رضوی
ईरान और शिया समुदाय ही नहीं इस्लामी जगत के लिए महत्वपूर्ण थे रईसी
हेलीकॉप्टर हादसे में शहीद होने वाले ईरान के राष्ट्रपति सय्यद इब्राहीम रईसी और उनके साथियों की याद में मुंबई की ईरानी मस्जिद में शोक समारोह आयोजित किया गया।
राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी और उनके साथियों की शहादत की याद में 'इसना अशरी यूथ फाउंडेशन' की तरफ से ईरानी मस्जिद में नमाज़े-मग़रिब के बाद शोक सभा आयोजित हुई। ताज़ियाती प्रोग्राम की शुरुआत क़ारी मिर्ज़ा हसन की तिलावत-ए-क़ुरआन-ए-मजीद से हुई। मौलाना मोहम्मद फय्याज़ बाक़री ने पहली तक़रीर की और आयतुल्लाह रईसी की शख्सियत पर रौशनी डाली कि वह न सिर्फ़ शिया मुसलमानों के लिए बल्कि पूरी मुस्लिम उम्मत के लिए अहम थे।
पूरी दुनिया आयतुल्लाह रईसी और उनके साथियों के लिए शोक मना रही है। शहीद होने वाले लोगों में दो दो मुजतहिद शामिल थे जिन्होंने इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के जन्मदिवस के मुबारक दिन शहादत पाई
सय्यद इब्राहीम रईसी बातिल ताक़तो को नष्ट करने में क्रांति के नेता के एक विश्वसनीय साथी थेः शिया उलमा असंबली हिंदुस्तान
भारत की शिया उलेमा असेंबली के प्रसारण और प्रकाशन विभाग के प्रभारी मौलाना सय्यद जवाद हैदर रिज़वी ने ईरानी राष्ट्रपति डॉ. रईसी और उनके सहयोगियों की आकस्मिक मृत्यु पर गहरा दुख और अफसोस व्यक्त करते हुए शिया विद्वानो और इस्लामी क्रांति के नेता के प्रति संवेदना व्यक्त की।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के शिया उलेमा असेंबली के प्रसारण विभाग के प्रभारी मौलाना जवाद हैदर रिज़वी ने ईरानी राष्ट्रपति डॉ. रईसी और उनके सहयोगियों की आकस्मिक मृत्यु पर गहरा दुख और अफसोस व्यक्त करते हुए शिया विद्वानो और इस्लामी क्रांति के नेता के प्रति शोक व्यक्त किया है।
शोक संदेश का पाठ इस प्रकार है:
बिस्मेही ता'आला
इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन
मिनल मोमेनीना रेजालुन सद्दक़ू मा आहदुल्लाहा अलैहे फ़मिन हुम मन क़ज़ा नहबहू व मिनहुम मय यंतज़िर। (अहजाब, 23)
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान से आ रही हेलीकॉप्टर दुर्घटना की खबर ने कल से कई दिलों को चिंतित कर दिया था, लेकिन आज, मर्द मुजाहिद, सैय्यद महरूमान, खादिम इमाम रज़ा (अ), इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के राष्ट्रपति, आयतुल्लाह सैय्यद इब्राहिम रईसी, विदेश मंत्री डॉ. हुसैन अमीर अब्दुल्लाहीयान, तबरेज़ के इमाम जुमा आयतुल्लाह सैय्यद मुहम्मद अली अल-हाशिम और अन्य साथी यात्रियों की शहादत ने विश्वासियों के दिलों को दुख और शोक से भर दिया।
शहीद इब्राहीम रईसी ने अपने 63 वर्षीय जीवन का अधिकांश समय इस्लाम की सेवा और विभिन्न पदों पर क्रांति में बिताया, जैसे ईरान के इस्लामी गणराज्य के राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश और इमाम रज़ा (अ) के हरम के संरक्षक के रूप मे अन्य पदों के साथ, एक महान क्रांतिकारी कार्रवाई की गई।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहिम रईसी, इस्लामी क्रांति के नेता हज़रत आयतुल्लाह अली खामेनेई के भरोसेमंद साथी और कठिन समय में इस्लामी दुनिया और शिया दुनिया की आशा थे।
इन महान न्यायविदों और मुजाहिदों की शहादत पर, मुस्लिम उम्माह, शिया विद्वान, इस्लामी क्रांति के नेता, विशेष रूप से इमाम ज़मान (अ) की सेवा मे संवेदना व्यक्त करते हुए इमाम रज़ा (अ) के जन्म की बधाई देते हैं।
अयातुल्ला रायसी और उनके साथियों का अंतिम शवयात्रा
अयातुल्ला सैयद इब्राहिम रायसी और उनके साथियों के अंतिम शवयात्रा में बड़ी संख्या में तबरीज़ के लोग शामिल हुए। इस मौके पर इमोशनल नजारे भी देखने को मिले.
हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के तबरीज़ शहर में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में शहीद हुए ईरान के राष्ट्रपति अयातुल्ला सैयद इब्राहिम रायसी और उनके सहयोगियों के लिए एक अंतिम शवयात्रा निकाला गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. लोगों ने भाग लिया.
शहीद राष्ट्रपति और उनके साथियों की अंतिम शवयात्रा के मौके पर भावुक दृश्य भी देखने को मिला. जनाज़े के जुलूस में शामिल मातमी लोग अपने हाथों में इमाम हुसैन (अ.स.) का झंडा और इस्लामी गणतंत्र ईरान का झंडा लिये हुए थे। शहीद राष्ट्रपति की अंतिम यात्रा में शामिल लोग राष्ट्रपति के रास्ते पर चलने की कसम खा रहे थे और अंतिम यात्रा पर फूल फेंककर अपने प्रिय राष्ट्रपति को अलविदा कह रहे थे.
शहीद सद्र के जनाज़े में तबरेज़ शहर और आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में लोगों के साथ उच्च राजनीतिक और सैन्य अधिकारी भी मौजूद थे। जनाजे में शामिल हुए तबरीज़ के संसद सदस्य ने कहा कि शहीद राष्ट्रपति के जनाजे में हम जो भीड़ देख रहे हैं, वह शहीद राष्ट्रपति की सार्वजनिक लोकप्रियता को दर्शाता है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, तबरीज़ के बाद शवयात्रा राजधानी तेहरान, धार्मिक शहर क़ोम और पवित्र शहर मशहद में किया जाएगा ताकि इन शहरों के लोग अपने प्रिय राष्ट्रपति को अलविदा कह सकें। मशहद में शहीद राष्ट्रपति के अंतिम संस्कार के बाद, उनके शरीर को हज़रत इमाम रज़ा के पवित्र रोजा में दफनाया जाएगा।
शहीद रईसी के शोक में डूबा ईरान, 5 दिन का राष्ट्रीय शोक
ईरान के राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर क्रैश में शहीद होने के बाद ईरान समेत दुनिया भर में शोक की लहर है। ईरान के लोकप्रिय राष्ट्रपति और विदेश मंत्री समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों, राजनेताओं और गणमान्य लोगों की मौत के बाद देश भर में शोक का माहौल है।
घटना के वक्त हेलीकॉप्टर में रईसी के साथ ईरान के विदेश मंत्री सहित कुछ बड़े नेता मौजूद थे। ईरान ने 20 मई को राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी और विदेश मंत्री सहित हेलीकॉप्टर में मौजूद रहे लोगों के मौत हुई है। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी की मौत पर ईरान ने 5 दिनों तक के लिए राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया है।
भारत, राष्ट्रपति भवन पर राष्ट्रीय ध्वज झुका, देश में एक दिन का शोक
ईरान के राष्ट्रपति सय्यद इब्राहीम रईसी, विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान और अन्य उच्च पदस्थ अधिकारियों की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में दुखद मौत के बाद भारत ने एक दिवसीय राष्ट्रीय शोक की घोषणा की। दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहा। नई दिल्ली में ईरानी दूतावास ने भी अपना झंडा आधा झुका दिया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से बताया गया कि ईरान के राष्ट्रपति के सम्मान में आज (21 मई) पूरे भारत में उन सभी इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा, जहां इसे नियमित रूप से फहराया जाता है और राजकीय शोक की अवधि के दौरान मनोरंजन वाला कोई आधिकारिक कार्यक्रम नहीं होगा। गृह मंत्रालय के अनुसार शहीद ईरानी राष्ट्रपति रईसी के सम्मान में मंगलवार को पूरे देश में एक दिन का राजकीय शोक मनाया जाएगा।
ईरान में राष्ट्रपति चुनाव का ऐलान, जुलाई में मिलेगा नया नेता
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत के बाद अब इस देश में 28 जून को नए राष्ट्रपति के लिए चुनाव होगा।
राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी का हेलीकॉप्टर 19 मई को ईरान के उत्तर पश्चिम प्रांत ईस्ट अजरबैजान के पहाड़ी इलाके में लापता हो गया था। 20 मई की सुबह उसका मलबा बरामद हुआ। इस हादसे में राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी और विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियान समेत उनकी टीम के अन्य सात सदस्यों की मौत की पुष्टि हुई।
ईरान के संविधान का आर्टिकल 131 कहता है कि अगर पद पर रहते हुए, किसी ईरानी राष्ट्रपति की मौत होती है, तो सबसे पहले शासन चलाने के लिए उपराष्ट्रपति को कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में पद संभालना पड़ता है। उपराष्ट्रपति के पास सिर्फ 50 दिन तक ही सत्ता संभालने का अधिकार रहता है। इसी 50 दिन के भीतर ईरान के लिए नए राष्ट्रपति का इलेक्शन कराना होता है।
राष्ट्रपति पद का नामांकन 30 मई से 3 जून तक किया जाएगा। इसके बाद कैंडिडेट्स 12 से 27 जून तक चुनाव प्रचार कर सकते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के लिए 28 जून को मतदान होगा। संवैधानिक परिषद ने प्रारंभिक रूप से कार्यक्रम पर सहमति जता दी है।
इब्राहीम रईसी और अब्दुल्लाहियान हुए साज़िश का शिकार या हेलीकॉप्टर क्रैश था हादसा ?
एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में शहीद हुए इस्लामी लोकतंत्र ईरान के लोकप्रिय राष्ट्रपति सय्यद इब्राहीम रईसी की लोकप्रियता का अंदाज़ा यह था कि उन्हें अभी से इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर के संभावित उम्मीदवारों में गिना जाता था।
रईसी अजरबैजान सीमा के पास पहाड़ी इलाके में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए। हेलीकॉप्टर में विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान, छह अन्य यात्री व चालक दल भी सवार थे। हादसे में सभी की मौत हो गई।
रईसी का हेलिकॉप्टर क्रैश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ी पहेली बन चुका है। सवाल उठ रहे हैं कि रईसी की हत्या की गई या हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार हुआ? हेलिकॉप्टर क्रैश के बाद कई ऐसे सुराग मिले हैं जो साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इसके पीछे दुनिया के कई देशों की खुफिया एजेंसियां हो सकती हैं।
आजरबैजानी सीमा में मोसाद के कई सीक्रेट ठिकाने हैं। खास बात यह है कि रईसी का हेलिकॉप्टर 40 से ज्यादा साल पुराना था। मोसाद इसके सिस्टम को आसानी से हैक कर सकता है और आशंका है कि मोसाद ने हेलिकॉप्टर पर इलेक्ट्रॉनिक हमला किया हो।
माना जा रहा है कि यह हमला हेलिकॉप्टर के नेविगेशन और कम्युनिकेशन सिस्टम पर किया गया होगा। मोसाद ने इलेक्ट्रॉनिक हमला करके हेलिकॉप्टर का सैटेलाइट कनेक्शन काट दिया होगा। इस हमले से हेलिकॉप्टर का कम्युनिकेशन सिस्टम ठप हो गया। इसके बाद हेलिकॉप्टर तय रूट से भटककर बहुत दूर चला गया होगा। कंप्यूटर सिस्टम ठप होने से पायलट को ऊंचाई का अंदाजा नहीं लगा होगा और पहाड़ी से टकराकर क्रैश की आशंका जताई जा रही है।
मलबा मिलने के बाद सामने आए वीडियो साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं, इसका एक प्रमाण यह भी है कि हेलिकॉप्टर के टुकड़े काफी छोटे हैं और मलबा बड़े इलाके में फैला है इसलिए आशंका जताई जा रही है कि हेलिकॉप्टर में पहले ब्लास्ट हुआ और विस्फोट से छोटे छोटे टुकड़े होने के बाद वो पहाड़ी पर गिरा।
हेलीकॉप्टर क्रैश से पहले पायलट ने कोई आपातकालीन संदेश नहीं दिया, क्या हेलिकॉप्टर में अचानक धमाका हुआ? अजरबैजान से तीन हेलिकॉप्टर एक साथ उड़े, लेकिन राष्ट्रपति का हेलिकॉप्टर ही खराब मौसम का शिकार क्यों हुआ? अंतिम समय पर विदेश मंत्री अब्दुल्लाहियान को रईसी के हेलिकॉप्टर में क्यों बैठाया गया, क्या दोनों रईसी और अब्दुल्लाहियन साजिश का प्राइम टारगेट थे? क्या यह तय हो चुका था कि बेल 212 को क्रैश किया जाएगा?
ग़ज़्ज़ा जनसंहार के बीच ज़ायोनी शासन के साथ ईरान के खराब रिश्ते और अप्रैल के महीने में मक़बूज़ा फिलिस्तीन पर ईरान के हमलों के बाद यह तय था कि इस्राईल का टारगेट ईरान का पूरा सिस्टम है। ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के लक्ष्य पूर्ति में ईरान सबसे बड़ा बाधक है और अमेरिका की अरब नीति में भी सबसे बड़ी अड़चन तेहरान ही है। इसीलिए आशंका जताई जा रही है कि रईसी के हेलिकॉप्टर को साजिश के तहत गिराया गया है।
अर्दोग़ान ने भरोसा दिलाया, तुर्की संकट के इस समय ईरान के साथ
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तय्यब अर्दोग़ान ने ईरान के कार्यकारी राष्ट्रपति से फोन पर बात करते हुए कहा कि तुर्की की जनता और सरकार संकट के इस समय में ईरान के साथ है।
रजब तय्यब अर्दोग़ान ने ईरान के कार्यकारी राष्ट्रपति डॉ मोहम्मद मुखबिर से बात करते हुए कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर से बात करने के बाद मुझे ज़रूरी लगा कि आपसे भी बात करूँ और डॉ रईसी, हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान और उनके साथियों की मौत की ताज़ियत पेश करते हुए कहूं कि तुर्की सरकार और पूरा राष्ट्र संकट की इस घड़ी में ईरान के साथ है।
अर्दोग़ान ने कहा कि राष्ट्रपति रईसी और हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किए और मैं उनकी अमिट यादें अपने दिमाग में रखूंगा।
ईरान के कार्यकारी राष्ट्रपति डॉ मोहम्मद मुखबिर ने तुर्की का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की आंतरिक स्थिरता स्पष्ट कर देती है कि हम सुरक्षा और सफलता के साथ मौजूदा स्थिति को पीछे छोड़ देंगे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज़माने के राजनीतिक हालात का वर्णन
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत वाला जीवन बीस साल का था जिसको हम तीन भागों में बांट सकते हैं।
- पहले दस साल हारून के ज़माने में
- दूसरे पाँच साल अमीन की ख़िलाफ़त के ज़माने में
- आपकी इमामत के अन्तिम पाँच साल मामून की ख़िलाफ़त के साथ थे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का कुछ जीवन हारून रशीद की ख़िलाफ़त के साथ था, इसी ज़माने में अपकी पिता इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत हुई, इस ज़माने में हारून शहीद को बहुत अधिक भड़काया गया ताकि इमाम रज़ा को वह क़त्ल कर दे और अन्त में उसने आपको क़त्ल करने का मन बना लिया, लेकिन वह अपने जीवन में यह कार्य नहीं कर सका, हारून शरीद के निधन के बाद उसका बेटा अमीन ख़लीफ़ा हुआ, लेकिन चूँकि हारून की अभी अभी मौत हुई थी और अमीन स्वंय सदैव शराब और शबाब में लगा रहता था इसलिए हुकुमत अस्थिर हो गई थी और इसीलिए वह और सरकारी अमला इमाम पर अधिक ध्यान नहीं दे सका, इसी कारण हम यह कह सकते हैं कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के जीवन का यह दौर काफ़ी हद तक शांतिपूर्ण था।
लेकिन अन्तः मामून ने अपने भाई अमीन की हत्या कर दी और स्वंय ख़लीफ़ा बन बैठा और उसने विद्रोहियों का दमन करके इस्लामी देशों के कोने कोने में अपना अदेश चला दिया, उसने इराक़ की हुकूमत को अपने एक गवर्नर के हवाले की और स्वंय मर्व में आकर रहने लगा, और राजनीति में दक्ष फ़ज़्ल बिन सहल को अपना वज़ीर और सलाहकार बनाया।
लेकिन अलवी शिया उसकी हुकूमत के लिए एक बहुत बड़ा ख़तरा थे क्योंकि वह अहलेबैत के परिवार वालों को ख़िलाफ़त का वास्तविक हक़दार मसझते थे और, सालों यातना, हत्या पीड़ा सहने के बाद अब हुकूमत की कमज़ोरी के कारण इस स्थिति में थे कि वह हुकूमत के विरुद्ध उठ खड़े हों और अब्बासी हुकूमत का तख़्ता पलट दें और यह इसमें काफ़ी हद तक कामियाब भी रहे थे, और इसकी सबसे बड़ी दलील यह है कि जिस भी स्थान से अलवी विद्रोह करते थे वहां की जनता उनका साथ देती थी और वह भी हुकूमत के विरुद्ध उठ खड़ी होती थी। और यह दिखा रहा था कि उस समय की जनता हुकूमत के अत्याचारों से कितनी त्रस्त थी।
और चूँकि मामून ने इस ख़तरे को भांप लिया था इसलिए उसने अलवियों के इस ख़तरे से निपटने के लिए और हुकूमत को कमज़ोर करने वालों कारणों से निपटने के लिये कदम उठाने का संकल्प लिया उसने सोच लिया था कि अपनी हुकूमत को शक्तिशाली करेगा और इसीलिये उसने अवी वज़ीर फ़ज़्ल से सलाह ली और फ़ैसला किया कि अब धोखे बाज़ी से काम लेगा, उसने तै किया कि ख़िलाफ़ को इमाम रज़ा को देने का आहवान करेगा और ख़ुद ख़िलाफ़त से अलग हो जाएगा।
उसको पता था कि ख़िलाफ़ इमाम रज़ा के दिये जाने का आहवान का दो में से कोई एक नतीजा अवश्य निकलेगा, या इमाम ख़िलाफ़त स्वीकार कर लेंगे, या स्वीकार नहीं करेंगे, और दोनों सूरतों में उसकी और अब्बासियों की ख़िलाफ़त की जीत होगी।
क्योंकि अगर इमाम ने स्वीकार कर लिया तो मामून की शर्त के अनुसार वह इमाम का वलीअह्द या उत्तराधिकारी होता, और यह उसकी ख़िलाफ़त की वैधता की निशानी होता और इमाम के बाद उसकी ख़िलाफ़त को सभी को स्वीकार करना होता। और यह स्पष्ट है कि जब वह इमाम का उत्तराधिकारी हो जाता तो वह इमाम को रास्ते से हटा देता और शरई एवं क़ानूनी तौर पर हुकूमत फिर उसको मिल जाती, और इस सूरत में अलवी और शिया लोग उसकी हुकूमत को शरई एवं क़ानूनी समझते और उसको इमाम के ख़लीफ़ा के तौर पर स्वीकार कर लेते, और दूसरी तरफ़ चूँकि लोग यह देखते कि यह हुकूमत इमाम की तरफ़ से वैध है इसलिये जो भी इसके विरुद्ध उठता उसकी वैधता समाप्त हो जाती।
उसने सोंच लिया था (और उसको पता था कि इमाम को उसकी चालों के बारे में पता होगा) कि अगर इमाम ने ख़िलाफ़त के स्वीकार नहीं किया तो वह इमाम को अपना उत्तराधिकारी बनने पर विवश कर देगा, और इस सूरत में भी यह कार्य शियों की नज़रों में उसकी हुकूमत के लिए औचित्य बन जाएगा, और फ़िर अब्बासियों द्वारा ख़िलाफ़त को छीनने के बहाने से होने वाले एतेराज़ और विद्रोह समाप्त हो जाएगे, और फिर किसी विद्रोही का लोग साथ नहीं देंगे।
और दूसरी तरफ़ उत्तराधिकारी बनाने के बाद वह इमाम को अपनी नज़रों के सामने रख सकता था और इमाम या उनके शियों की तरफ़ से होने वाले किसी भी विद्रोह का दमन कर सकता था, और उसने यह भी सोंच रखा थी कि जब इमाम ख़िलाफ़त को लेने से इन्कार कर देंगे तो शिया और उसने दूसरे अनुयायी उनके इस कार्य की निंदा करेंगे और इस प्रकार दोस्तों और शियों के बीच उनका सम्मान कम हो जाएगा।
मामून ने सारे कार्य किये ताकि अपनी हुकूमत को वैध दर्शा सके और लोगों के विद्रोहों का दमन कर सके, और लोगों के बीच इमाम और इमामत के स्थान को नीचा कर सके लेकिन कहते हैं न कि अगर इन्सान सूरज की तरफ़ थूकने का प्रयत्न करता है तो वह स्वंय उसके मुंह पर ही गिरता है और यही मामून के साथ हुआ, इमाम ने विवशता में उत्तराधिकारी बनना स्वीकार तो कर लिया लेकिन यह कह दिया कि मैं हुकूमत के किसी कार्य में दख़ल नहीं दूँगा, और इस प्रकार लोगों को बता दिया कि मैं उत्तराधिकारी मजबूरी में बना हूँ वरना अगर मैं सच्चा उत्तराधिकारी होता तो हुकूमत के कार्यों में हस्तक्षेप भी अवश्य करता। और इस प्रकार मामून की सारी चालें धरी की धरी रह गईं
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का ज्ञान
मामून जो कि इमाम की तरफ़ लोगो की बढ़ती हुई मोहब्बत और लोगों के बीच आपके सम्मान को देख रहा था और आपके इस सम्मान को कम करने और लोगों के प्रेम में ख़लल डालने के लिए उसने बहुत से कार्य किये और उन्हीं कार्यों में से एक इमाम रज़ा और विभिन्न विषयों के ज्ञानियों के बीच मुनाज़ेरा और इल्मी बहसों की बैठकों का जायोजन है, ताकि यह लोग इमाम से बहस करें और अगर वह किसी भी प्रकार से इमाम को अपनी बातों से हरा दें तो यह मामून की बहुत बड़ी जीत होगी और इस प्रकार लोगों के बीच आपकी बढ़ती हुई लोकप्रियता को कम किया जा सकता था, इस लेख में हम आपके सामने इन्हीं बैठकों में से एक के बारे में बयान करेंगे और इमाम रज़ा (अ) के उच्च कोटि के ज्ञान को आपके सामने प्रस्तुत करेंगे।
मामून ने एक मुनाज़रे के लिए अपने वज़ीर फ़ज़्ल बिन सहल को आदेश दिया कि संसार के कोने कोने से कलाम और हिकमत के विद्वानों को एकत्र किया जाए ताकि वह इमाम से बहस करें।
फ़ज़्ल ने यहूदियों के सबसे बड़े विद्वान उसक़ुफ़ आज़मे नसारी, सबईयों ज़रतुश्तियों के विद्वान और दूसरे मुतकल्लिमों को निमंत्रण भेजा, मामून ने इस सबको अपने दरबार में बुलाया और उनसे कहाः “मैं चाहता हूँ कि आप लोग मेरे चचा ज़ाद (मामून पैग़म्बरे इस्लाम के चचा अब्बास की नस्ल से था जिस कारण वह इमाम रज़ा (अ) को अपना चचाज़ाद कहता था) से जो मदीने आया है बहस करो।“
दूसरे दिन बैठक आयोजित की गई और एक व्यक्ति को इमाम रज़ा (अ) को बुलाने के लिये भेजा, आपने उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और उस व्यक्ति से कहाः “क्या जानना चाहते को कि मामून अपने इस कार्य पर कब लज्जित होगा“? उसने कहाः हाँ। इमाम ने फ़रमायाः “जब मैं तौरैत के मानने वालों को तौरैत से इंजील के मानने वालों को इंजील से ज़बूर के मानने वालों को ज़बूर से साबईयों को उनकी भाषा में ज़रतुश्तियों को फ़ारसी भाषा में और रूमियों को उनकी भाषा में उत्तर दूँगा, और जब वह देखेगा कि मैं हर एक की बात को ग़लत साबित करूंगा और सब मेरी बात मान लेंगे उस समय मामून को समझ में आएगा कि वह जो कार्य करना चाहता है वह उसके बस की बात नहीं है और वह लज्जित होगा”।
फिर आप मामून की बैठक में पहुँचे, मामून ने आपका सबसे परिचय कराया और फिर कहने लगाः “मैं चाहता हूँ कि आप लोग इनसे इल्मी बहस करें”, आपने भी उस तमाम लोगों को उनकी ही किताबों से उत्तर दिया, फिर आपने फ़रमायाः “अगर तुम में से कोई इस्लाम का विरोधी है तो वह बिना झिझक प्रश्न कर सकता है”। इमरान साबी जो कि एक मुतकल्लिम था उसने इमाम से बहुत से प्रश्न किये और आपने उसे हर प्रश्न का उत्तर दिया और उसको लाजवाब कर दिया, उसने जब इमाम से अपने प्रश्नों का उत्तर सुना तो वह कलमा पढ़ने लगा और इस्लाम स्वीकार कर लिया, और इस प्रकार इमाम की जीत के साथ बैठक समाप्त हुई।
रजा इब्ने ज़हाक जो मामून की तरफ़ से इमाम को मदीने से मर्व की तरफ़ जाने के लिये नियुक्त था कहता हैः “इमाम किसी भी शहर में प्रवेश नहीं करते थे मगर यह कि लोग हर तरफ़ से आपकी तरफ़ दौड़ते थे और अपने दीनी मसअलों को इमाम से पूछते थे, आप भी लोगों को उत्तर देते थे, और पैग़म्बर की बहुत सी हदीसों को बयान फ़रमाते थे”। वह कहता है कि जब मैं इस यात्रा से वापस आया और मामून के पास पहुंचा तो उसने इस यात्रा में इमाम के व्यवहार के बारे में प्रश्न किया मैंने जो कुछ देखा था उसको बता दिया। तो मामून कहता हैः “हां हे ज़हाक के बेटे, आप (इमाम रज़ा) ज़मीन पर बसने वाले लोगों में सबसे बेहतरीन, सबसे ज्ञानी और इबादत करने वाले हैं”।













