी।

इमाम (अ): अच्छा नमाज़ अफ़ज़ल है या रोज़ा?

अबू हनीफ़ा: नमाज़

इमाम (अ): यानी तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ हायज़ा पर वह नमाज़ें जो उस ने अय्यामे हैज़ में नही पढ़ी हैं वाजिब हैं न कि रोज़ा, जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने रोज़े की क़ज़ा उस पर वाजिब की है न कि नमाज़ की।

इमाम (अ): ऐ अबू हनीफ़ा पेशाब ज़्यादा नजिस है या मनी?

अबू हनीफ़ा: पेशाब

इमाम (अ): तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ पेशाब पर ग़ुस्ल वाजिब है न कि मनी पर, जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने मनी पर ग़ुस्ल को वाजिब किया है न कि पेशाब पर।

अबू हनीफ़ा: मैं साहिबे राय हूँ।

इमाम (अ): अच्छा तो यह बताओ कि तुम्हारी नज़र इस के बारे में क्या है, आक़ा व ग़ुलाम दोनो एक ही दिन शादी करते हैं और उसी शब में अपनी अपनी बीवी से हम बिस्तर होते हैं, उस के बाद दोनो सफ़र पर चले जाते हैं और अपनी बीवियों को घर पर छोड़ देते हैं एक मुद्दत के बाद दोनो के यहाँ एक एक बेटा पैदा होता है एक दिन दोनो सोती हैं, घर की छत गिर जाती है और दोनो औरतें मर जाती हैं, तुम्हारी राय के मुताबिक़ दोनो लड़कों में से कौन सा ग़ुलाम है, कौन आक़ा, कौन वारिस है, कौन मूरिस?

अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ हुदूद के मसायल में बाहर हूँ।

इमाम (अ): उस इंसान पर कैसे हद जारी करोगे जो अंधा है और उस ने एक ऐसे इंसान की आंख फोड़ी है जिस की आंख सही थी और वह इंसान जिस के हाथ में नही हैं और वह इंसान जिस के हाथ नही है उस ने एक दूसरे इंसान का हाथ काट दिया है।

अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ बेसते अंबिया के बारे में जानता हूँ।

इमाम (अ): अच्छा ज़रा देखें यह बताओ कि ख़ुदा ने मूसा और हारून को ख़िताब कर के कहा कि फ़िरऔन के पास जाओ शायद वह तुम्हारी बात क़बूल कर ले या डर जाये। (सूर ए ताहा आयत 44)

यह लअल्ला (शायद) तुम्हारी नज़र में शक के मअना में है?

इमाम (अ): हाँ

इमाम (अ): ख़ुदा को शक था जो कहा शायद

अबू हनीफ़ा: मुझे नही मालूम

इमाम (अ): तुम्हारा गुमान है कि तुम किताबे ख़ुदा के ज़रिये फ़तवा देते हो जब कि तुम उस के अहल नही हो, तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे क़यास हो जब कि सब से पहले इबलीस ने क़यास किया था और दीने इस्लाम क़यास की बुनियाद पर नही बना, तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे राय हो जब कि दीने इस्लाम में रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहि वा आलिहि वसल्लम के अलावा किसी की राय दुरुस्त नही है इस लिये कि ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है:

फ़हकुम बैनहुम बिमा अन्ज़ल्लाह

तू समझता है कि हुदूद में माहिर है जिस पर क़ुरआन नाज़िल हुआ है तुझ से ज़्यादा हुदुद में इल्म रखता होगा। तू समझता है कि बेसते अंबिया का आलिम है ख़ुदा ख़ातमे अंबिया अंबिया के बारे में ज़्यादा वाक़िफ़ थे और मेरे बारे में तूने ख़ुद ही कहा फ़रजंदे रसूल ने और कोई सवाल नही किया, अब मैं तुझ से कुछ सवाल पूछूँगा अगर साहिबे क़यास है तो क़यास कर।

अबू हनीफ़ा: यहाँ के बाद अब कभी क़यास नही करूँगा।

इमाम (अ): रियासत की मुहब्बत कभी तुम को इस काम को तर्क नही करने देगी जिस तरह तुम से पहले वालों को हुब्बे रियासत ने नही छोड़ा।

(ऐहतेजाजे तबरसी जिल्द 2 पेज 270 से 272)

फिलिस्तीनी इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के एक वरिष्ठ नेता अब्दुल रहमान शदीद ने एक बयान में फिलिस्तीनी जनता से अपील की है कि वे रमजान के पवित्र महीने में बड़ी संख्या में मस्जिद ए अलअक्सा में उपस्थिति दर्ज कराएं और इज़राईली शासन द्वारा यरुशलम पर लगाए गए प्रतिबंधों व सैन्य उपायों को तोड़ें।

फिलिस्तीनी इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के एक वरिष्ठ नेता अब्दुल रहमान शदीद ने एक बयान में फिलिस्तीनी जनता से अपील की है कि वे रमजान के पवित्र महीने में बड़ी संख्या में मस्जिद ए अलअक्सा में उपस्थिति दर्ज कराएं और इज़राईली शासन द्वारा यरुशलम पर लगाए गए प्रतिबंधों व सैन्य उपायों को तोड़ें।

उन्होंने बयान में जोर देते हुए कहा कि हमें मस्जिद अलअक्सा की ओर बढ़ना चाहिए अपनी उपस्थिति को मजबूत करना चाहिए और रमजान के पूरे महीने में वहां डटे रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कब्ज़ाधारी ताकतों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं करना चाहिए, बल्कि पूरी ताकत से उनका सामना करना चाहिए और इस पवित्र मस्जिद पर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक अधिकार पर अडिग रहना चाहिए।

शदीद ने आगे कहा कि रमजान के महीने को मस्जिद अल-अक्सा की रक्षा के लिए एक अवसर के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए और बड़ी संख्या में नमाज़ियों और एतेकाफ़ करने वालों की उपस्थिति सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि मस्जिद की रक्षा करना यरुशलम, 1948 के कब्जे वाले क्षेत्रों और वेस्ट बैंक के उन सभी निवासियों की जिम्मेदारी है जो वहां पहुंच सकते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि कब्ज़ाधारी ताकतों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध और उनकी यहूदीकरण की योजनाएं मस्जिद अलअक्सा को उसके असली मालिकों से अलग नहीं कर सकतीं बल्कि, यह कदम लोगों के भीतर इस पवित्र मस्जिद की रक्षा करने और ज़ायोनी योजनाओं का विरोध करने की भावना को और अधिक मजबूत करेंगे।

इससे पहले हमास ने एक बयान में ज़ायोनी शासन द्वारा रमजान के महीने में मस्जिद अल-अक्सा में प्रवेश को सीमित करने की योजनाओं की निंदा की थी उन्होंने जनता से इस पवित्र स्थल में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित रहने और इस पर अपना नियंत्रण थोपने के दुश्मन के सभी प्रयासों का विरोध करने का आग्रह किया था।

रमजान, मजलिसे ख़ुबरेगान रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह अब्बास काबी ने रमजान के पवित्र महीने को अल्लाह की ओर से एक महान उपहार और विश्वास को मजबूत करने, नेक काम करने और बलिदान करने का सबसे अच्छा अवसर बताया।

मजलिसे खुबरेगान रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह अब्बास काबी ने रमजान के पवित्र महीने को ईश्वर की ओर से एक महान उपहार और विश्वास को मजबूत करने, नेक काम करने और बलिदान करने का सबसे अच्छा अवसर बताया।

बातचीत में उन्होंने कहा कि रमज़ान न केवल इबादत और आत्म-सुधार का महीना है, बल्कि यह जिहाद और दृढ़ता का भी महीना है। ग़ज़वात से प्रेरणा लेते हुए इमाम खुमैनी ने कहा था कि रमज़ान जिहाद का महीना भी है। इसी आधार पर इमाम खुमैनी ने रमजान माह के अंतिम शुक्रवार को कुद्स दिवस घोषित किया ताकि मुसलमान रोज़े के माध्यम से उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज उठा सकें और अल्लाह के करीब आने की मंशा रख सकें।

आयतुल्लाह काबी ने इस वर्ष कुद्स दिवस के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह दिन वैश्विक ज़ायोनीवाद और उत्पीड़न के खिलाफ एक मजबूत संदेश होगा और मुसलमानों की एकता और दृढ़ता की अभिव्यक्ति होगी। उन्होंने कहा कि जिस तरह ईरान में इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ बड़े पैमाने पर मनाई गई थी, उसी तरह इस वर्ष कुद्स दिवस की रैलियां भी बड़े पैमाने पर आयोजित की जाएंगी।

उन्होंने पवित्र कुरान की तिलावत और उसके संदेश के क्रियान्वयन पर भी जोर दिया। उनके अनुसार, समाज में आध्यात्मिकता को बढ़ावा देने के लिए रमज़ान के दौरान सांप्रदायिक कुरानिक सभाएं, मस्जिदों में कुरान का पाठ और धार्मिक और आध्यात्मिक जागृति आयोजित करना बेहद जरूरी है।

उन्होंने मुसलमानों को चेतावनी दी कि वे रमज़ान के आध्यात्मिक क्षणों को बर्बाद न करें और अपना अधिकांश समय टीवी या सोशल मीडिया पर बिताने के बजाय, इसे इबादत, तक़वा और ईश्वर के स्मरण में लगाएं, क्योंकि ये ऐसी चीजें हैं जो ईमान को मजबूत करती हैं।

आयतुल्लाह काबी ने हमदर्दी और जरूरतमंदों की मदद को रमज़ान के मूल संदेशों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि दान देने, गरीबों की मदद करने और रोज़ेदारों को भोजन कराने से न केवल कठिनाइयां दूर होती हैं बल्कि आत्मा की पवित्रता और पवित्रता भी बढ़ती है।

उन्होंने कहा कि रमज़ान का सबसे महत्वपूर्ण संदेश तक़वा है और हमें इस महीने के दौरान अपने कार्यों का लेखा-जोखा करते समय ईश्वरीय सीमाओं का उल्लंघन करने से बचना चाहिए। यदि हमने कोई पाप किया है, तो तुरंत पश्चाताप करें और याद रखें कि हम परमेश्वर की उपस्थिति में हैं, जहां सबसे बड़ा आशीर्वाद हमारे कर्मों की स्वीकृति है।

अंत में, आयतुल्लाह काबी ने दुआ की कि अल्लाह हमें इस महीने में आध्यात्मिक प्रगति प्रदान करे और ईद-उल-फित्र को हमारे लिए सच्ची सफलता और खुशी का दिन बनाए।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के उस्ताद ने कहां, रमज़ान का महीना न केवल आध्यात्मिक उन्नति का समय है बल्कि यह भौतिक बरकतों का भी महीना है यह इंसान को ईश्वरीय दंड से बचाने और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करने का बेहतरीन माध्यम है

 

ईरान के माज़ंदरान प्रांत में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद बाक़िर मोहम्मदी लाइनी ने कहा कि मस्जिदों की सफ़ाई और स्वच्छता रमज़ान महीने की एक अच्छी परंपरा है उन्होंने कहा कि एक खुली और साफ सुथरी मस्जिद युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करती है।

ईरान के माज़ंदरान प्रांत में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद बाक़िर मोहम्मदी लाइनी ने कहा कि मस्जिदों की सफ़ाई और स्वच्छता रमज़ान महीने की एक अच्छी परंपरा है उन्होंने कहा कि एक खुली और साफ-सुथरी मस्जिद युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करती है।

हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मदी लाइनी ने माज़ंदरान के शहर "सारी" की मस्जिद मूसा इब्ने जाफर (अ.स.) में मस्जिद की सफ़ाई के दौरान कहा कि हमारे यहाँ एक अच्छी परंपरा यह है कि रमज़ान के आगमन पर अल्लाह के मेहमानों के लिए मस्जिदों को साफ सुथरा किया जाता है।

 

उन्होंने आगे कहा कि हर साल लोग विशेष रूप से महिलाएँ स्वेच्छा से मस्जिदों की सफ़ाई में भाग लेती हैं हालांकि यह सभी नमाज़ियों और पड़ोसियों की ज़िम्मेदारी है कि वे केवल रमज़ान में ही नहीं बल्कि पूरे साल मस्जिदों की सफ़ाई का ध्यान रखें।

हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मदी लाइनी ने कहा कि एक सुंदर, खुली और साफ-सुथरी मस्जिद युवाओं को आकर्षित करती है, और मस्जिदों को बेहतरीन स्थिति में बनाए रखना आवश्यक है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमें हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल अ.स. की तरह अल्लाह के घरों के सेवक बनना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपने दिलों को भी हर प्रकार की गंदगी से शुद्ध करना चाहिए ताकि अल्लाह का नूर हमारे दिलों में रौशन हो।