رضوی

رضوی

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की महान घटना के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। सज्जाद, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को एक प्रसिद्ध उपाधि थी। महान ईश्वर की इच्छा से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला में जीवित बच गये था ताकि वह कर्बला की महान घटना के अमर संदेश को लोगों तक पहुंचा सकें।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं और 36 हिजरी क़मरी में उनका जन्म पवित्र नगर मदीने में हुआ और 57 वर्षों तक आप जीवित रहे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के जीवन का महत्वपूर्ण भाग कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आरंभ हुआ। कर्बला की महान घटना के समय इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम बीमार थे और इसी कारण वे कर्बला में सत्य व असत्य के युद्ध में भाग न ले सके।
 कर्बला की घटना का एक लेखक हमीद बिन मुस्लिम लिखता है “आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के शहीद हो जाने के बाद यज़ीद के सैनिक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास आये। वह बीमार और बिस्तर पर सोये हुए थे। चूंकि यज़ीद की सैनिकों को यह आदेश दिया गया था कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिवार के समस्त पुरुषों की हत्या कर दें इसलिए उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को भी शहीद करना चाहा परंतु उन्होंने इमाम को बीमारी के बिस्तर पर देखकर उन्हें छोड़ दिया।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आशूर के दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के बीमार होने में ईश्वरीय रहस्य व तत्वदर्शिता नीहित है ताकि वह अपने पिता के मार्ग को जारी रख सकें। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की इमामत 34 वर्षों तक थी और उनकी ज़िम्मेदारियों का एक महत्वपूर्ण भाग इस्लामी जगत तक कर्बला की महत्वपूर्ण घटना के संदेशों को पहुंचाना था।

कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इस्लामी समाज की स्थिति बहुत ही संवेदनशील चरण में प्रविष्ट हो गयी थी। एक ओर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के संदेशों को लोगों के लिए बयान किये जाने और बनी उमय्या के झूठे दावों के प्रचार से मुकाबला किये जाने की आवश्यकता थी और दूसरी ओर इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करके उन ग़लत बातों से मुकाबले की ज़रूरत थी जो इस्लाम की शिक्षाओं के लिए ख़तरा बनी हुई थीं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार की परिस्थिति में अपने कार्यक्रम को एक नियत समय में पूरा किया। आरंभ में कुछ समय तक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने खुत्बों व भाषणों के माध्यम से लोगों को सच्चाई से अवगत करके अपने पिता के मार्ग को जारी रखा और अपेक्षाकृत लंबे समय तक इस्लाम धर्म की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करके लोगों की सोच और व्यवहार को बेहतर बनाने का प्रयास किया।
 आशूर के बाद की घटनाओं में आया है कि सन 61 हिजरी क़मरी में 12 मोहर्रम को इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम बंदियों के काफिले के साथ कूफा आये। बंदियों का जो काफिला था उसमें कर्बला की घटना में बच जाने वाले बच्चे और महिलाएं थीं। इस काफिले में दो महान हस्तियां एक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और दूसरे हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा थीं। इन दो महान हस्तियों की मौजूदगी बंदियों की ढ़ारस और उनकी शक्ति का कारण थी। जब यह काफिला कर्बला से कूफा पहुंचा तो बंदियों को देखने के लिए बहुत बड़ी भीड़ एकत्रित थी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उस समय अवसर को उचित समझा और लोगों को संबोधित करके कहा हे लोगो! मैं हुसैन का बेटा अली हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसकी प्रतिष्ठा का तुमने अनादर किया। लोगों, ईश्वर ने हम अहलेबैत की परीक्षा ले ली है। सफलता, न्याय और सदाचारिता को हमारे अंदर रख दिया है और गुमराही एवं बर्बादी को हमारे दुश्मनों को दे दिया है। क्या तुम लोगों ने हमारे पिता को पत्र नहीं लिखा था और उनसे बैअत नहीं की थी अर्थात उनकी आज्ञापालन का वचन नहीं दिया था? किन्तु उसके बाद तुम लोगों ने धोखा दिया और उनके विरुद्ध युद्ध करने के लिए खड़े हो गये। कितना बुरा कार्य किये और कितना बुरा सोचे। अगर पैग़म्बरे इस्लाम तुमसे कहें कि मेरे बेटे की हत्या कर दी मेरा अनादर किया और तुम मेरी क़ौम व अनुयाई नहीं हो तो तुम किस मुंह से उन्हें देखोगे?
 एक दूसरे अवसर पर जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम काफिले के साथ शाम पहुंचे तो उन्होंने अत्याचारी व भ्रष्ट शासक यज़ीक के सामने अदम्य साहस का परिचय देते हुए कहा हे लोगो जो मुझे पहचानता है वह पहचानता है और जो नहीं जानता उसके लिए मैं अपना परिचय कर रहा हूं ताकि वह पहचान जाये। मैं उसका बेटा हूं जो बेहतरीन हज करने वाला था यानी मैं पैग़म्बरे इस्लाम का बेटा हूं जो जिब्राईल के साथ मेराज अर्थात आसमान पर गये और वहां उसने आसमान के फरिश्तों के साथ नमाज़ पढ़ी। वह ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने वाला था मैं लोक-परलोक की महिला फातेमा का बेटा हूं और कर्बला की भूमि में ख़ून से रंगीन व लतपथ होने वाले का बेटा हूं।“
 जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का भाषण यहां तक पहुंचा जो यज़ीद के दरबार में मौजूद लोग बहुत प्रभावित हुए और कुछ लोगों ने रोना शुरू कर दिया। अत्याचारी शासक यज़ीद की सरकार के आधार हिल गये। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के अलावा हज़रत ज़ैनब ने भी यज़ीद के दरबार में जो भाषण दिया था वह लोगों की जागरुकता का कारण बना इस प्रकार से कि कुछ लोगों ने यज़ीद के दरबार में ही आपत्ति जताई। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और हज़रत ज़ैनब के वास्तविकता प्रेमी भाषणों ने बनी उमय्या की सरकार के प्रति लोगों की घृणा में वृद्धि कर दी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के भाषण से यज़ीद बहुत चिंतित हो गया। उसने इमाम को चुप कराने और परिस्थिति को बदलने के लिए मोअज़्ज़िन को अज़ान देने के लिए कहा। इमाम अज़ान की आवाज़ सुनकर चुप हो गये और अज़ान देने वाला जब इस वाक्य पर पहुंचा कि मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद ईश्वर के दूत हैं तो इमाम ने यज़ीद से कहा क्या यह पैग़म्बर मेरे पूर्वज का नाम है या तेरे? अगर तू यह कहे कि मेरे पूर्वज का नाम है तो सब जान जायेंगे कि तू झूठ बोल रहा है और अगर तू यह कहे कि मेरे पूर्वज का नाम है तो तुमने किस दोष में मेरे पिता की हत्या की और उनके माल को लूट लिया और उनकी महिलाओं को बंदी बनाया? प्रलय के दिन तुझ पर धिक्कार हो।“

इतिहास में आया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिजनों ने यज़ीद की उसी सभा में इमाम हुसैन और दूसरे शहीदों के साथ कर्बला में जो कुछ हुआ था उसे बयान करना आरंभ कर दिया। यज़ीद इस सभा के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा व रोब में वृद्धि की कुचेष्टा में था परंतु स्थिति उसकी अपेक्षा के बिल्कुल विपरीत हो गयी जिससे वह बहुत चिंतित हो गया। जब शाम के लोग कर्बला में शहीद होने वाली हस्तियों और उनके अतीत से अवगत हो गये और बनी उमय्या के अपराधों से पर्दा उठ गया तो भ्रष्ट शासक यज़ीद जनमत को गुमराह करने की सोच में पड़ गया। उसने बंदियों के साथ अपने अत्याचारपूर्ण व्यवहार को परिवर्तित और उनके साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करने का प्रयास किया। वह इस बात से भयभीत था कि कहीं लोग उसकी सरकार के विरुद्ध आंदोलन न कर दें इसीलिए उसने कर्बला के बंदियों को ढ़ारस बधाने का प्रयास किया और इस तरीक़े से उसने अपने पापों पर पर्दा डालने की चेष्टा की।

अतः वह कर्बला के बंदियों की उस इच्छा के समक्ष घुटने टेक देने पर बाध्य हो गया कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाना चाहते हैं और उसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाने के लिए “दारूल हिजारह” नामक स्थान को विशेष कर दिया और बंदियों ने सात दिनों तक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाया। धीरे-2 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम शहादत व कर्बला की घटना की ख़बर पूरे शहर में फैल गयी। यज़ीद ने जब स्थिति को ख़राब होते देखा तो उसने कारवां को मदीने भेजने का निर्णय किया। जब यह कारवां शाम से मदीना पहुंचा तो नगर के लोग उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम शोकाकुल लोगों के मध्य मिम्बर पर गये और ईश्वर की प्रशंसा करने के बाद फरमाया हे लोगो! ईश्वर ने बहुत बड़ी विपत्ति से हमारी परीक्षा ली है। इस विपत्ति का कोई उदाहरण नहीं है। हे लोगो! कौन है जो इस महा त्रासदी को सुनकर प्रसन्न होगा? कौन दिल है जो हुसैन बिन अली की शहादत की ख़बर सुनकर दुःखी नहीं होगा? कौन आंख है जो आंसू नहीं बहायेगी? हम ईश्वर की ओर से आये हैं और ईश्वर की ही ओर पलट कर जायेंगे। इस हृदयविदारक मुसीबत में हम ईश्वर की ओर ध्यान देते हैं और उसके मार्ग में समस्त मुसीबतों को सहन करने के लिए तैयार हैं और हम जानते हैं कि ईश्वर प्रतिशोध लेने वाला है।“

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने पवित्र नगर मदीना में कर्बला की घटना की याद को जीवित रखा और वास्तविकताओं को बयान करके कर्बला के बाद के आंदोलनों की भूमि तैयार कर दी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने प्रयास से अमवी शासकों के चेहरों पर पड़ी नक़ाब को हटा दिया। साथ ही उन्होंने इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रचार-प्रचार के लिए काफी प्रयास किया। इस प्रकार इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत के 34 वर्षों के दौरान उस समय के समाज में विभिन्न रूपों में जागरूकता की लहर पैदा कर दी। जब अमवी शासक वलीद बिन अब्दुल मलिक ने स्वयं को इस जागरूकता की लहर के मुक़ाबले में अक्षम देखा तो उसने जागरूकता के स्रोत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को शहीद करने का षडयंत्र रचा परंतु वह इस बात से अचेत था कि सच्चाई का दीप कभी बुझता नहीं है और वह हमेशा प्रज्वलित व प्रकाशमयी रहेगा। अंततः अमवी शासक वलीद ने एक षडयंत्र रचकर इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को वर्ष 94 हिजरी क़मरी में शहीद करवा दिया।

 

एक रिवायत के मुताबिक़, 25 मोहर्रम का दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्राणप्रिय नवासे हज़रत इमाम हुसैन (अ) के बेटे और शिया मुसलमानों के चौथे इमाम, अली इब्ने हुसैन इमाम ज़ैनुल इमाम अली इब्ने हुसैन (अ) के कई उपनाम थे जिनमें सज्जाद, सय्यादुस्साजेदीन और ज़ैनुल आबेदीन प्रमुख हैं। उनकी इमामत का काल कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद शुरू हुआ। इस काल की ध्यानयोग्य विशेषताएं हैं। इमाम सज्जाद ने इस काल में अत्यंत अहम और निर्णायक भूमिका निभाई। कर्बला की हृद्यविदारक घटना के समय उनकी उम्र 24 साल थी और इस घटना के बाद वे 34 साल तक जीवित रहे। इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुक़ाबला किया। इस मुक़ाबले के दौरान इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के बारे में जो बात सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है वह कर्बला के आंदोलन की याद को जीवित रखना और इस अमर घटना के संदेश को दुनिया तक पहुंचाना है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन को वर्ष 95 हिजरी में 25 मुहर्रम को उमवी शासक वलीद इब्ने अब्दुल मलिक के आदेश पर एक षड्यंत्र द्वारा ज़हर देकर शहीद कर दिया गया था।उल्लेखनीय है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) कर्बला के संघर्ष में शहीद नहीं हुए थे। इसलिए कि वे उस समय बीमार थे। कर्बला में बीमारी के कारण वे अत्यधिक कमज़ोर हो चुके थे, यहां तक कि दुश्मनों को लग रहा था कि आपकी प्राकृतिक मौत निकट है और आपको शहीद करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हालांकि इमाम सज्जाद की यह स्थिति ईश्वरीय योजना के अनुसार थी, ताकि धरती ईश्वरीय दूत से ख़ाली न रहे और दुनिया ईश्वरीय दूत के प्रकाश से प्रकाशमय रहे। आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत का दिन है।  

ऐसे समय में कि जब रोटी और अज्ञानता ने लोगों को उलझा रखा था और इस्लाम की शिक्षाओं में बदलाव किया जा रहा था, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों में से एक व्यक्ति उठा और उसने दुआ के सुन्दर शब्दों में इस्लाम की अद्वितीय शिक्षाओं एवं नैतिक सिद्धांतों को दुनिया के सामने पेश किया। ऐसा समय कि जब कर्बला में अमानवीय अपराधों के बाद बनी उमय्या ने समाज के वातावरण को संदेहपूर्ण एवं ज़हरीले प्रचारों से दूषित कर रखा था, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उच्च मानवीय व्यवहार एवं अर्थपूर्ण दुआओं द्वारा अपनी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी को अदा किया। ऐसे ज़हरीले वातावरण में अनैतिकता एवं भ्रष्टाचार अपने चरम पर थे, इसीलिए इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने लोगों का नैतिक प्रशिक्षण किया और उन्हें शुद्ध धार्मिक सिद्धांतों की शिक्षा दी।

 

हज्जाज इब्ने मसरूक़ इब्ने जअफ इब्ने सअद अशीरा था आप का कबीला मदहज के एक अज़ीम फर्द थे आप का शुमार हजरत अली अलै० के खास शियों में था। आप कूफे में रहते और हजरत अली अ.स. की खिदमत करते थे।

आप का पूरा नाम हज्जाज इब्ने मसरूक़ इब्ने जअफ इब्ने सअद अशीरा था। आप का कबीला मदहज के एक अज़ीम फर्द थे आप का शुमार हजरत अली अलै० के खास शियों में था आप कूफे में रहते और हजरत अली अलै० की खिदमत करते थे।

इमामे हुसैन अलै० की मक्के से रवानगी के वक्त हज्जाज भी कूफे से रवाना हुए और मंजिले कसर बनी मकातिल में शरफे मुलाकात हासिल किया ।जब अब्दुल्लाह इब्ने हुर्र जअफ़ी (जिन का खेमा कसर इब्ने मकतिल में पहले से नसब था ) को दावते नुसरत देने के लिए इमामे हुसैन अलै० खुद के खेमे में तशरीफ़ ले गए तो हज्जाज आप के हमराह थे।

जनाबे हज्जाज यौमे आशुरा इमामे हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हो कर अर्ज़ की मौला! मरने की इजाज़त दीजिये  इमामे  हुसैन  ने इजने जिहाद अता फरमाया और हज्जाज मैदान में तशरीफ़ लाये और नबर्द आज़माई शुरु की आप ने 15 दुश्मनों को क़त्ल करने के बाद हाजिरे खिदमते इमाम हुए और थोड़ी देर मौला की खिदमत में ठहर कर मैदाने जंग में फिर तशरीफ़ लाये और अपने गुलाम "मुबारक” के  साथ मिलकर दुश्मनों से लड़ते रहे। आखिरकार एक सौ पचास (150) दुश्मनों को कत्ल करके शहीद हो गए।

 

दक्षिणी सीरियाई शहर स्वीदा में एक हफ़्ते से चल रही भीषण झड़पें अरब कबीलों की वापसी के बाद थम गई हैं और शहर में अपेक्षाकृत शांति स्थापित हो गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिणी सीरियाई शहर स्वीदा में एक हफ़्ते से चल रही भीषण झड़पें अरब कबीलों की वापसी के बाद थम गई हैं और शहर में अपेक्षाकृत शांति स्थापित हो गई है।

गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने घोषणा की है कि अरब कबीलों के सभी सशस्त्र बल शहर छोड़ चुके हैं। इसी तरह, सीरियाई कबीलों की सर्वोच्च परिषद ने भी युद्धविराम के पूर्ण कार्यान्वयन की पुष्टि की है और चेतावनी दी है कि अगर ड्रूज़ समूह द्वारा युद्धविराम का उल्लंघन किया गया, तो कड़ा जवाब दिया जाएगा।

इस बीच, गोलानी सरकार ने स्वीदा के आसपास अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है, जबकि घायलों के इलाज के लिए 20 एम्बुलेंस भी भेजी गई हैं।

यह याद रखना चाहिए कि ये झड़पें 13 जुलाई को शुरू हुईं जब एक ड्रूज़ व्यापारी का अरब आदिवासियों के साथ झगड़ा हुआ और बाद में उसे गिरफ़्तार कर लिया गया। स्थिति तब और बिगड़ गई जब सीरियाई सरकार के सशस्त्र बलों ने शांति स्थापित करने के बजाय, ड्रूज़ लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। ज़ायोनी सरकार ने भी इस मौके का फ़ायदा उठाया और सीरिया में व्यापक हमले शुरू कर दिए।

इन झड़पों में अब तक 940 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें से ज़्यादातर आम नागरिक हैं, जबकि कुछ सूत्रों के अनुसार, 182 लोग ज़मीनी गोलीबारी का निशाना बने, जिनमें महिलाएँ, बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल हैं।

 

मनोवैज्ञानिक युद्ध और समाचार परिवर्तन दुश्मन के सबसे परिष्कृत हथियार हैं, जो सैन्य संकटों में निराशा और अराजकता पैदा करके राष्ट्रीय एकता को कमज़ोर करने की कोशिश करते हैं। धार्मिक छात्र मीडिया साक्षरता बढ़ाकर और आशावादी सामग्री तैयार करके इस मौन युद्ध में सबसे आगे हैं।

मनोवैज्ञानिक युद्ध और समाचार परिवर्तन सैन्य संकटों में दुश्मन के सबसे परिष्कृत और प्रभावी हथियारों में से हैं, जिनका इस्तेमाल राष्ट्रों के संकल्प, विश्वास और प्रतिरोध को कमज़ोर करने के लिए किया जाता है।

ये युद्ध समाज की चेतना और विश्वासों में घुसपैठ करके लोगों में अराजकता, चिंता, निराशा और अनिश्चितता फैलाने के लिए सोच-समझकर रचे जाते हैं, जिससे सामाजिक स्थिरता और राष्ट्रीय एकता हिल जाती है।

ऐसे क्षेत्रों में, धार्मिक छात्र बौद्धिक और सांस्कृतिक सीमाओं के संरक्षक के रूप में एक केंद्रीय और रणनीतिक भूमिका निभाते हैं। इस जटिल खतरे से निपटने के लिए, उनकी मीडिया रणनीतियों की समीक्षा और व्याख्या एक अनिवार्य आवश्यकता है, जिसे उच्च, विश्लेषणात्मक और आशावादी भाषा में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

सबसे पहले, मनोवैज्ञानिक युद्ध और समाचार विकृति की प्रकृति का स्पष्ट परिचय आवश्यक है।

मनोवैज्ञानिक युद्ध वास्तव में पहचान और मीडिया क्रियाओं का एक समूह है जो किसी व्यक्ति या समाज के व्यवहार, सोच और मनोबल को बदलने के उद्देश्य से आयोजित किया जाता है। यह युद्ध अनुनय-विनय के गुप्त तरीकों, भ्रामक जानकारी प्रकाशित करने, कृत्रिम सामग्री तैयार करने और संबोधित व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कमज़ोरियों का लाभ उठाकर सामूहिक धारणा और निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावित करता है।

दूसरी ओर, समाचार विकृति का अर्थ है अधूरी, चुनिंदा, असत्य या पक्षपातपूर्ण जानकारी प्रदान करना ताकि जनता की चेतना और निर्णयों को वास्तविकता से भटकाकर उन्हें गुमराह किया जा सके। इन दोनों हथियारों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, खासकर संकट और सैन्य स्थितियों में।

धार्मिक छात्र मीडिया साक्षरता बढ़ाकर और आशावादी सामग्री तैयार करके इस मौन युद्ध में सबसे आगे हैं। इसलिए, छात्रों को मीडिया की संरचना और भाषा को समझने, संदेशों की छिपी परतों का विश्लेषण करने, मनोवैज्ञानिक प्रभाव तकनीकों को पहचानने और नकली और विकृत समाचारों की पहचान करने में कौशल हासिल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। यह क्षमता न केवल उन्हें प्रभावी भूमिका निभाने वाला बनाएगी, बल्कि वे इस जागरूकता को जनता तक बेहतर ढंग से पहुंचाने में भी सक्षम होंगे।

 

धार्मिक मदरसो के अधिकारियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए, हौज़ा हाए इल्मिया के प्रमुख ने कहा कि पश्चिम का लक्ष्य है कि पूर्व और इस्लामी दुनिया में कोई शक्ति न हो, या यदि हो भी, तो वह पूरी तरह से पश्चिम से संबद्ध हो।

हाए इल्मिया के प्रमुख, आयतुल्लाह अली रज़ा आरफ़ी ने वर्तमान स्थिति और 12-दिवसीय थोपे गए युद्ध तथा पवित्र रक्षा पर एक राष्ट्रव्यापी बैठक में भाग लिया और वर्तमान जटिल परिस्थितियों के संदर्भ में इस्लामी दुनिया के जागरण और वैश्विक अहंकार की योजनाओं के विरुद्ध प्रतिरोध की आवश्यकता पर बल दिया।

वर्तमान स्थिति को एक "ऐतिहासिक मोड़" बताते हुए, उन्होंने अभूतपूर्व चुनौतियों का उल्लेख किया और इन जटिलताओं से 14 बिंदुओं पर प्रकाश डाला। इनमें आधुनिक हथियारों, प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग, आंतरिक और बाहरी स्तरों पर नेटवर्किंग, और प्रतिरोध धुरी को कमजोर करने की दशकों पुरानी योजनाएँ शामिल हैं।

दुश्मन के मीडिया और धारणा युद्ध का ज़िक्र करते हुए, अयातुल्ला अराफ़ी ने कहा कि पश्चिम भारी दुष्प्रचार के ज़रिए प्रतिरोध धुरी की कमज़ोरी को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने क्षेत्र के देशों को ख़रीदने और राजनीतिक व सामाजिक विभाजन भड़काने की दुश्मन की कोशिशों की ओर भी इशारा किया और कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनाई गई योजनाओं को आज फिर से पढ़ा और लागू किया जा रहा है।

पश्चिम का लक्ष्य: इस्लामी दुनिया का विभाजन

हौज़ा हाए इल्मिया के प्रमुख ने पश्चिम का मुख्य लक्ष्य इस्लामी दुनिया का विभाजन बताया और कहा कि क्षेत्र के कुछ देशों की सैन्य, सुरक्षा और सूचना प्रणालियों पर अमेरिका का नियंत्रण है, लेकिन इस्लामी गणराज्य ईरान की जनता और क्रांति के नेता इन साज़िशों के सामने पहाड़ की तरह डटे हुए हैं।

उन्होंने कहा कि प्रतिरोध धुरी भविष्य में नया जीवन पाएगी और इसमें यमन और इराक की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर इशारा किया।

विद्वानों का कर्तव्य; हृदय को सुदृढ़ करना और दृढ़ संकल्प को सुदृढ़ करना

अयातुल्ला आरफ़ी ने विद्वानों की मुख्य ज़िम्मेदारियों को "हृदय को सुदृढ़ करना, बौद्धिक मार्गदर्शन और समाज के दृढ़ संकल्प को सुदृढ़ करना" बताया और इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि समाज में सही विश्लेषण, दृढ़ विश्वास और दृढ़ संकल्प हो, तो कोई भी हथियार, यहाँ तक कि परमाणु हथियार भी, उसे पीछे नहीं धकेल सकता।

उन्होंने प्रतिरोध के चार मूल स्तंभों की पहचान "ज्ञान और समझ", "अदृश्य में विश्वास", "राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता" और "राष्ट्रीय दृढ़ संकल्प" के रूप में की।

धार्मिक विद्यालयों के सफल प्रशासन की विशेषताएँ

उन्होंने एक सफल प्रशासक की विशेषताओं का उल्लेख किया, जिनमें "तर्क और विचारधारा का होना", "कार्यकारी दल बनाने की क्षमता", "सभी ज़िम्मेदारियों को संतुलित रूप से देखना", "बौद्धिक और व्यावहारिक अनुशासन", "दबाव सहन करना", "ज़िम्मेदारियों का उचित वितरण" और "समस्याओं को हल करने की क्षमता" जैसे महत्वपूर्ण बिंदु शामिल हैं।

आर्टिफ़िश्यिल इंटेलीजेस; अवसर और खतरे

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास का उल्लेख करते हुए, अयातुल्ला अराफ़ी ने इस्लामी विज्ञान के प्रचार में इस तकनीक के उपयोग पर ज़ोर दिया और कहा कि धार्मिक स्कूलों को इस तकनीक में महारत हासिल करनी चाहिए और शिक्षा, अनुसंधान और धार्मिक प्रचार में इसका लाभ उठाना चाहिए।

अरबईन हुसैनी के लिए धार्मिक स्कूलों का संदेश

बैठक के अंत में, उन्होंने अरबईन के अवसर पर धार्मिक स्कूलों की भूमिका पर ज़ोर दिया और कहा कि अच्छे विद्वानों को प्रशिक्षित करना और धार्मिक स्कूलों के क्रांतिकारी संदेश का प्रसार करना इस वैश्विक आंदोलन में विद्वानों की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।

उल्लेखनीय है कि इस बैठक में धार्मिक स्कूलों की सर्वोच्च परिषद के सदस्यों ने भाग लिया। यह बैठक सहायकों, प्रांतीय प्रशासकों और धार्मिक स्कूलों के प्रमुखों की उपस्थिति में आयोजित की गई थी।

 

हिजबुल्लाह के महासचिव ने कहा: अमेरिका और इजरायल वर्तमान युद्धविराम समझौते को अपने हितों के विरुद्ध मानते हैं और इसीलिए वे एक नया समझौता प्रस्तावित कर रहे हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य पूरे लेबनान में हिजबुल्लाह को निहत्था करना है। प्रतिरोध के हथियार हमारे अस्तित्व का हिस्सा हैं, जिन्हें छीनने का ज़ायोनी सपना अधूरा ही रह जाएगा।

हिजबुल्लाह के महासचिव शेख नईम कासिम ने कहा है कि ज़ायोनी सरकार हिजबुल्लाह के हथियार छीनने में कभी सफल नहीं हो सकती और हम हर संभव आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। 

उन्होंने कमांडर अली करकी की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में संबोधन करते हुए कहा,शहीद कमांडर अली करकी हिजबुल्लाह के संस्थापकों में से थे और सैयद हसन नसरुल्लाह के साथ शहीद हुए। 

शेख नईम कासिम ने लेबनान में प्रतिरोध की प्रभावशीलता पर सवाल उठाने वालों को संबोधित करते हुए कहा, हिजबुल्लाह ने 1982 से लेकर आज तक असंख्य सफलताएं हासिल की हैं। इजरायल कभी भी हमारे हथियार नहीं छीन सकता यदि वे आक्रमण करेंगा, तो हम पूरी ताकत से बचाव करेंगे। जब तक हम जीवित हैं, इजरायल अपने लक्ष्यों में कभी सफल नहीं हो सकेगा।

उन्होंने कहा, यह सही है कि प्रतिरोध इजरायल के युद्ध को रोकने में पूरी तरह सफल नहीं हो सका, लेकिन उसने दुश्मन को सीमावर्ती क्षेत्र से आगे बढ़ने से रोक दिया और युद्ध को फैलने नहीं दिया। हिजबुल्लाह ने पिछले 17 वर्षों से लेबनान की सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखा है। 

हिजबुल्लाह के महासचिव ने कहा, हम हिजबुल्लाह के खिलाफ सभी नई साजिशों को लेबनानी राष्ट्र के लिए एक खतरा मानते हैं, और हमें इसका सामना करना होगा। यदि हमने हथियार डाल दिए, तो दुश्मन पूरे देश पर कब्जा कर लेगा। 

उन्होंने आगे कहा,अमेरिका और इजरायल वर्तमान युद्धविराम समझौते को अपने हितों के विरुद्ध मानते हैं और इसीलिए वे एक नया समझौता प्रस्तावित कर रहे हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य पूरे लेबनान में हिजबुल्लाह को निहत्था करना है।

 

 

ईरान के विदेश मंत्री ने कहा: हम सीरिया पर ज़ायोनी शासन के आक्रमण की निंदा करते हैं।

ईरानी विदेश मंत्री सैय्यद अब्बास अराकची ने कहा है कि सीरिया में इज़राइली हस्तक्षेप और आक्रमण का विस्तार अप्रत्याशित नहीं है।

उन्होंने सीरिया के विरुद्ध ज़ायोनी शासन के आक्रमण की निंदा की और कहा: इज़राइली हस्तक्षेप सीरिया में अशांति और रक्तपात को बढ़ाएगा।

विदेश मंत्री सैय्यद अब्बास अराकची का कहना है कि अवैध ज़ायोनी शासन के आक्रमण का सामना करने के लिए वैश्विक एकता आवश्यक है।

उन्होंने कहा: सीरिया में इज़राइली आक्रमण और हस्तक्षेप से क्षेत्र में तनाव बढ़ेगा।

 

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की राष्ट्रीय टीम के छात्रों ने 66वें अंतर्राष्ट्रीय गणित ओलंपियाड में 6 रंगीन पदक हासिल किए

2025 का 66वां अंतर्राष्ट्रीय गणित ओलंपियाड ऑस्ट्रेलिया में आयोजित किया गया था। पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की राष्ट्रीय गणित ओलंपियाड टीम ने इस प्रतियोगिता में 2 स्वर्ण, 3 रजत और 1 कांस्य पदक जीते।

 इस ओलंपियाड में ईरानी छात्रों में "मेहदी आग़ुजानलू" और "बर्दिया खुश-इक़बाल" ने स्वर्ण पदक जीते, जबकि "मोहम्मद सज्जाद मेमारी", "मोहम्मद रज़ा अत्तारान ज़ादेह" और "अमीरहुसैन ज़ारेई" ने रजत पदक तथा "पार्सिया तजल्लाई" ने कांस्य पदक प्राप्त किया।

 कुछ दिन पहले, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ ईरान की छह सदस्यीय गणित ओलंपियाड टीम ने चीन में आयोजित एक प्रतिस्पर्धी प्रशिक्षण कैंप में भाग लेकर 32 देशों के बीच क़ज़्ज़ाकिस्तान के साथ संयुक्त रूप से इस प्रतिष्ठित वैज्ञानिक प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हासिल किया था। 

 

नहजुल-बलाग़ा की हिकमत संख्या 73 में, इमाम अली (अ) ने दूसरों को प्रशिक्षण देने से पहले आत्म-सुधार पर ज़ोर दिया है। उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति शासक और जनता का नेता है, उसे पहले स्वयं को सुधारना चाहिए और फिर अपने चरित्र और वाणी से दूसरों का मार्गदर्शन करना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति स्वयं को प्रशिक्षित करता है, वह सम्मान का अधिक पात्र होता है।

अमीरुल मोमेनीन इमाम अली (अ) ने नहजुल-बलाग़ा में "दूसरों को प्रशिक्षण देने से पहले आत्म-सुधार" के बारे में कई बिंदुओं की व्याख्या की है। जिनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है:

नहजुल बलाग़ा, हिकमत संख्या 73:

مَنْ نَصَبَ نَفْسَهُ لِلنَّاسِ إِمَاماً، [فَعَلَیْهِ أَنْ یَبْدَأَ] فَلْیَبْدَأْ بِتَعْلِیمِ نَفْسِهِ قَبْلَ تَعْلِیمِ غَیْرِهِ؛ وَ لْیَکُنْ تَأْدِیبُهُ بِسِیرَتِهِ قَبْلَ تَأْدِیبِهِ بِلِسَانِهِ؛ وَ مُعَلِّمُ نَفْسِهِ وَ مُؤَدِّبُهَا، أَحَقُّ بِالْإِجْلَالِ مِنْ مُعَلِّمِ النَّاسِ وَ مُؤَدِّبِهِمْ‏ मन नसबा नफ़सहू लिन्नासे इमामा, फ़अलैहे अय यब्दा फ़लयब्दा बेतअलीमे नफ़सेहि क़ब्ला तअलीमे ग़ैरेहि, वल यकुन तादीबोहू बेसीरतेही क़्बला तादीबेही बेलेसानेह, व मोअल्लेमो नफ़सेहि व मोअद्देबोहा, अहक़्क़ो बिल इज्लाले मन मोअल्लेमिन्नासे व मोअद्देबेहिम जो लोगों का नेता बनता है, उसे दूसरों को सिखाने से पहले खुद को सिखाना चाहिए, और उसे अपनी ज़ुबान से नैतिकता सिखाने से पहले अपने चरित्र और आचरण से सिखाना चाहिए, और जो खुद को सिखाता और अनुशासित करता है, वह उससे ज़्यादा सम्मान का पात्र है जो दूसरों को सिखाता और अनुशासित करता है।

शरह:

इमाम (अ) इस कथन में तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर इशारा कर रहे हैं:

पहला, जो व्यक्ति लोगों का नेतृत्व करना चाहता है, उसे पहले खुद को शिक्षित करना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति के पास नहीं है, वह दूसरों को नहीं दे सकता। (जो कोई खुद को इमाम नियुक्त करता है, उसे दूसरों को सिखाने से पहले खुद को सिखाना शुरू करना चाहिए)।

दूसरायह है कि दूसरों का प्रशिक्षण उसके कार्यों और चरित्र, केवल अपने शब्दों से नहीं, क्योंकि यदि कोई अपने शब्दों का पालन नहीं करता, तो उसके शब्दों का कोई प्रभाव नहीं होगा। (और उसे अपनी ज़ुबान से अनुशासित होने से पहले अपने चरित्र से अनुशासित होना चाहिए)।

तीसराव्यावहारिक उदाहरण हमेशा मौखिक सलाह से ज़्यादा प्रभावी होता है क्योंकि, जैसा कि कहा गया है: "जब तक बात दिल से नहीं निकलती, तब तक वह दिल पर असर नहीं करती।" इसी तरह, जो व्यक्ति पहले खुद को शिक्षित और अनुशासित करता है, वह भी दूसरों को शिक्षित और अनुशासित करने वाले की तुलना में ज़्यादा सम्मान का पात्र माना जाता है। और जो खुद को सिखाता है और उसे अनुशासित करता है, वह उससे ज़्यादा सम्मान का पात्र है जो लोगों को सिखाता और उन्हें अनुशासित करता है।

स्रोत: पुस्तक "पयाम ए इमाम अमीरुल मोमिनीन (अ)" (आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी), नहजुल बलाग़ा की एक व्यापक व्याख्या।