
رضوی
इमामे ज़माना (अ) की ग़ैबत में हमारी जिम्मेदारियां।
ग़ैबते कुबरा के ज़माने में उम्मत का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की पहचान हासिल करना है और यह इतना महत्वपूर्ण है कि पैग़म्बर स. ने फ़रमायाः
من مات ولم یعرف امام زمانہ مات میتة جاہلیة
जो इंसान इस हालत में मरे कि उसे अपने ज़माने के इमाम की पहचान न हो वह जाहेलियत (कुफ़्र) की मौत मरता है।
असलिए उम्मत की ज़िम्मेदारी है कि इमाम अलैहिस्सलाम की सही पहचान के लिए संघर्ष करे ख़ास कर उन दुआओं को ज़्यादा पढ़ा जाए जो इस काम में मददगार साबित हों जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रामाया है
اللھم عرفنی نفسک فانک ان لم تعرفنی نفسک لم اعرف نبیک اللھم عرفنی نبیک فانک ان لم تعرفنی نبیک لم اعرف حجتک اللھم عرفنی حجتک فانک ان لم تعرفنی حجتک ضللت عن دینی۔
हे मेरे अल्लाहः मुझे अपनी सही पहचान प्रदान कर क्योंकि अगर तू मुझे अपनी ही सही पहचान प्रदान न करे तो मैं तेरे नबी की पहचान हासिल नहीं कर सकता हूं। हे मेरे अल्लाह मुझे अपने नबी की पहचान प्रदान कर क्योंकि यदि तू मुझे अपने नबी की सही पहचान प्रदान न करे तो मैं तेरी हुज्जत (इमाम) को नहीं पहचान सकता। हे मेर अल्लाह मुझे अपनी हुज्जत की सही पहचान करा दे क्योंकि यदि मुझे अपनी हुज्जत की पहचान नहीं करे तो अपने दीन से भटक जाऊँगा।
عن الی عبداللہ علیہ السلام فی قول اللہ عزوجل من یوت الحکمہ فقد اوتی خیرا کثیرا فقال طاعة اللہ و معرفة الامام
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस आयत के संबंध में जिसको हिकमत दी गई उसे बहुत ज्यादा ख़ैर (नेकी) दिया गया इस हिकमत से मुराद अल्लाह की पैरवी और इमाम की सही पहचान है। (उसूले काफी)
इताअत और पैरवी
कुरान और हदीस के अनुसार इमाम अलैहिस्सलाम की इताअत को बिना किसी क़ैद व शर्त के वाजिब किया गया है लेकिन ग़ैबते कुबरा के जमाने में यह जिम्मेदारी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
عن الی جعفر علیہ السلام فی قول اللہ عزوجل واٰتمنا ھم ملکا عظیما قال الطاعة المفروضة۔
इस आयत और हमने उनको मुल्के अजीम दिया के संबंध में इमाम मोहम्मद बाकर अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि इससे मुराद हमारी वह पैरवी है जो लोगों पर वाजिब की गई है।
ज़ुहूर की दुआ
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर में जल्दी की बहुत ज्यादा दुआएं मांगे क्योंकि खुद इमाम ज़माना ने फरमाया हैः
اکثر و الدعاءبتعجیل الفرج فان ذلک فرجکم
मेरे ज़ुहूर में जल्दी के लिए बहुत ज्यादा दुआ करो क्योंकि तुम्हारे मुश्किलों का हल इसी में है इसके अलावा दुआ ए फर्ज पढ़ने की भी बहुत ज़्यादै ताकीद की गई है जो अक्सर दुआओं की किताबों में दर्ज है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِیمِ
اِلهى عَظُمَ الْبَلاَّءُ وَبَرِحَ الْخَفاَّءُ وَانْكَشَفَ الْغِطاَّءُ وَانْقَطَعَ الرَّجاَّءُ
وَضاقَتِ الاْرْضُ وَمُنِعَتِ السَّماَّءُ واَنْتَ الْمُسْتَعانُ وَاِلَيْكَ
الْمُشْتَكى وَعَلَيْكَ الْمُعَوَّلُ فِى الشِّدَّةِ وَالرَّخاَّءِ اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى
مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ اُولِى الاْمْرِ الَّذينَ فَرَضْتَ عَلَيْنا طاعَتَهُمْ
وَعَرَّفْتَنا بِذلِكَ مَنْزِلَتَهُمْ فَفَرِّجْ عَنا بِحَقِّهِمْ فَرَجاً عاجِلا قَريباً كَلَمْحِ
الْبَصَرِ اَوْ هُوَ اَقْرَبُ يا مُحَمَّدُ يا عَلِىُّ يا عَلِىُّ يا مُحَمَّدُ اِكْفِيانى
فَاِنَّكُما كافِيانِ وَانْصُرانى فَاِنَّكُما ناصِرانِ يا مَوْلانا يا صاحِبَ
الزَّمانِ الْغَوْثَ الْغَوْثَ الْغَوْثَ اَدْرِكْنى اَدْرِكْنى اَدْرِكْنى السّاعَةَ
السّاعَةَ السّاعَةَ الْعَجَلَ الْعَجَلَ الْعَجَلَ يا اَرْحَمَ الرّاحِمينَ بِحَقِّ
مُحَمَّدٍ وَآلِهِ الطّاهِرينَ
इंतेज़ार
इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़हूर का इंतजार सबसे अच्छी इबादत है इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि हमारा क़ाएम महदी है उनके गायब होने के दौरान उनका इंतजार करना वाजिब है और उसका सवाब इमाम ने यूं बयान किया है कि जो इंसान हमारे महदी का इंतेज़ार करेगा वह उस इंसान की तरह है जो अल्लाह की राह में अपने खून में लथपथ होता है बस यह इंतजार इस तरह होना चाहिए कि किसी भी पल लापरवाही ना हो इमाम सादिक़ अ.स फरमाते हैं
وانتظرو الفرج صباحاً و مساء
तुम लोग सुबह व शाम ज़हूर का इंतजार करो।
ज़ियारत की तमन्ना
अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के शियों की इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की ग़ैबत में एक बड़ी जिम्मेदारी आप की जियारत की तमन्ना और उसके शौक का इज़हार करना भी है। हर वक्त दिल में उनके दीदार की तड़प रहनी चाहिए अपने आका से बात करने के लिए हर जुमे की सुबह दुआए नुदबा पढ़े जिस में बार-बार यह आया है कि हम तेरे बंदे तेरे उस बली की जियारत के मुश्ताक़ हैं कि जो तेरे व तेरे रसूल की याद ताजा करता है।
इमाम ज़माना की सलामती के लिए दुआ
एक सच्चे मोमिन और शिया की जिम्मेदारी यह है कि वह अपनी दुआओं में अपने मार्गदर्शक और आका की सलामती का इच्छुक रहे खास तौर से इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती के लिए बहुत ज्यादा दुआ मांगे। और लगातार यह दुआ पढ़े
اللھم کن لولیک الحجة ابن الحسن علیہ السلام صلواتک علیہ و علی آبائہ فی ھذة الساعة و فی کل ساعة ولیا و حافظا و قائدا و ناصرا و دلیلا و عینا حتی تسکنہ ارضک طوعا و تمتعہ فیھا طویلا۔
इमाम ज़माना की सलामती के लिए सदका देना
एक और पसंदीदा काम जिसकी हमारे इमामों ने बहुत ज्यादा ताकीद की है वह यह है कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती की नियत से सदक़ा दिया जाए सदक़ा अपने आप में एक पसंदीदा काम है और इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती के नियत से उसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अल्लाह के नजदीक इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के लिए माल खर्च करने से ज्यादा पसंदीदा कोई और काम नहीं है जो मोमिन अपने माल से एक दिरहम इमाम अलैहिसलाम के लिए खर्च करेगा अल्लाह ताला जन्नत में ओहद के पहाड़ के बराबर उसे उसका बदला देगा। (उसूले काफी)
इमाम अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारियों की पैरवी
ग़ैबत के जमाने में कोई इंसान इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का खास उत्तराधिकारी नहीं है बल्कि फ़ुक़हा ही हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के आम प्रतिनिधि हैं इसलिए उनकी पैरवी वाजिब है जिसे फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र) में तक़लीद कहा जाता है खुद इमामे ज़माना फरमाते हैं हमारी ग़ैबत में पेश आने वाले हालात और समस्याओं के सिलसिले में हमारी हदीसों को बयान करने वाले उलमा से संपर्क करो इसलिए कि वह हमारी तरफ से तुम पर हुज्जत हैं और हम अल्लाह की तरफ से उन पर हुज्जत हैं।
इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम लेने की मनाही
इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम हमारे आख़री नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम के नाम पर है लेकिन हदीसों में हज़रत का नाम पुकारने से मना किया गया है बल्कि आपकी जो उपाधियां हैं उनमें से किसी उपाधि द्वारा आपको पुकारे जैसे हुज्जत, महदी-ए-मुंतज़र आर इमाम ग़ाएब या कोई दूसरी उपाध्यि।
सम्मान में खड़े होना
जब इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम लिया जाए और आपको क़ाएम के उपाधि से पुकारा जाए तो सम्मान के लिए खड़े होना मासूम इमामों की सुन्नत है क्योंकि जब देबिल ख़ुज़ाई ने आठवें इमाम अलैहिस्सलाम की सेवा में अपना कसीदा पेश किया था तो जैसे ही आखरी इमाम अलैहिस्सलाम का नाम आया तो इमाम सम्मान में खड़े हो गए थे।
इमाम महदी अज्जलल्लाहो तआला फ़रजहुश्शरीफ़
इमाम महदी (अ.त.फ़.श.) को केवल शिया ही नहीं, बल्कि सुन्नी भी मानते हैं। यहां तक कि गैर-मुस्लिम भी मानते हैं कि अंतिम दिनों में, जब दुनिया उत्पीड़न और अन्याय से भर जाएगी, वह वही होगा जो मानवता को बचाएगा।
मानवता के रक्षक, संभावना के ध्रुव, पृथ्वी और समय के स्वामी, इमाम महदी (अ) हमारे बारहवें और आखिरी इमाम है। उनके पिता इमाम हसन अस्करी (अ) है और उनकी माता नरजिस खातून है।
अल्लाह के रसूल (स) के अंतिम उत्तराधिकारी का नाम पवित्र पैगंबर के नाम के समान है और उनका उपनाम भी पैगंबर के उपनाम के समान है, यानी अबुल कासिम, और इमाम ज़माना के एक उपनाम, अबा सालेह का भी उल्लेख किया गया है। किताबों में उनकी 180 से अधिक उपाधियों का वर्णन किया गया है, जिनमे महदी, खातम, मुंतज़र, हुज्जत, साहिब अल-अम्र, साहिब अल-ज़मान, क़ायम और खलफ सालेह आदि शामिल है।
ग़ैबते सुग़रा मे प्रेमी तथा शिया लोग "नाहिया ए मुक़द्देसा" की उपाधि से याद करते है
इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर और आंदोलन को न केवल शिया बल्कि सुन्नी भी इमाम महदी के ज़ोहूर और आंदोलन में विश्वास करते है।
जैसा कि तौरात मे अशयाई नबी के अध्याय 11 में उल्लेख किया गया है, "वह गरीबों का न्याय करेगा और उत्पीड़ितों के पक्ष में न्याय करेगा।" भेड़िये और भेड़-बकरियाँ इकट्ठे बसे रहेंगे, और चीता बछड़े समेत बैठा रहेगा, और बच्चे शेर के साथ खेलेंगे; वे पवित्र पर्वत को हानि न पहुंचाएंगे, क्योंकि जगत यहोवा के ज्ञान से भर जाएगा।
अहदे अतीक की पुस्तक, मज़ामीर की पुस्तक, मज़ामीर 37 में इसका उल्लेख है कि "क्योंकि दुष्ट लोग समाप्त हो जाएंगे और ख़ुदा के मुंतज़र वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे, निश्चय ही थोड़े समय के बाद अन्यायी लोग नहीं रहेंगे।" यदि आप उस स्थान के बारे में सोचें, तो वे वहां नहीं होंगे, हालांकि, नम्र और धर्मी लोग पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे और न्याय के दिन तक वे उत्तराधिकारी बने रहेंगे।
पवित्र क़ुरआन ने भी यही संकेत दिया है।
और हमने जिक्र के बाद जबूर में लिखा है, कि धर्मी लोग पृय्वी के अधिकारी होंगे।
(सूरह अंबिया, आयत 105)
लूका की बाइबिल के अध्याय 12 में यह उल्लेख किया गया है कि "अपनी कमर कस लो और दीपक जलाते रहो, और उन लोगों की तरह बनो जो अपने स्वामी और नेता की प्रतीक्षा करते हैं कि वह किस समय लौटेंगे, इसलिए कि जब भी वे आएं और दरवाजा खटखटाएं, तो तुरंत उनके लिए दरवाजा खोल दें। भाग्यशाली हैं नौकर और गुलाम कि जब उनके स्वामी और नेता आएंगे, तो वे उन्हें जागते और तैयार पाएंगे, इसलिए आपको भी तैयार रहना चाहिए क्योंकि आपके अनुमान मे नही होगा कि मनुष्य का पुत्र कब आयेगा।
इसी तरह, इमाम महदी (अ) का भी अहले सुन्नत की किताबों में उल्लेख किया गया है।
अफ़ज़लुल इबादते इंतेज़ार अल फरज
इबादत का सर्वोत्तम रूप प्रतीक्षा है। (सुनन तिर्मिज़ी, खण्ड 5, पृष्ठ 528)
जोहूर के हत्मी होने का उल्लेख अहल अल-सुन्नत की किताबों में भी किया गया है।
"यदि दुनिया के अंत से पहले केवल एक दिन बचा होगा, तो ईश्वर उस दिन को इतना बढ़ा देगा कि मेरे अहले-बैत में से एक को मेरे नाम के एक व्यक्ति को भेजा जाएगा जो पृथ्वी को न्याय से भर देगा जैसा वह क्रूरता से भरी होगी।" (सुनन तिर्मिज़ी, खंड 4, पृष्ठ 438)
"दुनिया तब तक ख़त्म नहीं होगी जब तक मेरे अहले-बैत का कोई व्यक्ति अरबों पर शासन नहीं करेगा, और उस व्यक्ति का नाम मेरे नाम पर होगा।" (सुनन तिर्मिज़ी, खंड 4, पृष्ठ 438)
यदि दुनिया के अंत से पहले केवल एक दिन बचा होगा, तो ईश्वर उस दिन को इतना बढ़ा देगा कि मेरे अहले-बैत में से एक को मेरे नाम के एक व्यक्ति को भेजा जाएगा जो पृथ्वी को न्याय से भर देगा जैसा वह क्रूरता से भरी होगी।" (सुनन अबी दाऊद, खंड 4, पृष्ठ 106)
ऐसा माना जाता है कि हमारे संरक्षक और उत्तराधिकारी इमाम महदी (अ) का जन्म 15 शाबान अल-मोअज़्ज़म वर्ष 255 हिजरी को सामर्रा में हुआ था। जैसा कि शेख सदुक ने अपनी पुस्तक कमाल अल-दीन, खंड 2, अध्याय 42 में कहा, शेख तुसी ने अपनी पुस्तक अल-ग़ैबा पृष्ठ 238 में कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) की बुआ (फूफी) ने कहा:
"इमाम हसन असकरी (अ) ने मुझे [हकीमा खातून] बुलाया और कहा: फूफी! आपको आज हमारे साथ रहना चाहिए क्योंकि यह नीमा शाबान (शाबान की पंद्रहवीं) की रात है और अल्लाह ताला आज रात अपनी हुज्जत जाहिर करेगा, जो पृथ्वी पर उसकी हुज्जत है। मैंने कहा: इसकी माँ कौन है? उन्होंने कहा: नरजिस, मैंने कहा: मैं आप पर क़ुरबान जाऊं, उनमें गर्भावस्था का कोई प्रभाव नहीं है। उन्होंने कहा: यही तो मैं आप से कह रहा हूं।
जनाबे हकीमा (अ) के बयान के मुताबिक़ मैं आई, सलाम किया और बैठ गई, फिर नरजिस ने आकर मेरे जूते उठाये और मुझसे कहाः ऐ मेरी सय्यदा और मेरे घराने की सययदा! आप कैसी हैं? मैने कहा: आप मेरे और मेरे परिवार के सय्यदा हैं। नरजस मेरी बात से नारज़ हो गयी और कहने लगी: फूफी जॉन! क्या हुआ? मैने कहा: मेरी बेटी! अल्लाह ताला तुम्हें एक पुत्र प्रदान करेंगा जो इस दुनिया और उसके बाद का शासक होगा। नरगिस शरमा गईं और संयत हो गईं. मैंने नमाज पढ़ी। रोज़ा खोलने के बाद वह अपने बिस्तर पर लेट गईं। नमाजे शब के लिए आधी रात को उठकर नमाज़ पढ़ी; उस वक्त नरजिस सो रही थी। मै नमाज के बाद के कार्यों के लिए बैठ गई और फिर सो गई और भयभीत होकर उठी; वह अभी भी सो रही थी; इसलिए वह उठी और रात की नमाज़े शब पढने के बाद सो गई।
जनाबे हकीमा कहती हैं कि मैं फज्र की तलाश में बाहर आई और आसमान की ओर देखा, और फज्र हो चुकी थी और वह अभी भी सो रही थी। मेरे दिल में संदेह था कि अचानक इमाम हसन अस्करी (अ) ने अपने पास से आवाज दी। फूफी जॉन! जल्दबाजी न करो, क्योंकि अंत निकट है। यह सुनना था कि मैं बैठ गयई और सूर ह सजदा और सूर ह यासीन की तिलावत मे लगी हुई थी, जब अचानक जनाब नरजिस खातून परेशान होकर उठीं और मैं तुरंत उनके पास पहुंची और उनसे कहा: अल्लाह की दया हो तुम पर क्या तुम्हें कुछ महसूस हो रहा है? उन्होने सकारात्मक उत्तर दिया: फ़फी जॉन! हाँ, मैं इसे महसूस कर रही हूँ। मैंने कहा: अपने आप पर नियंत्रण रखो और हिम्मत रखो क्योंकि मैंने जो कहा था वह होने वाला है। हकीमा कहती हैं: अचानक मैंने अपने स्वामी (इमाम अस्करी) को देखा। महदी (अ) को देखा जो सजदे में था और उसके सातों अंग ज़मीन पर थे।
वर्ष 260 हिजरी से 15वीं शाबान वर्ष 329 हिजरी तक, गैबते सुगरा हुई, जिसमें चार विशेष प्रतिनिधियों ने एक के बाद एक उनके लिए नियाबत की, और तब से अब तक, यह गैबत कुबरा का काल है, और जब अल्लाह चाहेगा, वह ज़हूर करेंगे।
अल्लाह ! इमाम ज़माना (अ) के ज़ोहूर मे जल्दी करे । आमीन
इमाम महदी (अ) से मुलाक़ात का तरीक़ा
अल्लाह तआला ने हदीस-ए-मेराज़ में एक ऐसा मापदंड और पैमाना बताया है, जिस पर अमल करने से हम अपनी आँखों को इमाम महदी (अज) के नूरानी चेहरे से रोशन कर सकते हैं।
कुरआन करीम में अल्लाह तआला ने अपनी रज़ा (संतुष्टि) को मोमिन के लिए सबसे बड़े इनाम के रूप में बताया है, जैसा कि फरमाया:
"अल्लाह ने मर्दों और औरतों को जो ईमान लाए हैं, ऐसे बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नदियाँ बह रही हैं, वे हमेशा उन बागों में रहेंगे, और हमेशा रहने के लिए पवित्र घर होंगे और अल्लाह की रज़ा इनमे सबसे बड़ी चीज़ है। यह सबसे बड़ी जीत है।" (सूरा तौबा, आयत 72)
विवरण:
दुनिया और आख़िरत के तमाम फ़ायदे और इनामों में, वह चीज़ जो सब से बढ़कर है, वह अल्लाह की रज़ा है। दूसरे शब्दों में, अगर कोई अपने सभी कामों में सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा (संतुष्टि) के लिए काम करे, तो वास्तव में उसने सारी दुनिया और आख़िरत की सारी नेमतें और इनाम अपने लिए हासिल कर लिया।
अगर कोई केवल अल्लाह की रज़ा के बजाय किसी और के लिए काम करता है, तो उसके हाथ में केवल घाटा और अफसोस ही आएगा। क्योंकि इंसान अपने जीवन में हमेशा तीन तरह की संतुष्टि से जूझता है: एक तो अपनी आत्मा की संतुष्टि, दूसरे लोगों की संतुष्टि, और तीसरी अल्लाह की संतुष्टि।
बेशक, जब तक किसी के आमाल अल्लाह की रज़ा के लिए होते हैं, तो दूसरों की संतुष्टि और आत्मा की संतुष्टि कोई नुकसान नहीं है, लेकिन अगर किसी का काम अल्लाह के खिलाफ़ हो, तो उसका परिणाम दुनिया और आख़िरत दोनों में घाटा होगा।
कूफे के एक शख्स ने इमाम हुसैन (अ) से एक पत्र में पूछा कि दुनिया और आख़िरत का भला क्या है? इमाम हुसैन (अ) ने जवाब में कहा:
"जो आदमी अल्लाह की रज़ा को लोगों की नराज़गी से हासिल करता है, अल्लाह उसे लोगों के मामलों से बेखबर कर देता है, और जो आदमी लोगों की रज़ा को अल्लाह की नराज़गी से हासिल करता है, अल्लाह उसे लोगों के हवाले कर देता है।" (बिहार उल अनवार, भाग 68, पेज 208)
इमाम (अ) का यह जवाब हमे यह सिखाता है कि जब हम खुद को या दूसरों को छोड़कर सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा की दिशा में काम करें, तो हमारी ज़िन्दगी के सारे मक्सद पूरे हो सकते हैं।
इमाम महदी (अ) से मुलाक़ात का तरीक़ा
दुआ-ए-नुदबा में हम इमाम महदी (अ) को संबोधित करते हुए कहते हैं:
"हल इलैका यब्ना अहमदा सबीलुन फतुलक़ा?"
ऐ अहमद के बेटे, आपसे मुलाक़ात करने का कोई रास्ता है?"
इस सवाल का जवाब हमें हदीस-ए-मेराज़ में मिलता है। इस हदीस में जो शख्स अल्लाह की रज़ा के लिए काम करता है, उसका इनाम बताया गया है।
अल्लाह तआला ने अपने नबी (स) से कहा:
"فَمَنْ عَمِلَ بِرِضَای أُلْزِمُهُ ثَلاَثَ خِصَالٍ: फ़मन अमेला बेराज़ाई उल्ज़ेमोहू सलासा ख़ेसालिन... जो मेरी रज़ा के लिए काम करेगा, उसे मैं तीन गुण दूंगा..."
तीसरी विशेषता यह है:
"مَحَبَّةً لاَ یُؤْثِرُ عَلَی مَحَبَّتِی مَحَبَّةَ اَلْمَخْلُوقِینَ فَإِذَا أَحَبَّنِی أَحْبَبْتُهُ وَ أَفْتَحُ عَیْنَ قَلْبِهِ إِلَی جَلاَلِی وَ لاَ أُخْفِی عَلَیْهِ خَاصَّةَ خَلْقِی महब्बतन या योअस्सेरो अला महब्बतल मख़लूक़ीना फ़इज़ा अहब्बनी अहब्बतहू व अफ़्तहो ऐना क़ल्बेहि इजा जलाली वला उख़्फ़ी अलैहे ख़ासतन ख़ल्क़ी मैं उसे ऐसी मोहब्बत दूंगा, जो मेरी मोहब्बत पर किसी भी मख़लूक़ की मोहब्बत को प्राथमिकता नहीं देगा। जब वह मेरी मोहब्बत को दिल में बसाएगा, तो मैं उसे अपने खास बंदों की मोहब्बत से परिचित करूंगा।" (बिहार उल अनवार, भाग 74, पेज 21)
क्या कोई इंसान इमाम महदी (अ) से अधिक ख़ास है?
ग़ैबत के दौर में, जहां इमाम महदी (अ) अल्लाह के आदेश से पर्दा ए ग़ैबत मे हैं, अगर हम इस शर्त के अनुसार (जो "फ़मन अमेला बे रिज़ाई" के तहत है) अपना जीवन जीते हैं, तो हम अल्लाह की मर्जी से इमाम से मिल सकते हैं।
"हर के बेह दीदारे तू नायल शवद यक शबे हल्लाल मसाइल शवद"
अर्थात ः जिसे तुझसे मिलने का मौका जाए, एक रात में उसके सारे सवाल हल हो जाएंगे।
हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की विलादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय
हज़रत इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम का नाम हज़रत पैगम्बर स.ल.व.के नाम पर है तथा आपकी मुख्य़ उपाधियाँ महदी मऊद, इमामे अस्र, साहिबुज़्ज़मान बक़ियातुल्लाह व क़ाइम हैं।आप का जन्म सन् 255हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को सामर्रा नामक सथान पर हुआ यह शहर वर्तमान समय मे इराक़ देश की राजधानी बग़दाद के पास स्थित है।
हज़रत इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम का नाम हज़रत पैगम्बर स.ल.व.के नाम पर है तथा आपकी मुख्य़ उपाधियाँ महदी मऊद, इमामे अस्र, साहिबुज़्ज़मान बक़ियातुल्लाह व क़ाइम हैं।
जन्म व जन्म स्थान
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 255हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को सामर्रा नामक सथान पर हुआ था। यह शहर वर्तमान समय मे इराक़ देश की राजधानी बग़दाद के पास स्थित है।
माता पिता
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत नरजिस खातून हैं।
पालन पोषण
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का पालन पोषण 5वर्ष की आयु तक आपके पिता की देख रेख मे हुआ। तथा इस आयु सीमा तक आप को सब लोगों से छुपा कर रखा गया। केवल मुख्य विश्वसनीय मित्रों को ही आप से परिचित कराया गया था
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत का समय सन् 260 हिजरी क़मरी से आरम्भ होता है। और इस समय आपकी आयु केवल 5वर्ष थी। हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपनी शहादत से कुछ दिन पहले एक सभा मे जिसमे आपके चालीस विश्वसनीय मित्र उपस्थित थे, कहा कि मेरी शहादत के बाद वह (हज़रत महदी) आपके खलीफ़ा हैं। वह क़ियाम करने वाले हैं तथा संसार उनका इनतेज़ार करेगा। जबकि पृथ्वी पर चारों ओर अत्याचार व्याप्त होगा वह उस समय कियाम करेंगें व समस्त संसार को न्याय व शांति प्रदान करेंगें।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत(परोक्ष हो जाना)
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत दो भागों मे विभाजित है।
(1) ग़ैबते सुग़रा
अर्थात कम समय की ग़ैबत यह ग़ैबत सन् 260 हिजरी क़मरी मे आरम्भ हुई और329 हिजरी मे समाप्त हुई। इस ग़ैबत की समय सीमा मे इमाम केवल मुख्य व्यक्तियों से भेंट करते थे।
(2) ग़ैबत कुबरा
अर्थात दीर्घ समय की ग़ैबत यह ग़ैबत सन् 329 हिजरी मे आरम्भ हुई व जब तक अल्लाह चाहेगा यह ग़ैबत चलती रहेगी। जब अल्लाह का आदेश होगा उस समय आप ज़ाहिर(प्रत्यक्ष) होंगे वह संसार मे न्याय व शांति स्थापित करेंगें।
नुव्वाबे अरबा
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने अपनी 69 वर्षीय ग़ैबते सुग़रा के समय मे आम जनता से सम्बन्ध स्थापित करने लिए बारी बारी चार व्यक्तियों को अपना प्रतिनिधि बनाया। यह प्रतिनिधि इमाम व जनता की मध्यस्था करते थे। यह प्रतिनिधि जनता के प्रश्नो को इमाम तक पहुँचाते व इमाम से उत्तर प्राप्त करके उनको जनता को वापस करते थे। इन चारों प्रतिनिधियो को इतिहास मे “नुव्वाबे अरबा” कहा जाता है। यह चारों क्रमशः इस प्रकार हैं।
(1) उस्मान पुत्र सईद ऊमरी यह पाँच वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे।
(2) मुहम्द पुत्र उस्मान ऊमरी यह चालीस वर्ष तक इमाम की सेवा मे रहे।
(3) हुसैन पुत्र रूह नो बखती यह इक्कीस वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे।
(4) अली पुत्र मुहम्मद समरी यह तीन वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे। इसके बाद से ग़ैबते सुग़रा समाप्त हो गई व इमाम ग़ैबते कुबरा मे चले गये।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम सुन्नी विद्वानों की दृष्टि मे
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम मे केवल शिया सम्प्रदाय ही आस्था नही रखता है। अपितु सुन्नी सम्प्रदाय के विद्वान भी हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम को स्वीकार करते है। परन्तु हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के सम्बन्ध मे उनके विचारों मे विभिन्नता पाई जाती है। कुछ विद्वानो का विचार यह है कि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम अभी पैदा नही हुए है व कुछ विद्वानो का विचार है कि वह पैदा हो चुके हैं और ग़ैबत मे(परोक्ष रूप से) जीवन यापन कर रहे हैं।
सुन्नी सम्प्रदाय के विभिन्न विद्वान अपने मतों को इस प्रकार प्रकट करते है।
(1) शबरावी शाफ़ाई---,, अपनी किताब अल इत्तेहाफ़ मे इस प्रकार लिखते हैं कि शिया महदी मऊद के बारे मे विश्वास रखते हैं वह (हज़रत इमाम) हसन अस्करी के पुत्र हैं और अन्तिम समय मे प्रकट होगे। उनके सम्बन्ध मे सही हादीसे मिलती है। परन्तु सही यह है कि वह अभी पैदा नही हुए हैं और भविषय मे पैदा होगें तथा वह अहलेबैत मे से होंगें।,,
(2) इब्ने अबिल हदीद मोताज़ली---,,शरहे नहजुल बलाग़ा मे इस प्रकार लिखते हैं कि अधिकतर मोहद्देसीन का विश्वास है कि महदी मऊद हज़रत फ़ातिमा के वंश से हैं।मोतेज़ला समप्रदाय के बुज़ुरगों ने उनको स्वीकार किया है तथा अपनी किताबों मे उनके नाम की व्याख्या की है। परन्तु हमारा विश्वास यह है कि वह अभी पैदा नही हुए हैं और बाद मे पैदा होंगें।,,
(3) इज़्ज़ुद्दीन पुत्र असीर -----,,260 हिजरी क़मरी की घटनाओ का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि अबु मुहम्मदअस्करी (इमामे अस्करी) 232 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए और 260 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवासी हुए। वह मुहम्मद के पिता हैं जिनको शिया मुनतज़र कहते हैं।,,
(4) इमादुद्दीन अबुल फ़िदा इस्माईल पुत्र नूरूद्दीन शाफ़ई----,,. इमाम हादी का सन् 254 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवास हुआ। वह इमाम हसन अस्करी के पिता थे। इमाम अस्करी बारह इमामों मे से ग्यारहवे इमाम हैं वह उन इमामे मुन्तज़र के पिता हैं जो 255 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए।,,
(5) इब्ने हजरे हीतमी मक्की शाफ़ई------,, अपनी किताब अस्सवाइक़ुल मोहर्रेक़ाह मे लिखते हैं कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सामर्रा मे स्वर्गवासी हुए उनकी आयु 28 वर्ष थी। कहा जाता है कि उनको विष दिया गया। उन्होने केवल एक पुत्र छोड़ा जिनको अबुलक़ासिम मुहम्मद व हुज्जत कहा जाता है। पिता के स्वर्ग वास के समय उनकी आयु पाँच वर्ष थी । लेकिन अल्लाह ने उनको इस अल्पायु मे ही इमामत प्रदान की वह क़ाइमे मुन्तज़र कहलाये जाते हैं।,,
(6) नूरूद्दीन अली पुत्र मुहम्मद पुत्र सब्बाग़ मालकी-----,, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ;की इमामत दो वर्ष दो वर्ष थी । उन्होने अपने बाद हुज्जत क़ाइम नामक एक बेटे को छोड़ा। जिनका सत्य पर आधारित शासन की स्थापना के लिए इंतिज़ार( प्रतीक्षा) किया जायेगा। उनके पिता ने लोगों से गुप्त रख कर उनका पालन पोषण किया। तथा ऐसा अब्बासी शासक के अत्याचार से बचने के लिए किया गया था।,,
(7) अबुल अब्बास अहम पुत्र यूसुफ़ दमिश्क़ी क़रमानी ----- ,,अपनी किताब अखबारूद्दुवल वा आसारूल उवल की ग्यारहवी फ़स्ल मे लिखते हैं कि खलफ़े सालेह इमाम अबुल क़ासिम मुहम्मद इमाम अस्करी के बेटे हैं। जिनकी आयु उनके पिता के स्वर्गवास के समय केवल पाँच वर्ष थी। परन्तु अल्लाह ने उनको हज़रत याहिय की तरह बचपन मे ही हिकमत प्रदान की। वह मध्य क़द सुन्दर बाल सुन्दर नाक व चोड़े माथे वाले हैं।,, इस से ज्ञात होता है कि इस सुन्नी विद्वान को हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जन्म पर पूर्ण विश्वास था यहाँ तक कि उन्होने आपके शारीरिक विवरण का भी उल्लेख किया है। और खलफ़े सालेह की उपाधि के साथ उनका वर्णन किया है।
(8) हाफ़िज़ अबु अब्दुल्लाह मुहम्मद पुत्र य़ूसुफ़ कन्जी शाफ़ई---- ,,अपनी किताब किफ़ायातुत तालिब के अन्तिम भाग मे लिखते हैं कि इमाम अस्करी सन् 260 हिजरी मे रबी उल अव्वल मास की आठवी तिथि को स्वर्ग वासी हुए व उन्होने एक पुत्र छोड़ा जो इमामे मुन्तज़र हैं।,,
(9) ख़वाजा पारसा हनफ़ी अपनी किताब फ़ज़लुल ख़िताब मे इस प्रकार लिखते हैं कि “ अबु मुहम्द हसन अस्करी ने अबुल क़ासिम मुहम्मद मुँतज़र नामक केवल एक बेटे को अपने बाद इस संसार मे छोड़ा जो हुज्जत क़ाइम व साहिबुज़्ज़मान से प्रसिद्ध हैं। वह 255 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15 वी तिथि को पैदा हुए व उनकी माता नरजिस थीं।,,
(10) इब्ने तलहा कमालुद्दीन शाफ़ई -----अपनी किताबमतालिबुस्सऊल फ़ी मनाक़िबिर रसूल मे लिखते हैं कि “अबु मुहम्मद अस्करी के मनाक़िब (स्तुति या प्रशंसा) के बारे इतना कहना ही अधिक है कि अल्लाह ने उनको महदी मऊद का पिता बनाकर सबसे बड़ी श्रेष्ठता प्रदान की हैं। वह आगे लिखते हैं कि महदी मऊद का नाम मुहम्मद व उनकी माता का नाम सैक़ल है। महदी मऊद की अन्य उपाधियाँ हुज्जत खलफ़े सालेह व मुँतज़र हैं।
(11) शम्सुद्दीन अबुल मुज़फ़्फ़र सिब्ते इब्ने जोज़ी अपनी प्रसिद्ध किताब तज़किरातुल ख़वास मे लिखते हैं “ कि मुहम्मद पुत्र हसन पुत्र अली पुत्र मुहम्मद पुत्र अली पुत्र मूसा पुत्र जाअफ़र पुत्र मुहम्मद पुत्र अली पुत्र हुसैन पुत्र अली इब्ने अबी तालिब की कुन्नियत अबुल क़ासिम व अबु अबदुल्लाह है। वह खलफ़े सालेह, हुज्जत, साहिबुज्जमान, क़ाइम, मुन्तज़र व अन्तिम इमाम हैं।अब्दुल अज़ीज़ पुत्र महमूद पुत्र बज़्ज़ाज़ ने हमको सूचना दी है कि इबने ऊमर ने कहा कि हज़रत पैगम्बर ने कहा कि अन्तिम समय मे मेरे वँश से एक पुरूष आयेगा जिसका नाम मेरे नाम के समान होगा व उसकी कुन्नियत मेरी कुन्नियत के समान होगी। वह संसार से अत्याचार समाप्त करके न्याय व शाँति की स्थापना करेगा। यही वह महदी हैं।
(12) अबदुल वहाब शेरानी शाफ़ई मिस्री---- अपनी प्रसिद्ध किताब अल यवाक़ीत वल जवाहिर मे हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलामके सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “ वह इमाम हसन की संतान है उनका जन्म सन् 255 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को हुआ। वह ईसा पुत्र मरीयम से भेँट करेगें व जीवित रहेगें। हमारे समय (किताब लिखने का समय) मे कि अब 958 हिजरी क़मरी है उनकी आयु 706 वर्ष हो चुकी है
महदवीयत शियावाद और इस्लामी क्रांति का ध्वज
हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रमुख ने महदवीयत के विषय की अहमियत पर चर्चा करते हुए कहा: "महदवीयत आजकल संदेहों और आरोपों के शिकार हो चुकी है, और इस विचार को मज़बूती से स्थापित करना हौज़ा-ए-इल्मिया की मुख्य जिम्मेदारियों में से एक है।"
धार्मिक मदरसो के प्रमुख आयतुल्लाह आराफ़ी ने पूर्वी आज़रबाइजान प्रांत में हौज़ा-ए-इल्मिया के शिक्षकों और कर्मचारियों से मुलाकात के दौरान ईरान की इस्लामी क्रांति की वर्षगाठ मनाने और 29 बहमन को तबरिज़ में मनाए जाने वाले दिन की सराहना की।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने आगे हौज़ा-ए-इल्मिया के सुधारात्मक योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से बताया और कहा: "आज हौज़ा-ए-इल्मिया एक विशेष दृष्टिकोण और भविष्य-दृष्टि से संपन्न हो चुका है और इसमें कई बड़े सुधारात्मक कार्यक्रम लागू हो रहे हैं।"
उन्होंने इन योजनाओं के रास्ते में आने वाली चुनौतियों और बाधाओं पर भी बात की और कहा कि समस्याओं के बावजूद, इन योजनाओं में से कुछ सफलतापूर्वक लागू हो चुकी हैं।
महदवीयत के विषय की अहमियत पर ज़ोर देते हुए, आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा: "महदवीयत शियावाद और इस्लामी क्रांति का ध्वज है और आजकल यह कई तरह के संदेहों और आरोपों का शिकार हो चुकी है। इसलिए, महदवीयत के सिद्धांतों को मज़बूती से स्थापित करना हमारी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।"
आयतुल्लाह आराफ़ी ने हौज़ा-ए-इल्मिया के भविष्य की योजनाओं के बारे में भी बात की और खासकर समकालीन इस्लामी फ़िक़ह (विधि), छात्रों और शिक्षकों के लाभों को लक्ष्यित योजनाओं, और हौज़ा की शैक्षिक और प्रचारक स्तर को बढ़ाने के बारे में बताया।
उन्होंने छात्रों और शिक्षकों के जीवन स्तर में सुधार और उनके लिए वित्तीय समर्थन बढ़ाने के प्रयासों की भी सराहना की।
अंत में, उन्होंने पूर्वी आज़रबाइजान प्रांत के हौज़ा-ए-इल्मिया के अधिकारियों और शिक्षकों की सराहना की और कहा कि इस प्रांत का अपने उज्जवल इतिहास के साथ हौज़ा-ए-इल्मिया और इस्लामी गणराज्य ईरान की भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
नीमा ए शाबान के अवसर पर तीर्थयात्रियों की मेजबानी
जमकरान मस्जिद के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन सैयद अली अकबर उजाक़ नेजाद ने कहा है कि नीमा ए शाबान के अवसर पर जमकरान मस्जिद में चार से पांच मिलियन तीर्थयात्रियों की मेजबानी के लिए सरकारी समर्थन आवश्यक है।
जमकरान मस्जिद के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन सैयद अली अकबर उजाक़ नेजाद ने कहा है कि नीमा ए शाबान के अवसर पर जमकरान मस्जिद में चार से पांच मिलियन तीर्थयात्रियों की मेजबानी के लिए सरकारी समर्थन आवश्यक है।
नीमा ए शाबान और हजरत बाकियातुल्लाह अल-आज़म (अ) के शुभ जन्मदिवस के अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि ये दिन दुनिया भर के मुसलमानों, विशेषकर शियाो के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि हजरत वली अस्र (अ) की दरगाह पर आने के इच्छुक लाखों लोग दूरी के कारण सीधे तौर पर मुबारकबाद पेश नहीं कर पाते हैं, हालांकि जमकरान मस्जिद उनके लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करती है।
उन्होंने कहा कि जमकरान मस्जिद, जिसका नाम हज़रत वली अस्र (अ.स.) के नाम पर रखा गया है, इन दिनों के दौरान ईरान और दुनिया भर से आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए एक केंद्र बन जाती है। यह पवित्र स्थल न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि अन्य धर्मों और आस्थाओं के अनुयायियों के लिए भी एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन उजाक़ नेजाद ने कहा कि हज़रत बाक़ियातुल्लाह (अ.स.) के जन्म के अवसर पर जायरीनों का उत्साह और जोश उल्लेखनीय है। यद्यपि प्रत्यक्ष तीर्थयात्रा संभव नहीं है, लोग जामकरन मस्जिद में इबादत और दुआ के माध्यम से अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं और आशा करते हैं कि उनकी दुआ हज़रत वली अस्र (अ.स.) तक पहुंचेगी।
उन्होंने बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि इन दिनों में जमकरान मस्जिद में लगभग 40 से 50 लाख लोग आते हैं, जिसके लिए सरकारी संस्थाओं और विभिन्न विभागों का सहयोग आवश्यक है।
जमकरान मस्जिद के मुतवल्ली ने कहा कि इस क्षेत्र में जनता हमेशा मौजूद रहती है, लेकिन अगर सरकार सुरक्षा, नागरिक सुविधाएं और अन्य आवश्यक सेवाएं प्रदान करने में अपनी भूमिका नहीं निभाती है, तो इतनी बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों की मेजबानी करना मुश्किल होगा। उन्होंने सरकारी संस्थाओं के सहयोग की सराहना की तथा आशा व्यक्त की कि यह सहयोग भविष्य में भी जारी रहेगा।
अंत में उन्होंने दुआ की कि अल्लाह सभी को सुरक्षित रखे और उन्हें हज़रत वली अस्र (अ.त.फ.) के प्रकट होने की खुशखबरी जल्द से जल्द प्रदान करे।
इमाम ए ज़माना अ.स. को पर्दाए ग़ैब में छिपा कर रखाने का राज़ क्या
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के हवाले से कुछ इस तरीके से फरमाया वह कौन सा राज़ है जिसके तहत इमाम ज़माना अ.स.को छिपा कर रखा गया हैं।
नजफ अशरफ के केंद्रीय कार्यालय से हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने फरमाया,मारेफ़ते इमाम ए ज़माना अ.ज.के बारे में ,सवाल, वह कौन सा राज़ है जिसके तहत इमाम अ.ज.को छिपा कर रखा गया हैं हालाँकि अल्लाह इमाम अ.ज. की हिफ़ाज़त किसी और तरीक़े से कर सकता है?
उत्तर: यह एक अजीब सवाल है अल्लाह ताला के लिए हज़रत मूसा अ.स. की हिफ़ाज़त करना मुमकिन था लेकिन इसके बावजूद अल्लाह ताला ने उन्हें छिपा कर उनकी हिफ़ाज़त की इसी तरह ख़ोदा चाहता तो हज़रत ईसा अ.स. को ज़मीन पर ही हत्या से महफ़ुज़ रख सकता था लेकिन अल्लाह ताला ने उनकी हेफ़ाज़त की उन्हें आसमान में छिपा कर अल्लाह ताला से उसके काम के बारे में सवाल नहीं किया जाता है।
क्रांति से पहले और बाद में ईरान की स्थिति
40 से अधिक वर्षो का अनुभव रखने वाले और हौज़ा तथा अल मुस्तफ़ा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी मे लंबे समय से शैक्षिक और प्रचार कार्यो मे सक्रिय हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली रहमानी सबज़वारी, ने इस्लामी क्रांति की विजय की सालगिरह के मौके पर उन दिनों की यादों और इमाम ख़ुमैनी (र) के प्रचार के रहस्यों को साझा किया, जिनसे उन्होंने लोगों को सबसे बड़ी क्रांति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
40 से अधिक वर्षो का अनुभव रखने वाले और हौज़ा तथा अल मुस्तफ़ा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी मे लंबे समय से शैक्षिक और प्रचार कार्यो मे सक्रिय हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली रहमानी सबज़वारी, ने इस्लामी क्रांति की विजय की सालगिरह के मौके पर उन दिनों की यादों और इमाम ख़ुमैनी (र) के प्रचार के रहस्यों को साझा किया, जिनसे उन्होंने लोगों को सबसे बड़ी क्रांति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
नीचे उनके विचारों का सारांश दिया गया है:
"अगर सूरज न हो तो हम काले और सफेद में कोई अंतर नहीं देख सकते। लेकिन सूरज की रोशनी से हम प्राकृतिक दुनिया की विविधताओं को देख सकते हैं। इसी तरह, आध्यात्मिक और आंतरिक दुनिया में, सत्य और असत्य, अच्छाई और बुराई को हम समझते हैं।"
"आध्यात्मिक दृष्टि से, अगर दिल पर रौशनी न हो तो हम सही और गलत का अंतर नहीं पहचान सकते। यह रौशनी, जो दिलों को प्रकाशित करती है, वह रौशनी हज़रत मुहम्मद (स) की है। वह सत्य को रौशन करते हैं। जो व्यक्ति इस रौशनी से वंचित है, उसका आंतरिक दृष्टिकोण अंधा है।"
"कुछ लोग सत्य और अच्छाई को बुराई से अलग नहीं कर पाते। हज़रत मुहम्मद (स) का नूर ऐसा है कि यदि यह किसी के दिल पर पड़े, तो वह फिर कभी भटकता नहीं। यह नूर सभी पैगंबरों से पहले है, और यह मार्गदर्शन करता है कि लोग सत्य की ओर आएं।"
"इमाम ख़ुमैनी (र) की प्रभावशीलता व्यक्तिगत, सामाजिक और वैश्विक स्तर पर थी। उनका प्रभाव समय और स्थान की सीमाओं से परे था। उनका प्रभाव दिलों और दिमागों पर था, और उन्होंने सही शिक्षा और नैतिकता के साथ लोगों के दिलों को प्रभावित किया।"
"क्रांति से पहले, ईरान में केवल कुछ सीमित संसाधन थे, लेकिन इस्लामी क्रांति ने ईरान को विकास और समृद्धि की दिशा में अग्रसर किया। क्रांति के बाद ईरान में बिजली, गैस, सड़कों और कई अन्य सुविधाओं का विस्तार हुआ। पहले, शाह के शासन में, लोगों का जीवन बहुत कठिन था और बाहरी शक्तियाँ देश की अर्थव्यवस्था और संसाधनों पर नियंत्रण रखती थीं।"
"इमाम ख़ुमैनी (र) का तरीका लोगों को जागरूक करने में बहुत प्रभावी था, और उन्होंने अपनी क्रांति को व्यक्तिगत से लेकर सामाजिक और फिर राष्ट्रीय स्तर तक फैलाया। उनका तरीका वही था जो हज़रत मुहम्मद (स) ने मक्का और मदीना में अपनाया था।"
"हमारे पास इमाम ख़ुमैनी (र) जैसे नेतृत्व थे, जो धीरे-धीरे क्रांति की विचारधारा को फैलाते गए, और यह क्रांति मराज ए तक़लीद (धार्मिक विद्वानों) द्वारा पूरी तरह से समर्थित थी।"
"मैंने 1967 ई में तालीम शुरू की और 1972 ई में क़ुम में आकर इमाम ख़ुमैनी (र) के विचारों को समझने का मौका पाया। उन दिनों में हम उनके संदेशों को समझते हुए इंकलाबी विचारधारा को फैलाते थे। जब इमाम क़ुम लौटे, तो हम उनके स्वागत में गए थे, और उस दिन हम सभी बहुत चिंतित थे क्योंकि दुश्मन उनके विमान को गिरा सकते थे। लेकिन जैसे ही इमाम क़ुम पहुंचे, लोगों ने ‘इस्लामी क्रांति ज़िंदाबाद’ के नारे लगाए, और फिर क्रांति ने जीत हासिल की।"
"इमाम ख़ुमैनी (र) के प्रभाव और नेतृत्व ने न केवल ईरान, बल्कि दुनिया भर के लोगों को जागरूक किया और इस्लामी क्रांति के सिद्धांतों को फैलाया।"
राष्ट्रपति: हम किसी के सामने नहीं झुकेंगे
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि ईरानी राष्ट्र कभी भी विदेशियों के सामने नहीं झुकेगा, कहा: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प अगर बातचीत की कोशि में हैं, तो उन्होंने ये गलतियां क्यों कीं?
ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने सोमवार को इस्लामिक क्रांति की सफलता की 46वीं वर्षगांठ पर इस बात पर ज़ोर दिया कि ईरान, गुंडागर्दी और ज़ोरज़बरदस्ती के ख़िलाफ पूरी ताकत से खड़ा है और वरिष्ठ नेता इमाम ख़ामेनेई के नेतृत्व में साजिशों के ख़िलाफ़ डटा रहेगा।
उनका कहना था कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प बातचीत की बात करते हैं, लेकिन साथ ही वह ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों और साज़िशों के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर भी कर रहे हैं ।
राष्ट्रपति ने यह कहते हुए कि अमेरिका शांति प्रिय होने का दावा करता है, कहा: इस क्षेत्र की शांति किसने भंग की? इस क्षेत्र और ग़ज़ा में हत्या और विनाश का कारण कौन है? दुनिया का कौन सा स्वतंत्र व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि आप महिलाओं, बच्चों और बीमारों पर बम बरसाते रहें?
राष्ट्रपति ने कहा कि हम कभी भी विदेशियों के सामने नहीं झुकेंगे। उन्होंने कहा कि दुश्मन ईरान पर हमला करने की अपनी इच्छा दफ़न कर दें।
राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने कहा: 22 बहमन अल्लाह का दिन है, क्योंकि ईरान के सभी लोग बिना किसी भेदभाव के मैदान में उतरे और अपनी ताकत, एकजुटता और एकता के बल पर विदेशियों के हाथ काट दिये और अत्याचारियों को देश से बाहर निकाल दिया।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने कहा: हम युद्ध की कोशिश में नहीं हैं, यह ज़ायोनी शासन था जिसने ईरान में नई सरकार की गतिविधियों के पहले ही दिन तेहरान में हमास आंदोलन के प्रमुख इस्माइल हानिया की हत्या कर दी थी।
राष्ट्रपति ने कहा, ये खुद आतंकवादी हैं और फिर हमें आतंकवादी कहते हैं। उन्होंने ईरान में कई लोगों की हत्या की, हम आतंक के शिकार हैं।
ईरान के राष्ट्रपति ने कहा: ट्रम्प का दावा है कि ईरान ने क्षेत्र की सुरक्षा बिगाड़ दी है जबकि अमेरिका के समर्थन से इज़राइल असुरक्षा का मुख्य कारण है और ग़ज़ा, लेबनान, सीरिया, ईरान और जहां भी वह चाहता है वहां के मज़लूमों पर बमबारी करता है।
कुम अलमुकद्देसा में 22 बहमन की रैली में जनता का भरपूर और ऐतिहासिक भागीदारी
इस्लामी क्रांति की सालगिरह के मौके पर क़ुम के लोगों ने 22 बहमन की रैली में भरपूर और व्यापक रूप से भाग लेकर क्रांति और इस्लामी व्यवस्था के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया।
एक रिपोर्ट के अनुसार , इस्लामी क्रांति की सालगिरह के अवसर पर क़म के लोगों ने 22 बहमन की रैली में भरपूर और व्यापक रूप से भाग लेकर क्रांति और इस्लामी व्यवस्था के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया।
रैली में शामिल लोग ईरान के झंडे और क्रांतिकारी नारों वाले बैनर हाथ में लिए हुए मुख्य रास्ते पर चल रहे थे इस मौके पर युवाओं, बच्चों और बुजुर्गों की भारी भागीदारी ने एकता और अखंडता का दृश्य प्रस्तुत किया।
यह रैली हर साल इस्लामी क्रांति की सालगिरह पर पूरे ईरान में आयोजित की जाती है और क़म, जो एक महत्वपूर्ण धार्मिक और क्रांतिकारी शहर है यहाँ हमेशा जनता की बड़ी संख्या में भागीदारी होती है।
प्रसारित की गई तस्वीरें और वीडियो क़म के लोगों की इमाम ख़ुमैनी र.ह. और रहबर मुअज्जम क्रांति के प्रति श्रद्धा और वफादारी को दर्शाती हैं।भागीदारों ने मर्ग बर अमरीका मर्ग बर इस्राइल और "इस्तेक़लाल, आज़ादी, जुम्हूरी इस्लामी" जैसे नारे लगाकर इस्लामी व्यवस्था और क्रांतिकारी दृष्टिकोण का समर्थन किया।
यह भव्य रैली एक बार फिर इस तथ्य को उजागर करती है कि ईरानी जनता एकता और अखंडता के साथ दुश्मनों की हर साजिश का सामना कर रही है और इस्लामी क्रांति के उद्देश्यों की रक्षा कर रही है।