
رضوی
ऑस्ट्रेलिया में इस्लामोफोबिया में तेज़ी से वृद्धि
ऑस्ट्रेलिया में 7 अक्टूबर 2023 को फ़िलिस्तीनी संगठन हमास के इज़राइल पर सीमा पार हमलों के बाद से इस्लामोफोबिया की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2023 से नवंबर 2024 तक इस्लामोफोबिया के 600 से अधिक व्यक्तिगत और ऑनलाइन मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें लगभग 75% पीड़ित महिलाएं और लड़कियां हैं, जबकि अधिकतर हमलावर गैर-मुस्लिम पुरुष होते हैं। ऑनलाइन घटनाओं में 250% और व्यक्तिगत हमलों में 150% की वृद्धि हुई है। हमले खास तौर पर हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक राजनीतिक परिस्थितियां इस स्थिति को बढ़ावा देती हैं, लेकिन राजनीतिक बयानबाज़ी और स्थानीय कारण भी महत्वपूर्ण हैं। प्रभावित महिलाओं को रोज़मर्रा की जिंदगी में इस्लामोफोबिया का सामना करना पड़ रहा है, जो अब एक गंभीर समस्या बन चुकी है।
यह रिपोर्ट मोनाश और डीकिन विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गई है, जिन्होंने लाखों सोशल मीडिया पोस्ट और शिकायतों का विश्लेषण किया है। परिणामस्वरूप, इस्लामोफोबिया न केवल व्यक्तिगत हमलों के रूप में बल्कि ऑनलाइन नफरत और अपमान के रूप में भी बहुत बढ़ गया है, खासकर महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है।
संक्षेप में, ऑस्ट्रेलिया में फिलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष के बाद इस्लामोफोबिया में भारी वृद्धि हुई है, विशेषकर मुस्लिम महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं, और यह समस्या अब सरकार और समाज दोनों से समाधान की मांग करती है।
ईरान ने 12 दिवसीय युद्ध में अमेरिका की रक्षा क्षमता को क्या नुक़सान पहुँचाया?
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार 12-दिवसीय युद्ध में ईरान के मिसाइल हमलों का मुक़ाबला करने के लिए अमेरिकी सैनिकों ने 100 से अधिक THAAD मिसाइलें दागीं, जो इस उन्नत वायु रक्षा प्रणाली के स्टॉक का एक बड़ा हिस्सा था।
अमेरिका के पास वर्तमान समय में सात THAAD सिस्टम हैं जिनमें से दो इस युद्ध में इज़राइल का समर्थन करने के लिए तैनात किए गए थे।
अमेरिकी रक्षा विभाग के 2026 के बजट अनुमानों के मुताबिक़ अमेरिका ने पिछले साल केवल 11 नई THAAD मिसाइलें खरीदी थीं और इस वित्तीय वर्ष में केवल 12 अतिरिक्त मिसाइलें प्राप्त करने की उम्मीद है।
अमेरिकी मिसाइल रक्षा एजेंसी के 2025 के बजट रिपोर्ट के अनुसार ये मिसाइलें लॉकहीड मार्टिन द्वारा निर्मित हैं और प्रत्येक की कीमत लगभग 12.7 मिलियन डॉलर है।
एक अमेरिकी सेना के एक अनाम सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने कहा: "इस युद्ध में इज़राइल में तैनात अमेरिकी सैनिकों द्वारा THAAD मिसाइलों के कुल स्टॉक का लगभग 25% उपयोग किया गया।"
सांप्रदायिकता जायोनियों का पश्चिम एशिया में एक ज़हरीला प्रोजेक्ट है
एक मोरक्कन विश्लेषक ने चेतावनी दी है कि जायोनी शासन, जातीय और धार्मिक विभाजनों का फायदा उठाकर पश्चिम एशिया में 'सांप्रदायिकता की महामारी' को हवा दे रहा है।
मोरक्को के प्रमुख राजनीतिक चेहरों में से एक, हसन औरीद (Hassan Aourid) ने "इजराइल और पश्चिम एशिया में महामारी का पर्दाफ़ाश" शीर्षक वाले अपने लेख में जायोनी शासन की भूमिका का विश्लेषण किया है, जो क्षेत्र में जातीय और धार्मिक मतभेदों को बढ़ावा दे रहा है। सीरिया के सुवैदा क्षेत्र में दुरूज़ कम्युनिटी के समर्थन के बहाने इजराइल के हमले का जिक्र करते हुए, उनका मानना है कि सीरिया की क्षेत्रीय अखंडता के लिए एक गंभीर और अपरिहार्य ख़तरा पैदा हो गया है, जिससे देश कमज़ोर हो रहा है।
औरीद ने चेतावनी दी कि यह ख़तरा सिर्फ़ सीरिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रक्रिया मोरक्को सहित क्षेत्र के अन्य देशों में भी फैल सकती है।
उनका मानना है कि सुवैदा में हाल की घटनाएं और सीरिया में जायोनी शासन की सीधी दखलंदाजी कोई संयोग नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र को फिर से डिजाइन करने का एक प्रयोग है, - कुछ-कुछ नए साइक्स-पिकॉट जैसा, लेकिन पुरानी औपनिवेशिक विभाजनों से कहीं अधिक गहरा और जटिल, जिसका उद्देश्य पहले से विभाजित ग्रुप्स को और बांटना तथा टुकड़ों में बंटे देशों को और विखंडित करना है।
वह इन घटनाओं को सिर्फ़ सांप्रदायिक विस्फोट नहीं, बल्कि एक खतरनाक सिंड्रोम मानते हैं, जो क्षेत्र की राजनीतिक भूगोल को धार्मिक और जातीय सीमाओं के आधार पर फिर से लिखना चाहता है, एक ऐसी घटना जो अरब जगत के पश्चिमी हिस्से को भी अपनी चपेट में ले सकती है।
औरीद ने अपने लेख में ज़ोर देकर कहा कि पश्चिम एशिया में जातीय आधार पर राज्य बनाने का विचार जायोनी शासन की रणनीतिक सोच में लंबे समय से मौजूद है, और अब यह सिद्धांत से आगे बढ़कर आधिकारिक नीति बन चुका है।
इस राजनीतिक विशेषज्ञ का कहना है कि जायोनी शासन की इस रणनीति में नया पहलू यह है कि अब यह महज़ शोध या थिंक टैंक के विश्लेषणों तक सीमित नहीं है। सीरिया में सैन्य उकसावे, गोलान क्षेत्र पर क़ब्ज़ा, दमिश्क के आसपास बमबारी, लेबनान पर दबाव और जॉर्डन के ख़िलाफ़ लगातार धमकियों जैसे कदमों के ज़रिए इज़राइल सीधे तौर पर सांप्रदायिकता के प्रोजेक्ट में शामिल हो गया है।
औरीद लिखते हैं: सांप्रदायिकता की इस महामारी को बढ़ावा देने वाला कारण बाहरी ताकतों द्वारा मतभेदों का फायदा उठाना और सांप्रदायिक समूहों को हथियारबंद करना है। लेकिन यह महामारी उस समाज में पनपती है, जिसमें पहचान की सुरक्षा का अभाव होता है।
यज़ीद की सभा में इमाम सज्जाद (अ) के ख़ुत्बे पर लोगों की प्रतिक्रिया
एक दस्तावेज़ी और विश्लेषणात्मक संग्रह में, हम विश्वसनीय ऐतिहासिक,और व्याख्यात्मक कथनों के ज़रिये मोहर्रम और इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन तक पहुँचेंगे ताकि असल स्रोतों से आशूरा के सच को उजागर किया जा सके।
इमाम सज्जाद (अ) ने शम (सीरिया) में यज़ीद के दरबार में एक महत्वपूर्ण खुतबा दिया था, जो क़र्बला के बाद क़ैदीयो के शम में होने के दिनों के अंत में पेश किया गया माना जाता है। इस खुतबे से पहले यज़ीद ने अपने आदेश से ख़तीब को मिम्बर से ऐसा भाषण देने को कहा था जिसमें उसने बनी उमय्या की तारीफ़ की और इमाम अली (अ) और उनके वंश के खिलाफ निन्दा की थी। इस पर इमाम सज्जाद ने तत्काल खड़े होकर उस ख़तीब की आलोचना की और अपने पैतृक वंश के फ़ज़ाइलों का वर्णन किया। उन्होंने छह विशेषताओं और सात फज़ीलतों का जिक्र करते हुए अपने और अपने वंश के धार्मिक और नैतिक गुणों का वर्णन किया और यज़ीद और उसके दरबारी योजना का पर्दाफाश किया।
इस खुतबे के बाद यज़ीद ने कर्बला के क़ैदीयो को शम में रखने को उचित नहीं समझा और उनके मदीना जाने का रास्ता तैयार किया। इस खुतबे ने सभा में भारी असर डाला, जिसमें लोगों के दिलों में जागरूकता, रोने और विरोध की आवाज़ें उठीं।
सबा में उपस्थित लोगों की प्रतिक्रिया
जब इमाम साज़िद (अ.स) ने ख़ुतबा दिया, तो मस्जिद में मौजूद लोग बहुत प्रभावित हुए। रियाद उल-कुद्स में लिखा है कि यज़ीद बिना नमाज़ पढ़े मस्जिद से बाहर चला गया, जिससे सभा में चलबढ़ हो गई और इमाम सज्जाद (अ) मिंबर से नीचे उतर आए। लोग इमाम के चारों ओर इकट्ठे हो गए और अपने व्यवहार के लिए सबने माफी मांगी।
कुछ शोधकर्ताओं के मुताबिक़, इमाम सज्जाद (अ) के ख़ुतबे के बाद विरोध शुरू हो गया; चिल्लाहट, रोना और सिसकियाँ सभा में फैल गईं और कई लोग खलीफ़ा ए मुस्लिमीन की इक़्तेदा किए बिना सभा छोड़ गए।
ख़ुतबे के बाद, वहाँ मौजूद एक यहूदी विद्वान ने यज़ीद पर गुस्सा जाहिर किया और कहा कि जिसने अपने पैग़म्बर की बेटी के बेटे को इस तरह शहीद किया, वह ज़ायम (खलीफ़ा) कैसे हो सकता है। उसने सभा में मौजूद लोगों को डाँटा कि "कसम से अगर हमारे पैग़म्बर मूसा बिन इमरान के यहाँ अगली पीढ़ी होती, तो हम उसे पूरी इज़्ज़त देते, शायद उसकी इबादत तक करते। आप लोग, जिनका पैगम्बर कल दुनिया से गया, आज उसके बेटे पर तलवार चलाते हैं? यह तुम्हारे लिए शर्मनाक है!"
स्रोतः
इरशाद शेख मुफ़ीद
नफ़्स अल महमूम मुहद्दिस क़ुमी
वीकी फ़िक़्ह
मनाक़िब इब्ने शहर आशोब
नहजुल बलाग़ा में इमाम अली (अ) और दिलों को वश में करने की कलाएँ
इमाम अली (अ) की नहजुल बलाग़ा की हिकमत संख्या 50, इंसानों के दिलों को जंगली और रेगिस्तानी जानवरों जैसा बताती है, और उन्हें सुधारने और उनके प्रति प्रेम और स्नेह पैदा करने को उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की कुंजी मानती है।
अमीरुल-मोमेनीन इमाम अली (अ) नहजुल बलाग़ा में "दिलों को अपनी ओर आकर्षित करने की विधि" की व्याख्या करते हुए कहते हैं:
हिकमत संख्या 50:
«قُلُوبُ الرِّجَالِ وَحْشِیَّةٌ، فَمَنْ تَأَلَّفَهَا أَقْبَلَتْ عَلَیْه क़ोलूबुर रेजाले वहशीयुन, फ़मन तअल्लफ़हा अक़लबत अलैहे»
“इंसानों के दिल जंगली और रेगिस्तानी जानवरों जैसे होते हैं, और जो कोई उन्हें विकसित करता है, वे उसकी ओर आकर्षित होते हैं।”
नहजुल बलाग़ा में इमाम अली (अ) और दिल जीतने की कला
इस ज्ञानपूर्ण वाक्य में, इमाम (अ) दोस्त बनाने और अपने प्रति दिल जीतने का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हैं।
एक व्यक्ति अनजान लोगों की उपस्थिति में खुद को अलग-थलग महसूस करता है, लेकिन जब कोई उसके साथ प्यार से पेश आता है, तो वह उनसे परिचित हो जाता है।
नहजुल बलाग़ा के कुछ टीकाकारों के अनुसार, यह बात नए शहर या मोहल्ले में रहने आने वाले लोगों में स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है। वे शुरू में तो अपने करीबी पड़ोसियों से भी परहेज़ करते हैं, लेकिन जब वे उनका अभिवादन करते हैं, उनसे मिलते हैं और उन्हें उपहार देते हैं, तो उनके बीच दोस्ती स्थापित हो जाती है।
यह विचार कि चूँकि मनुष्य स्वभाव से सामाजिक होते हैं, इसलिए वे हर अजनबी से तुरंत प्यार करने लगते हैं, गलत है। मानवता के निर्माण के लिए कुछ परिस्थितियाँ ज़रूरी होती हैं, जैसे दुश्मनी के लिए भी परिस्थितियाँ ज़रूरी होती हैं। इमाम (अ) ने इसी तथ्य की ओर इशारा किया है जिसका उल्लेख अन्य रिवायतों में भी मिलता है, जैसे कि प्रसिद्ध कहावत: "मनुष्य दया का दास है।"
एक अरब कवि ने कहा है:
जब तुम मुझसे दूर हो जाओगे, तो मैं भी तुमसे दूर हो जाऊँगा, लेकिन जब तुम प्रेम के द्वार से आओगे, तो मैं तुमसे मित्रता करूँगा।
कुछ टीकाकारों का कहना है कि यहाँ "पुरुष" शब्द का प्रयोग केवल बड़े और शक्तिशाली लोगों के लिए करना उचित नहीं है, क्योंकि इस वाक्यांश का स्पष्ट अर्थ सामान्य लोगों से है।
अल्लाह के रसूल (स) की एक रिवायत भी इसकी गवाही देती है: तीन बातें एक व्यक्ति के अपने मुसलमान भाई के प्रति प्रेम का वर्णन करती हैं। जब वह उससे मिलता है, तो वह उसे शुभ समाचार देता है, और जब वह उसके साथ बैठता है, तो वह सभा में उसके लिए जगह बनाता है, और उसे उसके प्रिय नाम से पुकारता है।
"तीन बातें हैं जो एक ईमान वाले भाई के प्रेम को शुद्ध करती हैं: उससे प्रसन्न मुख से मिलना, उसे सभा में स्थान देना, और उसे उसके प्रिय नाम से पुकारना।" (काफ़ी, खंड 2, पृष्ठ 643, अध्याय 3)
इस वाक्य को ज़मख़्शरी (रबी अल-अबरार) और तरतुशी (सिराज अल-मुलुक) ने भी उद्धृत किया है, और संभवतः उन्होंने इसे सैय्यद रज़ी के नहजुल-बलाग़ा से उद्धृत नहीं किया है। कुछ पुस्तकों में, इस वाक्य को एक उपदेश का हिस्सा बताया गया है जिसमें इमाम (अ.स.) ने धर्म और दुनिया के तौर-तरीकों की व्याख्या की थी। कहो।
स्रोत: पुस्तक "पयाम ए इमाम अमीरूल मोमेनीन (अ)" (आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी), नहजुल-बलाग़ा की व्याख्या।
गाज़ा हमले में एक इज़राईल सैनिक मारा गया, 6 घायल
इज़राईल मीडिया ने स्वीकार किया है कि गोलानी ब्रिगेड के एक सैनिक की मौत के बाद युद्ध की शुरुआत से अब तक इजरायली सेना के 896 कर्मी मारे जा चुके हैं।
इज़रायली मीडिया ने घोषणा की है कि गाज़ा में जारी युद्ध के दौरान जायोनी सेना के मृतकों की संख्या 896 हो गई है।
ताज़ा घटना में इजरायली गोलानी ब्रिगेड का एक सैनिक मारा गया जबकि कम से कम छह अन्य सैनिक घायल हुए।
हिब्रू भाषा के न्यूज़ पोर्टल "हदशोत बज़मान" ने बताया कि गाज़ा में एक इजरायली बख्तरबंद वाहन के रास्ते में लगे बम के विस्फोट से एक जायोनी सैनिक मारा गया जबकि दो अन्य घायल हुए।
इससे पहले भी जायोनी मीडिया ने गाजा में सेना के खिलाफ असामान्य और कठोर कार्रवाइयों को स्वीकार किया था, जो वास्तव में फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों के ऑपरेशनों की सफलता का स्पष्ट प्रमाण है।
क्रांति के नेता का बयान इमाम खुमैनी (र) के स्कूल की सर्वोत्तम व्याख्या
आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराज़ी ने "खुमैनी उदाहरण" प्रशिक्षण शिविर के अवसर पर अपने संदेश में, पवित्र कुरान की रोशनी में शिक्षा के सिद्धांतों की ओर इशारा किया और इस्लामी क्रांति के नेता, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई के बयानों को इमाम खुमैनी (र) के स्कूल की सर्वोत्तम व्याख्या बताया।
आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराज़ी ने "खुमैनी उदाहरण" प्रशिक्षण शिविर के अवसर पर अपने संदेश में, पवित्र कुरान की रोशनी में शिक्षा के सिद्धांतों की ओर इशारा किया और इस्लामी क्रांति के नेता, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई के बयानों को इमाम खुमैनी (र) के स्कूल की सर्वोत्तम व्याख्या बताया
संदेश का पूरा पाठ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम
सबसे पहले, हम हाल ही में थोपे गए युद्ध के शहीदों, सेनापतियों, बुद्धिजीवियों, सेनानियों और अपने उत्पीड़ित देशवासियों की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और ईरान और इस्लामी क्रांति के शत्रुओं के विनाश और अपमान के लिए अल्लाह तआला से दुआ करते हैं।
पवित्र क़ुरआन के शिक्षाप्रद सिद्धांतों में से एक यह है कि यह विश्वासियों के लिए एक आदर्श और उदाहरण प्रस्तुत करता है ताकि वे अपनी बौद्धिक शैली और व्यावहारिक आचरण पर विचार करके सुख और मोक्ष के मार्ग पर चल सकें। यह आदर्श और उदाहरण केवल अम्बिया (अ) तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अल्लाह के औलिया और सच्चे सेवक भी शामिल हैं, जैसा कि पवित्र क़ुरआन कहता है:
"निश्चय ही इब्राहीम और उनके साथियों में तुम्हारे लिए एक उत्तम उदाहरण है।"
निःसंदेह, हमारे समय का एक प्रमुख और उज्ज्वल उदाहरण क्रांति के महान नेता, इमाम खुमैनी हैं, जो अपनी बौद्धिक नींव, वैचारिक प्रणाली और व्यावहारिक जीवन में हमारे लिए एक उज्ज्वल उदाहरण रहे हैं।
यह ज़रूरी है कि इमाम खुमैनी के न्यायशास्त्र संबंधी विचारों, उनकी सामाजिक समझ, कुरान और सुन्नत की उनकी समझ, उनकी ईमानदारी और उनके सामूहिक संघर्ष को स्पष्ट रूप से समझाया जाए, खासकर युवा मदरसा छात्रों को, ताकि उनका मार्ग न तो भुलाया जाए और न ही किसी विकृति या विचलन का शिकार हो।
इस्लामी क्रांति के नेता, हज़रत आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई, जो दिवंगत इमाम के एक विशिष्ट शिष्य थे, के कथनों को खुमैनी के मत की सर्वोत्तम व्याख्या माना जाता है।
यह प्रशिक्षण शिविर और इसके जैसे अन्य कार्यक्रम ऐसे बहुमूल्य अवसर हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है, इसलिए इनकी सराहना की जानी चाहिए।
अंत में, मैं इस प्रशिक्षण शिविर के सभी आयोजकों और प्रतिभागियों को धन्यवाद देना चाहता हूँ, उनकी सफलता के लिए दुआ करता हूँ, और अल्लाह तआला से मरहूम इमाम (र) के पद को ऊँचा करने की दुआ करता हूँ।
क़ुम - नासिर मकारिम शिराज़ी
ईरानी टीम ने विश्व युवा चैंपियनशिप और विश्व कप में शानदार प्रदर्शन किया
ईरानी सवात टीम ने विश्व युवा चैंपियनशिप और सवात विश्व कप में 2 स्वर्ण, 1 रजत और 6 कांस्य पदक जीतकर शानदार सफलता हासिल की।
विश्व युवा चैंपियनशिप 15-17 वर्ष आयु वर्ग में ईरान की उपलब्धियां:
सज्जाद बलोची 65 किग्रा से कम - स्वर्ण पदक
सज्जाद दारिनी 60 किग्रा से कम - कांस्य पदक
महदी दारिनी 80 किग्रा से कम - कांस्य पदक
असल अलीजानी लड़कियों का 48 किग्रा से कम - कांस्य पदक
सवात विश्व कप वरिष्ठ वर्ग में ईरान की उपलब्धियां:
मोहम्मद शहाब शहाबीनेजाद 48 किग्रा से कम - स्वर्ण पदक
अमीरमोहम्मद पूरअश्रफ 33 किग्रा से कम - रजत पदक
अमीरमोहम्मद रसूली अस्ल 37 किग्रा से कम रेजा तालेबी 42 किग्रा से कम और शीमा रहीमियान महिला 65 किग्रा से कम - कांस्य पदक
इस प्रदर्शन ने ईरानी सवाते खिलाड़ियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़ती क्षमता को प्रदर्शित किया है।
ईरानी युवा सांडा खिलाड़ियों की एशियाई चैंपियनशिप में जीत का सिलसिला जारी
4 से 8 अगस्त तक चीन के जियांगयिन में आयोजित एशियाई युवा वुशू चैंपियनशिप के 12वें संस्करण में ईरानी खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन जारी रखा। रविवार के सत्र में पांच ईरानी सांडा खिलाड़ियों ने प्रतिस्पर्धा की, जिनमें से चार ने जीत दर्ज की:
45 किग्रा: एहसान गोहरी ने तुर्कमनिस्तान के अब्दुल्ला मोहम्मदोव को लगातार दो राउंड में हराकर अगले दौर में प्रवेश किया।
56 किग्रा: रज़ा खानकशी के प्रतिद्वंद्वी मकाऊ के चाई लेक मेंग ने मैच नहीं खेला, जिससे उन्हें बिना खेले जीत मिली।
60 किग्रा: अमीरहुसैन मोहम्मदी ने अफ़ग़ानिस्तान के इरफ़ान ग़फूरी को डिस्क्वालीफाई कर अगले दौर में जगह बनाई।
65 किग्रा: अली रेज़ाई ने फिलीपींस के जॉनी एलन फिल्टेंस को दो राउंड में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर हराया और आगे बढ़े।
ईरानी टीम ने इस प्रतियोगिता में अपनी तकनीकी श्रेष्ठता और मुकाबले के ज़ज्बे को साबित किया है। अगले दौर की तैयारियों को लेकर टीम के कोच ने संतोष जताया है।
ईरानी उपग्रह "नाहीद 2" के प्रक्षेपण को लेकर दुनिया भर के मीडिया में व्यापक प्रतिक्रिया
रूसी सोयुज रॉकेट द्वारा ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" का प्रक्षेपण अंतरराष्ट्रीय मीडिया में व्यापक रूप से चर्चित हुआ है।
ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" को शुक्रवार 25 जुलाई 2025 को रूसी प्रक्षेपण यान सोयुज के ज़रिए वोस्तोचन्य कॉस्मोड्रोम से अंतरिक्ष में भेजा गया।
"यूरोन्यूज़" ने ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" के प्रक्षेपण को सफ़ल बताते हुए इसे ईरान और रूस के बीच मजबूत संबंधों का प्रतीक कहा है।
पाकिस्तानी समाचार पत्र "डॉन न्यूज़" ने इसे ईरान-रूस के बीच बढ़ते अंतरिक्ष सहयोग का सबूत बताया।
एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" एक संचार उपग्रह है जिसकी परिचालन आयु दो साल है। अलजज़ीरा टीवी चैनल ने भी इस उपग्रह को ईरानी इंजीनियरों की नवीनतम उपलब्धि बताया है।
एक भारतीय चैनल ने इस मिशन को रूसी बहु-उपग्रह कार्यक्रम का हिस्सा बताया जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक, अनुसंधान और वाणिज्यिक उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने पश्चिमी देशों के नकारात्मक दृष्टिकोण की जानकारी देते हुए बताया: "पश्चिमी देशों का दावा है कि ईरान का अंतरिक्ष प्रयास मिसाइल कार्यक्रम के विकास के उद्देश्य से किया जा रहा है, जबकि तेहरान इस बात पर जोर देता है कि यह कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण और वैज्ञानिक है!"
चीनी मीडिया "शंघाई आई" ने बताया कि जिस आधार से ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" लॉन्च किया गया था वह रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के नियंत्रण में है और ग़ैर-सैन्य प्रक्षेपणों के लिए उपयोग किया जाता है - एक ऐसा मुद्दा जिसने पश्चिमी चिंताओं को बढ़ाया है।
वाशिंगटन पोस्ट और इंडिपेंडेंट ने भी ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" के प्रक्षेपण को ईरान और रूस के मजबूत संबंधों का संकेत बताया।
अमेरिकी न्यूजवीक ने इन संबंधों को रणनीतिक सहयोग को गहरा करने और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के लिए चिंता का कारण बताया, जिसका कारण पश्चिमी प्रतिबंधों की अप्रभावीता को ठहराया। यह प्रक्षेपण पश्चिमी दबाव के बीच रूस-ईरान तकनीकी संबंधों की गहराई को दर्शाता है और ईरान की उपग्रह प्रौद्योगिकी में निरंतर प्रगति को उजागर करता है। इस उपलब्धि से ईरान ने न केवल अपनी क्षमताओं को बढ़ाया है बल्कि एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश भी दिया है।
इजराइली टाइम्स ने रूस-ईरान रणनीतिक सहयोग समझौते का हवाला देते हुए रूसी अंतरिक्ष केंद्र से ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" के सफल प्रक्षेपण पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की और याद दिलाया कि रूस ने ईरान पर इज़राइल और अमेरिकी हमलों की कड़ी निंदा की है।
इस्लाम दिलों को जोड़ने वाला धर्म है।ताहिरूल कादरी
मिन्हाजुल कुरआन पाकिस्तान के प्रमुख डॉ. ताहिरूल कादरी ने ग्लासगो, स्कॉटलैंड में उम्मत की एकता और सद्भाव सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा कि अगर विचार और दृष्टि में विस्तार हो तो हम एक जैसे न होते हुए भी एक हो सकते हैं। सभी मसलक अगर ज्ञान और शोध के आधार पर एक-दूसरे से स्वस्थ संवाद करते रहें, तो समाज में केवल भलाई ही फैलेगी इस्लाम दिलों को जोड़ने वाला दिव्य धर्म है।
मिन्हाजुल कुरआन के संस्थापक डॉ. मुहम्मद ताहिरूल कादरी ने ग्लासगो के जामिया अल फुरकान में बैन अलमसालिक सद्भाव और उम्मत की एकता सम्मेलन में कहा कि तकफ़ीर और तौहीन (अपमान) से उम्मत कमज़ोर हो रही है।
अगर हमारी सोच विस्तृत हो, तो हम एक जैसे न होते हुए भी एक हो सकते हैं इस सम्मेलन में सभी मकतब-ए-फिक्र के प्रमुख विद्वानों, धर्मशास्त्रियों, इमामों और शिक्षकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
यह स्कॉटलैंड में अपनी तरह का पहला और सबसे बड़ा सम्मेलन था जामिया अल फुरकान पहुंचने पर यूके इस्लामिक मिशन के प्रमुख सैयद तुफैल शाह और डॉ. जावेद नदवी ने अन्य विद्वानों के साथ डॉ. ताहिरूल कादरी का स्वागत किया।
डॉ. ताहिरूल कादरी ने अपने भाषण में कहा,अगर सभी मसलक ज्ञान और शोध के आधार पर एक-दूसरे से स्वस्थ संवाद करें, तो समाज में केवल अच्छाई ही फैलेगी।
इस्लाम दिलों को जोड़ने वाला दिव्य धर्म है। अगर धर्म की शिक्षा, प्रचार और प्रसार से दिल जुड़ने की बजाय टूट रहे हैं, सुलह की जगह टकराव बढ़ रहा है, तो हमें तुरंत अपने नफ्स पर नियंत्रण करना चाहिए।
जिस तरह शरीर के सभी अंग मिलकर एक स्वस्थ शरीर बनाते हैं, उसी तरह उम्मत के विभिन्न मसलक इस्लाम के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाते हैं कुछ मसलक दिल की तरह आध्यात्मिकता और प्रेम पर ज़ोर देते हैं, तो कुछ दिमाग की तरह ज्ञान और तर्क को महत्व देते हैं।
कुछ आँखों की तरह शरियत के बाहरी नियमों का पालन करते हैं, तो कुछ हाथों की तरह सेवा और समाज सुधार को धर्म की रूह मानते हैं।
अगर कोई मसलक खुद को ही सही मानकर दूसरों की तकफ़ीर करने लगे, तो इस्लाम को नुकसान होगा और उम्मत कमज़ोर होगी। एकता का मतलब एकरूपता नहीं, बल्कि विविधता में एकता ढूंढना है।इस प्रकार, उन्होंने मुस्लिम समुदाय के भीतर सहिष्णुता, संवाद और एकता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।