رضوی

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भारत के शियों को तालीम के मामले में सबसे ऊपर देखना चाहते हैं।' हमारी ख्वाहिश है कि भारत का सबसे बड़ा डॉक्टर शिया हो, आईटी में जो सबसे ऊँचा हो वह शिया हो, जो सबसे बड़ा इंजीनियर हो वह शिया हो। लेकिन यह तभी होगा जब हम उन हीरों को खोजेंगे, उन जवाहिरात को तराशेंगे, जो बच्चे गरीबी की वजह से पीछे है।

मुंबई/ खोजा शिया इस्ना अशरी जामा मस्जिद पालागली में 24 जनवरी 2025 को जुमे की नमाज हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अहमद अली आबदी की इमामत में अदा की गई।

मौलाना सय्यद अहमद अली आबदी ने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की मजलूमियत का ज़िक्र करते हुए कहा: "यह हमारे एकमात्र इमाम हैं जिनकी शहादत क़ैदख़ाने में हुई। ये हमारे एकमात्र इमाम हैं जिनकी शहादत के बाद उनके शरीर से ज़ंजीरें अलग की गईं।"

मौलाना ने आगे कहा: "कल जब हमारे इमामों पर ज़ुल्म हो रहा था तो उम्मत-ए-इस्लामिया खामोश थी, कोई आवाज़ नहीं उठा रहा था कि ज़ालिम हुक्मरानों से कहे कि उनके साथ ज़ुल्म न करें। आज भी जब शिया मुसलमानों पर ज़ुल्म हो रहा है तो दुनिया खामोश तमाशाई बन जाती है, कोई नहीं बोलता कि शिया मुसलमानों पर ज़ुल्म न हो।"

मौलाना ने इस्लाम के मोहसिन हज़रत अबू तालिब अलैहिस्सलाम की भी मजलूमियत का ज़िक्र किया, उन्होंने कहा: "जो लोग जिनके पिता-दादा और पूरा परिवार जन्नत में नहीं हैं, उन्हें जन्नत में दाखिल होने वाला बताया गया, और जिनकी नस्ल जन्नत के नौजवानों की सरदार है, उनपर कुफ्र का फतवा लगाया गया। यह भी अहले बैत अलैहिस्सलाम पर ज़ुल्म है।"

मौलाना ने आगे कहा: "आज भी जो लोग हज़रत अबू तालिब पर कुफ्र का फतवा लगा रहे हैं, उनके दिलों पर पुरानी चोटें हैं, वे अपने बेईमान और नास्तिक पुरखों को ईमानदार और जन्नती नहीं बना सकते। इसलिए वे हज़रत अबू तालिब, जिनके बेटे अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम जन्नत और जहन्नम को बाँटेंगे, जिनकी बहु जन्नत की औरतों की सरदार हैं, जिनके पोते जन्नत के नौजवानों के सरदार हैं, उनपर कुफ्र का फतवा लगा रहे हैं।"

मुम्बई के इमाम जुमा ने कहा: "नबी ए करीम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (स) के परदादा में से किसी ने भी मूर्तिपूजा नहीं की, वे सभी नबी, वली या ओसिया थे, जबकि दूसरों के बाप-दादा बड़े-बड़े पुजारी थे। खैर, किसी के कहने से कुछ नहीं होता, जब क़यामत आएगी तो ये साफ़ हो जाएगा कि कौन कहाँ जाएगा। क़यामत के दिन लोग देखेंगे कि हज़रत अबू तालिब के बेटे अमीरुल मोमिनीन जन्नत और जहन्नम को बाँटेंगे।"

मौलाना ने बेसत का ज़िक्र करते हुए कहा: "ख़ुदा ने पहली और आख़िरी उम्मत को वह नेमत नहीं दी जो हमें दी है, और वह नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफा हैं।"

मौलाना ने नमाज़ियों से कहा: "रिवायत में है कि ख़ुदा की सबसे बड़ी तजल्लि बेसत-ए-रसूल अक़राम है। ख़ुदा ने हमें सबसे महान नबी, सबसे महान किताब और सबसे महान दीन दिया है। ख़ुदा ने किसी और उम्मत को इतना महान नबी और किताब नहीं दी, जितना हमें दी है।"

जामेअतुल इमाम अमीरुल मोमेनीन (अ) के प्रिंसिपल ने कहा: "अगर कोई इंसान किसी ख़ास मकसद के लिए आए और उसी मकसद में अपनी जान दे दे, तो उसके मानने वालों का सही इज़्ज़त क्या होगी? क्या उसका चित्र फ्रेम में लगाना? उसका नाम सोने से लिखना? उसका नाम कड़ा पहनना? या उसकी तालीमात पर अमल करना? तो सब यही कहेंगे कि सही इज़्ज़त उस इंसान की तालीमात पर अमल करना है। इसी तरह हज़रत मोहम्मद मुस्तफा से सच्ची मोहब्बत यही है कि हम उनकी तालीमात पर अमल करें, उनकी इताअत और इत्तेबा करें।"

मौलाना ने कहा: "बेसत का एक अहम मकसद तालीम है, हमारे इमामबाड़े, मस्जिदें और संस्थाएँ नई तकनीक से लैस होनी चाहिए।"

मौलाना ने मरजए तकलीद आयतुल्लाह सैयद अली सीस्तानी दामा ज़िल्लहु की नसीहत का ज़िक्र करते हुए कहा: "हम जिनकी तकलीद करते हैं, उन्होंने कहा, 'हम भारत के शियों को सिर्फ़ पढ़ा-लिखा नहीं देखना चाहते, हम भारत के शियों को तालीम के मामले में सबसे ऊपर देखना चाहते हैं।' हमारी ख्वाहिश है कि भारत का सबसे बड़ा डॉक्टर शिया हो, आईटी में जो सबसे ऊँचा हो वह शिया हो, जो सबसे बड़ा इंजीनियर हो वह शिया हो। लेकिन यह तभी होगा जब हम उन हीरों को खोजेंगे, उन जवाहिरात को तराशेंगे, जो बच्चे गरीबी की वजह से पीछे हैं लेकिन उनमें तरक्की की चिंगारी है, उन्हें हवा देनी होगी।"

शुक्रवार, 24 जनवरी 2025 12:28

जंगे ख़ैबर और क़िला ए ख़ैबर

रजब महीने की चौबीस तारीख़ सन सात हिजरी मई 628 ईस्वी में रसूले ख़ुदा स.ल.व. की क़यादत में मुसलमानों और यहूदियों के बीच यह जंग हुई जिसको ख़ैबर की जंग कहते हैं जिसमें मुसलमान फ़तहयाब हुए।

रजब महीने की चौबीस तारीख़ सन सात हिजरी मई 628 ईस्वी में रसूले ख़ुदा स.ल.व. की क़यादत में मुसलमानों और यहूदियों के बीच यह जंग हुई जिसको ख़ैबर की जंग कहते हैं जिसमें मुसलमान फ़तहयाब हुए।

ख़ैबर यहूदियों का मरकज़ था जो मदीना से डेढ़ सौ से दो सौ किलोमीटर अरब के शुमाल मग़रिब (उत्तर पश्चिम) में था जहां से वह दूसरे यहूदी क़बीलों के साथ मुसलमानों के ख़िलाफ़ लगातार साज़िशें करते रहते थे चुनांचे मुसलमानों ने इस मसले को ख़त्म करने के लिए एक जंग शुरू की।

ख़ैबर का क़िला ख़ास कर उसके कई क़िले यहूदी फ़ौज की ताक़त के मरकज़ थे जो हमेशा मुसलमानों के लिए ख़तरा बने रहे और मुसलमानों के ख़िलाफ़ कई साज़िशों में शरीक रहे इन साज़िशों में खंदक की जंग और जंगे ओहद के दौरान यहूदियों की कार्रवाइयाँ शामिल है इसके अलावा ख़ैबर के यहूद ने क़बीला ए बनी नज़ीर को भी पनाह दी थी जो मुसलमानों के ख़िलाफ़ होने वाली साज़िश और जंग में शामिल थे।

  ख़ैबर के यहूदियों के तअल्लुक़ात बनी कुरैज़ा के साथ भी थे जिन्होंने जंगे ख़ंदक में मुसलमानों से वादा ख़िलाफ़ी करते हुए उन्हें सख़्त मुश्किल से दो चार कर दिया था और ख़ैबर वालों ने फ़दक के यहूदियों के अलावा नज्द के क़बीला बनी ग़तफ़ान के साथ भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ मोआहिदे (अग्रीमेंट) किए थे।

  सन 7 हिजरी (मई 628 ईस्वी) में हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही व सल्लम ने 1600 की फ़ौज के साथ जिनमें से 100 से कुछ ज़ियादा घुड़सवार थे ख़ैबर की तरफ़ जंग की नियत से रवाना हुए और 5 छोटे क़िले फ़तह करने के बाद ख़ैबर क़िले का मुहासिरा कर लिया जो दुश्मन का सबसे बड़ा और मज़बूत क़िला था। एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ था और उसका सुरक्षा का इंतज़ाम बहुत मज़बूत था।

  यहूदियों ने अपनी औरतों और बच्चों को एक क़िले में और खाने पीने के दीगर सारे सामान एक और क़िले में रख दिये और हर क़िले पर तीरंदाज़ खड़े कर दिए जो क़िले में घुसने की कोशिश करने वालों पर तीरों की बारिश कर देते थे।

  मुसलमानों ने पहले 5 क़िलों को एक-एक करके फ़तह किया जिसमें 50 मुजाहिदीन जख़्मी और एक शहीद हुआ, यहूदी रात के तारीकी में एक से दूसरे के क़िले तक अपना माल, सामान और लोगों को मुन्तक़िल करते रहे बाक़ी 2 क़िलों में, क़िला ए कमूस सबसे बुनियादी और बड़ा था और यह एक पहाड़ी पर बना हुआ था।

हुज़ूरे अकरम स.ल.व. ने बारी-बारी हज़रत अबू बकर, उमर और सअद बिन उबादा की क़यादत में फ़ौज को इस क़िले को फ़तह करने के लिए भेजा मगर यह सभी जान के ख़ौफ़ से मैदान छोड़कर भाग आएं और कामयाब ना हो सके। यह सिलसिला तक़रीबन 39 दिन चला। सहाबा जाते फिर मरहब जंगजू के ख़ौफ़ से भाग आते।

आख़िर में रसूले ख़ुदा (स.ल.व.) ने इरशाद फ़रमाया कि कल मैं अलम (इस्लामी फ़ौज का झंडा) उसे दूंगा जो अल्लाह और उसके रसूल से मोहब्बत करता है और अल्लाह और उसका रसूल उससे मोहब्बत करते हैं, वह शिकस्त खाने वाला और भागने वाला नहीं है, ख़ुदा उसके दोनों हाथों से फ़तह अता करेगा।

यह सुनकर तमाम सहाबा ख़्वाहिश करने लगे कि इस्लाम के अलम की अलमबरदारी की यह सआदत उन्हें नसीब हो। अगले दिन हुज़ूरे अकरम (स) ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को तलब किया। सहाबा इकराम ने बताया कि उन्हें आशूबे चश्म (आंखों का दर्द) है लेकिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम हुज़ूरे काएनात (स) के फ़रमान पर लब्बैक कहते हुए आये तो हुज़ूर (स) ने अपना लो आबे दहन (थूंक) उनकी आंखों में लगाया जिसके बाद पूरी ज़िंदगी उन्हें कभी आशूबे चश्म नहीं हुआ।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम क़िला ए ख़ैबर पर हमला करने के लिए पहुंचे तो यहूदियों के मशहूर पहलवान और जंगजू मरहब का भाई मुसलमानों पर हमलावर हुआ मगर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उसे क़त्ल कर दिया और उसके साथी भाग गए उसके बाद मरहब रजज़ पढ़ता हुआ मैदान में उतरा उसने ज़िरह बख़्तर और खोद (फ़ौलादी हेलमेट) पहना हुआ था उसके साथ एक ज़बरदस्त लड़ाई के दौरान हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उसके सर पर तलवार का ऐसा वार किया कि उसका खोद और सर दरमियान में से दो टुकड़े हो गया।

उसके हलाकत पर ख़ौफ़ज़दा होकर उसके साथी भागकर क़िले में पनाह लेने पर मजबूर हो गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने क़िले का मज़बूत बड़ा दरवाज़ा जिसे चंद आदमी मिलकर खोलते और बंद करते थे उसे उखाड़ लिया और उस ख़ंदक पर रख दिया जो यहूदियों ने क़िले के आस पास खोद रखी थी ताकि कोई क़िले के अंदर ना आ सके।

  इस फ़तह में 93 यहूदी मौत के घाट उतरे और क़िला फ़तह हो गया। मुसलमानों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बदौलत शानदार फ़तह नसीब हुई। हुज़ूरे अकरम (स) ने यहूदियों को उनकी ख़्वाहिश पर पहले की तरह क़िला ए ख़ैबर में रहने की इजाज़त दे दी और उनके साथ मुआहेदा (अग्रिमेंट) किया कि वह अपनी आमदनी का आधा हिस्सा बतौर जीज़िया मुसलमानों को देंगे और मुसलमान जब मुनासिब समझेंगे उन्हें ख़ैबर से निकाल देंगे।

इस जंग में बनी नज़ीर के सरदार हई बिन अख़तब की बेटी सफ़िया भी क़ैद हुई जिनको आज़ाद करके हुज़ूरे करीम (स) ने उन की फ़रमाइश पर उनसे निकाह कर लिया।

इस जंग से मुसलमानों को एक हद तक यहूदियों की घिनौनी साज़िशों से निजात मिल गई और उन्हें मआशी फ़ायदा भी हासिल हुआ।

इस जंग के बाद बनी नज़ीर की एक यहूदी औरत ने रसूले ख़ुदा (स) को भेड़ का गोश्त पेश किया जिसमें एक सरी उल सर ज़हर मिला हुआ था। पैग़म्बरे अकरम (स) ने उसे महसूस होने पर थूक दिया कि उसमें ज़हर है मगर उनके एक सहाबी जो उनके साथ खाने में शरीक थे शहीद हो गए।

एक सहाबी की रिवायत के मुताबिक़ बिस्तरे वफ़ात पर हुज़ूर (स) ने फ़रमाया कि उनकी बीमारी उस ज़हर का असर है जो ख़ैबर में दिया गया था। मुसलमानों को इस जंग से भारी तादाद में जंगी सामान और हथियार मिले जिससे मुसलमानों की ताक़त बढ़ गई। उसके 18 महीने बाद मक्का फ़तह हुआ उस जंग के बाद हज़रत जाफ़र तैयार हबशा (अफ़्रीका) से वापस आए तो हुज़ूरे अकरम (स) ने फ़रमाया कि समझ में नहीं आता कि मैं किस बात के लिए ज़ियादा ख़ुशी मनाऊं‌! फ़तह ख़ैबर के लिए या जाफ़र की वापसी पर।

हवाला: मग़ाज़ी, जिल्द 2, पेज 637 / तारीख़ इब्ने कसीर, जिल्द 3 / इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इस्लाम, अल मग़ाज़ी, वाक़दी, जिल्द 2, पेज 700 / तारीख़ इब्ने कसीर, जिल्द 3, पेज 375 / अल सीरत नबविया अज़ इब्ने हिशाम, पेज 144 ता 149 / सहीह बुख़ारी, जिल्द 2, पेज 35

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के उप महासचिव और आपातकालीन सहायता समन्वयक ने घोषणा की है कि ग़ज़्ज़ा में 17हज़ार से अधिक बच्चे अपने माता-पिता को खो चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के उप महासचिव और आपातकालीन सहायता समन्वयक ने बताया कि अनुमान के मुताबिक ग़ाज़ा में 17हज़ार से अधिक बच्चे अनाथ हो चुके हैं।

उन्होंने कहा कि कुछ बच्चे अपनी पहली सांस लेने से पहले ही अपनी मांओं के साथ इस दुनिया को अलविदा कह गए।संयुक्त राष्ट्र के इस अधिकारी ने कहा कि युद्धविराम की घोषणा के बाद से पश्चिमी किनारे वेस्ट बैंक में भी मौतों और बेघर होने की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई है।

उन्होंने आगे कहा कि पश्चिमी किनारे में इज़रायल की तरफ से विभिन्न इलाकों में सामूहिक गिरफ्तारियां लगातार जारी है उन्होंने यह भी कहा कि बमबारी और सैन्य अभियानों के कारण जनसंहार बुनियादी ढांचे की तबाही और लोगों के बेघर होने जैसी स्थितियां पैदा हुई हैं।

इज़रायली सेना ने 21 जनवरी से पश्चिमी किनारे के शहर जेनिन में आयरन वॉल नामक एक सैन्य ऑपरेशन शुरू करने की घोषणा की है जो वहां की प्रतिरोधी ताकतों के खिलाफ है यह ऑपरेशन पिछले दो वर्षों में जेनिन पर इज़रायली सेना का तीसरा बड़ा हमला है।

यह स्थिति तब उभरी है जब इज़रायल ने ग़ाज़ा में युद्धविराम के बाद पश्चिमी किनारे का रुख किया है और वहां विभिन्न इलाकों में घेराबंदी तेज कर दी है इसके साथ ही वह जनता को सजा और प्रतिशोध के रूप में कार्रवाई कर रहा है।

फिलिस्तीनी कमांडर यहिया अलसनवार की शहादत अशरफ अबू ताहा के घर में हुई अशरफ अबू ताहा इस घटना को गर्व के साथ याद करते हैं और इसे अपने और अपने परिवार के लिए सम्मान और गौरव का कारण मानते हैं।

अलजज़ीरा मुबारशिर नेटवर्क के संवाददाता ने गुरुवार को उस व्यक्ति से बात की जिसके घर में यहिया अलसनवार शहीद हुए अशरफ अबू ताहा जो इस घर के मालिक हैं उन्होंने कहा,मेरे और मेरे परिवार के लिए यह बहुत बड़े गर्व और सम्मान की बात है कि यहिया अल-सनवार हमारे घर में शहीद हुए।

उन्होंने आगे कहा,यहिया अलसनवार फ़िलिस्तीनियों के लिए यासिर अराफ़ात, अहमद यासीन, अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी, इस्माइल हनिया और अन्य शख्सियतों की तरह प्रतिरोध और क्रांति का प्रतीक हैं।

उन्होंने कहा, मैंने अपना घर एक-एक ईंट जोड़कर बनाया है, लेकिन शहीद यहिया अलसनवार का खून मेरे घर और ग़ाज़ा के सभी घरों से अधिक क़ीमती है।

उन्होंने यह भी कहा कि एक महान कमांडर जैसे अबू इब्राहिम यहिया अल-सनवार की शहादत उनके घर में होने की वजह से उन्हें लगता है कि उनका घर नष्ट नहीं हुआ है।

वह घर जो लोगों के लिए ज़ियारतगाह बन गया हैं/तिलसनवार कहां हैं?

अशरफ अबू ताहा ने गर्व से कहा,मुझे बहुत खुशी है कि यहिया अल-सनवार मेरे घर में शहीद हुए, और इंशाअल्लाह अच्छे लोग मेरी मदद करेंगे ताकि मैं इसे फिर से बना सकूं। यह स्थान अब एक तीर्थ स्थल बन चुका है जहां लोग इसे देखने और तस्वीरें लेने आते हैं।

अशरफ अबू ताहा ने बताया कि इलाके के लोगों ने इस स्थान का नाम तल अलसुल्तान की जगह "तल अल-सनवार" रख दिया है उन्होंने कहा कि विभिन्न फिलिस्तीनी समूह इस स्थान को देखने आते हैं।

हमास के राजनीतिक दफ्तर के एक महत्वपूर्ण सदस्य रूही मुश्तही की लाश मलबे से निकाली गई रूही मुश्ताही हमास के प्रमुख नेता याहया अलसनवार के करीबी साथी थे और हमास के राजनीतिक और सैन्य निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,न्यूज़ नेटवर्क के संवाददाता ने बताया कि गुरुवार को यह घोषणा की गई कि हमास के राजनीतिक दफ्तर के सदस्य रूही मुश्तही की लाश मलबे से बरामद हुई है यह खबर इजरायली सेना द्वारा उनके हत्या की पुष्टि के बाद सामने आई है।

रूही मुश्तही जो याहया अलसनवार के सबसे करीबी साथी माने जाते थे इजरायल के साथ जारी युद्ध में शहीद हो गए।

यह पहली बार है जब हमास ने इस बात की सार्वजनिक रूप से पुष्टि की है और ग़ज़ा के लोगों से अपील की है कि वे उनकी और हमास के सुरक्षा एजेंसी के कमांडर सामी आउदा की नमाज-ए-जनाजा में भाग लें जो मस्जिद जामेआ अल-उम्मरी में आयोजित की जाएगी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये दोनों लोग हमास के राजनीतिक दफ्तर के एक और सदस्य समाह अलसराज के साथ अगस्त 2024 में ग़ज़ा के उत्तरी इलाके में एक भूमिगत परिसर पर हुए हवाई हमले में शहीद हुए थे।

इजरायली सेना ने पहले ही घोषणा की थी कि रूही मुश्ताही हमास के एक प्रमुख सदस्य थे और याहया अल-सनवार के दाहिने हाथ थे और उनका हमास के सैन्य अभियानों पर प्रत्यक्ष प्रभाव था।

वह ग़ाज़ा में हमास की नागरिक प्रशासन के प्रमुख के रूप में भी कार्यरत थे और फिलिस्तीनी कैदियों के मामलों की जिम्मेदारी उनके पास थी। मुश्ताही ने याहया अल-सनवार के साथ मिलकर हमास की सुरक्षा एजेंसी की स्थापना की थी और दोनों ने इजरायली जेलों में अपनी सजा भी काटी थी।

रूही मुश्ताही को ग़ाज़ा में हमास के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता था और युद्ध के दौरान उन्होंने इस समूह के नागरिक मामलों का प्रबंधन किया था।

बांग्लादेश के हाई रैंकिंग सैन्य अधिकारी जनरल एसएम कमरुल हसन के साथ पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने शांति और क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर की एक बैठक।

बांग्लादेश के हाई रैंकिंग सैन्य अधिकारी जनरल एसएम कमरुल हसन के साथ पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने शांति और क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर की एक बैठक।

इस प्रतिनिधिमंडल की मुलाक़ात बांगलादेश के वाणिज्य मंत्री से हुई थी इस दौरे में दोनों देशों के बीच एक एएमओयू पर हस्ताक्षर हुआ है पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने बांग्लादेश से मुक्त व्यापार समझौते की अपील की है।

फेडरेशन ऑफ पाकिस्तान चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के उपाध्यक्ष साक़िब फ़याज़ मगून ने जापान के निक्केई एशिया से कहा, बांग्लादेश के वाणिज्य मंत्री ने हमसे कहा कि वह पाकिस्तान को प्राथमिकता देंगे बांग्लादेश के पास केवल टेक्स्टाइल और प्लास्टिक इंडस्ट्री है बाक़ी सारी चीज़ें बांग्लादेश आयात करता है अब बांग्लादेश ने हमारे लिए दरवाज़ा खोल दिया है जो कि पहले शेख़ हसीना के कारण बंद था।

मगून ने कहा,बांग्लादेश ने पहले ही पाकिस्तान से 50 हज़ार टन चावल और 25 हज़ार टन चीनी के आयात का ऑर्डर दे दिया है बांग्लादेश आने वाले दिनों में पाकिस्तान से आयात बढ़ाता रहेगा बांग्लादेश पाकिस्तान से खजूर के आयात के लिए भी बात कर रहा है।

अभी बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सालाना द्विपक्षीय व्यापार महज 70 करोड़ डॉलर का है मगून ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि अगले एक साल में बांग्लादेश से पाकिस्तान का द्विपक्षीय व्यापार तीन अरब डॉलर तक हो जाएगा।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ते कारोबारी संबंध से ज़्यादा सैन्य सहयोग को लेकर बात हो रही है विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग गहराया है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सऊदी अरब के युवराज ने फोन पर क्षेत्रीय स्थिरता और शांति को लेकर बातचीत की उन्होंने राजनीतिक आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा की ताकि क्षेत्र में संघर्षों को कम किया जा सके और विकास के अवसर बढ़ाए जा सकें। इसके अलावा उन्होंने वैश्विक चुनौतियों जैसे आतंकवाद, ऊर्जा सुरक्षा, और मानवीय संकटों का समाधान ढूंढने पर भी बल दिया।

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बातचीत की इस बातचीत का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच सहयोग को मजबूत करना और क्षेत्र में शांति स्थापित करने के उपायों पर चर्चा करना था।

सऊदी अरब की सरकारी समाचार एजेंसी के अनुसार, युवराज बिन सलमान ने राष्ट्रपति ट्रंप से फोन पर संपर्क किया और उनके साथ क्षेत्रीय स्थिरता और शांति को बढ़ावा देने के लिए सहयोग के संभावित रास्तों पर विचार किया। दोनों नेताओं ने खास तौर पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में आपसी सहयोग को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया।

बातचीत में यमन में चल रहे संघर्ष और इज़रायल फिलिस्तीन विवाद जैसे मुद्दे भी शामिल थे दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए आपसी सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया इसके अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए ऊर्जा उत्पादन और आपूर्ति पर भी चर्चा हुई।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की सुधारवादी नीतियों की सराहना की। उन्होंने ट्रम्प प्रशासन की नीतियों को सकारात्मक और अमेरिका की प्रगति के लिए उपयोगी बताया।

इस बातचीत में सऊदी युवराज ने सऊदी अरब और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंधों को और अधिक मजबूत करने की इच्छा जताई उन्होंने कहा कि सऊदी सरकार अमेरिका के साथ अपने निवेश को 600 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने की योजना बना रही है। इस महत्वाकांक्षी निवेश से न केवल दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूती मिलेगी बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसका प्रभाव देखा जाएगा।

यह वार्ता ट्रंप प्रशासन और सऊदी सरकार के बीच बढ़ते राजनीतिक और आर्थिक संबंधों का संकेत देती है विशेषज्ञों का मानना है कि यह बातचीत दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को नए आयाम दे सकती है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, इज़राइल यह प्रयास इसलिए कर रहा है ताकि यमन में सक्रिय अंसारुल्लाह आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम किया जा सके और ग़ज़्ज़ा में हो रहे जनसंहार और अपने युद्ध अपराधों से हटाया जा सके इज़राइल की यह रणनीति उसके क्षेत्रीय विरोधियों पर दबाव बढ़ाने और अपनी कार्रवाइयों को वैध ठहराने का हिस्सा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,इज़राइल यह प्रयास इसलिए कर रहा है ताकि यमन में सक्रिय अंसारुल्लाह आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम किया जा सके और ग़ाज़ा में हो रहे जनसंहार और अपने युद्ध अपराधों से हटाया जा सके इज़राइल की यह रणनीति उसके क्षेत्रीय विरोधियों पर दबाव बढ़ाने और अपनी कार्रवाइयों को वैध ठहराने का हिस्सा है।

अमेरिका ने यमन के प्रतिरोध आंदोलन अंसारुल्लाह को आतंकी संगठन घोषित कर एक बार फिर अपनी पक्षपातपूर्ण और दोहरी नीति का परिचय दिया है अमेरिकी सरकार ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब यमन पिछले कई वर्षों से सऊदी अरब और उसके सहयोगियों द्वारा थोपे गए विनाशकारी युद्ध का सामना कर रहा है।

इस युद्ध में न केवल लाखों यमनी नागरिक मारे गए, बल्कि देश की बुनियादी ढांचा पूरी तरह बर्बाद हो गया है भूख, बीमारी और गरीबी से जूझ रहे यमन के लोगों के लिए अंसारुल्लाह एक उम्मीद की किरण है जिसने हमेशा अपनी मातृभूमि की संप्रभुता और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया है।

अमेरिका का यह दावा कि अंसारुल्लाह की गतिविधियां नागरिकों और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं न केवल तथ्यहीन है, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। यमन के खिलाफ सऊदी अरब और उसके सहयोगियों द्वारा किए गए नृशंस हमलों में अमेरिका की प्रत्यक्ष भागीदारी और समर्थन किसी से छिपा नहीं है।

यमन पर पिछले कई वर्षों से बमबारी आर्थिक नाकेबंदी और मानवीय संकट ने इस देश को तबाह कर दिया है लेकिन अमेरिका ने इन आक्रामक कार्रवाइयों को नजरअंदाज करते हुए अंसारुल्लाह जैसे प्रतिरोधी संगठनों को निशाना बनाया है जो यमन और फ़िलिस्तीन की जनता के हक के लिए लड़ रहे हैं।

व्हाइट हाउस का यह कहना कि हूतियों की गतिविधियां क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक व्यापार को खतरा पहुंचा रही हैं, पूरी तरह से एकतरफा और राजनीति से प्रेरित है असल में यह वही अमेरिका है जो इज़रायल और सऊदी अरब जैसे आक्रमणकारी देशों का समर्थन करता है और उनकी कार्रवाइयों को वैधता प्रदान करता है।

अंसारुल्लाह ने हमेशा आक्रमणकारियों के खिलाफ मजबूती से खड़ा होकर यमन की जनता की रक्षा की है यह आंदोलन यमन की आजादी और स्वाभिमान का प्रतीक है जो बाहरी हस्तक्षेपों को खारिज करता है।

अमेरिका ने यह भी दावा किया कि अंसारुल्लाह ने इज़रायल पर 300 से अधिक मिसाइलें दागी हैं और उनके अंतरराष्ट्रीय शिपिंग पर हमलों से वैश्विक महंगाई बढ़ गई है। यह बयान अमेरिका की उस पुरानी आदत का हिस्सा है, जिसमें वह प्रतिरोधी ताकतों पर बिना सबूत के आरोप लगाकर अपने क्षेत्रीय एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है। जबकि वास्तविकता यह है कि यमन की जनता और अंसारुल्लाह अपने बचाव के लिए मजबूर हैं और उनकी सभी कार्रवाइयां आत्मरक्षा के तहत हैं।

अंसारुल्लाह को आतंकी ठहराने का निर्णय, सऊदी अरब और इज़रायल जैसे देशों के दबाव का नतीजा है जो अपने क्षेत्रीय वर्चस्व को बनाए रखने के लिए यमन के प्रतिरोध को खत्म करना चाहते हैं। यह फैसला केवल यमनी जनता की मुश्किलों को बढ़ाएगा और इस क्षेत्र में पहले से मौजूद तनाव को और गहरा करेगा।

लेबनान की संसद के सदस्य मलहम अलहजीरी के नेतृत्व में अलनस्र अमल आंदोलन के एक प्रतिनिधिमंडल ने हिज़्बुल्लाह लेबनान के महासचिव सैयद हसन नसरल्लाह की शहादत स्थली का दौरा किया हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार , अलनस्र अमल आंदोलन के इस प्रतिनिधिमंडल ने बेरूत के क्षेत्र हारा हरेक में स्थित सैयद हसन नसरल्लाह की शहादत स्थली का दौरा किया। वहाँ उन्होंने फूल अर्पित किए और इस शहीद की आत्मा, प्रतिरोध के शहीदों और उम्मत-ए-इस्लामिया के शहीदों के लिए फातेहा पढ़ी।

मलहम अल-हजजीरी ने अपने भाषण में प्रतिरोध के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और राष्ट्रीय उद्देश्यों जैसे स्वतंत्रता, सम्मान और राष्ट्रीय मुक्ति तक इस रास्ते पर डटे रहने की बात दोहराई।

उन्होंने कहा,यह पवित्र स्थान आपको सम्मान और गौरव का अनुभव कराता है, जिसमें उनके बिछड़ने के दुख के साथ-साथ गर्व, गरिमा और महिमा की भावनाएं भी शामिल हैं।

लेबनान के संसदीय सदस्य ने आगे कहा,यहाँ महान शहीद और उम्मत के सैयद-ए-शोहदा, सैयद हसन नसरल्लाह ने शहादत प्राप्त की। यह वह स्थान है जो दुनिया के स्वतंत्र व्यक्तियों, सम्मानित इंसानों, मुजाहिदीन और प्रतिरोध के सेनानियों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गया है, ताकि हमारे भीतर दृढ़ संकल्प शक्ति और स्थिरता की भावना जाग सके।

अंत में उन्होंने कहा,आज जब ग़ाज़ा हत्यारों, अपराधियों और कब्ज़ा करने वालों पर विजयी हुआ है, हम यहाँ यह वचन देने आए हैं कि हम अपने महान शहीद सैयद हसन नसरल्लाह के मार्ग और सिद्धांतों पर अडिग रहेंगे हम राष्ट्रीय एकता को बनाए रखेंगे और अपने राष्ट्रीय सिद्धांतों और मुख्य मुद्दे फ़िलिस्तीन के प्रति वफादार रहेंगे हम प्रतिरोध की सुरक्षा करेंगे।

सीरिया की सत्ता पर अमेरिका तुर्की और इस्राईल की सहायता से क़ब्ज़ा जमाने वाले आतंकी समूह HTS और सीरियन जनता के बीच झड़पें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। सीरिया के विभिन्न प्रांतों में आम नागरिकों और तकफ़ीरी आतंकवादियों के बीच झड़पें चल रही हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तकफ़ीरी आतंकवादी समूह तहरीर अल-शाम ने शुरू में शांति और व्यवस्था स्थापित करने के सार्वजनिक नारे लगाए, लेकिन गुज़रते समय के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि उनकी नियतें जनता और अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ बिल्कुल भी नहीं बदली।

ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, तहरीरुश-शाम के आतंकवादियों ने पश्चिमी सीरिया, विशेष रूप से होम्स प्रांत के उन क्षेत्रों में जहां शिया आबादी रहती है, बड़े पैमाने पर आतंकी अभियान शुरू किए हैं। तकफ़ीरी कार्रवाइयों के बाद लोगों ने प्रतिरोध करना शुरू कर दिया है और विभिन्न क्षेत्रों में झड़पें हुई हैं।

सीरिया की भौगोलिक सीमाओं की रक्षा करने के बजाय, आतंकवादी समूह निर्दोष सीरियाई लोगों पर अत्याचार कर रहा है। अवैध राष्ट्र इस्राईल ने बार-बार सीरिया के विभिन्न क्षेत्रों पर हमला किया है तथा गोलान हाइट्स के पास सीरियाई भूमि पर कब्जा कर लिया है। अल-जोलानी और उसके समूह ने अब तक ज़ायोनी आक्रमण पर पूरी तरह चुप्पी बनाए रखी है।